मैंने सिर्फ बहस की गुज़ारिश की थी। प्रतिक्रिया में बुद्धिजीवियों को गरियाने से क्या फायदा? मेरा मकसद परंपरा बनाम विज्ञान के बीच बहस नहीं छेड़ना बल्कि दोनों पैमानों से समझना है। पश्चिम में इतना तो हुआ ही है कि वहां की पारंपरिक मान्यताओं के खिलाफ वैज्ञानिक धारणाएं बनाईं गई हैं। परंपराओं को परखा गया है। जो नहीं परख पाए वो क्रिसमस या धार्मिक त्योहारों के रूप में मनाते रहते हैं। मगर वैज्ञानिक आधार और सोच किसी मूर्ख की कल्पना में नहीं बने हैं । वे भी इसी समाज के बीच बहस मुबाहिसों से बनते हैं।
एक पाठक मित्र के अनुसार विज्ञान ने कहा है कि जीन से बीमारियां एक पीढीं से दूसरी पीढ़ी में चली आती हैं। तो क्या इशारा गोत्र की तरफ है? डीएनए या जीन की बात क्या गोत्र की बात है? मुसलमानों में गोत्र की शर्त नहीं होती? तो क्या हर मुसलमान बीमार होता है? स्वस्थ्य नहीं होता? उसी तरह से ईसाई धर्म के लोग भी गोत्र नहीं मानते। बौद्ध धर्म के लोग मानते हैं या नहीं, मैं नहीं जानता।
एक और उदाहरण देना चाहूंगा। मेरी एक दोस्त हैं। उनके माता पिता ने अंतर्राज्यीय और अंतर्जातीय विवाह किए। उनसे सिर्फ एक लड़की हुई। वही जो मेरी दोस्त हैं। अब आप कह सकते हैं कि जो पिता का गोत्र है वही बेटी का होगा। ठीक मान लिया। लेकिन उस लड़की ने दूसरे धर्म के पुरुष से शादी की। अब उसकी एक बेटी है। इस मामले में गोत्र कहां गया? गायब हो गया क्या? कोई मेरी दोस्त की बेटी का गोत्र बता सकता है?
मैं इस बहस में पड़ना चाहता हूं। सबके अनुभवों और जानकारी के आधार से कुछ सीखने में हर्ज नहीं। हो सकता है गोत्र के व्यावहारिक पक्ष हों मगर इसे लाठी के बल पर तो साबित नहीं किया जा सकता। परंपरा के नाम पर हम कई वाहियात चीज़े ढोते रहे हैं। और पश्चिम को गरियाने के नाम पर बेतुकी बातें करते रहते हैं। जैसे पश्चिम के प्रभाव ने सीखाया कि जाति गलत है। औरतों को आज़ादी मिलनी चाहिए। तो क्या पश्चिम का गान नहीं करेंगे। कौन सा आपका साठ साल पुराना राष्ट्रीय स्वाभिमान आहत हो जाता है। अब आप एक दो ऋषि मुनियों की पत्नियों या उन्हें चुनौति देने वाली महिला विद्वानों की मिसाल दे कर यह न बतायें कि भारतवर्ष में महिलाओं का आदर था। विधवा विवाह का समर्थन और बाल विवाह की आलोचना पश्चिम की मान्यताओं ने सीखाईं हैं। पश्चिम की बहुत सारी मान्यताओं का हमने गलत इस्तमाल भी किया है। गोत्र से हिंदू धर्म के नागरिकों ने क्या हासिल किया है? इसका लाठीगत विरोध करें या तर्कसंगत। सिर्फ नारेबाज़ी नहीं, कहीं से कुछ पढ़ने को मिले यानी शोध वाली बात हो तो बताइये। साझा कीजिए।
7 comments:
सामान्य सहमति है-
पर लेखन के शिल्प पर एक बात रवीश, यदि आपके किस टीवी कार्यक्रम में विज्युअल न हों तो कैसा लगेगा कार्यक्रम ? इसी प्रकार लिंक ही वह चीज है जो हाइपर टेक्स्ट को टेक्स्ट से दूर करती है- कृपया ल्रिको का प्रयोग करें यह लेखन को समझने में आसान बनाता है- इससे साथी चिट्ठाकारों की टीआरपी बढ़ने का 'खतरा' तो है पर मित्र वे भी साथी ही हैं।
मेरा अपना मानना है कि गोत्र में शादी करने से किसी का कुछ भला होता है तो करे और जरूर करे लेकिन गोत्र को ढोना कही कि अकल्मंदी नही है ।
गोत्र क्या है ? सिर्फ ये ट्रेस करना कि आपके कुलपुरुष कौन थे , किस ऋषि/आदिपुरुष से आपके कुल ,आपके वंश का उदगम हुआ था । जैसे आदिवासियों में टोटेम होता है , जो कि कोई जानवर , नदी , पेड पौधा ,कुछ भी हो सकता है । ये मात्र अपने रूट्स को , अपने समूह को अईडेंटिफाई करने की स्वभावगत जिज्ञासा की आश्वस्ति होती है । किसी आदिम प्रबल लालसा की तुष्टि मात्र ।
ये मान्यता है कि एक गोत्र के लोग एक वृहत परिवार के सदस्य है इसलिये विवाह एक गोत्र में स्वीकार्य नहीं । ये तब तय किया गया होगा जब समूह छोटे हुआ करते थे और इंसेस्टुअस रिश्तों को रोकने के लिये ये नियम प्रभावी साबित हुआ होगा । आज हज़ार वर्षों बाद चूँकि गोत्र की शुद्धता अंतरमिश्रण की वजह से नहीं रही , गोत्र का मतलब भी सिर्फ इतनी सार्थकता रखता है कि आप किस कडी से यहाँ तक आये हैं और अपनी संतति द्वारा आगे कहाँ तक जायेंगे , इसका एक सैद्धांतिक और मानसिक तोष ,अगर आप चाहते हों तो मिल सके ।
ऐसी तमाम मान्यताएं जो समाज का मान बढ़ाने की बजाए घटाएं और वे तमाम परंपराएं जो आगे ले जाने की बजाए पीछे ले जाएं, उपेक्षा के लायक है। विरोध करें तो बहुत अच्छा।
शब्द पर मत जाइये। गोत्र शब्द में कोई बुराई नहीं है। यह सिर्फ एक समूहवाची शब्द है। कुछ जानकारियां मैने जुटाई हैं जिन्हें विस्तार से आप मेरी साइट -http://shabdavali.blogspot.com/ पर पढ़ सकते हैं।
ravish ji aapne bilkul dheek kaha hai ki gotra ko hum ladhi ke bal pr dho nahi sakte. or ye bhi sahi hai ki aise bishyo pr koi shodhparak kam ya jankari jutai jaye..
lekin.. kisi ek do ghatna se ye man liya jaye ki samaj pr koi khatra aassan hai, to jaladbazi hogi..kyonki pashchim se bhi cheeze li gayi hai or achchhai jahan se bhi aaye svagat hona chahiye, lekin apne samaj me kuchh bhi nahi ho rha ho aisa bhi nahi samajhana chahiye..
hal ke varsho me jis haryana me gotra ko lekar jo vivad uthe hai unhein me vahan paida haone ke karan to samajh hi skta hu, dilli mein rahte huye bhudhijano ki badolat bhi samajbhujhne ki koshish me rahta hu.
mena dekha hai ki gotra bandan kamzor pad raha hai.
maslan, pahle shadiyon me paanch gotro ka milan yani paanch gotro me shadi sambhav nahi hoti thi..
jaise kisi ki bhi shadi se pahle ladke ya ladki ke gotra ke sath sath mataji(mother),dadi(grandmother), or nani tak ka gotra milan hota tha or ye char charno me ladka-ladki ke gotra ma milne par hi shadi sambhav ho pati thi.. lekin aaz var-vadhu ki nani ko es shart se bahr kar diya gaya hai. yahan tak ki kuchh jatiyan isse bhi aage badh gayi..
kul milakar charcha ho lekin poore bhartiya sandarbhon mein..
koshis karnge kisi tarah ki
parmanik jankari parkash mein aa ske...
mai blog ki duniya se judna chahta hoon pls mujhe bataye ki kya karun
Ravishji...
Mai ek ladki ko propose kiya tha.... vo mujhe sirf isliye reject kardi kyoki hum dono ka gotra same hai...
Ab ye blog mai uske saath share karunga....vo aapki fan bhi hai...
Shayad mera ghar bas jayee :D :D :D
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