अच्छा लगा नरेंद्र मोदी के हाथ में नीतीश कुमार का हाथ देखकर। मोदी ने थामा भी था मज़बूती से। फ्रेम में नीतीश उस नेता की तरह लग रहे थे जो बड़े नेता के साथ फोटू खींचवाकर गदगद हो जाता है। चुनाव शुरू होने से पहले नीतीश ने साफ साफ कहा था कि नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने की कोई ज़रूरत नहीं। सवाल पूछने वाली एनडीटीवी की पत्रकार साफ साफ कह रही थी कि आप कभी मोदी के साथ मंच शेयर नहीं करेंगे तो नीतीश यही जवाब देते कि उसकी ज़रूरत कहां है। ये नहीं कहा कि हां कभी नहीं करेंगे। सवाल का संदर्भ यह था कि नरेंद्र मोदी बिहार में प्रचार क्यों नहीं कर रहे हैं? जवाब में नीतीश ने कहा कि बिहार में नेताओं की कमी नहीं है।
यह सब चाल था। बिहार में वोटिंग के खत्म होते ही नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करने चले गए। हाथ भी उठा कर कहा कि बेवकूफ पत्रकारों हम कभी एक दूसरे को इग्नोर नहीं करते थे। बेवकूफ मुसलमानों तुम तो बेवकूफ थे ही। जिस तरह कांग्रेस ने तुमको बेवकूफ बनाया तो थोड़ा हमने भी बना लिया। बिहार में मुसलमानों ने अगर नीतीश की इस छवि पर भरोसा किया होगा कि वे सुशील मोदी से दोस्ती और नरेंद्र मोदी से दुश्मनी रखेंगे तो वे उल्लू बन गए। विकास पर भोट दिया होगा तो उन्हें इस बात से मतलब नहीं रखना चाहिए कि शाम को नीतीश पार्टी में किस किस से मिलते हैं। विकास का काम करते करते कोई थक जाए तो आराम के लिए दो चार दोस्तों से बात करने का हक है।
लेकिन नौटंकी क्यों की नीतीश कुमार ने? क्यों कहा कि नरेंद्र मोदी को बिहार आने की ज़रूरत नहीं है? क्यों कहा कि मोदी के साथ मंच साझा करने की ज़रूरत नहीं हैं? संघ परिवार के साथ जो रहता है उसे परिवार में रहने की आदत हो जाती है। कांग्रेस भी उल्लू निकली। नीतीश को बुलाने गई थी। बीजेपी को ही बुला लेती। दरअसल यही नीतीश कुमार है। वो भी एक अच्छी छवि की राजनीति के चालाक बाज़ीगर हैं। बेवकूफ बन गए लालू और पासवान। बता नहीं पाए मुसलमानों को।
अच्छा हुआ नीतीश और नरेंद्र दामोदर भाई मिल गए। वर्ना दिल्ली से लेकर पटना तक के पत्रकार फालतूबाज़ी में टाइम खराब कर रहे थे। राहुल गांधी भी झांसे में आ गए। नीतीश की तारीफ ही कर दी। तारीफ करने से कोई उस पार से इस पार आ जाए तो हो चुकी राजनीति। नीतीश ने बिहार में सेकुलर वोटरों को बेवकूफ बनाया। अपनी छवि और दांव को अंधेरे में रखकर ऐसा जाल फेंका कि फंस गए भाई लोग। स्मार्ट नेता है नीतीश कुमार। ठीक किया। जब दुनिया ही उल्लू बनना चाहती हो तो क्यों न बनाये भाई। राजनीति कर रहे हैं कोई समाजसेवा थोड़े ही कर रहे हैं। अच्छा होता कि बिहार में मतदान से पहले मोदी से हाथ मिलाकर दिखा देते। हम भी देखते कि कितनी ताकत है नीतीश कुमार में। कमज़ोर नेता हमेशा अपने घर के पिछवाड़े कई दरवाज़े बनवाता है। जानता है कि कभी इससे निकलना होगा तो कभी उससे निकलना होगा।
नीतीश जी आप बिहार का विकास करते रहिए। कानून व्यवस्था और सड़क तो चाहिए भाई। लालू के बस की बात नहीं है। बस ड्रामा मत कीजिए। आप नरेंद्र मोदी से ज़रूर मिलिये। क्योंकि वो बड़े कद वाले संघी नेता हैं। आज आडवाणी जी की डफली बजा रहे हैं कल मोदी के लिए तो बजानी ही पड़ेगी। अब ड्रामेबाज़ी की इस सूरत में आप पीएम तक का ख्वाब छोड़ ही दीजिए। लुधियाना में मोदी भाई से हाथ मिलाकर आप उनके नंबर टू तो बन ही गए। ये क्या कम है। बस मलाल यही है कि बिहार में वोटिंग के पहले आप ये कर के दिखा देते? कम से कम मेरा भी तो भ्रम टूट जाता कि आप मामूली नेता हैं।
80 comments:
लुधियाना में सब छलावा था
एक विखावा था, जो आपने देखा
हम ने देखा, आम जन ने देखा
नीली पगड़ी गायब थी, जन गायब था
स्टेज पर एक भीड़ दिखी, ये महा रैली नहीं,
नेताओं क जमघट था,गढ़ छोड़कर लुधियाना में रखी रैली, नीयत बादल की मैली
मोदी से मिलने का मतलब मुसलमानों को मुर्ख बनाना कैसे हो गया? क्या इससे पहले नितीश राजग के साथ नहीं थे? तो फिर अचम्भित होने की क्या बात है। राजग की रैली में नितीश भी जायेंगे और मोदी भी। तो क्या मंच पर मारा-पीटी कर लेते। अजीब प्रश्न उठाते हैं। मोदी के नाम पर इतनी हाय-तौबा क्यों? बीती ताहि बिसारि के आगे की सुधि लेहु... अन्यथा मुसलमान आक्रान्ताओं के जुल्म-ओ-सितम लोग याद करने लगें तो भला बताइए क्या फायदा होगा। इमरजेन्सी याद करके कांग्रेस पर बैन लगाने की बात करें तो क्या होगा। तमाम शहरों के लोग पूर्व में हो चुके दंगों को याद करते रहें तो स्थिति विस्फोटक हो जायेगी। एक घटना के बाद गुजरात दंगे हुए, जो दु:खद थे। सरकार को उन्हें रोकना चाहिए था, यह भी सही है और हम उसकी मजम्मत करते हैं। लेकिन गोधरा कांड भी नहीं होना चाहिए था यह भी उतना ही सही है। चुनाव से पहले नितीश ने नहीं बताया, चलिए मानते हैं कि चालाकी दिखाई। आप ही बताएं कि बिना स्ट्रेट्जी के चुनाव लड़ा जा सकता है क्या? बिल्कुल सही बात है कि राजनीति कर रहे हैं समाजसंवा नहीं। लेकिन इससे भी बेहतर यह कहना होगा कि समाजसेवा कर रहे हैं लेकिन राजनीति के माध्यम से। इस तरह अगर अछूत की तरह व्यवहार करने लगें तब तो भाजपा जो लगभग देश की सबसे बड़ी पार्टी है, टुकुर-टुकुर ताकती रहेगी और हमेशा के लिए देश की सत्ता कांग्रेस की बपौती हो जायेगी। इस स्थिति में तो चुनाव-फुनाव, चुनाव बाद के समीकरण-फकीरण की कोई जरूरत ही नहीं।
रवीश बाबू! क्यों न राष्ट्र को कांग्रेस के नाम बैनामा कर दें। फिलहाल वह सत्ता में हैं ही खारिज-दाखिल की भी नौबत नहीं आएगी।
नरेन्द्र और नीतिश दोनो आज विकास-पुरुष के रूप में ख्यात हैं। दोनो में विरोध कैसा? दोनो का एक साथ मंच पर आने में विरोधाभास कैसा?
क्या मुसलमान-परस्ती का नाम ही धर्मनिरपेक्षता है?
वेद रत्न शुक्ल जी से पूरी तरह सहमत। रवीश जी, मुझे भी "कहीं से" जलने की बदबू आ रही है… नीतीश के कार्य को आपने नौटंकी बता दिया, अब देखना ये है कि चुनाव परिणामों के बाद "जोकरों का जो समूह" UPA के नाम पर एकत्रित होगा उसे आप क्या कहेंगे और उसमें कैसी नैतिकता ढूँढकर निकालेंगे…। किसी ने कहा है कि "NDTV के कीटाणु" एक बार घुस जायें तो आसानी से निकलते नहीं हैं… जितना ज्यादा भाजपा-संघ-मोदी को गरियाओगे, उन्हें अछूत बनाने की कोशिश करोगे, उतने ज्यादा उनके समर्थक बढ़ते जायेंगे… (और वो भी पक्के समर्थक, कांग्रेसियों-सपाईयों की तरह मेंढक नहीं)।
दरअसल ये पोस्ट एक तरह से ऐसी महसूस होती है खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे क्योंकि काफी दिनों से नीतीश कुमार को किंग मेकर बना कर प्रस्तुत किया जा रहा था इस में मीडिया की भी काफी भूमिका थी बिना यह परवाह किये की वे एनडीए का एक हिस्सा हैं परंतु कुछ लोग अपने मुताबिक सरकारों का निर्माण करना चाहते हैं तो नीतीश के लिये वे इस प्रकार का शिगूफा छोड़ रहे थे। परंतु अंत में नीतीश ने सबको ठेंगा दिखा दिया और रवीश तो कुछ ज्यादा ही जले-भुने दिख रहे हैं भई चुनाव पहले से ही जदयू एनडीए में है जहां मोदी भी हैं और आडवाणी भी तो फिर बेवकूफ बनाने की बात क्या हुई?
नीतीश जी आप बिहार का विकास करते रहिए। कानून व्यवस्था और सड़क तो चाहिए भाई। लालू के बस की बात नहीं है। बस ड्रामा मत कीजिए। आप नरेंद्र मोदी से ज़रूर मिलिये। क्योंकि वो बड़े कद वाले संघी नेता हैं। आज आडवाणी जी की डफली बजा रहे हैं कल मोदी के लिए तो बजानी ही पड़ेगी। अब ड्रामेबाज़ी की इस सूरत में आप पीएम तक का ख्वाब छोड़ ही दीजिए। लुधियाना में मोदी भाई से हाथ मिलाकर आप उनके नंबर टू तो बन ही गए। ये क्या कम है। बस मलाल यही है कि बिहार में वोटिंग के पहले आप ये कर के दिखा देते? कम से कम मेरा भी तो भ्रम टूट जाता कि आप मामूली नेता हैं।
PAHLI BAAR VYANGYA KI JAGAH AAPKA DARD SEEDHE-SEEDHE BAHAR AA GAYA HAI JO KI SHAYAD SWABHAAVIK BHI HAI.
Chaliye isi bahane Nitish ki poll to khuli....chor chor mosere bhai
उन्होने मुर्ख बनाया और जनता बन भी गई... नितिश नरेन्द्र अलग कब हुऐ.. जिस नरेन्द्र मोदी का (बद)नाम हुआ.. उस समय नितिश सरकार में ही थे न?
वेदरत्न जी और सुरेश जी
नीतीश तो राजग में थे। मालूम है। लेकिन उन्होंने तब क्यों कहा कि मोदी को बिहार आने की ज़रूरत नहीं। जलने की बात नहीं है। ये एक ड्रामा था। मोदी को तो अछूत उन्होंने बनाया था मतदान के पहले तक। मोदी के अतीत की याद उन्होंने याद दिलाई थी। मतदान के पहले तक।
ये सवाल तो मैं नीतीश से पूछ रहा हूं। वो क्यों एक टाइम पर मोदी से दूरी रखते हैं और एक टाइम पर करीब आ जाते हैं
रही बात राष्ट्र को कांग्रेस के नाम बैनामा करने की तो मेरी आलोचना का यह मतलब नहीं कि कांग्रेस को सौंप दे। हां मैं क्यों छुपाऊं। नीतीश कुमार की तरह। संघ परिवार की राजनीति का आलोचक रहा हूं और हूं। पर ये तो कभी नहीं कहा चापलूस कांग्रेसियों का मैं अभिनंदन करता हूं।
सुरेशजी किसी किटाणु की वजह से मैं किसी दल का आलोचक नहीं हूं। मुझे अधिकार है अपनी सोच रखने का जैसे आपको है।आप किस किटाणु से संघ परिवार के गुणगान करते हैं। वो आपका चुनाव है। अब रही बात तो हम और आप एक दूसरे की राजनीति की आलोचना तो कर ही सकते हैं न। इतना स्पेस तो रहने ही दीजिए। मेरी आलोचना जम कर कीजिए। बस वेदरत्न शुक्र का सवाल आप नीतीश कुमार से पूछ लीजिए।
मैं तो कहता हूं सारे दंगों को याद रखिये। गुजरात दंगों के बाद जीवन आगे बढ़ चुका है। कैसे भूल सकते हैं आप चौरासी के दंगों को, भागलपुर के दंगों को और क्यों भूल जाएं? इसलिए कि नेता लोग ऐश कर सकें।
मुझे वाक़ई पता नहीं रवीश कि आप किस भ्रम के शिकार थे जो अब लुधियाना रैली के बाद टूट गया है। वैसे, किसी भ्रम का टूट जाना और जल्दी टूट जाना भी बेहतर होता है। आपको इसके लिये भी नितीश कुमार का आभार जताना चाहिये। अब आते हैं असली मुद्दे पर। सबसे पहले तो ये तय होना चाहिये कि धर्मनिरपेक्ष कौन है। उस धर्मनिरपेक्षता का स्वस्थ चेहरा क्या है। उसके मानक क्या- क्या हैं और इसका सर्टिफिकेट बांचने या बांटने के लिये आख़िरकार किसे अधिकृत किया गया है। बेशक, जनता ही ये सर्टिफिकेट देती है... अगर मैं ग़लत नहीं हूं। क्या मोदी की आलोचना उस गुजरात के करोड़ों लोगों की धर्मनिरपेक्षता को संदेह के दायरे में नहीं खड़ा करता, जिन्होंने मोदी को सत्ता की कुर्सी दी है। क्या ये बिहार के लोगों को संदिग्ध बनाना नहीं है जिसने लालू के कुशासन के मुकाबले नितीश और मोदी को सत्ता की कुर्सी पर बिठाया है। क्या बिहार की जनता को इतना नहीं पता था कि सरकार में संगिनी बीजेपी के नेताओं के साथ एक मंच पर आने की स्थिति बन सकती है। ये तो चुनावी चरण शुरू होने से पहले से ही पता था। अभी मोदी ने एक और खुलासा किया कि कोसी की तबाही के वक़्त सबसे पहले गुजरात ने सहायता की। क्यों नहीं आप सबने नितीश कुमार को उस समय ताना मारा कि मोदी का पैसा वापस करो... एक सांप्रदायिक नेता की सहायता कतई नहीं चाहिये.. चाहे कोसी हमसबको डुबो ले जाए। जहां तक नितीश की नौटंकी का सवाल है- ये कितना दिलचस्प संयोग है कि इसी वक़्त सियासी फ़िज़ा में और भी कई- कई नौटंकियां चल रही हैं। आपको याद नहीं या फिर चीजें दिखती नहीं। लालू -पासवान की जोड़ी जो आज जिस निर्लज्ज तरीके से धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर फिर एकजुट होने की बात कह रहे हैं, उसके बारे में क्या ख़्याल है। बिहार में लालू के कु-राज की यादें इतनी जल्दी कैसे भूल गए साहब...। शायद बिहार में नहीं रहे होंगे या फिर इस लेबल पर जाकर सोचने से परहेज करते हों, लेकिन बिहार नहीं भूला है। वहां के लोगों के जेहन में उस राज की कड़वी यादें ज़िंदा हैं। देशभर में इस सूबे के लोगों के साथ जिस तरह का बर्ताव हो रहा है, उसके लिये किसे जिम्मेदार मानते हैं। अब अगर नितीश राज में कुछ अच्छा हो रहा है... या कुछ अच्छा होने की उम्मीद बंधी है तो महज बौद्धिक शगल के लिये इसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिये। तबतक जबतक कि नितीश कुमार भी औरों की तरह बौरा न जाएं... या फिर उनके राज में भी मुस्लिमों सहित किसी भी वर्ग के साथ नाइंसाफी हो रही हो। ये कम दिलचस्प नहीं है कि बीजेपी तो सांप्रदायिक है लेकिन वहां से निकलने वाले नेता जब कांग्रेस या समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेते हैं तो उसे धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट भी बड़ी आसानी से मिल जाता है। हुजूर, ये काम नेताओं को करने दीजिये। पत्रकार होने के नाते आपको मशविरा है -केहुनी पर टिके हुए लोग, सुविधा पर बिके हुए लोग, करते हैं बरगद की बातें, गमले में उगे हुए लोग। - राहुल
मुझे वाक़ई पता नहीं रवीश कि आप किस भ्रम के शिकार थे जो अब लुधियाना रैली के बाद टूट गया है। वैसे, किसी भ्रम का टूट जाना और जल्दी टूट जाना भी बेहतर होता है। आपको इसके लिये भी नितीश कुमार का आभार जताना चाहिये। अब आते हैं असली मुद्दे पर। सबसे पहले तो ये तय होना चाहिये कि धर्मनिरपेक्ष कौन है। उस धर्मनिरपेक्षता का स्वस्थ चेहरा क्या है। उसके मानक क्या- क्या हैं और इसका सर्टिफिकेट बांचने या बांटने के लिये आख़िरकार किसे अधिकृत किया गया है। बेशक, जनता ही ये सर्टिफिकेट देती है... अगर मैं ग़लत नहीं हूं। क्या मोदी की आलोचना उस गुजरात के करोड़ों लोगों की धर्मनिरपेक्षता को संदेह के दायरे में नहीं खड़ा करता, जिन्होंने मोदी को सत्ता की कुर्सी दी है। क्या ये बिहार के लोगों को संदिग्ध बनाना नहीं है जिसने लालू के कुशासन के मुकाबले नितीश और मोदी को सत्ता की कुर्सी पर बिठाया है। क्या बिहार की जनता को इतना नहीं पता था कि सरकार में संगिनी बीजेपी के नेताओं के साथ एक मंच पर आने की स्थिति बन सकती है। ये तो चुनावी चरण शुरू होने से पहले से ही पता था। अभी मोदी ने एक और खुलासा किया कि कोसी की तबाही के वक़्त सबसे पहले गुजरात ने सहायता की। क्यों नहीं आप सबने नितीश कुमार को उस समय ताना मारा कि मोदी का पैसा वापस करो... एक सांप्रदायिक नेता की सहायता कतई नहीं चाहिये.. चाहे कोसी हमसबको डुबो ले जाए। जहां तक नितीश की नौटंकी का सवाल है- ये कितना दिलचस्प संयोग है कि इसी वक़्त सियासी फ़िज़ा में और भी कई- कई नौटंकियां चल रही हैं। आपको याद नहीं या फिर चीजें दिखती नहीं। लालू -पासवान की जोड़ी जो आज जिस निर्लज्ज तरीके से धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर फिर एकजुट होने की बात कह रहे हैं, उसके बारे में क्या ख़्याल है। बिहार में लालू के कु-राज की यादें इतनी जल्दी कैसे भूल गए साहब...। शायद बिहार में नहीं रहे होंगे या फिर इस लेबल पर जाकर सोचने से परहेज करते हों, लेकिन बिहार नहीं भूला है। वहां के लोगों के जेहन में उस राज की कड़वी यादें ज़िंदा हैं। देशभर में इस सूबे के लोगों के साथ जिस तरह का बर्ताव हो रहा है, उसके लिये किसे जिम्मेदार मानते हैं। अब अगर नितीश राज में कुछ अच्छा हो रहा है... या कुछ अच्छा होने की उम्मीद बंधी है तो महज बौद्धिक शगल के लिये इसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिये। तबतक जबतक कि नितीश कुमार भी औरों की तरह बौरा न जाएं... या फिर उनके राज में भी मुस्लिमों सहित किसी भी वर्ग के साथ नाइंसाफी हो रही हो। ये कम दिलचस्प नहीं है कि बीजेपी तो सांप्रदायिक है लेकिन वहां से निकलने वाले नेता जब कांग्रेस या समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेते हैं तो उसे धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट भी बड़ी आसानी से मिल जाता है। हुजूर, ये काम नेताओं को करने दीजिये। पत्रकार होने के नाते आपको मशविरा है -केहुनी पर टिके हुए लोग, सुविधा पर बिके हुए लोग, करते हैं बरगद की बातें, गमले में उगे हुए लोग। - राहुल
UPA में कौन से दूध के धुले बैठे है ? नीतिश के राज और 'लालू' के राज में अंतर जनता भलीभांति समझ गयी है | और जिस तरीके के भारत में कुछ निजी मिडिया घरानों के काम करने का तरीका है, वो देश के लिए बिलकुल बढ़िया नहीं है| आप मिडिया के बेहतर विकल्प के रूप में B.B.C. को ले सकते है | ना कोई पक्षपात, ना कोई ड्रामेबाजी, विशुद्ध कवरेज़|मैं अनुनाद सिंह, वेद रत्न,सुरेश जी से पूर्ण सहमत हूँ |
गोपाल जी
अगर मैं इस वक्त नीतीश पर लिख रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि सारी नौटंकियों पर मेरी नज़र नहीं है। यह कैसे मान लिया आपने। अब चूंकि नीतीश पर लिखना है तो राजनीति का पूरा खतिहान थोड़े न लिखूंगा।
रही बात गुजरात की जनता का अपमान का तो गुजरात में मोदी को पैंतालीस फीसदी वोट मिले होंगे। उस फैसले का अपमान कौन कर सकता है। स्वीकार करना ही होगा। लेकिन यह कैसे मान लिया आपने कि मोदी को वोट नहीं देने वाली पचपन फीसदी पब्लिक धर्मनिरपेक्ष नहीं है। यह कैसे मान लिया आपने कि जिन लोगों ने मोदी को वोट दिया उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का फैसला कर दिया।
तो क्या फिर कांग्रेस पर से चौरासी के दंगों का धुल गया क्योंकि दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया है। फिर तो बहस ही बंद कर दीजिए।
RAVISH JI,YA AUR BHI JO NITISH-NARENDAR KE AALINGANBADH HONE SE HATPRABH HONE YA KARNE KI KOSHISH KR RAHE HAIN...KO DEKH MUJHE MERI NANI KI YAAD AA GAYI....MERI NANI BAHUT BHOLI,JAISI KI SB KI NANIYA HOTI HAI. CHUHLA CHOKA SAMBHALNE WALI NANI TV PAR KISI FILM MEIN EK HERO KO MARTE DEKH LETI TO EMOTIONAL HO SHOK SANTAPT HO JATI...LEKIN AGLI FILM MEIN USI HERO KO HEMA(JAYAPRADA YA REKHA BHI HO SAKTI HAI) SE AALINGANBADH HUE DEKHTI TO HAIRAN AUR PARESHAN HO KR KEHTI "REEEEE IYO TO MAR GAYO HO ....JINDA KIYAN HO GAYO???"
.....SO RAVISH JI...YE CHUNAV-VUNAV TO FILM HAI...AUR NITISH-NARENDER ISKE ACTOR.....AUR 50%VOTE POLL KARNE WALI JANTA YE SB JANTI HAI....FIR AP OR HUM.....NAAANI KYU BANE???
SACHIN
नीतीश-मोदी की नौटंकी पर कस्बा में एक अच्छी ख़ासी बहश शुरू हो गयी है। रविश कहते है कि नीतीश में इतना दम था तो वो मोदी को बिहार में प्रचार के लिए बुला लेते। आज नीतीश को ये ख्याल क्यों आया। क्या सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए नीतीश ने ऐसा किया? आज लुधियाना में ये दोनों साथ-साथ कैसे आ गए। मेरा मानना है कि हम बेकार की बहश में है। नीतीश ना तो कांग्रेस के साथ जा सकते है और ना ही लेफ्ट के साथ। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर क्या करेंगे ये कहना मुश्किल है लेकिन आडवाणी नाम पर वो सहमत ही दिखते है। कांग्रेस लालू और पासवान को औकात दिखाने के लिए नीतीश की तरफ चारा फेंक रही है। मुझे वीरप्पा मोइली के लिए अफसोस है कि बेचारे मुफ्त में मारे गए। नीतीश कैसे बीजेपी को छोड़ सकते है बिहार में सरकार चलानी है की नहीं। अब करात के ही बयान को लीजिए वो कहते है कि 16 के बाद अंतिम फैसला होगा। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वो कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह रहे है। कांग्रेस और लेफ्ट ने नीतीश की प्रशंसा की इसका मतलब ये नहीं है कि नीतीश कांग्रेस के साथ जा रहे है। हालाकि नीतीश की जो राजनीति है उस एजेंडे में कांग्रेस फिट बैठती है। नीतीश रैली में जाएंगे.नहीं जाएंगे...मीडिया में और क्या ख़बर बनेगी। जाएं तो ख़बर ना जाएं तो ख़बर। अटकलें लगाते रहिए, ब्रेकिंग चलाना ही पड़ता है। नीतीश-मोदी,साथ-साथ FULL FRAME BREAKING. वेद रत्न जी गोधरा की बात करते है। ये तो मानिएगा कि उसके बाद जो हुआ वो शर्मनाक है। इससे इनकार नहीं करना चाहिए। मोदी गुजरात में रैली में सिब्बल पर हमला बोलते है कि विदेशी को राहत और भारत मां की संतान को जेल। कांग्रेस मोदी के सामने हमेशा बैकफुट पर ही खेलती है। तभी तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर मोदी कांग्रेस पर आरोप लगाते रहे और कांग्रेसी चुप बैठे रहे। बाद में मोदी पर अवमाणना का मामला दर्ज हुआ। WHY PLAYING ON BACKFOOT. खैर नीतीश ने अपनी चालाक छवि बनायी है। जहर में मिले रहने के बाद भी वो अमृत दिखते है। साफ-साफ कह गए बाढ़ की आपदा में भी केन्द्र सरकार ने मदद ही नहीं की। अब ये कौन पूछेगा नीतीश से की बार-बार केन्द्र सरकार से रिपोर्ट मांगने पर भी क्यों ही कार्रवाई हुई. बाढ़ की मरम्मत के बारे में केन्द्र ने कई बार पूछा। नीतीश जी आपकी डिमांड बढ़ी है, बेहतर है। कभी लालू-पासवान की भी थी। लेकिन जैसे ना उनके पास कांग्रेस छोड़कर कोई विकल्प था वैसा ही आपका हाल भी है। बहश जारी रहे, बेहतर है लेकिन ना तो मोदी को क्लीन चिट दीजिए ना ही कांग्रेस को। कांग्रेस ने माफी मांगी है तो क्या मोदी भी कभी ऐसा करेंगे।
सचिन
neeteesh
NDA ke manch par...
esmen naya kya hai.....?????
aaj mai pahli bar aap ke blog par likh raha hu aur mai kah sakta hun ki agar didia karoge to payar ho jayega....aapke blog ko parne ke bad yahi sahi sabd hai....aapne bilkul sahi kaha ki9 nitish ki tarah jhuta sayad is dunia me mile kass ye bat chunav se pahle bihar ke bekhuf musalmano ko samj me aa jati to galti dohrai na jati ek bat mai kahna chahunga ki aap log sachhe lalu ki itni ninda kyun karte hai balki wah to sahi tasvir batata haiiii....khair mai aap ko koi rai nahi de sakta hau kyunki aap guru hai aur mai student is school ka.....
नितीश बाबू उन हिन्दुवादी नेताओं से खतरनाक हैं जिन्हें पहचानना तक मुश्किल हो जाता है। उनलोगों के बारे में तो साफ-साफ पता होता है, फिर हम उस हिसाब से नफरत और श्रद्धा रख पाते हैं। हियां तो कुछ क्लियर ही नहीं हो पा रहा है।
ना मैं 'सरकार' हूँ, न पत्रकार. मैं एक 'बेकार' हूँ...इतना फिर भी जानता हूँ कि 'अपनी गली का कुत्ता भी शेर होता है'...
हर आदमी यदि रुपहले पर्दे पर या टीवी स्क्रीन पर छा जाता है तो उसकी एक 'विशेषज्ञ' कि छवि मानस पटल मे बन जाती है. खुद उसको भी ग़लतफ़हमी हो सकती है...अपने दायरे मे संभव है कि उसकी हर बात गौर से सुनी जाती हो और संभव है कि कभी ऐसी स्तिथि प्रतीत हो कि आप बेवकूफ बन गए...
जैसे मैं कुछ समाज सेवा के भाव से रत्नों आदी कुछेक सताए हुवों को पहनने का सुझाव देता हूँ, और यदि उन्हें कुछ लाभ मिलता है तो मुझे भी ख़ुशी मिलती है...न मिले तो दुःख होता है और मानता हूँ कि शायद या तो उसने जन्म समय आदी सही न बताया हो और या मेरा गणित कहीं कुछ और शोध कार्य मांगता हो...
हमें तो यह भ्रम था ही नही, जो टूटता। पर कुछ मतदाता जरुर ठगा सा महसूस करते होगे।
रवीश जी, मेरे अन्दर तो एक ही कीटाणु है "राष्ट्रवाद" का, लेकिन जब चूंकि आपने पहले ही कह दिया है कि आप "संघ विरोधी" हैं, इसलिये इस कीटाणु को आप समझ नहीं पायेंगे… अब वापस आते हैं नीतीश कुमार पर, जिस तरीके से नीतीश को लेकर खबरें प्लाण्ट की जा रही थीं यह "पत्रकारों" और "बिके हुए अखबार/चैनल मालिकों" का ही खेल था, भले ही नीतीश कुमार गला फ़ाड़-फ़ाड़ कर कह रहे थे कि वे NDA के साथ ही हैं। तो इस प्रकार का "काल्पनिक पत्रकारीय मेनिपुलेशन" जब सरेआम नीतीश ने नंगा कर दिया, तो कुछ सेकुलरों को साँप सूंघ गया, कुछ को मिर्ची लग गई, कुछ को दुख हो गया। जब आप गुजरात दंगों की बात करते हैं (लगातार 8-8 घण्टे तक, सालों-महीनों-हफ़्तों) तब स्वयमेव ही कांग्रेस के शासनकाल में हुए सैकड़ों दंगे आपकी खुद की तरफ़ चार उंगलियाँ उठा देते हैं। फ़िर भी आप बेफ़िकर रहियेगा, भाजपा की सरकार इतनी आसानी से बनने वाली नहीं है… पहला रोड़ा हैं श्रीमती पाटिल, दूसरा हैं नवीन चावला, तीसरा है "आपकी प्रिय धर्मनिरपेक्षता"… सो आप काहे इतना बेचैन हैं?
NITISH-NARENDER KI NOORA-KUSHTI PAR APNE VICHAR JAHIR KARNE KI JAGAH KUCH BHAI LOG KHUD KE SARVHARA HONE KI KUNTHA RAVISH KO BARJUA SABIT KARNE KI KOSHISH KAR NIKAL RAHE HAI......JABKI RAVISH JO KEH RAHE HAI....BHAI LOG ACHI TARAH SE SAMAJH RAHE HAI OR DHAKAR BHI MAAR RAHE HAI...LEKIN ......
LEKIN.........CHHUTTI NAHI HAI KAFIR MUH SE LAGI HUI.....
kafi bahas ho gayi hai....
ab lagne laga hai ki netao ki tarah hamare pas b mudde khatm ho gaye hain...
kya aap sab is bat ka jawab dege ki aap me se kitano ne vikas ke kisi mudde par apne sujhav diye hain???
soch samajh kar jawab dena......
intjar karuga....
साब्बास रवीश बाबू बहुत अच्छा लगा ये पढ़कर, मैं तो वेट कर रहा था कि आपने नरेन्द्र नीतिश की नौटंकी में अपना नगाड़ा क्यों नहीं पीटा, आपकी किड़ किड़ धम सुन कर तबियत हरी हो गई
नीतीश ने पत्रकारों के बेबकुफ समझा, कांग्रेस ने मुसलमानों को बेबकूफ बनाया, कांग्रेस उल्लू निकली, बेबकूफ बन गये लालू पासवान-बता नहीं पाये मुसलमानों को, नीतिश ने बिहार में सेकूलर वोटों को बेबकूफ बनाया,
आपकी जुमले बाजी काबिले तारीफ है!
आप सेकूलरिया लोगों की खांचे बाजी मुझे शुरू से ही पसन्द आती रही है, सेकूलरिया खुद को तो धर्म से परे बताते रहे हैं, लेकिन जब बात वोटों की आती है तो उनके लिये वोटर मुसलमान होता है, हिन्दू होता है, सेकूलर होता है वगैरह वगैरह होता है आप नगाड़ा पीटते हो कि अमुक चालाक बाजीगर ने मुसलमान को बेबकूफ बना डाला, सच्ची बताना कभी कभी अपने इस सेकुलरिया नाटक के दोमुंहे पन पर शर्म भी आती है या ....
सुरेश चिपलूनकर भाई ने सही कहा था, मुझे भी आपकी इस पोस्ट में ऊपर से नीचे तक पुरा का पूरा सुलगने की बू दिखायी दे रही है, आपके किरात बबुआ का तो पुरा का पुरा पिरोगराम निपट गया, राहुल बबुआ अपने को बड़ा झांसेबाज समझ रहे थे, कहीं के न रहे बकौल जावेद अख्तर मियां, "सारे सपने कहीं खो गये, हाय हम क्या से क्या हो गये" वाली गति बन गई है अब एसे में रिसा कर बाल नहीं उखाड़ेगे तो क्या करेंगे, उखाड़िये बाल, हमे तो आपसे पुरी सहानूभूति है
आप लिखते रहना, जरूर लिखना, हमें आपका लिखे को पढ़ना अच्छा लगता है, वैसे भी आजकल केबल टीवी वाले एनडीटीवी को दिखाते नहीं और विनीत कुमार के मुताबिक एनडीटीवी हवा होने वाला है अब हम आपका लिखा सिर्फ यहां ब्लाग पर ही तो पढ़ सकते हैं
अपना नगाड़ा चालू रखियेगा
आज जनसत्ता में प्रभाष बाबू ने प्रेस के नगाड़े पन पर एक लेख लिखा है, वो पढ़ लेना और सुनिश्चित कर लेना कि आपको अपने नगाड़े नजाने की उजरत तो सही मिल रही है ना?
अपने भ्रम को स्वीकार करने के लिए बधाई....वैसे भ्रम के साथ आपके पास कुछ पूर्वाग्रह भी है....उनसे भी बाहर निकलिए जल्दी....
गुजरात में मोदी को पैंतालीस फीसदी वोट मिलेप्वाइंट में दम है...
सरकारें पत्रकारों को 'पद्मश्री' आदि की रेवड़ियाँ क्यों बांटती हैं? इसीलिये न कि समय आने पर उनकी 'सेवाएँ' ली जा सकें? इसीलिये बिके हुए पत्रकारों को निष्पक्ष होने की 'नौटंकी' करनी पड़ती है।
लिखते रहिये लेकिन यह मान लीजिये कि जनता 'सब कुछ' जानती है; 'भांट पत्रकारिता' भी।
वैसे रवीश बाबू भूला गये क्या ? आपने भि तो एन डी टी वी पर मुंबई कांड के एस एम एस से मिले पैसे मुंबई कांड के घायलो और शहीदो मे बाटने का बडा भारी ड्रामा किया था . धेला दिया कबी किसी को ? तुम करो तो सही दूसरे करे तो तुम्हारे आग लगती है. क्या बात है ? पेले रहो रवीश बाबू जहर उगलते रहो ? बीस सवाल अभी भी जिसमे मुभई के एस एम एस से उगाहे पैसे का सवाल भी जुड गया है तुम्हारे इंतजार मे है . अगली पोस्ट से तुम्हे यहा चिपके भी दिखाई देहे महा मोहल्लेशवर कस्बेश्वर झुठो के सरताज हा हा हा हा :)
रवीशजी कभी अतंरात्मा साथ दे तो सोचना की क्या वजह है कि अब अखबार और टीवी किसी सरकार को बना-बिगाड़ नहीं सकते?
ये नया कौन सा ब्लागर आ गया। झुठे समप्रदायिकता के नाम पर और कितना खुन पीयोगे। पब्लिक सब जानती है अब यैसे लेख पर थु थु ही मिलेगा। नरेन्द्र मोदी विशाल विकास पुरुष हैं और नितीश कुमार विस्तार विकास पुरुष दोनो मिल जायें तो अच्छी बात है
Hamare yaha kahawat hai- ......ko kuchh paise de do magar buddhi nahi. Ravish babu ko samjhane ki jagah yah achha hoga ko unhe congress ki tarah nitish v kuchh de den. 15 saal bura haal ki tasweer badalne wale k khilaf likna patrakarita to nahi hi hai. Dango ko yaad kar Modi ko bura kahne wale bhookamp ki tabahi k baad khush gujrat banane wale k khilaf likhna v patrakarita nahi.
BJP-JDU gathbandhan k do neta nahi mile to v dikkat mile to v dikkat. Inke baare me likhna-bolna bekaar hai. Doosra formula hi theek hoga.
Lage raho R for Ravish R for Rahul.
Aasif ko kahiye-
bihar ke bekhuf musalmano...
wapas le.
Wah kisi party me hai iska matlab yah nahi ki apne wiswas se matdaan karne wale bihar ke musalmano k baare me aise word k istemaal ho.
Aise word k istemaal khatarnaq hai.
नीतिश कुमार को वही करना चाहिए जो उनकी अंतरात्मा और उनकी पार्टी कहती है. NDTV की पत्रकार उनके मुह में अपना शब्द डाल डाल कर उनके मुह से निकलवा रहीं थी. सबसे ज्यादा हो हल्ला NDTV पर हो रहा है की वे लोग कांग्रेस को एक और पार्टनर ढूंढ़ रहे थे लेकिन फेल हो गया. नीतिश जी बिलकुल वही कीजिये जो जनता ने आपको करने के लिए चुना है. धोखेबाज मात बनिएगा नहीं तो देव गौडा जी का हाल तो देख ही रहे हैं. ये सब लोग चाह रहे हैं की बिहार में सुशाशन ख़तम हो और फिर से जंगल राज आये. इसके लिए गुजरात से कुछ आयात क्यों ना करना पड़े. एक NDTV के पत्रकार महोदय मोदी के मुह में भी अपना शब्द डाल रहे थे, अगले stop पर उनको अपने गाडी से उतार दिया. बेचारे ऐसे लग रहे थे मानो लाजाईल लईका ढोढी छू रहा हो.
this is the height of ideeological preoccupation.you are projecting lalu and paswan as if they are the most innocent charachters of indian politics.is secularism ne hamen itna khaya hai,diya kuch v nahi.ravish ji nitish k vikas nko dekhiye unki rajnaitik mazbooriyon ko nahi.congress,lalu aur paswan ka thotha secularism nahi chaiya,na hi modi ka vikas.lekin nitish jo ki lagatar kaam kar rahe hyain to unki aisi mazbooriyon par hamen aankhen moondni padengi.ham baudhik jugali karte hain,par rajya me kendra se paisa nitish ko lana padega, jiske liye bjp zaroori hai.haan ji9s din bihar me koi godhra hota hua dikhai dene lagega,main apke sath unka virodh karunga.usse pehle nahi,katai nahi.ye sirf main nahi,balki adhikansh bihari aisa hi sochta hai,aap unki bhavnaon ka aadar karen.kuch log hain jinhone aapke is lekh par taarif ki hai,to main aapko ye batana chahunga k aisa wo aapke rutbe k prabhav me kar gaye.
रवीश भाई, मुझे सबसे ज़्यादा हैरानी इस बात की है कि नेताओं और ‘बड़े लोगों’ के इतना करीब रहते हुए भी आपने नीतिश कुमार को इतना बड़ा हीरो काहे समझ लिया। वैसे ज्यादा गलती आपकी भी नहीं है। हमारे यहां व्यक्ति के असली चरित्र (?) से ज्यादा उसकी छवि/इमेज काम करती है। तभी हमारे अडवानीजी ने पाकिस्तान में बयानबाजी करके, ‘तारे जंमी पर’ देखते हुए रोने के दृश्य बंटवा कर और अन्य तरीके करके ‘छवि’ बदली और हम सब फटाफट भूल गए कि जिस तरह आज हम मोदी के नाम पर भिनक रहे हैं, कल आडवानी के नाम पर भिनका करते थे। और इसी तरह भिनक-भिनक कर कल बाबू बजरंगी, दारासिंह और वरुण गांधी को अपनाएंगे। इमेज का खेल ऐसा कि एक बार मंडल/आरक्षण लागू कर देने के बाद मरते दम तक पैर वापिस न खींचने वाले वी पी सिंह पागल करार दे दिए गए और गुमनामी में गुजर गए। दूसरी तरफ एक दिन ‘‘सिर झुक गया है’’ और दूसरे दिन ‘‘मुसलमान कहीं भी मिल-जुलकर नहीं रहते’’ कहने वाले अटलजी ‘‘ऋषितुल्य’’ कहलाए। अब यह अटल जी का चरित्र-वर्णन था कि ऋषियों का, यह तो आप जानो पर छवियों का खेल तो था ही।
जिस देश में सुविधाएं और धारणाएं ऐसी-ऐसी हों कि पूरे दिन बेईमानी, पाखण्ड, भ्रष्टाचार, साजिश, तिकड़म, हत्या, बलात्कार करते रहने के बावजूद आदमी(!) सिर्फ मुसलमान और पाकिस्तान को सुबह-शाम चार-चार गाली देकर देशभक्त का तमगा पा सकता हो, वहां कुछ ढंग का सोचने-करने की ज़रुरत भी क्या है ? सवाल तो यह उठता है कि कलको (‘भगवान‘ न करे) मुसलमान और पाकिस्तान कहीं बिला गए तो इस देश का आदमी ‘‘राष्ट्रप्रेम’’ कैसे करेगा !? तब फिर औरतों और दलितों का नंबर लगेगा। क्योंकि कोई दुश्मन तो चाहिए न देश से ‘‘प्रेम’’ करने के लिए। हम कोई जापान और आस्ट्रिया थोड़े ही हैं जो बिना दुश्मन के ही विकास कर जाएं। अब सोच लीजिए रवीश बाबू कि विकास-पुरुष का मतलब हमारे देश में क्या होता है जो कि फिलहाल, कुछ लोगन द्वारा नीतिश-मोदी की जोड़ी को माना जा रहा है।अब अखबार-टीवी से ज्यादा असर अफवाहों, कानाफूसी और साजिश का होता है जनता पर।
इतना भी हैरान मत होईए। कलको कांग्रेस की 150 सीट भी आ गई तो नीतिशबाबू राहुल बाबा के साथ रोड शो में रुमाल हिलाते हुए दिख सकते हैं। इस लिए टेंशन मत लीजिए रवीशजी, इस देश को अभी बहुत नाटक देखना है।
बक रहा हूं जुनूं में क्या-क्या कुछ-
कुछ न समझे खुदा करे कोई !
(खुद समझ जाऊं वही काफ़ी है।)
NITISH-NARENDER(RAVISH KO BHI JOD LE) KE HER-PHER MEIN , BHAI LOG ITNA TIPIYAYE HAI KI COMMENTS KA RECORD BANNE JA RAHA HAI....AB TAK 39...& TIPIYANA ABHI CHALU AAAAAAHE...BADHAI KIS KO DE RAVISH KO, YA NITISH KO.......JARA TIPIYA KR BTYE DEGE TO BHALA HOGA....
पहले गाँव में भुत का भय दिखा कर ओझा गुनी लोग सीधे साधे लोगो को उल्लू बनाते थे. वही हाल आज काल राजनीति में भी दिखाई दे रहा है. भोरे भोरे एक पार्टी वाला दुसरे को निचा और खराब बोलेगा. किरिन डूबते डूबते पलटी मार देगा. बोलेगा की भुत (NDA) से बचने के लिए हम लोग सब साथ हैं. एक भागलपुर में भोरे भोरे लालटेन बुझा देगा और सांझ होते होते कोल्कता पहुच कर लालटेन का बत्ती जला देगा. बोलेगा की वो तेल कम था इस लिए थोडा मधिम कर दिए थे. एक कोल्कता पहुच कर लेफ्ट का handle थोडा राईट में खीच देगा और शाम होते होते दिल्ली पहुच कर पलती मर देगा. अब सबसे बड़ा नाच तो रिजल्ट निकालने के बाद होगा. जब NDA के भुत के नाम पर सब मिल के जनता को उल्लू बनाएगा. बढ़िया है. मजा आ रहा है आज कल.
Aapki post aur us par pratikriyaon se aaj ki hinahin aane vale kal ki rajniti ki tasvir bhi dikh rahi hai.
gandhivichar
what's so astonishing about nitish and modi..... how could you and your channel beleive that it's a kind of cold shoulder from nitish to modi. ndtv was a big bla bla bla bla on this issue while it was anybody's guess that what is going to take place between old NDA allies after the polling in bihar is over.now you and many other can say...no..no nitish was looking
reluctant but how could he snub modi in a full public view......!
akhilesh dixit
Bhai, Nitish jab tak forward ke sath hai tab tak in mahanubhav logo ke duara app sabhi tarah ke trak ke sath unhe defend karte milange or jis din o .... us din ye log inki bhi m.. Bah... kar denge.
तालियाँ ही तालियाँ...,
गोपालजी के लिये,
जमीन से जुड़ कर जमीन की बात करना और जमीन सुंघा-चटा देने के लिये.।
गोपालजी, ये सेकुलर-नोनसेकुलर की उड़ान के बादलो पर,भ्रमो पर सवार रविश जैसे लोग....., जब गिरते है तब भी टाण्गे ऊचीं ही रखते है जिससे कोई गिर जाने का इलजाम नही लगा सके.।
पता नही हिन्दुस्तान में यह सेकुलर/नोन-सेकुलर का भ्रम..., कब तक अच्छे खासे समझदार युवाओं को भ्रमो में - कल्पना की उड़ानों के बादलों पर सवार रखेगा ।
रही बात नरेन्द्र मोदी को गुजरात में मिले नोन-सेकुलर/सेकुलर "मत-प्रतिशत" की तो.....!!! तो तर्क-शास्त्र की पुस्तक मे एक अद्ध्याय है जो m.a. के विधार्थी पढते है..."ईश्वर है या नही.?" सिद्ध करों । बस फ़िर तर्क और कुतर्क का कुटील अध्याय चालु हो जाता है । बात सिर्फ़ तर्क करना सिखने और सिखाने तक ही होती है तब तक तो सब अच्छा है लेकिन यदि वास्तविकता में ईश्वर पर बहस करने वालो के लिये तो कहना पड़ता है " आँख के अन्धे और नाम नैनसुख "।
रविशजी, बुरा ना लगाना...., आपने मोदी को गुजरात मे मिले मतों के प्रतिशत के आधार पर जो संशय जताया है यह बिलकुल वैसा ही है जैसा सीताजी के विषय में धोबी ने रामायण में संदेह जता कर किया था ।
हाय खबरीलाल, भूल गये कि टी०वी० का काम खबर दिखाना है न कि बनाना। खबर तो नेता ही न बनाएँगे। वैसे उस दिन विस्फोट.काम पर खबर थी कि अब तो अखबार और टी.वी. वाले खबर छापनें का लाखों रुपया माँग रहे हैं? क्या जुगाड़ नहीं बना? वैसे तो नेता तो होते ही धूर्त हैं लेकिन आप काहे यू०पी०ए० ज्वाइन किये ले रहे हो? वैसे एन०डी०टी०वी० काँग्रेसी चैनल कब से हुई गवा? कौनो बतावा रहिस की यो तो कम्युनिस्टन का चैनल आय?
समझ नहीं आता क्यूँ मोदी और नीतिश कई मिलन को इतना बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है ? सर मोदी गुजरात के जनता कई प्रतिनिधि हैं दो बार गुजरात ने उन्हें दो तिहाई बहुमत से चुनकर मुक्य मंत्री बनाया है फिर क्यूँ आप लोग उन्हें एक अछूत का दर्जा देना चाहतें हैं ??मैं पहले पत्रकार था आपसे एक दो बार बात भी हुए है मगर एक बात बड़ी अजीब सी लगती है गुजरात के लोगों ने साबित कर दिया है जनता उन्हें प्यार करती है और आप लोग मोदी मोदी किये रहते हैं सर?????अब्ब तो स्वीकार कीजिये ,,
Ravish Ji,
Ye pahli baar toh nahin jab aapki aaknkhein der se khuli hain? Darasal dosh na toh Nitish ka hai na aapka hai. Dosh us mahaul ka hai, jahan aapka jyada waqt gujarta hai. Yes, NDTV. Seth ke paise per aap sabko suvidhajanak patrakarita karne kee aadat lag gayi hai. apki bhasha achchi hai, sochte hai laffajji karke kuchch bhi keh sakte hai. NDTV mein aapne ess hathkande se darshakon ko bebkoof banane ki koshish ki,Darshak to bwbkoof nahin bane ulte aapko raste pe aana pada. Ab blog ki raah pakad lee hai.
Maharaj aap kahe ke patrakaar hain, jo Nititsh aur BJP ke gathbandhan ko nahin samajh sakte. Patrakaar to aage kee soongh leta hai. Aap toh lol (murkh) ki tarah behave kar rahe hain. Nitish ne Narendra Modi ne Bihar nahin bulaya aur Ludhiyana mein hath mila liya toh kaun sa pahad toot pada. Nitish kiske sath hain, Kiske sath jayenge kam se kam ese lekar hum Bihar ki janta ko kaoi asmanjas nahin. Ho sakta hai aap dilli mein rehte hain, aapko bihar ka sach nahin dikh raha.
Aapko ek kissa sunata hun. Ek dost apne dost ke pahuncha ghoda mangne. Dost ne kaha ghoda nahin hain. Tabhi ghoda hinhina utha. Dost ne kaha jhooth bola, nahin dena tha toh saaf bolte. Ghoda toh hinhina raha hai. Dusre dost ne kaha ghode ki juban samajhte ho, admi ki nahin. Ravish babu aap bhi aise hi hain. Jab tak sach nange roop mein samne nahin aa jata tabtak hawa mein rehte hain. Nasamjhi ka dosh doosre pe madhte hain. NDTV mein bhi aapko badi karigiri se karte dekha hai.
Yaad hai Talibanpe aapne\shandaar karyakarm banaya tha. Taliban chanellon ke liye suvidha ka samachar ban gaya hai. Kya halat hain aaj.?Aaj NDTV mein taliban Chha gaya hai. News papper mein taliban hai. Kya aap jimma lenge ki aap waqt rehte us sankat ko nahin sungh paye, jo bakion ne ssongh liya. Ye sab hoga bhi kaise Ravish babu. Aapko to mahan banne ki padi hai. Mahan ban jayenge ravish ji. kyonki humare yaha achchi bhasa likhne wale hi mahan bante hai, bhale usme contant gober ho.
Kuch Bhai Narendra modi ko 55% vote se jitne wala bata kar defend kar rahe hai then what about Laloo when he sweep bihar by more than that.
We know you have another reason for that.....
Ravish Babu ye app ne kya kar diya, Jis samaj ke 70% Population ko Aaj tak sahi representation nahi mil saka, ek dalit/OBC prime minister (full term) nahi de saka, us samaj me app ne ye kya kar diya. Jab tak Pandit or muslim ek sath vote karke desh ki satta ka sukh bhogate rahe sab thik tha? ab jab muslim OBC/SC/St ke sath vote karte hai to o rastra drohi hai.
Bat ohi hai in budhijivi logo se pucha jaye ki koi inhe Ma-Bahan ki gali de ke rajya ka vikash kare to kya ye sweekar karene? Kuch log yes bhi kar sakte hai, tabhi to o aaj bhi Raja / Youvaraj kahalate hai akhir inhone Britishers ke sath bhi to yes hi har ke apna rajpat bachaya.
दोस्तों,
गर्मजोशी दिखाने के लिए शुक्रिया। बात इतनी हो चुकी है कि अभी भी कई बातें बाकी लगती हैं। जनता किसी को चुन दे इसका मतलब नहीं कि राजनीति में विरोध खत्म हो जाए। मोदी हों या नीतीश इन्हें जनता चुनती रही है। इसका मतलब यह नहीं कि विरोध नहीं करेंगे।
पंद्रह साल तक लालू को जनता ही चुन रही थी। बिहार का बेड़ा गर्क हो गया। तो क्या विरोध नहीं करना चाहिए था? तब अगर हम ब्लॉगर होते तो क्या आप ये लिखते कि रवीश बाबू लालू का विरोध क्यों करते हैं? पब्लिक तीन बार से चुन रही है तो आपका क्या जाता है? क्या किसी के चुने जाने से विरोध खत्म हो जाता है? चुनाव के बाद बहस खत्म नहीं हो जाती। चुनाव तो कई कारणों से होते हैं। गुजरात की जनता की ही चलती तो वो माया कोडनानी को बचा लेती न। मोदी ही बचा लेते और कहते कि जनता ने चुना है तो आप कौन होते है सज़ा देने वाले। मोदी जी ने इस्तीफा क्यों लिया। क्या शहाबुद्दीन को इसलिए माफ कर देना चाहिए कि पब्लिक उन्हें वोट देकर जीता देती है? क्या शहाबुद्दीन के जीतने के बाद विरोध नहीं होगा? ठीक है कि नीतीश ने शहाबुद्दीन को पानी पिला दिया। मैं अपने लेख में जहां लगता है नीतीश अच्छा काम कर रहे हैं, उनकी तारीफ भी करता हूं। जहां नहीं कर रहे हैं, उसका विरोध भी करूंगा। जिस तरह से मैं आपको चुप नहीं करा सकता, उसी तरह से आप भी मुझे चुप नहीं करा सकते। और चुप क्यों हो?
कल अगर मैं किसी बात पर नीतीश की तारीफ कर दूं तो आप फिर कहेंगे कि क्या बात है पैसे मिल गए? मैने कब कहा कि गुजरात विकसित प्रदेश नहीं है। बिल्कुल है। मोदी का भी श्रेय है। मैं तो सवाल उठा रहा हूं कि भाई समाजसेवा कर देने से किसी का कथित अपराध माफ नहीं हो जाता। इसके इंसाफ के लिए अलग प्रक्रिया है। जिसे मोदी को भी स्वीकार करना पड़ता है। एक बार भी नहीं कहा कि माया कोडनानी बेकसूर है। किसी को याद है तो बता दे।
रही बात एकपक्षीय होने की तो मैं इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। यह सही है कि कभी किसी दल पर नहीं लिखा लेकिन सर्वपक्षीय होने के लिए सब पर लिखता ही रहूं यह ज़रूरी नहीं है। इसकी क्या गारंटी है आप मेरी आलोचना करते वक्त उन पुराने लेखों का ख्याल ही रखेंगे? जैसे आपने भेकुलरवाद पर मेरी टिप्पणी को ध्यान में नहीं रखा। जिसमें मैंने सभी सेकुलर दलों की आलोचना की है। अपने शो में भी कहा है कि अगर मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं तो मायावती क्या हैं? विश्वहिंदू परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता रहे दीपक भारद्वाज को बीएसपी ने टिकट देकर कौन सा सर्वसमाज बनाया है? यह सवाल भी उठाया है। हां तमाम राजनीतिक प्रक्रियाओं के बीच मैं ज़रूर देखना चाहूंगा कि कोई दलित पीएम के कुर्सी तक पहुंचता है या नहीं। लेकिन यह कभी नहीं कहा कि वो मायावती ही होनी चाहिए।
बहस जारी रखिये। किसी को भले लगता हो कि नीतीश मोदी के फोटू पर इतना बवाल क्यों हैं? उनकी अपनी दलील हो सकती है।
इस तरह की आलोचना हर बार सही नहीं होती कि मीडिया में ख़बरें गढ़ी ही जाती हैं। राजनीतिक खेमों में बंटे पत्रकार ये सब काम करते रहते हैं लेकिन हर कोई कर रहा हो इस फैसले पर पहुंचने से पहले ज़रा सोचियेगा। कई बंधु बड़े आराम से लिख देते हैं कि कुछ मिल गया है क्या। अगर इतनी ही विश्वसनीयता खत्म हो गई है तो फिर मीडिया से नाता ही तोड़ लीजिए। कुछ न कुछ तो है जिसके कारण आप अखबार पढ़ते हैं और टीवी देखते हैं। हां फैशन में आलोचना करने से अच्छा है कि एक जागरूक दर्शक की तरह आलोचना कीजिए। इससे हवा में उड़ने वाले हम टीवी पत्रकारों को भी फायदा होगा। लेकिन तब मैं आपसे क्या यह पूछ सकता हूं कि भूत प्रेत या नौटंकी दिखाये जाने पर आप अमुक चैनल की आलोचना क्यों करते हैं? जब उसे दर्शकों का बड़ा हिस्सा पसंद करता है और वो रेटिंग में पहले तीन नंबरों में हैं। जैसे आपने कहा कि नीतीश की आलोचना क्यों करते हैं क्योंकि उन्हें तो पब्लिक ने चुना है।
नीतीश का इतना ही जनसमर्थन होता तो पटना में चालीस फीसदी मतदान नहीं होता। नीतीश और लालू मिलकर पाटलिपुत्र में अड़तीस फीसदी वोटर को भी घरों से नहीं निकाल पायें।
बहस जारी रखिये।
"तू कौन है तेरा नाम है क्या? सीता भी यहाँ बदनाम हुई..."
किसी कवि ने यह भी पहले ही कहा की यदि शराब बेचने वाली के हाथ में दूध का पात्र भी हो तब भी लोग तो यही कहेंगे कि उसमें शराब ही है!
इसे ज्ञानियों ने, यानि प्राचीन पत्रकारों ने जिन्होंने मानव जीवन को एक ड्रामा अथवा नाटक समझा, 'काल का प्रभाव' कहा. और यही नहीं उसका गणित भी सम्मुख रखा.
किन्तु काल के प्रभाव से आधुनिक 'बेल-मुंड' हों या 'नारियल-मुंड' ज्योतिषी अदि से आप कैसे आशा रखते हैं कि वे उसे नक़ल कर शत प्रतिशत समझ पाएंगे शास्त्रों को जब सही गुरु कोई उपस्थित ही नहीं - किसी भी क्षेत्र में?
हरी अनंत/ हरी कथा अनंता कह गए ज्ञानी :) विक्रम और बैताल देखिये, या पढिये 'बैताल पच्चीसी' और 'सिंहासन बत्तीसी', और आप भी आनंद उठाइए :)
अथवा गहराई में जाइये 'सत्य' की...
अभी कहीं, शायद इसी ब्लाग पर मैंने पढ़ा कि रवीश जी ने वही काम किया जो धोबी ने सीता पर ऊंगली उठा कर किया था। उत्कंठा हुई जानने की सीता कौन ? नीतिश बाबू या मोदी साहेब !? अहा ! सीता !? और सीता को निकाले कौन फेंके थे घर से !? धोबी !? नहीं प्रभु ! राम बाबू निकाले थे राम बाबू। मिथक-पुराणों में सारा दिमाग घुसेड़े/गिरवी रखे लोग अब ब्लागिंग में टांग डाल दिए हैं। अब कहिए कि हम ई सब रवीश बाबू के प्रभाव में लिख रहे हैं। संबंध-जुगाड़-तिकड़म का ऐसा ‘संस्कार’ पड़ा है कथित धार्मिक लोगन का इससे आगे देख ही नाहीं सकत हैं।
ek baat samajh nahi aati kyun sir aap log modi ji ko swikaar kyun nahi kar rahe hain? gujarat ki janta nai unhe do baar 2 tihai bahumat sai jitakar yeh siddh kiya hai ki woh ek achhe neta hain aur gujarat ki janta unme vishwas karti hai,,phir kyun patrakar jagat unke pichhe pada rehta hai jaise woh ek acchut hon??kya isse aap log gujarat kai logon kai janadesh kaa anadar nahi kar rahe ???aur modi sai agar koi neta milta hai to itna bawal kyun ??modi afjal guru to nahi hai??aur naa hi koi hitler jo jabardasti chief minister bana betha hai modi nai vikas kiya hai aur hum jo gujarat main 20 salon sai reh rahe hain uske witness hain ,,main bhi patrakar rha hun sir aur janta hun aapka kad kafi bada hai magar dharmnipekshta kai naam par lalu ,mulayam,aur devgoda jaise netaon ko aage badhne diya jaye???left parties ko jiska desh main janadhar nahi hai, unlogon ko adhikar diya jaye woh bhi sirf isliye ki woh secularism ki chadar odhe hue hain
kahne ko to rajneta rashtra ke sevak avm path pradarshak hote hai. lekin ye itani jaldi jaldi apni baat kyo badlate rahte hai. kya vaakai rashtr ke path pradarshak aise hote hai.
Bhai! aapne Bhi nitish ko apne bhi apne ek post me secular bana diya tha. Ab shyad yah kehna uchit nahi ki nitish kitne secular hain.
गिरवी किसने क्या रखा है ,यह तो सब लोग देख पढ ही रहे है...,ग्रोवरभाईसाब, और समझ भी रहे है कि दिल्ली की तरह अब सेकुलर-सेकुलर की नौंटकी करने लोग internet पर भी सेकुलर-सेकुलर नौंटकी करने आगये है । मेरे सभी धर्म-प्रेमी भाईयों , आपको कहीं पर कुछ जल जाने की बू आयी , जरुर आयी होगी ।
ग्रोवरजी, मोती-मूंगा-माणीक्य सिर्फ़ समुद्र में गहरे गोता लगाकर ही गोताखोर निकाल पाते है किनारे पर बैठे तो सिर्फ़ नमक ही चाट कर रह जाते है ।
पुराण समुद्र है यह गोताखोर जानता है, किनारे बैठे हुओं के लिये तो यह नमक का ढेर ही है बस उससे ज्यादा नही ।
वन्दे वेद मातरम् !!!
मीरा बाई सत्व अथवा सत्य कह गयी, "मूरख को तुम राज दियत हो / पंडित फिरत भिखारी...इत्यादि." और भारत में आज 'बीमारू' राज्यों में 'पंडित' अधिक मिलने की आशा की जा सकती है...
भारत ऐसे ही महान नहीं कहलाया - यहाँ छोटी - छोटी दिलचस्प कहानियों के माध्यम से भी 'आम आदमी' को 'प्रभु' से जोड़ने का प्रयास किया जाता रहा है. किन्तु अंततोगत्वा 'राम-सीता' की कहानी, रामायण, कों आम आदमी तक पहुँचाने वाले तुलसीदास के शब्दों में हर एक की अपनी भावना पर निर्भर करेगा कि वो 'भगवान' को किस रूप में देखेगा...
एक ऐसी कहानी में, एक दिन सुबह सवेरे शिव-पार्वती आकाश मार्ग से जा रहे थे तो उन्होंने एक निर्धन ब्राह्मण कों एक सड़क पर जाते देखा जो ज़मीन में कुछ सोना इत्यादि मिलने कि आशा में हमेशा कि तरह नीचे ही देखता चल रहा था...
जैसा हर माँ का स्वाभाव होता है, पार्वती कों उस पर दया आ गई. उन्होंने शिवजी कों उसे कुछ सोना दे देने कों कहा...
किन्तु, यद्यपि शिवजी ने सोने कि पोटली उस मार्ग में डाल भी दी, निराश पंडित के मन में उस दिन विचार आया कि वो कोई दूसरे मार्ग से नदी की ओर जाए - हो सकता है सोना उसे उस मार्ग से मिल जाए!
इस कारण सोना एक 'उद्योगपति' कों मिल गया और ब्राह्मण सोने से वंचित रह गया :)
जहां भड़काऊ भाषा होगी जलने-जलाने की नीयत तो दिख ही जाती है। कब तक छुपाईएगा ! वैसे मैं तो सोच रहा था ‘जलाओ-जलाओ’ का खेल खेलते-खेलते यह बू आपको खुशबू लगने लगी होगी। कब तक छुपाईएगा ! गोता लगाने के नाम par अपनी कमियां-कमजोरियां-गवाह-सबूत खोहो-खंदकों में कब तक छुपाईएगा।
बहुत बहस हुई,लेकिन अफसोस इतना है कि फिर भी ऐसे लोग बहस में शामिल है जो कि कुछ समझना नहीं चाहते,कोई बात नहीं देश भरा पड़ा हैं ऐसे लोगों से जो सोचते हैं कि कांग्रेस ने इस देश को आजाद करवाया और भाजपा ने हिंदुओं के हित की बात की,जिनकी सोच में आज भी भारत के वामपंथी मजदूर-किसान के हक की बात करते हैं, और समाजवादियों का कांग्रेस विरोध शायद कांग्रेसियों से गलबहियों पर भी प्रतीत होता है.ये भारतीय संविधान में अगर लिखा है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है तो क्या? सारी बात एक बार स्पष्ट हो जाती है कि किसी उम्मीदवार का जीतना उसकी नैतिकता का पैमाना है, जिस प्रकार आप जैसे लोग ही टेलीविजन पर परोसे जा रहे मसालेदार खबरों के व्यंजनों को चटकारें मारकर देख रिमोट से चैनल बदलते समय कह देते हैं कि क्या साला आज-कल इन न्यूज़ वालों को खबरें नहीं मिलती। आप उसमें मीडिया की नैतिकता पर सवाल खड़ा करते हैं कि खबरों के माएनें क्या होनें चाहिए, क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं, क्या खबर हैं और क्या नहीं, और जब आपको टीआऱपी दिखा कर आपके ही मित्र मुंह बंद करते हैं तो आप लोग फिर ब्लॉग पर मीडिया की नैतिकता पर उल्टी करनें लगते हैं, हमें ही खबरों के सिद्धांत बताते हैं.
परंतु जब हम नरेंद्र मोदी,कल्याण सिंह या जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार के दंगों में लिप्त होनें की बात करते हैं जो आप केवल मोदी की जीत का हवाला देते हैं कि मोदी को जनता ने चुना है...भाई विरोधामास लोगों के विचारों में हैं, तर्क ये भी दिया जा सकता है कि जगदीश टाईटलर या सज्जन कुमार भी दोषी है,लेकिन जीततें तो वो दोनों भी हैं आपके संघी मदन लाल खुराना और स्व.साहिब सिंह भी उनसे हारे हैं, वो भी भारी अंतर से। तो क्या उन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया जाना चाहिए था, काम तो उन्होंनें भी करावाया था परंतु देश में गलत कृत्य करनेवालें की जीत या धर्मनिरपेक्ष होने का पैमाना उसकी जीत या उसके द्वारा किए गए विकास कार्य नहीं होना चाहिए। अगर देश के सभी सिख कांग्रेस के खिलाफ होते तो कांग्रेस की सरकार पंजाब में बनना इसके पैमानें को तय कर देता हैं कि कांग्रेस द्वारा जो 84 में हुआ वो भुलानें लायक है? या भाजपा की सरकार नें जो 92 में अयोध्या में किया वो भुलानें लायक है? जो सिंगूर-नंदीग्राम में हुआ वो भूलानें लायक है? या जो उड़ीसा के कंधमाल में ईसाईयों के साथ जो हुआ वो भुलानें लायक हैं? मेरे मित्रों आप नीतीश के चुनाव से पहले मोदी के बारे में दिए गए बयान को उड़ीसा में नवीन पटनायक के चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से अलग होनें के जैसा कृ्त्य नहीं मानतें? नवीन पटनायक को इस बार कंधमाल की घटना से सबक मिला और चुनाव से ठीक पहले अलग हो गए, और ऐसा ही कुछ हमारे नीतीश बाबू भी कर गए चुनाव के दौरान तो आपकी गाड़ी के पीछे मोदीजी के लिए लिखा था कि 'उचित दूरी बनाएं रखें'पर गाड़ी की पार्किंग एक ही थी, तो उनके साथ ही पार्क कर दी। अब पता नहीं कि ऐन मौके पर नवीन पटनायक भी आपकी पार्किंग में जगह न बना लें। फिर सवाल उठेगी की सही गलत का क्योंकि पटनायक भी कंधमाल के लिए उतनें ही दोषी हैं जितना की संघ परिवार. मेरे संघी पत्रकारों को शायद मेरी बात बुरी लगे पर रवीश भाई के इस लेख से इतना तिलमिलानें की जरूरत नहीं थी, सवाल सहीं-गलत का था चाहे वो कांग्रेस के टाईटलर-सज्जन हों भाजपा के कल्याण,आदित्यनाथ,मोदी या वरूण या सिंगूर और नंदीग्राम में सीपीएम कॉमरेडो द्वारा किया गया अमानवीय कृ्त्य.इन सभी को यदि आप जीत के पैमानें पर रखकर आगे की सोच को स्वीकराते हैं तो क्या गलत हुआ जो वरूण गांधी ने मुस्लमानों के खिलाफ गलत बात कही, क्या गलत अगर योगी आदित्यनाथ मुस्लिम हत्या को पुण्य के तराजू में तोलतें है,जीतते तो वो भी हैं हर बार, और जीत तो वरुण गांधी भी जाएंगे, सीपीएम भी बंगाल में जीतेगी और संघी फिर दिल्ली शहर में कितना चिल्लाते कि 84 के हत्यारे-84 के हत्यारे,पर जीत सज्जन-टाइटलर भी जाते, अगर आपको ये स्वीकार्य है तो बहस जारी रखिए...
नीतीश कुमार ने दिखा दिया कि वें कितने चालाक है । मतदान खत्म होने से पहले यह भी कहते रहे कि वामपंथियों की राय से हमारी राय मिलती जुलती है ..हम ढेर सारे मुद्दों पर वाम पार्टियों के साथ रहे है । शरद जी ने तो यहां तक कह दिया कि अगर वामपंथी यूपीए सरकार के अंग नही रहते तो देश की जनता सडक पर आ जाती । वामपंथ और संघ के साथ इतना बढिया तालमेल शायद ही भारत की किसी राजनीतिक पार्टी ने चुनावपूर्व बनाया हो ।
अपने सरकार की धर्मनिरपेक्श छवि बनाये रखने के खातिर किशनगंज सीट के लिये अड गये बीजेपी से ..जनता को यह संदेश देने में भी नीतिश सफल रहें कि मुसलमानों से भला बीजेपी का क्या वास्ता । भागलपुर दंगा पीडितों को न्याय दिलाने की बात कहकर नीतीश जनता को बरगलाने में सफल रहें कि भाइ नीतीश तो सेकूलर है भाजपा का साथ एक मजबूरी के सिवाय कुछ नही ।
ये हमारे राजनिति कि त्रासदी है ,यहा कह्ते कुछ और है और करते कुछ और
इन नेताओ कि कथनी और करनी पर बिश्वास नही किया जा सकता
जब राजनेताओं का चर्चा आता है तो हम केवल कह कर रह जाते हैं कि नेता बदल गए हैं - कहते कुछ हैं और करते कुछ और. उदहारण के तौर पर याद भी करते हैं सूर्यवंशी राजाओं के तथाकथित वचन को, "प्राण जाये पर वचन न जाये!" किन्तु अपने ही ज्ञानी लोगों के वचन को याद करने में कतराते हैं क्यूंकि गहराई में जाने से हर कोई डरता है. १६ साल का बच्चा भी नक़ल कर कह देता है कि वो भगवान पर विश्वास नहीं करता:)
जो ज्ञानी थे उन्होंने प्रकृति के सत्य जानने हेतु प्राकृतिक घटनाओं का समय समय पर अध्ययन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जो कुछ भी समय के साथ बदल जाते है वे 'असत्य' हैं और जो नहीं बदलते केवल वे ही 'सत्य' हैं.
उदाहरण के तौर पर जैसे उन्होंने सूर्य का पूर्व दिशा में उदय होना और पश्चिम में अस्त होना दोनों को सत्य माना. किन्तु इसी प्रकार तारों में केवल ध्रुव तारे को उत्तर दिशा में अपने स्थान पर सदैव अडिग पाया और केवल उसे 'परम सत्य' मान मानव को भी हर हालत में अडिग रहने का उपदेश दिया. और इसी कारण ईश्वर का ध्यान करने हेतु उन्होंने मानव जाती को (हिन्दू को) उत्तर दिशा को सबसे श्रेष्ठ जान इस दिशा की ओर मुंह कर बैठने का सुझाव दिया, अन्यथा माया के कारण बदलते दृश्यों को ध्यान में रख 'आम आदमी' को पूर्व की ओर...और हर 'लकीर का फ़कीर' इसका अक्षरशः पालन तो करता है किन्तु शायद न जानता हो क्यूँ...
नीतीश ने विहार में विकास की यात्रा शुरू की है सहमत हूं लेकिन इसका मतलब कतई नही कि नीतीश राजनीति में जो करेगें सही ही करेगे । नीतीश के बारे में यह आकलन जरूर था कि वे मोदी को विहार जाने से रोके हुए थे और मीडिया के सामने नीतीश ने ही कहा था कि वे मोदी के साथ मंच साझा नही करेगे । लेकिन ऐसा क्या हुआ कि चुनाव समाप्त होते ही नीतीश को अपना राजधर्म याद आ गया बहस मात्र यही है । विकास केवल भगवा मंच से ही हो सकती है क्या यह सही है । विकास के पैमाने और रास्ते कई हो सकते है । फिर थोड़ा इंतजार को नीतीश को करना ही चाहिए उसके बाद तो जनता भूल जाती कि नितीश क्या कर रहे है ।
क्या कोई भी बुद्धिजीवी किसी भी व्यक्ति के मन पर किसी समय विभिन्न दिशाओं से क्या क्या दबाव पड़ रहा है जान सकता है? और उनके चलते वो क्या करेगा?
यह कुछ ऐसा ही है जैसे एक जादूगर आपकी ओर ताश की गड्डी बढा एक पत्ता खींच लेने को बोलता है और तब न्यूटन आदि आदि के फोर्मुले धरे रह जाते हैं - सब राम भरोसे ही होता है :)
नीतिश ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा, कांग्रेस तैयार।
इब्तिदा-ए-इश्क है, रोता है क्या-
आगे-आगे देखिए होता है क्या।
रवीश, नीतीश जी बिहार में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, काम कागज पर नहीं बल्कि जमीन पर हो रहा है। आम लोग विकास को महसूस कर रहे हैं, अपराध का ग्राफ गिरा है, गड्ढों को सड़क में तब्दील किया गया है, सरकार जवाबदेह हो गयी है, अब सामान्य लोगों का भी रेस्पॉंस लिया जाता है, विधि-व्यवस्था कायम हुयी है, सभी दल के लोग नीतीश कुमार की प्रशंसा कर रहे हैं, तो आप यह खटराग लेकर कहां शुरु हो गये । आप भी बहुत लोगों से हृदय मिलाते होंगे, बहुत से आपकी वैचारिक सहमति रहती होगी और कुछ से बिना वैचारिक सहमति के भी । वैसे नरेन्द्र मोदी तो स्वयं कुशल प्रशासक हैं, और नीतीश जी का वह बयान चुनाव प्रचार के संदर्भ में दिया गया था ।
रबीश जी,बात तो अच्छी छेडी है आपने। चलिए भाजपा को गरिया रहे हैं कोई बात नहीं,लेकिन कांग्रेस से ऐसी अदावत क्यों? दोनों पार्टियों ने आज तक मुसलमानों को मूर्ख बनाया है। हालांकि भाजपा ने तो कम ही। कांग्रेस तो हमेशा चिलमन के पीछे का छिपा खेल मुसलमान भाईयों के साथ खेलती रही। बाबरी मिस्जद का ताला खुलवाने का मामला हो या पिफर नरसिंहाराव के मरघट वाली चुप्पी का। क्या देश में कोई विवादास्पद धर्मिक ढांंचा केन्द्र सरकार के इशारे के बिना गिराया जा सकता था। एक ने नीचता की तो दूसरे ने हद दर्जे का कमीनापन दिखलाया। ख्ौर राजनीति में सबकुछ जायज है। सुनते हैं राजनेताओेंं के तो सौ खून तक मापफ होते हैं। तभी तो नरसंहार के आरोपी मुख्यमंत्राी सरेआम मंच से एक कौम को ध्मकाते पिफरते हैं। अब नीतिश ने तो एक नया तुरूप का पत्ता खोल दिया है। जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा हम उसके साथ हैं। चाहे वो मोदी हों या आडवाणी या पिफर सोनिया के विश्वस्त आज्ञाकारी सिपाहसलार मनमोहनी मुद्रा वाले हमारे प्रधन जी। विकास का कार्डZZZZZZZZZZ खेलते खेलते उब चूके थे नीतिश जी । सो अब बिहार का कार्ड खेलकर जी बहलाना चाहते हैं। अब मोदी कोई राजनीति में अछूत तो रहे नहीं। आडवाणी के बाद प्रधनी के दावेदार जो ठहरे। अब तो मिल जुलकर ही चलना होगा ना ,क्यों भाई नीतिश जी। अब मुसलमान भाई भले ही कुछ समय के लिए मुंह बिचकाएं लेकिन जाएंगे कहां। मंच तो साझा करना ही होगा मोदी के साथ। आखिर वे भी तो गुजरात में उद्योगपतियों के विकासपुरूष है।
कहते हैं कि ओशो रजनीश के पास एक बहुत बड़े ‘भविष्य-टैलर’ को लाया गया। रजनीश ने पूछा कि क्या तुमने अपना आज का भविष्य देख लिया है ? अच्छा मेरा भविष्य बताओ ! बताओ कि अगले पांच मिनट में मैं तुम्हारे गाल पर चांटा मारुंगा कि नहीं मारुंगा ? और मैं तुम्हे पहले ही बता दूं कि अगर तुम कहोगे कि मारुंगा तो मैं नहीं मारुंगा। कहोगे कि नहीं मारुंगा तो मारुंगा।
अब ‘भविष्य-वाचक’ कहे कि ई कहां फंसा दिए हमको !? दक्षिणा देओ और हमका जाने देओ। रजनीश कहे कि ‘दक्षिणा’ ! सुबह हाथ नहीं देखे थे क्या अपना ? नहीं मालूम कि दक्षिणा नहीं मिलने वाला है आज !?
अपना आज नहीं मालूम ! हमारा कल कैसे देखोगे, भाई !?
कृपया एक अत्यंत-आवश्यक समसामयिक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर
samvadoffbeat@yahoo.co.in
हालांकि ये उचित मंच नहीं है, लेकिन और कोई मंच नजर नहीं आया आप तक सीधे विरोध दर्ज कराने का। अभी सुबह 6 बजे से अलग-अलग चैनलों को सर्फ कर रहा हूं। सारे चैनल लाइव हैं, लेकिन एनडीटीवी इंडिया कल की रिकार्डिंग दिखा रहा है। चलिये कोई दिक्कत नहीं। लेकिन लगातार ये जो बैंड चल रहा है वोटों की गिनती कल- वो बेहद खलने वाला है। चैनल के टिकट और स्लग बैंड को देख-देख कर ये तो पहले से पता था कि वहां आलसी और अनुशासनहीन लोगों की भरमार है, लेकिन आज के दिन भी वही रवैया बरकरार रहेगा, ये सपने में भी नहीं सोचा था। जरा सोचिये, रविश जी। दर्शकों ने यूं ही नहीं ठुकरा दिया है एनडीटीवी इंडिया को। सिर्फ सांप-बिच्छू और तालिबान को दोष देकर नहीं बच सकते। एक गंभीर न्यूज चैनल का दावा करने वाले का इतना अगंभीर होना अपने पेशे और दर्शकों से बड़ी नाइंसाफी है।
मेरे मानवीय मित्रों,
क्या कहीं कुछ गलने की ‘सू’ आ रही है !
जय इंसानियत ! जय संवेदना ! जय शर्मो-हया ! जय तार्किकता ! जय वैज्ञानिकता !
मैंने अपनी इधर उधर पड़ी तस्वीरों की एक एल्बम बनाने कि सोची. मेरे मन में आई कि में पहले अपनी आजकी तस्वीर इसमें लगाऊं, और फिर क्रमशः घटती उमर के साथ मुझको दर्शाते अन्य चेहरे - अलग अलग स्थान और वेश-भूषा मे...अंत में मेरी जन्म के कुछ समय बाद कि फोटो जिसमें मैं शर्तिया कह नहीं सकता कि मैं हूँ या कोई और, क्यूंकि मेरा नाती भी आज वैसा ही दीखता है...
इसके बाद जब में एल्बम देखता हूँ तो मैं जानता हूँ कि हर फोटो के साथ कुछ इतिहास भी है, किन्तु अधिक समय बीत जाने के कारण मैं कई एक तस्वीरों मे अपने ही बारे मैं बताने मे खुद को असफल पाता हूँ...जबकि अपने तत्काल जीवन की बातें मैं विस्तार से दोहराने मे सक्षम हूँ...
मुझे लगा की इसी प्रकार मुझे कई फिल्म जो मैंने कभी बहुत पहले देखी उनके बारे मे कुछ भी याद नहीं जबकि मुझे याद है कि कैसे मैं कभी अपने दोस्तों को तब कई फिल्मों की कहानी scene by scene सुनाता था...
उपरोक्त को आप क्या मानेंगे? केवल तर्क अथवा मानव मस्तिष्क की कार्य विधि का सत्य, यानि साइंस?
क्या उपरोक्त कथन से आप प्राचीन ज्ञानियों द्वारा काल को सतयुग से कलियुग की दिशा मे जाने को मान्यता देने से कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं? जैसे व्यवस्था का अंधकार से घोर अंधकार की ओर जाते दिखाई देना - क्यूंकि हमें उलटी रील दिखाई जा रही हो सकती है, जिसमें सही दिशा मे वृक्षों का बढ़ना, उलटी दिशा मे, घटना दिखाई देगा...और हम जानते हैं की पृथ्वी आरंभ मे आग का गोला थी...बू उसी के कारण हो सकती है...
आप कह सकते हो कि सागर जल बढ़ रहा है तो आग का क्या भय...शायद आप भूल सकते हैं कि 'अग्नि' और 'जल' आदि पंचभूत माया (mirage) के कारण रेगिस्तान मे भी प्यासे यात्री की आँखों को धोखा देते आये है अनंत काल से...और ज्ञानी इस जगत को 'मिथ्या' भी कहते आये हैं...
भस्मासुर भी ऐसी सोच रख मारा गया - और कामदेव तक भी...
नाटक मे सब कुछ संभव है दिखा पाना - "लंगडे का पहाड़ पर चढना अथवा अंधे को सब साफ साफ दिखना"...
यह कमेंट इस पोस्ट पर नहीं है इसलिए पढ़ कर इसे डिलीट कर दें।
मैं आपका आलोचक या प्रशंसक नहीं हूं। बतौर पत्रकार कुछ सीखने के लिए आपका कार्यक्रम जरूर देखता हूं। मतगणना के दिन आपका एक कथन मुझे पसंद नहीं आया सोंचा अवगत करा दूं। हुआ यूं कि मतगणना के रुझान आने के वक्त पश्चिम बंगाल के नतीजों में भाजपा का वोट शेयर देख कर आपने टिप्पणी की, 'मुझे चिंता हो रही है कि भाजपा को 13 प्रतिशत मत मिले, जो सीपीएम को नुकसान पहुंचा रहा है।Ó संभव है आपको यह याद हो। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि बतौर मतदाता या बतौर नागरिक आपको भाजपा के बढ़ते वोट शेयर से चिंतित होने का पूरा अधिकार है। मैं भी चिंतित हुआ। लेकिन बतौर प्रस्तोता आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए था (ऐसा मुझे लगता है)। इससे आप उन मतदाताओं का अपमान कर रहे हैं जिन्होंने भाजपा को वहां वोट डाला। सबको अपनी पसंद चुनने का अधिकार है। उन्हें सही-गलत के बारे में बताना आपका उत्तरदायित्व भी है लेकिन शायद किसी और तरीके से। आप ये कहते कि भाजपा के बढ़े वोट शेयर से सीपीएम को चिंतित होने की जरूरत है तो उम्मीदत: अच्छा रहता।
आपाका ई-मेल आई डी मेरे पास नहीं है इसलिए यहीं लिखा। इसे इस पोस्ट के साथ मत लगाईएगा।
@bikram
मैं आप से बिलकुल सहमत हूँ. ये सख्स पत्रकारिता कम और अपना वैचारिक सोच लोगो के सामने रखते हैं. इसलिए अगर चैनलों पर हो रहे वार्तालाप को देखेंगे तो इनको सबसे कम समय दिया जाता है बोलने को जब बाकी लोग बैठे हों.
ये सख्स बिहारियों के बारे में भी एक दिन बोले थे की लगता है की बिहार की जनता को रेलगाडी (लालू) से ज्यादा बैलगाडी (नीतिश) पसंद हैं. बहुत चिंतित होकर बोल रहे थे और संवादाता जो नीतिश का तारीफ़ कर रहा था उसको चुप करा दिए.
इतना जातीयता इनमे व्याप्त है की ब्रह्मिण को नीतिश की पार्टी ने टिकट नहीं दिया इसलिए एक दम तिलमिलाएं हुएं हैं. जैसे बिहार के सारे ब्राह्मणों का नेता यही बन बैठे हुए हैं.
रविश जी थोडा ठण्ड रक्खें और निष्पक्ष होकर लिखें .बिहार पिछले जंगल राज से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है उसके रास्ते में रोडे न अटकाएं.
माना की जंगल राजा आपके पहली पसंद हैं और नीतिश के काम आपको अच्छे नहीं लगते ,पर याद रखें राजनीति में कुछ भी हो जाता है आपके पसंद के नेता ने भी कभी नीतिश से हाथ मिलाने की कोशिश की थी .
माना मोदी अछूत बना दिए गए हों पर उन्हें कोई infectious बीमारी नहीं है
और तो और --"........." हाथ मिलाने भर से नहीं फैलता ! नरेन्द्र मोदी से तो रतन टाटा ने भी हाथ मिलाया था वो तो आपके लिए गंदे नहीं हुए .
हाँ यदि नीतिश बिहार में धर्मनिरपेक्ष आचरण बरक़रार नहीं रख पाते तो उस स्थिति में आप उनकी टांग जरूर खीचें मै भी साथ हो लूँगा .
कृपया आप अपने पूर्वाग्रहों से जल्द से जल्द बाहर आयें ,कुछ दिन पहले भी आपने मायावती के दलित होने को उनकी योग्यता के तौर पर पेश किया था.
शुभकामनाएं .
Dear Ravish ji,
Kai dino se padh raha hu aapka blog aur dekhta raha hu aapko aur NDTv ke dusre news readers ko.Aap ache patrakar hai isme mujhe koi shaq nahi hai kai lekh aapke man ko chu jate hai lekin kuch lekh man ko yeh sochne pe majboor kar dete hai ki kahi aap kisi kunthe se to grast nahi hai. Ye dharam nirpekhchata ka dhol aap sab kab tak bajate rahenge. Agar hindu hit ki koi bat kar raha hai to aapko pida kyu hoti hai.Aapka dono tarah ki baten karna bhi yesa lagta hai jaise chit mai jita pat tu hara yani dono gal khud hi bajate ho. Kuch din pahle NDTV par taliban se jude vedio dusre chanel walo ki dikhane ki aalochna ki ab ndtv dwarakhud hi ndtv wale taliban par program dikha rahe hai. Anyways khuch janna chata hu ummid hai ki sahi jabab milega, Shabdo ke jaal me uljhaya nahi jayga.
1. Hindu hit ki baat karna saampradaykta kyo ?
2. Muslim hit ki baat karna Dharam nirpekhchta Kyo ?
3. Narendra Modi Se hat Milana galat kyo.
4. Maulana Nasir Ali Madni se Hath milana Thik Kyo. ?
5. Kashmir ko vishesh rajya ka darja Kyo ?
6. Desh me dange Aligarh, Meerut, Moradabad, Ahemdabad, Hydrabad, Rampur jaise muslim Bahulya chetro me hi jyada kyo ?
7.NDA ke sath kisi party kahona galat aur usse nata tod lena sahi Kyo?
8.Ram Mandir ki baat karna galat aur Babri Maszid ki bat karna thik kyo.
9. Kya Ram Ji ki tulna Babar se karna thik hai ?
10. Farookh Abdulla Nda ke sath the to thik, Nitish Nda ke sath to galat kyo.?
कलियुग में आप एक दूसरे से उलझे रहे, और आनंद लें - फिर भी मेरा भारत महान!
इसे महान बनाने में हमारे पूर्वजों का हाथ है, जिन्होंने हमें जताया कि हर मानव बराबर है क्यूंकि सबके भीतर एक ही परमात्मा का अंश विराजमान है, जैसे हर सफ़ेद रसगुल्ले के अंदर भरा हरा पिस्ता (हर महादेव या हरी विष्णु - गौ माता के दूध जैसे सफ़ेद शेषनाग अथवा अनंतनाग रूपी पलंग पर विष्णु :) और आज भी हमारे तारा मंडल को वैज्ञानिक 'Milky-Way Galaxy' कहते हैं...जिसे 'हिन्दू' ने सुदर्शन चक्र सामान पाया जिसके केंद्र में उन्हें श्री कृष्ण की तर्जनी ऊँगली दिखाई दी...इशारा न समझ पाए कोई तो दोष किसका?
मतलब तो हर स्तिथि में आनंद लेने से है :)
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