दो पंक्तियों में ही बहुत कुछ कह दिया आपने। सच तो ये है कि ये बरसात भिगोने के लिए होती ही नहीं। अब तो शायद लोग भी परवाह नहीं करते। महज़ अपने नाकारे भाई को कुर्सी पर बिठाने के ख़्वाहिशज़दा हैं लोग। बाक़ी मतलब तो संबंध और पहुंच की धौंस से ही निकल जाता है।
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दो पंक्तियों में ही बहुत कुछ कह दिया आपने। सच तो ये है कि ये बरसात भिगोने के लिए होती ही नहीं। अब तो शायद लोग भी परवाह नहीं करते। महज़ अपने नाकारे भाई को कुर्सी पर बिठाने के ख़्वाहिशज़दा हैं लोग। बाक़ी मतलब तो संबंध और पहुंच की धौंस से ही निकल जाता है।
सत्य कहने को बस दो शब्द काफ़ी हैं .. कोई जरूरत नहीं लंबे चौङॆ लेखों की.. धन्य्वाद.
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