(एक)
दंगाईयों का पीछा करते कैमरे में
तुम भी दिखे थे चौराहे पर
बेबस, बेजान ठिठके प्रतिमाओं में
पास में जल रहा था एक ठेला
और उस पर गाड़ीवान का परिवार
जो लौटा नहीं था चंपारण
डांडी में नमक बनाने के बाद
घेर लिया गया तुम्हारी ही प्रतिमाओं के नीचे
(दो)
इस बार नज़दीक से क्लोज़ अप में दिखे तुम
सचिवालय और थानों में टंगी तस्वीरों में
बेबस देखते दर्ज होते झूठे एफआईआर को
चुपचाप पढ़ते उन फर्ज़ी नामों को
और गिनते रहे लाशों को रात भर चुपचाप
कोई पूछेगा तो क्या बताओगे तुम
कहां थे उन ७२ घंटों में
नोआखली या अपनी तस्वीरों में दुबके रहे
(तीन)
इस बीच अभी अभी खबर मिली है
पत्थरों में विसर्जित गांधी को अब
पुरातत्व विभाग के हवाले कर दिया गया है
और गुजरात नरेंद्र मोदी को दे दिया गया है
७२ घंटों से भी ज़्यादा समय के लिए
और साबरमती में एक नया संत आया है
गोधरा होते हुए...
साबरमती एक्सप्रैस में सवार घूमता जा रहा है
पूरे गुजरात में...
सूत कातते चरखे की तरह
जिनपर काते जायेंगे अब खाकी निकर
(चार)
तब भी गलियों में बिखरे लाशों को छोड़ कर
उन्हीं भागते कैमरों की तस्वीरों में अचानक दिखे तुम
दबे पांव... चुपचाप गुजरात से निकलते हुए
बेजान और बेकार हो चुकी अपनी प्रतिमाओं को छोड़ कर
यह कविता मैंने ८ अप्रैल २००२ को लिखी थी। पहली बार सार्वजनिक कर रहा हूं)
2 comments:
Itnee achhi kavita ke bawjood kisi ne do shabd kahne ki zahmat nahi uthai.
Rabish ji itni achhi kavita padhne ke liye aap badhai ke paatr hain.
sir kabile tarif hai.. hala ki mei apka kuch samay pehle hi paida hua fan hu toh uske liye mafi chahta hu par ab mere prem ko apke prati koi kami mehsus ho tab kehna..
ab ap mere ghar ke sadsye saman hai..
apke prati bharpur aastha hai meri..
apka apna ankit.. :)+((+
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