माला महाठगनी हम जानी...सब नेतवन को धारत है,तौलत है

इक्कीस लाख की माला पहन ली है मायावती ने। जब मायावती यह माला पहन रही होंगी तब तमाम राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को अफसोस ज़रूर भी हुआ होगा कि वे अपने नेताओं को अठन्नी चवन्नी से तौलते रह गए,यहां तो बीएसपी वालों ने हज़ार के नोटों की माला ही बना दी। हंगामा होना लाज़िमी था। ख़बर चली कि बीएसपी ने इंकार किया है और कहा है कि ये असली फूलों की माला नहीं हैं। मैसूर में बनी है। लेकिन जब न्यूज़ रूम में तस्वीर को ज़ूम इन किया गया तो पांच सौ और हज़ार के नोट झलकने लगे। थोड़ी देर के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने कह दिया कि लखनऊ के कार्यकर्ताओं ने यह माला दिया है।


हरियाणा में जब ओम प्रकाश चौटाला की सरकार थी, तब सभाओं में चौटाला को लाख दो लाख रूपये तक की नोटों की माला पहनाई जाती थी। न्यूज़ चैनलों पर खूब स्टोरी चलती थी। रक्त से लेकर लड्डू और सिक्के तक से नेताओं को तौलने की परंपरा बहुत पुरानी है। हमारे देश की राजनीतिक संस्कृति का यह भ्रष्ट रूप कैसे शुरू हुआ पता नहीं। लेकिन जब नेता संघर्ष के प्रतीक माने जाते थे तब कार्यकर्ता और उनसे इत्तफाक रखने वाले लोग उनके वजन के बराबर चंदा जमा करते थे। धीरे धीरे यह चमचागीरी और महत्वकायम करने का प्रायोजित कार्यक्रम में बदल गया। जिसका एक रूप आपने लखनऊ की रैली में देखा।

हम किस तरह की राजनीतिक संस्कृति चाहते हैं यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। सारे दलों की रैलियों का कमोबेश वही स्वरूप होता है जो बीएसपी का था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं बीएसपी की रैली की भव्यता के पीछे इस्तमाल सरकारी अमले और पैसे को न्यायोचित ठहरा रहा हूं। बिल्कुल नहीं। बीएसपी एक राजनीतिक पार्टी से ज़्यादा दलितों के सम्मान के लिए आंदोलन हुआ करती थी। अब कितनी है मैं नहीं जानता। मगर पचीस साल के सफर में पार्टी यहां तक आ गई है। जश्न का माहौल है। लोगों ने जश्न मना लिया। लेकिन ऐसा जश्न तो तब भी मनाया जब बीएसपी दस साल की थी। पंद्रह साल की थी। हर राजनीतिक रैली किसी न किसी किस्म के भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बुलाई जाती है। आंदोलन अब नाटकीय लगते हैं। पहले आंदोलन जनता बनाती थी अब तो जनता के बीच जाने से पहले ही प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया जाता है कि हम आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं।

१२ अप्रैल २००४ को ट्रिब्यून की एक ख़बर है। गूगल जगत से निकाली है। अंबाला से बीजेपी के पूर्व सांसद रतन लाल कटारिया कहते हैं कि नेताओं को सिक्कों से तौलना राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन गया है। कार्यकर्ता कहते हैं कि इससे नेता का सम्मान भी हो जाता है और चुनाव का खर्चा भी निकल आता है। इसी तरह आप नेट पर सर्च करेंगे तो ऐसे कई किस्से सामने आ जायेंगे। मैंने ही कवर किया था सोनिया गांधी का जन्मदिन। एक योग्य समर्थक(चमचा एक निष्प्रभावी शब्द और तेजहीन है)ने साठ किलो ग्राम का केक बनवाया था। बड़ी सी गाड़ी में केक लाद कर लाया गया और कटा। लूट पाट के सब खा गए। जन्मदिन मन गया।

मायावती की पार्टी के जश्न को समझना चाहिए। राजनीतिक संस्कृतियों का हिस्सा रहा है रैली में नाच-गाना,बैलून छोड़ना और सत्ता का दुरुपयोग करना। लेकिन आलोचना सबकी होनी चाहिए। अगर यह लोकतांत्रिक राजनीतिक भ्रष्टाचार है तो इसमें मायावती से लेकर बीजेपी कांग्रेस,समाजवादी पार्टी सब शामिल हैं। वैसे किसने कहा है कि राजनीतिक कार्यकर्ता जश्न नहीं मनायेंगे। कहीं लिखा है कि जश्न मनायेंगे तो ऐसे मनायेंगे। सब अपनी अपनी हैसियत से अपना जन्मदिन मनाते हैं। लेकिन हंगामा ऐसे हो रहा है जैसे मूर्तियों के ज़रिये दलित कल्याण के निकली मायावती ने कोई नया काम कर दिया हो। काम तो पुराना ही है बस ज़रा बड़ा कर दिया है। कई दोस्तों ने यह भी कहा कि बस इक्कीस लाख की माला। ये तो बहुत कम है। मायावती की अब ये नौबत आ गई कि वो करोड़ की जगह लाखों की माला पहनने लगीं।

मुझे चिन्ता मायावती की नहीं हो रही है। चिन्ता हो रही है मूर्ख टाइप लगने वाले उन दुल्हों की जो दस दस रुपये के नोटों की माला पहन कर शादी करने निकलते हैं। उन कमबख्तों ने अगर दस लाख की माला की डिमांड कर दी तो उत्तर भारत के सारे बाराती मैसूर में माला बनवा रहे होंगे।

29 comments:

aarya said...

सादर वन्दे
बहुत ही सार्थक पोस्ट
भारतीय नववर्ष 2067 , युगाब्द 5112 व पावन नवरात्रि की शुभकामनाएं

सागर said...

BBC Blog par bhi Salma Jaidhi ne isi baat ko uthaya hai. ab yahan dekh kar achchaa laga, kafi log apni pratikriya de sakenge.

Unknown said...

namaskaar!

vikrami navavarsh par sabhii ko hardik shubhkaamanaa.

maya mahaathagini ham jaanii.

janatantra ka rakt hai paisaa.
sabhii raajnaitik dal paisaa se hii chalate hain.

sabhii ko apane aaya vyaya kaa hisaab denaa chaahiye.

namaskaar.

Kulwant Happy said...

मेरे गाँव में लड़्डूओं से नेताओं को तोला जाता था, शायद अब किसी ओर चीज से तोला जाता होगा। मुझे आज भी याद है बठिंडा में तत्कालीन वित्त मंत्री पंजाब सुरेंद्र सिंगला के घर शादी समारोह। करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया गया, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग खुलेआम किया गया। काँटे हमने बीजे हैं, भुगतना तो पड़ेगा ही है।

شہروز said...

भाई आपने बहुत ही सार्थक मुद्दे को फिर छुआ है.देखिये अब बहुजनवादी अब कहीं आपके पीछे न पड़ जाएँ.सदी के आख़री दशक से शुरू हुआ ये धन-बल का प्रदर्शन अब पूरी चमक और दमक के साथ उपस्थित हो गया है.दल कोई भी हो सभी नंगे हैं हमाम में!

rajani kant said...

रवीश जी,
समाजशास्त्री लघु परंपरा और दीर्घ परंपरा की बात करते आये हैं.दलित राजनीति अब लघु नहीं रही, दीर्घ परंपरा बनने की ओर अग्रसर है. पहले से चली आ रही परंपरा के मुहावरे में ही इसे ज़ाहिर भी कर रही है. अब मंदिर-प्रवेश और सार्वजनिक नल से पानी भरना कोई मुद्दा नहीं है. मुद्दा है-- पहला दलित अरबपती और पहली दलित मल्टीनेशनल कंपनी . जो काम पुराने राजनैतिक दल दबे-छिपे करते थे बी एस पी ने डंके की चोट पर किया है. इस मायने में उसने पुरानी राजनैतिक परंपरा के आगे की यात्रा की है कि पुराने राजनैतिक दल विचारधारा के स्तर पर जाति और पैसे पर खत्म होते हैं और बी एस पी वहीँ से शुरू होती है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

माया की माला पर ही हमला क्यों? बाकियों को क्यों बख्शा जा रहा है??
मायावती को लखनऊ में नोटों की माला पहनाई गयी, जिस पर जांच बैठ चुकी है. क्या सिर्फ इसलिये कि यह सबके सामने पहनाई गयी थी? इससे पहले मुलायम सिंह सैफई में करोड़ों रुपये की लागत से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बोइंग उतरने लायक हवाई पट्टी बनवा चुके हैं. जिस पर उनका हवाईजहाज उतरता भी रहता है. पिछले टेन्यूर में लालू तीन सौ उनहत्तर बार रेलवे के विशेष सैलून में यात्रा करते हैं और बाद में एक विशेष पास भी जारी होता है जिसमें कि वह सपरिवार एसी-प्रथम में यात्रा करने के हकदार होते हैं. कांग्रेस ने नेहरू-इंदिरा-राजीव की याद में न जाने कितने स्मारक बनवाये और पैसा खर्च किया. अन्य सत्ताधारी दलों के हिस्से में भी ऐसी चीजें अवश्य होंगी. सत्ताधारियों के अकस्मात ही अरबपति बनने के किस्से अब आश्चर्य से नहीं देखे जाते. जनता के पैसे पर अफसर और नेता मौज करते हैं. प्रश्न यह नहीं है कि मायावती ने क्या किया या मुलायम ने क्या किया. प्रश्न यह है गरीब जनता की भलाई पर जो पैसा खर्च होना चाहिये वह नेता और अफसर अपने ऊपर कैसे खर्च कर लेते हैं? उनसे जबावतलबी क्यों नहीं होती, उनके विरुद्ध जांच बिठाकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. एक जस्टिस के विरुद्ध अमानत में खयानत के आरोप के बारे में सरकार चुप्पी साध चुकी है. यदि वह जस्टिस सही थे तो उनके विरुद्ध आरोप क्यों लगाये गये और यदि आरोप ठीक थे तो फिर अब चुप्पी क्यों. महालेखापरीक्षक की रिपोर्टें धूल खाती रहती हैं. सत्ता जिसके पास होती है उसके सब काम जायज होते हैं. भारत की जनता का नसीब बन चुका है नेताओं द्वारा छला जाना. सत्ता का चरित्र नहीं बदलता बस चेहरा बदल जाता है. लेकिन इस प्रकरण की ओट में माया पर दबाव तो नहीं बनाया जा रहा है?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

माया की माला पर ही हमला क्यों? बाकियों को क्यों बख्शा जा रहा है??
मायावती को लखनऊ में नोटों की माला पहनाई गयी, जिस पर जांच बैठ चुकी है. क्या सिर्फ इसलिये कि यह सबके सामने पहनाई गयी थी? इससे पहले मुलायम सिंह सैफई में करोड़ों रुपये की लागत से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बोइंग उतरने लायक हवाई पट्टी बनवा चुके हैं. जिस पर उनका हवाईजहाज उतरता भी रहता है. पिछले टेन्यूर में लालू तीन सौ उनहत्तर बार रेलवे के विशेष सैलून में यात्रा करते हैं और बाद में एक विशेष पास भी जारी होता है जिसमें कि वह सपरिवार एसी-प्रथम में यात्रा करने के हकदार होते हैं. कांग्रेस ने नेहरू-इंदिरा-राजीव की याद में न जाने कितने स्मारक बनवाये और पैसा खर्च किया. अन्य सत्ताधारी दलों के हिस्से में भी ऐसी चीजें अवश्य होंगी. सत्ताधारियों के अकस्मात ही अरबपति बनने के किस्से अब आश्चर्य से नहीं देखे जाते. जनता के पैसे पर अफसर और नेता मौज करते हैं. प्रश्न यह नहीं है कि मायावती ने क्या किया या मुलायम ने क्या किया. प्रश्न यह है गरीब जनता की भलाई पर जो पैसा खर्च होना चाहिये वह नेता और अफसर अपने ऊपर कैसे खर्च कर लेते हैं? उनसे जबावतलबी क्यों नहीं होती, उनके विरुद्ध जांच बिठाकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. एक जस्टिस के विरुद्ध अमानत में खयानत के आरोप के बारे में सरकार चुप्पी साध चुकी है. यदि वह जस्टिस सही थे तो उनके विरुद्ध आरोप क्यों लगाये गये और यदि आरोप ठीक थे तो फिर अब चुप्पी क्यों. महालेखापरीक्षक की रिपोर्टें धूल खाती रहती हैं. सत्ता जिसके पास होती है उसके सब काम जायज होते हैं. भारत की जनता का नसीब बन चुका है नेताओं द्वारा छला जाना. सत्ता का चरित्र नहीं बदलता बस चेहरा बदल जाता है. लेकिन इस प्रकरण की ओट में माया पर दबाव तो नहीं बनाया जा रहा है?

sukh sagar said...

bolo jai mata di....nahi nahi ....jai mayawati....

ab hum to yahi kaha sakte bhai....lucknow me rhte hai....kahi humare ghar par bhi ek murti lagva di to.

sukh sagar
http://discussiondarbar.blogspot.com/

Viimal K. said...

Ravish ji,
Behan Mayavati ne jo noton ki mala pehni hai usme koi bhi nayi bat nahin hai...
Lekin aapne BJP aur Cong party ke bare main kyon nahin likha hai..Unke yahan bhi aaise parampara koi nayi bat nahin hai.

Parul kanani said...

ab bas yahi samjhna baaki hai ki mayawati dalit ki beti hai ya "daulat" ki beti hai :)

चन्दन कुमार said...

पर कांग्रेस और सपा जैसे दलों ने संसद नहीं चलने इस वाहियात मसले पर। इससे तो मुझे इश्किया फिल्म का एक संवाद या आ रहा है...आपका प्यार प्यार और मेरा प्यार सेक्स....वही लोग हो हल्ला मचा रहे हैं जिन्होंने इसे परंपरा को शुरू किया।
एक छोटी सी बात है और बात नोटों की माला की हो या नेताओं को सिक्के से तौलने की। यह अब परंपरा का हिस्सा बन चुकी है।

Aadarsh Rathore said...

मैं सोच रहा हूं कि हम लोगों को हो क्या गया है?
एक तो करने वाले को शर्म नहीं है और दूसरा जनता सब खामोशी से देख रही है। मृत हो गए हैं सब के सब...
आज अगर इस तरह के इरादों को रोका नहीं गया तो कल गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

राष्ट्र निस्संदेह गर्त में जा रहा है...

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

राजनितिक विवाद से हटकर मैं तो माला बनाने बाले कारीगर के हुनर की दाद देता हूँ, जिसने इतनी ख़ूबसूरती से ऐसी माला बनाई...

लडड बोलता है....इन्जीनितर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com

SACHIN KUMAR said...

ये लीजिए नहले पे दहला....अभी एक पर ही लोग परेशान हो रहे थे...दूसरा भी आ गया...सबका ध्यान इन दिनों टी-20 पर है सो ध्यान हटाने का अच्छा तरीका है। सब काउंट कर रहे है...अंदाजा लगाते रहिए...अभी हम तो पहले में ही फंसे ते...मैं ही क्या सब गुणा भाग कर रहे थे कि लीजिए एक और....आयकर वाले भी क्या करे...पहले किस पर जाए....खैर कमाल तो पटना में भी हुआ...पैसे कम थे लेकिन एजाज अली का क्या शाही स्वागत हो रहा था..लेकिन कार्यकर्ताओं ने एजाज के लिए एक नोट भी शायद नहीं छोड़ा....नोटों का मौसम आया है लुट सके तो लुट...अब क्या फर्क पड़ता है दलित की बेटी है या दौलत की.....

Jitendra Chaudhary said...

मुझे चिन्ता मायावती की नहीं हो रही है। चिन्ता हो रही है मूर्ख टाइप लगने वाले उन दुल्हों की जो दस दस रुपये के नोटों की माला पहन कर शादी करने निकलते हैं। उन कमबख्तों ने अगर दस लाख की माला की डिमांड कर दी तो उत्तर भारत के सारे बाराती मैसूर में माला बनवा रहे होंगे।
एकदम सही चोट की है। मजा आ गया। माया का हाथी ऐसे ही चलता रहेगा, मदमस्त, बेफिक्र। चाहे जित्ता डरा लो, सीबीआई वगैरहा वगैरहा। जब तक दलित है, तब तक माया जैसे नेताओं का सिक्का चलता रहेगा, दलित मूर्ख बनते रहेंगे और माया जैसों का राजकाज चलता रहेगा। वैसे भी उत्तर प्रदेश की जनता के पास च्वाइस तो है नही, भ्रष्टों के बीच कोई एक चुनना है, मुलायम ना सही, माया ही सही, अगली बार फिर मुलायम। लूटेंगे तो सभी, कोई लूट के घर ले जाएगा कोई अपने आपको इतिहास मे लिखवाने की कोशिश करेगा। यही राजनीति है।

Anonymous said...

jabardast
aur wo dulho wali baat . aur attani aur chavnni bhi jabardast...

Amit kumar said...

bhartiye patrkarita ki trasidi hai ki, patrkar jatiye purwagrah se grasit hokar likhte hai...

Amit kumar said...
This comment has been removed by the author.
Amit kumar said...
This comment has been removed by the author.
उम्दा सोच said...

चलो मोदी को छोड कर आप को कुछ तो दिखा !!!

अमृत कुमार तिवारी said...

आदर्श भाई माला के प्रकरण पर जनता तो नोटों को गिनने में व्यस्त है। माला कितने करोड़ का है... और आंख फाड़कर चिहा रही है। चुनाव आता है तो यही यूपी की जनता नेताओं की गाड़ियों और उनके रेला पर ज्यादा चर्चा करती बजाय चुनावी मुद्दों के। मायावती को कौन सा डर--- वो जनता के प्रति जवाबदेह थोड़े ही हैं और वैसे भी कौन नेता जनता के प्रति जवाब देह है? सभी पैसे से जीत कर आते हैं पैसे की रस्म निभाएंगे ही। मायावती के पास दलित वोट बैंक हैं, किस चीज का डर है। ऊंची जाति के नेता लाइन में खड़े रहते हैं करोड़ों रुपये लेकर कि बहनजी टिकट दे दें। प्रोपगेंडा मेच्योर लोकतंत्र में मायने रखता है। यहां कि जनता लोकतंत्र को केवल शब्द मात्र से जानती है...अधिकतर तो वो भी नहीं...... मचाते रहिए हल्ला। अगली बार कुछ और कांड होगा....

Kumar Anshuman said...

Ravish jee. Aaj pehli baar aapka blog padha. waise to Hindustan akhbaar mein aapki blogvarta padh leta hoon. par thoda samay mila aaj padhne ka. Zahir hai kuch likhe bina raha nahi gaya. Din raat ki angerji patrakarita ki mara mari aur badhte ghate sensex ke bich aapke lekhon ne mujhe taro taza kar diya. Main aapse ek baar press club ke chunav ke din mila tha. The Week magazine mein aarthik patrakaar hoon. Waise patna ka rehne wala ho.Achraj hota hai ye dekh kar ki itne nautanki baaz netaon ke kitne saarthak hain is desh mein. Aatm samman ya swabhimaan jaisi koi cheez nahi inke paas. sab kuch bas arth hi taya karta hai. Baba ramdev ki confrence mein gaya tha. Unhone bhi rajneeti mein aane ka elaan kar diya. Asha karta hoo aapka koi lekh unpar bhi padhne ko milega.
sadar pranam,
anshuman

JC said...

भारत परम्पराओं का देश है...

आज शायद यह किसी को न पता हो कि यह प्रथा किस 'वैज्ञानिक' आधार पर आरंभ हुई, किन्तु गहराई में जा 'ग्रहों की शांति' के लिए अनादि काल से 'तुला-दान' की प्रथा चली आ रही है: जिसमें जो 'खाते-पीते' घर का किन्तु सत्य के विषय में अज्ञानी होता था वो 'गरीब ब्राह्मणों' को (जो कभी टेलीफोन औपरेटर समान सक्षम थे कनेक्शन मिलाने में भगवान् से!) अपने या अपने बच्चों आदि के वजन जितना धन-धान्य दान करते थे...

इस कलियुग में भी शायद सबको पता हो, किसी कवि ने भी - मनुष्य जीवन को गहराई में जा - कहा था, "सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के असूलों से / कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से" (माला में कितने भी नोट लगालो)!

Shakeb Ahmad said...

ek post madhumakkhiyon ki enquiry par bhi ho jaye...............
koi nayi jankari chahiye to mujhse le lijiyegaa.........
main ambedkar university me hi hu........

JC said...

रविश जी ~ अब जब मैंने 'ग्रह शांति' लिख दिया तो इस विषय पर जो मैं अपने अल्प जीवन काल में प्राचीन 'हिन्दू मान्यता' को थोड़ी गहराई में जा ('संन्यास आश्रम' में) समझ पाया हूँ, उसके आधार पर मैं - संक्षिप्त में - कह सकता हूँ कि हमारे पूर्वज परम ज्ञानी थे...उदाहरणतया, हमको 'आज' छोटी-छोटी लगती बातों को भी ध्यान में रख उन्होंने (संस्कृत भाषा में) शब्द 'मैं' को 'अहम्' कहा और इसी शब्द का उपयोग किया 'घमंड' को दर्शाने में जिससे हर आदमी को 'अहम्' कहते ही आभास हो जाए कि उसके कथन में 'घमंड' झलक सकता है,,,और यह कहने की शायद आवश्यकता नहीं कि वे 'पहुंचे हुए' खगोलशास्त्री ही नहीं अपितु 'सिद्ध पुरुष' भी थे,,,और उनका लक्ष्य केवल 'प्रभु' प्राप्ति था ('भू' का मतलब 'पृथ्वी' और उसके पहले 'प्र' लगा मतलब हो गया पृथ्वी के जन्म के पहले क्या था? यानि 'माया' के कारण अनंत 'आकाश गंगा' से बनी दिखाई देने वाले ब्रह्माण्ड के बनाने में किस अजन्मे और अनंत अदृश्य जीव अथवा शक्ति का हाथ था)...

आज 'पश्चिम' के दृष्टि कोण से वो हमें भी, उनके प्रभाव में आ (विशाल जल राशि वाली ब्रह्मपुत्र नदी की तेज धारा में लाचार से बहते लट्ठ समान), मूर्ख ही क्यूँ न दिखाई पड़ें ...किन्तु उनको धन्यवाद् देना पड़ेगा कि वो 'तुच्छ' दिखाई पड़ने वाले 'मुझ' को भी भगवान का ही प्रतिरूप, भले ही 'मिटटी का माधव' ही बता गए,,,जिसकी झलक मायावती कि स्वयं अपनी मूर्ती बनवाने में भी झलकती है :)

JC said...

रविश जी ~ 'मधुमक्खी' से याद आया कि नेताजी सुभाष बोस ने (लाल जिव्हा वाली 'माँ काली' के कोलकाता वाले ने) कभी कहा था, "तुम मुझे खून दो / में तुम्हें आजादी दूंगा!" ...सबके प्रयास से अंग्रेजों से आज़ादी मिली भी,,,और लाल रंग का ('हिन्दू-मुस्लिम' दोनों का अधिक) खून भी बहा...

कलियुग के प्रभाव के कारण 'आधुनिक नेता', 'आज' - काल के निरंतर घोर कलियुग की ओर अग्रसर होने के कारण - जैसा ज्ञानियों ने कहा, उनकी चतुराई और आम आदमी की 'अज्ञानता वश', कहते से लगते हैं, "तुम मुझे (अपने) खून (की कमाई) दो / मैं तुम्हें (गरीबी से) मुक्ति दूंगा (क्यूंकि काल के अंत में नादबिन्दू विष्णु, यानि शून्य से तो वैसे भी हम सबको शायद अब शीघ्र मिलना ही है) !"

'कृष्ण' की बांसुरी भी (असह्य 'ब्रह्मनाद' के मधुर प्रतिबिम्ब समान) 'द्वापर' के अंत में बंद हो गयी थी ("राधा द्वारा चुराए जाने के कारण") - फिर से कृष्ण के 'सुदर्शन-चक्र' समान काल-चक्र के प्रभाव से कलियुग में भी आरंभ होने के लिए...मधुमक्खी के मधु पान और मानव के शिव समान 'सोमरस पान' समान (देवता के लिए निषेध) मद्यपान के लिए - जब तक 'शिव के विषपान' का समय न आजाये,,,और 'सत्य कटु होता है' कह गए ज्ञानी भी...

उन्होंने क्या सांकेतिक भाषा का उपयोग किया केवल 'आम आदमी' के मूर्ख बने रहने के लिए अथवा बनाये जाने के लिए, अन्य उनसे अधिक ज्ञानी द्वारा? (किन्तु इशारा भी किया कि परमज्ञानी केवल ईश्वर, अमृत शिव ही है, जो शायद सबको मूर्ख बना रहा है,,,किन्तु न मालूम क्यों???)...

Dinbandhu Vats said...

aadarniya ravish ji,

maya to vaise hi thagani hai.aur agar maya balvati ho jaye to vah maha thagani ka roop leleti hai.
vastutah aaj ke har rajnetao me ek n ek mayavati chhupa hai jo keval maya se hi sanchalit hotahai. shayad yahi rajsatta adhunik charitra hai.mayavati to ek maya hai yahan n jane kitani mahamaya vidyaman hai.

sadar pranam

कुलदीप मिश्र said...

कहते हैं कि नेताओं के नाम अमूमन उनकी प्रकृति के उलट होते हैं...लेकिन मायावती, ओह माफ़ कीजिएगा..बहिन मायावती इसकी अपवाद हैं...उनका नाम उनकी प्रवृत्ति-प्रकृति पर बिलकुल फिट बैठता है...पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से लगता है कि बहिन जी को 'म' अक्षर से बड़ा प्रेम है...इसलिए वह मूर्तियाँ बनवाती हैं, महारैलियाँ आयोजित करवाती हैं और 'मालदार' मालाएं पहनती हैं...कोई कुछ कह दे तो ढिठाई से एक माला और पहन लेती हैं...माननीय मुख्यमंत्री मायावती जी, बस इतना याद रखिएगा कि 'म' से 'मदान्धता' और 'मक्कारी' भी होता है...यूपी की जनता अगर 'मूड' में आ गयी तो आप किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी...रही बात नाम की तो जान लीजिए कि लोग आपको अब 'मालावती' भी कहने लगे हैं....