चेतावनी- आप कैमरे में हैं









हम कई तरह के निर्देशों के बीच जी रहे हैं। हर निर्देश अपने आप में एक कानून की तरह शोर करता है। इन निर्देशों की भाषा बदल रही है। बन रही है। अंग्रेज़ी हिंदी सब एक हो रहे हैं। कहीं मूर्खता है तो कहीं बेचैनी तो कहीं धमकी। ये सभी निर्देश अपनी तरह के सभ्य शहरी नागरिक बनाने की कोशिश करते हैं। ऊपर की दो तस्वीरें मयूर विहार फेस वन में बने एक मॉल की हैं। आप कैमरे में है। यह एक नई तरह की चेतावनी है। जो हमारे आस-पास उभर रही है। बाकी तस्वीर दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल की हैं। यहां हिंदी अपनी तरह से ढल रही है। पेड़ के नीचे पेड पार्किंग लिखा देख कर अच्छा लगा। यह भाषा का व्यक्तिगत और स्थानीय आविष्कार है। मोबाइल में लगे कैमरे से इन छोटी-छोटी चीज़ों को देखना दिलचस्प लगता है। बड़े कैमरे को क्लिक करने के लिए संदर्भ चाहिए। एक रिपोर्टर चाहिए और एक एडिटर। मोबाइल कैमरे में इन सब की ज़रूरत नहीं है। बस नज़र चाहिए।

13 comments:

Aadarsh Rathore said...

कहीं मूर्खता है और कहीं बेचैनी

अरुण राजनाथ / अरुण कुमार said...

काफी दिनों बाद इलाहाबाद जाना हुआ. रिक्शे वाले से कहा 'लोक सेवा आयोग चलो'. बेचारा भौचक! फिर कहा UPC चलो, तो उसने जवाब दिया, ' ऐसन बोला ना बाबूजी, अंग्रेजी काहे बूकत हैं.'

JC said...

'पेड़ के नीचे पेड' - बढ़िया!

"परिवर्तन प्रकृति का नियम है." शायद हर कोई जानता है, किन्तु सबको भूलने की बीमारी है :(

पहले जन्म-घुट्टी के साथ सिखाया जाता था कि भगवान हर समय देख रहा है. आज कैमरा लगा होने से भी आदमी अधिकतर बाज नहीं आता - क्यूंकि उसे विश्वास है कि कलियुग की पुलिस इतनी सक्षम नहीं है कि करोडों में उस एक को पह्चान ले और पकडले... और यदि आ भी जाये तो मुट्ठी गरम कर चली जायेगी - ऐसी स्पेशल रिपोर्ट टीवी में आये दिन देखने को मिलती हैं :(

Dudhwa Live said...

बहुत उम्दा बात कही बड़े भाई आप ने!

परमजीत सिहँ बाली said...

JC said...सही बात ।

Anonymous said...

निश्चय ही भाषा का स्वरूप हर पल बदल रहा है। और इसके उदाहरण अपने आस - पास हर जगह देखने को मिल जाते हैं।
www.amrithindiblog.blogspot.com पर भी आयें।

डॉ .अनुराग said...

ये बदलती दुनिया की विडम्बना है ...मै यहाँ भाषा नहीं बदलते भारत की आज़ादी पे अंकुश देख रहा हूँ

Renu goel said...

अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए नए प्रयोग कर रहे हैं सब ... मिलावट का ज़माना है ..भाषा में मिलावट हो गयी तो क्या ...

शरद कोकास said...

वाह रविश जी । यह अपना भी शौक है ।

अजित वडनेरकर said...

जै हो...

अबयज़ ख़ान said...

बहुत बढ़िया सर... हम आए दिन ऐसे कानूनों का पालन भी करते हैं और इन्हें भी हवा में उड़ा देते हैं।

KK Mishra of Manhan said...

अब हिन्दी को भी औपचारिक तौर से अग्रेजी की तरह उन तमाम शब्दों को जस का तस शामिल करने में शर्मिन्दगी नही होनी चाहिये , क्योंकि अग्रेजी का शब्द कोश हर वर्ष सैकड़ो गैर-अग्रेजी शब्दों को धड़ाधड़ शामिल कर रहा है जैसे शैव, शब्द को ही ले लो, भारत का प्राचीनतम धर्म या समुदाय किन्तु कल को आने वाली पीढ़ियां जब इस शब्द के मायने अग्रेजी शब्द कोश में पायेगी तो उन्हे लगेगा ये तो अग्रेजी का शब्द है न कि हिन्दी का ?

Unknown said...

aap ki najar kamal ki hai
aap ne khob kaha hai "bas ek najar chahiye" jo dainikta ko sichti rehti ho.

rakesh