दिल्ली की लड़कियां- सात

कमरे में अंधेरा कर दिया गया। बल्ब पर ब्राउन पेपर का लिहाफ डाल दिया गया था। कमरे की रौशनी मद्धिम हो गई थी।टू इन वन में डिस्को बजने लगा।अंग्रेजी डिस्को। कैसेट आर्ची से खरीदा गया था।नब्बे के दशक में अस्सी के दशक का अमरीकी हिट गाना बजा दिया गया था।सुनने वाले पर गाने का धुन ऐसे सवार हुआ मानो अस्सी के दशक के अमरीका में बर्थ डे पार्टी मना रहे हों।नब्बे के दशक में दिल्ली आए बिहारी छात्रों के ठिकानों पर बर्थ डे पार्टी होने लगी थी।पेस्ट्री, पैटीज़, चिप्स, पेप्सी एक प्लेट में सजा दिया जाता।केक काटने के रस्म का इंतजार होता।कमरे का सारा सामान समेट कर डांस का भी इंतजाम हो गया था।लाजपतनगर जाने वाली डीटीसी की बस में सवार लड़के चल पड़े।धीरे धीरे सब आ रहे थे।सब आ रही थीं।

हाय...सोनिया का चिरपरिचित अभिभावदन।सुधाकर के जन्मदिन की पार्टी थी।आईपी कालेज से सुधाकर की दोस्त प्रिया भी आ गई थी।सुधाकर संतोष से अधिक मार्डन था। उसमें हिम्मत थी वाकमैन लगा कर घूमने की।लड़कियों से मिलता तो हाथ ज़रूर मिलाता।उनके कंधे पर हाथ रखता।वह इंतज़ार नहीं करता कि कोई लड़की उससे बात करने के लिए आगे आए।वो खुद चला जाता।संतोष को लगता था कि हम क्यों जाए। लड़की खुद आ कर बात करे। बस यही एक फर्क था।कमरे में भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोग एक दूसरे के करीब आ रहे थे।जगह की कमी के कारण।कम होती दूरी ने बिहारी लड़कों को कई सदियों का फासला झटके में तय करा दिया।अस्सी के दशक का डिस्को गाना बजने लगा। डांस होने लगा।सोनिया, प्रिया, राशिका सब झूमने लगी।बिहारी लड़के किनारे खड़े होकर ताली बजाने लगे।प्रिया ने कह दिया अरे तुम लोग क्यों नहीं आते। आधे इस संकोच में जम गए कि अगर कमर नहीं हिली तो क्या होगा।बोले हमें डांस नहीं आती।रशिका ने कह दिया तो हमें कौन सी आती है।हम तो सिर्फ झूम रहे हैं। एक दो बिहार कुंवर हिम्मत कर आगे बढ़े।हाथ ऊपर उठाया पहले अमिताभ की नकल की। फिर घबराकर मिथुन की तरह।तुरंत बाद गोविंदा की तरह झटके खाने लगे।डांस का क्या शमा बंधा।जगह कम थी।इसलिए शरीर टकराने लगे।पता नहीं सोनिया प्रिया और रशिका को कैसा लगा।मगर उन्हें करीब को छूकर आए चार यारों को हफ्तों नींद नहीं आई। वो चूक गए थे।उनका बर्थ डे गुज़र चुका था।वो इस संकोच में ही पार्टी नहीं कर सके कि पता नहीं कोई लड़की आएगी या नहीं।सुधाकर बाज़ी मार चुका था।लाजपत नगर की वह शाम बिहारी लड़कों के कई कमरों में पार्टी का नया सवेरा ले आई।पार्टी की योजना बनने लगी।

हकीकतनगर की लड़कियां, हडसन लाइन की लड़कियां जो नोट्स के बहाने संपर्क में आ चुकी थीं, बर्थ डे पार्टी की चीफ गेस्ट होने लगी।बसंत पंचमी के बाद सरस्वती विसर्जन में डांस करने वाले लड़के अब बर्थ डे पार्टी में डांस करने लगे।हर पार्टी के बाद चर्चा आम हो जाती कि किसका इशारा किस तरफ था।क्या वह चाहती है या नहीं।हाथ पकड़ने से लेकर कंधा छूने की बातें एनसीईआरटी की बोर किताबों से अधिक रोचक होने लगीं।ऐसी ही एक बर्थ डे पार्टी में प्रमोद जी ने सोनिया के कमर में हाथ डाल दी। प्रिया सिनेमा में कोई अंग्रेजी फिल्म देख कर आए थे।टैप डांस के बारे में पता चला था।सो आज़माने का जोखिम उठा लिया।बात आग की तरह फैल गई।सोनिया के लिए सामान्य था मगर तमाम गाली सुनने के बाद भी प्रमोद जी महीनों तक थिरकते रहे। वो आईएएस बनने से पहले अब एक बेहतर डांसर बनने का ख्वाब देखने लगे।

लालू प्रसाद यादव को पता ही नहीं चला कि बिहार के बाहर एक बड़ा सामाजिक बदलाव होने लगा है।माई फैक्टर मुस्लिम यादव फैक्टर नहीं रहा।बल्कि मैं वाला माई हो गया।मैं कैसा दिखता हूं, मैं क्या खाता हूं, मैं क्या पहनता हूं, मैं क्या सुनता हूं। बिहारी छात्रों ने इन सवालों के जवाब दिल्ली की लड़कियों के लिए ढूंढने शुरू कर दिए।

13 comments:

MUKHIYA said...
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RISHIKESH said...

Sabit kar diza guruji aapne....ki aane wale samay me English Patrakaro ki bheed me bhi aap apni pehchan banayenge.....

Is MY Samikaran ko chhed kar aapne sabit kar diza ki patrakar samaz ke jatil muddo ko bhi badi he sahaz andaz me kah sakta hai....

Bahut Bahut Dhanyvaad Guru....

tejas said...

बिहारी लडके ही बता सकते हैं पर दिल्ली की लड्कियों का बहुत सजीव चित्रण है। किसी दिल्ली वाली ने कुछ नही कहा?
मैने इस रचना के सारे भाग पडे हैं, और अच्छी कहानी के लिये धन्यवाद

RISHIKESH said...

Ek bat aur kahna chahunga ki isi dharatal par aap bihar k logo me jo vaicharik badlao aaya ha, use likhe. ab tak jo likha ye badlao hai lekin bihar me iske asar ko MY se aage badhayenge to zyada achha rahega....aap kya kahte hai????

Aur shobhna k maut par aapne jo jawab diya wo zaruri tha kyonki mazak mazak me log kuchh bhi kah dete hai. Un sabke liye ye mazak ho sakta hai lekin sabke liye nahi...
Iske liye bahut Dhanyavad

प्रभाष कुमार झा said...

रवीश जी,
दिल्ली में पढ़ाई-लिखाई करने वाले बिहारियों की व्यथा,कथा और मनोदशा का बहुत सजीव चित्रण कर रहे हैं। आशा करता हूँ आगे का हिस्सा भी इतना ही रोचक होगा। कृपया निरंतरता बनाए रखिए,बीच में दो-तीन से इंतजार कर रहा था।

प्रभाष कुमार झा said...

रवीश जी,
दिल्ली में पढ़ाई-लिखाई करने वाले बिहारियों की व्यथा,कथा और मनोदशा का बहुत सजीव चित्रण कर रहे हैं। आशा करता हूँ आगे का हिस्सा भी इतना ही रोचक होगा। कृपया निरंतरता बनाए रखिए,बीच में दो-तीन से इंतजार कर रहा था।

MUKHIYA said...
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azdak said...

सही है, लालमोहन लोक का अच्‍छा झांकी उतार रहे हैं..

abhineet kumar said...

एक बेहतर प्रक्रिया..
और एक बेहतर नतीजा..
इसके अलावा और क्या कह सकते हैं...
लेकिन शायद सफलता की गुंजाइश उसमें हो सकती थी....
सफलता लड़की से मोहब्बत करने की..
सफलता उनको और भी बेहतर ढंग से समझने की..
आप अगर कुछ आगे तक जाएं तो शायद एक नई तस्वीर खुलकर सामने आएगी....
यादों के झरोखे से पर्दा हटाइए....
धुंधली ही तस्वीर सामने तो आएगी

ePandit said...

वाह प्रमोद जी, बहुत जीवंत वर्णन। रुचि बढ़ती जा रही है।

Ashutosh said...

Ravish ji, apke blogs sach men dil ke bahut karib se gujar jate hain... yeh bihari ladko ka bilkul vastavik sa chitran lagta hai, main bhi anubhav kia hai.... jo bihar ke log IIT main ate hain...

aur NDTv pe apki kanhayya la wali story bhi dekhi.... it was too good

sushant jha said...

sir..mere khyal se thoda bihari ladkon ka profile IAS aspirant se hatakar aur broad kijiye...main sweekarata hoon ki ye aapka bhoga hua yathartha hai..ki aap sirf IAS-numa ladkon ki kahaniyan hi kah rhe hai..but aapke time mein jo ladke MBA aur doosari taiyari kar rhe the..woh thoda..jyada himmati jaroor honge...

rashmi said...

ब्लॉग को पढ़कर लगता है कि एक नई दिशा में आगे बढ़ते जा रहे हो.. पर वास्तविकता के धरातल में ये बात झूठी साबित हो जाती है क्योंकि ये कहानी है जिसमें बिहारी जीवन की परते दर परते खोली जा रही है। रोचकता बढ़ती जा रही है..