मैं आ गया भोपाल से
भोपाल गया था। शहर को देखने का ज़्यादा वक्त तो नहीं मिला लेकिन जो दिखा ले आया हूं। हिन्दू समागम हो रहा है। मध्यप्रदेश एक फंसा हुआ राज्य लगा। लोग जागरूक हैं मगर प्रखर नहीं। हिन्दू समागम होने वाला है। संघ की तरफ से हिन्दू समरसता का ज्ञान दिया जाएगा। जल्दी ही आरएसएस को किसी महिला,किसी दलित और किसी मुस्लिम को भी प्रमुख बनाना चाहिए ताकि राष्ट्रीयता के उनके सिद्धांत का कोई समरसता वाला फ्रेमवर्क तैयार हो सके। इंग्लिश सीखाने वालों का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है तो स्टेशन पर कतार की जगह क्यू ने जगह बना ली है। वहीं अद्धा और पव्वा का हिन्दी मिल गया है। बच्चा पेग। नब्बे एमएल यानी एक पेग से थोड़ा कम। सैलून की जगह अब पार्लर जनशब्द है। हैरी खुद को स्टार के रूप में देखता है। यह एक बेहतर सामाजिक अभिव्यक्ति लगी है जहां एक आम नाई भी अपने काम में इतना सम्मान व्यक्त करता है और खुद को एक स्थानीय स्टार के रूप में पेश करता है। आप हैरी की तस्वीर देख सकते हैं। क्लासिक पार्लर की दुकान में एक भी शब्द हिन्दी का नहीं है। अंग्रेज़ी को देवनागरी में देखकर अच्छा लगा। हवा पंचर कहीं नहीं देखा था सो दिख गया। फ्रैश होने की उत्तम व्यवस्था भोपाल के कुछ होटलों की खूबी लगी। दूसरी जगहों में भी होगी लेकिन यह एक देसी मार्केंटिंग शैली है। बड़े बड़े फाइव स्टार या थ्री स्टार ऐसी सुविधा नहीं देते। आदमी गया और फ्रैश होकर पचास सौ देकर बाहर गया। छोटे-मोटे होटल इस ज़रूरत को बेहतर समझते हैं।
ऐसा नहीं कि इतना ही दिखा भोपाल। बहुत कुछ दिखा जो इन तस्वीरों में नहीं हैं।माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के उत्साही छात्रों से मिलकर अच्छा लगा। अच्छा लगा कि अभी भी हिन्दी के पत्रकार समाज को बदलने की चाहत रखते हैं और नौकरी करते वक्त इस चाहत के धूल में मिल जाने को लेकर चिंतित भी रहते हैं। ये लड़ाई चलती रहे। उम्मीद है उन्हें बेहतर ट्रेनिंग मिल रही होगी और छात्र अपनी पढ़ाई गंभीरता से करते होंगे। ये बात इसलिए कह रहा हूं कि भारत में पत्रकारिता की पढ़ाई का विकास नहीं हुआ है। पश्चिम और अमरीका में पत्रकारिता की पढ़ाई अकादमी का रूप ले चुकी है। हिन्दुस्तान में इसे सिर्फ रोज़गार प्राप्त करने का साधन माना जाता है। विकास संवाद के आमंत्रण पर भोपाल गया था। बहुत लोगों से मिलने का अनुभव अच्छा रहा। स्टेट्समैन के पत्रकार शिवकरण सिंह का शोध प्रस्ताव पढ़ कर बहुत मज़ा आया। काफी गहराई और समझ। टीवी के स्टंटबाज़ और स्टार पत्रकारों की तरह नहीं बल्कि शिवकरण ने ज़मीन पर जाकर मुद्दों को नए नज़र से समझने के बाद अपना शोध प्रस्ताव लिखा था। इस वजह से यात्रा सार्थक रही।
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19 comments:
कुछ और भी ऐसी दुकानें और उनके होर्डिंग छूट गए। भोपाल की ही हूँ इसलिए ये बात कह रही हूँ। मेरे मोबाइल में हैं वो तस्वीरें लेकिन, उसे कम्प्यूटर में अवतरित करने की सुविधा नहीं हैं। उनमें से एक है जूतों का डॉक्टर...
Bhopal kee jhalak acchee lagee .ab mera bhee dhyan barbas posters par jane laga hai..........:)
"आपका फोटो देखा था आज के पेपर में,अच्छा लगा, पर मध्य प्रदेश फँसा हुआ राज्य नहीं है वो एक सीधा-साधा राज्य है जो अपने में मस्त है। फोटो अच्छी लगी पर यहाँ भोपाल का ताल भी है शांत जो ना तो नदियों सा उच्श्रँखल है और ना ही सागर सा उज्झड़....."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
हा हा...इन पोस्टरों से काफी कुछ पता चलता है।
shahar ki acchi photo hai,photo k dwara bhopal k logon ka or sharar ka ek dilchasp nazariya dikhaya aapne ....
Bharat garrage- Delhi ke ird-gird likha milta "yahan tasallibakhsh repairing ki jati hai". Aapki paarkhi nazar ko Salaam. Main v Bhopal ho aaya hoon. Yahan anya bade ya imp. rajyon ki rajdhani ki tarah bhisharta(dangerouspana) nahi hai. Isi liye yahan mujghe achha laga.
Ravishji Mai aapka fan hoon, Aap wakai bahut achha likhte hain. Bhopal ke is tarakki ko dekhkar lagta hai angraji ka hindi rupantaran ho raha hai aur hum jaldi angreji ko hindi style me bolne lagenge. Bahut pahle main Bhopal gaya tha per aapki parkhi najar ne bana diya Bhopal Super.
Saklani
ye pic kafi achi lagi jhalkiyon me hi sahi m.p dekh liya.
thanks ravish ji
ye pic kafi achi lagi.jhalkiyon me hi sahi m.p k ache njare dekhne ko mile.
thanks ravish ji
आप धर्म समागम में भोपाल चले गए। यहां प्रणव दा के अंग्रेजी बजट को हिन्दी में लाइव दिखाने के नाम पर दिल्ली के भाईयों ने दमभर गंध मचाया। घूम-फिरकर पंडिजी को देखते या फिर सीएनए-आईबीएन पर राजदीप को। आज आपको बहुत मिस किया,मन किया कि पोस्ट लिख दूं- आप कहां चले गए रवीश? फिर सोचा चमचई हो जाएगी। सोचनेवाले को तो ये भी पढ़ना चमचई लगे लेकिन क्या करें? कभी-कभी हम टेलीविजन आलोचना करने की नीयत से नहीं सूचना और मनोरंजन के लिए देखने लग जाते हैं,एक दर्शक की हैसियत से और फिर भावुक जाते हैं। मौका मिलेगा तो देखिएगा क्या गंध मचाया है,नीचे लिंक दे रहा हूं,सब डीटेल में हैं।
मेरी बात बस समझ लीजिए उस बच्चे की तरह है जिसकी मां घर पर अकेले छोड़ जाती है और पड़ोस के बच्चे उस पर महाभारत रच डालते हैं। बच्चा लिपटकर सिर्फ सुबकता है-तुम नहीं थी मम्मी तो फलां-फलां ने बहुत मारा। आज उसी भाव में लिख रहा हूं। बाकी तर्क और दिमाग वाली बातें नीचे लिंक में-
http://taanabaana.blogspot.com/
कुल मिलाकर ठीक ठाक रही यात्रा
intresting! :)
बहुत रोचक..... आज पता चल रहा है कि होर्डिंग्स और पंफलेट शहर के मिजाज को भी दर्शाते हैं। पिछले क्रम में भी आपके द्वारा खिचा गया पिक्स देख चुका हूं। धन्यवाद, आपके इस पहल से अब होर्डिंग को दूसरे नज़रिये से देखा जाने लगा है।
सही कह रहे हैं कि संघ को किसी महिला, दलित और कि्सी मुस्लिम को प्रमुख बनाना चाहिए।
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बाकी आपके फोटो कैप्शन वाले मुद्दे पर कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि सभी एक से बढ़कर एक शानदार हैं, बस शराब के शौकीनों से मिली जानकारी के आधार पे यह कहना था कि अद्धी और पव्वा का हिंदी अभी भी नहीं मिला है, क्योंकि अद्धी अपनी जगह पर है और पव्वा अपनी जगह पर लेकिन दर-असल अय्ह नब्बे एमएल कहलाता है डेढ़ पैग। शौकीन बताते हैं कि आमतौर पर शराब कहीं भी मिलती है तो 60 एमएल की एक पैग, स्मॉल पैग बोले तो 30 एमएल। मतलब कि 90 एमएल का अर्थ हुआ डेढ़ पैग।
बाकी आपकी तस्वीरें देखकर तो अक्सर यही महसूस होता है कि ऐसा नजरिया उपरवाला अपन को काहे नई देता
;)
सही तस्वीरें ले आये हैं भारत की हृदय स्थलि से....
बहुत बढ़िया सैर भूपाल की! अपनी दिल्ली में ही अपने स्कूटर पर '७० के दशक में एक खास दिशा में जाते मैं अक्सर पढ़ा करता था 'PAINCHER' और सोचता था उसका मतलब क्या हो सकता है,,,रहस्योदघाटन तब हुआ जब विपरीत दिशा में आते हुए एक दिन पढ़ा "यहाँ पैंचर लगाये जाते हैं" !!!
शराब के बारे में कभी किसी से सुना था कि एक ७५० एम् एल वाली बोतल में १३ पेग बनते हैं (जिससे एक पेग ६० एम् एल के लगभग होता है, जिसका सत्यापन त्रिपाठी जी ने भी किया)...अँगरेज़ कहते हैं कि आदमी यदि २ पेग रोज पिए तो हार्ट ऐटैक नहीं होगा,,,किन्तु देसी डॉक्टर बोलते हैं कि यह सही है, किन्तु हिन्दुस्तानी को गिनती केवल दो तक ही आती है: जिस कारण चौथा पीते हुए भी कहते हैं "दूसरा ही है" (और 'चौथे' की तैय्यारी कर लेते हैं}!!!
बहुत ख़ूब!
अभी इतना ऐनालायसिस करने की क्षमता विकसित नहीं आयी है अब इस पोस्ट को देखकर कुछ प्रयास करुंगा। मैं भी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय का छात्र हूं। आप से नहीं मिल पाया इसका दुःख हुआ। उम्मीद है आप फिर आयेंगे।
Expressive picture... aisi bolti hui tasveere ravish ji ke blog ka ek abhinna hissa.. which are throughly hilarious yet meaningful..
Ravish ji aap Makhanlal Chaturvedi gae... sun ke acha laga... mera college raha hai.. wahi ki 2007-09 batch ki pass-out hun.. iss saal padh rahi hoti to shayad aap se mulakat hoti.. nywazz.. journalist ban gae hun aur ek acha journalist banne ki jaddo-zehad jari.. hai.. aapse kabhi na kabhi mulakat zarur hogi..
Regards
Arpita Sarkar ..
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