क्या नकारे जायेंगे नीतीश
विकास पुरुष बनाम सुशासन बाबू । बिहार की राजनीति में सुशासन बाबू का तमग़ा हासिल करना कोई साधारण बात नहीं थी । 'सुशासन बाबू' नीतीश कुमार का व्यक्तिगत राजनीतिक उपनाम ही नहीं था बल्कि बिहार की जनता की आकांक्षाएँ भी इसमें शामिल है । मोदी देश के स्तर विकास पुरुष की पहचान लेकर निकले तो नीतीश को लगा कि ' सुशासन बाबू' की उनकी पहचान ढाल की तरह खड़ी हो जाएगी । लेकिन बिहार की राजनीति में विकास पुरुष और सुशासन बाबू के बीच लालू यादव 'सेकुलर साहब' उठ कर खड़े हो गए हैं । अलग अलग जातियों ने खुद को इन तीनों पहचान के पीछे कर लिया है । कंबीनेशन या समीकरण की जटिलता से गुज़रते हुए जो इस गणित को हल कर पाएगा वही लोकसभा में सबसे अधिक सीटें लाएगा । इसीलिए बिहार का चुनावी इम्तहान आई आई टी की प्रवेश परीक्षा की तरह कठिन हो गया है ।
इस इम्तहान में नीतीश कुमार फिर से अकेले हैं । मीडिया और चौराहे के चर्चाकार इस लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार को तीसरे नंबर पर देख रहे हैं । ये चर्चाकार सूप लेकर जातियों को कंकड़ पत्थर की तरह फटक कर अलग कर रहे हैं । स्वर्ण भाजपा की तरफ़ है । यादव मुसलमान लालू के साथ है और अति पिछड़ा और महादलित नीतीश के साथ है मगर इसका कई हिस्सा भाजपा के साथ । इस चुनाव में जातियों का नया पुराना समीकरण तो बन रहा है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गेंहूं में धान मिल गया है । चर्चाकार भंसार की तरह रेत में चावल चना और मकई भुन रहे हैं ।
ग्रामीण से लेकर शहरी इलाक़े में भाजपा के पक्ष में सवर्ण मुखर और उग्र नज़र आते हैं । ग्रामीण इलाक़ों में जब मैंने पूछा कि आप नीतीश से क्यों नाराज़ हैं । आप लोग तो लालू को हराने के लिए नीतीश को अपना नेता माना था । उनके कई जवाबों में प्रमुख रूप से यह बात झलकती है कि नीतीश कुमार ने सिर्फ अति पिछड़ा और महादलित की राजनीति की है । उन्हीं को हक़ और सुविधायें दी हैं । यह बात वे चौक चौराहे पर कहते फिरते हैं । जबकि पिछले चुनाव में यही स्वर्ण इस बात को लेकर नाराज़ नहीं था । इस बार ऐसा क्या हो गया कि नीतीश का यह मास्टर स्ट्रोक उनके ख़िलाफ़ काम करता हुआ बताया जा रहा है ।
अगर ऐसा है तो अति पिछड़ा और महादलित उन सवर्णों के साथ इतनी आसानी से जा सकता है । क्या नीतीश का यह वोट बैंक उस तबके के साथ स्वाभाविक रूप से उठ बैठ सकता है जो इन्हें मिल रहे अधिकारों से ईर्ष्या करता है । अतिपिछड़ा भी यही कहते हैं कि नीतीश ने उन्हें राजनीतिक पहचान दी है । इस तबके ने पहली बार राजनीतिक पहचान का स्वाद चखा है । स्वर्ण और अतिपिछड़ों के बीच का टकराव नया नया है । जिसे आप बिहार की बोली में टटका यानी ताज़ा कहते हैं । क्या ये तबक़ा नीतीश को छोड़ देगा । छोड़ दिया तो बिहार में बीजेपी की बड़ी जीत को कोई नहीं रोक सकता ।
शरद यादव नीतीश पर जातिवादी राजनीति का आरोप लगा रहे हैं । अगर नीतीश महादलित या अतिपिछड़ा की राजनीति नहीं करते तो क्या यह कोई गारंटी से कह सकता है कि सवर्ण बीजेपी को छोड़ नीतीश के साथ रहते । क्या भाजपा ने पासवान को मिलाकर अपने पक्ष में जातिवादी समीकरण नहीं बनाया । बिहार में नीतीश नहीं अकेले पड़ रहे हैं बल्कि अलग अलग दलों में बिखर कर पिछड़ी जातियों का राजनीतिक वर्चस्व कमज़ोर पड़ रहा है । इन जातियों के कई युवाओं के लिए राजनीतिक आकांक्षा का मतलब विकास तो हो गया है मगर अभी भी इस समूह के एक बड़े हिस्से के लिए राजनीतिक पहचान ही आकांक्षा है । क्यों सवर्णों को नीतीश अहंकारी लगते हैं । नीतीश को अहंकारी कहने वाले दस लोगों से जाति पूछिये तो जवाब मिल जाएगा कि ये नीतीश का अहंकार है या सवर्णों का ।
दरअसल यह चुनाव हवा से कहीं ज़्यादा संगठन शक्ति का है । भाजपा इस मामले में कहीं आगे हैं । संघ को शामिल कर लें तो उसकी व्यवस्था के मुक़ाबले जदयू और राजद एक पार्टी सिस्टम की तरह काम नहीं करते । नीतीश को इसी बात की कमी खल रही होगी । सिर्फ अपने काम पर विश्वास ही काफी नहीं होता बल्कि उस काम को नारों में बदलने के लिए संगठन भी चाहिए । किसी भी घटना पर बोलने के लिए बीजेपी के पास अच्छे प्रवक्ताओं की फ़ौज है । सत्ता में होते हुए भी जदयू के पास इसकी घोर कमी है । अगर यह कमी न होती तो नीतीश इतने कमज़ोर नहीं लगते ।
फिर भी नेता की असली पहचान मुसीबत के वक्त उसके आचरण से होती है । इस चुनाव में नीतीश के भाषणों में संयम और शिष्टाचार देख कर हैरानी होती है । वे जनता को आकर्षित करने के लिए अपनी बातों में नाटकीय उतार चढ़ाव नहीं लाते । भावुकता पैदा नहीं करते । महाराजगंज की एक सभा में भारी भीड़ के बीच कहते हैं कि डेढ़ सौ सभाएँ करने के बाद भी मेरी ज़ुबान नहीं फिसली । शायद इसलिए भी नीतीश के भाषणों की कम चर्चा हुई । विवादों की भूखी मीडिया को मसाला नहीं मिला । इस चुनाव में टीवी की बहसों का भी इम्तहान है । जनमत बनाने में टीवी की भूमिका से इंकार नहीं कर सकते । बड़ा सवाल यह भी है कि नीतीश अपने सुशासन को क्यों नहीं बेच पा रहे हैं । कहाँ हैं वो होर्डिंग जिसमें बिहार के विकास के दावे हो ।
इस चुनाव में नीतीश कुमार कमज़ोर हुए तो जात पात की राजनीति विकास का मुखौटा पहनकर लौटेगी । बिहार में जातियों के समीकरण का पुनर्गठन भी होगा । जब भाजपा जदयू के साथ रहते सवर्ण और पिछड़ी जातियों का गठबंधन टिकाऊ साबित नहीं हुआ तो ये विषमता भाजपा में जाकर कैसे विलीन हो जाएगी । अगर भाजपा ऐसा कर पाती है तो यह उसकी संगठन शक्ति की बड़ी कामयाबी होगी । बिहार की राजनीति इस बार सिर्फ हार जीत तय नहीं करेगी बल्कि यह भी बताएँगी कि कौन सी जाति अब किसके साथ नहीं है । नीतीश कुमार के साथ कौन नहीं है इस पर अंतिम फ़ैसला सोलह मई से पहले मत दीजिये ।
( यह लेख आज के प्रभात ख़बर में छप चुका है )
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20 comments:
नितीश न तो लालू हैं और न ही मोदी. यादवों का विरोध तो समझ में आने लायक है. लेकिन सबसे आक्रामक अगर कोई है तो भूमिहार भाई हैं. अभी हाल ही में मैं पटना गया था. अपने कई पुराने भूमिहार मित्रों से जानना चाहा कि नितीश की आलोचना की वज़ह क्या है. यकीन मानिए किसी के पास कोई वाजिब जवाब नहीं था सिवाए इसके की वो अहंकारी हो गया है. अगर नितीश ने अति-पिछड़ों और महादलितों को बढ़ावा दिया तो क्या ग़लत किया. आज भी यह तबका नितीश के साथ है. हाँ यह अलग बात है कि ये न तो मुखर हैं और न ही वोट के प्रति सचेत. मैं पुनः अपनी बात दुहरा रहा हूँ की बिहार में 65% मतदान करवा दे तो नितीश बाज़ी मार लेंगे. दूसरी बात, बिहार में राजनितिक गोलबंदी के लिए संख्याबल के साथ-साथ एक दबंग (dominant) जाति का साथ आना जरूरी है. यहीं पे नितीश मार खा जा रहे हैं. तीसरी बात, मुसलमान आज भी दिल से नितीश के साथ हैं. लेकिन मोदी का भूत उनपर इस कदर सवार है कि मोदी को हराने के नाम पर वो शैतान को भी वोट दे देगें और शायद दे रहे हैं. अब देखिये, जिस महाराज गंज की बात आप कह रहे हैं वह मेरी जन्म भूमि है और वहां से राजद उमीदवार जीत रहा है.
The bustard withdrew on communal grounds--- i.e. avoiding a split in muslim votes and still they call others communal. It is a big slap on the faces of RJD and more particularly the JD(U). It is BJP who is going to win.
I think Nitish may loose the confidence motion in assembly too after general election
Nitish per abhi Kuch bhi bolna bahut mushkil hoga sir.abhi anumaan bhi lagana galat ho sakta hai.
Aap jab se Bihar jakar aaye hi bahut darane lage hi
Nitishji Ka natak unko bhari padega.Mujhe ye samajh me nahi aata Aadvani Secular hi to Modi kaise nahi, agar Modi sampradayik hi to Aadwani kaise nahi?
"Jaati Too Na Gai Mere Man Se"
Sab Mediya Baaji Hai Sahab Jab Tak Nitish Babu B J P K Sath They To Vikas Purus, sushasan Purus Na Jaane Kya Kya They or Ab B J P K Sath Ni H To Mediya Me Vilupt Purush Ho Rakhey Hain.
"Jaati Too Na Gai Mere Man Se"
Sab Mediya Baaji Hai Sahab Jab Tak Nitish Babu B J P K Sath They To Vikas Purus, sushasan Purus Na Jaane Kya Kya They or Ab B J P K Sath Ni H To Mediya Me Vilupt Purush Ho Rakhey Hain.
जाटव जी , अंग्रेजी थोड़ी कमज़ोर है हमारी, समझ में नहीं आया. क्या आप मातृभाषा में भी लिख सकते हैं. इसे अनुरोध समझे.
नीतीश जी को देखकर उस कुत्ते की याद आ जाती है जो बैलगाड़ी के नीचे चलता हुआ सोचता रहता है की बैलगाड़ी को वोही अपने दूं पर खींच रहा है ;)
नीतीश जी खुद को क्षमता से अधिक आँकना हमेशा दुख ही देता है | जिस अलपसंख्य प्रेम मे फस कर यह सब किया वही धोखा दे रहे है |
Has Nitish Babu ever been a mass leader ? the best which one use for him is scheming .
he re- engineered the so -called "social engineering".
fooled by some Journalists and a "has- been" politician, he took the bait.
You know better than me
Any political relationship , which he did not ditch?
One also knows that on his own even today , he will have problems winning any MLA seat.
HOWEVER Credit must go to him for improving the local administration and highways.
Far to go still...
Nitish Jaise Neta ko ahankaari nahi to kya kaha jaye? Asli Backward wale mansikta se peedit. JDU Ka satyanaash karke rahenge Sushasan Babu...Kuch ache kaam jaroor kiya pad jab tak BJP Ke saath rahe.
ravish ji bihar ke chunaavi samikaran ke saath wahan ke pichhadon ke baare me bhi thoda likhte to achha rhta, iske alawa cpi(ml) Deepankar bhattacharya ki party jo bihar me pichhade wargon ki ladai kai dashkon se ladti aai hai usse bhi logon ko awaagat karayen, nitish-lalu-paswan-modi ke aage bhi ek bihar hai, log inki rallyion ke bare me jante hain. haan aapki TRP thodi kam ho jayegi par aap hi hain jinse kuch ummeed hai.
सच है कि "सिर्फ अपने काम पर विश्वास ही काफी नहीं होता बल्कि उस काम को नारों मे बदलने के लिये संगठन भी चाहिये"
रवीश भाई, पिछले एक साल में सरकारी कामकाज या व्यवस्था में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ, फिर भी जो लोग नितीश की तारीफ करते हुए नहीं थकते वही लोग आज उनको अहंकारी और व्यक्तिवाद को बढ़ावा देने वाले बोल रहे है, ऐसी बातें अगर नेता लोग बोले तो समझ में आता है पर आम जनता !!!
अगर जनता ये बोलती ये केंद्र के लिए चुनाव है और नितीश किधर जायेंगे ये पता नहीं तो समझ भी आता। एक बात और जब भाजपा नितीश के साथ थी तो मीडिया भी साथ थी, भाजपा अलग हुई तो मीडिया को भी नितीश के काम नहीं दीखते।
एक बात और, आपने नितीश की सभा में महिलाओ को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पीछे छोड़ने की बात की थी। जिस तरह की अगली सरकार की बात हो रही है, उससे सबसे बड़ा डर मुझे है की, पितृसत्तात्मक मानसिकता को और बढ़ावा मिलेगा, मैं ये नहीं कहना चाहता की सरकार ऐसा कुछ करेगी पर पार्टी से जुडी संघटन ऐसा करेंगे। अब तो लगता है सबको १६ मई का इंतज़ार है।
dukh ho raha hoga apko apne fav. neta ki ye halat dekh k,
but fir b aapne tareef kar di end me uski..
yashoda maiya ki talash me log jab putna ko swikarenge to nitish nakare jayenge hi.bihar ke jatiyon se jude jyadatiyon wali virasat ke ubhar ko to bhansar ka rasta bhi dikhaya nhi ja sakta.bihar me santulan har rha hai, sambhawana har rhi hai.
yashoda maiya ki talash me log jab putna ko swikarenge to nitish nakare jayenge hi.bihar ke jatiyon se jude jyadatiyon wali virasat ke ubhar ko to bhansar ka rasta bhi dikhaya nhi ja sakta.bihar me santulan har rha hai, sambhawana har rhi hai.
सबकुछ तो समझ आ जाता है पर आजतक ये समझ नहीं पाया की बीजेपी (या गठबंधन ) के सत्ता में आते ही हर तरफ सुशासन, यश चोपड़ा के रोमांटिक गीत , होली, दिवाली होने लगती है , और यदि बीजेपी का गठबंधन टूट जाये या बीजेपी सत्ता से अलग हो जाये तो १२ घंटे भी नहीं लगते कुशाशन, भ्रष्टाचार , मानो गुरुदत्त के उदाशी भरे गीत चल रहे हो (उदहारण , बिहार और झारखण्ड ). क्या कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए इस देश के साथ खिलवाड़ कर रहे है? नितीश और लालू दोनों ने गलतियाँ की है और कर रहे है। एक लालू का दौर था उसमे नितीश नहीं हो सकते थे। उस मानशिकता से लड़ने के लिए लालू की लाठी की जरूरत थी पर अब समाज आगे बढ़ा है , उनकी भी जरूरते बदली है, इस लिए आज नितीश जरूरी है। पर ये भी सच है, नितीश के बिहार के लिए लालू की लाठी की आज भी जरूरत है। पर बिल्ली के गले में घंटी बंधे कौन ? जिन लोगो को नितीश अपना समझे ओ तो अपना कभी थे ही नहीं, ओ तो लालू को हटाने के लिए नितीश को मुहरा बना रहे थे, . बस नितीश की इतनी ही भूल है की जाने अनजाने obc को उन्होंने बाट दिया।
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