जुगाड़ ठेला
एक लीटर में डेढ़ घंटा। मैं चौंक गया सुनकर। सवाल यही था का कि माइलेज कितना है। बोला कि ये होंडा पंप के इंजन से बना है। अस्सी सीसी का इंजन लगा है। किलोमीटर में नहीं घंटे में चलता है। जुगाड़ ठेले में मीटर नहीं है। पानी पटाने के काम आता था अब इसे लगाकर ठेला को हमने टैम्पो बना दिया है। तस्वीर में देखेंगे कि पेट्रॉल भरने के लिए ऊपर से कैप लगा है। नीचे पानी वाले पंप का इंजन कार बन कर सो रहा है। चालीस हज़ार पांच सौ रुपये का है ये जुगाड़ ठेला। कहते हैं कि गुजरात से प्रेरित होकर यहां आया है।
इस ठेले ने ठेले वालों की ज़िंदगी बदल दी है। रिक्शा गाड़ी खींचने में उनकी जान जा रही थी। अब वो सामान लादकर बस चल देते हैं। तस्वीर में आप देखेंगे कि आलना की तरह बीच में डंडी लगी है। गाड़ीवान ने बताया कि औरतें या सवारी सामान लादकर इसे पकड़ लेती हैं। पटना से लेकर भागलपुर तक में जुगाड़ ठेला दौड़ने लगा है। बड़ी कंपनियां ग़रीबों के लिए सवारी नहीं बनाती। बनाएंगी भी इतना महंगा कर देंगी कि कर्ज के बोझ से लाद देंगी। टेक्नॉलजी पर ग़रीबों ने विजय प्राप्त करने के लिए अपनी तरकीब निकाली है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जुगाड़ गाड़ी भी अपनी तरह का अनोखा कमाल है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
ravish ji ekdum khoji patrakar hai aap....... javab nahi hai aapaka . lge rahiye .....
जुगाड़ की नयी डिजाइन।
भेरी नाईस! जुगाड़ और जुगाड़ियों की जय।
रविश जी,
आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हु.
आज लक्ष्मी नगर के पास एक MODERN ठेला देखा नाम था 'THE LITTI' थे लिट्टी. कमल का लिट्टी उसपर कैफे काफ्फी डे वाला स्टाइल. लिट्टी के साथ ३ चोखा, सलाद, नप्किन, पानी का रेडीमेड ग्लास. उसपर उनका ड्रेस, सबकुछ ५ सितारा रेस्तौरांत की तरह.
कभी देखिये, कैसे बिहार के लोग बदल रहे है. कवेल शाम में 8 से 11 ही होता है.
gaurav
लाजवाब देसी प्रतिभा का नमूना.
raveesh ji,noida me bhi ek do aise rikhse chal rahe hain,baterry se chanle wale.
माफ़ करिएगा रविश जी ,
इसमें कोई शक नहीं कि जरूरत अविष्कार की जननी है का इससे बेहतर उदाहरण और कोई नहीं मिलेगा , मगर जब इनसे दुर्घटना होती है तो पीडित को बहुत नुकसान होता है क्योंकि , मोटर वाहन दुर्घटना की हद में ये वाहन आने से बच जाते हैं ..हालांकि ऐसा कम हुआ है मगर हुआ तो है ..। वैसे ये जुगाड है कमाल
गाँववालों का जवाब नहीं।
दिहाती बुद्धि ही जुगाड लगा कर जी सकती है........
जहाँ विज्ञान और अर्थ जगत के सभी सूत्र बेकार हो जाते हैं ...
दिहाती जुगाड चलते हैं.
कलयुग का कमाल है!
भारत महान है! ऐसे संकेत मिलते हैं (कथा कहानियों में) कि इस देश में पहले कभी शायद ऐसे ही तपस्या कर 'जोगी' आदि स्वयं ही जुगाड़ से पानी में चलना भी सीख गए थे, एक स्थान से दूसरे तक पलक झपकते ही पहुँच जाते थे, आदि आदि! किन्तु हम केवल उसके स्वप्न ही ले पाते हैं आज!
बहुत बढ़िया लगा :))
छा गए :))
Post a Comment