फैबइंडिया की चादर में लिपट कर
सरकाये थे जब उसने पांव अपने
वुडलैंड की चप्पलों में
लुई वित्तॉं के थैले में भर कर मेकअप का सामान
निकली थी वो बाहर जाने को मेरे साथ
उसकी खूबसूरती एक ब्रांड की मानिंद
धड़कने लगी मेरे भीतर
दुनिया के तमाम बिलबोर्ड से उतरकर
बिल्कुल करीब आ गई थी मेरी बांहों के
वैन ह्यूसन की कमीज़ का कॉलर
रे बैन के चश्मे ने मेरे चेहरे को बना दिया
दमदार और दामदार
उसकी मुस्कान से न जाने क्यों बार बार
टपक रही थी
निंबूज़ की प्यास और उसके विज्ञापन से छिटकते
पानी के फव्वारे
राडो घडी से लदी उसकी कलाई
पकड़ने को जी चाहा मगर दाम के टैग ने
दूर कर दिया मुझे
उस एकांत में सुंदरी से
पैराशूट नारियल में रात भर सोक हुए थे उसके बाल
गार्नियर की शैम्पू में धुल कर जब हल्के हुए
तो हवाओं ने भी कर ली छेड़खानी
लहराते बालों को क्या मालूम
टकराने का लोक लिहाज़
मेरे चेहरे पर अटके उसके बालों ने
वही तो कहा था
तुम्हारी महबूब किसी अप्सरा लोक से नहीं आई है
अख़बारों में छपे विज्ञापन की कटिंग से बनाई गई है
वो न जाने किस किस की अदाओं की
फोटोकॉपी है।
है तुम्हारी मोहब्बत
मगर ओरिजनल नहीं है।
राजा रवि वर्मा की पेटिंग में अटकी उस औरत का देह
जिस पर लिखी जानी थी कविता,
स्थगित कर कवि ने रविवार की सुबह
बाज़ार के तमाम उत्पादों के बीच अपने प्रेम का साक्षात्कार किया
कई ब्रांडों में समाई उस औरत से लिपट कर
डेबिट कार्ड से चुका दिये
इश्क के खर्चे
21 comments:
:-)
वाह ……………यहाँ तो मेह्बूबा के बहुत ही सुन्दर रग बिखरे पडे हैं्।
कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
मैं जब आपका ब्लॉग पढता हूं तो सोचता हूं
इतने बिजी होने होने के बाद भी
ऐसी क्रिएटिविटी के लिए कहां से वक्त निकाल लेते हैं
जबरदस्त
:)
raveesh ji aaj subah aapki gaav, gotra aur gujjar wali report dekhi ... bahut achchi lagi.... plz ise bhi qusba me daliye............
वास्तविकता है ये आज- सब कुछ ब्रांड बनता जा रहा है, या बनाया जा रहा है - हमारा व्यक्तित्व भी..हम सब बाजार के मोहरे बनते जा रहे हैं , हमारी सामाजिक जिंदगी अब बाजारू होती जा रही है ..एक कविता याद आरही रही है ब्रांडस पे
"जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ........
तेरी ही आरजू तेरी ही जुस्तजू है ...."
ब्रांड अब भगवान है (या भगवान एक ब्रांड है?) - ...भारत ब्रांड, पकिस्तान ब्रांड, तालिबान ब्रांड, अमेरिका ब्रान्ड , पोप ब्रांड, आर एस एस ब्रांड, अमीरों का भगवान, घरीबों का भगवान, गाव का भगवान, शहर का भगवान, - ब्रांडेड भगवान!
उसका एंडोर्समेंट कौन करेगा?..किस एजेंसी को ये ठेका मिलेगा?
इस्लाम हर इन्सान की जरूरत है, किसी आदमी को इस्लाम दुश्मनी में सख्त देखकर यह न सोचना चाहिये कि उसके muslim होने की उम्मीद नहीं।-पूर्व बजरंग दल कार्यकर्त्ता अशोक कुमार
vaah bahut badhiya rachana ...
बढ़िया है!
mann gaye ravish ji bahut aacha.
Bahut khoob
वाह! कमाल का चित्रण किया है!
..रे बैन के चश्मे ने मेरे चेहरे को बना दिया
दमदार और दामदार
उसकी मुस्कान से न जाने क्यों बार बार
टपक रही थी
निंबूज़ की प्यास और उसके विज्ञापन से छिटकते
पानी के फव्वारे ..
...adbhut chitran....shandaar kavita.
खूबसूरत कविता
Bahut hi unnndaa hain~~~ Sirji
वाकई ,,, इतना लिखने पढ़ने और बहुत सारा क्रिएटिव करने के लिए सैल्यूट,,,,,,,
क्या शानदार इमेजरी है. बहुत ही सुन्दर कविता है. बहुत बधाई हो!! क्षमा करियेगा रवीश भाई, आपकी इस कविता का लिंक आपसे बिना पूछे मैंने अपने फ़ेसबुक पेज पर डाल दिया है!!
क्या शानदार इमेजरी है. बहुत ही सुन्दर कविता है. बहुत बधाई हो!! क्षमा करियेगा रवीश भाई, आपकी इस कविता का लिंक आपसे बिना पूछे मैंने अपने फ़ेसबुक पेज पर डाल दिया है!!
रवीश जी , पहली बार कस्बा पर आया हुं ..पहली बार में ही आपकी कृति 'ब्रांड महबूबा' ने कस्बा का फैन बना दिया..आपका तो पहले ही था..
Regards
Mukesh Sharma
मेरी मजबूरी है कि मैं विज्ञापन कि दुनिया के लिए लिखता हूँ जबकि इच्छा कवी बनने कि, इच्छा ही रह जाएगी. अच्छा लगा ये पढ़ कर, और कहाँ हम ब्रांड्स में प्यार डालते रहते हैं :)
brilliant :)
loved it!
brilliant :)
loved it!
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