बिहार का चुनाव इस बार कई मामलों में प्रस्थान बिंदु है। पिछले बीस सालों से राजनीति में बनी बनाई सोच को झकझोरने वाले नतीजे आ रहे हैं। राजनीति जब ऊपर से नहीं बदलती है तो नीचे से जनता बदल देती है। इस बार के नतीजे साबित करेंगे कि राजनीति में सामाजिक समीकरण कालजयी नहीं होता है। लालू यादव खुद को मुस्लिम यादव गठबंधन से आगे नहीं ले जा सके और उनके सहयोगी राम विलास पासवान दलित राजनीति को कोई मायने नहीं दे सके। इस समीकरण में नया कुछ भी नहीं जुड़ा,बल्कि कम होता रहा। इनदोनों का गठबंधन जनता के बीच दरक गया है। वहीं कांग्रेस लालू पासवान की डुप्लिकेट समीकरण बनाने में लगी रही। मगर नीतीश कुमार की सबसे बड़ी कामयाबी यह मानी जाएगी कि उन्होंने अपने जनाधार को नया और वृहद बनाया है।
पांच साल पहले जब नीतीश को सत्ता मिली थी तब उनका जातिगत-सामाजिक आधार सीमित था मगर जनाकांक्षा असीमित थी। नीतीश कुमार लालू विरोधी खुमारी में डूबे नहीं रहे। बल्कि अति पिछड़ा और महादलित का नारा देकर राजनीति में पिछड़ावाद को पुनर्परिभाषित तो किया ही, इसे प्रासंगिक भी बना दिया। यूपीए की दो बार की सफलता से लगा कि राजनीति दो ध्रुवीय हो रही है। मगर कांग्रेस की गुटबाज़ी और दिशाहीनता कोई सामाजिक आधार नहीं बना सकी। कांग्रेसी बेकार में राहुल गांधी को दौड़ाते रहे। वहीं नीतीश सामाजिक आधार के वि्स्तार में लगे रहे। पिछड़ा का मतलब यादव या कुर्मी ही नहीं होता। यह एक ऐसा पिछड़ावाद है जिसे सभी सवर्णों और मुसलमानों का भी समर्थन हासिल है। ठीक वैसे जैसे उत्तर प्रदेश में मायावती ने उपेक्षित ब्राह्मणों और मुसलमानों को दलितों के साथ जोड़ कर संपूर्ण बहुमत पा लिया था, नीतीश के भी नतीजे वैसे ही आएंगे। नीतीश ने पिछड़ावाद को प्रगतिशील और विकासोन्मुख बना दिया है।
एक बड़ा सवाल विकास बनाम जाति का पूछा जा रहा है। पूछने वाले वही लोग हैं जो सामाजिक और सियासी हकीकत को अलग-अलग करके देखते हैं। किसी भी राजनीति के लिए सामाजिक आधार ज़रूरी है। सामाजिक आधार जिन ईंटों से बनता है उनमें से एक ईंट जाति भी है। जनादेश से जाति खत्म नहीं होती है। जाति को खत्म करने के लिए सामाजिक आंदोलन की ज़रूरत है। यूपी में सवर्णों और दलितों के साथ आने से दलितों के प्रति अत्याचार कम नहीं हुए हैं। बिहार के नतीजे बतायेंगे कि सभी जातियों ने मिलकर विकास की राजनीति का समर्थन किया है। अब नीतीश पर निर्भर करेगा कि वे सामाजिक अंतर्विरोध को अपने राजनीतिक फैसले से कितना कम करते हैं। नहीं करेंगे तो मायावती की तरह कमज़ोर होने लगेंगे।
आंकड़ों के आधार पर कहें तो नीतीश कुमार ने कोई अप्रत्याशित विकास नहीं किया है। नीतीश कुमार का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने सांख्यिकीय विकास की जगह मनोवैज्ञानिक विकास का माहौल बनाया। नीतीश जानते हैं। इसलिए अपनी रैलियों में कहते रहे कि अभी बुनियाद रखी गई है,इमारत का निर्माण बाकी है। नीतीश कुमार भाग्यशाली है कि इमारत बनाने में उन्हें हर तबके का हाथ मिल रहा है। उन्होंने एक जनाकांक्षा पैदा कर दी है। वे इतिहास और भविष्य दोनों की दहलीज़ पर खड़े हैं,उन्हें तय करना है कि वो अपने लिए इतिहास में कैसी जगह चाहते हैं और बिहार को कैसा भविष्य देना चाहते हैं। नतीजे के बाद लालू प्रसाद उस मास्टर की तरह क्लास रूम में खड़े नज़र आएंगे जो ज्ञानी तो है मगर उसे नहीं मालूम कि सिलेबस बदल गया है।
27 comments:
चुनाव में मनोवैज्ञानिक विकास ही अपना डंका बजाता है।
bahut gahan adhyayan dekhiye oont kis karvat baithata hai?
पिछड़े शब्द को लेकर हर बार नेतागण नया शगूफा गढ़ते हैं ...... और बटोर लेते हैं वोट ...
सिलेबस तो बहुत जगह बदल गया है, रवीश जी!
कुछ ज्ञान-वचन अगर "नीरा-राडिया कांड" पर भी पड़ने को मिले तो समझेंगे कि पत्रकारिता के सिलेबस में भी परिवर्तन हुआ है। वरना क्या फर्क पडता है लालू हो या नीतीश। कमाने खाने के लिये तो चल रही हैं सब दुकानें, हमारी, आप की, सब की!
रवीश सर,
मैं आपके बारे में ज्यादा और ज्यादा जानना चाहता हूँ..आपके लिखने का तरीका, आपका प्रस्तुतीकरण सब के सब लाजवाब हैं सर...अभी आपने मजनू का टीला में NDTV में जो आखिरी में कहा कि "मुझे बोला गया कि चिप्स बाँट दो, बच्चों को ख़ुशी मिलेगी, लेकिन हुआ उलटा ही "...इस तरह का क्लोसिंग सेंटेंस आप जैसा गुणी पत्रकार ही सोच सकता है...दूसरा आप "मिटटी के बहुत करीब" होके रिपोर्टिंग करते हैं और वैसे ही प्रस्तुत करते हैं ..Sir, I will feel lucky if you revert me...
Thank You Sir for keeping the flag of journalism high...
To aapse bhi raha nahi gaya, time per patna pahuch hi gaye.Padh kar aisa laga k aapne hawa k rukh ko parakhne ki achhi koshish ki hai. Ab dekhte hain subah kya hota hai.
खुशी है कि बिहार में नितीश जी फिर आ रहे हैं , लालू को पटखनी देकर बिहारियों ने समझ का परिचय दिया है ! साथ ही राहुल को भी विदाई दे है - राहुल की हो गयी विदाई - अब उनको कर लेनी चाहिए अपनी सगाई !
आपका ब्लॉग बढ़िया लगा !
क्या ये 'मनोवैज्ञानिक विकास' या फिर चेतना एक नयी शुरुवात नहीं कही जा सकती... का कार्यबल बढाने से पहले ... मानसिक रूप से स्वयं के तैयार नहीं किया जाता है.....
अगर बिहारी जनता स्वयं को मानसिक रूप से तैयार पाती है तो ये एक उधारहण होगा बाकि देश के लिए.
how prophetic!
behtreen, har bar ki tarah........
सयाने लोग ..बढ़ते वक़्त के साथ साथ धर्म , जाति सब धुन्दले हो जाते हैं ..जब कोई अगवाह होता है , या दंगे लूट सरेआम होते हैं .तब कभी दिमाग पे चढ़ के बोलने वाली ये जात, कुनबा ..सब फीके पड़े जाते हैं.
बिहार के परिणाम से काफी खुश हूँ , ऐसा लग रहा है मानो मैं अच्छे नंबर से पास हो गयी हूँ .चलो इन घोटालों , शोरबाज़ी से हट कर कुछ तो सामने आया जो दिल को हल्का कर रहा है . जब देश गिरता है , उम्मीद से अखबार उठाने वालों को दर्द होता है , पर जब ऐसा कुछ बढ़िया सामने आता है . . . फिर वो फीकी फीकी किरण तेज चमकने लगती है .
कांग्रेस जब पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई थी, तो हम लोगों ने चैन की सांस ली थी, शायद अब विकास त्वरित गति से हो| लेकिन एक के बाद एक जिस तरह से घोटाले हुए हैं, उससे उम्मीदों का सूत्र टूटता नजर आया है| आज नितीश कुमार बिहार को मनोवैज्ञानिक ही सही पर कहीं से तो विकास की उम्मीद जगाते हैं| बस भगवान से यही प्रार्थना है कि ये जनाधार उन्हें निरंकुश न बना दे, और उन्हें भी न लगने लगे कि उनका तो कुछ हो ही नहीं सकता अगर वो थोडा इधर उधर भी करें तो| देश तो शायद एक आध घोटाले अभी और झेलने की हिम्मत रखता है, लेकिन बिहार की गरीब जनता नहीं...
हिंसा और जातिवाद पर मतदाता विजयी.
Ravish ji aapka blog bahut accha laga padhkar..jis tarah se aap result wale din mukhyamantri aawas,patna se reporting kar rahe the..sunkar laga ki Bihar main phir se ek nayi subah ka aagman hua hai..
Bas Nitish kumar aapne lakshaya ko nahin bhulen yahai apakesha hai..
रवीश जी, मैं बिहार के उस इलाके से हूँ जहाँ मैंने चुनावों के समय जातिगत समीकरण (कुर्मी, यादव) और विकास के बीच के द्वन्द को महसूस किया है. नालंदा जिले का वो इलाका जहाँ के लोग सजातीय नितीश कुमार से इसलिए नाराज़ चल रहे थे कि उन्होंने स्वजातियों के लिए कम काम किया(या यूँ कहें कि कोई अप्रत्याशित लाभ नहीं दिला रहे)... उन्होंने भी विकास की उम्मीद में इन बातों को भूल कर एक आदमी (नितीश कुमार) को वोट दिया.
मैं यही उम्मीद करूँगा की अपनी दूसरी पारी में बिहार में विकास की लहर का दूसरा दौर लेकर आयें. आधारभूत सुविधाओं का अभी भी आभाव है और ऊर्जा(बिजली) एक बड़ी रुकावट है. शायद इस बार नितीश जी इन समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दें.
उम्मीद है विकास की ये जीत धीरे धीरे पुरे देश में फैले... और एक दिन देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिले जो इस देश की विकास यात्रा को एक नए पथ पर ले जाए...
आमीन....
मुझे उम्मीद थी कि मेरा बिहार बदलेगा...और आज ख़ुशी है कि वो बदल रहा है....
Sir Syllabus hi nahin badla chhatra Laloo ji ke school se naam katwa kar Nitish ji ki pathshala mein dhadadhad admission le rahe hain.
रविश जी, नीतीश कुमार जी अब सत्ता पा गए है. अच्छा हो की वो इसे सम्हाल कर रख सके और बिहारी छवि को गर्व का विषय बना सके...... वरना जनता को पलटी मारते देर नहीं लगती. कल्याण सिंह मुलायम यादव और लालू यादव इसके शिकार है.
बिहार में हालत यह हो गई है कि विपक्ष ही नहीं रहा। सारी सीटें नीतीश-मोदी ने हथिया ली। लालू प्रसाद जैसे करिश्माई नेता को यह उम्मीद तो कतई नहीं थी, या कहें कि किसी को यह उम्मीद नहीं थी।
नीतीश कुमार ने जनता से सिर्फ एक बात कही थी कि ५ साल से जो सेवा की है, उसकी मजदूरी दे दो। बिहार में ज्यादातर मजदूर ही हैं... खासकर वे लोग, जो वोट देते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने नीतीश को उनकी मजदूरी देकर खुश कर दिया। कारोबारी जगत भी खुश है। बिहार के चुनाव को एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। जिस बिहार को कहा जाता था कि यह नहीं सुधर सकता, जाति-पाति से ऊपर नहीं उठ सकता, उसने कम से कम मजदूरी देने में तो पूरी दरियादिली दिखाई और सही कहें तो बिहार में नीतीश सरकार ने जितना काम किया था, उससे कहीं ज्यादा उन्हें मजदूरी मिली।
देश में अभी तक जाति की ही राजनीति चली है। कांग्रेस सरकार शुरू से कथित ऊंची जाति, दलित और मुसलमान के जातीय समीकरण से सत्ता में बनी रही। उसके बाद लालू प्रसाद के समय में वह वर्ग उभरकर सामने आया, जो कांग्रेस सरकार में सत्ता सुख से वंचित था और ऐसा हर राज्य में कमोबेश हुआ। कांग्रेस-भाजपा अभी भी उस वर्ग को अछूत मानती है, जिसका वोट लेकर मुलायम-लालू जैसे नेता सरकार में आए।
अभी भी उदाहरण सामने है। महाराष्ट्र में चव्हाण के बदले चव्हाण खोजा गया। कर्नाटक में भाजपा लिंगायत के बदले लिंगायत खोज रही थी, लेकिन येदियुरप्पा ने इस्तीफा ही नहीं दिया। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने रेड्डी के बदले रेड्डी खोज निकाला। ऐसे माहौल में अगर नीतीश कुमार २४३ में से २०६ सीटें जीतकर सत्ता में आते हैं तो निश्चित रूप से बिहार ने देश को एक नई दिशा दी है। यह प्रचंड बहुमत किसी जाति समूह के मत से नहीं मिल सकता, सबका मत नीतीश सरकार को मिला। वह भी मजदूरी के बदले।
मजदूरों से भरे बिहार ने नीतीश का दर्द समझा है कि अगर कोई मेहनत से काम करता है तो उसे मजदूरी दिल खोल कर दी जानी चाहिए। ऐसे में कारोबारियों को भी एक सीख मिली है कि अगर कोई मेहनत से काम करता है तो उसका हक जरूर मिलना चाहिए। देश के हर औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों में असंतोष है। नोएडा और गाजियाबाद में प्रबंधन से जुड़े लोगों की हत्या इसका उदाहरण है। तो ऐसी स्थिति में बिहार का मतदाता क्या संकेत दे रहा है.... क्या हर तिकड़म लगाकर, टैक्स की चोरी कर, सरकार में अपने प्यादे रखवाकर, बैलेंस सीट में गड़बड़ियां कर, सरकार से मिली भगत कर देश की संपत्ति को निजी संपत्ति बनाने में जुटे कारोबारी- एक तिमाही में तीन हजार करोड़ रुपये मुनाफा कमाने वाले कारोबारी जनता के इस संदेश को समझ पाएंगे? क्या वे बिहार के मजदूरी मॉडल को स्वीकार कर पाएंगे?
Sabse bari baat rahi ki Karpoori thakur ke bete se le ker Ajit Sarkar ke putra tak, chunav haar gaye. Banki Bhai, sale, chacha, bhatija ki bhi aise hi dasha rahi. Bihar elections shayad naya trend bana de. Andhra ke naye reddy ho ya Maharahstra ke naye chavhan, sabhi apni family legacy liye 2nd generation ke neta hain. Per Bihar mein shayad 5% MLA hi kisi parivar ki doosri peedhi se hain. Caste aur class ke is samnayway per abhi tak jyada charcha nahi hui hai shayad.
is post pew bad me comment likhunga abhi kisi purane lekh se sandharbh lagakar pad lijiyega...
बदले समय में तो सब का धंधा बदला है,,मीडिया में जब विग्यापन बाजों का आगमन हुआ तो लम्बे झोला और कुर्तो वाले आदर्शवादी पत्रकार सीना पीट कर मर गये,,,दस बीस विगड़ैल किस्म के दर्शकों का साथ लेकर आप उनका हक मार गये,,तब आप जैसे लोगों को तरस नहीं आयी। सोचा हम तो अमर हो गये,,लेकिन आज वही दर्शक जब होशियार हो गया, पढ़ लिख गया तो आप लोगों को रोना आ रहा है,वो भी दर्सकों की उदासीनता की आड़ लेकर। और उसके बाद भी किया क्या,,अन्दर कोई भी मसाला भर दिया और सोचा समोसे के नाम पर सब बिक जायेगा,,और जब नहीं बिका तो आप लोग कहने लगे कि दर्शक उदासीन हैं,,,आप तो गांव के आदमी हैं। गांव में एक कहावत है कि ,,,जेके बंदरिया ओही से नाचै,,,। लेकिन मीडिया ने हर बंदरिया को नचाने का कॉनट्रैक्ट ले लिया। देश की समस्याओं का हल ढ़ूढ़ने वाले प्रणव राय राखी सावंत के लिये दूल्हा ढ़ढ़ने लेगे,,,चेतनाशील विनोद दुआ सिबाका गीतमाला की तरह मनपसंद गीत सुनाने लगे,,इंडिया को फिट रखने के लिये,,,टीवी स्क्रीन को जिमखाना बना दिया,,और दोपहर तक सोने वाली लड़कियों को योगासन कराने का जिम्मा दे दिया,,कहां है खबरों की खबर,,जिसने जो किया उसे खुश करने के लिये वही दिखा दिया,,क्या करना चाहिये ये कौन बतायेगा?,,खाप पंचायतों को पानी पीकर गरियाने वाले पत्रकार ये क्यों नहीं बताते कि खाप पंचायतों ने दहेज रोकने के लिये कितना काम किया है,,पत्रकार निरुपमा पाठक हत्या मामले में उसके मां,बाप, भाई को मुजरिम घोषित करने वाले पत्रकारों को ये बोलने कि हिम्मत क्यों नहीं होती,,कि कुवांरी बेटियां गर्भवती होकर मां के सामने न जायें,,खबर सबसे पहले के चक्कर में ये उसूल कहां लुप्त हो गये,,,वाह रवीश जी जैसा देश वैसा भेष,,।शुक्र है उदारीकरण का नहीं तो विदर्भ के किसानों से ज्यादा पत्रकार भूख के कारण आत्म हत्या करते,,पता नहीं आप सही में भावुक हैं,,या इमोशनली ब्लैकमेल कर रहे हैं।
Satyendra ji ne kya khoob likha hai. bahoot khoob.
बहुत उपयोगी विश्लेषण। अब नतीज़े आ चुके हैं जिनसे आपके निष्कर्ष की पुष्टि हुई है। थोथे वायदों से निराश,हताश जनता के बीच आकांक्षा पैदा करना भी कोई कम बड़ी चुनौती नहीं थी। जनता ने इन आकांक्षाओं को मतों में तब्दील हो जाने दिया,यह एक और अच्छी बात हुई। अब गेंद नीतीश के पाले में है। इस अवसर का वे जैसा उपयोग करेंगे,वैसा ही स्थान इतिहास उनके लिए निर्धारित करेगा।
नीतीश जी का कहना है कि इस बार विकास की जीत हुई है।इसका वास्तविक अन्दाजा इन पाँच वर्षोँ की कार्याविधि के उपरान्त ही लगाया जा सकता है।
http://shabdshringaar.blogspot.com
nitish ka pichhada wad nahi,nitish ka naya vikash wad kahiye.
I expect from Nitishji to come upto the expectations of the Bihar. He is the sailor of the boat carring the dreams of Bihar. My best wishes to him.
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