नत्थू मरेगा और नत्थू नहीं मरेगा। अनुषा रिज़वी ने पीपली लाइव में अन्यमनस्क मृत्युगामी नत्थू को लटका दिया। न आक्सीजन उसे जीने दे रहा और न मरने दे रहा। मुआवज़ा की ख़ातिर मरने के इस मीडियाकर्म पर हंसी आ रही थी। ज़माने बाद झोंटा(बालों के गुच्छे)वाले कलाकार दिखे। अपनी लाचारी को सर्वक्लासी(across class) बनाते हुए। प्रोमो के छोटे-छोटे क्लिप से फिल्म का बड़ा हिस्सा दिखने लगता है। हरेक को इस हिसाब से बनाया गया है कि फिल्म नहीं,किरदार स्थापित हो जाएं। इस फिल्म को चर्चागत बनाने में किरदारों की ही भूमिका रहेगी। प्रोमो से यही लगा। दिल्ली के मेरिडीयन होटल में कल आमिर ने प्रोमो का प्रदर्शन किया।
अम्मा मर जाएगी तब भी बोलेगी। नत्थू की मां के इस भदेसी संवाद पर जब दिल्ली के मेरीडियन होटल में जमा इंटरटेनमेंट पत्रकारों के बीच ठहाका लग सकता है तो इसका मतलब यही है कि डिज़ाइनर कपड़ों और ख़राब अंग्रेज़ी ने अभी हमारे भीतर से भदेस वर्ल्ड को ख़त्म नहीं किया है। हम अब भी गांव देहात के मुक्त छंद संवादों पर खिखियाने की काबिलियत रखते हैं। डेमोक्रेसी जैसी कुलीन शब्दावली को लात मार कर रंगरंगीला परजातंतर कह सकते हैं। अनुषा से पूछा कि भाषा सुल्तानपुर अमेठी वाली क्यों? अनुषा ने मेरे इस सवाल के जवाब में कहा कि ठीक है कि हमारी भाषा मिक्स है। यह भी देखिये कि अंग्रेज़ी आती है न हिन्दी। हमारे किरदार भदेस भाषा का इस्तमाल न करते तो मज़ा ही नहीं आता। किरदारों और उनकी बातों को देखकर लगा कि रागदरबारी सामने हैं। महमूद ने कहा कि रागदरबारी सामने थी। लेकिन आपको लगी है कि रागदरबारी की झांकी है तो मैं इसे कंप्लीमेंट समझूंगा।
हैरान हो गया प्रोमो देखकर। लगा नहीं कि रिज़वी और फ़ारूक़ी ने पहली बार फिल्म बनाई है। हालांकि ने महमूद ने कह दिया कि बिना फिल्म देखे मत लिखना। सही बात है। आमिर का आत्मविश्वास देखकर लगा कि दोनों मित्रों ने अच्छा काम किया है। शहर और गांव के बीच किसी प्रवासी की तरह पहचान खोजते इसके किरदार परजातंतर पर अपनी दांत नहीं पीसते बल्कि दांत कटकटाते हैं। हंसाते हैं।
हम लोग बहुत तनाव में हैं। खासकर मैं। पिछले बीस साल से भारत महान के विश्वशक्ति होने पर लेख पढ़ रहा हूं। मेरे लिए इंडिया अब जनरल नॉलेज का सवाल हो गया है। सबड़े बड़ा एयरपोर्ट,पहली महिला आईपीएस,पहला गांव,पहली मौत आदि आदि। बात-बात में हम वर्ल्ड लेवल के महान देश हो जाते हैं। दिल्ली में कई साल पहले हमने एशिया लेवल की सब्जी मंडी बनाई। अब जाकर एशिया और वर्ल्ड लेवल का टर्मिनल बना दिया। इंडिया का लगातार प्रमोशन हो रहा है।
लेकिन जिनका प्रमोशन नहीं हो रहा है,महमूद कहते हैं कि वो भी ज्यादा लोड नहीं लिए हैं। शायद मेरी तरह। वो ग़रीब हैं मगर ग़रीबी के दबाव में उनकी हंसी का गुरुत्वाकर्षण कम नहीं हुआ है। तंजिया संवादों से उनके भीतर बहुत कुछ ढहने वाला है जिनके भीतर कुलीनता अभी नई है। मेरे भीतर दस साल की हो चुकी कुलीनता किसी भदेस प्रहार की मांग कर रही है। हिन्दी का कुलीन पत्तरकार होने के बाद भी वो क्लास नहीं आया जो इंग्लिश के मामूली कुलीन पत्तरकारों में होता है। अब ये मत कहियेगा कि हम किसी क्लास कामना में मरे जा रहे हैं। सेल में कपड़े ख़रीदकर शाइनिंग इंडिया की पार्टी में चले गए तो कपार फोड़ दीजिएगा का जी। ग्रेट क्रैशर थोड़ो न हैं। बुलाये जाते हैं ये और बात है महफिल में आइसोलेशन की फील होती है। आइसोलेशन कई बीमारियों की जड़ है। कुंठियाना लाइव एक अलग फिल्म बननी चाहिए। बताए कि कैसे इंग्लिश कुलीनता से लतियाये गए लोगों को हिन्दी भी यह कहकर दुत्कार देती है आप कुंठियाये हैं। ब्लडी अरोगंट हिन्दी।
इसीलिए प्रोमो में नत्थू लटका हुआ है। पेंडुलम की तरह। रूलाता हुआ,हंसाता हुआ। महंगाई डायन के सब हड़प लेने के बाद अगर कीर्तन की गुजाइश बची रह जाती है तो रस अभी बाकी है मेरे दोस्त। आमिर खुश न होते तो अनुषा को दूसरी फिल्म पर काम करने की बात न करते। मेरिडियन होटल के अपने कमरे में आमिर ने साफ-साफ कह दिया कि अब अगली फिल्म की सोचो। महमूद ने आमिर के कमरे में मुझे बुला लिया। घंटा भर आमिर से बतियाने का मौका मिला। अनुषा और महमूद तो आमिर के सामने नए हैं मगर बंदा ज़रा भी अरोगंट नहीं लगा। उसका यकीन कहता है कि फिल्म चलने वाली है। आमिर ने कहा डोंट वरी,तुम्हारी पत्तरकारिता भी बदलेगी। खराब साइकिल बीतने वाला है। मैं सहमत नहीं था लेकिन मेज़बान की इस आशावादी उम्मीद पर खुश हो गया।
पीपली लाइव के इन दो पीपलों को जानता हूं। महमूद उसी रात के कुछ दिनों बाद अपने फिल्मी ख्वाबों को लेकर पत्तरकारिता को छोड़ गए। जिस रात मेरे इनबॉक्स में एक मेल आया था। बिना तुमसे पूछे रिपोर्टर बनाने का फ़ैसला कर दिया गया है। कहीं तुम मना तो नहीं कर दोगे। मेरे इंग्लिश दफ्तर में लंदन रिटर्न,स्टीफंस ग्रेजुएट और दून ब्वायज़ महमूद ने अपनी अंग्रेजी का इस्तमाल किया और मेरी तरफ से बिना किसी ग़लती वाली अंग्रेज़ी में रज़ामंदी का जवाब भेज दिया। पढ़ने वाला हैरान था कि मेरी अंग्रेज़ी शानदार है और मुझ एकलिंगी रिपोर्टर को द्विलिंगी रिपोर्टर में बदलने की कवायद होने लगी। मैं बाइलिंगुअल होने से बच गया लेकिन नत्थू की तरह हिन्दी इंग्लिश के बीच लटक गया। बाद में मुझे बताना पड़ा कि जवाब मैंने नहीं लिखा था। महमूद का लिखा था। उस रात मुझसे ज़्यादा महमूद खुश था। मुझे मौका मिल रहा था। दस साल बाद मेरिडीयन के उन्नीसवें माले के कमरे में महमूद अनुषा को देखकर अच्छा लगा। इस बार उनका सपना पूरा हुआ है।
महमूद की फ़िल्म आ रही है,इसलिए सारी शुभकामनाएं। अनुषा के भीतर कोई कहानी इस तरह धंसी होगी जिसे ऊपर लाने के लिए दोनों मियां बीबी ने अपनी नौकरी छोड़ दी,कभी नहीं लगा। आफिस में अनुषा को कम बोलते देखा है। शायद फिल्म उनके बदले बोल देगी। अनुषा अपने बारे में दावा नहीं करती हैं। जैसे हम इस पत्तरकारिता के फटीचर काल में कालजयी होने का दावा नहीं करते हैं। हमारी पत्तरकारिता फटीचर न हुई होती तो जे आजै बोल देत हैं,परजातंतर का रंगरंगीला आउटलुक अनुषा को नहीं मिलता। माइक लिए जे हमन के गोतिया भाई धौगत जात हैं,करेक्टर के खानदान के पीछे,उनहीं के बदौलत संवाद लाइवली हुओ है। खटिया पर बुढ़िया जब कुमार दीपक को बिठा देती है तो पत्तरकार उसके लेवल पर आ जाता है। जब बीच इंटरव्यू में बीड़ी और माचिस मांग देती है तो गोल्ड फ्लैक टाइप जर्नो अपनी छाती को थपथपाने लगता है जैसे माचिस और बीड़ी वहीं अटकी पड़ी है,निकल आएगी,नत्थू की जान की तरह।
हम एक लाइव समय में रह रहे हैं। सीधा प्रसारण काल। गंजी बनियान सब लाइव है। ज़िन्दगी और मौत भी। अगर आप भी नत्थू की तरह जीवन की आपाधापी में अटके हैं तो फिल्म देखियेगा। शायद निकलने का रास्ता मिले। बहुत देख लिया भारत महान के अचीवमेंट को। अब गैस छो़ड़ने का टाइम आ गया है। पीपली लाइव के इन दो पीपलों को मुबारक।
15 comments:
तमाम रंज और तंज के साथ लिखा है आपने......इस फिल्म को सब तरफ सकारात्मक शुरूआती प्रतिक्रिया मिली है.....उम्मीद है फिल्म चलेगी.....बहरहाल इन दो पीपलों को हमारी तरफ से शुभकमानाएँ....
आपके व्यंग्य दिल को छूते हैं. भदेसपन से माटी का जुडाव महसूस होता है. लेख को पढकर लगा पिपली लाइव गांव के विषय पर है, जिस गांव को आप और हम शिद्दत से केवल याद करते हैं, उसके लिए कुछ करते नहीं. इसलिए गांव पिछड़ रहा है. शहर आगे जा रहा है. और हम गांव-शहर के बीच अटक गए हैं त्रिशंकु की तरह.
lag raha ki film bahut achchhi hogi ..apka likhane ka dhang bahut nayapan liye hue hai ..
एक बार फिर पढ़कर अच्छा लगा। ये बात सबसे ज्यादा सोचनीय लगी कि इंड़िया जनरल नॉलेज हो गया है। आमिर वैसे भी अब अपने फिल्मी साथियों से अलग हो गए हैं। अच्छा लगता है कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कम से कम अपने प्रभाव का सकारात्मक उपयोग किया। सामाजिक सरोकरों से जुड़ी फिल्म बनाने के लिए भी उन्हें बधाई।
इन दो पीपलों को हमारी तरफ से शुभकमानाएँ....
kuch samjh aaya..kuch upper se nikal gaya..baharaal film dekhni hai :)
पारूल से सहमत अपना भी कुछ यही हाल है ,
फिर भी फिल्म देखेंगे
फ़िलम जरुरई देखेंगे!
पारुल से सहमत, असल मे आपने कुछ अपने पुराने दोस्तों महमूद और अनुषा की याद के साथ अंग्रेजी / हिन्दी , इंडिया / भारत बहुत कुछ साथ मे समेट लिया । फिर भी अच्छा है , फिल्म देखते हैं तब बात करते हैं , आपने अमेठी सुल्तानपुर वाली भाषा कह कर जिज्ञाषा और बढ़ा दी , आखिर मैं सुल्तानपुर का जो ठहरा ।
jai ho peepli live ki .. jai ho raveesh kumar ji jaise sameekshako ki................
आपने सही लिखा है सबकुछ लाइव है समस्याएं भी लाइव हैं लेकिन लगता है इस देश में उनकी गंभीरता लाइव नहीं है। वो सोच लाइव नहीं है जो समाधान का रास्ता तैयार करे। हमारे ख्याल से पीपली लाइव एक सोच हो सकता है, किसान को समझने का, उसकी परिस्थितियों से रू-ब-रू होने का। इस फिल्म के जरिए ये समझने का मौका मिल सकता है कि अभिव्यक्ति के लिए भाषाई स्ट्रगल कितना जरूरी है। महमूद और अनुषा निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं, फिल्म के प्रोमो के आधार पर हम ये कह सकते हैं जिस खूबसूरती के साथ उन्होंने फिल्म में भदेस भाषा का इस्तेमाल किया है वो अपने आप में जानदार और शानदार है। एक तो ये देश वैसे भी महंगाई की ऐसी मार झेल रहा है जैसे लग रहा है कि अब ये इसकी नीयति बन चुकी है। सारे देश का पेट भरने वाले किसान भूखमरी के शिकार हो रहे हैं। कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में ये फिल्म रुपहले पर्दे पर आकर जनता को ये सोचने पर जरूर मजबूर करेगी कि भइया जरा सोचो तुम्हारी आंखों के सामने जो समस्या लाइव है उसका समाधान क्या है?
कपिलदेव अभिनीत एक जूते के विज्ञापन में एक डायलाग था "शुक्र है कुछ तो सिंपल है " ये बात आमिर खान की इस नयी फिल्म के विषय पर लागु होती है वर्ना तो आज भारतीयों के लिए फिल्मे बनाने का दौर ही ख़त्म होता जा रहा है ... छोटे शहरों ,कस्बों से एकल ठाठिया सिनेमा घरों के बंद होने से फिल्मकारों की नजर अब ओवरसीज की कमाई पर है ... हिंदी फिल्मे अब प्रवासी भारतीयों और अंग्रेजी के शिकार युवायों के लिए ही बनायीं जा रहीं हैं....अजीब से एग्लों इंडियन नाम ,अग्रेजी धुनों और गानों के जबदस्ती बनाये हिंदी अनुवाद और बिना सिर पैर की कहानी ....फिल्मों में भारतीय साज सुने जमाना बीत गया .... "पिपली लाईव" का कहानी भारत की मिटटी से जुडी है इस में खुश फहमी में जी रही नयी पीढ़ी को "इंडिया " और "भारत" में फर्क भी महसूस होगा ....ठेठ देहाती अंदाज में गाया गीत "सखी संइयाँ तो बहुत की कमात है ,महगाई डायन खाए जात है " देश की सब से बड़ी समस्या पर करारा प्रहार है ....एक मुद्दत के बाद "फिल्म -निकाला" दे दिए गए ढोलक -बाजे के प्रयोग की हिम्मत की गयी है ..... जिस तरह "हम आप के हैं कौन " से शादियों वाली फिल्मे बनाने की होड़ लग गयी थी हो सकता है पिपली लाईव के बाद देश की दूसरी समस्यायों पर फिल्मों का दौर ही शुरू हो जाये ...अगर ऐसा हुआ तो जन संचार का ये ताकतवर जरिया अपने मूल उदेश्य पर फिर लौट आये गा .....---सुनील मोंगा ,सवाददाता इंडिया न्यूज़ .
आशा करते हैं कि फिल्म अच्छी हो...
sir ji aapka blog padhne ke baad maine bhi Peeply live ka promo dekha, promo to mast lag raha hai, ummed hai film bhi mast hogi. filhal to film ka intezar hai aur samay katne ke liye ga rahe hain "...manhgai dayan khaye jat hai...."
Ravish ji apne film kee bhasa ke bare main comment kiya hai to main yeh kahoonga. Sultanpur amethi ki bhasa avadhi hai. isee bhasa main "Ram charit manas" aur "padmavat" likhe gaye hain. Waise main bhi Amethi ka hee hoon.Is film ke popular song"manhgayee daye ..." se kajree ke dhun ke yaad aatee hai. Film ke intezar rahega.
Post a Comment