लोगों ने टीवी या किसी कृत्रिम लहर के प्रभाव में कांग्रेस को नहीं हराया है । यह जनादेश कांग्रेस को हराने का था । लोग अगर टीवी के असर में नहीं आते तो क्या कांग्रेस को वोट दे देते । मुझे तो कई बार लगता था कि बीजेपी इतना प्रचार ही क्यों कर रही है । यह ज़रूर है कि मीडिया के सुनियोजित इस्तमाल से बीजेपी ने एक मज़बूत विकल्प के रूप पेश कर दिया । इस पेशगी में दिसंबर के महीने में उलझन आई थी जब आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी मगर यह पार्टी मीडिया के बनाए मिरर इमेज में फँस गई । शुद्धतावादी होने का इतना दबाव ओढ़ लिया कि अपनी सरकार छोड़ दी । उसके बाद पार्टी ने पूरे देश से खड़े होने का फ़ैसला कर लिया । बिना ढाँचा और संसाधन के । उसके इस फ़ैसले ने सहमी बीजेपी को फिर मौक़ा दे दिया । पंजाब और दिल्ली छोड़ बनारस की लड़ाई प्रतीक से ज़्यादा कुछ नहीं थी ।( इसी ब्लाग पर मेरा पुराना लेख है)
जनता यह चुनाव एक विकल्प के लिए लड़ रही थी । उसे समझ आ गया कि आप तैयार नहीं है । उसे एक विकल्प देना था । जनता कैसे सपा बसपा राजद वाजद पर भरोसा करती । क्या वही देखने के लिए जिससे वो कांग्रेस को बदलकर छुटकारा पाना चाहती थी । ज़रूर ध्रुवीकरण की सीमा रही होगी मगर एक सीमा से ज़्यादा नहीं । बिहार में लालू के पक्ष में मुस्लिम उभार की ख़बरों को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जों इसलिए दी गई ताकि बीजेपी की तरफ़ रूझान को और धक्का दिया जा सके । रही सही कसर मीडिया ने मुस्लिम वोटों के अतिविश्लेषण से पूरा कर दिया । लेकिन यह सब तभी सफल हो रहा था जब सब कांग्रेस की हार देखने के लिए उतावले थे ।
बीजेपी और संघ अभूतपूर्व ऊर्जा और तैयारी के साथ संगठित थे । इनसे लड़ने के लिए मैदान में कोई प्रतिरोधी ढाँचा था ही नहीं । और अब बिना इस ढाँचे के अख़बारों के एडिट पेज के सहारे इसे लड़ा भी नहीं जा सकता । कांग्रेस तभी सहारा बन सकती है जब बीजेपी कांग्रेस की तरह लचर हो जाएगी जो मुमकिन नहीं लगता । बीजेपी और संघ ने अभी तक अपने हर अंतर्विरोध का बेहतरीन प्रबंधन किया है । जहाँ उनकी सरकारें हैं वहाँ भी कोई भगदड़ नहीं है । मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ या राजस्थान । अब इस पार्टी को राज करना आ गया है । जब तक कोई नया विकल्प नहीं उभरेगा 'संघ सिस्टम' को विस्थापित करना फ़िलहाल असंभव जान पड़ता है । संघ सिस्टम क्या है उस पर भी आता हूँ ।
इस चुनाव में विरोधी टीवी देखते रह गए । उनकी सारी आलोचना टीवी तक सीमित रह गई । इसलिए वे वहाँ नहीं देख पाये जहाँ बीजेपी चुनाव लड़ रही थी । पार्टी से बाहर की संस्थाओं का भी सदुपयोग किया गया । रामदेव, गायत्री परिवार और श्री श्री रविशंकर की संस्थाओं ने भी कई स्तरों पर मतदाताओं को संगठित किया । संघ सिस्टम में इन संस्थाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए । रामदेव या श्री श्री रविशंकर जैसे धार्मिक या ग़ैर राजनीतिक स्पेस से बाहर के लोगों की संस्थाएँ भी काफी पेशेवर हैं । इस लिहाज़ से संघ सिस्टम धार्मिक और पेशेवर का अच्छा मिश्रण है । मोदी की इस जीत में संघ सिस्टम को उदय का भी अलग से आंकलन किया जाना चाहिए । हिन्दुत्व को व्यक्त करने के अलग अलग रूप हैं । हर संस्था इन रूपों की व्याख्या करते हुए अपने ग्राहकों के मन में मोदी को उतार रही थी । एक बीजेपी नेता ने बताया था कि बनारस में ही श्री श्री रविशंकर के सैंकड़ों कार्यकर्ता भीतरी प्रचार में लगे थे । दिल्ली में भी । विरोधी लहर गिन रहे थे और संघ सिस्टम बिना किसी झाँसे में आए एक एक मत का प्रबंधन कर रहा था । अगर कांग्रेस विरोधी लहर नहीं होती तब भी संघ सिस्टम अपने प्रचुर मानव संसाधन के दम पर मोदी को सत्ता में पहुँचा देता ।
इस चुनाव ने संघ सिस्टम को चुनाव लड़ने की एक पेशेवर संस्था में बदल दिया है । मोदी ने तो चुनाव लड़ने का तरीक़ा बदला ही लेकिन संघ सिस्टम के पेशेवर होने से उनकी ताक़त हज़ार गुना बढ़ गई है ।इस बात में कोई दम नहीं है कि बीजेपी को इकत्तीस प्रतिशत ही मत मिले । बल्कि विरोधी फिर से कम आंककर जनादेश का अपमान कर रहे हैं । विरोध करना है तो इस सरकार के काम का इंतज़ार कीजिये । अंध विरोध और बिना वैकल्पिक सिस्टम के अख़बारों के पन्ने तो भर लेंगे मगर नतीजा कुछ नहीं निकलने वाला । वो भी यह विरोध हिन्दी के स्पेस में कम अंग्रेज़ी के स्पेस में ज़्यादा हो रहा था । इस चुनाव में अंग्रेजी भी हारी है । कम से कम मैं तो इससे बहुत ख़ुश हूँ इसलिए नहीं कि अंग्रेज़ी से नफ़रत है बल्कि इसलिए कि पूरी यूपीए सरकार अंग्रेज़ीयत में डूबी थी ।बीजेपी का हर बड़ा नेता हिन्दी के शो में खुशी खुशी मौजूद होता था तो कांग्रेस के नेता अंग्रेज़ी चैनलों में अंग्रेज़ी बोल रहे थे जिन्हें अवाम नहीं देखती । इन नेताओं का हिन्दी के प्रति दोयम दर्जे का नज़रिया होता था ।
बनारस में संस्कृति कर्मियों का एक मार्च निकला था । कुछ पर्चे निकाले थे । इनमें से एक पर्चा होटल के कमरे में पढ़ रहा था । किन्हीं सज्जन ने बहुत शोध के साथ तथ्य पेश किया था कि संघ का तिरंगे में यक़ीन और श्रद्धा नहीं है । मुझे हँसी आई और रोना भी । ज़रूर किसी ने बीसवीं सदी के तीसरे चौथे दशक में यह बात कहीं होगी लेकिन क्या यह मुमकिन है कि आज कोई कह दे कि मोदी अब तिरंगे को बदल दें । दिल किया कि फ़ोन करूँ और कह दूँ कि मेरी तरफ़ से लिखकर रख लीजिये । किसी संस्था की औकात नहीं है ऐसा करने की बात पब्लिक में कह दे । फिर सोचा अपनी पेशेवर हदों में ही रहें तो ठीक है । भय का माहौल बनाकर विरोध नहीं जीतता । विकल्प बता कर दावेदारी की जाती है । आलोचक कांग्रेस का विरोध कर रहे थे, बीजेपी का भी कर रहे थे और आम आदमी पार्टी का भी । कई बार लगता था कि वे इस चुनाव में मोदी विरोध के नाम पर राजनीतिक पुनर्जागरण करने निकले हैं । उनके विरोध का लाभ उठाने के लिए कोई ढाँचा नहीं था । मोदी हर तरह की चालबाज़िया से लेकर यारबाज़ियां कर रहे थे और विरोधी शुद्धतावादी आदर्शवादी पुनर्जागरण । इनसे तो अच्छे वो हैं जिन्होंने नोटा को वोट किया ।
खैर अब जब हार हो गई है तो हार मान लेनी चाहिए । राजनीति और संचार का बहुत ज्ञान तो नहीं है लेकिन इतना तो कह सकता हूँ कि विरोधी भाव और भाषा बदल लें । जनरेशन एक्स वाई ज़ेड से बात करना सीख लें । विरोधियों का आपस में संवाद तो अच्छा है मगर जनता से बिल्कुल नहीं । मोदी का मामला ठीक उल्टा है । वे बहुत आसानी से मनमोहन की चुप्पी का विकल्प बन गए । कांग्रेस या मोदी विरोधी एक उदासीन राजनीति को अपने रंगीन कुर्तों से ऊर्जावान कर दिया ।
मोदी का विरोध इसलिए न करें कि चिढ़ मचती है और खुद की प्रतिबद्धता साबित करनी है । ज़रूर करें मगर इस आत्मविश्वास के साथ कि मोदी की जीत सबकी जीत है । उनकी नीतियों की आलोचना गुण दोषों के आधार पर होगी न कि मोदी को बेंचमार्क बना कर । अगर ऐसा करते तो आज लोग भी उनकी बात सोचते और खुद से पूछते कि आख़िर क्या बात है कि रघुवंश प्रसाद सिंह, अजय कुमार और योगेंद्र यादव जैसा नेता हर जाता है । कहाँ गए वो लोग जो राजनीति में अच्छे लोगों की तलाश में तड़प रहे थे । क्यों हर तीसरा सासंद आपराधिक पृष्ठभूमि का है । कहाँ गया वो ग़ुस्सा जो इन सवालों को लेकर उठा था । क्या वो ग़ुस्सा लौटेगा या ये सवाल अगले बीस साल के लिए स्थगित हो चुके हैं । रामदेव गांधी और जेपी के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके हैं । अब भी किसी को संघ सिस्टम की कामयाबी और क्षमता में संदेह है तो उसे रोज़ कहना चाहिए कि मोदी हार गए हैं मगर प्रधानमंत्री कौन है यही पता नहीं !
46 comments:
The Hindu ke Article ke aap bahut example dete ho . Main Indian express ka de deta hoon.
It is the first time that a ruling party has no Muslims in the Lok Sabha, the apparent Modi “wave” having failed to impact the BJP’s Muslim candidates. The party had fielded seven Muslims among 482 candidates (1.45 per cent) and all lost. Of the 17.16 crore votes (31 per cent) the BJP polled nationwide, 5.55 lakh went to its Muslim candidates.
In Bihar, Shahnawaz Husain, the only sitting Muslim MP the BJP has had since the mid-1990s, lost from Bhagalpur, winning 3.58 lakh votes and finishing a close second.Authenticating... to help us personalise your reading experience.
In West Bengal, Badsha Alam (Tamluk) polled 86,265 votes to finish third, and Md Alam (Ghatal) polled 94,842 for fourth place.
In Jammu and Kashmir, the BJP won three seats, but the Muslims given tickets did poorly in the other three seats. Ghulam Mohammed Mir (Baramulla) was sixth with 6,568 votes; Faiyyaz Ahmed Bhat (Srinagar) fourth with 4,467; Mushtaque Ahmed Mallik (Anantnag) fourth with 4,720.
In Lakshadweep, MP Syed Mohammad Koya finished fifth, with 187 votes.
THE OTHER PARTIES
In a Lok Sabha with 23 Muslims, 4 per cent of 543 and the lowest count since 1962, not one of them comes from UP. The BJP won 71 seats there; not one of its candidates was a Muslim. UP had voted in 10 Muslims in 2004, and six in 2009.
With no Muslim anywhere elected from the BJP, states the party swept — Rajasthan and Gujarat — consequently have no Muslim MPs. Nor has Madhya Pradesh.
The Trinamool has four Muslims MPs, the Congress three.
West Bengal has sent the highest number of Muslim MPs at seven. The Trinamool’s four are Sultan Ahmed from Uluberia, Idris Ali from Basirhat, Aparupa Poddar aka Afrin Ali from Arambagh and Mamtaz Sanghamita from Burdwan-Durgapur. The Congress has Mausam Noor and Abu Hasem Khan Chowdhury from Maladha Uttar and Dakshin. The CPM has sent Md Selim from Raiganj and Badaruddoza Khan from Murshidabad.
Bihar is next with four Muslim MPs. The Congress has sent Asrarul Haque from Kishanganj, Araria has elected the RJD’s Tasleemuddin, the NCP’s Tariq Anwar has won Katihar, and the LJP’s Mehboob Ali Kaiser (Khagaria) is the only Muslim MP from the NDA.
Kerala has elected Muslims: the Muslim League’s E Ahamed and E Basheer from Mallapuram and Ponnani, and the CPM’s A N Shamseer from Vadakara. Jammu & Kashmir has three, all PDP.
Assam has sent in the UDF’s Badruddin and Sirajuddin Ajmal. Assaduddin Owaisi of the MIM is Andhra Pradesh’s only Muslim MP. In Tamil Nadu, Ramanathapuram has elected Anwhar Raajhaa of the AIADMK. Lakshadweep was won by Md Faizal PP of the NCP.
bhai raveesh ji,
lagta hai aap ko bjp ka jeetana achha nahi laga.bare beman se aap ise swikar kar pa rahe hain.
ravish ji enlish se itni nafrat kyon.doosri baat aapki achchi lagi ki bjp ki jeet ko aap bhi ek professional tarike se accept kar rahe hain.aur ye hona bhi cahiye.
आपका ये पोस्ट काफी बढ़िया था। कांग्रेस के कुछ नेताओ को भेज दिया है और कहा इससे थोड़ा संज्ञान ले और अधिक जानकारी चाहिए तो रविश कुमार से समर्पक करे
अच्छा विश्लेषण. पूर्णतः सहमत. वैसे आप भी 2 महीने तक UP के गाओं मैं घूमे थे और दावा था की असली ग्राउंड रिपोर्टिंग आप ही कर रहे हैं. आप के आकलन मैं कहाँ चूक हो गयी? या वामपंथी विचारधरा के चश्मे मैं पत्रकारिता सत्य देख नही पाई
बहुत ही सटीक आकलन सर, पूर्णतया सहमत !
बस इसमें एक बात जोड़ना चाहूंगा कि जनता परिपक्व हो गयी है , मतदाता समझदार होते जा रहे है यदि बीजेपी भी मूल सुशासन के मुद्दे से भटकी तो उसे नीचा देखना पड़ेगा , अब स्पष्ट है कि काम ही बोलेगा, लफ्फाजियो को नकारा जायेगा !
English Media ur print Media par lagbhag Vampanthion Ka kabja raha hi. Mujhe lagta hi is desh me tathakathit 90% Budhijeevi Vampanthi hi jo garib ur beshara logo ka paksh lekar apni Roji Roti chalete hi par karte kuch nahi hi.Vikas Ka khud 100 upbhog karte hi par baki log ko darate hi.
Inke Media me varchasaw ke wajah se hi Modi ki aaj image hi.
Inke hisab se Narendra Modi hi nahi pura Gujarat Communal hi .
Narendra Modi se pahle bhi es desh me hazaro Dharmik ur jatiye dange hue hi ye alag bat hi ki saza sirf isi communal Gujarat me hua.
Ek aadmi ko desh ka supreme court nirdosh chod deta hi , Loktantrik prakriya se Janta use apna PM chunti hi fir bhi ye log under ka bat jante hi ki Modi ne danga karaya.
Vampanthiyon ki izzat karti hu ek pressure group ke tarah par voton Ka dhurwikaran hua kahkar na sirf Modi ke mehnat ka apman kar rahe hi balki un sabhi vote dene walo Ka bhi apman kar rahe hi Jo shat pratishat secular hi.
Modi Ka bhi Human Right hi.
Ravish Bhaiya Pranam,
Vaise main koi sangh ka pracharak nahin hoon aur swabhav se madhyamaargi hoon. Is se pahle ke har election mein congress ka supporter tha. Is baar maine khud nishthaaon ko badalte dekha hai. Apne ghar mein bhi aur bahar bhi.Ye baat bilkul theek hai ki jab aap ladaai mein utarte ho aur virodhi aapki kamjoriyon ko faisla lene walon ke saamne mazbooti se rakhta hai aur ye vikalp deta hai ki main ye stithi badal doonga to us waqt aapko bhi tathyon ke saath hi uska virodh karna hota hai. Aise hi kisi ko neecha dikha kar aap apne kiye hue unaahon per parda nahin daal sakte. Kisi par vyaktigat aarop lagakar wo bhi 12 saal puraane us gunah ke jiske liye Supreme court bhi use clean chit de chuka hai aap bach nahin sakte. Is desh ki janta itni sahansheel hai ki yadi Rahul Gandhi jan sabhaon mein logon se seedhe taur per pichhle kaarykalal mein hui galatiyon ki maafi maang lete aur bharosa dilaate ki main aisa nahin hone doonga to stithi kuchh aur hoti. is desh ki sanakriti mein Ahankaar se badi buraai aur koi nahin hai. Iske udaaharan hain Raavanh, Kansa, Duryodhan jaise gyaani aur bade rajaaon ko bhi janta ne maaf nahin kiya to Congress kya cheez hai. Galati ho sakti hai per use sweekar na karte hue ahankaar mein rahna is desh mein to nahin chal sakta, baaki doosre deshon ke baare mein mujhe kam hi pata hai. Modi ji ne jo sabse bada kaam kiya wo yahi tha ki unhone Gujraat ka election jeetne ke turant baad apni image mein badlaav karna shuru kiya. Vinamrata ko dhaaran kiya aur vikalp pesh kiya. Jise janta ne sweekar kiya ye faaltu baaten hainki TV ke dushprachar ya media ki wajah se Modi ji jeet gaye. Koi bachcha bhee ye nahin maanega ki Congress ke paas BJP se kam paisa ya sansaadhan hain. Samay bhi dono ko barabar hi mila, Media bhi abhi itna bada nahin hua ki congress se pakshapaat kar paaye. To Janta ne poori samajhdaari se apne saamne rakhe hue vikalp ko chuna hai. Abhi bhi ye maanna ki janta bewakoof hai bhavishya ke liye bhi bura sanket hai. To agar kisi ko bhi Congress ke bhavishya ki chinta hai to ab sachchai sweekaarne ka ye aakhiri mauka hai aur nahin to jo hai so haiye hai.
regards
Shahbaz sahib BJP se agar koi muslim MP nahi hai to kya hua. Jain , Cristian ya Baudh MP to honge hee. Aqliyat kee numaindgee ke liye . Shanwaj sahib Muslim votes ke chakkar me haar gaye. Agar voh kam muslim population vali constituency se ladte to badi jeet darj karte.Is lahar me tinke bhi jeet gaye voh to khair darakt hai.
हमारे मतदाता की मानसिकता यह है की वह अपना वोट ख़राब नहीं करना चाहता। या तो वह जिताने के लिए वोट देता है या फिर हराने के लिए। उसके पास लोकतंत्र की इससे इतर और कोई समझ नहीं है। यही वज़ह है की अच्छे उम्मीदवारों को समर्थक तो मिल जाते हैं पर वोटर नहीं मिल पाते।
BJP ke supporters ke liye Dakshinpanthi shabd ke istemal par mujhe ghor aapti hi fir bhi sahi vikalap ke a abhav me kar rahi hu. Electronic Media me khaskar Hindi channels me Dakshinpanthiyon ko bhi space milne laga hi to vampanthi "Media Ka astar gir gaya hi" kah kar rona chillana machate hi.
Mi Apko har panth se upar samajhti hu.
this is core issue sirji
Aapko Yogendra Yadav aur Arvind kejriwaal jaise log Imandaar lagty hai , Isse aap ki mansik star ka pata chalta hai. Aap bade ache patarkaar hai, Modi ka virodh kariye khul ke kariye, Sangh ka bhi kariye. Lekin virodh ke liye Lalu, Mulayam, Maya, jaise corrupt aur criminals ka sath denge ya lenge to janata maaf nahi karegi..!! Aapne Sagrika Ghosh ka masjid wale tweet ke bare me suna hoga, Kuch kahiye aise logo ke bare me bhi, aakhir ye kya hai Secularism jo ki Hindustaan ke paipeksh me GALI lagta hai aajkal.
Polrization Of Minority Is A Democratic Procrss Bt Polrization Of Majority Is.......!!!@@@@@
कभी ऐसा हुआ करता था जब लड़के लड़कियों को पटाते थे, लेकिन आज लड़कियां बेहतर विकल्प देखकर खुद ही फँस जाती हैं, लड़कों को सिर्फ भ्रम होता है, फिर उसमें कुछ कमी होने पर किसी और बेहतर विकल्प को चुन लेती है, वो कोई प्रतिबद्धता नहीं चाहती है सिर्फ बेहतर विकल्प चाहती है, आज ऐसा निर्भीक सोचने और करने वालों की एक बड़ी तादाद है !
भारतीय मतदाता भी ऐसा ही साहसी हो गया है, जो किसी विचारधारा से कोई मतलब नहीं रखता है, वो किसी से कोई प्रतिबद्धता नहीं रखना चाहता है, वो सिर्फ बेहतर विकल्प देख रहा है, उसे वो जिसमें भी दिख रहा है उसे खुद ही लपक लेना चाहता है वो किसी बात से नहीं डरता है !
आप ये यूपी में देख सकते हैं, जहाँ पहले मायावती को पूर्ण बहुमत मिला, फिर मुलायम को मिला, और अभी भाजपा को मिला ! उसी तरह दिल्ली में उसने AAP में मौका दिया फिर अभी भाजपा को मौका दिया !
लोकसभा चुनाव में भाजपा को उसी की उम्मीद से ज्यादा बहुमत यह संकेत देता है, लड़की(जनता) जिस लड़के(कांग्रेस) से पटी हुई थी उसने इसे इतना प्रतारित(torture) किया की लड़की(जनता) उसे(कांग्रेस) किसी कीमत पर छोड़ना चाहती थी, उसे(लड़की) उसके(कांग्रेस) दोस्तों तक से नफरत हो गयी, अब उस लड़के(कांग्रेस) से जो सबसे दूर था, और बेहतर जान पड़ा उसके पास लड़की चली गयी ! जहाँ यह दिख रहा है की लड़के(भाजपा) ने लड़की(जनता) को पटा लिया है लेकिन लड़की(जनता) ने बेहतर विकल्प देख कर खुद ही पट गयी है लेकिन लड़के(भाजपा) को यह भ्रम हो रहा है !
आज विचारधारा से मुक्त, अवसरों का लालसा से युक्त और तैरनेवाले( floating) मतदाता की संख्या इतनी हो गयी है की राष्ट्रीय स्तर पर उल्ट फेर कर सके, तो ऐसे निर्भीक, साहसी मतदाता से नेता सावधान रहें उसे अपने विचारधारा का गुलाम नहीं समझे, और हमेशा यह साबित करते रहें की वही सबसे बेहतर विकल्प है, नहीं तो जनता आपको छोड़ने में देर नहीं लगायेगी, जैसे आजकल लड़की बेहतर विकल्प देखकर छोड़ने में देर नहीं लगाती !
http://anandchhabi.blogspot.in/2014/05/bold-indian-voters-like-bold-indian.html
मोदी की जीत को बर्दाश्त नहीं कर पाने वाले सेकुलर बुद्धिजीवियों, दल्ले पत्रकारों की मानसिकता में कोई अंतर नहीं आया...
ये लोग पहले भी झूठे और मक्कार थे... आगे भी संघ-भाजपा-मोदी के खिलाफ इनका विष-वमन जारी रहेगा... अब यह मोदी पर निर्भर है कि वे इन्हें "कुचलते" हैं या Ignore करते हैं...
Sanjay Jatav : Ab Modi Ji our payment nahi karnege bhai tum jaise blue virus ko , Ab achche blog padna shuru kar do.
@ Shailendra
Jaao paas ke medical store se Burnol le aao..Jyada jal gayi hai toh kisi acche hospital k burn ward main admit ho jaao
सर, दिल से लिखा गया है यह लेख, बहुत उम्दा, मगर अफ़सोस सच्चाई कड़वी होती है, और बहुत सारे लोग हज़म नहीं कर पाते,
धन्यवाद इस बढ़िया लेख के लिए.
Ab is desh ki janta jaag gayi hai.....communalism ,crimanalism aur corruptionalism jaisi baton se upar uthkar sochne lagi hai....use sirf vikaas chahiye....chahe kisi madhyam se aaye....ha vikas,vikas aur sirf vikas....aise mein bataiye ki ye achche log Jo Kabhi apna vikaas nahi kar paaye wo hamare liye bhala kya kar lenge...?
Aaj hi ke ek Akhbar mein padha tha ki modi Ka virodh darasal ek kism Ka ''vaicharik bhrastachar'' hai...isi bhrastachar se bachne ki koshish mein hoon....
Till now we were waiting for the elections result ,but now we are waiting for the cabinet result.
Expectations are high.............
Let's wait and watch that which channel releases the most accurate
ministery.(ab to is mamle mein bhi rujhan agaye hai)
sir, roj aapke blog ko ek baar dekh hi leta hun, thoda or frequently likha kijiye...blog acche likhte hain aap magar aaj ke blog ki kuch linrs dil ko chhoo gayin.. "कहाँ गए वो लोग जो राजनीति में अच्छे लोगों की तलाश में तड़प रहे थे । क्यों हर तीसरा सासंद आपराधिक पृष्ठभूमि का है । कहाँ गया वो ग़ुस्सा जो इन सवालों को लेकर उठा था । क्या वो ग़ुस्सा लौटेगा या ये सवाल अगले बीस साल के लिए स्थगित हो चुके हैं ।" Nahi sir, ye kranti yahin khatam nahi hoti. Shangharsh to ab shuru hoga. 1857 to jaroori tha 1947 ke liye.
Ravish ji namaskar,
Mera Gayatri Parivar se sambandh kaafi puraana hai. Mujhe yaad hai jab aapne ek 'Ravish ki report' me gayatri parivar ka zikr kiya tha tab mai bahut khush hua tha.
Mai vishwas nahi kar sakta ki Gayatri Parivar ne BJP ke liye active campaign kiya hai. Aapke paas kya praman hai iske liye? Mujhe pata hai aap bebuniyaad ilzaam nahi lagate par fir bhi.
bade pemane pe dekha jaye to lagta hai is chunav me modi jii ne desh ki janta ko vikas(development) ki रिशवत dikhayi.iska namuna GUJRAT model hai. aur janta ne le li badle me janta se kaha gaya ki tum BJP k MP ko jitaao chahe jaisa bhi ho.(Me hun na) dialog to nahi mara gaya lakin ye kaha ki abki baar modi sarkar,naki BJP ki. Aur ye rishwat lekar janta bhul gayi ki, SANSAD me acche log jane chahiye.
aisa lagta hai ki 2,3 saalon se politics me logon ki asha fir se jaga gayi thi pata nahi kaise . shayad GUJRAT MODEL SE(:P). aur logon ne BJP Sry MODI Ji ko VOTE DE diya.
Banaras me to aapne kafi campgaining ki AAP ke liye...AAP par ek-ek ghante ke prime-time shows jarur kiye aaapne...par jaha aalochana ki bat aati hai..har party ko criticize karte ho...sivay AAP. Aur ek bat..Dikhavapan (hypocrisy) to har koi kar raha hai...English media jyada karta hoga..par aaap bhi doodh ke dhule hue nahi hai.
@ Ravish jee lagta hai aap KI AAP k liye campaigning kam pad gayi. is liye AAp haar gayi. AGli baar aur mhenat karna
श्याम बेनेगल का संविधान और आमिर का सत्यमेव जयते हार गये 7RCR आगे.
Why blame the congressmen for not opting to appear on Hindi channels. Why not look at it from the other side, where the English media have built a rapport with the congressmen.
Also to be noticed is English media is flexible, ready to switch to Hindi when the interviewee is not comfortable in English - (example Barkha in conversation with Uma Bharati), but I have not seen an Hindi anchor switching to English in an interview (your interview with A R Rahman, where he was not comfortable in Hindi)
Is Chidambaram or Raja or for that matter even Manmohan Singh comfortable taking questions in Hindi!
संघ बहुत मेहनत की है. लेकिन प्रचार का ठप्पा मीडीया ने लगा दिया की "हर हर मोदी.. घर घर मोदी" इतना?? उफ्फ. मीडीया एससे अछूती तो नही. जो दिखता है वही बिकता है. मीडीया ने कोई कमी तो नही की प्रचार मे. क्यों ये पत्रकारिता को कलंकित करते है.
मधु तेहरान के अलावा आज तक मेने किसी पत्रकार के मूह से आप की ४९ सरकार की तारीफ नही सुनी.
ये कैसी मीडीया है जो बस आलोचना करती है तारीफ नही.
मोदी ने वडोदरा के भाषण मे कहा "निष्पक्ष मीडीया" ...कमाल है :| पहले बिल्ली देश चला रही थी आब शेर.
प्रिय रवीश जी, मधुमखी के छत्ते को छेड़ दिया है आपने। सत्य तो यही है की मोदी ( संघ ) की सबसे बड़ी ताकत स्यवं श्री मनमोहन सिंह जी रहे हैं. बाकी खाद पानी देने में खुर्शीद, सिब्बल और तिवारी जी जैसे प्रवक्ताओं ने कोई कमी नहीं छोड़ी. खैर हम नायक प्रधान देश के वासी हैं। और आप भी कहाँ दागी विजेताओं की लिस्ट ले के बैठ गये. हम तो डिटर्जेंट भी ये सोच के खरीदते हैं की "दाग अच्छे हैं ". हर तीसरा सांसद दागी है , पर इसका ठीकरा बी जे पी को ही क्यों ? सरकार अगर मिली जुली होती, या कोई और नतीजे होते - तो भी इस आंकड़े ने ऐसा ही रहना था ! बी जे पी जीती या नहीं ये तो एक साल में समझ आ जायेगा पर हाँ कांग्रेस को 'धूल चटा देने' वाले मुहावरे का वाक्य प्रयोग ज़रूर आ गया होगा। रही बात "आप" की तो उन्हें थोड़ा रुकना चाहिए, लम्बे सफर में सुस्ताना ज़रूरी होता है. ये हिन्दुस्तान है - यहाँ विकल्प इतनी आसानी से नहीं बना जाता। "आप" से सहानुभूति बहुत नहीं है मेरी पर हाँ - योगेन्द्र यादव जी जैसे व्यक्ति का हार जाना ६५ वर्ष के अनुभवी लोकतंत्र के लिए शोध का विषय तो है ही.
वैसे भी रवीश जी आप जो यह दागी सांसदों का गनना कर रहे है, बेहतर तो यह होता की आप भी यह सोचते कि मोदी के प्रभाव में सब ठीक हो जाएगा जिस तरह समुद्र में मिलकर सारा पानी खारा हो जाता था
वैसे AAP को इस चुनाव में इस तरह से उतरना बहुत सारे समर्थकों को अखरता था. आपके ब्लॉग पर भी कमेन्ट में लिखा है. BJP की जीत को लेकर किसी को भ्रम नहीं था. अगर अपेक्षा से अधिक सीटें आ गयी तो इसका अनुमान हमें तो छोडिये बीजेपी को भी नहीं था. सिर्फ एक बात - योगेन्द्र का हारना दुखद है लेकिन उससे भी अधिक मुझे मेधा पाटकर का हारना दुखी कर गया. विरोध में लिक्खाड़ बहुत कुछ लिख सकते हैं. लेकिन इस दिल का क्या जो मानता ही नहीं.मेरी उन संवेदनाओं का क्या जो मेधा के साथ जुडी है. मेरी उन भावनाओं का क्या जो उस औरत के साथ जुडी है जिसने अपना पूरा जीवन ही गरीबो और पर्यावरण के लिए समर्पित कर दिया हो.बहुत आसानी से अन्ना,अरविन्द,मोदी,विश्वास,राहुल मीडिया में छ जाते हैं.लेकिन मेधा कहीं पीछे छुट जाती है. अब क्या कीजिएगा गर हमारी सोच पुरातन और पिछड़ी है.एक गाना याद आ रहा है:
कभी तन्हाईयों में भी हमारी याद आएगी ,अन्धेरें छ रहे होंगे की बिजली कौंध जाएगी.
Excellent high level analysis of the election. The fact is that opposition has to discover a new vocabulary and more importantly a new energy. Jinhone ek saal liberal hone ka kaam kiyaa, ab unke liye democrat hone ka farz adaa karne ki baari aayi hai.. virodh karein, lekin objectively karein aur us virodh ko kaise junta mein channel karna hai yeh sochein.. varna Congress and others can go down even more from here.
Ravishji forgive the continuation of angreziyat - par meri paass Hindi keyboard nahi! Re opposition the main worry is the numbers are so small that they may never reflect the views of so many if us - a number of committees are likely to have vacant opposition seats. So how do we get to voice legitimate concerns based on lived experience to the govt? Modi himself has said on more occasion than one that he will take into account as many views as possible - but in the devil is still in the detail - how will the decision-making process Actually accommodate them. The reality is for many fear of crime/malpractice is as debilitating as crime itself. That bEing the case what is the medium we represent these views? It may well be print (as gopal Gandhi did through Hindu). At the risk of polarising the electorate - it is one of the only ways of getting a point of view across - given time and other restrictions if the electronic media. Not to say I disagree with your views - yes one needs to learn from Bjp's successful organising machinery - but we also want to now participate in a model of good governance.
Ravish sir janta ko dhokha khane ki aadat ho gai hai.koi bhi party kitni saksham hai sab jaante hai.
प्रायः सभी प्रतिष्ठित मीडिया चैनलों पर जो चुनाव पूर्व 'जनमत' (ओपिनियन पोल) आया उसमें मोदी की 'हवा-पानी' की बात की गई। बीजेपी के हवाले से 'लहर -सुनामी' की भी खूब चर्चा हुई! 'एग्जिट' पोल में भी मोदी के नेतृत्व में एनडीए की जीत अच्छी 'तय' मानी गई! आज सचमुच मोदी अपने कहे अनुसार जीत गए हैं! शानदार। 1984 के बाद सबसे अधिक सीट। बीजेपी के इतिहास में श्रेष्ठ। अभूतपूर्व। अकेले दम पर बहुमत। नरेंद्र मोदी की 'जीत' को कैसे देखा जाए? 'अच्छे दिन आने वाले हैं' के रूप में! आवश्यकतानुसार पिछड़ा राजनीति (बिहार-यूपी में खासकर), गरीबी, चाय बेचनेवाला के साथ विकास की राजनीति।
अगर 'मोदी की बीजेपी' ने उनके इस शानदार आगमन को जनता में इस रूप में रखा तो आनेवाली 'मोदी सरकार'(!) को ऐसा करना होगा। नरेंद्र मोदी के सामने 125 करोड़ जनता है। '6 करोड़ गुजराती' और 'गुजरात' के मुद्दे को उन्होंने चुनाव में खूब कैश कराया! विपक्ष ने भी 'गुजरात' को ही मुद्दा बनाया! दोनों 'दो गुजरात' हैं! एक तरफ विकास का प्रतीक गुजरात, दूसरी ओर 'घायल', चोटिल गुजरात। 'जनहित' की कसौटी पर चलकर ही जनता के मन में, दिलोदिमाग में जगह बनाई जा सकती है। आजादी के साठ से अधिक साल बाद भी रोटी सबसे बड़ा मुद्दा है। 'भूखे आदमी का सबसे बड़ा तर्क रोटी' (धूमिल) बना हुआ है। संविधान ने जो निर्धारित किया है, भारतीय लोकतंत्र को चलाने के लिए जो मार्गदर्शन है --- वही सच है! यही सच है।
-- ''मोदी जहां से लड़ेगा, अरविन्द वहीं से लड़ेंगे'' वाली 'आपीए' पॉलटिक्स ने एक विकल्प की ईमानदार राजनीति का नुकसान किया! जब मोदी 543 सीटों पर लड़ रहे थे तो सिर्फ एक सीट हराकर 'आप' क्या हासिल कर लेती? मीडिया में कई दिनों तक चलने वाली सुर्खियां? मोदी को जीत लेने की जिद से अरविन्द केजरीवाल की छवि धूमिल हुई है। पूरी पार्टी को रिकॉर्ड बनाने के लिए उन्होंने खुद को बनारस में समेट लिया। लम्बे दौर की वैकल्पिक राजनीति में इस तरह की हड़बड़ी उचित नहीं! अरविन्द को आत्ममंथन करना होगा। दिल्ली में जमकर लड़ते-लड़ाते अरविन्द। भारतीय राजनीति में जनता की आस बनकर उभरे हैं/थे आप! अरविन्द (आप की) दिक्कत क्या है? दिक्कत है हड़बड़ी! अहंकार के समान्तर एक नया अहंकार जन्म ले रहा है। उनमें और उनकी शीर्ष टीम में। गांधी के पथिक इतने वाचिक अहंकारी और उदंड कैसे हो सकते हैं?
अरविन्द का सबसे बड़ा योगदान अब तक यह है कि उन्होंने नेताओं, राजनीतिक दलों के अहंकार को कम करने में (मजबूरी बस ही) बड़ा योगदान कर दिया है। भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में चेतना का संचार किया। सादगी और ईमानदारी को फैशन बना दिया। यह एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन है। अपने अहंकार के लिए चर्चित नेता भी सादगी से सरकार चलाना सीख - समझ रहे हैं! 'वीआईपी' के चलन को लाज आने लगी। 'गांधीगिरी' की तरह आप की सादगी छा गई। लोगों को भा गई!
'इंडिया फर्स्ट'। छह करोड़ गुजराती के बाद 125 करोड़ हिन्दुस्तानी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सिद्धांततः ही सही नए अवतार में दिखी! चुनाव के बहाने ही सही अगर मोदी और भाजपा भारतीय संविधान को लोकतंत्र का सबसे पवित्र और एक मात्र ग्रन्थ मानती है (जो धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में है भी...) तो यह शुभ सूचक है! मान लेना चाहिए कि 'अच्छे दिन आने वाले हैं'...।
रविश जी .. एक बात समझ नहीं आती या आप उसे साफ़ साफ़ कह नहीं पा रहे हैं ... आप अपनी आशंकाओं को शब्द नहीं दे पा रहे .. मोदी आ गए .. ठीक है किसी को आना था सो आ गए ... आपको भी किसी का विरोध समर्थन करना था .. सो कर दिए ... पर आपने अपने किसी आर्टिकल में ये नहीं बताये की विरोध है क्यूँ ? मोदी ने अब तक प्राधानमंत्री के रूप में कोई काम नहीं किया .. फीर इसके पूर्व विरोध का आधार क्या | संघ ने सफलता पायी .. तो ? पर इसके लिए उसे 90 साल लगे | दिक्कत कहाँ है .. संघ के नाम में ही दिक्कत हो तो अलग बात है | आपके अनुसार देश की जनता को सामाजिक न्याय के पुआने पद चुके मापदंड से लिपटा रहे ... विकल्प की बात सही है आपकी ... एक सशक्त विकल्प नहीं है .. कांग्रेस का विकल्प जनता को पसंद नहीं ... आप पूछते हैं की लोगो ने सपा , बसपा , जदयू, राजद को वोट नहीं दिया ... क्यूँ दे .. मुलायम कहते हैं मुझे ३० सीट दो मई प्रधानमन्त्री बनूंगा , बसपा भी यही कहती है , जदयू भी ... पर कैसे बनोगे .. ये नहीं पता .. बनकर क्या करोगे , नहीं पता | बस बना दो | सबको मालिम है की इनको दिया गया सीट कहाँ जाएगा | मुलायम ,जदयू , प्रधानमन्त्री बनकर सामाजिक न्याय के लिए क्या करेंगे बताते नही |सामाजिक न्याय सिर्फ सरारी नौकरियों में आरक्षण तक हई सिमित कर दिया है लोगो ने .. पर जनता ये समझ भी रही है देख भी रही है .. की सरकारी नौकरियाँ गिनती की रह गयी है ,, संघ/भाजपा/मोदी कुछ गलत करते हैं तब जरुर इसका विरोध हो .. पर सिर्फ इसलिए नहीं की वो संघ ,भाजपा , या मोदी है | और एक बात ... अब सेकुलरिस्म , साम्प्रदाइकता जैसे शब्दों का अति उपयोग और घिसा पिटा उद्धरण से काम नहीं चलने वाला .. सेकुलर से सेकुलर बहुसंख्यक भी ये समझ जान रहा है की जो हो रहा है वो सेकुलरिस्म नहीं शुद्ध धर्मवादी तुष्टिकरण से भी बढ़कर कुछ है | और बात धार्मिक प्रतिको के इस्तेमाल की हो रही है , धार्मिक इस्तेमाल की हो रही है .. मुझे याद नही आता की ये कब नही हुआ .. क्या पिछले चुनाव में नही हुआ ..क्या सरकार में नही हुआ | क्या धार्मिक आधार पर निर्णय नही लिए गए ,, ... आलोचना या समर्थन का मापदंड एक होना चाहिय ... तभी हम और जनता सही निर्णय पर पहुँच सकती है | फिलहाल जनता के इस समझदारी पर गर्व होना चाहिए | यु.पि. हो या बिहार .. विधानसभा में वो मापदंड नहीं रहने वाले जो लोकसभा में रहे ... इसलिए मुझे नहीं लगता क्षेत्रीय पार्टिओं को ज्यादा हद्साने की जरुरत है ,, जैसा की जदयू एक्ट कर रही है
आप सेहतमंद रहें ऐसे ही सच्ची बात कहने के लिये
आशा तो बहुत थी आपसे (रविशजी आपसे कह रहा हूँ) ’आप’ से नहीं. सब धो दिया आपने. इतना पक्षपात ! हरि ओम्.. :-((
व्यक्तिगत झुकाव एक बात है, धर्म की तरह. लेकिन जब उत्तरायित्व हो सर पर तो व्यक्तिगत झुकाव चिढ़ बन कर खिझाता है. आप की रिपोर्टिंग चिढ़ बन कर खिझाया इस बार.
आपके ऊपर रिपोर्टिंग का दयित्व था/है.. ’आप’ के कैनवासिंग का नहीं.
फिर हम जैसे लोग ’आप’ से क्यों बिदके ये शोध का विषय नहीं होना चाहिये ? जबकि हम इतने सालों से कइयों को झेलते आ रहे हैं. संघ और संघियों को भी ?
हम तोहमत लगाना छड़ें तो ही हमारा सच्चा रूप अच्छे ढंग से दिखेगा.
कोई सेक्युलर होने के नाम पर खुल्लमखुल्ला अंधेर मचा रहा है तो उसे निगलने में बुराई नहीं है.. मगर उसका प्रतिकार चीख-पुकार का कारण बन जाता है.. वाह रे सेक्युलरी अंदाज़ !
दुःख जितना आप जैसों को है, रविश जी. उससे कम दुःख हमें भी नहीं हुआ है, जब आप जैसों को पत्रकारिता के नाम पर कैनवासिंग करते देखता हूँ. कई पत्रकारों की कलई खुली है. आप ही जानते होंगे सुबह-सुबह आईना अब कितना चिढ़ा रहा होगा.
शुभ-शुभ
अतिउत्तम
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