गोलाबाज़। इस शब्द का ज़िक्र कामिल बुल्के से लेकर हरदेव बाहरी की डिक्शनरी में नहीं मिला। जनसत्ता के प्रभाष जोशी के लेख में गोलंदाज़ का ज़िक्र आता था। मगर उससे गोलाबाज़ के अर्थ का कोई क्लू नहीं मिला। दीपक और उसके तीन दोस्त इस मंत्र नुमा रहस्यमयी शब्द के तीर से घायल हो गए। मधुकर का ख्याल आया। वो जानता होगा कि गोलाबाज़ क्या होता है। आखिर स्टीफेंस के राजेश में क्या खास है कि पटना की सुप्रीया उसी से बात करती है। पता करना होगा। चल मधुकर के घर। डीटीसी मुद्रीका पकड़कर गोविंदपुरी से मुखर्जीनगर की तरफ चल दिया गया। हकीकत नगर से गुजरते ही इंदिरा विहार के पास राकेश मिल गया। सुप्रीया के साथ। आंखें फटीं रह गई। गोलाबाज़ जा रहा है। गोला दे रहा है। ये गोला क्या होता है जो दिए जा रहा है?
इन सब सवालों से टकराते चार यार रिक्शे टैंपों से बचते बचाते इंदिरा विहार की तरफ मुड़ गए। अंदर जाते ही फुकना मिल गया। फुकना अक्सर फूको दरिदा को लेकर परेशान रहता था।हर बात में वह दरिदा और फुको का विश्लेषण करने लगता।फुकना ने देखते पूछा इधर क्या करने आ गए? नार्थ कब आए? दिल्ली में दो ध्रुव हैं। एक नान कैंपस घसीटा कालेज जो दक्षिणी ध्रुव पर स्थित हैं। दूसरा कैंपस इलीट कालेज जो उत्तरी ध्रुव पर स्थित है। नार्थ में रहने या इस ध्रुव के कालेज में पढ़ने वाले बिहारी लड़कों का थोड़ा अहंकार बनने लगा था। स्मार्ट भी कह सकते हैं। दक्षिणी ध्रुव से आए चारों यारों ने कहा- पता करने। फुकना ने कहा क्या पता कर रहे हो? दीपक ने कहा ई गोलाबाज़ का होता है रे? राकेश जी वा छौड़िया सब को देख कौन चीज़ पर चालू हो जाता है हो। फुकना जिसका नाम फूलचंद प्रसाद था हंसने लगा। बुरबक है का रे तू सब। गोला नहीं मालूम।
ये पीसपीओ नहीं जानता। इस विज्ञापन के आने के कुछ साल पहले ही फुकना ने कह दिया था कि कारे गोलाबाज़े नहीं मालूम तू सब को। दूर साला। दीपक गुस्सा गया। बोला बेसी ज्ञान देगा रे। बताता काहे नहीं है। फुकना कहा ज्ञान देना ही तो गोला देना है। दीपक को काठ मार गया। जो वह जानता था उसी का एक पर्यायवाची नाम। जिसके लिए दो ध्रुवों की यात्रा करनी पड़ी। बाकी के तीन दोस्तों में एक था प्रमोद। प्रमोद जी उम्र में बड़े थे। बीएससी करके बीए कर रहे थे। सिविल सर्विस के लिए। हिस्ट्री में। ताकि मेन्स में हिस्ट्री से ज़्यादा स्कोर कर लें। प्रमोद ने कहा कि राकेश जी ज्ञान देते रहते हैं। उसी से पट जाती है का। एतना इजी है।फुकना बोला आपकी शकल पर रिटायरमेंट दिख रहा है तो कैसे बात करेगी कोई। पढ़ाई कीजिए। न पढ़िएगा तो तेल में जाइयेगा।
यह कहते हुए फुकना पोस्ट मार्डन थ्योरी पर आ गया। सेकेंड ईयर में होने के कारण एक सेमिनार में फूको देरिदा के बारे में सुमित सरकार को बोलते सुना था। बोलने लगा कि रिलेशनशिप बदल गया है। नॉलेज के आधार पर रिश्ते बनते हैं। जहां मन मिलता है यानी मन को खुराक मिलती है वहीं संबंध होते हैं। संबंधों का बंधन वहीं हैं। न कि वहां जहां सात फेरे लिए जाते हैं। दीपक प्रमोद और बाकी के दो दोस्त। खिसक लेते हैं। गोलाबाज़ का मतलब आ चुका था। फिर से रिक्शा पकड़ कर मुखर्जी नगर की तरफ चल पड़े। राकेश और सुप्रीया बत्रा सिनेमा में डर देखने जा चुके थे। चारों को पास से गुज़रता हर नौजवान जोड़ा राकेश सुप्रीया लगता था। गोलाबाज़ लगता था। हमनी भी गोला देंगे।सीढ़ी से जब भी बरसाती वाली उतरेगी, हमारी आवाज़ नीचे तक जाएगी। कभी तो सुनेगी वो।दीपक ने प्रमोद जी को कहा कि अरे बुढ़वा छोड़ न। कबाड़ीवाले की तरह हांक लगाने से दिल्ली की लड़की तुमको भाव देगी रे। औकात में रह। एक बार सिविल निकल जाए फिर यही लड़की का बाप नवगछीया आवेगा। बाबू का गोड़ धरने।सक्सेस भी चीज़ होती है। सांत्वना देते हुए प्रमोद जी मुखर्जी नगर की बालकनियों में लड़की ढूंढने लगे। चार यार मंज़िल पर पहुंच गए।
मधुकर यह शब्द सुन कर खूब हंसा। बोला वही तो मैं करता हूं। देखते नहीं हो। अरे दिल्ली की लड़की को कुछ मालूम नहीं होता। तुम्हारे पास कार और निरूला में खिलाने के पैसे तो नहीं है। तो कैसे आगे बढ़ोगे। कुछ न कुछ तो गोला देना होगा न। बताना पड़ता है। प्राचीन भारत के मगध साम्राज्य से लेकर बोलो कि कैसे तुम अपने ख्यालों में पोस्ट माडर्न हो। प्रमोद ने कहा बिना माडर्न हुए पोस्ट माडर्न कैसे हो गए। मधुकर ने कहा कि ज्ञान दो। किसी भी चीज़ पर। उनको बोल कि गुप्त काल पर जो नोट्स बनाया है वो सबसे बेहतर है। दस किताब पढ़ कर लिखा है। दस पेज का नोट्स पढ़ लो फिर कुछ पढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। नोट्स के लिए वो पीछे पीछे घूमेगी। जब रातों को वह तुम्हारे नोट्स पढ़ेगी तो तुम उसके करीब पहुंच जाओगे। तुम्हारे विचार लिखावट सब उसकी बांहों में। सिर्फ तुम नहीं। तब तक कोशिश करते रहो। उसे बताओ कि दिल्ली की ज़िंदगी में रखा क्या है? आईएएस बनने के बाद सहारनपुर या सासाराम के कलेक्टर बन कर दुनिया को बदलना है। तुम दहेज में यकीन नहीं करते। समाज को बदलना होगा। बिहार की खराब हालत है। मगर तुम्हारे पिताजी के पास सैंकड़ों एकड़ ज़मीन है। प्रमोद ने कहा लेकिन कहां है। कुछ बीघा है। मधुकर ने कहा कि देखो हर बिहारी दिल्ली आकर लड़कियों के सामने खुद को ज़मींदार बताता है। वो इम्प्रैस होती है। लैंडेड फैमिली का लड़का है। फिर बोल कि तुम फ्यूडल नहीं हो। यू वांट टू चेंज। यू वांट टू बिकम आईएएस। फिर बोल किस तरह से देर रात पढ़ते पढ़ते तुम बाड़ा हिंदूराव चले गए। वहां देखा कि कई बिहारी वक्त बर्बाद कर रहे हैं। तुम फर्क बताओ कि तुम उनके जैसे नहीं हो। लड़की सीरीयसली लेने लगेगी। दिल्ली की लड़की है न। गोला तो देना ही पड़ता है। दीपक ने कहा मधुकर तुम तो दे देते हो लेकिन तुमसे पट गई का। हमनी वही गोला दे जो तुम दे रहे हो। इसके डिफरेंट कैसे बनाए। मधुकर ने कहा...
क्रमश...........
13 comments:
आअप ने आई. ए. एस. का इम्तेहान कितनी बार दिया थ??? सच-सच बतईयेगा?? मुखर्जी नगर गुरुद्वारे के बाहर तो आपने भी आपना फ़र्ज़ निभाया था ना. ये औटोबायोग्राफ़ी अच्छी है. :-)
सही सही जा रहा है । लेकिन कुछ लडकियों की तरफ का फंडा भी चले ।
छूछे सुप्रीया पे कहानी खींचे जा रहे हैं? बकिया की लड़कियां कहां गईं? एकदम मेले-मेल हो रहा है, फिमेल एलीमेंट का पत्ते नहीं है! फिर नाम दिल्ली के लड़के रखना चाहिए था, ना?
bhai ye baata to ki kitne part aane baki he...
छूछे सुप्रीया पे कहानी खींचे जा रहे हैं? बकिया की लड़कियां कहां गईं? एकदम मेले-मेल हो रहा है, फिमेल एलीमेंट का पत्ते नहीं है! फिर नाम दिल्ली के लड़के रखना चाहिए था, ना?
रवीश जी, प्रमोद जी ने लिखी बड़ी कमाल कि बात है । मुझे तो हसी आ रही है :) :) LOL
बुरबक है का रे तू सब। गोला नहीं मालूम।
kamal hai Ravishjee, zyada nahi bolunga Gola ke bare me nahi to aap yahi bolega....hum jante hain...
e Golabaz h-e-ai hai..bara aalag
ये प्रमोद भैया... ई रवीश भइयवा तो आपको गोला दे दीहिस... कहते थे न आपको कि बीस साल बाद के नाम पे रवीशवा से मत अझूराइये... अब भोगिये... कर दिया न आपको रिटायर...
hahahahahahahahha.. bahut khoob.. chalte rahiye..
ab kuchh BIHARI words USE huye hain ! dhire dhire thoda thoda maja aa raha hai ! kabhi mukhiya jee ke DAALAAN ki taraf bhi aayeeye :)
Ranjan R Sinh , NOIDA
bahut nimaan ba..aaisehi likhi aur raauaa..
ये कमेंट मैं आपके उन चाहने वालों को दे रहा हूं.. जिनकी प्रतिक्रियाएं या यूं कहें तो जिस तरह की प्रतिक्रियाएं शायद देश के किसी ब्लॉग में दिखाई ही नहीं देती हैं...
ये भी नहीं कह सकता कि आपके प्रति इनका थोथा प्रेम है.. क्योंकि जो शब्द इनमें नजर आते हैं.. ऐसा लगता है कि जाने-अनजाने आपसे छूट जाते हैं.. और उसे पूरा करने की जिम्मेदारी इन्ही के कंधों पर होती है...
बाकी क्या लिखूं... बस खत्म होने के इंतजार में...
अभिनीत
paisa hota to cinema banadete
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