अनंतमूर्ति का भारत

आदरणीय यू आर अनंतमूर्ति जी,

आप जानते हैं कि जब से टीवी में करने के लिए कोई काम नहीं रह गया है मैं ब्लाग पर बड़े बड़े लोगों को चिट्ठियाँ लिखते रहता हूँ । कई लोग कहते हैं कि मैं एक साधारण एंकर हूँ और मैं भी उसी तरह का कूड़ा उत्पादित करता हूँ जिस तरह का अंग्रेजी के बड़े एंकर करते हैं और अपनी बेहयाई का नित्य प्रदर्शन करते रहते हैं । टीवी की अंग्रेजी पत्रकारिता और हिन्दी पत्रकारिता दोनों के गटर छाप होने के इस दौर में हिन्दी को लेकर मेरी हीन भावना समाप्त हो गई है । बराबरी के दौर में एक ही हीन भावना बची है ।

आपने कहा है कि नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने पर आप देश छोड़ कर जाने वाले हैं । वाउ ! हाउ क्यूट न ! मेरी हीन भावना ये है कि मुझे विदेशों में रहने का एतना शौक़ है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमत्री बनने से पहले ही और वो भी आज ही भारत छोड़ दूँ । मुझे नहीं मालूम कि आपका पहले से किसी देश में मकान-वकान है या लेने वाले हैं अगर हाँ तो एक जुगाड़ मेरे लिए भी कर दीजियेगा । 

दरअसल आपने जो यह बात कही है वो निहायत ही ग़ैर लोकतांत्रिक बात है । फासीवादी उद्घोषणा है । आपकी बात से ऐसा लगता है कि अगर यहाँ की जनता आपको भारत में रखना चाहती है तो नरेंद्र मोदी को न चुने । इस तरह की बात करने का मतलब यही है कि नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ आपके पास कोई तार्किक दलील नहीं बची है । इस तरह की बातों को हम ग़ैर साहित्यिक ज़ुबान में थेथरई कहते हैं । आपके पास मोदी के ख़िलाफ़ कोई दलील है तो पब्लिक में जाइये । मोदी के ख़िलाफ़ लड़िये । लड़ाई को लोकतांत्रिक बनाइये । फासीवाद का मुक़ाबला फासीवाद से होगा या लोकतंत्र से । रोज़ दस लोगों को समझाइये कि फासीवाद क्या होता है, क्यों ख़तरनाक होता है । लोग नहीं समझते तो उनकी क्या ग़लती है । अब वो तो साहित्य अकादमी वाले नहीं हैं न जी । आपका यह बयान नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ होता तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती लेकिन आपने भारत की जनता को लानत भेज कर ठीक नहीं किया है । 

गुजरात में ३९ फ़ीसदी जनता नरेंद्र मोदी को वोट नहीं करती है लेकिन क्या उनके पास भारत छोड़ने के विकल्प हैं । ३९ फीसदी लोग तीन चुनावों से मोदी के ख़िलाफ़ वोट दे रहे हैं । इस बार उन्हें एक मामूली कामयाबी मिली । ३८ फ़ीसदी से बढ़कर ३९ फ़ीसदी हो गए । मोदी को दो तिहाई बहुमत तो नहीं ही मिली उनके खाते की दो सीटें भी कम हो गईं । यह बहुत ही मामूली कामयाबी है । इसका मतलब यह नहीं कि वे गुजरात या भारत छोड़ कर चले जाएँ । ग़नीमत है इन ३९ फ़ीसदी लोगों में से कोई अनंतमूर्ति नहीं है वर्ना हवाई अड्डों पर भसड़ मच जाती । गुजराती वैसे ही विदेश चले जाते हैं मगर इस कारण से पलायन करते तो भी क्या मोदी का कुछ बिगाड़ लेते । आप उन ३९फीसदी लोगों के धीरज की कल्पना कीजिये । तीन बार से हार रहे हैं फिर भी मोदी के पक्ष में गुजरात को शत प्रतिशत नहीं होने दिया । आपने उनका अपमान किया है । 

मैंने आपको नहीं पढ़ा है क्योंकि मेरे लिए पढ़ने का मतलब नौकरी प्राप्त करना था और वो हो जाने के बाद मैंने लोड लेकर पढ़ना बंद कर दिया । आप शायद मेरे कोर्स में नहीं रहे होंगे । पर सुना बहुत है कि आप कमाल के रचनाकार हैं । होंगे ही । इसीलिए इस बयान को बदलिये, लोगों के बीच काम कीजिये और लोकतांत्रिक तरीके से मोदी के विरोध का साहस दिखाइये । भारत में नहीं रहेंगे ! आपके ऐसे बयान से मोदी को मज़बूती ही  मिली है । मैं यह पत्र मोदी के समर्थन में नहीं लिख रहा हूँ । आप जैसे महान परंतु किन्हीं कारणवश बचकानी हरकतों में संलग्न हो जाने के ख़िलाफ़ लिख रहा हूँ ।  अपनी दलीलों में भरोसा है तो यहीं रहिये । लड़िये और हारने के बाद भी लड़ते रहिए । हम आपका सम्मान करेंगे । हार के डर से लड़ने वालों को पहले ही भागने का रास्ता मत दिखाइये । मोदी का जीत जाना कत्तई महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण है प्रतिरोध करने वालों के पलायन का एलान करना । आपने मोदी के ख़िलाफ़ मतदान करने वाले करोड़ों लोगों का अपमान किया है । आप मोदी का विरोध कीजिये । कहिये कि मैं पूरा प्रयास करूँगा । सबको मिलकर लड़ना है । जितना बन सकता है उतना ही कीजिये । ये क्या कि भारत छोड़ दूँगा और वो भी अकेले अकेले ! 


अगर आप मेरे लिए भी विदेशों में फ़्लैट देख सकें तो चलूँगा । क्योंकि मैं विदेशी बनना चाहता हूँ । टाइम मिलते ही आपको पढ़ता हूँ सर । 

आपका ग़ैर पाठक
रवीश कुमार ' एंकर' 

( कई लोगों को आपत्ति है कि मेरी भाषा ख़राब है । शायद शीर्षक में सनकमूर्ति लिखने की वजह से । मुझे भी लग रहा है इसलिए संशोधन कर रहा हूँ मगर लेख में जिस तरह से लिखा है उसकी भाषा ठीक है । दिक्क्त है कि लोग इसे साहित्यकार के प्रति अपनी निष्ठा और मोदी के प्रति आस्था के चश्मे से देख रहे हैं । जो भी हो अगर भाषा का व्यवहार मुझे टूटा है तो ठीक नहीं है । मैं सनकमूर्ति हटा रहा हूँ । बाकी मेरे हिसाब से मेरी दलील ठीक है । वैसे मैं लेख प्रकाशित होने के कुछ दिनों तक बदलाव करता रहता हूँ । शब्दों को हटाता रहता हूँ, वाक्यों को सीधा करता रहता हूँ । )

71 comments:

Suchak said...

हाउ क्यूट न ! ha ha ha :D

Suchak said...

अरे सर आपने लत्तेर में यह नहीं लिखा की अगर पटना नहीं देखे तो पेरिस देखने का मतलब ही नहीं , अहमदाबाद नहीं देखा तो एम्स्टर्डम जाने का कोई मतलब नहीं :D :D


में तो इनसे कहने चाहूँगा की "कुछ दिन तो गुजरिये गुजरात में " #Amitabh BAchchan

रवि रतलामी said...

हा हा हा...

ये कौन सज्जन हैं, नहीं मालूम! (आपकी तरह मैंने भी नहीं पढ़ा, न आइंदा पढ़ने का इरादा है,) मगर अगर ये आपका लिखा पत्र अभी पढ़ लेंगे तो तुरंत ही देश छोड़ देंगे :)

MANI BHUSHAN SHRIVASTAVA said...

jab v padhta hun aapke blog ko taja ho jata hun.apna awaj lagta hai,apni boli lagti hai............

ND said...

Kisi ne Facebook pe likha hai ki agar digvijay sing h bol de ki wo modi ke pm banne pe desh chhod denge to khud mms bhi modi ko vote karenge. :)
Badhiya article hai...i wish it reaches the target :)

Anonymous said...

U. R. Ananthamurthy जी ने देश छोडने की बात ऐसे कह दी जैसे Narendra Modi वास्तव में प्रधानमंत्री बन ही गए हों, और भाजपा ने उन्हे देश छोडने की सलाह ऐसे दे डाली जैसे भारत देश उनकी बपौती हो !
थोड़ा सा धीरज रखो, नाई नाई बाल कित्ते सब सामने ही आयेंगे !

और हाँ अनंतमूर्ति जैसे stature के लेखक कभी थेथरई वाली बात कर भी जाते हैं तो इससे उनका योगदान और stature कम नहीं हो जाता, उनकी आलोचना करने से पहले उनका व्यक्तित्व को अनदेखा नहीं करना चाहिए।
अगर कहीं से samskar फिल्म का जुगाड़ हो सके तो देखिएगा, (इनके लिखे उपन्यास पर आधारित है) किताब पढ़ सकें तो और भी अच्छा है,
शायद उन्हे थोड़ा बहुत समझ सकें ।

nptHeer said...

Logic ये है (वह भी सिर्फ मीडिया के लिए-विदेश sattleइच्छुक लोगों के लिए logic नहीं होता-वैसे हिंदी वहाँ ₹2 Kg भी नहीं बिकेगी how cute!) की -अगर यह मूर्ति अनंत थी तो media को आज तक दिखी क्यूँ नहीं और अब सनाक्मुर्ती:) पर अचानक प्यार उभर आया है।

i think let us wait for '14 वे नहीं जायेंगे तो मोदी जरुर भेज के रहेंगे--विदेशों मैं old age home काफी populer concept है और अनंत मूर्ति या तो उनकी मातृभाषा या फिर english मैं प्रदान करेंगे और मोदी आ गए तो बिना हिंदी के उनका chance नहीं होगा-सोच कर मोदी को पकड़ा-मोदी भी न--fans को कम आलोचकों को ज्यादा publicity दे देते है CM कहीं के :)

Ranjit Kumar said...

खैर ये यह नहीं कह रहे कि खेलूँगा भी नहीं और खेल भी भांड़ दूंगा..शायद इतना स्ट्रांग भी फील नहीं कर रहे होंगे...तो क्या कर सकते है..बिसूर कर खेल देखेंगे और मनमाफिक टीम नहीं जीती तो जिंदगी बेकार... ये भी पूर्वाग्रह ही है...पूर्वाग्रह... ह्म्म्म्म्म...सरस्वती चन्द्र का गाना सुनिए..छोड़ दे सारी दुनियाँ किसी के लिए..

Unknown said...

Very nice sir...

Shikha simlply special said...
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Shikha simlply special said...

How cute sirji, Ananthamurthy sahit sbhi modi virodhiyon se ek saval: Is there any another option for PM instead of Modi, who can control disaster situation of country,n can take strong decisions. options me Rahul G ka naam leke desh ka mazak mt udana, jo XYZ bill namak lolypop dekar muh pe lagam lagana chahta he.
Adarniya Ananthamurthy ji, aapke desh chhod dene se koi pralay nhi aane vali, aapki marzi janha chahe rhe, but just news me aane ke liye esi stupidity..., iske liye to digvijay ji hi kafi he.

Pictures said...

मुझे नाम से लगा की कोई इनफ़ोसिस के संस्थापको में से होगा । इस नाम का कोई लेखक है भूल गया था । आपने फ़ोकट का इसको प्रसिद्द बनाया ।
वैसे कन्नड़ के लेखको में http://en.wikipedia.org/wiki/Masti_Venkatesha_Iyengar के जैसे कम लोग हैं ।

Dilip Dixit said...

पढ़ी लिखी जमात के जाने पहचाने चेहरे प्रिय सनकमूर्ती जी,
मेरे जैसे अनपढ़ लोग आज तक आप जैसी विश्व विख्यात हिंदुस्तानी प्रतिभा से अनजान थे, इसी बहाने आप को जानने का मौका मिला, मगर मशहूर होने का ये तरीका पुराना हो चूका, आप तो विद्वान है कुछ नया आजमाया होता, रविश जी के पत्र को ज्यादा गंभीरता से मत लीजियेगा, इनकी आदत है आइना दिखाने की, मशहूर होना ज्यादा मायने रखता है, चुनावों का मौसम है, हिंदुस्तान में सीटें भी 545 है, सब पर योग्य उम्मीदवार कहाँ मिल पाते है पार्टियों को, आपके चांस है, निराश मत होइये लगे रहिये, सभी मोदी विरोधी आपके साथ है !
एक अनपढ़ हिंदुस्तानी !

KRISHNA NAND RAI said...

Bharat se bahar jaa ke bharat ki tasvir ya yaha ke log nahi badale ja sakte, yaha reh kar logo ko jaan kar samjhakar bharat badla ja sakta hai.. bharat se bahar jana ek kamjori hai na ki dabangayi.. baki jaane walo ko kaun rok sakta aur aane walo ko kaun mana kar sakta hai...

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

शाबास रवीश भाई! शाबास! मेरी पहली प्रतिक्रिया तो अनंतमूर्ति के बयान पर खुशी की थी, कि चलो ये इतना सशकत विरोध कर रहे हैं. लेकिन आपकी इस टीप को पढ़कर लगा कि विरोध का उनका तरीका सही नहीं है. आपको बधाई!

azdak said...

आपही की तरह इनके पास भी टाईम नहीं रहा होगा बाबू अनंतमूर्ति को पढ़ सकने का, अनंतमूर्ति जी से कहिये, भागने की बजाय अकेली औरत के लड़ने का यह वीडियो देख लें, अगर टाईम हो तो.. http://www.aljazeera.com/indepth/features/2013/09/20139191423486616.html

Dhananjay kumar said...

रवीश जी, बढ़िया लिखा है...

नंद भारद्वाज said...

रवीश जी, आपकी बातें बि‍ल्‍कुल तार्किक हैं और सौ टका सही भी, पर कहने का तरीका जरा अशोभनीय है, बेशक आपने अनंतमूर्तिजी को न पढ़ा हो और एक इन्‍सान के रूप में सभी को अपने समान ही मानते हों, उम्र वगैरह का लिहाज भी न करते हों, इसके बावजूद अपने हमउम्र से भी ससम्‍मान बात करने और उनकी बातो से असहमत होने के लिए सामान्‍य शिष्‍टाचार या तहजीब छोड देने की जरूरत नहीं होनी चाहिये। मैं आपके बेलागपने को पसंद करता रहा हूं, एंकरिंग भी आप अच्‍छी कर लेते हैं, तो जरा बात भी सलीके से कहिये न, क्‍या हर्ज है। शुभकामनाएं।

shashi ranjan mishra said...

रवीश जी, जिन्होंने अपनी जिंदगी में एक पाँव, अमेरिका और दूसरा यूरोप में ही रखा हो... उनकी भारतीयता पर इस तरह कि टिप्पणी आना स्वाभाविक है| ब्लॉग और सोशल मिडिया पर आज बस यही पढ़ने को मिला | अनंतमूर्ति जी ने शायद गुजरात नहीं देखा, वहाँ कि मुश्लिम जनता ही उन्हें सर आँखों पर बिठाती है | उनका ब्यान कोरे मजाक से ज्यादा कुछ नहीं... भले वो चले जाएँ | देश को भी क्या परवाह ऐसे लोगों का

Unknown said...

रवीश कुमार जी, आपका लेख आपकी एंकरिंग से भी अच्छा लगा बस थोडा सा तीखा है इसे कुछ चासनी में ही लपेट कर मारते तो ज्यादा मजा आता. पर क्योंकि आपने लेख की भूमिका ही "सनकमूर्ती या अनंतमूर्ती" जैसी पत्थर मारक दी है तो ज्यादा नरमी की उम्मीद नहीं थी. खैर बधाई आपको

shikha varshney said...

हाउ क्यूट न ! :):)...

abhinaw alok said...

ये तो सही में कोई बात नहीं हुयी .. इसे तो पलायन कहा जाएगा .. जब संघर्ष की आंच बढ़ाने की जरूरत है तो कहतें है कि पोलिस की गाली तो सही थी लाठी का सामना नहीं होगा ...ये कौन सी बात हुई ?? जर्मनी से भागेंगे या भगा दिए जायेंगे तो इजरायल ही तो बनायेंगे आप ?

Rajesh Bhardwaj said...

दुर्भाग्य है इस देश का की घोटाले और भष्टाचार के साथ हम रह सकते है । भष्टाचार का बड़े से बड़ा आँकड़ा हमको विचलित नहीं करता । देश छोड़े भी तो किसके लिए ...? किसी व्यक्ति हेतु या इस भष्ट व्यवस्था को लाछित करने हेतु । आप इतने समर्थ है लेकिन हम जैसे बहुत से निम्न मध्यमवगीर्य लौंग आप के रचें पात्रों के साथ यही रहने की अभिशप्त नियति के साथ यही रहेंगे । रूपए की तरह गिरते जीवनस्तर के साथ हर उस भष्ट व्यवस्था के खिलाफ मैं सदीयों तक लोकतन्त्र के उस बटन पर हर बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराऊँगा ।

Kaukab said...

Raveesh sahab ancor achcha karte hain aap...baat kehne ka achcha dhand bhi seekhiye.... koi insan agar kehta hai ki 'main aise desh me nahi rehna chahoonga ki jahan ke PM Modi hon' to wo virodh pradarshan hi kar raha hota hai....itne bachche to aap bhi nahi hain ki itna bhi naa samjhen...bas likhno ko kuch achcha mil gaya to likh maara aapne....

Unknown said...

रवीश जी, आपकी बातें बि‍ल्‍कुल तार्किक हैं जाने वाले जल्दी..............

Dr. Deepti Bharadwaj said...

रवीश जी , बेहतरीन | मोदी से सब डर क्यों गए ? अभी तो सत्तासीन भी नहीं हुए | भेड़ियाधसान मच गया | अरे ... अब समझी ... इन तथाकथित प्रगतिशीलों पर कोई ध्यान नहीं से रहा था | घर में बच्चे भी ऐसे ही करते हैं अगर उनकी तरफ ध्यान न दो तो | ..... साहित्यकार का दिल तो वैसे भी बच्चा होता है | ...

उनकी बेरुखी पर भी फ़िदा होती है जान हमारी ,
खुदा जाने वो प्यार करते, तो क्या हाल होता ...

Unknown said...
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Unknown said...

रविश जी, ये अनंतमूर्ति जी कौन हैं, मैं भी नहीं जानता था ! चलो, विरोध के बहाने ही सही जान तो गया। मेरा अनंतमूर्ति जी जैसे मोदी विरोधी महानुभावों से अनुरोध है कि, वे भी अपना मोदी विरोध जल्द से जल्द व्यक्त करें। चुनाव तक मौका है अन्यथा, प्रसिद्धि पाने का ये मौका हाथ से छूट जायेगा

Yogi Yogendra said...

**"श्रीमान यु.आर. साहब जब आप ही भागने की तैयारी में है तो नसीहत भीरु आदमी कैसे दे सकता है"।ज्ञानपीठ मिलने के बाद ज्ञान पीठ की ओर सरक जाता है क्या??????सनद रहे......इस देश में निर्भिक आदमी ही रहते है।**

harshad patel said...

क्या हे मोदी के नाम में (काम में), आलोचना के लिए आलोचना जरुर होनी चहिये परन्तु एक दिन तो गुजरिये मेरे इस गुजरात में.

आशा said...

आपकी बढ़िया एंकरिंग देखती रही हूँ. आज पहली बार पढ़ा भी. क्या खूब खरी कही है!

Satish Kumar Singh said...

ravish ji, aapne sahi kaha hai.anantmurti jaise sahityakar ka kathmullapan samajh me nhi aaya.bade sahitykar ke dharm aur sarokar bhi bade hote hai..

akhilesh said...

chodiye in sab baton ko ye sab lokpriyata pane ka tarika hai punam pandey type ka
aap ne kaha ki tv par karne ke liye koi kaam nahi raha magar hamare pas 9 baje ek hi kaam hota hai dosto ke sath prime time dekhna lekin kabhi kabhi aap iid ke chaand ho jaje hai jaise ki kal
bada bura laga aap ko nahi sunkar apse nivedan hai ki mon-fri to prime time kariye sat ko holiday aur sunday ko to "hum log" hai hi.

जितेन्द्र सिंह 'सदैव राष्ट्रवादी'... said...

अनंतमूर्ती जी एक तो 'काफिराना' नाम लिए फिरते हो, ऊपर से देश छोड़ने की तैश दिखाते हो... कहाँ जाओगे.? पड़ोसी देशों में नाम सुनके ही कोई घुसने नहीं देगा...
अमेरिका का वीजा लगेगा नहीं, क्युकी तब तक लाइन बड़ी लम्बी हो चुकी होगी...
कल एक मोदी समर्थक कह रहा था- "एक बंदरिया के मरने से वृन्दावन सूना नहीं होता."

आपने देश छोड़ने का बयान देकर अपनी भद्द पिटवा ली है... साहित्य जगत की 'राखी सावंत' हो गए हो.!!
यही कारण है कि रवीश जी जैसे शुद्ध सेकुलर आपको बिना पढ़े आप पर कटाक्ष के तीर चला रहे हैं...

तुस्सी ना जाओ, मूर्ती जी...
अपना बयान वापस ले लो और लौट आओ...

Deep Chand Sankhla said...

प्रतिक्रिया में परिपक्वता अनंतमूर्ती और रवीश की समान ही लगती है.

नवनीत पाण्डे said...

ये तो समस्या से पलायन है.. असहमत!

Aalok said...

अनन्तमूर्ति जी के बयान में एक असहाय, व्यथित वृद्ध की वेदना छिपी प्रतीत होती है, जो संभवत: स्वयं को पीड़ा देकर अपना विरोध दर्ज करना चाहता है। जीवन के अंतिम अध्याय में एक वरिष्ठ नागरिक इतना तो कर ही सकता है, और करना भी चाहिए । रवीश जी आप उनकी बात का मर्म नहीं समझ पाए और फौरी प्रतिकिया में एक सतही ब्लॉग लिख दिया जिसका मुझे खेद है ।

Unknown said...

बढ़िया रविशजी, 10 लोगों को समझाना ज्यादा जरुरी है।

अभिषेक मिश्र said...
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अभिषेक मिश्र said...

अनंतमूर्ति जी के बयान में एक लाइन और भी है कि उन्होंने आलोचना तो नेहरु और इंदिरा की भी की, मगर सोशल साइट्स पर जैसी गलियां उन्हें आज मिल रही हैं पहले कभी नहीं मिली.
इस आक्रामकता को तो आप भी देख रहे हैं, इसपर क्या कहा जाये !

SARVENDRA VIKRAM SINGH said...

YE BACHPAN SE NA MALOOM KITNI BAAR BHAGE HONGE, AGAR BHAGNE WALA LEKHAK BAN JATA HAI TO RAVISH JI !
ANCHOR BANE RAHNE KE LIYE HI BADHAI,
.......... DEKHTE RAHIYE PRIME TIME
NAMASKAAR!

sachin said...

ये पत्रों की श्रृंखला शानदार तरह से व्यंगात्मक होते हुए , कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहजता से प्रकाश डालने का उत्तम काम कर रही है.. बधाई ! भेरी क्यूट ! कैरी ओन

Vijay Chormare said...

रवीश, ग्रेट ! बहोत बढिया..

ADVOCATE said...

Ravish ji .
In indian every body is undemocratic . as as indian we are wholly undemocratic . because democracy is not merely a form of government , it is much more than that . it is a way of life . Be it advani , sonia , lalu , mulayam , jaya , mamta , karuna , ajit singh , digvijay or whatever . the way they behave , the manner in which they speak , the way they act all is undemocratic . Anantmurthy has got the money in his coffers hence he has the luxury to live in any part of the world . As an indian i am disappointed the things are going on . no body is ready to see the horrific future impending .

Unknown said...

अनंत्मूर्ति जी ,ये देश जितना मोदी को जिताने की कामना करने वालो का है ,उतना ही आपका भी।आप वरिष्ट साहित्यकार है कारणो व दलीलो से विरोध कीजीये ,पलायन तो जीते जी मरने जैसा है।और शतुरमुर्गी आदत है तो राम ही मालिक है]इस तरह की धमकी देना भी एक तरह का फासीवाद है


guru datta said...

रवीश जी नमस्कार,

आपके अनुरोद से पहले ही अनन्तमुर्ती जी ने अपना बयान से मुखर गये हैं, कहा है कि उम्र के वजह से मैने देश चोडने की बात कही है यदि नवजवान होता तो शायद ऐसा न कहता कहा है. http://www.youtube.com/watch?v=TZMO_u6UmrU&list=UUl-OodciBGZ0k8K8rBZGe4w

Rajat Jaggi said...

yar koi btayega ki 'HINDI' mein type kaise kiya jata hai?

dinesh mansera said...

kuch mufatkhor free me surkhiya chahte hai ..ye kaun hai moorti? koi nayi kitab likh kar baitha honge..bik nahi rahi hogi

Hemang Ashwinkumar Desai said...

Hi Ravish,

I appreciate the commitment and passion with which you 'anchor' news and let me tell you your news is never "gutterchhap". Having said that i would like to underscore the fact that you are getting sentimental over Ananthmurthy's statement which is itself a very strong way of fighting the the threat called Modi to the nation's secular character. Sheer reportage at times does not work to change people's minds as much as a figure of speech does. Further, i am intrigued by how this statement could have helped Modi in any way. As i can see you don;t respond to comments on you blog, but if you deign to oblige, please do so.

दिवेंद्र सिंह 'देव' said...

लगता है आनन्दमूर्ति साहब कमल हासन से प्रेरित हैं

sarfarazasalamevolved.blogspot.com said...

रवीश जी आप भारतीय पत्रकारिता की पहचान हैं एक स्तंभ हैं , एक मानक हैं ....क्या संतुलित लेख लिखा है आपने अपनी बात कहने के लिए ....दिल से मुबारकबाद आपको आपके उत्कृष्ट लेखन और रिपोर्टिंग के लिए ....!

Niyaa said...

Having enjoyed your writing and your show for some time now, I am disappointed in this post. UAR was not actually talking of emigrating to another country, he was talking about how he would not want to live in a country that votes someone like Modi to the post of PM. Haven't many of us said the same in jest? There is a fine line of difference between the words and the message intended to be conveyed - I think this once you got a bit carried away or excited in your criticism of him.

Unknown said...
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Unknown said...

रवीश जी...आपके इस स्तंभ ने मुझे हरी शंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग रचनाओ की याद दिला दी...सरल और सटीक व्यंग श्रेणी में उत्कृष्ट रचना है ये...आपको शत्-शत् नमन ...सस्नेह, अनिल

प्रवीण पाण्डेय said...

हमारे वीज़ा की भी व्यवस्था हो जाती।

प्रवाह said...

rAVISH JI ACHHE LEKH KE LIYE BADHAYEE. BUDHIJEEVION KA PALAYANVADI HONA UCHIT NAHI NA
DAINYAM NA PALAYANA

प्रवाह said...

rAVISH JI ACHHE LEKH KE LIYE BADHAYEE. BUDHIJEEVION KA PALAYANVADI HONA UCHIT NAHI NA
DAINYAM NA PALAYANA

SPDR_Sharma said...

अपनी दलीलों में भरोसा है तो यहीं रहिये । लड़िये और हारने के बाद भी लड़ते रहिए । हम आपका सम्मान करेंगे ।

SPDR_Sharma said...

अपनी दलीलों में भरोसा है तो यहीं रहिये । लड़िये और हारने के बाद भी लड़ते रहिए । हम आपका सम्मान करेंगे ।

Unknown said...

रवीश जी आप हिंदी के बेहतरीन एंकरों में से एक हैं (या शायद एक ही हैं) और अनंतमूर्ति जी भारतीय भाषाओं के बेहतरीन लेखकों में से एक। तो सम्मान मैं दोनों का करता हूँ। पर लेखक महोदय ने कोई बहुत आपत्तिजनक बात कही हो ऐसा मुझे नहीं लगता। अभी मोदी साहब बस पी एम पद के उम्मीदवार भर हुए हैं कि उनके अंधभक्त अपनी पार्टी के शीर्षस्थ नेता को गरियाने से बाज नहीं आ रहे हैं। कल्पना कर ही सकते हैं कि वो पी एम बने तो आलोचकों का क्या होगा? उनकी बानरी सेना उनके विरोधियों के सफाए में लग जाएगी। आप अभी नमो बाबा के खिलाफ बोलिए फिर देखिये उनकी बानरीसेना कैसे आपके पीछे हाथ धो कर पड़ जाएगी। आप तो टी वी वाले हैं कुछ हुआ तो हल्ला मच जाएगा। वो तो लेखक हैं उनकी सुरक्षा कौन करेगा। तो उन्होंने सोचा होगा के कट लेते हैं यहाँ से।

vinod kumar pant said...

रवीश जी संतुलित उत्कृष्ट लेखन और रिपोर्टिंग के लिए मुबारकबाद आपको ...

विनीत कुमार said...

मोदी का जीत जाना कत्तई महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण है प्रतिरोध करने वालों के पलायन का एलान करना ।...
मुझे सच में बहुत हैरानी होती है कि साहित्य अनिवार्यतः प्रतिरोध की रचनात्मकता है जैसी समझ के बीच जीनेवाला साहित्यिक समाज भी क्यों ऐसे फ्लाइ ओवर के बारे में सोच लेता है..मूर्ति साहब यकीनन मोदी के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करने में मार खा गए.

Kulwant Happy said...

मैं अनंतमूर्ति की दलील से सहमत नहीं हूं, और आपका पत्र कन्‍नड़ लेख तक पहुंचे न पहुंचे लेकिन इस तरह की दलील कोई आगे न करे, शायद उसके लिए प्रयास है।

अनंतमूर्ति का बयान शायद वैसा ही जब चर्चा के दौरान कोई व्‍यक्‍ति खुद को असहाय महसूस करते हुए अपने विरोधी की निजता पर हमला करता है।

Kulwant Happy said...

बाबा रामदेव को भी इस चक्‍कर में रोक लिया गया, क्‍यूंकि अब विदेशों को डर लगने लगा है कि कहीं पूरा भारत पलायन न कर जाये, जैसा अनंतमूर्ति ने कहा। वैसे भी विश्‍व में कहीं भी कोई बड़ा हादसा हो, एकाध तो भारतीय शामिल होता ही है।

नंदकिशोर नीलम said...

मोदी का जीत जाना कत्तई महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण है प्रतिरोध करने वालों के पलायन का एलान करना ।... बहुत अच्छी बात कही है रवीश जी.
नन्दभरद्वाज जी की टिप्पणी पर ध्यान दीजिए.
Anil Anand जी, परसाई जी की भाषा में एक अदब होता था .. जिसकी दरकार है. सभी जानते हैं मुहं ऊँचा करके थूकने से क्या होता है!
vinod kulasri जी, अनंतमूर्ति जी को किसी के आइडेंटीफिकेशन की जरुरत नहीं है.किसी का अनंतमूर्ति जी को नहीं पढ़ पाना अनंत जी की सीमा नहीं हैं, नहीं पढ़ने वालों की सीमा है.

manoj kumar rai said...

कुल त ठीक ही कहें है। भषवा भी नीक है। अगर केहु के खराब लगा है त उ रऊये के चलते हुआ है। तनि ललित निबंध स्टाइल मे लिखिए न।

Gangesh Gunjan said...

संतुलित,तर्क संगत और निष्पक्ष टिप्पणी है रवीश जी। जो अवाँछित था उसे आपने स्वविवेक से खुद ही सम्पादित कर डाला है। सस्नेह,

raj_gargi said...

आज हमारे एक पत्रकार मित्र की पोस्ट पढ़ी , जो उन्होंने किसी ब्लॉग के हवाले से लिखा था , उसमे उनकी अभिव्यक्ति का कोई हवाला नहीं था. उस पर मैंने एक प्रतिक्रिया दी थी और उसी पर्तिक्रिया को मे यहाँ लिख रहा हूँ. कही कुछ तो गड़बड़ है हमारे डीएनए मे , कोई खुल कर बात नहीं करता. सब गला काटना चाहते है लेकिन हमें 'उफ्फ' की भी इज़ाज़त नहीं देता. हमरे मार्ग दर्शक सिर्फ फ्रांसीसी क्रांति का इंतज़ार करते नज़र आते है.

"कही कुछ बहुत वाहियात बाते हो रही है और भारत के बुद्धिजीवी वर्ग सबसे ज्यादा चाटुकार सबसे ज्यादा सरकारी हराम की शाबासी और सहूलियत और तगमो का लोभी है. गुजरात मे कितने लोगो ने मोदी को वोट नहीं दिया लेकिन मुहं मे दही जैम जाता है जब केंद्र की सरकार के कितने खिलाफ वोट दिया जनता ने या किसी भी प्रदेश की सरकार कितने विरोधी वोट के बाद भी सरकार बनालेती है इस पर कोई बात या आकडे नहीं देता. मै भी और लोगो की तरह अपने से मतलब रखता था लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग एवं पत्रकारों की गुलाम एवं चरित्र मै उदासीनता पूर्ण गिरावट ने मुझे यह समझने को मजबूर कर दिया है की इन महा मंडित लोगो ने देश का सबसे ज्यादा बेडा गर्क किया है. जाना है तो जाओ किसने रोका है? कायर हो कायर ही रहोगे, गुलाम थे गुलाम ही रहोगे, तलवे चाटने से जन्नत मिलती है यही सीखा है और जो किया है. कौन सी शिक्षा दे रहे हो? यही कह रहे हो की तुम्हारे मन की न हो तो दुनिया उलटी दिखाओ? शर्म नहीं आती है इस जमात को नाक रगड़ते हुये. यही कह रहे हो की मेरे मन का नहीं हुआ तो भाग जाओ? सत्य यही है की पर्लिमेंट्री सिस्टम मै वही सरकार बनाते है जिसको सबसे ज्यादा वोट मिलते है. यदि यह गलत है तो या तो राज शाही की वकालत करे यह सब बुद्धिजीवी वर्ग एवं पत्रकारों या फिर प्रेसिडेटशिअल सिस्टम की. इस की औकात किसी की भी नहीं है. क्यों की पुरे भारत मे अपने बल पर लड़ने की औकात किसी की भी नहीं है. और जब विरोध मे पड़े वोट की जब आप बात करे तब इसका भी हवाला दे की दुनिया का सबसे पारदर्शी एवं शशक्त डेमोक्रेसी अमेरिका मे है और उनके राष्ट्रपति कितने विरोध के वोट के बात भी ४ साल अमेरिका पर बिना इसकी चर्चा के शासन करते है. सही मे इस तरह के किसी भी व्यक्तव्य से दलाली की ही बू आती है".

Unknown said...

शायद कुछ मिस‍अंडरस्टैंडिंग हो गई है:

"I will never leave India. The Sangh Parivar is twisting what I said metaphorically. That is what Modi's fascist followers do."


http://www.bangaloremirror.com/bangalore/cover-story/Modis-fascist-followers-tell-lies/articleshow/22865782.cms?

teacher4gujarat said...

Desh ko kyo parvh na ho?are bhai desh ko ache insanoki zarurat he,desh ki zarurat modi nahi he mare bhai,ek ghandhiji the gujarat ke or ek modi,ek ahinsa ka pujari or ek hinsa ka pujari,ek satya ka pujari or ek juth ka pujari,soch badlo

SAVITA PANDEY said...

यू आर अनंतमूर्ति भारत के प्रमुख लेखकों में से हैं । अंग्रेजी के विद्वान अनंतमूर्ति अंग्रेजी साम्राज्यवाद के घनघोर विरोधी हैं । उन पर हमें नाज है । उनको पढ़ा है , पढता हूँ कोर्स में नहीं होने के बावजूद ।
…. पर दिक्कत हियाँ है कि पब्लिक इंटेलेक्चुअल , एंकर , पत्रकार , लेखक , कलाकार को 'सेक्युलर ' होना पड़ता है । न हो तो दिखना पड़ता है !
अखबारों -पत्रिकाओं -टीभी चनलों पर लेख आ रहे हैं , परिचर्चाएं , बतकही हो रही है ---मोदी को क्यों नहीं
प्रधानमंत्री होना चाहिए ! ' टाटा ' कथित तिस्मार्खाओं को बताना पड़ता है कि भारत समेकित 'समुद्र संगम ' संस्कृति का देस है यहाँ मोदी नहीं चलेगा ! अनंतमूर्ति जैसे लोग यही गड़बड़ा जाते हैं ! और कोई भी गड़बड़ा सकता है ---रविश कुमार भी ! मैं भी , आप भी !
अब ज इ से कि रविशजी को सावधानी बरतनी पड़ रही है कि ''…. मैं यह पत्र मोदी के समर्थन में नहीं लिख रहा हूँ । ''
मोदी गुजरात के मुख् मंत्री हैं …। यहाँ -वहां पहले भी और अब भी दहाड़ रहे हैं ! यदि कोई कमजोर कड़ी हो , मोदी दंगाई हों तो ये सी बी आयी , कोर्ट -कचहरी , केंद्र सरकार …… किस लिए है ? ये सब जो मोदीमय
झोल -झाल चल रहा है वह फर्जीगिरी के अलावा कुछ नहीं है ! यह लोकतंत्र नहीं है ! यह पोलितिकल्ली (इन ) करेक्ट ल ह ट म -पह ट म है ।
ऐसे इंटेलेक्चुअल नहीं हुआ जाता अनंतमूर्ति जी ! मार्क्स के मानवीय सपनों के देशों का हाल आपको पता होगा । सत्ता की हाँ -में -हाँ नहीं मिलाने वाले लेखकों का वहां क्या हुआ आपसे बढ़िया कौन जान सकता है ! इसलिए मत जाइएगा कही यदि मोदी पीएम बन गए तो भी । अमेरिका में देखिये ना प्रोफ चोमस्की से ज्यादा कौन बुश और अमेरिकी नीतियों का आलोचक होगा । आलोचना करना लेखकों का काम -धाम है। रोजी- रोटी है । सृजन है । देस छोड़ना कोई उपाय नहीं है !
और रविश महराजजी आप भी विदेश में फ्लैट -फ्लैट का सुविचार त्याग दीजिये । समय कुविचारों का है ।
……एक इंटरव्यू मोदी का क्यों नहीं लेते ? इंटरव्यू में आखों में आँख डा ल कर बात कीजिये ! मोदी को लादेन मत बनाइये । सबूत हो तो बना भी दीजिये । हमें क्या लेना -देना ।

आरे हाँ --वीर सिंघवी , राजदीप , आशुतोष की तरह मत सोचिये । ----प्रमोद के पाण्डेय