पिछले दिनों चुनाव के सिलसिले में गुजरात में था। साबरमती आश्रम के सामने गुजरात टूरिज़्म के होटल में ठहरा था। सड़क पार कर साबरमती पहुंचा तो सबसे पहले इस कविता पर नज़र पड़ी। कोई पढ़ नहीं रहा था सोचा ब्लाग पर उतार देता हूं।
ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का
ज़्यादा से ज़्यादा लाभवाला सिद्धांत
मैं नहीं मानता।
उसे नंगे रूप में देखें तो उसका अर्थ यह होता है
कि ५१ फीसदी लोगों के हितों की ख़ातिर ४९ फीसदी
लोगों के हितों का बलिदान किया जा सकता है।
बल्कि कर देना चाहिए।
यह एक निर्दय सिद्धांत है और मानव समाज को
इससे बहुत हानि हुई है।
सबका ज़्यादा से ज़्यादा भला किया जाए
यही एक मात्र सच्चा, गौरवपूर्ण और मानवीय सिद्धांत है
और इसे पूर्ण आत्मबलिदान के द्वारा ही अमल में लाया जा सकता है।
---महात्मा गांधी, चार जून उन्नीस सौ बत्तीस
5 comments:
चलिये किसी ने तो पढ़ा. 51% के लिए 49% का बलिदान सही नहीं लगता. कोई दुसरा सिद्धांत जो सबका भला कर सके, भी गाँधीजी दे जाते तो अच्छा था.
रवीश,
यही लोकतंत्र की विडंबना है .
( जी या सर लगाने के बोझ से मुक्त कर के अच्छा किया ,कल ही ' प्रणाम सर ' पढ़ा है .)
रवीश,
यही लोकतंत्र की विडंबना है .
( जी या सर लगाने के बोझ से मुक्त कर के अच्छा किया ,कल ही ' प्रणाम सर ' पढ़ा है .)
लोकतन्त्र से बेहतर भी कोई तन्त्र हो सकता है, इसकी सम्भावना का परिचय केवल गान्धीवादी विचारधारा के तहत ही हो सकती है और उसकी परिकल्पना उन्होंने रामराज्य के रूप मे की थी। व्यावहारिक रूप से जिसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। बहुजन हिताय एक विचार मात्र है। और ये भी सत्य है कि हर परिवर्तन की शुरूवात विचार से ही होती है।
consensus democracy cud be the answer @sanjay bengani... do read swaraj...
consider -
M. K. Gandhi Part 1 of 2
Arvind Kejriwal Part 2 of 2
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