किनकी पहचान हैं लक्ष्मीबाई


पहचान के सवाल में कई चीज़े जुड़ती रहती हैं । मैं झांसी में हूं । यहां के बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में नकल हो रही थी । छात्रों ने हथगोले फेंक दिए । प्रिंसिपल को घेर लिया । अगले दिन सोनिया गांधी की रैली । लाउडस्पीकर चिल्ला रहा था ये वीरांगना लक्ष्मी बाई की धरती है । जिसने अंग्रेजों को भगा दिया । झांसी की शान और बान हैं लक्ष्मी बाई । मैंने नकल करने की उम्र वाले नौजवानों से पूछा कि लक्ष्मी बाई कैसे पहचान हो सकती हैं । यहां एक से एक गुंडे चुनाव लड़ रहे हैं । उन्हें हज़ारों लोग वोट देते हैं । गैरकानूनी रूप से उत्खनन चलता है । कोई नियम का पालन नहीं करता । हर नेता अपने भाषण में १८५७ की कसम खाता है । झांसी की रानी पहचान का हिस्सा बनी हुई हैं ।

सवाल है कि यह पहचान किस लिए है ? क्या सिर्फ बाहर से आए लोगों को बताने के लिए ? कि हम बड़ी महान हस्ती की धरती के सपूत हैं या सुपुत्री हैं । और अंदर ही अंदर झांसी की रानी की लड़ाई को मिल कर बेच रहे हैं । लक्ष्मी बाई मुझे बहुत कमज़ोर नज़र आई । मूर्तियों में बंद बेबस । हमें इसका सामाजिक विश्लेषण करना चाहिए कि चोर बदमाश भी कहते हैं कि हम झांसी की संतान हैं । क्या इसी लिए किसी ने अपनी जान दी । हिंदुस्तान की जनता बहुत भ्रष्ट है । वो दूसरे के बलिदानों का भुगतान अपने नाम करा लेती है । झांसी में लक्ष्मीबाई के नाम पर जितनी लूट मची है ये अगर रानी को मालूम होता तो वह अंग्रेजों को झांसी देकर किसी जंगल में चली गईं होती । नहीं गईं । किसी को फर्क नहीं पड़ता । झांसी में कहीं भी जाइये बेकार लोग गुनगान करते मिल जाएंगे ये फलां दबंग का मकान है । इसने यहां कब्जा किया है । वहां डाका डाला है । ठेकेदारों दलालों के भेष में अंग्रेज आ गए हैं । और लक्ष्मीबाई मूर्तियों में बंद नेताओं का स्वागत कर रहीं हैं । वीरांगना की धरती पर । मुझे झांसी से कोई सहानुभूति नहीं है । यहां भी चोरी भ्रष्टाचार वैसा ही है जैसा हर जगह । झांसी की रानी झांसी की पहचान नहीं है । काली कमाई का आइडेंटीटी कार्ड है । इस शहर को विसर्जित कर दिया जाना चाहिए । किसी कूड़ेदान में । कम से कम लक्ष्मीबाई की मूर्तियां सिसकेंगी तो नहीं ।

9 comments:

azdak said...

ये विसर्जित करनेवाली बात पर आप बार-बार लौट रहे हैं.. क्‍या-क्‍या और कहां-कहां विसर्जित करेंगे, साथी..? और इस बड़े विसर्जन अभियान के बाद फिर बचेगा क्‍या?.. पूरे देश में कहीं कोई एक राममोहन राय, विवेकानन्‍द, मोहनदास तक उंगलियों पर गिनने लायक न मिलेगा.. खामखा झांसी के किले पर चढ़कर वहां से कूद जाने की भावुकता आपको पीडित करने लगेगी.. एनडीटीवी आपको झांसी से हटाकर महिला आंतरप्रिनियरशिप पर स्‍टोरी करने मलाबार हिल्‍स की पार्टी में भेज देगा.. सर्वेश्‍वर हो जाईये, रवीश, और झांसी से ब्‍लॉग पर पोस्‍ट चढ़ाते वक्‍़त अपनी छोटी-छोटी कुआनो नदी खोदते चलिये। झांसी में चम्‍पा के मुरझाये फूल आपने लिख ही दिया है। पढ़ते हुए हम कविता समझकर ही पढ़ रहे थे।

ravishndtv said...

pramod ji

visarjit kya kare. par samajh mein nahi aataa ki kya karen. hum reporting kiske liye kar rahe hain. theek hi kah rahe hain ki chhorh dete hain. vaise main kuchh hone ke liye kabhi kaam nahi karta..magar jo ho raha us par gussa aata hai.

SHASHI SINGH said...

रवीश भाई, आपको या हमारे देश में से किसी एक तो बदलना ही पड़ेगा... काश हमारा देश बदल जाये। उम्मीद का दामन मत छोड़ मेरे भाई, संसार में कुछ भी स्थायी नहीं... रानी नहीं रही ये गुंडे-बदमाश भी रहेंगे। -शशि सिंह

Rajesh Roshan said...

Mann aahat ho jata hai. lekin main ek baat samajhta hu ki is duniya mein buraiya kai hain lekin achhaiya bhi kam nahi hain. Hum logo ko achhaiyo ke baare mein likhna chahiye. Padh kar dusre ka mann dukhi to nahi hoga.

Unknown said...

झांसी भी देश भर में फैले किसी दूसरे शहर जैसा ही है। ज़ाहिर है बुराइयां कमोबेश वैसी ही होंगी। चूंकि हम लोगों ने अपने ज़ेहन में झांसी और आगरा की वही तस्वीर उकेर रखी हैं जो लक्ष्मीबाई या शाहजहां के ज़माने की थी। इसलिए हमें दुख होता है। हमें उम्मीद होती है कि इनकी विरासत को लोगों ने संभाल कर रखा होगा। लेकिन बढ़ती गरीबी और बेरोज़गारी में कैसे बचा कर रखे विरासत। बात बची महान लोगों के व्यक्तित्व को भुनाने की तो जब कुछ बचा ही नहीं तो इतिहास पर ही खेल जाओ। कर लो छाती चौड़ी।
और मेरी राय में बदलाव होता रहा है और आगे भी होगा। आप बस ऐसे ही आईना देखते और दिखाते जाएं।

richa anirudh said...

ravish, jhansi ki hun isliye blog padha.dukh hua. burai ko visarjit kijiye, shahar ko nahi.90 fisdi log shayad shahar ko sharmsar kar rahe honge par hum jaise 10 fisdi bhi hain jo apne shahar se pyar karte hain aur us par fakhr bhi. kya ap jhansi ke kile par gae? uski badhali ke liye zimmedar logon ko zarur visarjit kar dia jana chahiye.ab apne hi shahar wapas jane par dil baith sa jata hai...na wo bachpan wali hawa hai, na waisi sadken, na waise shanti..kuch bhi waisa nahi raha..

सायमा रहमान said...

Ek sawal Laxmibai desh ke liye ladin ya Jhansi ke liye?Desh ke liye kaun kaun nahin lada?

Tip-boy said...

desh ka meaning kya hota hai..i think desh ke log..badi mohabbat thi muje bhi jab main chota tha ki bhaarat ek mahaan desha hai..but in short..humaari aadat ho chuki hai dusro pe ungli utha kar apni galtiyaan chupaane ki...
maine dekha hai ek ache kaam ke liye awaaz do tao akele hi aage badhna padega..aur agar koi bus jalaani ho to bheed haazir hai...america ko uk ko unke culture ko khte hain...jo unka culture hai we knw...wo rules to follow karte hain...hum ne keval unke culture ki galat baaton ko apanaaya aur saari achi baate chor di..apne desh main ek bhi neta aisa nhi milta jo keval vikaas ki baat kare..aur janta bhi aisi ho chuki hai jise jaati ke naam per hi vote dena acha lagta hai.

Tip-boy said...

hum us mahaan desh me rahte hai jahaan pe shayad politics main aane se phle padna jaruri nahi ahi...agar aap bade apraadhi hai to aap ke success paane ke chances bhut ache hain...bada bura laga tha jab UP election maine mere paas koi option hi nahi tha ki vote kise karu..sab juthe hai..aur saare hi apraadhi hai..aur jimmedaar neta nahi humyani janta hai...kyoki ye neta ye police aur ye corrupt log sab janta ke beech se hi ahi..aur hum hi inko jita ke pahunchaate hain...
Abu Salem ek don hai...aur ajamgarh ke log uske election main ladne ka wait kar rhe the..kam se kam desh ke court jinda hai jo bhaarat bacha hua hai..verna whaan ki janta unko jita ke mahaan netaao ki fhrist main khada kar deti..aur hum sab dhanya ho jaate..
sach kahu ab to is desh se mohabbat hi nahi rahi..
desh ke liye baat karo to mazaak ban jaata hai...
mera bhaarat mahaan
sach main mahaan
jab tak hum yaani janta khud ko nahi badlegi desh nhai badal skata...baaki umeed pe hum bhi hain aur duniya bhi