क्या आपने सेमेस्टर के बारे में सोचा है?

सेंट स्टीफेंस के गणित के प्रोफेसरों ने प्रिंसिपल को खत लिखा है कि पहले सेमेस्टर की पढ़ाई खत्म होने के तीन दिनों बाद टर्मिनल इम्तहान हैं लिहाज़ा तैयारी का वक्त नहीं। खत में लिखा है कि बच्चे रो रहे थे। इतने विशालकाय कोर्स की तैयारी तीन दिनों में नहीं हो सकती। मास्टरों ने यह भी लिखा है कि गणित का कोर्स बड़ा है। सेमेस्टर के हिसाब से टारगेट टाइम दिया गया हैं वो काफी नहीं हैं। तमाम छुट्टियों के कारण शनिवार और रविवार को क्लास लेने पड़े फिर भी कोर्स पूरा नहीं हुआ। यह पूरा सेमेस्टरवाद टीचर और छात्र के लिए सज़ा की तरह हो गया है। हमारी तरफ से फीडबैक यह है कि यह सिस्टम पूरी तरह खरा नहीं प्रतीत होता है। टीचर चाहते हैं कि सर्दी की छुट्टी में से कुछ काट लें और तब इम्तहान करा लें, बीच का समय बच्चों को तैयारी के लिए मिले। प्रिंसिपल ने यह चिट्ठी वीसी को भेज दी है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में जब सेमेस्टर थोपा जा रहा था तब छात्र उदासीन रहे। कुछ छात्रों ने टीचरों का साथ तो दिया मगर बाकी को बड़ा मुद्दा नहीं लगा। सब कुछ नया कर देने के नाम पर सेमेस्टर भले ही अच्छा लगे मगर दुनिया के कई बड़े संस्थानों ने इसे नकारा है। कई जगहों पर सेमेस्टर सिस्टम वापस भी लिया गया है। इसके बाद भी शिक्षक छात्रों की पीड़ा समझ रहे हैं। ज़रूरी है कि शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर छात्र ज़्यादा सक्रिय हों। सेमेस्टर एक फटीचर नीति है।

10 comments:

Techpanthi said...

आपकी बात से पूरी तरह से ताल्लुख रखता हूँ, सेमेस्टर सिस्टम ऐसे संस्थानों में ही कारगर सिद्ध हो सकता है जहाँ छात्रों की शिक्षकों पर निर्भरता कम हो, पर हमारे देश के ज्यादातर संस्थानों में ऐसा नहीं है, सिर्फ दूसरे विदेशी संस्थानों से होड़ करने के लिए ऐसे सिस्टम को लागू करना बिलकुल अविवेकपूर्ण है

प्रवीण पाण्डेय said...

जहाँ अध्ययन अध्यापन में निश्चयात्मकता हो, वहाँ चल सकता है यह।

संतोष त्रिवेदी said...

शायद ही इस मुद्दे पर अब कोई गौर करे ! शिक्षा भी 'सिस्टम' का हिस्सा हो गई है !

Unknown said...

नमस्कार !

सेमेस्टर सिस्टम विद्यार्थियों का बोझ कम करता है.भारत में प्रवेश प्रक्रिया अति लंबी है. परीक्षा का नाम सुनते ही छात्र चाहते हैं कि टल जाय. परीक्षा से भागने की प्रवृति ठीक नहीं.

पढाई समय से पूरी नही हो पा रही है तो परीक्षा घोषित होने के पूर्व ही सोचना चाहिए. सेमेस्टर सिस्टम के साथ पाठ्यक्रम का समयबद्ध बटवारा होना चाहिए तथा उसी के अनुसार पाठ्यक्रम पूरा होना चाहिए. आखिर इतना विस्तृत पाठ्यक्रम क्यों होता है कि उसे पढ़ाया ही न जा सके. आखिर विदेशी संस्थान इसे कैसे पूरा कर लेते हैं.

विदेशों में प्रोफेसरवाद नही होता. पायालागन पालिटिक्स कम होती है. यहाँ की शिक्षा में भी भ्रष्टाचार की मार है. उच्च शिक्षा में तो भ्रष्टाचार भी उच्च स्तर का होता है.

Unknown said...

नमस्कार !

http://jppathakdeoria.blogspot.com/2011/11/blog-post.html

Unknown said...

नमस्कार !
परीक्षा
http://jppathakdeoria.blogspot.com/2011/11/blog-post.html

Rangnath Singh said...

आश्चर्य है की बीएचयू में सेमेस्टर लागु हुआ तो कोई खास विरोध नहीं हुआ.... कोई खतों-किताबत नहीं हुई !! जामिया में भी यह लागु हुआ तो कोई खास बवाल नहीं हुआ.... लेकिन डीयू में इसको लेकर इतना बवाल हुआ...अब पत्र लिखे जा रहे हैं !!

वार्षिक और सेमेस्टर सिस्टम के नफा-नुकसान हैं लेकिन भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के मद्देनजर 'सेमेस्टर' ज्यादा सही सिस्टम है... इसे और उन्नत किया जा सकता है...

याद रहे कि साल में एक बार परीक्षा लेने वाली पद्धति तो भारत में बुरी तरह पिट चुकी है...

Jain Vishal said...

I Really like the way of out of the box thinking of ravish and appriciate his presentation style.. Do keep it up

Jain Vishal said...

I very much agree to the Ravish Comments..... His is an excellent Presentor of the facts.

Aadarsh Rathore said...

सहमत...