सत्ता से दूर होकर राजनीति का कोई मतलब नहीं। दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं। विपक्ष की राजनीति होती ही इसलिए है कि सत्ता निरंकुश न हो। कांग्रेस को जनादेश मिला है लेकिन घमंडादेश नहीं मिला। फिर भी कांग्रेस इस वक्त गुमान में लगती है।
कामयाबी के जश्न में वैसे ही आत्मविश्वास थोड़ा प्रबल हो जाता है लेकिन मीडिया में आ रही ख़बरों को देखकर लग रहा है कि पब्लिक ने इस बार एरोगेंस का लाइसेंस छोटे दलों से लेकर बड़े दलों को दे दिया।
जीत के मौके पर जो बांहे फैलाता वही विजेता जैसा लगता है। कांग्रेस अब उन सभी दलों को ब्लैकमेलर बता रही है जिनके साथ वो काम करती आ रही है। ऐसा लग रहा है कि समाजवादी,लेफ्ट और लालू टाइप के दल ही कांग्रेस का ब्लैकमेल कर रहे थे। कांग्रेस तो देश प्रेम में डूबी हुई सिर्फ राष्ट्रनिष्ठा से काम कर रही थी। कांग्रेस ने कभी इन दलों को ब्लैकमेल नहीं किया। गठबंधन की राजनीति में सारे दलों ने यह तय किया वे अपने दलों का हित देखेंगे। कभी इसे गलत नहीं माना गया। अब इसे ब्लैकमेल बताया जा रहा है। आडवाणी के लिए कुर्सी न होना या उनका स्वागत न करना,सीढ़ियों से अकेले उतरते मुलायम और अमर सिंह की तस्वीरें। लगता है कि इन्हें दुत्कार कर ही राष्ट्रीय पार्टियों के उभरने की जनाकांक्षा का सम्मान हो सकता है।
कांग्रेस को भले इनका साथ नहीं लेना चाहिए लेकिन इतनी उदारता तो दिखानी चाहिए थी। अमर सिंह आज ब्लैकमेलर हो गए। एक साल पहले तक विश्वास मत के दौरान क्या थे। तब क्यों नहीं कहा कि मजबूरी में एक ब्लैकमेल की मदद लेनी पड़ रही है। लालू क्या थे। ठीक है कि कांग्रेस ने भी लालू अमर को काफी दिया। कांग्रेस इसका हिसाब तो दे कि इनके ब्लैकमेल से उसे क्या क्या करने पड़े हैं। किस तरह से ब्लैकमेल की कीमत चुकाई गई है। बीस साल से गठबंधन की राजनीति चल रही है। अभी भी मनमोहन सिंह की सरकार दस दलों के समर्थन की सरकार है। तो क्या बड़े दल होने के नाते कांग्रेस हर वक्त इनको औकात दिखायेगी। खेलभावना भी कहती है कि हारे हुए का सम्मान करो। पहले गले मिलो फिर ट्राफी उठाओ।
पहले कहा गया कि मनमोहन सिंह बालू और ए राजा को पसंद नहीं करते क्योंकि इन पर सीवीसी के आरोप हैं। यह पहले क्यों नहीं कहा गया। क्यों इन्हें पांच साल तक बर्दाश्त किया गया। फिर मनमोहन सिंह ने ही शपथ ग्रहण के बाद कहा कि बालू और राजा उनके सम्मानित सहयोगी हैं। लेकिन अखबारों में खबर भी आई कि बालू के ज़माने में हाईवे प्रोजेक्ट के निदेशक बदले गए। ठेकेदार भाग गए। क्यों भाग गए? क्या मनमोहन सरकार में जमकर कमीशन बाज़ी चली है? तब मनमोहन सिंह ने सत्ता दांव पर क्यों नहीं लगा दी? तब क्यों नहीं कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ पद छोड़ दिया।
भगवान जाने अहंकार है या कुछ और। कांग्रेस को जनता ने मज़बूत कर उदारता के साथ काम करने के संकेत दिये हैं। कांग्रेस को अभी इम्तहान तो देना ही है कि कैसे यह पार्टी तमाम दलों को खत्म कर अलग अलग जनकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। नहीं कर पाई तो फिर कमज़ोर होगी। लेकिन सार्वजनिक आचरण में अकड़ दिखाने का स्वागत नहीं होता। सहयोगी दल आते जाते रहते हैं। सब सत्ता के लिए ही आते हैं। लेकिन सत्ता का सार्वजनिक संस्कार अलग होता है। निजी संस्कार अलग होता है।
नकारात्मक राजनीति को खारिज करने से ही कांग्रेस को बढ़त मिली है। अब वो नकारात्मक राजनीति या पहचान की राजनीति की जगह लेगी तो आने वाले समय में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वैसे भी हर जनादेश पिछले जनादेश से अलग होता है। याद रखना चाहिए। अभी से मान कर नहीं चलना चाहिए कि २०१४ का जनादेश भी मिल चुका है।
20 comments:
कांग्रेस को एक सीमित और संतुलित जनादेश मिला है जो एक हद तक समन्वयकारी प्रशासन चलाने के लिए तो काफी है लेकिन अतिवादी एजेंडा लागू करने के लिए इसमे कहीं कोई जगह नहीं है। दूसरी बात ये कि कांग्रेस इसलिए नहीं जीती की वो वाकई में जनता की दुलारी थी-वो इसलिए जीती कि हमारे पास कोई समन्वयकारी विचारों वाला दल नहीं था जो कांग्रेस को जोरदार टक्कर दे सके।
बीजेपी कांग्रेस का विकल्प नहीं हो सकती, इसकी वजह ये है कि बीजेपी की नीतियों की वजह से देश का एक बड़ा हिस्सा हमेशा इसमें अपना अक्श नहीं देख पाएगा। वाजपेयी सरकार अगर बन गई या 6 साल तक चल गई तो उसकी वजह ये थी कि देश ने सही मायनों में कभी गैर-कांग्रेसी सरकान नहीं देखा था। वाजपेयी के इमेज ने सारे गैर-कांग्रेसी दलों को अपने गठबंधन में ढ़ाल लिया जिसकी कोशिश कभी मोरारजी देसाई ने की थी। लेकिन अफसोस, वाजपेयी के गठबंधन की अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियां कोई आधुनिक विजन नहीं दे पाईं। नीतीश कुमार और नवीन पटनायक(जो अब एनडीए में नहीं हैं)को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी के पास वहीं पिटे पिटाए लोग हैं जो गठबंधन में शामिल हैं। इस बीच मुल्क काफी आगे बढ़ गया है। आधुनिकता जड़ जमा रही है। पिछले पांच साल में मोबाईल और इंटरनेट ने काफी बदलाव किया है। ऐसे में बीजेपी , लाख खानदानवादी मानसिकता के बावजूद कांग्रेस के युवा खून और आधुनिक बातों का कैसे जवाब देगी-कहना मुश्किल है। दूसरी बात ये कि देश में जिस दिन जनतादल का प्रयोग असफल हो गया उसी दिन से कांग्रेस के लिए राह आसान हो गई वरना कांग्रेस की जगह तो म्यूजियम में थी। कांग्रेस अभी तक क्षेत्रीय पार्टियों को दिल से स्वीकार नहीं कर पाई है जो इस देश की वास्तविकता के बिल्कुल खिलाफ है।
कांग्रेस का विकल्प कोई राष्ट्रीय स्तर की सेक्यूलर पार्टी ही हो सकती है। लेकिन वामपंथीयों कि फैलाव कम है, बीजेपी अपनी विचारधारा की वजह से नाकाम है और बसपा की उम्मीदें कमजोर हुईं है। ऐसे में लगता है कि ये कांग्रेस गठबंधन का वनमेन शो बनने जा रहा है। हलांकि राजनीति हमेशा उम्मीदों से भरी होती है।
रविश जी बहुत दिनों बाद आपकी कलम से सचाई निकली है. परन्तु देखना की कही लालू और वाम से ज्यादा सहानुभूति न होजाये. एकदम सटीक बात लिखने के लिए बधाई. परन्तु इस रपट को एन डी टी वी पर जरुर दिखाए.
हा नेता प्रतिपक्ष के लिये कुर्सी का न होना एक बहुत बड़े अहंकार का परिचायक है.
मुझे उस समय बड़ा तरस भी आया और दुःख भी हुआ कुछ भी हो अडवाणी जी एक सर्वमान्य और देश के बहुत प्रतिष्टित नेता हैं.
उनके खड़े रहेने पर कोई भी कांग्रेस का नेता उनको देख कर कुर्सी छोड़ने को राजी न था.
यह एक बहुत बड़ा तमाचा है कांग्रेस संस्कृति और देश के जनादेश पर.
सचमुच कुछ गलत हो रहा है। नेता प्रतिपक्ष हो या पूर्व के सहयोगी, सबको उचित आदर दिया जाना चाहिए। यह जनमत कांग्रेस को इसी कार्य के लिए मिला है ताकि देश में सिस्टम ठीक रहे, न कि जनमत के नशा में मदमस्त हो जाने के लिए। एक संतुलित आलेख के लिए बधाई।
कल के साथी के लिए अदना सा व्यवहार।
अब के साथी के लिए विनती रोज हजार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सतही तौर पर देखें तो पहले कहा जाता था "यथा राजा तथा प्रजा". और इतिहास गवाह है कि भारतीय जनता ने १९४७ तक केवल राजा ही देखे थे और वो भी भांति-भांति के...
'स्वतंत्रता' प्राप्ति के पश्चात जनता को चमडे का सिक्का चलाने की छूट मिल गयी... महात्मा गाँधी को भी भूल गए सब आज़ादी मिलते ही...गाँधी का नाम फिर भी खोटे सिक्के की भांति चल निकला...इस में आश्चर्य नहीं क्यूंकि कलियुग में 'नाम' की महिमा मानी गयी है अनादी काल से :)
सब दोष तो 'उपर वाले' का है :) न मालूम क्या ढूँढता है वो?
कांग्रेस को मिले इस जनादेश का मतलब है कि देश वंशवाद और क्षेत्रीय-जातीय राजनीति का कोई तोड़ निकाल पाने में नाकाम रहा है. पिछले २ दशकों से देश का वोटर एक नई राजनितिक धुरी की तलाश में लगा हुआ था लेकिन इसमें वो असफल रहा. इस दौरान कभी भाजपा को काफी संख्या में लोगों ने विश्वास करने लायक समझकर परखा तो कभी वामपंथ को मजबूती मिली, कभी सपा, बसपा, राकांपा जैसे दल आगे आये लेकिन इन सबकी नीतियों और अजेंडा को देखने के बाद लोग फिर कांग्रेस की ओर लौटने लगे हैं. ये एक विराम है और शायद एक दशक बाद फिर जनता नए प्रयोग के लिए हिम्मत जुटा सकेगी. इस दौरान अगर कोई नेतृत्व उभरकर सामने आता है तो जनता उसे हाथों-हाथ लेगी और अगर ऐसा नहीं हुआ तो दिग्भ्रमित जनता फिर पुराने रस्ते पर लौट आएगी...
सही बात है रवीश जी. कांग्रेस के लिए अब ज्यादा चुनौतियां हैं. पूरा देश उसे गौर से देख रहा है. जैसे लड़की पसंद की न होने के बावजूद कई बार घरवाले हां तो कर देते हैं लेकिन शादी के बाद उसकी एक-एक बात पर न$जर गड़ाये रहते हैं. जो जनता कांग्रेस को चुन सकती है, वह उसे धता भी बता सकती है. अहंकार से ही नहीं कांग्रेस को और भी कई चीजों से बचना होगा. सच्चाई यही है कि जनता ने सबसे त्रस्त होकर कांग्रेस को चुना है न कि बड़ी मोहब्बत से.
वरना 2014 का जनादेश कुछ अलग ही होगा इसमें कोई शक नहीं.
अमर सिंह आज ब्लैकमेलर हो गए। एक साल पहले तक विश्वास मत के दौरान क्या थे। तब क्यों नहीं कहा कि मजबूरी में एक ब्लैकमेल की मदद लेनी पड़ रही है। लालू क्या थे। ठीक है कि कांग्रेस ने भी लालू अमर को काफी दिया। कांग्रेस इसका हिसाब तो दे कि इनके ब्लैकमेल से उसे क्या क्या करने पड़े हैं। किस तरह से ब्लैकमेल की कीमत चुकाई गई
SHABAASH ! ACHCHHA LIKHA HAI.
दोस्तों
जब भी मैं राजनीतिक दलों के बारे में लिखता हूं, उसकी प्रतिक्रिया में लोग मेरी निष्ठा को परखने लगते हैं। स्वाभाविक भी है। मैं यहां साफ कर देना चाहता हूं और बार बार कहा भी है कि मेरी निष्ठा सेकुलर,प्रगतिशील( मतलब सिर्फ लेफ्ट ही नहीं) और काम करने वाली राजनीतिक सोच के प्रति है।
बीजेपी इसमें कङी फिट नहीं बैठती है। लेकिन सवाल विरोध प्रतिरोध का नहीं है कई बार राजनीतिक संस्कृति को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
जब नीतीश की आलोचना करता हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि नीतीश के ज़माने में बदल रहे बिहार पर मेरी नज़र नहीं है। तारीफ की है और करता रहूंगा लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि कुछ गलत दिख जाए तो नहीं कहूंगा। कोशिश यही रहती है कि इसी तरह का नज़रिया सभी दलों के बारे में रहे।
सुशांत का जवाब अच्छा है। हर राजनीतिक दल का अतीत और वर्तमान इतने किस्सों से भरा हुआ है कि एक को पकड़ कर लिखे तो कोई दूसरे किस्से से मुंह बंद करा सकता है। इसीलिए राजनीतिक दलों के बारे में लिखते समय मेरे सहयोगी पाठक कई बार उत्तेजित हो जाते हैं।
लेकिन मैं आहत नहीं होता। आलोचना की बेहतरीन दलीलें ढूंढता रहता हूं। वो मुझे बेहतर करने में मदद करता है। आप खुलकर लिखते रहिए।
ये तो वही बात हुई की ...मोहल्ले में नयी बहू के पाँव भरी हुए नहीं के कयास लगने लगे की लड़का होगा के लड़की......कोंग्रेस क्या करेगी या नहीं ये तो आने वाला समय ही बतायेगा ... हम तो यही दुआ मन रहे है की कुछ अच्छा करे ..... अव्वल तो इस देश का कोई भी राजनातिक दल दूध का धुला नहीं है .पर फिर भी ये तो तय था की लालू ,अमर ब्लेकमेल की राजनीति खेल रहे थे .....ममता दी को देखिये .ओर आने वाले वक़्त को.....करुनिधि जी भी कुछ अंगडाई तो लेने लगे है .....
दरअसल बेचारी भारतीय जनता के पास कुछ ज्यादा ऑप्शन ही नहीं है....सच पूछे तो सब बुद्धि लगा रहे है की यूँ जीती के यूँ जीती....आज एक महान विचारक ने नया शब्द दिया .कलर पॉलिटिक्स...यानी जनता राहुल के गोरे रंग ओर सूरत पर रीझ गयी....यकीन नहीं आता तो आज का "टाईम्स ऑफ़ इंडिया "पढ़ ले ....
कांग्रेस कितनी ही अहंकारी हो, भ्रष्टाचार की जननी हो, "परिवारवाद" की पोषक हो, उद्योगपतियों की दलाल हो, 60 साल में सैकड़ों दंगे करवाये हों… सब कुछ मानते हैं, लेकिन फ़िर भी भाजपा से श्रेष्ठ ही है… जय हो… जय हो…
जब गंगा नदी मानसरोवर से चलती है तो उसका जल पवित्र होता है - सब जानते हैं, नन्हे बालक में भी यही गुण पाते भी हैं...
यह तो मानव ही है जो उसे आज पहले की तुलना में सब स्थान पर अधिक मैला पाता है - काल के प्रभाव से मानव की उत्तरोत्तर बढती जनसँख्या और उसकी बढती आवश्यकताओं के कारण...
और पानी का उपर से नीचे बहना उसका प्राकृतिक स्वभाव है. और संभवतः यह उसकी नियति है जो उसे सागर की ओर ले जाती है जहाँ वो सब मैल छोड़ फिर से आकाश की ओर उड़ जाता है - फिर से मानव/ दानव सेवा में हाज़िर होने...
किन्तु कुछ जल तो गंदे नाले या तालाब में भी जायेगा ही - शायद कमल को जन्म दे मानव को कुछ सीख देने के लिए कि प्रकृति में कोई भी वस्तु या प्राणी यदि है तो वो 'उपर वाले' कि दृष्टि में आवश्यक है - सिनेमा का कोई भी एक पात्र समान, कहानी लिखने वाले कि नज़र में जैसे :)
"बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला" :) दोष तो दृष्टिकोण का है...क्यूंकि 'पसंद अपनी-अपनी ख्याल अपना-अपना'...
kya baat hai sir, kya likhte hai . aapne bilkul sach likha hai.
Congress ko mila ye janadsh is party ki lutiya dubone waala hai..ye janadesh Rahul se jyada Manmohan Singh ke liye mila hai..BJP ke middle class wale voters ne bhi Manmohan Singh ke netritva mein aashtha vyakta ki hai..lekin iska ye matlab katai nahi hai ki aane waale chunavon mein bhi congress ki vijay hogi..asliyat tab maloom padegi jab congress ke poster par sirf Sonia aur Rahul honge..
Wo bahut saare aise logon ko jinhe parivaarvaad ki rajneeti se ghrina hai, unko congress ke khilaaf vote karne ko vivash kar dega
baki 2014 ke pahle dher saare vidhan sabha chunaav hine hain, dekhte hain Rahul gandhi ki maya kya hunar khilati hai.
Jai ho......
Shole ka ek dialog yyad aata hai
Sharabi vo , Juari vo, Kothe pe jane vala vo lekin tumhare muh se to uski tarif hi nikalti hai.
60 saal ki aapni sarkar ke dauran Congress ne kya kya nahi kiya lekin sab maf. Kya Kya yyad dilaya jay , Bhagalpur ke Dange, 1984 ka sikho ka katle aam, Share Market ka girna lakho logo ka barbad ho jana lekin fhir bhi jai ho.
Rajniti ka kya matlab hai mai ab tak nahi samaj paya hu. Mari samaj se muddo pe bahas karna aur muddo par sangharsh karna hi rajniti hai lekin aaj kal lasho par rajniti ho rahi hai
Khair jo bhi ho lekin Ravish ji lagta hai ki Aajkal Hindu hit ki baat karna apradh hai.OOrisa mai jab padri ki hatya hui thi tab sabne mane sari media pagal ho gai thi ki ye kya ho gaya lekin jab ek sanyasi ki waha hatya ho gai thi to kuch nahi.... Matho ka to brastrachar sabi ko dikhai deta hai lekin madarso ki aad mai aur Mishonries dwara kya kya kiya ja raha hai usse kisi jagrok patrakar aur media ko kuch lena dena nahi.
Kyo ki jahan jisse hit sadte ho to vahan ka gudgan karne mai kya harz hai. Amrit pine ko mile to jahar kyo piya jay. Yahi to Kalyug hai.
Is lekh ne bata hi diya Congress kya thi kya hai aur kya ho sakti hai. Vrodhi dal ka neta koi shatru to nahi lekin jahan dosto ( SAPA & RJD ) ki koi kadar nahi vahan aur kya ummid ki ja sakti hai.Aur Jabki Sonia ji bhi janti hai jab videshi mul par sabne saath chod diya tha to lalu hi sabse pahle aage aay they aur Left dwara samarthan vapis lene par SAPA ne hi sath diya tha. Aagar us samay sarkar gir jati to kaun janta hai ki congress itni seats la bhi pati ki nahi....
Jai ho......
Shole ka ek dialog yyad aata hai
Sharabi vo , Juari vo, Kothe pe jane vala vo lekin tumhare muh se to uski tarif hi nikalti hai.
60 saal ki aapni sarkar ke dauran Congress ne kya kya nahi kiya lekin sab maf. Kya Kya yyad dilaya jay , Bhagalpur ke Dange, 1984 ka sikho ka katle aam, Share Market ka girna lakho logo ka barbad ho jana lekin fhir bhi jai ho.
Rajniti ka kya matlab hai mai ab tak nahi samaj paya hu. Mari samaj se muddo pe bahas karna aur muddo par sangharsh karna hi rajniti hai lekin aaj kal lasho par rajniti ho rahi hai
Khair jo bhi ho lekin Ravish ji lagta hai ki Aajkal Hindu hit ki baat karna apradh hai.OOrisa mai jab padri ki hatya hui thi tab sabne mane sari media pagal ho gai thi ki ye kya ho gaya lekin jab ek sanyasi ki waha hatya ho gai thi to kuch nahi.... Matho ka to brastrachar sabi ko dikhai deta hai lekin madarso ki aad mai aur Mishonries dwara kya kya kiya ja raha hai usse kisi jagrok patrakar aur media ko kuch lena dena nahi.
Kyo ki jahan jisse hit sadte ho to vahan ka gudgan karne mai kya harz hai. Amrit pine ko mile to jahar kyo piya jay. Yahi to Kalyug hai.
Is lekh ne bata hi diya Congress kya thi kya hai aur kya ho sakti hai. Vrodhi dal ka neta koi shatru to nahi lekin jahan dosto ( SAPA & RJD ) ki koi kadar nahi vahan aur kya ummid ki ja sakti hai.Aur Jabki Sonia ji bhi janti hai jab videshi mul par sabne saath chod diya tha to lalu hi sabse pahle aage aay they aur Left dwara samarthan vapis lene par SAPA ne hi sath diya tha. Aagar us samay sarkar gir jati to kaun janta hai ki congress itni seats la bhi pati ki nahi....
Jai ho......
Shole ka ek dialog yyad aata hai
Sharabi vo , Juari vo, Kothe pe jane vala vo lekin tumhare muh se to uski tarif hi nikalti hai.
60 saal ki aapni sarkar ke dauran Congress ne kya kya nahi kiya lekin sab maf. Kya Kya yyad dilaya jay , Bhagalpur ke Dange, 1984 ka sikho ka katle aam, Share Market ka girna lakho logo ka barbad ho jana lekin fhir bhi jai ho.
Rajniti ka kya matlab hai mai ab tak nahi samaj paya hu. Mari samaj se muddo pe bahas karna aur muddo par sangharsh karna hi rajniti hai lekin aaj kal lasho par rajniti ho rahi hai
Khair jo bhi ho lekin Ravish ji lagta hai ki Aajkal Hindu hit ki baat karna apradh hai.OOrisa mai jab padri ki hatya hui thi tab sabne mane sari media pagal ho gai thi ki ye kya ho gaya lekin jab ek sanyasi ki waha hatya ho gai thi to kuch nahi.... Matho ka to brastrachar sabi ko dikhai deta hai lekin madarso ki aad mai aur Mishonries dwara kya kya kiya ja raha hai usse kisi jagrok patrakar aur media ko kuch lena dena nahi.
Kyo ki jahan jisse hit sadte ho to vahan ka gudgan karne mai kya harz hai. Amrit pine ko mile to jahar kyo piya jay. Yahi to Kalyug hai.
Is lekh ne bata hi diya Congress kya thi kya hai aur kya ho sakti hai. Vrodhi dal ka neta koi shatru to nahi lekin jahan dosto ( SAPA & RJD ) ki koi kadar nahi vahan aur kya ummid ki ja sakti hai.Aur Jabki Sonia ji bhi janti hai jab videshi mul par sabne saath chod diya tha to lalu hi sabse pahle aage aay they aur Left dwara samarthan vapis lene par SAPA ne hi sath diya tha. Aagar us samay sarkar gir jati to kaun janta hai ki congress itni seats la bhi pati ki nahi....
आज का मंत्रिमंडल विस्तार देख कर लगा की क्या आज भी हम गुलाम देश में रहते है? समय बदला पर उनलोगों ढ सत्ता नही बदली जो आज़ादी के बाद अब तक गरीबो के नाम पर करोरेपति बनते रहे है।
क्या राहुल गाँधी जानते है की दो वकुत की बूख क्या होती है? जानने का दिखावा तो कर सकते है पर जानते नही। कभी-कभी मन न लगे तो रूलर पर्यटन कर लेते है।
देश को एक बार फिर गुलाम होना है और हो रहा है और इसबार mई नरो में नही फसने वाला मौका मिला तो dएश को लूट लो । राम नाम की की लूट है लूट सके तो लूट।
इस आज़ादी का क्या फायदा जिसमे ६०% जनता आज़ादी के ५० साल बाद भी गरीबी रेखा के नेचे है और लोग अपने बेटा को सिर्फ़ पम बनने की तैयार में लगे हो। एक भी नेता इन लोगो के बाच में से क्यो नही अत्ता?
ऐसे प्रजातंत्र को दूर से ही सालम।
आज कल टीवी पर यूवा लोगो की खूब बाते हो रही है, पर उन यूवा लोगो में कितने ऐसे है जिन्हें जीवन में संघर्ष करना पारा हो दो roti ke liye. sare ke sare ko राजनीती विरासत में मिली है। संघर्ष क्या होता है शयद ही इन्हे पता हो। इनका संघर्ष सिर्फ़ इगो की लडाई है।
ऐसे प्रजातंत्र को दूर ही से राम-राम।
आज का मंत्रिमंडल विस्तार देख कर लगा की क्या आज भी हम गुलाम देश में रहते है? समय बदला पर उनलोगों ढ सत्ता नही बदली जो आज़ादी के बाद अब तक गरीबो के नाम पर करोरेपति बनते रहे है।
क्या राहुल गाँधी जानते है की दो वकुत की बूख क्या होती है? जानने का दिखावा तो कर सकते है पर जानते नही। कभी-कभी मन न लगे तो रूलर पर्यटन कर लेते है।
देश को एक बार फिर गुलाम होना है और हो रहा है और इसबार mई नरो में नही फसने वाला मौका मिला तो dएश को लूट लो । राम नाम की की लूट है लूट सके तो लूट।
इस आज़ादी का क्या फायदा जिसमे ६०% जनता आज़ादी के ५० साल बाद भी गरीबी रेखा के नेचे है और लोग अपने बेटा को सिर्फ़ पम बनने की तैयार में लगे हो। एक भी नेता इन लोगो के बाच में से क्यो नही अत्ता?
ऐसे प्रजातंत्र को दूर से ही सालम।
आज कल टीवी पर यूवा लोगो की खूब बाते हो रही है, पर उन यूवा लोगो में कितने ऐसे है जिन्हें जीवन में संघर्ष करना पारा हो दो roti ke liye. sare ke sare ko राजनीती विरासत में मिली है। संघर्ष क्या होता है शयद ही इन्हे पता हो। इनका संघर्ष सिर्फ़ इगो की लडाई है।
ऐसे प्रजातंत्र को दूर ही से राम-राम।
[कांग्रेस कितनी ही अहंकारी हो, भ्रष्टाचार की जननी हो, "परिवारवाद" की पोषक हो, उद्योगपतियों की दलाल हो, 60 साल में सैकड़ों दंगे करवाये हों… सब कुछ मानते हैं, लेकिन फ़िर भी भाजपा से श्रेष्ठ ही है… जय हो… जय हो… ]
- सुरेश चिपलूनकर
सुरेश जी,
क्या आप बीजेपी को इसलिए श्रेष्ठतम मानते हैं क्योंकि आपके द्वारा गिनाये हुए उपरोक्त सारे "श्रेष्ठ" कार्य कांग्रेस ने ६० साल में किये और बीजेपी ने ६ साल में ही कर दिए?
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