अक्सर मोहल्ले में हम किसी बलशाली बलवान को देखते हैं तो यह जानते हुए भी कि वो ग़लत है, हम प्रेरित हो जाते हैं । क्योंकि वो एक मोबाइल कोर्ट की तरह नज़र आता है जिसकी विधिवत स्थापना जावेद अख़तरीय सिनेमा ने हमारे दिलो दिमाग में कर दी है । हम हीरो का मतलब एक अच्छा और हैंडसम विलेन समझते हैं । हीरो और विलेन में बारीक अंतर होता है । दोनों ग़रीबी और सिस्टम की नाकामी की देन होते हैं । बस हीरो के साथ एक हिरोइन होती है और अच्छे वाले लव सांग । इस चकाचौंध में हीरो का मोबाइल कोर्ट एक मोरल अथारिटी लगता है । विलेन के भी कपड़े लत्ते कम अच्छे नहीं लगते । ध्यान से देखेंगे कि एक हीरो अपने ही जैसे एक विलेन को ख़त्म करता है । हीरो न तो सिस्टम है न ही उसकी जीत सिस्टम में बदलाव । सुपर पावर की इसी चाहत में हम बदमाशों को सांसद बना देते हैं और दबंग जैसी फ़िल्म पर सौ करोड़ लुटा देते हैं ।
सुपर पावर एक गैर लोकतांत्रिक चाहत है । जो सारे सिस्टम को अपने हिसाब से चलाता है । ओबामा सीरीया पर हमला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र नहीं जाते । खुद एलान कर देते हैं । हम अमरीका से सुपर पावर बनने की प्रेरणा लेते हैं जो राजा भैया या शहाबुद्दीन की तरह दिन भर किसी दूसरे के खेत खलिहान में घुसकर कब्ज़ा करने की योजनाएँ बनाता रहता है । अगर हम भारत को ऐसा सुपर पावर बनाना चाहते हैं तो राजा भैया को प्रधानमंत्री बना दीजिये । और प्लीज़ परमाणु बम बनाने का एक कारख़ाना मेरे मोतिहारी में खुलवा दीजिये ।
सुपर पावर एक हीन ग्रंथी है हमारी । महान देश से हम ब्रिटानिया प्रायोजित शक्तिमान सीरीयल बनने लगे हैं । दरअसल सुपर मैन या सुपर पावर की नौटंकी या एनिमेशन बच्चों में खूब हिट होती है । क्योंकि उन्हें मज़ा आता है । सुपर पावर का सपना भी एक एनिमेशन फ़िल्म है जो इंडिया के बच्चों को दिखाया जा रहा है । संयोग भी अच्छा है । अर्जुन रा वन, क्रिश, रजनीकांत की फ़िल्में खूब आ रही हैं । हमारे हीरो अपने सिनेमाई नायकवाद से बोर हो गए हैं इसलिए जांघिया बनियान बाहर पहन कर एनिमेटेड होने लगे हैं । ये सुपरमैन वाले सारे किरदार एनिमेशन में ही क्यों आते हैं ? सोचियेगा ? इसमें धर्म गुरु भी एक्टिव हो गए हैं । वो भी भारत को जगत गुरु बनाने की चाहत का बाज़ार फैला रहे हैं । आध्यात्मिक सुपर पावर भारत ।
आजकल के नेता भी इस एनिमेशन का खूब इस्तमाल कर रहे हैं पी आर एजेंसियों के ज़रिये कि वे हार्लिक्स बालक की बजाय एक्स डियो लगाने और जाकी पहनने वाला माचो लगे । हम नायक के भूखे लोग हैं । नायक चाहिए । सुपर पावर और मर्दाना शक्ति को बढ़ाने की एक दवा है मूसली पावर, मुझे देनों में फ़र्क नज़र नहीं आता । हिन्दी के अख़बारों में मूसली पावर का विज्ञापन खूब होता है अंग्रेजी के अख़बारों में सुपर पावर का । जिम के विज्ञापनों की तरह सुपर पावर बनने के कई खोमचे लगा दिये गए हैं । ऐसे बाज़ार में सुपर पावर सुपर माल की तरह सुखद क्यों लगता है ? सोचना चाहिए ।
मज़बूत नेतृत्व की चाहत सुपर पावर वाली है । इसका उभार भी हमारी कुंठा से आता है । बिना ठीक से समझे इसका नारा लगाने लगते हैं । नेतृत्व अच्छा और सदाचारी होना चाहिए । मज़बूत क्या होता है । उसकी ताक़त जनता है न कि नेता की अपनी सनक । नेताओं का मूल्याँकन उनकी सामूहिकता से होना चाहिए न कि एकांगीपन से । मज़बूत नेतृत्व सुपर पावर की तरह एक सांप्रदायिक सोच है । जो राजनीति के शिखर पर पहुँचता है वो मज़बूत ही होता है । एक कृत्रिम अवधारणा है मज़बूत नेतृत्व । ओबामा को पुतिन ने एक ही घुड़की में शांत कर दिया । दरअसल दोनों ही मज़बूत नेतृत्व के नाम पर बदमाश नेतृत्व हैं ।
मैं यहाँ सुनना चाहूँगा कि भारत को कैसा सुपर पावर होना चाहिए ? सुपर पावर बनते ही हमारे लिए कौन सी संभावनाओं के द्वार खुलेंगे ? हम कहाँ कहाँ युद्ध करेंगे ? हम कहाँ कहाँ बम गिरायेंगे ? कौन कौन से काम बाकी रह गए हैं जो हमें सुपर पावर बनकर पूरा करना है । भारत सुपर पावर बने न बने लेकिन अच्छा भारत ही बन जाए बहुत है । जिसमें सबकी भागीदारी हो और सबका भला हो ।
( आई आई टी दिल्ली के लिए लिखा था कि क्या भारत सुपर पावर बन सकता है ? )
Ravish Kumar
32 comments:
आगे निकलने की चाहत सबमें रहती है, आईआईटी वालों तो और भी, क्योंकि वे अन्य से आगे निकल कर ही अपना स्थान बना पाते हैं। लोकतन्त्र कहीं सबको मध्यम राग गाने का आदेश तो नहीं देता है?
रविशजी
आप लिखते भी अच्छा और बोलते भी अच्छा है। इसमें कोई संदेह नहीं। किन्तु संदेह इस बात का है की सभी अच्छे लिखे और बोली हुई बाते सही हो। कुछ-कुछ ऐसा लगता है की खबरिया चैनलो में नकारात्मक खबरों के ओर झुकाव ज्यादा होता। संभवतः इसमें देखने वाले की भी पसंद और नापसंद जाहिर होता है। जाहिर सी बात है की सब आदर्शवाद पर आधारित तो हो नहीं सकता की पत्रकारिता के जो भी आधारभूत उसूल हो उस पर ही टिक सके। ऐसे भी आजकल के समय उसूल शब्द कुछ-कुछ फिजूल सा लगता हुआ हर कही ठोकर खता फिर रहा है। फिर मै चाहू की आप इसके साथ गलबहिया करे ये कुछ ज्यादती होगा।
खैर बाते आज के पोस्ट की। भारत को सुपर पावर बन्ने के सम्बन्ध में। हमें बनना चाहिए की नहीं। ऐसा लगता है की हम चाहे और कल हमारे देश का नाम सुपर पॉवर रख दिया जायेगा। संभवतः इसका इस्तेमाल बेसक नेताओ के द्वारा नारे और वोट के अन्तरंग सम्बन्ध के रूप में क्या जा रहा हो किन्तु ,इस चर्चा के सकारात्मक और नकारात्मक पहलु पर साथ -साथ विचार करना चाहिए। मुझे लगता है की आपके सकारात्मक सोच के ऊपर कुछ-कुछ कुंठा की परत जमा हो रही है जो की आपके विचारो के विकास को मुझे लगता है अवरुद्ध कर रहा है।
पुर पोस्ट में सिर्फ आपके अंतिम दो पैरा में कुछ तथ्यपूर्ण बाते कही है आप इसी के इर्द-गिर्द चर्चा करते तो शायद ये पोस्ट ज्यादा सकारात्मक होता।
KEWAL EK BAAT - IITIANS KE LIYE AUR HUM SABKE LIYE .....
WHEN WRITING THE STORY OF YOUR LIFE
DON'T LET ANYONE ELSE HOLD THE PEN
RAVISH JI NOT FOR YOU... FOR KAMAL CHHAP, PANJA CHHAP, AAP CHHAP, HATHI CHHAP, NA MALUM KYA KYA CHHAP...
AAP AISE PROGRAM ME JAYA HI NA KARE.
Today we have nuclear weapons for all three - air,surface and water though we need Food sec. bill , RTE bill and 50% malnutrition citizen.
Sahi bole Ravish Bhai, aapka upar ka paragraph ekdam straight forward hai... aur usi para ka nichla hissa jisme aapne jikra kiye ha ki :- हम बदमाशों को सांसद बना देते हैं और दबंग जैसी फ़िल्म पर सौ करोड़ लुटा देते हैं ।
India Super Power jarur hoga, parantu aaj ki is gandi rajniti aur dhakosle aur so called neta jo chor log hai unke dam par nahi balki ek nai rajintik aur aadhyatmik astar par jiska ki sukshm nirman ho chuka hai aur jo nahi hua wo hone ja raha hai...Humlogo ko dosharopan chhor kar apna hissa karne ki jarurat hai, isme ham piche na rah jaye aur bad me pachtaye.
Dhanyabad,
Niraj Kr. Pragya
abhi tak
kitni baar type kare insan? :-(
ravishji kaafi saara type kiya apne aap kuchh lines add ho jati hai ya achanak se comment box gaayab ho jata hai
aap pahle is blog ko thoda power do pls fir bache to motihaari ek bijali ka generator lagva lena :) pamaanu etc bhool jao
seriously i typed a long comment twice :-(
not now
US ko hi super power rahne dijiye, wo apne ahankar ka danka itana bhi nahi pitata ki log bahare ho jaye. US ki boss-giri me manavata ka ek chehra to zaroor rahta hai. Kisi american se baat kar lijiye wo kabhi bhi rangabaazi wali bhasha use nahi karta. Rahi baat India ko super power banane ki to pahle Asia me thik se apni pahchaan bana le jaha China, Japan aur Korea ke aage log baat nhi karte. Aur ye super power kis sense me hai economical growth me HDI index ke astar par bhi baat hogi. Jaha world bank ke standard (2$ per day) ke hisab se 68 percent BPL ke niche hai (china 27%), uske liye super power banana ek khayali pulaav hai jisase ye BPL walo ko koi matlab nahi, unka sapana bhar pet bhojan, bachcho ke liye school, dawaiyo ka kharcha, betiyo ki liye surakshit sadake hai.
Sorry I was not having a way to write in hindi. I think you are having some good tool to write in hindi or we are not trying hard to get that. That is the reason I am replying English.
As you already pointed out main issue (Riots) that we are manipulated so easily again and again. Always society say we know how politician manipulate us last time, this time we will not allow them and still some of them (intelligent with wrong intention, a deadly combination) are one step ahead of us. Instead of Super power I want tolerance in our mind which Gandhi tried to bring.
Second issue which I am feeling already here in developed countries, hunger for Money, it is slowly coming to India too. Now Money has overtaken Prestige. Now Prestige left as honour killing. Instead of Super power I want to get rid of Honours killing & want to bring prestige of your good doing over Money.
बेहतरीन रचना
जंगल की डेमोक्रेसी
sir aapka ye vyang sach me hume sochne ko majboor kar deta hai, mai to sirf itna chahta hu ki hum shanti ke doot bane rahe lekin es shanti ko kayam rakhne ke liye shakti ka hona bhi jaruri hai, bas hume sochna chahiye ki hume kya chahiye, mere hissab se hum shaktishali khud ke liye bane aur dusro ke liye prerna ki dekho india itna powerful hai fir bhi dusro ke upar haq nhi jamata balki freedom me yakeen karta hai, hume ek shaktishali shant ahnti ka sandesh dene wala india chahiye, kyuki agar hum england ya america ke jaisa superpower banege to fir humari life bhi super power ki 100 se 150 year reh jayegi esiliye hume khud ke upar bharosha aur apni shakti ka pata hona chahiye lekin iska galat istemal nhi....
accha likha hai bhai..
जब कोई सुपरपावर बनने की बात करता है तो मुझे हँसी आती है।
लालची सिद्धान्तहीन गुंडे की चले उससे अच्छा है किसी भले और शांतिप्रिय आदमी का राज हो
Aaj hee world ke top 200 universities kee list dekh raha tha to usme thnee US-47,UK-27,Japan-7,S Korea-6, China-5 aur hum 343 par hain(IIS Bangaluru. Jis din hamari koi universities top 200 main shamil ho jayegi us din super power to nahin haan ek majboot rashtra ke bare main soch sakte hain warna super power ek khayali pulaw hai.
Ravish ji the points mentioned by you some how i feel are correct. Because due to this blind fantasy of today everyone is in some type of race and everyone talks in competitive and comparative terms. If we understand the whole dogma around us today; i feel this whole environment has been created by our white collar babus to hypnotize the public and get them turned in their favor at the time of elections with the help of vague policies, acts and laws having so many t & cs that anyone white collar babu in any corner of the country take one t & c and sit on railway tracks or highways to make people fool, that he is sitting for them. The lacuna in our understanding or being fool so easily can only be removed by a rational approach by media towards every aspect and a constructive & creative leadership at the front which can create a literate and awakened society of open minds with the help of a practical education system and equal opportunities for rahul bhaiyas and You & me.
"स्वर्ण मई लंका न मे रोचते लक्ष्मण ।
जननी जन्म्भॊमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।। " ~~श्री राम
यह सुवर्ण की लंका विजय का अभिमान ऐश्वर्य का लालच त्याग के शत्रु की पत्नी मंदोदरी के लिए भी आदर देने की प्रणाली का स्थापन कर के स्वप्रिया सीता की भी परीक्षा करके अवध की मिटटी को उनके लोगों को स्वर्ग से ज्यादा रोचक और गर्व लायक कहे ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम का देश है
यह 'स्वराज' को 'जन्म सिद्ध' अधिकार समझनेवाले तिलक या 'सत्य अहिंसा सदाचार' को 'परम धर्मं' कहने और जीकर दिखा देने वाले गांधीजी का देश है
आज भले ही मोदी,केजरीवाल या दुर्गा क्षितिज पर छोटी आकृतियों के रूप मैं दीखते हो-मुझे तो इस देश की मिटटी पर यकीन है--इतने युगों से इसको powerless बना तो नहीं पाए दुनिया के देश--फिर भी इस देश को हमलों की जरुरत महसूस भी नहीं हुई..
Sun never sets in British empire :) pata nahin kisne chura liya unka suraj? :)
तो बिंदास आप congress/bjp/sp/bsp के songs गा सकते हो :) :-p
IIT ko pata hoge yah baat pukka :) :-p
we can only be superpower if we beat china in all aspect. otherwise let it be a dream.
allow me to give you one suggestion that will help you take one step forward. BUY ONLY INDIAN MADE AND ENCOURAGE OTHERS.
I don't want India to become a "Super Power" (whatever that means). It's much better if it becomes a more compassionate State. The phrase, "Super power" reminds me of some steroid that body builders take.It results in no improvement to their inner strength,is actually detrimental to health, and only helps in adding & (later) flexing muscles in front of others . Also, this blind obsession with China seems so nonsensical at times.
यदि आम बोलचाल की भाषा में कहा जाये तो सुपर पॉवर माने बहुत बड़ा गुंडा या राक्षस, योरोपीय सन्दर्भ में ड्रेकुला, जर्मनी के सन्दर्भ में हिटलरी मनःस्थिति। भारतीय सामजिक सन्दर्भ में देखने पर हम समझ सकते हैं कि बड़े गुंडे भी यहाँ हैं और उनके पोषक नेता भी यानि असली गुंडे हुए नेता। तो भारतीय लोकतंत्र में जो जीवन मूल्य पनपाए गए हैं वे यही बताते हैं कि आपके उद्धारक यही लोग हैं। याहं लोकतंत्र के नाम पर जंगलतंत्र है, जिसकी लाठी उसकी भैंस। जीवन मूल्यों में न तो व्यक्ति और समाज में जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ़ लाइफ) की बात होती है न क़ानून व्यवस्था की और न ही वैचारिक सामूहिक उन्नति की। संवेदनहीनता और विवेकहीनता हमारी राष्ट्रीय पहचान बन गई है। सिस्टम इन विसंगतियों को एन्जॉय कर रहा है तब क्यों न हमारे नागरिक खलनायकों की आरती उतारें। जुल्मकर्ता भी वही हैं और त्राणदाता भी वही हैं। हमारा मीडिया इन खलनायकों के साथ है बताईये अब हम क्या करें ?
यदि आम बोलचाल की भाषा में कहा जाये तो सुपर पॉवर माने बहुत बड़ा गुंडा या राक्षस, योरोपीय सन्दर्भ में ड्रेकुला, जर्मनी के सन्दर्भ में हिटलरी मनःस्थिति। भारतीय सामजिक सन्दर्भ में देखने पर हम समझ सकते हैं कि बड़े गुंडे भी यहाँ हैं और उनके पोषक नेता भी यानि असली गुंडे हुए नेता। तो भारतीय लोकतंत्र में जो जीवन मूल्य पनपाए गए हैं वे यही बताते हैं कि आपके उद्धारक यही लोग हैं। याहं लोकतंत्र के नाम पर जंगलतंत्र है, जिसकी लाठी उसकी भैंस। जीवन मूल्यों में न तो व्यक्ति और समाज में जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ़ लाइफ) की बात होती है न क़ानून व्यवस्था की और न ही वैचारिक सामूहिक उन्नति की। संवेदनहीनता और विवेकहीनता हमारी राष्ट्रीय पहचान बन गई है। सिस्टम इन विसंगतियों को एन्जॉय कर रहा है तब क्यों न हमारे नागरिक खलनायकों की आरती उतारें। जुल्मकर्ता भी वही हैं और त्राणदाता भी वही हैं। हमारा मीडिया इन खलनायकों के साथ है बताईये अब हम क्या करें ?
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SUPER POWER hona koai buri baat nahi . buri baat hain super power ka ek chehra dekhna. America ka ek chehra wo hain jisne kilometer ki doori chand minute main kar di aero plane banaker , mobile bana ker , ek se ek acha auto mobile banaker or ek chehara America ka hero shama or nagashaki (japan) wala hain . to super power hum kahte hi use hain jiske beshumar chahre ho. ek taraf to america har desh main jaker jung karta hain or dosri taraf insano ko technalogy deta hain. jiske beshumar chahre hote hain wo hi super power kahlata hain. Raza bhaiyya or shabudden inke sirf ek chahra hain beshumar nahi.
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अगर भारत के लोग अपने देश में पूरी आस्था रखें तो भारत को मेनपावर मिल जाएगी.. सुपर पावर तो माया है....
अगर भारत के लोग अपने देश में पूरी आस्था रखें तो भारत को मेनपावर मिल जाएगी.. सुपर पावर तो माया है....
अगर भारत के लोग अपने देश में पूरी आस्था रखें तो भारत को मेनपावर मिल जाएगी.. सुपर पावर तो माया है....
अगर भारत के लोग अपने देश में पूरी आस्था रखें तो भारत को मेनपावर मिल जाएगी.. सुपर पावर तो माया है....
पॉवर कैसी भी हो सुपर बनने की कोशिश करती ही रहती है और जहाँ सफल होती है वो सुपर पॉवर बन जाती है |लोकतंत्र में पॉवर का व्यक्तिवादी स्वरूप होना खतरनाक है| लोकतंत्र में सुपर या सुप्रीम जैसी चीजों की कोई जगह नहीं है |सुपर होना तो एक गलाकाटू प्रतियोगिता है जिससे कोई फ़ायदा नहीं होना है |
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