अंग्रेज़ी के बड़े पत्रकारों से मुझे भी चिट्ठी लिखने की आदत हो गई है । क़स्बा पर कई चिट्ठियाँ लिखी हैं । पूछना था कि ये तुलसीराम प्रजापति कब से बैकवर्ड हो गया ? यह सही है कि तुलसीराम प्रजापति का एनकाउंटर हुआ था जिसके फ़र्ज़ी होने का मुक़दमा अदालत में कई साल से चल रहा है । पर आपने इसे बैकवर्ड समाज का क्यों कहा ।
कल आपकी प्रेस कांफ्रेंस में पी एल पुनिया साहब ने ऐसा कहा है । पुनिया साहब अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष हैं । उन्होंने कहा कि प्रजापति समाज के लोग सीडी लेकर आए थे । आपके कल उस सीडी जारी की थी जिसमें प्रकाश झावड़ेकर और भूपेंद्र यादव एक रिपोर्टर से बात कर रहे हैं कि प्रजापति की माँ से सादा वकालतनामा दस्तखत करा लाते हैं और अदालत में उनकी तरफ़ से अपना वक़ील भेज देते हैं ताकि मुक़दमा कमज़ोर हो सके । आपने इस सीडी के बहाने नरेंद्र मोदी से इस्तीफ़ा माँगा । बहुत दिनों बाद आपने मोदी से इस्तीफ़ा माँगा । अव्वल तो वही आपके प्रधानमंत्री से माँगते रहते हैं । तो खैर प्रकाश जी और भूपेंद्र जी इस सीडी को लेकर टीवी पर नहीं जा रहे हैं । खंडन भी नहीं कर रहे कि उसमें चेहरा हमारा नहीं है । उनकी मर्ज़ी । सीडी विवादास्पद क़रार दे दी गई है ।
लेकिन आपने प्रजापति को बैकवर्ड बताकर चौंका दिया । ठीक है कि सुशील मोदी जैसे नेता नरेंद्र मोदी की पैकेजिंग पिछड़ा नेता के रूप में कर चुके हैं और मोदी ने भी चुप रहकर अपने बैकवर्ड तमगे को स्वीकार ही किया है लेकिन इसके राजनीतिक मुक़ाबले में प्रजापति बैकवर्ड ? प्रजापति समाज ज़रूर पिछड़ा है । यह समाज बसपा से ज़्यादातर जुड़ा है । पर मेरी जानकारी में यह बात पहले नहीं आई (अख़बार कम पढ़ता हूँ ) िक प्रजापति समाज तुलसी को लेकर स्वाभिमान और इंसाफ़ का मुद्दा बना रहा है ।
क्या ऐसे उदाहरणों से आप बैकवर्ड मोदी की काट निकालेंगे । एक पत्रकार ने सही कहा कि इस हिसाब से तो गुजरात की जेलों में बंद वंझारा, पांडियन और सिंघल जैसे पुलिस अफ़सर भी बैकवर्ड हैं । क्या यह राजनीतिक मामला बनने लायक है कि बैकवर्ड मोदी की सरकार में बैकवर्ड पुलिस अफ़सर ही जेल में क्यों । एक संयोग हो सकता है कि कहीं इसी वजह से ये अफसर मोदी के वफादार न हो गए हों । इस संयोग से गुजरात की दूसरी ही तस्वीर बनती है । बैकवर्ड शासन ? नहीं नहीं वहां तो छह करोड़ गुजरात की राजनीति ? नहीं ? मने कह रहे हैं । अच्छा राजनेता अपने वफादारों का बेहतर इस्तमाल करता है । वंझारा की चिट्ठी से साफ है । वैसे इस लिस्ट में पांडे साहब भी जुड़ गए हैं । भागते भागते धरा ही गए हैं ।
बेनी प्रसाद वर्मा टाइप पोलिटिक्स मत कीजिये । जो सीडी सोमवार को प्रशांत भूषण ने सार्वजनिक रूप से जारी की थी उसे प्रजापति समाज के हवाले से बताने का क्या मतलब । हो सकता है कि कुछ लोग आए होंगे मगर क्या ये हल्की रणनीति नहीं है । अचानक आप तुलसीराम की जाति की खोज करेंगे तो मुश्किल में ही पड़ेंगे और प्रजापति समाज को भी असमंजस में डालेंगे । हाँ इस समाज को कई ज़रूरी मसले हैं वो उठायेंगे तो किसी न किसी का भला हो जाएगा । प्रजापति के साथ जो भी हुआ वो एक नागरिक सवाल है
आपका,
सर्वदलीय विरोधी रवीश कुमार 'एंकर'
21 comments:
backward ko hi forward kar do.khisiyani billi khamba noche.mane kah rahe hain
Aajkal bagair jaati ke koi baat nahi hotee hai. Puniya sahib,Ek samay Bahanji ke sabse priya IAS the baad main na jane kya hua ke woh bajai BSP ke Congress main shamil ho gaye.
Congress backward politics kar rahi hai aur backward bichara mara ja raha hai.
Congress backward politics kar rahi hai aur backward bichara mara ja raha hai.
YEH SARE POLITICIAN HARAMI HAIN
इन्होने फिल्टर्स लगाये है। . पहेले बोलो की यह पार्टी का है या उस पार्टी क…फिर कास्ट को ले आते है , फर्म धरम को और फिट भी पॉइंट सेट न हो तो राज्य को लाते है
mudda koi ho ravish ji ke kahane ka theth andaj pasand ata hai,dekhiye is desh ko jati ki rajniti kanha tak le jati hai.
यदि प्रश्न यह होता कि समाज को कितने भिन्न प्रकारों से बाँटा जा सकता है, तो टॉप कौन करता, यह बताना कोई आश्चर्य की बात नहीं।
hardik charan sparsh ravishji,aaj subah jab so kar utha toh ek ghatna ko dekhkar jo mein laghbagh har chauthey ya panchvay din dekhta hoon ek ajeeb si vyavashta aur peeda paida hui,ek ajeeb sa prashn paida hua jawab dhoondna chaha nahi mila;samasya ka hal dhoondna chaha nahi mila,kya aap jawab denge-men jahan rehta hoon waha neechay hi ek mithai ki badi dukan hai waha ka malik apney naukro ko har chuthey ya paanchwe din behrehmi say peet ta hai behosh hotey hain toh hosh mein lakar peet ta hai ek jhunjhlahat si paida hoti hai dil men,lekin kyunki sharir say kamzor hu toh kuch kar ni pata;police ki zaibo ko bhar dia jata ha toh woh bhi kuch ni karti;har naukar ko yeh iljam laga ke peeta jata ha ki chori ki hai gullak mein say karan par kuch aur hotey hain;kya yeh"shinng bharat hai"?? ravishj ek aur prashn hai ki kya hindustan sirf do wargo mein but gya hai ameer ya gareeb yeh islye poocha kyunki yahan julm karne wala reserved class ka hai aur zulm sehne wala bhi(sahayad),agar haan toh aarakshan kyun,?aapse jawab islye pooch raha hoon kyunki aapke liye mann mein wahi prem aur izzat hai jo pitaji kay liye aur kyunki pitaji say upyukt jawab nahi mila islye..
virasat me mujhe shohrat na mili,
tohfe me koi saltanat na mili...
inhe neta kahun ya hasya ki paribhasha...
desh mere mujhe maf karna,
jinda rahne ki kavayad me mujhe..
tere liye jara v fursat na mili...
सही कहा सर आपने, इस समाज को कई ज़रूरी मसले हैं वो उठायेंगे तो किसी न किसी का भला हो जाएगा! पर ये राजनीती करने वाले के समझ के बाहर की बात है!
Sir jee yeh sab toh badi badi batein hai lekin mudda yeh hai ki diwali aur chath par ghar jane ke liye darbhanga ki ek bhi train mein seat nahi hai. aap apne prog. mein yeh mudda kyun nahi uthate..
रविश दा (सर कहना आप को पसंद नहीं)
प्रलोय (बंगाली फिल्म),देखिएगा ... कम से कम पहला हाफ अच्छा है।
सत्याग्रह पर भी आप के राय का इन्तजार रहेगा।
आपके लेख का कटाक्ष करने वाले साले चूतिये हैं।
jaat se bani yeh samaj, jaat se bana sarkar;dariya yeh nirvachan ka, jaat ki naav karaye paar;yeh humare raajneta hain, jaat k thekedaar; raajneeti k kurukshetra ka, yeh hai sabse bada hatiyaar; jaat k naam se logon pe, karte hain yeh chunave prahar;dariya yeh nirvachan ka, jaat ki naav lagaye paar.....
Sure 376 ke liye advice:Delhi se Kanpur ya Gwalior ayiye. Wahan se Gwalior-Barauni pakadiye ya Gorakhpur aayiye.wahan se narkatiyaganj nahin to via chapra Muzzaffarpur nikal jayiye.Ticket pura ek saath Delhi se MFP tak ka banwaiye.
'जाति है की नहीं जाती'
सिर्फ गुनाहगार और voters की जाति तक सिमित है...
देखो टीवी chanels और anchors को छोड़ दिया है की नहीं? :-)कृपा आई है :-) :-p MKRH :-p
अब तक, तो मोदी जी मजबूरी थे, अब जरूरी हो गए हैं,
पुलिस ने तो फर्जी मुठभेड़ में सबको मारा हैं, क्योंकि भारतीय पुलिस समाजवादी हें। क्या अगड़ी जाती, क्या बैकवर्ड.
अगर मिडिया ना बोले तो भी समस्या तो इल्जाम ये की मिडिया बिक गया अगर बोलता है तो आमजन बोलता है की निर्णयात्मक भूमिका निभाता है और रही गोल घेरे की बात वो इस लिए होता है की दस वयक्तियो में उस आरोपी की पहचान करवानी होती है जनता जनार्दन जी।।।।। और एक बात जो लोग मिडिया को ये बोल रहे है की वे टीवी पर ऐसे बोलते है वेसे बोलते है तो वे अपने ऊपर लिखे गए कमेन्ट खुद दुबारा पड़े उन लोगों ने उसमे क्या क्या लिख दिया विद्वान् महा पुरषों
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