यूपी में दसवीं का रिज़ल्ट आया है। सरकारी बोर्ड का। १३ लाख बच्चे फेल हो गई हैं। मध्यप्रदेश में भी जब इस साल रिजल्ट आया तो दसवीं में शायद पैंसठ फीसदी बच्चे फेल हो गए। कहीं कोई हंगामा नहीं है। शायद प्राइमी का मास्टर वाले प्रवीण भाई इसके कारणों पर प्रकाश डालें कि उत्तर प्रदेश खामोश कैसे हैं? तेरह लाख बच्चों का फेल होना मामूली बात नहीं। हो सकता है कि टीचर सरकारी गणनाओं के काम में व्यस्त रहते हों,उन्हें दोपहर का भोजन जैसे कार्यक्रमों में लगा दिया गया हो, वे चुनाव संपन्न कराने में खप जाते हों, लेकिन तेरह लाख तो बर्दाश्त नहीं होता। मध्यप्रदेश की शिक्षा मंत्री ने चुनाव को कारण बताया था। लेकिन जब चुनाव नहीं हुए थे तो वहां फेल होने वालों का प्रतिशत पचास था। लाखों की संख्या में फेल कराने वाले सिस्टम के साथ क्या किया जाए? पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों में इस बार ऐतिहासिक रिज़ल्ट हुआ है। कोई सात या आठ फीसदी का इज़ाफ़ा हो गया है। इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ था जब दसवीं की परीक्षा में अस्सी फीसदी से ज़्यादा बच्चे पास हुए हों। टेलिग्राफ ने लिखा था कि बोर्ड ने काफी बदलाव किये हैं। पिछले छह साल से नंबर की जगह ग्रेड दिया जा रहा है। बिहार या यूपी या मध्यप्रदेश के परीक्षा बोर्डों में क्या हुआ है, इसकी जानकारी आप पाठकों से मिले तो बेहतर होगा।
यह कैसे हो रहा है? सीबीएसई के नतीजे निकलते हैं तो केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय के बच्चों का रिजल्ट प्राइवेट स्कूलों से बेहतर होता है। यह ठीक है कि प्राइवेट स्कूलों के बच्चे नब्बे फीसदी से ऊपर लाने में बाज़ी मार ले जाते हैं लेकिन नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों का रिज़ल्ट उनसे बेहतर ही होता है। ये भी तो सरकारी सिस्टम में चलते हैं। फिर राज्यों के बोर्ड के नतीजे इतने खराब क्यों हो रहे हैं? मैं भी पता करने में लगा हूं। चोरी की समस्या तो समझ में आती है लेकिन तेरह लाख बड़ी संख्या है। इसे सिर्फ चोरी करने या न करने के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता।
18 comments:
darasal bihar aur uttarpradesh mein anya sabhi cheejon kee tarah shikshaa kee bunyadi sthiti bhee bilkul charmaraa gayi hai . praathmik vidyaalay hon ya maadhyamik... sabhi badhaal hain...kaaran aur tark bahut saare hain..pichhle varsh bbc hindi kee team ne bihar ke skoolon par ek saargarbhit shrinkhlaa prastut kee thee..magar sab kuchh sirf sarkaar ke bharose nahin chhodaa jaataa...
vishay aapne bilkul gambheer aur sateek uthaayaa hai...
लगता है रवीश सर आप बिहार के सरकारी स्कूल की जगह प्राइवेट स्कूल से पढ़े लिखे हैं। आपको याद है लालू राज का वो साल जब बिहार में 1996 और 1997 में हाईकोर्ट ने परीक्षा का संचालन किया था... उस समय भी इसी तरह की भयावह परीक्षाफल आया था... बात सीधी सी है... चोरी बंद होगी और चीट पूर्जों और पैरवी का सूखा पड़ जाएगा तो रिजल्ट क्या खाक निकलेगी... वैसे भी सीबीएससी और राज्य स्तरीय बोर्ड में काफी अंतर है... उस पर से बिहार और यूपी में शादी के बाद दुल्हनियां, मां बन चुकी मुखिया जी की पुतोह और बेटी( सरकारी नौकरी के लालच में) विधायक जी के सारे रिश्तेदार और तो और हम जैसे किसान के बेटे जो जीवन भर बोरी पर बैठकर सिर्फ मास्टर साहब को कविता देखकर सुनाते हैं... क्या फेल नहीं तो पास होंगे... कहीं आप सरकारी स्कूलों की वाट लगाने की तो नहीं सोच रहे हैं... वैसे अच्छा सब्जेक्ट है. एक बार जाकर तो देखिए बिहार के सरकारी प्राइमरी स्कूल, मिडिल स्कूल और हाईस्कूल की हालत... सब के सब बाबा लोग बैठे हैं... जो कभी हिंदी की किताब और व्याकरण भारती भी ठीक से जीवन भर में खुद से नहीं उलटते होंगे... टेन प्लस टू की तो बात ही छोड़ दीजिए... बनाइये स्पेशल खूब टीआरपी आएगी हिंदी पट्टी में... और लोगों का शायद भला भी हो जाए... कुछ किसान जमीन बेचकर भी अपने बच्चे को शहर के संत वाले नाम के स्कूल में भेजने लगे... आगे फिर कभी...
प्रायमरी के मास्तर जी तो पिछले वर्ष ही लिख चुके हैं इस बारे में। वैसे आपके आलेख से झलकती चिंता पर मनन तो होना ही चाहिए।
raveesh ji savaal bada gambheer hai itne bade paimaane par bachcho ka fail hona to chinta ki baat hai?iski padtaal karni aavasyak hai ....
मुझे 'हिन्दू' होने पर गर्व है! क्यूँ?
क्यूंकि मेरे पूर्वजों ने सारे संसार को ० से ९ तक के नंबर दिए, किन्तु क्यूंकि ईश्वर (बालकृष्ण) नटखट है, वो शून्य के साथ जुडा होने के कारण गर्भ में विद्यमान बालक समान पैदा ही नहीं हुआ!
वो केवल अपने मानस पटल पर पिक्चर/ टीवी देख रहा है और उसका आनंद उठाने के लिए हम सब को भी दिखा रहा है कि यदि वो अनंत रूप में पैदा होता तो उनके अनंत रूप के साथ क्या क्या हो सकता था - सतयुग से कलियुग और घोर कलियुग तक...और उन्होंने हर एक व्यक्ति को ड्रामा देखते हुए स्तिथप्रज्ञ रहने की सलाह दी, जो आज घोर कलियुग की ओर जाते काल के कारण किसी भी मानव के लिए कठिन है यद्यपि जो जीव आरंभ में आये थे वे अधिक ज्ञानी प्रतीत होते हैं, वे अपना निर्धारित कार्य सच्ची लगन से करते प्रतीत होते हैं - दही ज़माने वाले सूक्षमाणु दूध को दही में परिवर्तन कर के ही छोड़ते हैं यदि तापमान इत्यादि बहुत ऊंचा-नीचा न हो...
उपर्युक्त को हमारे पूर्वजों ने सर्वशक्तिमान और सर्वगुणसम्पन्न की माया के प्रभाव से संभव होना कहा...universe को उन्होंने 'ब्रह्माण्ड' कहा, यानि इशारा किया की जैसे अंडे के भीतर से जीव उसे तोड़ कर ही निकल सकता है, इसी प्रकार हर मानव को प्रयास करना होगा की वो इस चक्रव्यूह को तोडे...नहीं तो वो अभिमन्यु समान मारा जायेगा काल-चक्र के कारण. उसकी माँ के कारण जिसे अधूरा ज्ञान ही प्राप्त हुआ क्यूंकि यद्यपि अर्जुन ने पूरा ज्ञान दिया वो लेकिन आधी बात ही सुन सो गयी. जैसे आजके बच्चे क्लास में अधिक समय सोये सोये रहते हैं, या अपने सहपाठियों का अपहरण और कत्ल तक करते हैं, इस 'चूहा-दौड़' के कारण जिस में हम ड्रामे के पात्र माँ-बाप स्वयं अंधे हो कर भाग ले रहे हैं...क्यूंकि हमारे पास समय ही नहीं है गहराई में जाने के लिए - "हाय रे इंसान की मजबूरियां, पास रहकर भी कितनी दूरियां." जी हाँ ज्ञानियों ने कहा की 'कुञ्ज बिहारी' आप और हम सभी के भीतर ही है किन्तु हमने वृक्ष, लताएं अदि काट कुञ्ज समाप्त ही कर दिए - "न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी" :)
किसी ने कहा 'बुद्धिमान को इशारा ही काफी है' और किसी एक ने जोड़ दिया 'और बेवकूफ को डंडा' :)
शंभू जी
आप मुझ पर बिगड़ क्यों जाते हैं? हर बात में आप मुझे पहले गरिया देते हैं। मेरा किसी पृष्ठभूमि से संबंधित होना या न होना किसी बहस तक पहुंचने या न पहुंचने की शर्त नहीं हो सकती। प्राइवेट स्कूल में पढ़ना अभिशाप है क्या? मुझे भी मालूम है सरकारी स्कूलों की हालत खराब है। लेकिन वहां अच्छे टीचर नहीं है,ये मैं नहीं मान सकता।
ऐसी बात नहीं कि दुनिया को नज़दीक से आप ही देख रहे हैं। थोड़ा बहुत हमें भी अंदाज़ा है। आपकी बातों से मुझे एतराज़ नहीं लेकिन ये क्या बात हुई कि स्पेशल बनाकर टीआरपी ले आइये।
जिसे बोरे की आप बात कर रहे हैं, उसी पर पढ़ कर न जाने कितने लोग ज़िंदगी में आगे आ गए। मैं नवोदय के कई मास्टरों को जानता हूं जो बिना छुट्टी लिये रात दिन मेहनत करते हैं। उन्हें तो सातों दिन काम करना पड़ता है। लेकिन निष्ठा में कोई कमी नहीं आने देते। मैं कौन होता हूं वाट लगाने वाला। अगर आपको इस बात से खुशी मिलती है कि मुझे गरिया देने से आपने मुझे दुनिया दिखा दी तो ज़रूर कीजिए। बहुत लोग सीधे गरियाते हैं। इसमें मज़ा भी आता है। कई बार वाकई जिस चीज़ पर ध्यान नहीं गया होता है, लगता है कि कोई थप्पड़ मारकर उस तरफ चेहरा मोड़ दे रहा हो। लो देख लो। ऐसा होना भी चाहिए लेकिन हर बात में टीआरपी।
आपने इतनी अच्छी जानकारी दी है। मुखिया की पतोहू का। आप जहां पढ़ा रहे हैं उसके आस पास ये सब देखते होंगे। हम भी यह बात जानते हैं। लेकिन अपने अनुभव से इसी हकीकत को ज़रा साफ साफ लिखिये न। हम सब को फायदा होगा। आप ठीक कहते हैं कि हम लोग हकीकत से कट गए हैं। बिल्कुल कट गए हैं। अब दिन भर दफ्तर आने जाने में ही खप जायेंगे तो क्या करेंगे। आप जैसे मित्र और ब्लाग के ज़रिये हमें कई बातों तक पहुंच जा रहे हैं। अब कम से कम दिलचस्पी तो रहने दो यार। हमसे क्या उम्मीद करते हों, एक कैमरे और माइक से दुनिया बदल दें। इतना भी भ्रम में नहीं रहता।
आपने कहा कि मैं सरकारी स्कूलों की वाट लगाने वाला हूं। लेकिन आपने जिस समस्या की तरफ ध्यान दिलाया है, उस पर तो खूब लिखा जाना चाहिए। अगर कोई प्रमाण के आधार पर लिख दे तो बेहतरीन लेख बन जाएगा। अब आप ये मत कहियेगा कि लेख लिखकर पैसा कमा लीजियेगा। प्लीज़। लेकिन पटना के पाटलिपुत्र हाई स्कूल के कई लड़कों को जानता हूं जो अपने टीचर के कारण ही बेहतर छात्र बने। वहां के एक टीचर थे, डी डी राय। उनका नाम खूब सुना है। गणित के मास्टर थे। छात्र आज भी उनका नाम पिता की तरह लेते हैं। सरकारी स्कूलों ने एक से एक प्रतिभायें दी हैं।
शंभू जी तो क्या यह मान लिया जाए कि इस बार यूपी और मध्यप्रदेश में चोरी नहीं होने के कारण लाखों बच्चे फेल हुए। अगर आप विस्तार से अपने खांटी अंदाज़ में लिखते तो मैं कस्बा में लगाने की हिम्मत कर पाता। खुलकर लिखते हैं तो खुलकर लिखते रहिए। बस हमें मठाधीश मानकर कुछ मत लिखिये। न ही किसी रिश्तेदार ने मुझे नौकरी दिलाई है। लेकिन एक सामाजिक संदर्भ में आपकी बातें सही हैं। लोगों की नौकरियां इस आधार पर मिल रही हैं। लेकिन सिर्फ इसी आधार पर मिलती होंगी मुझे मानने में दिक्कत है। मुझे नहीं लगता कि मीडिया में आया हर शख्स रिश्तेदारी नातेदारी के कारण आया है। आपकी बात सच भी है तो मामूली प्रतिशत के रूप में। नए लोगों को लगता है
मगर होता नहीं है।
मध्य प्रदेश में दसवीं का रिज़ल्ट ख़राब आने के पीछे एक बड़ी वजह आठवीं बोर्ड का न होना है। नहीं तो ये जो आंकड़ें आप दसवीं में देख रहे हैं आठवीं में ही नज़र आ जाएगें। दरअसल पांचवीं तक तो किसी बच्चे को फ़ेल ही नहीं किया जाता हैं, जनरल पासिंग सिस्टम लागू है। उसके बाद भी सामान्य परीक्षा में सब पास। दसवीं तक वो बच्चे भी पहुंच जाते हैं जिन्हें अक्षर ज्ञान तक नहीं होता हैं और फिर बोर्ड में फ़ेल होना तो लाज़मी हैं। ज़रूरत है प्राथमिक स्तर की शिक्षा का स्तर सुधारने की। मेरे आस पास कामवाली बाई से लेकर धोबी और चायवाले के बच्चों के कई उदाहरण मौजूद हैं जहाँ नौवीं तक बच्चा पास होता रहता है और दसवीं में बार-बार फ़ेल। ऐसे में या तो माँ-बाप पढ़ाई छुड़वा देते हैं या फिर रुख करते हैं निजी स्कूलों और ट्यूशनों का।
सोचने का विषय शायद यह होना चाहिए है कि, जैसे हर क्षेत्र से सम्बंधित आंकडे भी दर्शा रहे हैं, विज्ञानं और तकनिकी में इतनी तरक्की होने के बाद भी भारत में हर व्यवस्था, निरंतर, और अधिक चरमराती क्यूँ नजर आ रही है जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है...
आधुनिक ज्ञानी दोष बढती जनसँख्या को देते हैं...
किन्तु, इसे प्राचीन ज्ञानियों ने काल की उलटी चाल के कारण दृष्टि और मस्तिष्क के बीच तालमेल का सही न होना बताया...
उधाहरणतया, जैसा हर कोई जानता है, हर कोई बुद्धिजीवी प्रगति के लिए नए-नए अविष्कार किये जा रहा दीखता है. और यद्यपि नित्य प्रति आधुनिक उपकरण उपयोग में आती तो दिखती हैं, 'कैमरा, माइक', इत्यादि जैसे, किन्तु मानव उसका दुरूपयोग भी शीघ्र ढूंढ लेता है - जैसे माइक का मंदिर आदि में देर रात तक इस्तेमाल. और जैसी कहावत है 'एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है' माहौल सुधरने के स्थान पर बिगड़ता ही जाता दिख रहा है...
अब मान लीजिए आपने एक विडियो बनाया जिसमें आपने एक सूखी धरती से उसे कालांतर में हरी-भरी होते दिखाया. मान लीजिये उसे यदि आप उलटी दिशा में चलायें तो परदे पर दिखाई देगा एक हरे-भरे खेत का एक बंजर जमीन में परिवर्तित होना :) (ऐसा एक Enigma, एनिग्मा, नामक म्यूजिक-विडियो अंग्रेजी में भी है जिसमें साइकिल में उलटी दिशा में जाते हुए आदमी एक सीन में पेड़ में आम जैसा कोई फल फिर से वापिस उसके मूल स्थान पर 'चिपकाते' हुए :)
mujhey to ulti hi baat pata chali thi ki jahan nakal karai gai vahin sab fail ho gaye ! ye kaise ho gaya samajh me nahin aaya . vaise ek baar hamaare samay me bhi ( shayad 1992 me )nakal par koi kaanoon tha . joote mauje utaar kar pariksha di thi . us saal bhi bahut kharaab result gaya tha . lekin mujhe garv tha ki mujhe achhe numbar mile . agar nakal hoti to shayad copy jaanchane waale nakal aur akal ke fark ko na jaan paate aur nakal ko jyada noumber dete aur shayad tab hum fail ho jaate :)
भले ही पूरे यूपी में 13 लाख बच्चे फेल हो गए हों लेकिन हमारे मऊ और आजमगढ ने तो यूपी में टॉप किया है....लेकिन यहां के स्कूलों का निजाम भी जबरदस्त है....1000 में पर्ची से नकल....2000 में इमला बोलकर नकल....3000 में गाइड से और 5000 में कॉपी किसी और से भी लिखाने की सुविधा....इसीलिए हमारा मऊ और आजमगढ़ हर बार यूपी में टॉप करता है....अगर इस व्यवस्था को सही योजना बनाकर पूरे प्रदेश में इमानदारी से लागू किया गया होता तो आज ये दिन न देखना पड़ता....
अनिल जी
समझ में नहीं आ रहा है कि आज़मगढ़ और मऊ को बधाई दूं या नहीं। पर आपने जिस तरह से बात बताई,पढ़कर काफी हंसा हूं। शंभू जी ठीक कहते हैं।
लेकिन अब क्या कर सकते हैं। जेसी साहब की दार्शनिक बात भी सही है कि हर व्यवस्था चरमराती सी क्यों लगती है। क्या इसमें अपने राहुल गांधी कुछ मैजिक कर सकते हैं? आजकल उनका काफी गुणगाण हो रहा है।
मध्यप्रदेश के बारे में दीप्ति की जानकारी अच्छी है।
उत्तर प्रदेश में 13 लाख बच्चे फेल होनें से देश के नेता और बुद्धिजीवीयों में कोई हल-चल नजर नहीं आ रही है, पता नहीं क्यों?क्या कारण है,कि मुलायम जी के राज में जो परीक्षा परीणाम 70 फिसदी होता था आज उसकी स्थिति क्या हो गई है?
ये मायाराज तो न जाने कितनों कि जान लेकर रहेगा,भाई साहब कभी तो सिपाहियों की भर्ती को लेकर बहनजी को परेशानी होती है,कभी बोर्ड के परीक्षा परिणामो को लेकर। लेकिन एक बात समझ नहीं आ रही है,इतनी बड़ी संख्या में छात्र फेल हो जाते है और नेताजी के पास भीड़ नहीं इक्कठी हुई, हंगामा नहीं हुआ,कोई पीआईएल भी दाखिल नहीं हुई,मामला भी नहीं बना। क्या कारण रहा होगा रिवीश भाई परेशान हैं, हम आप क्या कर रहे हैं?
मध्यप्रदेश की शिक्षा की बदहाली के कई कारण हैं.अव्वल तो ये कि यहाँ संविदा अर्थात ठेके के शिक्षक हैं जिनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं बनती, फिर यहाँ शिक्षकों की अलग अलग जमातें हैं जैसे गुरूजी,शिक्षामित्र और शिक्षाकर्मी (या शिक्षा-मजदूर जो भी कह लें). तो मुद्दे की बात ये है कि मध्यप्रदेश की शिक्षा प्रणाली में सबकुछ है बस "शिक्षक" नही है.
रवीश जी,इसी मध्यप्रदेश में एक समय मैंने ऐसे भी शिक्षक देखे हैं जिनके व्यक्तित्व के सामने आजकल के कॉलेज के प्राध्यापक भी बौने लगेंगे, बड़े बड़े अधिकारी और नेता भी उनके ज्ञान के कारण अपना मुंह सिले रखते थे.आजकल तो शिक्षकों की कोई इज्जत ही नहीं रह गयी है,कोई भी छुटभैया आकर लतिया जाता है.
आपने ठीक कहा कि नवोदय और केंद्रीय विद्यालय सरकारी होते हुए भी अच्छा रिज़ल्ट देते हैं.मैं नवोदय विद्यालय में पढ़ा हूँ,जॉब सिक्योरिटी की अवधारणा ही वहां लागू होती है कि शिक्षक क्योंकि परमानेंट है इसलिए वह अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त और नौकरी या कहें कि कर्त्तव्य के प्रति जागरूक तथा जिम्मेदार है.शिक्षकों के स्थायी होने के कारण छात्रों से अच्छा जुडाव भी बन जाता है,शिक्षक अपने छात्र की कमियों और खूबियों से भली-भांति परिचित होकर उस हिसाब से मार्गदर्शन कर सकते हैं,इसीलिए परिणाम भी अच्छे मिलते हैं.मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल के स्कूलों में तो शिक्षा एक मजाक की तरह है.आयाराम गयाराम क्या पढाएगा और जब पढाएगा नही तो क्या ख़ाक आदर पायेगा.
यहाँ बच्चों को पास करने के लिए प्रशासन की ओर से परोक्ष रूप से आदेश आते हैं,हर बार आते हैं और इस बार भी आये थे.तलवार प्राचार्यों के गर्दन पर लटकती है,बच्चे इसलिए पास नही होते कि वे बड़े होनहार हैं या शिक्षक बड़े जिम्मेदार हैं,बल्कि वे पास किये जाते हैं ताकि प्राचार्य की इन्क्रीमेंट न कटें.अब ये बताइये जब ये बच्चे ८-९ क्लासें बिना पढ़े लिखे पास करते जायेंगे तो बोर्ड कक्षाओं में ऐसा परिणाम तो मिलेगा ही.
धांधली के उदाहरण के तौर पर जबलपुर के पास के गाँव का एक किस्सा सुनाता हूँ..कभी आपकी मध्यप्रदेश के किसी नेता से मुलाकात हो तो उन्हें भी अवश्य सुनाइएगा.
"एक डीईओ जब गाँव के स्कूल में निरीक्षण करने गए, वहां आठ कक्षाओं को एक शिक्षक संभाल रहा था,ईमानदार शिक्षक तो आकस्मिक निरीक्षण से खुश हो गया कि साहब से तारीफ़ मिलेगी, पर ऐसा कुछ हुआ नही.डीईओ ने खस्ताहाल स्कूल में नज़र दौडाई. कुछ फाइलों को अलटा -पलटा और शिक्षक से कहा कि तुम्हारा परफौरमेंस सही नहीं है,३७-३८% बच्चे बस पास हो रहे हैं,अपने स्कूल का रिज़ल्ट सुधारो.शिक्षक ने खिसियाकर कहा: ठीक है सर, आप अगली बार जब आयेंगे तो १००% रिज़ल्ट मिलेगा."
खराब परिणामों का दूसरा बड़ा कारण ये भी है कि मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में इस समय भयंकर रोष व्याप्त है, यहाँ के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस तो शिक्षकों में अपने तुगलकी फरमानों के लिए जाने जाते हैं.शिक्षक चुनाव ड्यूटी और पल्स पोलियो ड्यूटी से निजात तो पा नहीं पाते ऊपर से कभी मुख्यमंत्री का फरमान आ जाता है कि शिक्षकों की गर्मी की छुट्टियां कैंसिल होंगी और शिक्षक "योग शिक्षा शिविर" एवं "सूर्य नमस्कार" हेतु शाला में उपस्थित रहें,अभी रिज़ल्ट बिगाड़ने के बाद शिक्षामंत्री ने आदेश दिया है कि इस बार गर्मियों की छुट्टी ज्यादा नही मिलेंगी,क्लासेस इस बार जल्दी लगना शुरू होंगी,मध्यप्रदेश सरकार शिक्षकों को इंसान तो समझती ही नहीं है.शिक्षकों का आधा समय तो इन्ही प्रशासनिक फतवों के विरोध करने में ही निकल जाता है.
वादा करने के बाद भी छठे वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने में भी मध्यप्रदेश सरकार कुन्न-मुन्न करती रही,शिक्षक आन्दोलन में घुसे रहे और बच्चे घरों में तो फिर परीक्षा परिणाम तो बिगड़ने ही थे.
सीबीएसई की नक़ल पर शिक्षामंत्री ने ५वी और ८वी बोर्ड तो ख़त्म करवा दिए,पर यह भूल गयीं कि कोरी नक़ल से काम नही चलेगा सीबीएसई के टक्कर की शिक्षा प्रणाली और आधारभूत ढाँचे की व्यवस्था भी करनी होगी.बिना छत,बिना ब्लैक बोर्ड और बिना शिक्षकों वाले स्कूलों में अगर आप सीबीएसई पैटर्न लागू करेंगे तो आपके दिमागी दिवालियेपन का परिणाम मासूम बच्चे ही तो भुगतेंगे.
अब शिक्षामंत्री फेल बच्चों को पास करने हेतु नए नए टोटके आजमा रही हैं,जिसमे तीन विषयों में पूरक की योग्यता(पहले एक विषय में पूरक तथा दो विषय में फेल का प्रावधान था) और १० से २०(पहले ३ से ५ अंक की ग्रेस मान्य थी) अंको की ग्रेस जैसे आइडिया शिक्षामंत्री को आ रहे हैं.अपनी कारगुजारियों का ठीकरा वे शिक्षाविभाग के अधिकारियों के सिरों पर पहले ही फोड़ चुकी हैं.
अखबारों में रोजाना किसी फेल बच्चे की आत्महत्या की एक दो खबर आती ही रहती हैं,माँ बाप हैरान हैं,बच्चे अचंभित हैं मायूस हैं,भविष्य को लेकर चिंतित हैं,विपक्ष हमेशा की तरह खामोश है उसे अपनी अंदरूनी लडाइयों से ही फुर्सत नही.शिक्षामंत्री अडिग हैं,अटल हैं तथा अपनी बेतरतीब बिना सिरपैर की शिक्षा नीतियों को फिर से मध्यप्रदेश पर थोपने के लिए दृढ-संकल्प हैं.
मुझे एक किस्सा याद आ रहा है.. शायद सन् 2001 का है.. हिंदूस्तान(पटना) अखबार में पढ़ा था..
"पटना विश्वविद्यालय का एक अंग्रेजी का लेक्चरर अपनी छुट्टी के लिये आवेदन कुछ यूं लिखा था, "I have headache in my stomach."
Raveesh bhai aapne jo sawal uthaya hai.iska jabab hindi pradesh ke samajik aarthik rajnitik pichrepan me hi antarnihit hai. mai yek samajik rajnik karyakarta ki haisiat se yah sawal pichle 20 se utha raha hu.khaskar tab se jab UP ke siksha mantri hote hue rajnath singh ne nakal ko sangeye apradh bana kar masum bacho ko jail bhejwa diya tha.maine kyoki is visaya par itna jada socha hai ki comment me theek se puri bat kahna samajh me nahi aa raha hai. phirhal apne high shool ke aadarniya guru g ki kahi gaee bat se kahne ki kosis karta hu`Matriculation examination is bathration whos accupation is caltivation`.puri40 45 ki class me 5-6 hi student hi aise they jinke pita naukari ke alava kheti karte they.result aane ke bad unki kahi bat byavharik rup se saf ho gaee. jab se hos sabhala hai tab se dimag board ke aatank se grasit raha hai.high school ka result aamtaur par 30-40 ke beach rahta raha hai.jisme se mulayam ka lachilapan aur rajnath ka kathorpan se nikle pariksha prinamo ko alag vislesan ki jarurat hai.apne samaj ke prati chinta ne is visaya par gambhirta se sochne ko vivas kiya hai.isse jo samajh bani hai.board ke mulyankan,va rsult ko lekar uthaye gaye tariko pe hasi aati hai'apne netao ki soch samajh par bahut gussa aata hai.mera dava hai ki theek se exam ho jaye to ba- muskil result 20% se jada nahi aayega.aur usme se agar sahar kepublic schooloaur kuch aksheprincipal,prabandhan vale schoolo ko nikal diya jaye to result 10-15% se jada nahi aayega'.aap ko yek udaharan do yek sal mere ganv ke school ke sa re bachche fail hogaye. aur vahi sahar ke convent school ki sabhi larkiya first division me pas huee.Loktanra ke subh sanket dalit pichre rajnetao ko yah chinta akhir kyo nahi hoti ki jis samaj ka 70% hissa fail ki mansikta ka sikar hoga usse aap kis tarah ke mulya sidhant ki umeed kar sakte hai. kya is tarah ke log inki rajniti ke liye mufeed hai? varna sonia, mulayam, mayavati,rajnath sabhi isi hindi hridaya sthal se des ki bagdor chalana chahte hai.
saval itni bari tadat me bachcho ke fail hone ka hai; jiska sabse bara karan math visay ki anivaryata hai jiske liye jitne achche teacher; ghar me niuntam suvidhajanak mahaol ki jarurat hai; vah bahut thode se hi sukhi sampanna grameen samaj ke pas hai ;varna to 12sal ke hote hi kheti bari ke antheen kam me laga diya jata hai'; upar se aarthik kathinaio ki ghutan me math uski jindgi gura bhag jor ghatao se aage nahi badh pati' jis din badh gaye us din rajniti me avtarit uvrajo va loktantra ke subh sanketo ka kya hoga?
Ravish Sir
I admire ur writeup but its first time when i see ur writeup on the condition of the system in up board that around 13 lakh students failed. U might know that in UP, colleges have become shops and are selling B.ed degrees. The students ranking even 45000 can get a B.ed. degree in just Rs. 1 lakh. U can imagine when a rank holder of even 25000 will become a teacher in some college or school, what kind of knowledge he will transmit in his future generation. Its really shameful that media has covered its eyes with the advertisements from such shops or colleges and never expose such kind of mafiasm. Future of ours is really in danger and no doubt if figure of 13 lakh will become 26 lakh. Hope u'll write then again in ur blog.
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