मेरे प्यारे भाइयों, बहनों और जो रिश्ते में नहीं लगते वो लोग भी।
हम झूठ बोलना चाहते हैं। यही कि आपकी गरीबी दूर होगी। यही कि आपमें से सभी को नौकरी मिलेगी। सबको मकान बनवा के देंगे। सबको गाड़ी देंगे और टीवी भी देंगे। हम एतना काम कर देंगे और आप एगो भोट नहीं दीजिएगा हमरा। मार मार के कचूमर निकाल देंगे आपका। बड़का न भोटर बने हैं। अरे तुमको पास तो एकेगो न भोट है रे। हमको पास तो सब भोटरे का टेंशन है। तुमको तो अपना ही भोट देना है न रे। काहे टेंशन करता है। किसी न किसी को देना है तो हमको दो। सबको दे के देख लिये। बनवा दिहिस मकान तोरा। इ गर्मी में भाषण सुने अइलह लोग। भाषण में का मलाई बंटेगा रे। जानता नहीं है इ पार्टी उ पार्टी एके बतवा बोलता है सब। तू हमको बुरबक मत बनाओ। काम देख के तू भोट दे रहे हो पिछले साठ साल से। कौन सा काम हो गया है रे देश में। एगो रोड तो न बना तुमरे कोलनी में। बिजली आ गई है। मंदिर बन गया है। दंगे की जांच हो गई है। फालतू का पब्लिक है इ सब। भोट देना होगा तो दे देगा, चलिये इहां से। इ सब जमा हुआ कि हमहूं झूठे बोले। कुछ नहीं करेंगे आपके लिए। जैसे इ सब नहीं किया है। हमको भी भोट दीजिए जैसे उ सबको दिये हैं आप लोग।
पोलटिक्स में लबरई(झूठ)का बाज़ार जोत कर रख दिये है। पब्लिक जागरूक हो गई है का तो। टीभी वाला बोल रहिस था।
जागरुक पब्लिक। चलिये भोट दे दीजिएगा। ओकरा बाद तो सोना ही न आप सबको। जब सुतना ही है तो हमको भोट काहे नहीं देते हैं जी। जाइये रैली रैली मत धौगिये। घर बैठिये। बीड़ी छाप है हमरा। याद रहेगा।
24 comments:
Alekh kee shaili rochak hai
जब किसी को भोट देना ही है तो एकगो भोट हमको ही दे दीजिये :)
...रोचक शैली.
बहुत ही बेहतरीन...इससे ज्यादा फ़्रसटेशन देखा नहीं कहीं...बहुत ही उम्दा
हां यही तो होता आ रहा है।
यह बात घर करती जा रही है कि वोट से कुछ बदलना नहीं है तो वोट क्यूँ दिया जाए? कोई तो बताए।
क्या हमारे पूर्वज मूर्ख थे ? वो कह गए कलियुग में अंधकार ही होगा :) प्रकाश कौन दिखायेगा? मीडिया वाला का? जो खुद विष के कारण परेशां है...
रचनात्मकता.........
first of all ravish sir... i m a big fan of you...
aap ki prastuti ke andaj ka kayal ho chuka hu...
हंसते -हंसते आखों में आंसू आ गए .........पर आंसू तो यकीनन आंसू ही हैं जो आज की मौजूदा राजनीतिक हालात पर निकल रहे हैं .......................रवीश जी भाषा का प्रयोग सुन्दर है .
इस भाषण का दूसरा भाग भी दें तो मजा आ जाएगा।
आखिर क्यों नहीं दिए हमका भोट?
इंतजार रहेगा। :)
चुनावी माहौल पर सटीक सोच…। फ्रसटेशन मे दिल से निकली बात…। बधाई व शुभकामनाएं ।
aapka blog aur post hamein pasand hain.
सिद्धार्थ जोशीजी...ई त दोसरके किस्त है, पहलका किस्त त सन् 77 में रायबरेली से चुनाव जीतने के बाद राजनारायणे(पांडे नहीं लिखते थे वो,ई त गोतिया सब पांडे लगाके सीना फुलाता था)बोल दिहिस रहे...सुना कि राजनारायण इलेक्शन जीतने के बाद गए रायबरेली...अब जनता तो जनता...उसे इंदिरा गांधी के विकास का स्वाद लगा हुआ था..ऊ राजलरायण से बिजली, पुल, सड़क मांगने लगी...बस राजनारायण बमक गए..बोल्हिस-- ऐ रायबरेली की नमकहराम जनता...तू जब इतना रोड और बिजली देने के बावजूद इंदिरा गांधी की न हुई..तो राजनारायण की खाक होगी...बस अगले इलेक्शन में जनता पार्टी वहां से छह की छह विधानसभा सीट में जीरो पर आउट...
इलेक्शन लड़िए, भाषण का कड़ुआ सच और उसे बोलने की हिम्मत। चुनाव जरूरै जितिएगा।
रुकिए अभी मार्केटिंग करते है कि कस्बा पर नेता लोगन के लिए रेडीमेड भासन उपलब्ध है। भ्रष्ट नेताओं के लिए श्रेष्ट भासन। उसके बाद देखिएगा। सरकार चाहे जो भी बनाएगा, आपको जबरदस्ती घीच के राजसभा ले जाएगा।..
bahut sundar. mazaa aaya re. Baithe-thaale ek-dusre ka blog padh kar thorha-sa khus ho lene se zyada hum kar bhi kya sakat hain re.
everybody is frustrated like so..
take care..subodh
भाई रवीश जी ,
कोई भोट दे..न दे ..मर्जी उसकी ...लेकिन
नेता लोग तो मलाई काटेंगे ही ....
हेमंत कुमार
ईमानदारी की मिसाल....
'बेईमानी' की मिसाल शायद, क्यूंकि यह केवल 'असत्य' का सत्य है. 'हिन्दू' ही केवल मान या जान सकता है कि काल सतयुग से कलियुग की ओर बढ़ रहा है, भलाई से बुराई की ओर, उजाले से अंधकार कि ओर...भले ही आप गा लो, "ज्योत से ज्योत जलाते चलो..."
अब, यदि एक मिसाल के तौर पर, आप टट्टी जायें तो क्या वहां हलवा खाने की आशा करेंगे? बदबू बर्दाश्त करने के लिए मन बनाना ही होगा खास तौर पैर यदि वो 'Public Latrine' हो :)
शायद १९६० की बात है, कोयना बांध देख कर लौटते समय एक रात हम 24 विद्यार्थियों को कराद जंक्शन के प्राचीन और लघु विश्राम केन्द्रस्थल पर ही सो कर गुजारनी पड़ी क्यूंकि मुंबई के लिए हमें सुबह सबेरे रेलगाडी लेनी थी. Platform पर सोये हुए के उपर से कुत्ते भी इधर उधर जा रहे थे. टॉयलेट साफ़ नहीं था - लबालब भरा था :) नाक बंद कर सुबह सब के सब मजबूरी से किसी तरह निवृत हुए :)
गनीमत है उसके बाद फिर कभी वहां जाना नहीं हुआ...:)
किन्तु यह मानना पड़ेगा कि 'चमत्कार' कहीं भी देखने को मिल सकता है, जैसा हमें उस सुबह देखने को मिला जब 'लालू कि रेलगाडी' platform पर पहुंची :)
हमें हिदायत दी गयी थी कि क्यूंकि ट्रेन थोडी देर ही रूकती थी हम सब अपने अपने holdall अदि हाथ में ले और जो भी सामने आये तुंरत उस डब्बे में घुस जायें क्यूंकि रिज़र्वेशन नहीं किया गया था...अब क्यूंकि holdall के कारण ठीक से सामने दिख नहीं रहा था, और गाड़ी भी अभी पूरी तरह रुकि नहीं थी, एक जगदीश नामक लड़का दो डिब्बों के बीच में आने के कारण हम सबको नीचे गिरता दिखा! सबकी सांस थम गयी. किन्तु सब हैरान रह गए जब वो स्प्रिंग के समान दूसरे ही क्षण उछल के फिर से उपर आ गया :)
aap ka nam kasba hai kya ya phir apka gao kaswa hai
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