कविता

तुम जो छुरी चलाते हो। हमारी पीठ झुक जाती है।
हम जो उफ करते हैं । तुम्हारी छुरी पार हो जाती है।
रिश्तों का शायर है वो। रिश्ते तो कायर हैं।
मुनव्वर से पूछो । पीठ पर कोई रिश्ता रहता है ?
अक्सर भरोसे वाला ही क्यों भोंकता रहता है
रवीश कुमार

1 comment:

Unknown said...

sahi baat kahi aapne ..ke "bharose wala hi hamesha bhokta rehta hai"