Just for women radio- 104.8

104.8 एफएम फ्रीक्वेंसी सिर्फ औरतों का रेडियो है। शहरों में रहने वाली औरतों की दुनिया का अकेला सार्वजनिक मंच।दिल्ली में हों तो जस्ट फार वीमेन रेडियों ज़रूर सुनें। हर वक्त औरतें बात करतीं रहती हैं। नए अंदाज़ और आत्मविश्वास से। ये वो औरतें हैं जो रेडियों के ज़रिये दूसरी औरतों से बात करना चाहती हैं। पंजाबी बाग की किरण कौर ने रेडियो जौकी से कहा कि वो टीवी सीरीयल से बोर हो गई हैं। अब टीवी बंद ही रहता है। इसलिए उन्हें ये म्याऊ रेडियो पसंद आता है। रेडियो का सिग्नेचर स्लोगन म्याऊ है। मैंने औरतों को म्याऊ कहते नहीं सुना। न ही उन्हें कभी बिल्ली समझा। मगर रेडियो औरतों को म्याऊ म्याऊ कहना चाहता है तो उसकी आज़ादी।


आज भी सरकारी चैनलों में केवल महिलाओं के लिए कार्यक्रम हुआ करते हैं। प्राइवेट चैनलों के ज़माने में औरतों को ही ध्यान में रखकर सीरीयल बनाए गए। करोड़ों रुपये सिर्फ औरतों के मनोरंजन पर खर्च होता हैं।वो हमारे घरों की सबसे थकी हुईं और बोर प्राणी हैं।मर्दो ने उन्हें थका और पका दिया है। यही काम सीरीयल भी कर रहे हैं।मनोरंजन उन्हें पूरी तरह आज़ादी का रास्ता नहीं देता।आप घर का काम खत्म होने के बाद बाहर न जाए इसलिए दोपहर में सीरीयल है।शाम की थकावट के बाद भी सीरीयल है। ये सारे औरत प्रधान सीरीयल हमारी औरतों को अफीम परोस रहे हैं। बेगार खटने वाली औरतों को मनोरंजन का अफीम। उन्हें बताते हैं कि घर का माहौल नहीं बदलता।तो क्यों न घर की सड़ी गली परस्थितियों को ही मनोरंजन में बदल दिया जाए। बेगार खटने के बाद भी औरतों को स्वतंत्र स्थान नहीं मिलता। साज़िश होती है। वो अपने अस्तित्व के लिए साज़िश करती है। वो कहीं से लाई गई पराई है। एक नए जगह में सुरक्षा तलाशने का संकट की कीमत वह बेगार खट कर चुकाती है। सीरीयल इसी स्थिति को बैकग्राउंड साउंड से मनोरंजन में बदल देते हैं। औरतें इन सीरीयलों को देखती हुई खुद को समझा लेती हैं कि हर घर की यही कहानी है। कहीं भी अच्छी दुनिया नहीं है। जो है अच्छा है। सास ने ताने दिए तो क्या हुआ बंटी की बीमारी के वक्त रात भर तो वह भी जाग रही थीं। हिंदुस्तान की तमाम दुल्हनें नए घर में अविश्वास और असुरक्षा में जी रही हैं। म्याऊ रेडियो उन्हें बुला रहा है अपनी बात बोलने के लिए। लेकिन औरतें अपने शोषण पर खुल कर नहीं बोलती। बल्कि प्यार और परिवार की चाशनी लगा कर बताती हैं कि उन्हें लोगों का ख्याल रखना अच्छा लगता है।


औरतें घर में खाली वक्त के बारे में चर्चा करती हैं। एक महिला बोल रही है कि वो और मंगेतर दोनों आफिस जाते हैं। मिलने का वक्त नहीं मिलता। मुश्किल से शाम के लिए दो घंटे का वक्त निकाल पाती हूं। होस्ट कहती हैं छुट्टी लो और दिन भर साथ रहो। महिला कहती है काश ऐसा होता मगर नौकरी ज़रूरी है।


हमारे देश में पिछले कुछ साल से औरतों का अनुभव संसार बदला है।वो पुरुषों की तरह जीवन के हर क्षेत्र में हैं।औरतों का भी दो संसार हो गया है।एक संसार पुराना है जहां औरतें सुबह से शाम तक परिवार का काम संभालती हैं तो दूसरा वह है जहां औरत अपने काम पर जाती है। अपने भविष्य के लिए। औरतें आपस में इन अनुभवों को साझा करना चाहेंगी। सो कर रही हैं। म्याऊ रेडियो पर।

इसी गुरुवार को होस्ट ने सभी औरतों को फोन कर यह बताने के लिए कहा कि वो शादी के विज्ञापन को कैसे देखती हैं। सब मिल कर विज्ञापन की शर्तों का मज़ाक उड़ा रहे थी। एक महिला ने कहा कि होमली और स्मार्ट लड़की चाहिए। घर का काम काज भी करे और आधुनिक भी हो जाए। दोनों साथ नहीं हो सकता। इसलिए मज़ाक उड़ रहा था। हो सकता है ऐसा करने की छूट उन्हें घर में न हो। लेकिन रेडियो के ज़रिये वो बात कर रही थी कि ये मर्द खुद को समझते क्या हैं। दुल्हन की नई नई शर्तो पर सभी भावी और पूर्व दुल्हनें चर्चा कर रही थीं।

एक दिन इस पर चर्चा हो रही थीं कि अच्छी सास कैसी हो या अच्छा पति कैसा हो। अगर कोई पति या सास सुन ले तो उसकी घिग्घी बंध जाए। एक दिन ऐसा भी होगा जब उनके घर से जाने के बाद औरतें रेडियो स्टुडियों के फोननंबर पर डायल कर दिल्ली भर की औरतों से बात करने लगेंगी। अनुभव साझा होगा।

लेकिन यहां पर डिप्लोमसी है। खुल कर आलोचना नहीं होती। एक महिला ने कहा कि वो नौकरी नहीं करना चाहिए। आदर्श दुल्हन बनना चाहती है। घर का सारा काम वही करे। हर तरफ से उसके नाम के पुकारे जाने की आवाज़ आती रहे..पूजा....पूजा...पूजा।तो होस्ट हंसती है। वाऊ...म्याऊ बोलती हैं। औरतों की बातचीत घर परिवार और प्यार से आगे नहीं जाती। बच्चे को संभालें कि दफ्तर को। या फिर प्यार को संभाले या परिवार को। इन्हीं सब उधेड़बुनों पर चर्चा है। लेकिन सुनना दिलचस्प है।उनके गप्प संसार में जाकर। पुरुष भी तो दकियानुसी और खराब स्तर की बातचीत करते हैं। उनकी बातचीत में कोई रोचक तत्व नहीं होता। तो बातचीत के कंटेट पर उलाहना किस लिए। इस रेडियो को सुनिये। पता चलेगा कि हमारा समाज माध्यमों की तलाश कर रहा है। टीवी, रेडियो, ब्लाग। बेचैनी इसलिए भी है कि बातचीत नई नहीं होती। इसलिए वो बातचीत की जगह माध्यम से ही बोर हो जाता है। म्याऊ रेडियो की कामयाबी या आगमन इसी दायरे में है।

10 comments:

सुबोध said...

म्याऊं की भाषा में बात करने से महिलाओं का भला हो पायेगा मुश्किल है. यहां भी एक तरह का मनोरंजन है जहां संजीदा कुछ भी नहीं.हां इस तरह का मनोरंजन कुछ दिनों बाद पुरुषों के बोरियत भरे शादी के फूहड़ चुटकुलों का एक नारी संस्करण जरुर पैदा कर देगा. दरअसल महिलायें खुद की आजादी को लेकर भ्रम है.वो आजाद तो होना चाहती है लेकिन किससे उनको पता नहीं.

tejas said...

this is news to me so thanks you for sharing. It is well known fact that more men read "Manorama", "Grihshobha" than women but It is intersting to read your take on women's radio. I woudl come again to read otehr comments from me.
I think we have done fablous job of teaching women to be confident and independent in last 50 years and as for as men are concerned...they will have to endure pain of being majority, not being able to carry baby ...and so on and on....

Ranjan said...

Thanks ! FOr this article , aaj hi apani BIBI ko bataoonga :) Chaliye eesake bahane hi SAAS_BAHU ka serial to bandh huaa !

aap bahut achchha likhate hain !

Srijan Shilpi said...

आजकल रोज शाम को दफ्तर से घर जाते वक्त एफएम पर रेडियो म्याऊं ट्यून कर लेता हूं और महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर हो रही चर्चा को सुनता हूं। इससे नारी मन को समझने में कुछ-कुछ मदद मिल रही है।

Jagdish Bhatia said...

कभी कभी सुनते तो हैं पर साधारण मनोरंजन समझ कर। एक दिन किरण बेदी भी थीं इस चैनल पर। अधिकतर एफ एम रेडियो पर महिलाओं के कार्यक्रमों में सजने संवरने और खाना बनाने के टिप्स ही दिये जाते हैं, यहां कुछ तो सुधार है, एक नये तरीके की जागरुकता।
आकाशवाणी दिल्ली पर पहले दोपहर १२.३० बजे एक कार्यक्रम आता था जिसमें महिलाओं की सामाजिक समस्याओं पर सार्थक चर्चा होती थी। पता नहीं अब आता है कि नहीं।
एक बात और रेडियो म्यांउ की फ्रीक्वेंसी शायद १०४.८ है।

sudo.inttelecual said...

i dont think these myioo!!! kind of cahnnel r doing any good 4 woman but ravish jee 2 day woman r much confused they think that they have became advanced but these serials and radio only teach them 2 hate from man and his family -prakash

pawan lalchand said...

ravishji,
filhal to is bahas mein padte huye humein or apko meow FM ka maza lena chahiye kamal ki jocky's hai iski.. mahilayein bhi khulkar chula-choka se lekar ghar grihsti ki batein kar rahi hai..or main to pahle din se iska lisnr huin.. achchha hai ........tune in meow

Jeetu Makwana said...

Ravishbhai tasleema nasreen ke bare main Khabaro ki Khabar dekhkar malum pada ki ek woman ko khule dil se baat kar na bhi kitna mushkil kar rakha hai is samaj ne.

aur sabse jyada dukh tab hota hai jab ye sab Samaj aur dharam ke naam par kiya jata hain.

- Jeetu makwana.

Pooja Prasad said...

lucknow wale Subodh ne jo kaha usse nirasha hui. Meow par maine ek Domestic Violence ka case solve hote 'dekha' hai..sath hi mahilayen azaadi ko lekar bharmayee hui deekhti hain to isly kyonki unhone is azaadi me abhi abhi saans leni shuru ki hai...ghutan ke baad jab saans li jati hai to tez tez or gaddmadd li jati hai..ye swabhavik hai..

Monika said...

mai pooja g ki baat se ittefaak rakhti hoon. mai bhi kai baar sochti thi ki aakhir hame kya chahiye-parivaar ya naukri. kya dono ek saath nahi mil sakte bina kisi discrimination ke. kai baar lagta hai ki kya carrier banana, uski chinta karna galat hai.

mera pahla aur akhiri sawaal yahi hai- aakhir ye antar kyon hota hai ki pati ke office se ghar aane ke baad patni chai banati hai aur patni ke office se aane ke baad bhi vo hi chai banati hai aur yadi koi aur banata bhi hai to use gilt feel hoti hai-akhir kyon?