दिल्ली की लड़कियां

मगध एक्सप्रेस से उतर कर दक्षिण दिल्ली के गोविंदपुरी की गलियां। बिहार से वाया दिल्ली यूपीएससी का सफ़र कई लोगों ने ऐसी तमाम गलियों मोहल्लों से तय किया है। कई लोगों ने अगले स्टेशन पर गाड़ी बदल ली। तो कुछ तैयारी के नाम पर सिर्फ जवान ही बने रहे। अपने झड़ते बालों के बीच यूपीएससी का सपना उन्हें बुढ़ाने से रोकता रहा। लेकिन सबके अनुभवों में एक बात आम रही। दिल्ली की लड़की। ठीक वैसे ही जैसे सबका सामना बरसाती शब्द से दिल्ली में ही पहली बार हुआ। जून के महीने में बरसाती नाम सुन कर लगा कि बारिश होगी तो बरसाती ओढ़ कर कहीं जाने की चीज़ का नाम होगा बरसाती। मकान मालिक ने कहा छत पर बचे खुचे कोनों में बनाए गए कमरे को बरसाती कहते हैं। बरसाती का बरसात से कोई लेना देना नहीं होता लेकिन तपते सूरज का मकान से डायरेक्ट संबंध बरसाती से ही हुआ करता है। छत के कोने में बनी बरसाती के एक कोने में कोई और रहने आ गई। ये वो लड़कियां हैं जिनमें से कई आईएएस या मैनेजर बनकर लौटे बिहारी लड़के के साथ तो नहीं जा सकीं मगर उनकी कामयाबी के सफर में हमेशा मौजूद रहीं। लड़कियों को भले न मालूम चला हो या फिर मालूम हो...बिहारी नौजवानों के अकेलेपन को दूर करने में उनके योगदान को कोई नहीं भुला सकेगा। वो सिर्फ सपनों में आती थीं। ब्रश करते वक्त या चाय की दुकान पर बैठने से पहले एक बार छत की तरफ देख लेने का अभ्यास एनसीईआरटी के चैप्टरों के देख लेने के अभ्यास सा बना ही रहा।

ख़ैर इन बरसाती के लिए भी मकान मालिक खूब नखरे करता। मगध एक्सप्रेस से आया पतला दुबला नौजवान यह सोच कर रहने को तैयार हो गया कि कुछ करना है तो त्याग करना होगा। बरसाती में रहना होगा। कुछ का मतलब यूपीएससी से है। इस कुछ के रास्ते में कई पड़ाव आने थे। जिसका अंदाज़ा नहीं था।

बरसाती की छत से जुड़े कई मकानों की एक खिड़की जब भी खुलती थी लड़की झांकती नज़र आती। एनसीईआरटी की प्राचीन भारत की किताब में मगध साम्राज्य के पतन के कारणों को पढ़ते पढ़ते वह कई बार मोहब्बत की कल्पनाओं में गिरने लगता। जब भी वो लड़की आती, मगध साम्राज्य का अहं टूट जाता। बिना उसके देखे या देख लिये जाने की उम्मीद में वह पिघलता हुआ सा एक लड़का था। बिहारी। यह नाम नहीं। मगर इस नाम के बिना दीपक नाम का कोई मतलब भी नहीं। बरसाती में रहने वाला बिहारी।


दिल्ली में आए कई नौजवान बिहारियों की स्मृतियों में कोई न कोई लड़की (दिल्ली वाली लड़की) है। जिसे वह देखकर चौंका होगा, उसके आने जाने का समय याद रखता होगा और कई बार जनरल स्टडी की भारी और बोर किताब के बीच उसे बुकमार्क बनाकर चुपचाप पढ़ता होगा। भारत के जीडीपी के आंकड़ों के बीच वो लड़की। होती ही थी। बिहार में अपने अपने इलाके में ये लड़के जवान तो हो गए मगर इस तरह से लड़कियों से साक्षात्कार नहीं हुआ। इससे पहले इतने करीब और मिलने के इतने मौके कहां आए। वो भी मिल जाया करती। आती जाती सीढ़ियों पर। उसके आने का कोई औसत समय नहीं निकाला जा सका इसलिए चार लोगों में फैसला हुआ कि दरवाज़ा खुला रहेगा। और पढ़ते रहा जाएगा ताकि उसकी एक नज़र हमेशा के लिए यकीन में बदल जाए कि हम भी सूटेबल ब्वाय हैं। विक्रम सेठ के नहीं मगर विक्रमशीला बिहार के तो हैं ही।

लालू यादव के राज और खंडहर होते बिहार से भाग कर आए बिहारियों की कल्पनाओं में आने वाली दिल्ली की लड़कियां उनके भीतर बिहार की खराब हालत के दर्द को हल्का करती रहती। इन्हीं लड़कियों के कारण कई बिहारियों का संपर्क बहुत जल्दी बिहार से टूट गया। चारा घोटाला के शोर से बहुत दूर यूपीएससी के सपनों के बीच छोटे छोटे सपने देखे जाने लगे। सरोजनी नगर या बस स्टाप पर खड़ी लड़कियों को देखते देखते उनके सपने बदल गए। बाज़ार और बस स्टाप पर खड़ी लड़कियां कब अपने घर चलीं गईं और उनकी जगह दूसरी लड़कियां बिहारी नौजवानों के सपनों में आ गईं। किसी को पता ही नहीं चल पाता। दिल्ली की कई लड़कियों ने अनजाने में ही सही अपने हाव भाव और अंदाज़ से कई बिहारी नौजवानों को बदल दिया। वो कैट हो गए। होना ही था वर्ना कब तक देखते ही रहते। कभी न कभी कोई पलट कर तो देखेगी। बस इसी एक चांस ने बिहार के बाहर दिल्ली आकर ढाबे में खाने वाले लड़कों को बदल दिया। काश.....क्या करें..... अंग्रेज़ी आएगी तब न लड़की आएगी। चार यारों की गोष्ठियों में बिहारी युवकों का दर्द ये था। न कि जातिवाद या लालूवाद। लड़की के आने के इंतज़ार में अंग्रेजी नहीं आने का मातम।

क्रमश.....

19 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

Ravishji,
maine is lekh ko padha...
maza aa gya, yah jankar ki yah to abhi aur bhi chalega...are aapne Kramsha jo likh diya hai...
Mukherjee Nagar se Lakshminagar tak ke abhi taak ke safar me aise baaten humesha se uth ti rahi hai..
aaj padh kar man JHoom Bara Bar Jhoom karne Laga...
Girindra

Aarish said...

saral... aur bahut sunder... "Kramasha " shabd ne curiosity badha dee.. will savour the flavour till you come back and give another flavour... aur ye bihariyon ki nahin , har jagah "padhne waale" yuvkon kaa sahaara yahi ladkiyan hain.. kabhi dilli kabhi chandigarh mein bhi..

Ranjan said...

Shayad , 10 saal me tasveer bahut badali hai ! Socialist aur Communist "IAS-IPS" ki jagah IT sector aur Management le liya hai ! BIHARI ab UPSC ko nahi balki ek NAYEE duniya ko apana rahe hain ! Par , Kuchh hain jo SOCIO-ECONOMIC jaise sjabdon se ubar nahi paa rahe hain aur UPSC jaise MAKADI ki JAAL se abhi tak nahi Nikal pade hain !

JARA "DU" aur "UPSC" se bahar nikaliye , BIHARIYON ki Badali huyee tasveer NAZAR aayegee aur oos TASVEER me hum aur aap apani GRAY HAIRs ko khojenge !

ravi said...

ravish ji,
ati sundar. kya likha hai bhai. man jhoom gaya. kuch motihari ke bhi sansmaran likh daliye.

azdak said...

ओह, कितना मार्मिक.. फिर आगे?.. सच-सच बताइएगा!

मैथिली गुप्त said...

रवीश जी अच्छे शब्द चित्र उकेरे हैं

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

पहले पहल पढकर ,जब ' क्रमश:' देखा तो लगा अभी पूरी बात हुई नही है शायद. बरसाती की कोई और खिडकी है जो खुलने वाली है.

मैंने महसूस किया है कि यू पी एस सी से इतर भी हो चले हैं अब नौजवानों के सपने. हां मैं आपकी रचना के केन्द्रबिन्दु में जो नायक है, उसे मात्र बिहार तक सीमित नही रख रहा,बल्कि उसका साधारणी करण करके "दिल्ली से बाहर के किसी पिछडे क्षेत्र से आया नौजवान" मान रहा हू.

हां ,सपने भले ही बदल गये हों ,पर उन पूरे-अधूरे सपनों मे कहीं छुपी नायिका अभी भी मौजूद है. वहीं के वहीं.

अभय तिवारी said...

सही है..

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब आगे का इंतजार है!

sanjay patel said...

रवीशभाई.
क़स्बे मे क़स्बों से महत्वाकंक्षा लेकर आती नौजवान पीढ़ी,उसके ख़्वाबों और ज़िन्दगी से जुड़ी सचाइयों को रेखांकित करता ये आलेख मन को छू जाता है.रिलायंस फ़्रेश,सेंसेक्स,माँल्स,इंटरनेट,मोबाइल हैंडसैट्स की चकाचौंध के बीच ऐसा बहुत कुछ है जो परिदृष्य पर नहीं आ पाता...आप ले आए.साधुवाद.

avinash said...

श्रद्धेय रवीश जी आपके इस शोधपूर्ण आलेख के लिए धन्यवाद,लगता है आपने इस आलेख को जिया है......एक लिंक भेज रहा हूं एक नजग मार लीजिएगा..........http://apacheavinash.blogspot.com/

Rajesh Roshan said...

मैंने कुछ लिखा तो मसिजीवी जी के कमेंट ने बताया कि इस विषय पर आपने भी कुछ लिखा है । लिखा नही कमाल का लिखा है । केवल जो चीज इसमे अच्छी नही है वो है क्रमश.....

abhineet kumar said...

रविश जी,
आपका तात्कालिक लेख देखकर ज्यादा दिन तो नहीं पर हाल की ही यादें ताजा हो गई.. बस आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अब बहुत कम ही बिहारी इतने ऊंचे सपनों के साथ इतना कष्ट झेल पाते हैं.. देशबंधु कॉलेज में पढ़ते हुए मैंने भी पाया कि अब बरसाती बिहारी मजदूरों के लिए हो चुका है और ऊंचे दामों में मिलते फ्लैट्स में पढ़ाई अपना सर फक्र से ऊंचा कर रही है... अब जबकि पढ़ाई में कम्प्यूटर ने महत्वपूर्ण 'योगदान' शुरु कर दिया है.. लड़कियां देखना.. पटाने जैसे दुस्साहसों की दहलीज पर भी पहुंच चुका है.. ये महज एक इलाके की बात नहीं है शायद उस जेनरेशन की झलक है जिसे निश्चय ही आपने अपनी नजर से उस समय देखा था.. फिलहाल सीमाओं में ही विकास की मीनार खड़ी करता देशबंधु कॉलेज और बदलती सोसाइटी ने सारा जायका ही बदल दिया है.. अब तो 'याद आती लड़कियां' की जगह एक्सपर्ट कमेंट्स ने ले रखी है...
पर इन सबके बीच भी अगर कुछ याद आता है तो बस वो ट्रेन जिससे आज भी सैकड़ों-हजारों सपने दस्तक रोज सुबह शोर-शराबे में अपनी दस्तक देते हैं

ling_bhedi_astra said...
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ling_bhedi_astra said...
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Arun Arora said...

रवीश जी कहा खोये हो जरा बीपीओ की छुट्टी होते समय कभी नजारा देखो..भाइ सब को सब मिल गया है..आप जरा कोशिश करो ये पत्तरकारी छोड कर.बीपीओ की नौकरी ज्वाईन करो लाईन लगी मिलेगी...;)

littichokha said...

वाह !!!

देवांशु वत्स said...

Hi Ravish jee
"Dilli ki ladkiyan" bahut sundar ban padi hai !!!
Devanshu

G Shankar said...

HI Ravishji, Mainne aapka lekh padha, bahut realistic laga fantastik one.
Main aapka NDTV prime time ka fan hu..main roj 9 pm NDTV dekhta hu..but jab aap nahi aate hain to maza nahi aata hain..

Gauri Shankar
+91-9818034246