अमिताभ बच्चन पर्दे के बाहर भी कलाकार का ही जीवन जीते हैं। पैसा दो और कुछ भी करा लो। कांग्रेस में राजीव गांधी की डुग्गी बजाने के बाद छोटे भाई अमर सिंह के साथ सैफई तक जाकर नाच आए। मुलायम सरकार ने पैसे दिये तो गाने लगे यूपी में हैं दम क्योंकि जुर्म यहां है कम। सारी दुनिया हंसने लगी। जिस प्रदेश का चप्पा चप्पा अपराध में डूब गया हो,वहां फिर से पैदा होने की ख्वाहिश का महानायक पर्दे पर एलान करता है। समाजवादी पार्टी को लगा कि उनकी पार्टी और सरकार को ब्रांड अबेंसडर मिल गया।
पूरे चुनाव प्रचार में इस ब्रांड अंबेसडर का टायर पंचर कर दिया गया। अब अमिताभ बच्चन पहुंचे हैं नरेंद्र मोदी के पास। इस एलान के साथ कि कोई भी पैसा दे दे और उनसे कुछ भी बुलवा ले। शायद यही वो कलाकार है जिससे सिगरेट कंपनियां पैसे देकर बुलवा सकती हैं कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। अमिताभ बोल भी देंगे कि भई पैसे मिले हैं,हम कलाकार हैं और इस विज्ञापन को भी किरदार समझ कर कर दिया है। अमिताभ आज की मीडिया के संकट का प्रतीक है। अपनी विश्वसनीयता का व्यापार करने का प्रतीक। वैसे इनकी विश्वसनीयता तो काफी समय से सवालों के घेरे में हैं।
अब नरेंद्र मोदी को झांसा देने पहुंचे हैं। गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग के ब्रांड अंबेसडर बनकर। जिस मोदी को देश के तमाम बड़े उद्योगपति प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे,उस मोदी के बगल में बैठ कर वो पा के टैक्स फ्री होने का मामूली ख्वाब देख रहे थे। ख़बरों के मुताबिक यहीं पर अमिताभ ने नरेंद्र मोदी से ब्रांड अंबेसडर बनने की पेशकश की थी। आज उनका सपना पूरा हो गया।
वैसे भी नरेंद्र मोदी राजनीति में परित्याग की वस्तु तो हैं नहीं। वो एक दल में हैं,जिसकी कई राज्यों में सरकार है। लेकिन गुजरात दंगों के संदर्भ में मोदी राजनीतिक रूप से ही देखे जायेंगे। यह दलील नहीं चलेगी कि वे मोदी का राजनीतिक विरोध करते हैं लेकिन सरकार से परहेज़ भी नहीं करते। अगर ऐसा है तो कम से कम यही कहें कि सरकार तो गुजरात की जनता की है। उसके किसी भी फैसले का सम्मान तो किया ही जाना चाहिए। पर अमिताभ जी उस सम्मान का मतलब यह नहीं कि बिना अपनी राजनीति साफ किये नरेंद्र मोदी के साथ हो लेना चाहिए। राजनीति साफ करने की उम्मीद इसलिए है क्योंकि पिछले हफ्ते तक अमिताभ समाजवादी पार्टी का गुणगान कर रहे थे,उससे पहले कांग्रेस का कर चुके हैं और अब गुजरात के पर्यटन विभाग का करेंगे। अमिताभ की एक दलील हो सकती है कि वो गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ये सब कर रहे हैं। पर ऐसा क्यों है कि पर्दे पर अभिनय के नये प्रतिमान कायम करते रहने वाले अमिताभ राजनीति के बारे में साफ राय नहीं रख पाते। गुजरात के लिए ज़रूर कुछ करना चाहिए लेकिन वो ब्रांड अंबेसडर बन कर ही क्यों? इससे तो किसी राज्य की सेवा नहीं होती। ब्रांड अंबेसडर बिल्कुल व्यावसायिक गठबंधन होता है।
राजनीति में अमिताभ छोटे भाई अमर सिंह के बड़े भाई हैं। जो पिछले हफ्ते ही मुलायमवादी से समाजवादी हुए हैं और लोकमंच बनाकर यूपी में घूमने निकले हैं। क्या अमिताभ छोटे भाई के नए मंच के भी ब्रांड अंबेसडर होने वाले हैं? अगर इसमें कोई दिक्कत नहीं तो क्या मोदी यूपी सरकार के ब्रांड अंबासडर बन सकते हैं? क्या क्रांस ब्रांडिंग हो सकती है? मेरा तुम करो और तुम्हारा मैं करता हूं। छोटे भाई के परिवार का यह बड़ा भाई नरेंद्र मोदी का ब्रांड अंबेसडर बन कर लोकमंच का प्रचार करेगा या नहीं,कहना मुश्किल है। अमिताभ को बताना चाहिए कि वे नरेंद्र दामोदर मोदी की राजनीति का समर्थन करते हैं या नहीं। गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका के बारे में साफ करना चाहिए। वो पर्यटन का बहाना न बनाए। अमिताभ के ब्रांड दूत बनने से पहले गुजरात कोई भूखा मरने वाला राज्य नहीं हैं। देश का नंबर वन राज्य है। यह मानना मुश्किल है अमिताभ ने सच्चे सेवा भाव से किया है। समाजवादी पार्टी में दरकिनार कर दिये जाने के बाद ही अमर सिंह को मायावती की पीड़ा समझ आ रही है। उससे पहले वो मायावती के बारे में कैसे बात करते थे,लोगों को याद होगा।
अमिताभ अक्सर कहते हैं कि वे राजनीति से दूर हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह जैसे घाघ राजनेताओं की संगत में खूब जम कर रहे। अपनी पत्नी जया बच्चन को राज्य सभा में भेजा। अब जया भी अमर सिंह के साथ इस्तीफा नहीं दे रही हैं। दरअसल वे कभी सियासत की संगत से दूर ही नहीं रहे। कभी किसान बन कर ज़मीन लेने चले जाने का आरोप लगता है तो कभी ब्रांड दूत बन कर एक प्रदेश की जनता का सेवक होने का भाव जगाते हैं। अमिताभ इसीलिए एक मामूली कलाकार हैं। पर्दे पर मिली शोहरत की हर कीमत वसूल लेना चाहते होंगे। पर्दे पर पैसे की ताकत से लड़ने वाले किरदारों में ढल कर यह कलाकार महानायक बना लेकिन असली ज़िंदगी में पैसे की ताकत के आगे नतमस्तक होकर महानालायक लगता है।
126 comments:
KYA BAAT KAHI HAI, LAGTA HAI DIL KI BAAT KEHDI... SHUKRIYA
सही है । इसे कहते हैं अवसरवादिता । अमिताभ पर्दे के बाहर निराश ही किया है ।
शायद एक टाइपिंग की गलती से हो गया है यह - अपनी पत्नी जया प्रदा ...
बढ़िया रवीशजी, एक बार पंकज श्रीवास्तव ने भी अपने पोस्ट में महानायक को बढ़िया तरीके धोया था। यूं, अमिताभ की आलोचना से करोड़ों लोग आस्तीन चढ़ा सकते हैं जिनकी सोच और समझ अमिताभ की भीड़ खिचाऊ एक्टिंग तक सीमित है। ये वहीं अमिताभ हैं जो अपने बेटे की शादी में पेड़ की परिक्रमा करते हैं और मराठा मानूसों से हिंदी के नाम पर माफी भी मांग लेते हैं। कभी-2 वे यूपी और महाराष्ट्र में फर्जी तरीके से जमीन भी हड़प लेते हैं और अपने मकान को नीलामी से बचाने के लिए नेताओं के साथ मिलकर तमाम तरह के हथकंडे अपना लेते हैं। मौसी... लड़का तो ठीक है के अंदाज में.....! वे कभी-2 इतने शरीफ हो जाते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में अपने विरोधियों को बेटे की शादी का न्योंता तो नहीं शादी के बाद मिठाई जरुर भेज देते हैं। अब छोड़िये उन पुरानी बातों को जब उन्हे लगा था कि बोफोर्स के बाद नेहरु राजपरिवार का पतन हो गया-और उन्होंने खट से कन्नी काट ली थी! उन्हें पता होता कि कांग्रेस के दिन फिर से बहुरेंगे तो वो मजबूत खूटां क्योंकर छोड़ते भला? गलत ज्योतिषी ने राय दे दी होगी। अब वेचारे अमर सिंह की हालत देखकर संघी होने चले हैं तो इसमें उनका क्या दोष! ये व्यावहारिकता है न! मुझे याद आता है एक बार आईआईएमसी में गौतम कौल ने जब हिंदुस्तान के मौजूदा बड़े नायकों में पहला स्थान कमल हासन को दिया था-तो हमारी मंदबुद्धि को उस वक्त ये बात नहीं समझ में आई। अब समझ में आ रहा है।
well said, i am higly impress with your blog.
well said, i am higly impress with your blog.
Eesame bahut frustration nazar aa raha hai. Mainly Modi ke saath Amitabh ke jaane se. I hate Modi so much that I will hate everybody who will take to him :)
Ravish Ji
Its not only Amitabh, its a case with all of today's so called star. They are ready to sell their concious at petty prices. Keep it up
Regards
Gagan Vibhu
हर आदमी में अच्छा और बुरा पहलू होता है कोई भी परफेक्ट नहीं होता है इसलिये उनके बारे ज्यादा बहस करना ठीक नहीं है। रही बात उनके बारे में आई बुरी खबरों की तो क्या नेता कम हो गये है जो अमिताभ के पीछे पड़ गये है। रहीं बात मीडिया की जो अमिताभ को ज्ञान दे रहा तो कह दूं कि रविश जी आप वहीं गुण तब तब गायेंगे जब जब एनडीटीवी की सोच उससे मेल खायेगी वरना चैनल तो वहीं सोच रखता है लेकिन कर्मचारियों की सोच अक्सर बदल जाती है। क्यों गलत कह रहा हूं। इसलिये आज की दुनिया में सभी अवसर वादी ही है चाहे वो अमिताभ तो आप हो या फिर मै या कोई ओर।
Absolutely True... therez a shrewd Businessman behind that suave persona.... Harsh but in fact a sad fact..
आपसे इतनी घटिया बातें सुनने की उम्मीद नहीं थी। कम से कम यह सोच कर ही उनका सम्मान रखते कि वे उम्र में आपसे काफी बुजुर्ग हैं.. उन्हें महानालायक कहना बहुत ही शर्मनाक है। मैं आपसे मांग करता हूं कि इस शब्द को तत्काल हटाएं। मैं आपको एक आदर्श की तरह देखता था लेकिन आपने तो बहुत ही तुच्छता और धृष्टता का प्रदर्शन किया है। शायद अगली बार आपको टीवी पर देखकर अच्छा नहीं लगेगा और हो सकता है कि मैं चैनल बदल दूं। मैं आपसे दोबारा मांग करता हूं कि इस शब्द को तत्काल हटाएं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आपको किसी के खिलाफ असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है।
हमारी मातृबोली भोजपूरी में एक कहावत है "सुपवा बोले त बोले चलनिओ बोले जेके बहत्तर छेद"। पोलिटकल करेक्टनेस पर उपदेशक मुद्रा में दी गई एकतरफा टिप्पणियों को पढ़कर मुझे वही सूप-चलनी वाली कहावत याद आती है।
अमिताभ ने लोकसभा से इस्तिफा देते वक्त राजनीति को "मलकुण्ड" कहा था। मीडिया की हरकतों की वजह से एक लम्बे समय तक उन्होंने मीडिया को अपने सेट पर आने पर पाबंदी लगा दी थी। मुझे लगता है कि उन्हें राजनीति और मीडिया के बारे में पर्याप्त समझ है। लेकिन वो एक दुनियादार आदमी की तरह निजी हित-अहित के हिसाब से जीवन जी रहे हैं। रविश कुमार जी आप खुद अपनी पोस्ट में आपने बीजेपी की राजनीति को अपरोक्ष रूप से स्वीकृति ही दी है। आप बीजेपी की फाँसीवादी राजनीति को कड़े शब्दों में खारिज नहीं कर पाए हैं। फिर अमिताभ तो एक इंटरटेनर है न कि आपकी तरह रिपोर्टर। सिर्फ इसलिए उनकी आलोचना,वो इतने छिछले ढंग से अनुचित है। वैसे,अमिताभ एनडीटीवी की तरह काँग्रेस ज्वाइन करले तो क्या उनकी लाइन ठीक हो जाएगी !!
आपका यह भी मानना है कि अमिताभ एक मामूली कलाकार है !! खैर, अमिताभ अभिनय के इतर मामलों में एक मामूली व्यक्ति हो सकता है लेकिन कलाकार वो कैसा है इसे बताने की जरूरत नहीं है।
@ सुशान्त जी
आपकी व्यावहारिक बुद्धियुक्त टिप्पणी भी मजेदार है। बेहतर होता कि उसमें तथ्यों और विवेक का भी प्रयोग कर लिया जाता। अमिताभ आठवीं लोकसभा में हेमवन्ती नंदन बहुगुणा को बुरी तरह से हरा कर सांसद बने थे। आपको ज्ञात हो कि उस लोकसभा में कांग्रेस से रिकार्ड सीटें जीती थीं। अमिताभ सरकार के पांच साल पूरे होने से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। इसके बावजूद आपको पता होगा कि नौवीं लोकसभा में कांग्रेस सबसे अधिक सीटें जीत कर आई थी। और दसवीं लोकसभा में तो पीवी नरसिम्हा राव पांच साल तक प्रधानमंत्री रहे थे। अमिताभ के इस्तीफे के बाद करीब दस साल तक कांग्रेस के देश की सबसे बड़ी ताकतवर पार्टी थी। लेकिन उन्होंने कभी भी राजनीति में आने की कोशिश नहीं की। खैर, जब अमिताभ ने दोबारा राजनीतिक सक्रियता दिखाई तो उन्होंने सपा जैसा दल चुना। आप जैसा सुधी पत्रकार बता सकता है कि राजनीतिक महत्वाँक्षा रखने वाला व्यक्ति भाजपा या काँग्रेस ज्वाइन करेगा या एक क्षेत्रीय दल !!
सुशान्त जी आपको यह भी याद दिला दूँ कि जब अमिताभ ने पहला चुनाव लड़ा था तो इन्द्रा गाँधी के मृत्यु के बाद राजीव गाँधी जैसा नवसिखुआ उनका नेता था। उस बुरे वक्त में अमिताभ ने मित्रता के खातिर हेमवन्ती नंदन जैसे राजनीतिक पहाड़ के सामने खड़े हो कर चुनाव लड़ा था। अमिताभ ने दोबारा भी जो किया वो दिवालिया होने के कगार पर होने के दौर में मददगार मित्र अमर सिंह के लिए किया। महाभारतकार की माने तो कर्ण इसीलिए महान था कि वो ताउम्र मित्र धर्म के प्रति सौ फीसद सच्चा था। शेष तो नारायण भी छलिया थे !!
आपने अमिताभ के अभिनय के बारे में भी कुछ उदगार व्यक्त किए हैं। क्या बेहतर होता कि आप गौतम कौल के बजाय कमल हसन के ही अमिताभ के विचार जान लेते। यदि आपको निर्देशकों की ही राय चाहिए थी तो अमिताभ की आवाज के बारे में सत्यजीत रे ही की राय जान लेते। ऋषिकेश मुखर्जी की ही अमिताभ के बारे में राय जान लेते। यश चोपड़ा की ही राय जान लेते। त्रुफोअ की राय जान लेते।
रविश जी,
मुझे लगता था कि आप सुलझे हुए इंसान हैं, जो कि कभी-कभी दुनियावी उलझनों, उसके तिकड़म ko देखकर भन्ना जाता है, कुछ रास्ता नहीं देखकर ऐसे तंज़ में बातें करता है, पर इस पोस्ट को पढ़कर लगा कि आपकी मूल प्रवृति frustation की है. हुजूर अमिताभ को महानालायक कहने से पहले अपने ज़ेहन में झांकर देखिये, आप खुद कितनी एक्टिंग करते हैं, अपनी नौकरी बचने के लिए. कभी किसी दौर में आप samajvadi वगैरा रहें hon तो रहे हों, आज इस लबादे को ओढ़कर आप, अपनी नौकरी बचा रहे हैं. फिर भी अपनी किस्मत देखिये निजाम बदल जाते ही आप का सिंघासन डोल उठा है . अमिताभ को नंबर देने लायक कुव्वत आपमें अभी नहीं है, अपने number का ख्याल करिए, अप्परिसल करीब है. और ऐसी ही आपकी दिशा रही तो वो भी ढंग से नहीं होगा, जिस हिसाब से आप पब्लिक को गुस्सा दिला रहे हैं. आपकी टिपण्णी हो सकता है कि सही हो, इस पर बहस कि जा सकती है, पर आपने जो ये जुमला इस्तेमाल किया है अमिताभ के लिए , उससे आप मायावती, अमर सिंह जैसे मुन्ह्फाटों कि ज़मात में शामिल हो गए हैं. जाइये अमर सिंह से गले मिल आइये, आज से आप दोनों सगे वाले हैं. आज से आपके ब्लॉग पर नहीं आऊँगा, वादा रहा. शर्म हो तो लिखना छोड़ दीजियेगा.
रवीश जी,
शब्द अपने आप में एक विचार को व्यक्त करते हैं, मत मतांतर को अभिव्यक्त करते हैं, राग द्वेष और स्नेह को दर्शाते हैं। इसलिये शब्दों का सोच समझ कर ही इस्तेमाल करना चाहिये।
यहां आपने अमिताभ जी के लिये जो शब्द इस्तेमाल किया है वह अनुचित लग रहा है।
जहां तक उनको कभी यहां तो कभी फलां प्रदेश का ब्राण्ड अम्बेसडर बनने की बात है तो यह तो उस सिस्टम की बात है जो गाहे बगाहे इस राजनीतिक प्रणाली में बस बन सा गया है और अमिताभ उसी प्रणाली के भीतर जी रहे हैं। एक गृहस्थ औऱ पारिवारिक इंसान होने के कारण उन पर भी कई तरह की जिम्मेदारियां हैं और वह उन सबसे दो चार हो रहे हैं।
हर क्षेत्र की तरह लोगों के संबंधों में भी बदलाव आते जाते रहते हैं, कभी प्रगाढ होते हैं कभी दुराव को ओढे रहते हैं। एक सामान्य परिवार मे ही देख लिजिये कि बचपन से लेकर बुढापे तक संबंध कैसे स्नेह, दुराव, द्वेष आदि के अनुरूप बदलते रहते हैं कभी संपत्ति के नाम पर, कभी विवाह के नाम पर....खैर, यह उनकी बदकिस्मती ही कही जाएगी कि हम लोगों ने ही उनका मान न रखा जिस इलाके से हिंदी पट्टी से वह ताल्लुक रखते हैं। फिर मुंबई वालो से क्या उम्मीद रखना जहां पर कि मौका ताडा जाता है कि कब यह उत्तर भारतीय कुछ कहे और कब उस पर पिल पडा जाय।
MNS जिसने की सोच समझ कर अमिताभ को टार्गेट किया सिर्फ इसलिये कि जया जी ने अपने हिंदी वाला होने पर गर्व जताया था...... तो उससे बडी विडंबना क्या होगी कि हिंदी प्रदेशों के लोग ही उन्हे MNS की तरह ट्रीट करें।
बाकी तो आपके विचार हैं, आप का ब्लॉग है आप लिखने के लिये स्वतंत्र हैं। लेकिन थोडी संजीदगी रखें यही मेरा विनम्र अनुरोध है।
अपनी पत्नी जया प्रदा
-इसे ठीक कर लें..जया बच्चन से!!
विविधता और (काल के साथ) परिवर्तन प्रकृति का नियम है...
"हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है" जो सत्य, शिव और सत्ययुग के साथ जुडी है...किन्तु और असंख्य अन्य नदियाँ भी हैं इसी देश में जो सब भी जीवनदायी जल लिए बह रही हैं - भले ही वे गंगा प्रेमी को तुच्छ नज़र आयें (और हो सकता है कि वो भी आज खुश हो रही हो कि चलो अब "इस फटीचर काल में" तो गंगा भी मैली हो गयी :)...
और जानकारों के अनुसार हम सब रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर 'उपर वाले' के हाथ में हैं :) ऐसे ही एक नाटक में करूणानिधि आदि 'दक्षिण भारती' नेता आदि ने तो राम को भी (त्रेता का) महानालायक व्यक्ति करार कर दिया :) इसी विषय पर पहले भी कई कठपुतलियों ने भगवान को भी गाली दी तो कहा जाता है कि "क्या उनका कुछ घट गया"? :)
"पसंद अपनी अपनी/ ख्याल अपना अपना" असत्य का आधार है...ज्ञानी कह गए कि यदि अनंत, ईश्वर, को जानना हो तो पहले उनके इशारे प्रकृति में, दसो दिशाओं में, पढने होंगे और फिर कुछ निष्कर्ष निकालें तो वो ही जीवन का सार होगा क्यूंकि ब्रह्मनाद के पहले मौन आता है और इस ब्रह्माण्ड/ पृथ्वी का कारक, नादबिन्दू, वास्तव में 'मुनि' ही है...
आपसे इतनी ही घटिया सोच की उम्मीद थी। बात इसकी नहीं है कि मोदी कैसा आदमी है बात इसकी है कि गुजरात देश में तेजी से विकास करने वाले राज्यों में है (जो रवीश को पचेगा नहीं वाम पंथी ठहरा)। गुजरात नें एसे लोगों को जो ठेंगा दिखाया है उससे इन लोगों को खंबा नोचने का मौका मिल जाता है। अमित जी गुजरात में टूरिज्म को बढावा देना चाहते हैं तो गलत है रवीश के कुनबे में खडे हो कर लाल सलाम करें तो बढिया।
Sir Ji pahle bar aap ke kisi lekh pe, aap ke mat se zadatar log sahmat nai hai aap kya sochte hain reply to karyae itne sare logo ke sawalo ka.
अमिताभ बच्चन की मै भी बहुत बड़ी फैन हूँ ....और वे एक उम्दा कलाकार हैं इससे आप भी इनकार नही कर सकते ,रही बात उनके अभिनय की तो उन्हें अपनी आचार संहिता बनानी ही चाहिए ........नरेन्द्र मोदी के साथ उनका क्या समझौता हुआ है यह तो मुझे नही पता पर सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ यदि हम संस्कृति कर्मी नही आयेंगे तो कौन आएगा ?
upbhoktawadi samaj me isse behtar ki apksha nahi ki ja sakti.
आपको भी कहते शर्म नहीं आयी? कांग्रेस से 'पुरस्कार' पाने के लिये क्या-क्या नहीं करते?
ब्लाग में ही ऐसा और एकतरफा ज्ञान मिल सकता है .भ्रम टूटा, वैसे मोदी के बारे में मीडिया रपट पर अमिताभ बच्चन ने भी कुछ कहा था .
रवीश भाई, पोस्ट के बारे में तो क्या कहूं... मैं सहमत भी हूं और असहमत भी, अमिताभ भी पैसे के लिए ही जीता है...भाई जितना बड़ा आदमी उतने पैसे की जरूरत..सिद्धांत भी है लोमड़ी की पूछ मोटी होती है तो इज्ज़त अपनी ही ढकती है। लेकिन कमेंटबाज़ों ने आपकी खाल नोच ली..लकड़बग्घों की तरह हमला बोला है...गोले में घिर गए हो निकल लो...हा हा हा..गुरू भारी पड़ गई ये पोस्ट आपको। क्या विचार है...कोई मुकदमा ना ठोक दे हटा लो भैया..नहीं तो इतने बड़े ब्रांड की मानहानि की रकम भी ना चुकाई जाएगी।
kitna sahi kaha hai aapne..ek mukukhote pe dusra mukhota..na jaane kitne chehre hai in logo ke...ye kahana hum kisi se nhi jude hai..lekin phir bhi har kisi se jude rahna....ye rasta ikhtiyar kiya hai inhone...ise kahte hai moke pe choka maarna..
kitna sahi kaha hai aapne..ek mukukhote pe dusra mukhota..na jaane kitne chehre hai in logo ke...ye kahana hum kisi se nhi jude hai..lekin phir bhi har kisi se jude rahna....ye rasta ikhtiyar kiya hai inhone...ise kahte hai moke pe choka maarna..
अतिताभ महानायक हैं या महानालायक, इस बहस में मैं नहीं पड़ती, बस इतना कहना है कि हम पर्दे पर दिखने वाले लोगों को कैसे नायक मान लेते हैं? वे कैसे हमारे आदर्श बन जाते हैं? जनता ही उन्हें सर माथे पर बिठाती है तभी विज्ञापन कम्पनियां उन्हें कारोड़ों में खरीदती है। अभिनेता हमारा मनोरंजन करते हैं, लेकिन हमारे आदर्श तो वास्तविक लोग ही होंगे न। जिनका चरित्र हर फिल्म में नया हो, उनके मूल चरित्र का किसी को पता नही हो, वे कैसे आदर्श हैं?
@ रंगनाथजी, माफ कीजिएगा हमने अमिताभ के बारे में जो राय व्यक्त की थी उसमें तथ्यों और विवेक का भरपूर उपयोग किया था। हमारी पीढ़ी को ये बात बचपन से ज्ञात है कि सन् 84 के चुनाव में कांग्रेस रिकार्ड सीटों से जीतकर आई थी। जहांतक बहुगुणा को बुरी तरह हराने की बात है तो उस सहानूभूति लहर में बड़े-बड़े पहाड़ ध्वस्त हो गए थे। वाजपेयी भी नहीं बचे। अब ये शोध का विषय है कि इंदिरा गांधी की हत्या नहीं हुई होती तो अमिताभ जीत पाते या नहीं। दूसरी बात ये कि उन्होंने इलाहाबाद से चुनाव लड़कर राजीव गांधी जैसे नौसिखुए नेता पर एहसान किया था ये कैसे कहा जा सकता है ? क्या पूरे देश में अमिताभ की वजह से कांग्रेस जीती थी ? अमिताभ बच्चन का जो ‘वर्तमान’ सामने आ रहा है उससे तो यहीं पता चलता है कि वे उस आसान सहानुभूति भरे माहौल में राजीव गांधी की नजदीकी पाने के लिए कुछ भी कर सकते थे। ये भी मत कहिए की वे बचपन के दोस्त थे, अमिताभ जैसे लोगों के लिए बचपन का दोस्त या दोस्ती जैसी चीज बड़ा सबजेक्टिव मामला है। अगर ऐसा था तो 87 में संसद से भाग क्यो खड़े हुए जब राजीव गांधी अपनी जिंदगी के सबसे कठिन राजनीतिक आरोप से घिरे हुए थे ? फिर ये मत भूलिए ये वो दौर था जब अमिताभ फिल्मों में पिटने लगे थे। सेटेलाईट टीवी का दौर भी नहीं था कि कुछ अतिरिक्त कमाई कर लिया जाए। राजीव गांधी जब बोफोर्स में घिरे और उनकी लोकप्रियता कम होने लगी तो अमिताभ बच्चन ने उनका साथ छोड़ दिया। ये तकरीबन वहीं वक्त था जब वी पी सिंह ने कांग्रेस छोड़ी थी, अमिताभ ने भी राजीव को टाटा कर दिया। ( उससे ठीक पहले बतौर वित्त मंत्री वीपी सिंह अमिताभ और अंबानी दोनों के घरों पर टैक्स चोरी के मामले में छापे मरवा चुके थे जिस जुर्म में राजीव ने वीपी सिंह को हटा दिया था-अमिताभ ये भी भूल गए। खैर!) अमिताभ नहीं चाहते थे कि उनकी अपनी घटती लोकप्रियता के दौर में उन्हे एक बोफोर्स कांड में घिरे हुए नेता के साथ देखा जाए। तो ये थी अमिताभ की दोस्ती...! इससे राजीव गांधी बहुत दुखी हुए थे और नेहरु परिवार उस चीज को आज तक नहीं भूल पाया है। ये कहना कि अमिताभ बड़े संत थे और कांग्रेस की चरम सत्ता के दौर में उन्होंने कांग्रेस किनारा कर लिया था, गलत है। अमिताभ ने अपनी साख बचाने के लिए ऐसा किया था, उन्हें शायद ये लगा कि उनकी साख नेहरु राजपरिवार की साख से कई गुना ज्यादा है!
उसके बाद की कहनी तो इतिहास है। राजीव गांधी की 1991 में हत्या कर दी गई और हमने अमिताभ की आखिरी तस्वीर उनके अंतिम संस्कार में देखी थी। जहां तक आपका कहना है कि उसके बाद नरसिंह राव पीएम रहे और कांग्रेस उसके बाद भी सबसे बड़ी पार्टी रही तो ये बाद दुनिया जानती है कि नरसिंह राव और नेहरु परिवार में ‘बहुत’ दूरी थी। नरसिंह राव ने नेहरु राजपरिवार को अप्रसांगिक करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। और फिर नरसिंह राव जैसा घाघ नेता अमिताभ को क्यों भाव देने लगा ? और फिर जब कांग्रेस सत्ता में लौटती है या उससे पहले ही 1998 में ही- तो पार्टी में सोनिया गांधी बतौर अध्यक्ष वापस आ चुकी थी। फिर तो वैसे भी अमिताभ की दाल वहां नहीं गलनी थी।
रही बात बीजेपी में उनके आने की तो तब तक उनके फिल्मी विरोधियों को बीजेपी ने बड़े पैमाने पर ‘हायर’ कर लिया था। मसलन, शत्रुघ्न सिंहा, विनोद खन्ना और कई दूसरे सितारे। भले ही ये अभिनेता उतने भीड़खिचाऊं न हो लेकिन फिल्म उद्योग की खेमाबंदी ने राजनीति से तबतक सुर मिला लिया था और बीजेपी में आना उतना आसान नहीं था। शायद अमिताभ भी सोच रहे थे कि कुछ दिन और सेक्यूलर रह लिया जाए ! या फिर किसी ज्योतिषी ने राय दे दी कि अभी बीजेपी का सत्ता में आने की संभावना नहीं है ! तब बताईये कि उनके सामने सिवाय अमर सिंह जैसे लोगों से दोस्ती करने के क्या बचा था ? उनका मकान नीलाम हो रहा था, अमर सिंह ने बचाया, वो अमर सिंह के साथ हैं। आपकी पंक्तियों से लगता है कि उन्होंने अमर सिंह की दोस्ती कबूल कर अमर सिंह जैसे ‘इंसान’ पर मानो कोई उपकार कर दिया!
हां जहांतक फिल्मों में अभिनय की बात है तो ये एक बड़े बहस का मामला है कि अमिताभ बड़ा या कमल हासन। फिल्मों का बड़ा ज्ञाता नहीं हूं लेकिन मैंन उनके अभिनय कौशल का विश्लेषण तो किया ही नहीं था। महज गौतम कौल को उद्धृत किया था जिसमें उन्होंने कई फिल्म निर्माण की कई विधाओं और मानवीय गुणों के आधार को मानक माना था। बहरहाल ये एक अगले बहस का आधार जरुर है।
ये वो मिडिल क्लास समाज है जो पैसों की गंध से नहाया हुआ है... इसे सच्चाई नहीं पचती रवीश सर... ये वरेन वफेट और गेट्स के अच्छे कामों के हिमायती नहीं हैं... ये देश छालावा में जीता रहा है... और रहेगा... अगर आप इसे सच्चाई की तस्वीरों से रूबरू कराएंगे... तो ये लोग इसी तरह दहारेंगे... कोई बताएगा... इस महानायकी की एक भी ऐसा काम... जो समाज की भलाई के लिए हो... हां समाज के नाम पर इन्होंने खूब मलाई काटी है... ये आदमी पूरी तरह से स्वार्थ में डूबा वो मछली है जो सिर्फ शिकार करना जानता है..
ये वो मिडिल क्लास समाज है जो पैसों की गंध से नहाया हुआ है... इसे सच्चाई नहीं पचती रवीश सर... ये वरेन वफेट और गेट्स के अच्छे कामों के हिमायती नहीं हैं... ये देश छालावा में जीता रहा है... और रहेगा... अगर आप इसे सच्चाई की तस्वीरों से रूबरू कराएंगे... तो ये लोग इसी तरह दहारेंगे... कोई बताएगा... इस महानायकी की एक भी ऐसा काम... जो समाज की भलाई के लिए हो... हां समाज के नाम पर इन्होंने खूब मलाई काटी है... ये आदमी पूरी तरह से स्वार्थ में डूबा वो मछली है जो सिर्फ शिकार करना जानता है..
'पत्रकारों' की यह खासियत है की वो किसी को भी गरीआ सकते हैं ! ओशो का कहा - कहीं पढ़ रहा था - 'राजनेता वैसे मुर्ख हैं - जिनके पास शक्ति हैं और पत्रकार शक्तिविहीन मुर्ख हैं ! '
रविश भाई- क्या खूब ठोकते हो. बहुत पहले एक समीक्षा पढ़ी थी अमिताभ के बारे में- 'अमिताभ का "अ" '. बहुत कुछ लिखा गया था लेकिन जब से मैं अमिताभ को देखता आया हूँ वो टी वी पर जयादा दिखे हैं. हाँ सिनेमा पर भी दिखे लेकिन एक महानयक की भूमिका में ही. आज आपका ब्लॉग पढ़ा..मन कर गया की मैं आपके लिए कुछ कमेन्ट करूं. वैसे अमिताभ राजनीति से तो बहुत पहले ही सन्यास ले चुके हैं लेकिन कभी भी वो राजनीति से अछूते नहीं रहे. कभी भाई अमर के साथ , कभी जया जी को राज्य सभा भेज कर. अब मोदी जी के साथ गए हैं, मुझे तो लगता है की अब वो कृष्ण जी के उद्धव बन गए हैं. भाई अमर का रास्ता clear नहीं है और वो रास्तो की खोज में निकल चुके हैं. हो सकता है की BJP में ही बात बन जाए.--फिर लिखूंगा आपके साथ..शुभ दिन - सुनील 'तनहा'
अमिताभ बेशक प्रतिभाशाली कलाकार हैं लेकिन महानायक, सदी के नायक जैसे तमगे मीडिया खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया के दौर में ही दिए गए. ऐसे daur men jab मीडिया किसी भी बेशर्मी तक जा सकता है. आपने बहुत सही ही महानालायक तमगे का इस्तेमाल किया है. वैसे किरदारों के संघर्ष में भी वो आखिरकार फासीवादी ही होता है जो समाज के सामूहिक संघर्ष का हिस्स्सा कभी नहीं होता. फिर यह भी सच है कि अछे किरदार करते hue भी admee भीतर बुरा ही बना रह सकता है. बेहतर होने के लिए, सेक्युलर होने के लिए आत्मसंघर्ष करना पड़ता है, इस अच्छाई ko अपने भीतर अर्जित करना पड़ता है. लेकिन हरिवंश राय का बेटा अमिताभ ही हो सकता था, इससे बेहतर नहीं. थोडा बेहतर होने के लिए बाप की लीख तोडनी पड़ती.
शशांक जी,
फिर भी किसी आदमी का अपना मौलिक चरित्र तो होता ही है न? अमिताभ आज जिस मुकाम पर हैं, उस जगह उनकी कुछ जिम्मेदारी भी बनती है। रवीश जी, दुस्साहसिक लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें। अन्यथा जिस मुकाम पर आप हैं, वहां पहुंचा हर आदमी इतनी बेबाक राय नहीं दे सकता।
kya baat hai maza aa gaya...post padhkar jitna nahi aaya....jitna comments padhkar aaya....ravish ji jitna aapne amitabh ko nahi dhoya....in logo ne apko dho dala...lage raho bhai logo...
khair baat amitabh ki mahanayaki ki jo humne banaya ...to bhaiye agar mahanalayk bol bhi diya to kya aafat aa gayi... kaha ke mahanayak hai wo...hai to ek actor .. jo ek take ke liye na jaane kitne retake karte hain..acting jinka pesha hai..naach ga kar logo ka manoranjan karne wale sakhsh ko mahanayak banana kya ajib nahi lagta..kya hum mahanayk ki paribhasa bhul gaye hain...akhir wo aye kaam bhi to paiso ke liye hi karte hain...aur ravishji aap (media) wale bhi iske kaafi bade jimmedar hain..as a actor main bhi amitabh ki fan hu...per as a person ...main ravish ji ke vicharo se sahmat hu..kash ki parde ke bahar bhi amitabh utne hi mahan
lagte jitne parde ke ander lagte hain...per bahar unhe iske liye paise nahi milenge..jiske liye wo aye sab karte hain..gujraat ka brand ambesder banna bhi usi ka ek jariya hai ...wo khud ko kalakaar kahte hain...jo hajmola se lekar pata nahi kya kya bechta hai...kya aye banda wakai mahanayak hai....hai..to uski mahanayki ka kuchh saboot dijiye....main janna chahti hu.....plz..plz..plz...
हर बात को सांप्रदायिकता के चश्में से देखना आप जैसे वरिष्ठ पत्रकार को शोभा नहीं देता। आप समाज के आदर्श हैं। आपको इसी अनुरुप लेखन कार्य करना चाहिये। अमिताभ ब्राण्ड एम्बेसडर बन गये तो क्या वो अब मुसल्मानों को मारने या काटने लगेंगे!!!
मीडिया कितना दूध का धुला है यदि यह बात आप इमानदारी से अपने ब्लाग पर लोगों को बता दे तो जिन्दगी भर आपको किसी भी मीडिया संस्थान में नौकरी नही मिलेगी। यह बात आप बाखूबी जानते हैं।
क्या बात कही है रवीश भाई आपने। खूब सही धोया है आपने अमिताभ को। अमिताभ को भी सोचना चाहिए वह सदी के महानायक क्यों कहे जाते हैं।
आदरणीय रवीश जी,
आपका ब्लॉग पढ़ा, समझ में नहीं आ रहा क्या कहूँ, क्या नहीं? लेकिन आपके ब्लॉग के punchline की तरह कुछ कहने का मन करता है, इसलिए अपने आप को रोक नहीं सका|
मुझे इस बात से कोई सरोकार नहीं है की, अमिताभ जी के नेहरु परिवार से कैसे रिश्ते थे, और कैसे हैं? मैं आधुनिक भारतीय इतिहास का कोई बहुत बड़ा ज्ञाता नहीं हूँ, लेकिन फिर भी मैं इतना जनता हूँ की अमिताभ जी महानायक हैं और रहेंगे| वो अपनी निजी जिंदगी में कैसे हैं और उनकी व्यासायिक गतिविधियां क्या हैं, इसका फर्क मीडिया को इसलिए पड़ता है क्योंकि मीडिया को अपनी दूकान चलानी है|
आज हर इंसान अवसरवादी है| इस दौर में जिसे भी एक बेहतर मौका मिलेगा पैसे कमाने का, या पद और प्रतिष्ठा, वो वहीँ जायेगा| अब बच्चन जी गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग के लिए पैसे लेकर कुछ कर रहे हैं तो इसमें राजनीती कहाँ है? मुझे तो इसमें सिर्फ व्यवसाय ही दीखता है| जहाँ तक बात मोदी की है, तो वो चाहे कितने भी बड़े सांप्रदायिक व्यक्ति क्यों न हों, जो उन्होंने गुजरात में कर दिखाया, है किसी में दम तो और भी कई राज्य हैं करके दिखाए तो जानें|
इसमें मोदी और अमिताभ को न जोड़ के देखा जाये तो ही अच्छा होगा, बेहतर है इसे गुजरात और अमिताभ को जोड़ा जाये|
जहाँ तक महानालायक जैसे शब्दों के उपयोग की बात है तो ये बिलकुल ही बेबुनियाद और अनुचित है| रही बात अमर सिंह और अमिताभ जी की, तो अमिताभ ने कभी अमर सिंह की ओछी बातों का समर्थन नहीं किया, जो भी किया दोस्ती के नाते किया, राजनीती से प्रेरित होकर नहीं|
संक्षेप में मैं सिर्फ ये कहना चाहूँगा रवीश जी की इस ब्लॉग से आपके और अमिताभ के दोनों के चाहनेवालों को चोट लगी है| आपके चाहने वाले आपसे ऐसी उम्मीद नहीं करते, और अमिताभ के चाहनेवाले उनके बारे में बेबुनियाद बातें नहीं सुन सकते|
और अंत में मुझसे कोई गलत बात निकली हो तो क्षमा कीजियेगा, क्योंकि मैं एक अदना सा पाठक हूँ, आप सबों की तरह मुझे राजनीती और पत्रकारिता की समझ नहीं है, मैंने जो कुछ भी कहा वो एक आम आदमी की बात है|
लेकिन सच में निराशा हुई ये ब्लॉग पढकर
:(
इस बार आपसे सहमत नहीं हुआ जा सकता.
शब्दों की शालीनता, विचारों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता, कुछ भी आपके स्तर और छवि से मेल नहीं खा रहा.
इसे कहते हैं, "फ़्रस्ट्रेशन"… मोदी को खूब गरिया-गरियाकर भी हरा न सके… तो जो भी मोदी के साथ जाये उसे ही गरिया दो…। नेहरु डायनेस्टी टीवी (NDTV) में रहकर आप भी उन जैसे ही हो गये हैं…।
अमिताभ से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है, लेकिन उनके मोदी के साथ जाने से जो पेटदर्द आपको हुआ है, समझा जा सकता है कि आपने कौन सा नमक खाया है… :)
Ravish ji aapne dil ko choo liya hai apni lekhni se...bas ab rukiyega nahi....kabhi samay nikal sakein to aapse milne ka man hai....peeyush
psrivawrites.blogspot.com
सत्य जानने का प्रयास पहले भी किया जा चुका है, किन्तु जैसे इतिहास दोहराता है इस लिए कहानियाँ भी दोहरानी पड़ती है:
जब 'समुद्रमंथन' आरंभ हुआ तो पहले विष आया (कलियुग में, कृष्ण-कालिया नाग नृत्य देखा गया पर्दे पर) देवता-दानव कई मर गए....फिर जब (कालिया दहन हुआ)/ नीलकंठ शिव उसे अपने गले में धारण कर लिए तो द्वितीय भाग में बचे हुओं ने मणि-मानिक्यादी आदि कीमती वस्तुएं पायीं...जिन्होंने मंथन फिर भी चालू रखा तो तीसरे चक्र में अप्सराएं आयीं (जैसे अमिताभ के रोल से भी दिखाई पड़ा)...अंत में चौथे चक्र में केवल कुछ देवता और एक दानव (सर कटाके ही भले) अमृत पा गए...:)
उपरोक्त से शायद कोई स्वयं ही अनुमान लगा सकता हैं कि वो किस स्तर पर है...
AAJ KAY IS E BHASHA KAY MADHYAM SAY HUM KABHI BHI KISI KO BHI NEECHA DIKHA SAKTAY HAIN.
INSAAN KI ACCHAIYON KO DEKHO RAVEESHJI. BURAI TO HAR KOI KAR SAKTA HAI KISI KA BHI.
BADHAY CHALO AUR OONCHA SOCHO.
APNAY HUNAR KO AUR BULANDI PAR LAOO.
VYARTHA SAMY NA GAVAON
आदरणीय सुशान्त जी
अब मैं आपसे विवके के प्रयोग की कोई अपील नहीं करूँगा। क्योंकि मुझे रवीश कुमार की एक टिप्पणी याद आ गई। लेखक पत्रकार हैं या पत्रकार लेखक हैं। आप पत्रकार हैं इसलिए रवीश के इस जुमले का अर्थ तो समझ ही गए होंगे।
श्रीमान जी हवा-हवाई बातों रहने दीजिए। तथ्यात्मक बातें कीजिए। आप अपनी टिप्पणी पढ़ लीजिए। उसे पढ़कर यही प्रतीत होता है कि आप अमिताभ ,सोनिया और तमाम जनता के मन में बैठे हुए हैं। यहाँ तक कि वो जो करते हैं उसके बारे में उनसे बेहतर आप को पता होता है। आपको लगता है कि अमिताभ इन्दिरा जी की मृत्यु के कारण जीते ! आपकी तरह मैं बचपन से राजनीति विशारद नहीं हूँ। मैंने तो अपनी उम्र के पच्चीस जेठ देखने के बाद ही राजनीति को समझना-बूझना शुरू किया। इसलिए मेरी ज्यादातर जानकारी कागजी है। और कागज यही कहते हैं कि इलाहाबाद की जनता ने चुनाव में अमिताभ के स्टारडम के आगे पलक-पावड़े बिछा दिए थे। अमिताभ ने 1987 में इस्तीफा दिया। 1988 में उनकी फिल्म शहशाह और गंगा,जमुना सरस्वती जबरदस्त हिट रही थी। 1990 में अग्नीपथ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, और 1990 में फिल्म हम और 1992 में खुदा गवाह जबरदस्त हिट रही थी। 92 के बाद अमिताभ के स्टारडम को ग्रहण लगा। अमिताभ के चुनाव लड़ने और इस्तीफा देने तक की भी फिल्मोग्राफी की तरफ भी एक नजर डाले लें,1983-महान,पुकार,कुली 1984-इंकलाब,शराबी,1985-गिरफ्तार,मर्द,1986-अखिरी रास्ता।
सुशांत जी मुझे उम्मीद है अब आप अपने इस बयान पर गौर करेंगे कि यह वह दौर था जब अमिताभ फिल्मों में पिटने लगे थे। यह फिल्मोग्राफी जाहिर करती है कि अमिताभ जब आए तो वो एक सुपरस्टार थे। और इस्तीफा देने के करीब पाँच साल बाद ही उनका ग्राफ गिरा। आपके लिए यह शोध का विषय है कि अमिताभ 1984 का चुनाव क्यों जीते !! वो भी तब जब वो 1983 में कुली फिल्म में हुए हादसे के बाद उनकी लोकप्रियता की ताकत से पूरा देश हिल गया था।
आपको अमिताभ के स्टारडम में दम नजर नहीं आता हो तो भी शोध करके इस देश में शोधभण्डार में इजाफा कीजिए और बताइए कि इस देश में नेताओं के खिलाफ फिल्मी सितारों का चुनाव मे जीत का रिकार्ड क्या है ? गोविन्दा ने जब रामनाइक को बुरी तरह हराय तब किसकी अम्मा या मम्मा मरी थीं ? धर्मेन्द्र,विनोद खन्ना, शत्रुघ्न जैसे ढल चुके फिल्मी स्टारों ने जीत हासिल कर ली तो अमिताभ अपने स्टारडम के शिखर पर किस आधार पर जीत हासिल की इसके लिए आप शोध करना चाहते हैं,घोर आश्चर्य। हमने तो यही पढ़ा है कि अमिताभ के स्वागत में इलाहाबाद में लड़कियों ने अपना दुपट्टा सड़क पर बिछा दिया था। जनता उनकी एक झलक देखने के लिए पागल हो जाती थी। उनकी लोकप्रियता अपार थी आदि-इत्यादि।
सुशांत जी आपका ध्यान इस ओर भी दिलाना चाहुँगा कि इन्दिरा गांधी का कांग्रेस को क्या लाभ मिलेगा यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चला। राजीव गांधी नौसिखुए थे और इन्दिरा विरोधियों का भी भय था इसलिए वो अपने नजदीकी विश्वसनीय लोगों को अपने साथ लाना चाहते थे। अमिताभ उनके बचपन के और विश्वनीय पारिवारिक मित्र थे यह बात कहने की नहीं है।
सुशांत जी आपको तो बचपन से ही पता है कि अमिताभ ने बोफोर्स घोटाले के संदर्भ में इस्तीफा दिया। वो खुद को राजनीति में घसीटे जाने से क्षुब्ध थे। एक अखबार के कुकृत्य को उन्होंने अदालत में भी चुनौती दी। और जीते। सुशांत जी आप सामान्य बुद्धि का प्रयोग करते हुए बताइए कि ऐतिहासिक पूर्ण बहुमत वाली ताकतवर कांग्रेसी सरकार से खुद को बाहर कर लेना अमिताभ की चालाकी थी ? आपको भी पता है कि वीपी सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। अम्बानी का कुछ नहीं बिगड़ा यह जगजाहिर है। यानि अमिताभ ही एकमात्र ऐसे बेवकूफ थे जो ताकतवर गांधी परिवार को उस वक्त छोड़ गए जब सुशांत झा के अनुसार अमिताभ को उसकी जरूरत होनी चाहिए थी !
सुशांत जी
मैं रविश कुमार का प्रशंसक हूँ। इसका एक बड़ा कारण है कि मैं इस बात को ध्यान में रखता हूँ कि इस दलदल में रहकर रवीश कितना कर पाते हैं !! राजनीतिक एंगल से किसी परिघटना के पाठ करने के लिहाज से रविश कुमार जो नहीं कर पाते उसको देखने लगुँ तो फिर ....मुंिश्कल होगी। मैं अमिताभ बच्चन का जरा भी फैन नहीं हूँ। इस दशक की उनकी कोई नई फिल्म मैंने नहीं देखी है। अमिताभ के मैं 70 के अमिताभ के रूप में ही जानता हूँ। एंग्रीयंगमैन की उनकी छवि ही मेरी पसंदीदा है।
गौरतलब है कि अमिताभ ने कभी नहीं कहा कि वो महानायक हैं। यह तो मीडिया है जिसे अपने उत्पाद बेचने के लिए एक सेलेबल प्रोडक्ट चाहिए। खुद रवीश कुमार ऐसे कैची इश्यू पर लिखने के बजाय पूण्य प्रसून की तरह गंभीर विषयों पर लिखने लगे तो उनका ब्लाग कौन पढ़ेगा ? हिन्दी पट्टी के अंग्रेजी के जुए के दबे खण्डित आदर्शों वाले युवाओं के लिए टीवी पर दिखने के कारण रवीश कुमार भी एक लोकल स्टार ही हैं। वो अंग्रेजी नहीं जानते !! फिर भी रोज टीवी पर दिखते हैं, एक अच्छे चैनल में अच्छी पोस्ट पर है। रवीश का यह एंगल गऊ-पट्टी की जनता में एक रूमान भर देता है। खैर। उनके ब्लाग और लेखन का वास्तविक स्तर क्या है इसे जानना का बहुत ज्यादा शौक हो तो वो किसी भी छद्म नाम से एक ब्लाग कुछ दिन लिख लें। उन्हें सत्य-परमसत्य का ज्ञान हो जाएगा।
रवीश कुमार पहले भी अपने लेखों में भूल-सुधार कर चुके हैं। आज कल के माहौल के हिसाब से यह उनका साहसिक पहलू है। जो मुझे पसंद है। मुझे उम्मीद है आप भी उनसे कुछ सीख लेंगे।
ravish jee, yah aapne hi likha hai?
बहुत खूब रवीश जी! बढिय़ा मजमा लगा है यहां तो. सुशांत ने पहले ही टिप्पणी की थी कि आस्तीनें चढेंगी...चढ़ी हैं, त्योरियां भी. सचमुच अमिताभ बड़े कलाकार हैं. तभी तो ये मजमा जमा है यहां...लेकिन अमिताभ कोई ईश्वर भी नहीं कि लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई जा रही हैं. ये तो इमोशनल अत्याचार हुआ जी. रवीश जी, हम आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैं.
रवीश जी, इस बार मामला कुछ जमा नहीं। अभिताभ बच्चन ने आपका क्या बिगाड़ा है। ऐसी बातें आपको शोभा नहीं देती। लोग अमिताभ बच्चन के पीछे क्यों पड़े रहते है?
गुरूदेव बात मुँह से छीनकर ले गए।
Gajab.... Ye post or comments padhkar bada ajeeb sa prteet ho rha hai.. Samjh nhi aa rha ki aapki baat se sahmati jtayi jaye ya fir oro ki tarah asahmat hokar aapko hi katghare mein khada kiya jaye..!! Lekin ye dekhna jyada romanchkari or gyanvardhak hai ki aap jaise mahan budhijeevi ka mahanayak kahalane wale ek shakhs par is tarah se prhar karna kitna bada mudda banta hai or iski pariniti kya hoti hai... Shayad mujh jaise abodh agyani ka is YUDHH-KAAL mein mook darashak hi bane rahana uchit hai...
-VIKAS SACHDEVA
095822-21718
रवीश बाबु हमें तो अभी तक आप के ही प्रतिक्रिया का इंतजार है, कहा है महाराज कुछ तो बोलीए इतने सरे लोग आप से सवाल केर रहे हैं.
पहले तो शुक्रिया. कल जब आपने ये पोस्ट डाला, तुरंत ही पढ़े थे. तब किसी का कमेन्ट नहीं था. सोचे कुछ लिखें पर इस बलवे का इंतजार था. इसी बहाने काफी कुछ पढने और जानने को मिल गया. शुशांत और रंगनाथ भाई को भी शुक्रिया. अमिताभ का काफी इतिहास यहीं पलट गया. अब मुद्दे पर आता हूँ.
मेरे कुछ सवाल हैं बस..
पहली बात, मैं आपसे सहमत भी हूँ और असहमत भी. लेकिन अमिताभ एक आम इंसान के तौर पर क्या हैं जो उनपर इतनी चर्चा हो रही है?
दूसरी बात, महानायक आपने बनाया, महानालायक आप ही बना रहे हैं तो क्या दिक्कत है?
तीसरी बात, वो कलाकार हैं, हम उनकी आलोचना और प्रसंशा उनके अभिनय को लेकर करें तो कोई दिक्कत है क्या?
चौथी बात, वो अमिताभ हैं, वो जो करते हैं, हम आप उनका पीछा करते हैं. क्यूँ भला? उन्होंने तो नहीं बुलाया. वो व्यक्तिगत तौर पर क्या करते हैं क्या नहीं, पप्पराज़ी बनने की क्या जरुरत है. अभी कोई आम आदमी या कोई पत्रकार या कोई नेता या कोई बड़ा अधिकारी बार बार मौकापरस्ती दिखता तो क्या उनको भी आप ऐसे ही आड़े हाथ लेते? ये तो भाई अमिताभ के साथ बड़ी नाइंसाफी है. इस पर रंगनाथ भाई ही नहीं गब्बर भी अमिताभ का साथ देगा.
आखिरी बात, आपकी बहुत इज्जत करता हूँ, कहने में मुझे गुरेज नहीं. आपके साथ काम करने का सपना है, ये मानने में भी कोई गुरेज नहीं. डर जरुर है कि कहीं आपको ये बात बुरी लगी तो मेरे सपने का क्या होगा पर खुद को रोका तो शायद ये बात जिंदगी भर सालेगी. कहीं न कहीं लगा, कि ये खुन्नस एंटी मोदी की वजह से है. आपका ये पोस्ट उनके सपा का गान करने पर गिरता तो शायद न अखरता...या हो सकता है मैं उसे गलत रिलेट कर रहा हूँ...
(इतने लोग आपको 'रण' में आने को कह रहे हैं, आ भी जाइये)
हिंदी में क़स्बा और अंग्रेजी में QASBA लिखते हैं ...
सबसे पहले अपना शीर्षक चेंज करो भाई !!!
बढ़िया ब्लॉग और पोस्ट्स भी !!!
मुझे तो अमिताभ के पक्ष-विपक्ष में लिखी सारी बातों में एक किस्म विशिष्ट भारतीय भक्तिभाव नजर आ रहा है। अरे भाई अमिताभ बाजार के उत्पाद हैं। फिल्में चलानी थी तो एक वक्त एंग्रीयंगमैन हो लिए। आजकल साबुन तेल कंघी का विज्ञापन करते फिरते हैं। कल को किसी आधुनिक हिटलर के सांस्कृतिक ब्रांड अंबेसडर भी बन सकते हैं। (इसमें आश्चर्य कैसा रविश भाई) बाजार का एकमात्र मूल्य मुनाफा ही हो सकता है तो बेचारे अमिताभ की क्या गलती है। गलती तो हमारी है कि हम एक बहुत बड़े विज्ञापन (मसलन अमिताभ की छवि) को सच मानकर उन्हें नायक समझने लगे।
लेकिन यह अच्छी बात है कि ऐसे बाजार निर्मित नायकों की हवा निकाली जानी चाहिए, ऐसी प्रतिष्ठित छवियो को धूल में मिला देना चाहिए। अमिताभ ही क्यों, मुझे तो लगता है कि कुछ अच्छे लोगों की छवि ओढ़ने वाले आमिर, शबाना हाशमी, जावेद अख्तर वगैरह की भी आरती इसी पोस्ट की तरह उतारनी चाहिए। जब तक इन बाजारू नायकों को कूड़ापेटी के हवाले नहीं करेंगे तब तक शायद हम अपने असली नायकों (कहीं नाम भी तो नहीं भूल गए भगतसिंह वगैरह का) तक ठीक ढंग से न पहुंच पाएंगे न नई पीढि़यां असली नायकों को जानने के लिए उत्सुक होंगीं।
ravish ji ...sach ko itni sachchai se koi koi hi likhta hai aur ise aapne bakhubi nibhaya hai ...parde ke ye kirdar beshaq apni vishvasniyata ko paros rahe hai..par jindagi ke asli kirdar aakhir hai kahan??
शबाना हाशमी नहीं, शबाना आजमी...
रवीश जी , आपको ये ब्लॉग लिखने से पहले बरखा जी का प्रोग्राम देखना चाहिए था , शायद आपने देखा भी हो , जिसमे अमिताभ आये थे
,उन्होंने इन्ही सब प्रश्नों का जवाब दिया जो आपने उठाये हैं , मैं ये बहुत अच्छी तरह जानता हूँ , की न डी टी वी को मोदी अछे नहीं लगते , पर गुजरात से नफरत है मुझे ये नहीं पता , वर्ना आप ये सब क्यों भूल रहे हैं , की अमिताभ गुजरात के ब्रांड के नायक बने हैं , न की मोदी के , अमिताभ राजिनितक व्यक्ति नहीं हैं , इसमें कोई शक नहीं , आपने जो भी उदाहरण दिए उनमे कुछ दम नहीं है ,और स्वयं अमिताभ कहते हैं , की मोदी , मुलायम का उनके ब्रांड के नायक बनने मैं कोई हाथ नहीं है , क्योंकि ये प्रदेश उनके निजी संपत्ति नहीं थे या हैं , वो अपना काम करते हैं उसके उन्हें पैसे मिलते हैं , इसमें कुछ भी गलत नहीं है .
Lage Raho....
Dear Ravish,
I am not a fan of Amitabh, or of anybody 'living or dead' in that matter. Every one lives his life in one's own fashion, nobody in this world is pure and straight enough, including you.In fact no one can survive or reach at highest place without the virtues[good or bad] you have wrongly used in cursing Amitabh Bachchan.Man is never doing anything wothout purpose, that is the fact, in case of Amitabh's,as well as in your's. Bad words could be avoided for decorum.
Allahabad me main jin bhi prabuddhjanon se mila hoon.. jo amitabh aur unke pita ko kafi samay se jante the jab wo wahin rahte the...to kisi bhi ray is pariwar ke prati achchhi nahin thi.. inke pita ko log ladkibaaz aur mahajhootha kahte hain aaj bhi.. ye main nahi bachchan pariwar ko salon se aur nazdeek se janne wale kahte hain... ek sajjan ne to ye tak kaha ki amitabh wo kalakar hai jo chahe camera ho ya na ho har waqt acting karta hai..muskurahat nakli aur aansoo bhi.. khair sach jo bhi ho lekin meri nazar me amitabh abhineta kitne hi bade hon magar na to wo mahanayak hain aur na hi achchhe insaan.. unki tareef wo jaroor kar sakte hain jo t.v. ya akhbar padhkar amitabh ko jante hain lekin amitabh ki asliyat janne wale kabhi nahin aur wahi sab gun unke bete aur bahu me bhi hain.. kitni baar media ke samne hindi bolte hain ye unke bachche.. mile sur mera tumhara ki making ka video dekhiye poore angrez ban rahe hain dono.. behtar hai aise ghatiya pariwar ki baat hi na karen.. sabko oopar pahunch ke hisab dena hai
Jai Hind...
ravish ji aap likhte badiya hai ye baat maine kai baar kahi hai,apki soch bhi thik thak lagti thi.lekin aaj amit ji ke bare mein apka post padkar apka dohra charitra samne aya.maha nalayak wo nahi aap hai.muslimo par atyachar dikhta hai apko lekin unka dus-sahas kabhi najar nahi aata.
mujhe aisa lagta hai ki aap bhi polotical partiyo ki tarah chadam dahrm-nirpekshi bankar rajya-sabha ki jugad mein ho.
kabhi apni ray apne maalik Dr. Pranav Rao ke bare mein bhi dene ki himmat dikhayein.
tumhara bikau medea aaj jitna paisa khabar dikhakar nahi kamata us-se jyada khabar chchupa kar aur jhoothi kabharein dikhakar kamata hai.
muslim hi nazar aate hai apko.kabhi kashmiri pandito ke baare mein likha ya dikhaya.pakistan bangladesh mein hinduo ke sath kya ho raha hai kabhi kuch kaha apne.
narendra modi se jo bhi judta hai apko wo papi nazar aane lagta hai,lekin ISI ke agent bukhari se judne wale shakhso par apki juaan tatha kalam dono hi band ho jati hai.
रवीश भाई
ब्लाग की पंचलाइन टाइम्स आफ़ इन्डिया की हेडलाइनों की तरह रखने के चक्कर मे फंस गए आप. मुझे लगता है कि ’महानालायक’ शब्द, ’महानायक’ से तुक मिलाने की आत्मघाती कोशिश थी. बाकी अमिताभ जी किसी भी आलोचना के परे थोड़े ही हैं!! एक मज़ेदार बात यह है कि बस थोड़े दिन पहले, आइ बी एन ने उन्हें ’अतिथि एडिटर’ बना कर पेश किया था और आशुतोष तथा एक अन्य पत्रकार उनका गुणगान कर रहे थे कि उन्हें अमित जी से बहुत सीखने को मिला!! भैया सुशान्त जी अब आप अमित जी को एन डी टी वी में भी भिजवाएं, साथ ही साथ IIMC वालों से कहें कि गौतम कौल के साथ साथ अमिताभ का भी गेस्ट लेक्चर करवाएं.
रवीश जी आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ !
its very easy to sit in our room nd discuss abt big b or king khan we r d ppl who make dem gr8 dey never said dey r bigger dan life so before gng to criticise big b we should look at our self nd think once hw hypocrates v all are including u nd ur channel
bilkul theek baat kahi aapne ravish ji. Jab koi nayak mahan hota hai to uski kamiya bhi mahan hi hongi. kya galat hai.log bina wajah chinchiya rahe hain. in sabke mahanayak donon haath se jholi bharne me lage hain aur mahan bhi bane hue hain.gajab hai. kasba ki jay ho!
मजा आ गया ,महानायक को महानालायक बना डाला ,
बहुत सटीक व्यग्य लिखा आपने ,कभी -कभी तो बिग बी की हरकतें शर्मसार कर देती हैं
बधाई
अरे भाई लोग क्यों अपना टेम खाली पीली खोटी करते हो
वड्डे वड्डे मीडिया वाले जो लिखना पढ़ना था बोल गए
आप सुनते रहो कोई जवाब थोड़े ही मिलेगा
टीवी मीडिया का तो खेले ही इस पे टीका है
गरियाओ गरियाओ गरियाओ (?)किसे
Bhai..comments lene hon to film..stars per hi likhna...kya dangal macha hua hai..!!
@Rangnath bhai...aapne toh mujhe bhayakrant kar diya>>>:) ab bhagna padega...mujhe maaf kar sakte hain kya:)
सुशांत भाई क्षमा वगैरह की बात करके शर्मिन्दा न करें। हम दोनों एक ही लेखकीय परिवार के लोग है। मतांतर तो होते ही रहेंगे। शेष क्या कहँु,आपने जो बड़प्पन दिखाया है उससे प्रभावित हूँ।
रविश खुद न्यूज़ चैनल के 'अमिताभ बच्चन' बनना चाहते हैं ! सॉरी , अमिताभ बॉलीवुड के 'रविश कुमार' हैं !
रंगनाथ सिंह जी , मजा आ गया - आप बधाई के पत्र हैं ! आइना दिखा कर हजामत बना दी वो भी बिना पामोलीव के !
ravish ji aapse aisi bhasha ki umeed nahi thi....
insaan doosro me sirf buraiyan kyu khojta hai...agr aap amitabh ji ki achaiyan dekhenge to wo in sab pe bhari padenge....
mana ap patrakar hain..nirbheek hain lekin iska ye matlab nahi ki kuch bhi bol dein...
amar singh ji aur mayawati ji ki bhsahsa aur aapki bhasha mein kuch to fark hona chahiye..
:(
mubaarak ho amitaabh baccan ne aap ko bhi itani tippniya dilva di jo aapane sapane me bhi nahi socha hoga .
ab to samjh lijiye naam hi kaafi hai .
रंगनाथ से सहमत हूं। वैसे रवीश अमिताभ को गरिया रहे हैं, मोदी की तरफ जाने को तो दर्द स्वाभाविक है। गाली दीजिए सुशांत, हम आपके साथ हैं। वैसे भी हम डीडी वाले हैं। हम और एनडीटीवी वाले बिरादर ही हैं। बकौल बुश, जो हमारी तरफ वो ठीक वरना बाकी सब आतंकवादी। क्यो? वैसे सुशांत हमारे सहपाठी रह चुके हैं, हमें तो उनकी राजनीतिक बुद्धि पर बड़ा नाज था। भग-वा परचम भी खम टोंक कर लहराते थे आईआईएमसी के दिनों आज कल पाला बदल लिया है। सुशांत याद न हो तो अपना ऑरकुट प्रोफाइल चेक कर लीजिए। वक्त अब भी है, उसे एडिट भी कर लीजिए। अमिताभ ने उत्तर प्रदेश की तारीफ की तो गलत, गुजरात की कर दी तो गलत, करें किसकी? राज ठाकरे की? आज एनडीटीवी में एक वन-टू-वन होगा तो यही अमिताभ पुनः महान हो जाएंगे। सुशांत आप तो ऐसे न थे।
kuch panktiyaan meri...
कुछ कहने का मन करता है
सोच की उन तंग सी गलियों में रहने का मन करता है
वो लिखने का मन करता है
जो शब्दों की अबूझ पहेली है
जिस सोच का कोई अंत नहीं
जिन जज्बों से ये दुनिया खेली है
जो ख़ामोशी से रिस न सकी
उस अनकही में बहने का मन करता है ॥
क्यों आखिर खुद में रहते नहीं
क्यों औरों को जीते है
सच्चाई को ढांपने की होड़ में
हम ख़ामोशी भी सीते है
क्यों नहीं करते खुद का विरोध
क्यों सब सहने का मन करता है ॥
क्यों कोई मसीहा लगता है
हमको परदे के किरदार में
क्यों बिक जाते है जीवन-चरित्र
संवेदनाओं के व्यापार में
अवसाद भरे इस खोखले पन का
अब ढहने का मन करता है ॥
Ravish ji,
Aapne kya gare murde ukhaar diye, kuchh log to unke baap tak pahunchne lage. Blog bahut thik tha per comment karne walon ko thodi samajhdari dikhani chahiye. Aaj Bharat ki pehchann agar duniya mein hai to usme thoda yogdaan Bachchan family ka bhi hai, (Harivansh Rai included).
Rajnish
रवीश जी, आप की पोस्ट सुबह ही पढ़ लिया था लेकिन टिप्पड़ी के लिए समय नहीं मिला । शाम को देखा तो जनता टूट पढ़ी है वैसे ही जैसे कि ७० और ८० के दशक में अमिताभ की कोई फिल्म रिलीज होने पर होती थी । वैसे आज कल भी भाई का जलवा कम नहीं है पा और रण इसके ताज़ा उदाहरण हैं और उनसे भी ताज़ा उदाहरण है आपकी यह पोस्ट ।
शायद आप की मोदी और भाजपा के प्रति नफ़रत की अति ही थी जो आप को अपशब्दों की तरफ़ ले गयी । मैं एक लम्बी और तार्किक टिप्पड़ी देना चाह रहा था मगर यहां आप की बिरादरी के रंगनाथ जी और सुशांत जी ने पूरा किस्सा तोता मैना की तर्ज पर सवाल जवाब का दौर अभी समाप्त किया है तो संक्षेप मे ही ठीक रहेगा ।
आप बहुत अच्छा लिखते हैं लेकिन " क्षमा प्रार्थना के साथ " कहने की धृष्टता करूंगा कि आप अति सेकुलरवाद के बुखार से पीडित हैं । आपने एक बार मेरी एक टिप्पड़ी के जवाब में कहा था कि सांप्रदायिकता बुखार है सेकुलरिज्म नहीं । मगर जनाब अति कुछ भी हो ठीक नही होता है । मायने यह कि ९९.६ डिग्री के ऊपर चला गया तो बुखार ही कहलाता है , बचियेगा । आप भी बाल ठाकरे की तरह रोज नया फ़रमान शुरू कर दीजिए आज अमिताभ, कल रतन टाटा, परसों अंबानी और उसके अगले दिन कोई और । थोड़ा संयम बरतिये सर ।
एक गुजारिश है, कुछ शब्द बदल दीजिए और खूब आलोचना कीजिए अच्छा लगेगा । क्योंकि सबको अपनी बात कहने का अधिकार है खास कर आप को तो ज्यादा है, भाई आप पत्रकार हैं । बाकी , मर्ज़ी है आपकी क्योंकि ब्लॉग है आपका ।
वैसे आपकी "जिन्ना और जसवंत सिंह" वाली पोस्ट पर, आप के एकतरफापन और तथ्यों को घुमाने की अदा पर मैं लिख ही चुका हूं , तब मैने अकेले ही इस तरफ ध्यान दिलाया था और आप ने कुछ बातों पर सफ़ाई दी थी और कुछ पर गोलमोल किया था । अब इतने मित्र हाय तोबा कर रहे हैं तो कुछ तो बोलो जहांपनाह ! आपकी चुप्पी बहुत संताप दे रही है ।
अमिताभ को महानालायक कहना आसमान में थूकने के सामान है. अगर मोदी से इतना चिड़ते हो तो क्यों नहीं खुद या किसी और बेहतर को इलेक्शन में उनके खिलाफ खड़े होते. NDTV और उससे जुड़े लोगों का मोदी-विरोध खुद अपने आप में एक व्यावसायिक निर्णय है और महानालायकपना है.
उफ्फ! रवीश जी। आपा इस कदर आपा खो देंगे। ऐसी सोच मन में आई भी नहीं थी। मोदी से इतना बैर... साहब तब तो आपको उस कांग्रेस के ब्रांडों को भी गरियाना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस दामन में 84 के दंगे का खून सना हुआ है। सीपीएम को भी गरियाईए उसके दामन भी नंदीग्राम और सिंगूर से लथपथ है। तमाम उन पार्टियों से भी इस कदर ही घृणा करिए जो क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर नए दंगों का समीकरण गढ़ रही हैं।
महानालायक से बात चली थी और बहस का रुख कुछ और ही हो चला है। बात महानायक की नही है। सदी का महानायक ये नाम भी आपकी हसीनजादी मीडिया ने ही दिया था। बाकी रंगनाथ जी की लाइनों----"कर्ण इसीलिए महान था कि वो ताउम्र मित्र धर्म के प्रति सौ फीसद सच्चा था। शेष तो नारायण भी छलिया थे" !!
के बाद कुछ और व्यक्त करने का मन नही कर रहा।
बहुत अच्छा रवीश जी।
बहुत दिन बाद शानदार पोस्ट। हिन्दी की वकालत करने वाले अमिताभ अपना ब्लाग अंग्रेजी में लिखते हैं। मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जब पढाई करता था तो गाहे बगाहे लोगों के मुंह से सुन लेता था कि अमिताभ यहां से सांसद रहे। दिग्गज हेमवती को हरा कर हमने उन्हें सांसद बनाया लेकिन उन्होंने इलाहाबाद के लिए किया क्या है।
वे जब चाहते हैं मीडिया के दोस्त बन जाते हैं और जब चाहते है तो मीडिया का बहिष्कार कर देते हैं। मीडिया क्या अमिताभ के हिसाब से चलेगी। महानायक के पुत्र की शादी में मीडिया को जो लाठियां खानी पडीं वो कोई भूला नहीं है।
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत। मेरी बधाई स्वीकार करें और मौका मिले तो मेरे ब्लाग udbhavna.blogspot.com पर भी आएं। मुझे अच्छा लगेगा।
भाई रवीश जी,
क्या बात है बधाई। क्या टीआरपी फाड़ू लिखा है। टीआरपी गेनिंग मुद्दा है। पर माफ किजिएगा भाषा ज़रा इंडिया टीवी छाप हो गई। आपसे इस तरह की भाषा की उम्मीद तो नहीं थी। 'नालायक' विशेषण का प्रयोग किसी भी संदर्भ में उपयुक्त और तर्क संगत नही लगता। आपकी आरूषी मर्डर केस के मसले पर की गई एक पीटूसी याद आ रही है। 'मीडिया ने इस मसले में कही रेड लाइट का उल्लंघन किया है अब वो उसके ऊपर है कि वो इसमें कानून का पालन करे और चलान भरे या फिर बोले की देखो मेरी गाड़ी पर प्रेस लिखा है और मेरे जेब में एसीपी का नंबर है' मुझे लगता है मर्यादा की सीमाओं का उल्लंघन आपने किया है। कम से कम जिस भाषा का प्रयोग आपने किया है उसकी उम्मीद एक महान कलाकार और उम्र के लिहाज़ से भी वरिष्ठ के लिए आपकी जानिब से सही नहीं लगती।
और हां पेशेवर तो आप भी हैं जनाब, पेशे और पर्सनल ज़िंदगी को क्यों मिक्स्ड कर रहे हैं। अमिताभ बच्चन न तो प्रोफेशनल लिहाज़ से नालायक हैं और न ही अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी में। और हां सामाजिक जीवन में भी वो लायक ही हैं। पत्रकार को मुगालता कभी कभी होता है वो जो कहता है वहीं ब्रह्म है। खैर....वैसे भी पत्रकारिता में भी ऐसा कुछ बचा है नहीं...आप भी प्रोफेशनल हैं...पइसा मिलेगा तो आप भी बैनर बदलने में देर नहीं लगाएंगे क्यों ठीक कहा न।
Ravish ji
jo ho amit ji ki aalochna kar ke achche bure comment toh khub mil hi gaye.
kuch achcha hai toh hum sirf bure par hi nahi tike rah sakte.media ne sirf gujrat dango par hi nishaana sabse jayda daaga kyu nahi dango se pahle aur dango ke baad hue ghatnao par media ka rukh vaisa nahi rahaa jaise dango par,
u said amit ji ko paisa do aur kuch .......but modi ki soche yadi unhe lekar gujrajat world mein papular hota hai toh yeh... See More ek achcha step hoga,na bhule ki modi ne gujrat ki behtari ke liye jo bhi step liye hai woh kamyab rahe hai,
kyu na aap es par roshni daale ki aaj gujrat mein musalmano ki sthati kya hai,thodi mehnat karni hogi pl do.
झा- सिंह वाकयुद्ध समाप्त हो गया
दो तलवारें म्यान में चली गयीं
रवि अस्त सा हो गया
घायल सैनिक मलहम लगा रहे हैं
आने वाले कल की तैय्यारी में
फिर से युद्ध क्षेत्र में लड़ने
नए हथियारों से शायद
पानीपत या कुरुक्षेत्र में?
ब्रह्मास्त्र चलेगा लगता है
"...अति की भली न चुप्प...!"
उपरोक्त खामियां मौकापरस्ती है खलनायकी नहीं। लोकतंत्र और मौकापरस्ती के बीच चोली दामन का साथ है। उत्तर प्रदेश में ही कई ऐसे मतदाता होंगे जिन्होंने अपने जीवनकाल में सभी चार बड़ी पार्टियों के लिए मतदान किया हो। लेकिन उन मतदाताओं को खलनायक नहीं कह सकते। उन पत्रकारों को क्या कहेंगे जो चार साल में चार संस्थान बदल डालते हैं। या उस वैज्ञानिक को क्या कहा जाए जो देश ही बदल डालता है। मौकापरस्तीन निश्चत रूप से बड़ी खामी है लेकिन इसे खलनायकी नहीं माना जाना चाहिए। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि अमिताभ सदी के सबसे बड़े खलनायक हैं। हालांकि मैं यह भी नहीं मानता कि वह सदी के महानायक हैं। मुझे अब तक के सभी भारतीय अभिनेताओं में नसीरुद्दीन शाह को सदी का महानायक मानता हूं।
ब्लॉग जगत का घिनौना चेहरा अविनाश
भारतीय ब्लॉगिंग दुनिया के समस्त ब्लॉगरों से एक स्वतंत्र पत्रकार एवं नियमित ब्लॉग पाठक का विनम्र अपील-
संचार की नई विधा ब्लॉग अपनी बात कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकता है, परन्तु कुछ कुंठित ब्लॉगरों के कारण आज ब्लॉग व्यक्तिगत कुंठा निकालने का माध्यम बन कर रह गया है | अविनाश (मोहल्ला) एवं यशवंत (भड़ास 4 मीडिया) जैसे कुंठित
ब्लॉगर महज सस्ती लोकप्रियता हेतु इसका प्रयोग कर रहे हैं |बिना तथ्य खोजे अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर खबरों को छापना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि बिना गवाही के सजा सुनाना | भाई अविनाश को मैं वर्षों से जानता हूँ - प्रभात खबर के जमाने से | उनकी अब तो आदत बन चुकी है गलत और अधुरी खबरों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना | और, हो भी क्यूं न, भाई का ब्लॉग जाना भी इसीलिए जाता है|
कल कुछ ब्लॉगर मित्रों से बात चल रही थी कि अविनाश आलोचना सुनने की ताकत नहीं है, तभी तो अपनी व्यकतिगत कुंठा से प्रभावित खबरों पर आने वाली 'कटु प्रतिक्रिया' को मौडेरेट कर देता है | अविनाश जैसे लोग जिस तरह से ब्लॉग विधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, निश्चय ही वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पर भी 'कंटेंट कोड' लगाने की आवश्यकता पड़े | अतः तमाम वेब पत्रकारों से अपील है कि इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले ब्लॉगरों तथा मोडरेटरों का बहिष्कार करें, तभी जाकर आम पाठकों का ब्लॉग या वेबसाइट आधारित खबरों पर विश्वास होगा |
मित्रों एक पुरानी कहावत से हम सभी तो अवगत हैं ही –
'एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है', उसी तरह अविनाश जैसे लोग इस पूरी विधा को गंदा कर रहे हैं |
Rangnath ji ...aap ko badhai...
RAvish ji...main aapke news reporting ke style ka bahot bada prashanshak raha hu..aapne jo kaha aankh band kar ke sach manta tha...lekin aaj aapke ek shabd ne mujhe sochne pe vivas kar diya ki..aap nahi media ke sachin tendulkar hain na amitabh bachchan...
abhi aapko kai baar gyan ki gangotri me dubki lagani padegi ..taki jwibha pe control kar saken....gustakhi ke liye maafi chahta hu...waise galati badi hai lekin fir bhi main aapke blog pe aata rahunga...
हो सके तो एक नजर जरूर।
बाजारवाद में ढलता सदी का महानायक
राजू बन गया 'दी एंग्री यंग मैन'
फेसबुक एवं ऑर्कुट के शेयर बटन
Bhai sahab,
kafi pida hui. itna satahi lekh likhna aap jaison ke liye sarmnak hai. itna bair kyon hai bhai.
Rajiv Mandal
सुदेश जी से सहमत हूँ....आपकी जगह कोई और इस तरह की भाषा अमिताभ बच्चन के लिए प्रयुक्त करता तो आज एनडीटीवी पर हेडलाइन आ रही होती..और आप लोग ही तमाम बुद्धिजीवियों को बुलाकर भाषा के सामजिक पक्षों पे लेक्चर दे रहे होते...आज वाकई आहत हुआ हूँ आपकी इस पोस्ट से...इसलिए नहीं कि अमिताभ को आलोचना से परे रखता हूँ...बल्कि इसलिए कि आपसे ऐसी शब्दावली की उम्मीद न थी...
Ravish ji,
Aapne bilkul khari baat kahi hai. Amit ji ek ache abhineta hai par unki parde ke bahar unki rajniti ko leke le damadol nazariya aur kabhi bhi kahin bhi kisi bhi party ke saath jud jana unke political ideology ko darshata hai.. aur beshak unke fans ko bhi ye kuch bhaut raas nahi aata..
Thanks
एक लेख बाल ठाकरे पर हो जाए तब मानूं
अमिताभ बाल ठाकरे से तो अच्छा ही है,
hehehe...vaise bhi abhi 'marathi mudda' garam hai.. :)
भेड़ों के इस महाकुम्भ में एक भगवान टाइप मान लिए गए अभिनेता को महानालायक कहना हिम्मत की बात है। जीते रहिए।
namaskaar
amitaabha bachchan jii filmii duniyaa ke mahaanaayak hain. arthaat achchhaa abhinay karate hain unhe abhinaya men mahaarat haasil hai.
achchhaa abhinetaa hone se sabase baDaa laabh yaha hota hai ki saamane vaalaa usake abhinaya ko sachchaaii samajhane lagate hai.
bharat kii raajniiti men cinemaa ke kalaakaaron ki achchi paith hai. amitabh jii dal badalane men bhii maahir hain.
unakii asalii ikshaa khoob paisaa kamaanaa hai. aur ve usamen safal hain..
namaskaar
kya ravish ji aapne to madhumakkhiyon ka chhatte me sir de diya.......
in logon ne to aapko itna dhoya hai ki aapko maheenon tak nahaane ki zarurat nhi padegi.
post to sachchai he thi par kuchh logon ke comment to aise aaye hain jaise aapne amitabh ko nhi balki un logo ko nalaayak kah diya.
Ye desh kab tak chirago k girad tiddiyon ki tarah ghera banaye rahega.........
khair , meri taraf se badhai aur saath me dher saara utsahvardhan aur aur 1 salah,
"1 post aur ho jaaye"
जब अमिताभ "यू पी में है दम " ये एड देते थे तब हंसी आती थी .पर समझदार लोग ऐसे भी एक फेयर एंड लवली के गोरे होने वाले एड देखकर सीरियसली नहीं लेते थे .न ही हिन्दुस्तान में कोई आदमी किसी के कहने पर वोट देता ....यहाँ तो अक्सर वोट की जगह पर पहुँचते ही जात -बिरादरी ऊपर आ जाती है .....अमिताभ एक समझदार बिजनेसमेन है ...उम्र के एक मोड़ पर भारी आर्थिक नुकसान के बाद ...अगली पारी में फूंक फूंक के कदम रख रहे है ...शाहरुख़ ने एक बार कहा था वे तो भांड है ...जहाँ पैसा मिलेगा जायेगे ...इसलिए शादी ब्याह पर नाचने गाने भी जाते है .ये उनका बिसनेस है .....मसलन जब राहुल महाज़न अपनी शादी की बात करते है तो हम इसे भी किसी चैनल के बिजनेस का हिस्सा ही मानते है ..अगर आप लोग बिजनेस में नैतिकता की बात करते है तो ये बहस कई मोड़ो पर जा सकती है ....
..रविश जी ने जो कहा उसमे सब से तो सहमत नहीं हूँ पर पूरी तरह असहमत भी नहीं हूँ......सबसे आपत्ति की बात "महानालायक "शब्द के प्रयोग की है .यानी आलोचना में भद्र भाषा का प्रयोग किसी भी संवाद की पहली शर्त होती है .....पर सवाल ये भी है के केवल मोदी से जुड़ना उनकी खामिया याद आना है क्या ?
ravish ji aapne amitabh ji ka balatkar kiya aur logon ne aapka cheerharan kar diya
ravish ji aap sahi keh rahe hai .amit ji modi ji ke sath , jaya ji amar ji ke sath bache abhi aur aish wo bhi kasi na kisi ke sath ho lenge . ganda hai par dhanda hai.
इस ब्लॉग पर आनेवाले और रवीश जी के इस पोस्ट पर कमेन्ट करने वाले सभी भद्रजनो से मेरे कुछ सवाल हैं -
१. क्या अमिताभ के इस व्यावसायिक पहलु के लिए उन्हें महानालायक कहना सही है?
२. अभी तक १०० से भी ज्यादा लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है, उसमे से ऐसे कितने लोग हैं जो पूंजीवादी और उपभोक्तावादी नहीं हैं?
३. अवसर मिलने पर कितने ऐसे लोग होंगे जो अधिक पैसे की पीछे नहीं जाना चाहेंगे?
सांप्रदायिक होने और सेकुलरवाद की जितनी समझ आप जैसे प्रबुद्ध लोगों को है उतनी मुझे नहीं है, फिर भी इतना जरुर कहूँगा की राजनीती और विचारधारा तभी सूझती है जब लोगों का पेट भरा हुआ हो? अन्यथा कुत्ता हो या इंसान अपने पेट भरने के लिएयह कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो करता ही है, हाँ इंसान की जरूरतों में रोटी कपडा और मकान के अलावा भी बहुत कुछ है, और ये आधुनिल उपभोक्तावाद की उपज है.
अमिताभ भी एक इंसान हैं, महानायक हैं या नहीं ये बहस का मतलब नहीं है लेकिन ये उनकी महानायकी ही है की आज हम सभी इस मुद्दे पर बहस कर रहे हैं?
मुझे पूर्ण विश्वास है की शायद ही कोई भद्रजन मेरे सवालों का ईमानदारी से उत्तर दे पाएंगे|
रवीश जी क्या बिन्दास पोस्ट लिखे है....आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ.....|अभिताभ कोई बहुत बड़े महानायक नहीं है......कभी मुलायम तो कभी अमर सिंह के साथ.. अब बारी मोदी के साथ जाकर वहां का ब्रांड बनने की .... यह तो कोई बात नहइ हुई.... यू पी में दम है कहते कभी वह नहीं थकते थे...आज मोदी का गुणगान कर रहे है..... अब सपा के साथ शायद दाल नहीं दल रही है अतः अपना भविष्य दूसरी जगह तलाश रहे है ....अभिताभ ने अभी तक कौन सा ऐसा काम किया है जो हम उनको महानायक कहे... रवीश जी आप जिस अंदाज में अपनी बात कहते है वह अंदाज काफी लाजवाब होता है ...यह कला किसी पत्रकार में नहीं है .....टीवी पर जब आप ओन एयर रहते है तो दर्शको को बाधने की कला आपमें है....| आज को कमाल ही कर दिया आपने .... आपकी बात सोलह आने सच है.....खूबसूरत पोस्ट के लिए शुक्रिया.............
रवीश जी मेरा तो यह कहना है अभिताभ ने अभी तक समाज सेवा के कितने काम किये है जिनसे गरीबो का उधहार हुआ है.....अपना घर भरने तक ही वह सीमित है.......फिर हम कैसे महानायक का तमगा उनके साथ लगा दे.....
आपने अच्छा लिखा है .....आपकी जितनी तारीफ आपकी की जाए उतनी कम है..... धांसू लिखे है ..... एक पत्रकार से ऐसी अपेक्षा होनी चाहिए.........परन्तु आज दुर्भाग्य है इस ढंग से साफ़ गोई से कोई अपनी बात नहीं रखता.....शुक्र है रवीश जी आप जैसे लोग अपनी बात सही ढंग से रख रखे है.....
raveesh ji mri baato se kahan tak iteefak rakhte hai aap?
रवीश जी क्या बिन्दास पोस्ट लिखे है....आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ.....|अभिताभ कोई बहुत बड़े महानायक नहीं है......कभी मुलायम तो कभी अमर सिंह के साथ.. अब बारी मोदी के साथ जाकर वहां का ब्रांड बनने की .... यह तो कोई बात नहइ हुई.... यू पी में दम है कहते कभी वह नहीं थकते थे...आज मोदी का गुणगान कर रहे है..... अब सपा के साथ शायद दाल नहीं दल रही है अतः अपना भविष्य दूसरी जगह तलाश रहे है ....अभिताभ ने अभी तक कौन सा ऐसा काम किया है जो हम उनको महानायक कहे... रवीश जी आप जिस अंदाज में अपनी बात कहते है वह अंदाज काफी लाजवाब होता है ...यह कला किसी पत्रकार में नहीं है .....टीवी पर जब आप ओन एयर रहते है तो दर्शको को बाधने की कला आपमें है....| आज को कमाल ही कर दिया आपने .... आपकी बात सोलह आने सच है.....खूबसूरत पोस्ट के लिए शुक्रिया.............
रवीश जी मेरा तो यह कहना है अभिताभ ने अभी तक समाज सेवा के कितने काम किये है जिनसे गरीबो का उधहार हुआ है.....अपना घर भरने तक ही वह सीमित है.......फिर हम कैसे महानायक का तमगा उनके साथ लगा दे.....
आपने अच्छा लिखा है .....आपकी जितनी तारीफ आपकी की जाए उतनी कम है..... धांसू लिखे है ..... एक पत्रकार से ऐसी अपेक्षा होनी चाहिए.........परन्तु आज दुर्भाग्य है इस ढंग से साफ़ गोई से कोई अपनी बात नहीं रखता.....शुक्र है रवीश जी आप जैसे लोग अपनी बात सही ढंग से रख रखे है.....
raveesh ji mri baato se kahan tak iteefak rakhte hai aap?
103 कमेंट्स आ चुके हैं। अब और क्या जोड़ूं। बस तीन समाचार कमेंट के रूप में रखता हूं।
१. जिसका ज़िक्र इस पोस्ट में है। मोदी - अमिताभ वाली जुगलबंदी।
२. शाहरूख के बयान पर बवाल, धमकी, और उनका प्रतिवाद।
३. आज समाचार अया है अमिताभ जी रण दिखाने उनके घर जायेंगे जो हिन्दी प्रदेश के लोगों को अपने प्रदेश से खदेड़्ने पर तुले हैं।
बाप रे बाप.....इतना झगड़ा...वाकयुद्ध...और कोई काम नहीं है क्या?...............
शाहरूख,अमिताभ,मोदी, राहुल गांधी,रवीश, मोहन भागवत .......सबके अपने अपने स्वार्थ हैं.http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
Ravishji,
Amitabh ko mahanalayak kahna paap nahi hain. Sach ko sach kahna yadi paap hai to phir ye paap hi sahi. Amitabh ne pahle apni chhavi ek angry youngman ki banayi aur apni is chhavi ko unhone khud hi garrha apni aisi filmo ka chayan karke jo unki is chhavi ko brand banati, ek aisa angry youngman jo samaj ke sabhi anyayo se ladta hain, bhrashtachar aur samajik asamanta se ladta hain. Ek mahasafal kalakar hone ke baad bhi unhone filmo ko nahi chhoda. aur paisa kamane ke liye unhone ABCL banayi aur usme kangal ho gaye. Ek baar unhone ek film puraskar samaroh me aage puraskar nahi lene ki ghoshna ki aur abhi wo hi Amitabh puraskar pane ke liye utuskta dekhte hi banta hain. Kangal hone ke baad hi unhe Amar Singh, Mulayam Singh, Anil Ambani jaise dost mile jinhe Amitabh ne kangali se ubarne me use kiya. Ab bhi shayad kuchh aur kamana baki hoga isliye Narendra Modi aur Bal Thackeray jaise fascist politicians ke aage natmastak hain. Dhanyavad Ravish abhi tak aapko TV par suna tha aaj aapko padhkar aur dhanya hu.
Sir, I had never expected this kind of post from you. I am a regular follower of your blog.
Due to this post, now you included yourself in "fatiture media". Anyways I appreciate your post. But your should have used words more intelligently. Yes, off course you can not call a pig as a horse. But you have to respect others especially some one who is senior in many aspects.
I will keep visiting your blog. I hope you will continue posting such things and at the same time mind the larger ecosystem of society and majority opinions.
आपके लेख में भावना ज्यादा है.. तर्क कम.. अमिताभ गुजरात के लिए ब्रांड अम्बेसडर है मोदी के नहीं.. और ये काम करना उनका पेशा है.. और पेशे के आधार पर प्राथमिकताये तय करते होगें.. आप उनसे ज्यादा उम्मीद लगाए बैठे है..
तुकबंदी से बनाया इस पोस्ट का शीर्षक अपमानजनक है... आपसे ऐसे सतही शीर्षक की उम्मीद नहीं थी.. शायद हम भी आपसे ज्यादा उम्मीद लगाए बैठे है...
Ravish ji
inn comments ko padhke maja aa gaya. Ek idea deti hoon inn comment ko lekar kyun nahin ek special programme bana lete,
ek baat aur kehna chahungi, AB acting ke maamle mein bhale hi mahanayak ho lekin jub baay oosulon ya insaniyat ki aayegi to unhein ek fellure insaan hi samjha jana chahiye.
महानायक यदि मोदी के साथ ना खड़े होते तो शायद ना-लायक ना होते?
ब्लॉग जगत ही सारे शूरमाओं के आँख खोलेगा
क्यों रविस जी खुली की नहीं
kya baat kahi hai ravish ji dil ko chuu gayi.kal mai b tv channel dekh rha tha to ek reporter ne unse Shahrukh ki controversy ke bare me pucha to unhone kuch bhi bolne se mana kar diya,jbki unhe film industry ka ek kalakar hone ke nate Shahrukh ke sath khade hona chahiya tha.pr afsos hamare desh me jaise ekta kam si hoti dikh rahi hai.
रवीशजी आपने शब्दों में अमीताभ बच्चन के चरित्र को बयां किया है..कि वो किस तरह से अवसरवादी और पैसे से बिकने वाले इंसान है इसके बारे में मैं भी पहले कुछ लिख चुका हूं गौर फरमाइएगा ...
उस दिन जब हमने टीवी पर विज्ञापन देखा जिसमें अमिताभ ने ये कहा ..
आईये जड़ से मिटाए पोलियों....
अगले ही विज्ञापन में अमिताभ बोला... पेप्सी पियों हमने कहां यार ये तो हद हो गई व्यावसायिकता के कहर की ...सिर्फ दो बूंदे जिंदगी की और पूरी बोतल जहर की....
अमिताभ तुम कहते हो बोरो प्लस लगाओं, फटे होठों को सुंदर बनाओं, टेंशन अनिद्रा का खत्म करो खेल, रोज लगाओं नवरत्न तेल ....
अमिताभ, हमारे होठ नहीं सारी जिंदगी फटी है...
टेंशन और अनिद्रा में सारी उम्र कटी है...
हमारा पेट हाजमोला का नहीं दो रोटियों का मोहताज है...
और ऐवरेडी ट़ॉर्च से जो दूर ना हो ऐसे घने अंधेरों का राज है...
तुम कहते हो रंग लगाओं दिवारों को गर दिवारों से है प्यार...
अरे हमें को यहीं नहीं पता की दिवारों में दरारे है या दरारों में दिवार...
अमिताभ हमारा दर्द कभी चुटकी में नहीं जाता है..
यहां तो बस नए दर्द के आने पर पुराना युंही हट जाता है...
अमिताभ तुम वाकई में जानते ना कि क्या है हमारी जरूरत...
तो हम भी कभी नहीं करते ये सब लिखने की जुर्रत....
लेकिन ये जुर्रत हमने की है..
क्योंकि जब-जब इस देश पर मुसीबतों ने अपना कहर बरपाया है...
दानदातांओँ की सुची में तुम्हारा नाम कहीं नज़र नहीं आया है...
नाही पिताजी की याद में तुमने कोई अस्पताल खोला है..
तुमने तो सिर्फ और सिर्फ मधुशाला की पंक्तियों को महफिलों में बोला है...
अमिताभ हम जानते है..तेरे पास बंगला है..
.गाड़ी है...हिरे है...मोती है...
पर याद रख कफन में जेब नहीं होती है...
कफन में जेब नहीं होती है....
हर किसी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है...आज रवीश जी भी आर्टिकल लिख रहे हैं तो अमिताभ पर क्योंकि उनके ऊपर लिखा गया आर्टिकल लोग पढ़ेंगे और ना सिर्फ पढेंगे बल्कि कमेंट्स भी देंगे...और अगर आर्टिकल सदी के महानायक के खिलाफ लिखा हो तो बात ही क्या...सपोर्ट करने वाले भी खूब लिखेंगे और विरोध करने वाले भी...मैं आपसे पूछना चाहूँगी रवीश जी कि आपने धर्मेन्द्र या जितेन्द्र पर क्यों नहीं लिखा कुछ? दूसरों को पैसों के लिए बिकाऊ कहने वाली मीडिया ज़रा अपने गिरेबाँ में भी झाँक कर देखे....ये वही अमिताभ हैं जिन्होंने पता नहीं कितने करोड़ों के कर्ज़ से भरी ज़िन्दगी झेली है..तब हममें से कोई उनके बारे में कोई नहीं लिखता था...आज जब सबको पता है कि वे बिकते हैं तो उनके नाम पर हर कोई अपना माल बेचने को तैयार है...वाह!
साथ ही मैं यहाँ यह भी साफ करना चाहूँगी कि न तो मैं अमिताभ की फैन हूँ न रवीश जी कि विरोधी..मैंने उनका ब्लॉग हमेशा शौक से पढ़ा है..लेकिन मुझे यह नहीं समझ आता कि लोग दूसरों की ज़िन्दगी में टाँग क्यों अड़ाते हैं...और वो भी वैसे लोग जो खुद ही वही काम करते हैं जिसके लिए दूसरों की खटिया खड़ी करने का उन्हें शौक होता है
filmkar amitabh ke samne lagta hai...patrakar ravish haar rha hai...lekin ye haar nahi hai...akhir hitlar, polpot, Modi aur kai logon ke bhi karoron supporter the ki nahi?..amitabh ki quality yahin hai ki woh zahil Indians ko entertain karta hai....jabki Ravish ke NDTV ki TRP mahaj 8% hai....lekin itihas amitabh ko corrupt aur moral-less insan ke roop mein hi yaad rakhega
फ़िर से हस्तक्षेप करने के लिए माफ़ी। पर कहे बिना नहीं रहा जा रहा कि कोई भी अन्य अभिनेता मसलन कमल हासन, जितेंद्र यहां तक कि सुनील दत्त भी अपने सभ्य, सुसंस्कृत और साहित्य प्रेमी वगैरह होने का इस तरह प्रदर्शन नहीं करते फिरते। न ही वे यह करते हैं कि एक दिन ‘‘वैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद...’’ गाकर वाहवाही लूटें और दूसरे दिन, अपनी फ़िल्म-रिलीज़ से एक दिन पहले, पत्रकारों और फ़ोटोग्राफ़रों को बुलाकर पैदल मंदिर-दर्शन को निकल पड़ें। मगर सफ़लता नाम की बीमारी को हमने इतना महत्व दे दिया है कि सारी गंदगियां इसमें छिप जाती हैं। सफ़लता को लेकर व्यक्ति और समाज के इसी पागल आकर्षण और रुझान को देखकर लोग सफल होने के लिए कुछ भी कर डालते हैं। वे जानते हैं कि एक बार सफ़ल हो गए तो सब कुछ माफ़ हो जाएगा और आगे भी होता रहेगा। अगर सफ़लता इतनी ही बड़ी चीज़ है तो फिर रवीश भी अपने क्षेत्र में एक अत्यंत सफल व्यक्ति हैं। इनके कहे को भी उसी भक्ति भाव से क्यों न लिया जाए और उसपर उंगली उठाने का अधिकार क्यों किसी को दिया जाए !?
मुझे तो नहीं लगता कि अभिषेक बच्चन तुषार कपूर और सनी ड्योल से ज़्यादा प्रतिभाशाली हैं। मगर धर्मेंद्र या जीतेंद्र में आए दिन नेता बदलने-बनाने की ‘कला’ की ही कमी लगती है।
एक बात तो साफ हो गई कि अमित जी की तरह पंखे आपके भी कम नहीं हैं। अलबत्ता कुछ ठंडे कुछ गरम है. अपने देश में एक ही चीज़ तो मुफ्त और आजाद है- राय। पर भाई लोग उस पर भी अपनी पसंद का लेबल चाहते हैं. पंखों की यही समस्या है. खैर उस पूरे प्रकरण में अपने को तो यही लगता है कि अमित जी हों या शाहरुख हम कलमनवीसों की तरह सेल्समैन हैं. कभी सपने बेचते हैं तो कभी आवाज़ तो कभी चेहरा , यानि जो बिक जाए, क्या पता किसको क्या भा जाए।
मू्रख तो वो ग्राहक है दुकानदार को भी भगवान मानने पर तुला बैठा है. अपने मोदी जी कितने ही दंगाप्रवर और अस्पृश्य हों. 24 घंटे की चुनाव यात्रा में उनके साथ फरसान का भोग लगाने का रस कौन छोड़ता है, क्या हम श्रमजीवी कभी उस थाली का नकद दाम चुकाते हैं.
आप अपनी राय के लिए स्वतंत्र हैं पर भाई अ हो या ठा- शब्दों को बेलगाम न छोड़ो पार्थ। कलम चालू रखें। आनंद आता है बतकहियों में.
अगर आपको अमिताभ की आलोचना करने की स्वतंत्रता है तो अमिताभ को अपनी रोजी-रोटी की मार्केटिंग करने की स्वतंत्रता भी तो है भाई साहब!!
जिस प्रकार आप अमिताभ के लिए अपनी पसन्द के और अपने हिसाब से उचित शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं उसी प्रकार अमिताभ भी अपनी पसन्द के और अपने हिसाब से उचित तरीके से अपनी फिल्मों की मार्केटिंग कर रहे हैं!! अगर आपकी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' में कुछ ग़लत नहीं है तो उनकी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' में ग़लत क्या है?
रवीश भाई,
यह 'महानालायक' पोस्ट कस्बा की टीआरपी बढ़ाने में बहुत ही लायक साबित हुआ.
मुबारक हो.......!!!
हुजूर अमिताभ को महानालायक कहने से पहले अपने ज़ेहन में झांकर देखिये, आप खुद कितनी एक्टिंग करते हैं, अपनी नौकरी बचने के लिए. कभी किसी दौर में आप samajvadi वगैरा रहें hon तो रहे हों, आज इस लबादे को ओढ़कर आप, अपनी नौकरी बचा रहे हैं. फिर भी अपनी किस्मत देखिये निजाम बदल जाते ही आप का सिंघासन डोल उठा है .
You are sucking blood of hindus and always have words of appreciation of Congress, Shahrukh and Muslims... give me your real name mr. Ravish Kumar or Ravish Khan... ??? Total Time waste hua... Refund me my time by stopping this Communist Channel "NDTV - Nehru Dynasty Television"... Don't be a reporter do some Hajjam or Kasai ki job after all your Blog Name is Qasba means Related to Qasab...
RAVISH JI NAMASTE,
SADI KA MAHANAYAK APKI PUSTAK PADHI MAINE ,NIRASHA HUI.KISI BARE ADAMI KO SIDHI BANAKAR NAM KAMANA ACHCHI BAT NAHI HAI.AGAR MAI APKI BURAI KARU TO SUNANE BALE LAKHO MIL JAYEGE.BADHAIYA BHI MILEGI.RAHI ALAG ALAG LOGO AUR SANSTHA SE JURANE KI BAT TO HAM SABHI HAMESHA PARTY AUR SANSTHA BADALTE RAHTE HAI ,SHAYAD AAP BHI.INSAN KA PRAKRITY HAI YE .........ISE JHUTHLAYA NAHI JA SAKTA HAI.
amitabh ji kewal ek actor hai. actor ka kam hota hai har paristhithi me baji apne pass rakhe.
नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री क्यूँ बनना चाहिए ????????????????
देखो मित्रो न तो मुझे किसी की तारीफ में कसीदे पढने का शौंक है और न ही किसी को भरमाने का. परन्तु समकालीन राजनीती में बड़ा प्रशन है की ऐसी क्या बात है जो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए और क्यूँ उनका बनना जरुरी है.
इस प्रशन का उत्तर जानने से पहेले कुछ और भी जान लेते है.
http://parshuram27.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
भाई रवीश जी कमाल है, आपने अमिताभ बच्चन जी पर इतना गौर इसलिए ही किया क्यूंकि बीजेपी की किसी सरकार को वो सहायता करते दीखते प्रतीत होते है. परन्तु उनपर भी गौर कीजिये जो अभिनेता कांग्रेस में उछल कूद कर रहे है. यह प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी अपने गेंग के साथ हर क्रिकेट मेच में पहुँच जाते है कभी इनके दोयम दर्जे के क्रिकेट प्रेम पर भी लिखे, अब ब्लॉग लिखने पर एन डी टीवी वाले तो दबाव कम से कम नहीं ही डालेंगे. यहाँ तो आप स्वतंत्र है.
या वास्तव में आप भी चाहते है की "प्रोफाशनली" सिर्फ पत्रकार को ही टीवी चैनल और अखबार बदलने की स्वतंत्रता और हक़ है, किसी फ़िल्मी अदाकार को नहीं. क्यां पार्टी की तरह सभी चेनल भी विचारधारा के मामले में नहीं बंटे है? फिर तो आपके एन डी टीवी पर बड़ी दबंगई से श्री विनोद दुआ जी जो बोलते है, तो वो मुलायम यादव गेंग के "सहारा टीवी" पर कुछ समय पहेले क्या परोस रहे थे ? या आप पत्रकारों को यह स्वत्नत्रता है परन्तु फ़िल्मी अदाकारों को नहीं क्यूंकि वो आप की तरह रोज ब्लॉग नहीं लिखते इन घटनाओ पर अपने स्पष्टीकरण के लिए. और जो टिपण्णीकार आपकी हाँ में हाँ मिला रहे है क्या वो भी पिछले ६० सालो से एक ही पार्टी को वोट देते - देते दिमाग से कुंद नहीं होगये?
आपका प्रिये
त्यागी
www.parshuram27.blogspot.com
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