तुम्हें क्या अच्छा लगता है? दिल्ली विश्वविद्यालय के रिज़ से गुज़रते हुए इस सवाल ने ऐसी शोर मचाई कि आवाज़ सासाराम के शेरशाह के मकबरे तक पहुंच गई। रशिका ने पूछा था राकेश से। मुझे क्या अच्छा लगता है, मतलब किस सेंस में। अटपटे जवाब पर रशिका ने कहा कुछ तो अच्छा लगता होगा जिससे तुम खुद को जोड़ते होगे।फिल्म, हीरो, गाना, खाना, कपड़े, शहर, दोस्त।इसका जवाब सोचते सोचते राकेश सासाराम के अपने घर की छत पर भटक गया।बीस साल की उम्र तक किसी ने नहीं पूछा कि अच्छा क्या लगता है?बहने रोटी सब्जी और हरी मिर्च थाली में रख कर छत की कोठरी में दे आती थी।नाश्ते में यही सबको मिलता था।किसी से पूछ कर कभी नाश्ता नहीं बना कि आज क्या खाना है।पिता जी जो कपड़ा लाए वही पहना गया।रिश्तेदारों की शादियों में जहां जहां गए वहीं घूमा गया।अलग से किसी ने पूछा ही नहीं कि क्या अच्छा लगता है।आईएएस बनना ही है ये तो पिताजी ने कहा था।रशिका ने उसके हाथों को झटक दिया। हंसने लगी।कहां ऐसे सोच रहे हो जैसे किसी इम्तहान में जवाब लिखने लगे।
राकेश को कहना पड़ा तुम दिल्ली की लड़कियों के पसंद बहुत हैं।राकेश बहुत याद करके बोला कि गया का तिलकुट और अनरसा अच्छा लगता है।रशिका को लगा कि किसी पाषाण युग का व्यंजन बता रहा है। हंसने लगी।राकेश रिज की गर्माहट को भांप नहीं पाया।वो परेशान हो गया।अपनी पसंद ढूंढने में। रशिका ने कहा तुम्हें पहले कौन सी लड़की अच्छी लगती थी।पहले तो किसी से मिला ही नहीं।सासाराम में मोहल्ले की लड़कियां होती थीं।जिनसे बातचीत होती थी मगर राखी के दिन सबसे ज़्यादा।हम सब मोहल्ले में इस दिन भाई बहन हो जाते थे।रही बात किसी के पसंद करने की तो लड़कियां सपने में आती थीं।किसी दोपहर पड़ोस की कोई लड़की आ भी गई तो चीनी मांगने।झलक भर मिलती थी।बस।तो क्या पसंद करते।इसलिए कमरे में माधुरी दीक्षित की तस्वीर होती थी।मोहल्ले की लड़की की नहीं।हां शादी में कभी कभी लहंगे में सजी धजी लड़कियों पर नज़र जाती थी।मगर बात करने का मौका नहीं मिला। दुल्हन के पीछे बैठी चंद लड़कियां।आधी से तो राखी बंधाई होती थी।बाकी दोस्त की बहनें होती थीं।सड़क पर कोई लड़की जाती हुई मिलती भी तो उनके रिक्शे के पीछे भाई सायकिल से आता दिखता था।प्रोफेसर साहब तो अपनी बेटी को खुद ही छोड़ने कालेज आते थे। और बात करने की कोशिश भी करो तो नेता गुंडे चले आते थे कि वो मेरी है।तुमने उससे कैसे बात की।रशिका हंसने लगी।राकेश ने कहा कि हम लड़कों की दुनिया में लड़कियों पर ऐसे ही सट्टे लगते हैं। रही बात तुम्हारे सवाल की तो किसे पसंद करता हूं कहना मुश्किल है। क्रश होगा...ये भी कह दो कि नहीं था। बिहार के लड़कों को क्रश नहीं होता। रशिका राकेश की क्लास लेने लगी। राकेश ने कहा बहुतों पर क्रश हुआ।कोई भी लड़की बहुत दिनों के लिए नहीं दिखती थी।जो भी जितनी देर के लिए दिखती क्रश हो जाता।रशिका ने कहा अल्लाह जाने बिहार में जवानी आती भी है या नहीं।क्यों?राकेश बोल उठा। हम क्या बिहार के जवान नहीं हैं।लेकिन यहां तो तुम मेरे साथ रिज में अकेले घूम रहे हो।दोस्तों ने देख लिया तो क्या जवाब दोगे।बस राकेश को सांप सूंघ गया।बोलने लगा तभी कह रहा था कि मेन रोड से चलते हैं।लगेगा कि कालेज से आ रहे हैं।चलो चलते हैं।रशिका बोली बैठो यहीं।कितना अच्छा है।किसी के आने से डरते हो तो लड़की से बात ही मत करो।नहीं यार वो बात नहीं है।राकेश अब तनाव में था।बेकार के रात भर..तुम तो जानती हो न कमरे में मेरा चचेरा भाई भी रहता है।मजाक में भी पता चल गया तो बात घर तक पहुंच जाएगी।चलो हिंदू कालेज के सामने बैठ कर बात करते हैं।कब तक?रशिका का यह सवाल राकेश को और परेशान कर गया।कब तक? हां राकेश, तुम मेरे साथ अकेले बात करने में डरते हो तो साथ क्या खाक निभाओगे।मुझे भी तो तुमसे बात करनी है। बात वो नहीं है।राकेश बोलने लगा।मैं जिनके साथ रहता हूं।उन्हें भी देखना होता है।कहने लगेंगे कि मैं पढ़ता लिखता नहीं। लड़की घूमाता रहता हूं। लड़की घूमाना। ये क्या होता है राकेश। अरे बिहारी लड़के ऐसे ही बोलते हैं।
बस बात टूट गई।रशिका नाराज़ हो गई।रिज़ से बाहर आकर बंदरों के बीच बादाम फेंक दिया।आटो पकड़ कर घर चली गई।राकेश अपने आस पास बनाए डर के मकानों में घिरा रहा।यूपीएससी का सपना, रशिका और घर बात पहुंचने का खौफ।प्रेम के ये बेहतरीन लम्हे भय की भेंट चढ़ गए।वो पैदल ही हड़सन लाइन की तरफ जाने लगा। अपने से बात करने लगा।क्या होता कोई देख ही लेता।दोस्त ही तो है मेरी।ऐसे तो किसी लड़की से बात नहीं कर सकते।फिर वो भी तो लड़कियों से बात करते हैं।रशिका को फोन कैसे करें। कहीं फोन उसे पापा मम्मी ने उठा लिया तो।दिल में ऐसा चोर बैठ गया कि राकेश इस अहसास को जी ही नहीं सका कि रशिका उसे अच्छी लगती है। दिल्ली की लड़की रशिका।उसकी किताबें, टिफिन बाक्स, स्वेटर का रंग।सब अच्छा लगता है।मजबूर ये हालात इधर भी हैं।उधर भी हैं।सिलसिला का यह मशहूर लाइन राकेश अक्सर अपने टू इन वन पर सुनता था। आज लग रहा था कि वो चौतरफा मजबूर हालातों से घिर गया है।माल रोड से बस में बैठ गोविंदपुरी के लिए चल पड़ा।रास्ते भर सोचता सोचता घर आ गया। दरवाज़ा खोलते ही दीपक ने पूछा कहां थे?कोई साथ में थी क्या?दीपक के चेहरे की कुटील मुस्कान में घर में घुसना मुश्किल कर दिया।राकेश को यकीन हो गया कि किसी न किसी ने रिज में रशिका के साथ घूमते हुए देख लिया है।इश्क में अक्सर वहम हो जाता है।हर सवाल छुपा कर रखे गए राज़ तक पहुंचता लगता है।राकेश के चेहरे की हवाई उड़ गई। चुपचाप कमरे में गया।हर नज़र से खुद की नज़र बचाते हुए।खुद से बोलने लगा कि लाइब्रेरी बहुत अच्छी है।देर तक पढ़ने से काफी काम हुआ।खूब पढ़े हैं।पता नहीं राकेश यह जवाब क्यों दे रहा था।दीपक अपने सवाल का जवाब भूल सोनिया के बारे में सोचने लगा।सोनिया तो तब भी आती थीं जब वो नहीं आती थी।बहुत देर तक सोचा कि बस पकड़ कर उसके घर ही चले जाए।मगर बताएंगे क्या कि कहां जा रहे हैं?इस सवाल के जवाब के इंतज़ार ने उसे देर तक बिस्तर पर लिटाये रखा। दिल्ली की लड़कियां ख्वाब में बिहार बनाती रहीं।
11 comments:
दिल्ली की लड़की को अब खाने पर बुलाया जाना चाहिए और लड़कों को चाहिए कुछ मॉर्डन आइटम बनाएँ जैसा छेना का तरकारी, राजमा और छोले. कहीं आलू बैंगन, कोबी, भिंडी या घुघनी बना दिया तो गड़बड़ हो जाएगी. टेबल पर गोल गोल घूमने वाली स्टील की प्लेट और पतले-पतले टी-स्पून धोकर चमकाएँ और खोजकर गुलाबी रंग का टिशू भी लाएँ. गर्मी बहुत है, फ्रिज तो नहीं है लेकिन रसना घोलने की बेवकूफी न हो, फ्रिज की लगी ठंडी पैप्सी कोई दौड़कर ले आए...
achchha laga , khas kar BIHAR me huye CRUSH ko yaad kar ! haan , Ravish Bhai ko 28th august ko aane wali RAKHI ke chalate bahut kuchh YAAD aaya hoga ;)
sirji bahut hua fiction... ab isse thame aur UPA Left ke khela par aapke comments ko chape...dhanyawad
जै हो!!! इस बिहारी मन क सही चित्रण कर रहे हैं...... पूरे पात्र खाँटी बिहारी हैं.....लेकिन इस में कुछ ऐसे पात्र भी डालिये जो बिहार के उस वर्ग के प्रतिनिधि हैं जिनकि शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम (सी. बी. एस. सी.)से हुयी है और जो दिल्ली में (खास कर के लडकियों से) अपना परिचय देने में खुद को बिहारी नहीं बताते......बल्की यू.पी.- दिल्ली का बताते हैं. और जो लडकियों के मामले मे कुछ ज्यादा भाग्यशाली होते हैं....कुछ खुले हुये..... और जो ग्रामीण परिवेश से आये हुये लोगों को हेय समझते हैं......... सब अगर मैं ही कह दूँ तो........ अच्छा नही रहेगा....
Sir yeh koi kahani hain?? ya phir sacchai??
khali ladakiye ka baat kijiyega ki bihar ke badh ke bare me bhi kuch sochiyega? du char hafta badh par bhi dhyan de lijiye,phir manoranjan ke duniya mein wapas chal jaiyega.
ravish ji ne jhakaas likh mara hai..pahli baar is or ana hua tha, bha gaya sab
भाई लोग।
मज़ा आ रहा है इसलिए मुझे भी मज़ा आ रहा है। सबका आइडिया या अनुभव जुड़ता जाएगा। चिंता मत कीजिए। मुखिया जी तो हर राज़ जान लेना चाहते हैं। उकसाते रहते हैं। बाढ़ और यूपीए पर भी लिखा जा रहा है। सब हमी लिखेंगे क्या। हमको का फूफा बूझ लिये हैं आप लोग। कि हम न लिखें और न बोलें तो बोला लिखा होइबे नहीं किया। बात ठीक नहीं है। झंडा वाले पत्रकारों में हमको मत शामिल कीजिए जी। झंडा न डंडा हम तो लिखबे करेंगे। जो बुझाएगा। आप ताली बजाते रहिए बंदर नाचते रहेगा।
ठीके कह रहे हैं। आप को काहे दोस दें जब पूरा पत्रकार मंडल ही चाहे हिंदी का हो चाहे अंग्रेजी का - बाढ़ पर ध्यान नहीं दे रहा है - ई त आपका निजी चिटठा है जो हल्का फुल्का मनोरंजन के लिए है। आख़िर बी बी सी से बाढ़ का पता चल ही जाता है।
हम को ही मान लेना चाहिऐ कि गलती सायद हम ही में है कि उम्मीद करते हैं। और ई भी सही है कि आपका चिट्ठ्वा पढने में मजा आता है, तबे ना हम्हू घूम फिर के चहुंप जाते हैं।
dilli ki ladki aur bihar ka tadka...jamm raha hai.. bahut achcha
aapki kahani ka hero kis yug mein bihar mein rahata tha ? arre hum bhi to bihar k hein hain jara patna k cyber cafe , restorent aur zoo mein ja k dekhiye ghumne phirne k aalawa aur kya kya ho raha hai. jo maza patna mein kisi larki k sath ghumne mein hai wo maza delhi mein nahin aata. kyun ki wahan bahut kam khusnasib hote hein jise larki ko ghumane ka mouka milta hai. iss bare mein jyada baten mere blog pe padiyega
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