मुंडा चमारा दां-पंजाबी गानों में दलितोदय

चमारों के मुंडे भी किसी से कम नहीं होते। उनके पास भी लैंड क्रूज़र और लाल सफारी है। उनकी बॉडी भी किसी जट गबरू जवान से कम नहीं। उनकी खूबसूरती,शोहरत बिल्कुल वैसी है जैसी बाकी गानों में तथाकथित यूनिवर्सल लगने वाले हीरो की। पंजाबी म्यूज़िक वीडियो में चमार युवकों और गायकों का उभार एक उत्सव की तरह लगता है। चमार लड़के भी जिप्सी में गर्लफ्रैंड के साथ घूम रहे हैं। गर्लफ्रैंड गा रही हैं कि चमारों के पास भी पैसे हैं। जिप्सी है लेकिन रौब नहीं है। रौब का इशारा इसलिए किया गया है ताकि पंजाबी गानों में जट युवकों के रौब के आगे खुद को विनम्र और शालीन पेश किया जा सके। लड़की आगे गाती है कि हमने मेहनत से कामयाबी और शोहरत हासिल की है। चमार के लड़के भी खुल कर खर्च करते हैं और उनके खर्चे की फुल्ल चर्चा है। पंजाबी म्यूज़िक वीडियो की दुनिया इन गानों से समृद्ध हो गई है। एस एस आज़ाद ने जब पहली बार अनखी पुत्त चमारा दां गाया तो गाना घर-घर में बजने लगा। चमारों की शादियों में इस गाने पर डांस होने लगे। एक चमार लड़के ने कहा कि हम कब तक जट गानों पर ही डांस करते रहेंगे। हमारा गाना होना चाहिए। हमने उनके गाने पर नाचा है,अब वो हमारे गाने पर नाच कर दिखाये। चमार गायकों ने कहा कि आखिर कब तक हमारे लड़के उन गानों में नाचेंगे जिनमें सिर्फ जट लड़कों की मर्दानगी का बखान होता है। हम तंग आ गए हैं गानों में जट लड़कों के महिमामंडन से।

इन गानों के गायक टकराव से बचने के लिए यह तो कहते हैं कि हमारे गाने किसी के मुकाबले में नहीं हैं लेकिन इन गानों में पहचान की बेचैनी एक किस्म का मुकाबला ही रचती है। इसीलिए अल्बम के नाम में भी सर्वण समाज से लोहा लेने को हौसला झलकता है। इनके नाम हैं-अनखी पुत्त चमारा दे,टौर चमारा दें,बेबे पुत्त चमारा दे,मुंडा चमारा दे। कुल मिलाकर मतलब इसी के आस पास ठहरता है कि चमार के लड़के भी किसी से कम नहीं। उनकी शान और आन भी किसी से कम नहीं। इन गानों में किसी का उल्लेख तो नहीं है मगर सुन कर साफ हो जाता है। वीडिया अभिव्यक्ति का ऐसा संसार जहां दलित नायक सुपरहीरों में बदल जाता है।

पिछले एक साल में पंजाबी म्यूजिक जगत में ऐसे पचासों गाने बने हैं जिनमें चमार और बाल्मीकि के लड़कों की जवानियां इतरा रही हैं। अपनी बलिष्ठ बाजुएं दिखा रही हैं और पैसे लुटा रही हैं। चमार के लड़के ऐश तो करते हैं लेकिन राह चलती लड़की को नहीं छेड़ते। एस एस आज़ाद के एक गाने में जट लड़कों की तरह मेले में जाकर मस्ती करने से मनाही है। आज़ाद अपने गाने में चमार नौजवान को रोकते हुए कहते हैं कि मेले में जवानी मत लुटा। संत रविदास और बाबा साहब अंबेडकर के वचनों को पूरा कर और समाज के लिए जी। ये सभी अल्बम इटली,स्पेन,आस्ट्रिया और इंग्लैंड में रिलीज हो रहे हैं। पहचान की बेचैनी को समझना हो तो यह भी जान लीजिए कि दलित समाज के लोग बड़ी संख्या में इनकी सीडी अपने परिचितों के पास खरीद कर भेज रहे हैं। एक गाने में बाल्मीकि लड़के गा रहे हैं कि अब वे कालेज जाने से नहीं डरते। क्लब जाने से नहीं डरते। उनकी मस्ती तो है मगर बलिष्ठ भुजाएं बताती हैं कि पंगा मत लेना। रूप पाल धीर का एक ऐसा ही गाना है। रुप पाल धीर भी दलित गायक हैं। उनके गाने में चुनौती भी है। हमारे लड़कों को बंदूक से मत डराओ। चमार के लड़कों से पंगा मत लेना,जवाब हम भी देंगे।

रूप पाल धीर कहने लगे कि आप हमें चमार कहिए। हम चाहते हैं कि लोग चमार कहें। एक और दलित गायक राज ददराल ने कहा कि हमारे लोगों को क्यों लगता है कि ये गाली है। एस एसटी एक्ट ने नाइंसाफी की। हमारी पहचान खतम कर दी। लोग ड़र से हमारी जाति का नाम नहीं लेते। ददराल की बात सही है कि कानून ने भी मदद नहीं की। चमार जाति के अपमानसूचक शब्द के इस्तमाल पर लगी रोक ने सम्मान पैदा करने में मदद नहीं की। हमारी जात को गाली बना दिया। इससे क्या जाति टूट गई? सोच बदल गई? लोग भीतर ही भीतर हमें चमार कहने लगे। हम चाहते हैं कि लोग खुल कर कहें। तब चमार का मतलब अपनी शान समझेंगे। इन गानों की खूब डिमांड है। खरीदने वाले खूब हैं जी। चमारों के पास भी कम पैसे नहीं हैं।

रूप पाल धीर ने बताया कि जब पिछले साल मई में संत रविदासिया संप्रदाय के संत रामानंद की हत्या कर दी तो पंजाब के नेता खामोश हो गए। किसी ने साथ नहीं दिया। हमारे लोग अपने आप सड़कों पर उतर आए। हमें भी अंदाज़ा नहीं था कि चमार कौम की इतनी ताकत है। हमने पंजाब को दस दिनों के लिए बंद कर दिया। उसी के बाद फैसला किया कि हम अपनी पहचान को लेकर उग्र हो जायेंगे। दावेदारी करेंगे। लोगों से कहेंगे कि तुम हमें चमार कहना चाहते हो न,कहो। हमें बुरा नहीं लगेगा। गाली आपके मन में हैं लेकिन हमारे मन में चमार होना एक शान है। अपनी बात कहने के लिए रूप पाल धीर बीच ट्रेन से उतर गए। सड़क के किनारे इंटरव्यू दिया। बोले कि मामला क्लियर कट हो गया। सिर्फ एक साल में पंजाबी गानों में चमार अभिव्यक्ति का उछाल आ गया। उनका अल्बम इटली में रिलीज हुआ था। अब हम सारे दलित गायक मिलकर एक इंटरनेशनल लेवल का चमार वीडियो बनायेंगे। चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि ये बदलाव भी कुछ वैसा ही जैसे अमेरिका में नीग्रो कहने पर रोक लगा। लोगों ने ब्लैक कहना शुरू कर दिया। फिर अफ्रीकी अमेरीकी कहलाने लगे। लेकिन आज ब्लैक खुद को ब्लैक कहलाना पसंद करते हैं। वो अपनी पुरानी पहचान पर लौटने लगे हैं। ऐसा ही कुछ पंजाब में हो रहा है।

अपनी पहचान को शान में बदल देने का जुनून जाति व्यवस्था के ढांचे को चरमराता तो नहीं लेकिन पलट कर हिसाब बराबर कर देता है। जब इन गानों को यू-ट्यूब में देखने लगा तो लाज़िमी था कि जाति-व्यवस्था के पुराने सवालों से ही देखने लगूं। उदारीकरण के बाद भी हम यूनिवर्सल शहरी समाज नहीं बना पाए। एसी और कार की मार्केटिंग के बीच पहचान के वही मोहल्ले और मज़हब खड़े किये जाते रहे। मोहल्लों की दीवारें नहीं टूटीं। आज भी दलितों की आबादी मुसलमानों की तरह एक शहर की एक बस्ती में रहती हैं। सर्वण समाज की आर्थिक ताकत का दबदबा टूटे बिना इन मोहल्लों की दीवारें नहीं टूटेंगी। यह दावे के साथ नहीं कह सकता क्योंकि चमारों के पास पैसा आने पर भी पंजाब में ऐसा नहीं हुआ। पंजाब से बाहर विदेशों में गए दलित युवकों की शोहरत की कामयाबी के किस्से नहीं सुनाए गए। पंजाबे के गुरुद्वारों ने दलितों के लिए अलग लंगर बना कर उन्हें धकेलने की प्रक्रिया शुरू कर दी जिसका नतीजा यह हुआ कि वियना,इटली और स्पेन में संत रविदास को मानने वाले लोगों ने अपने गुरुघर बनाने शुरू कर दिये। पंजाब में दलितों के डेरे का विस्तार होने लगा है। विदेशों से आए पैसे इनके डेरों को आलीशान बना रहे हैं। चमार भक्त चाहते हैं कि उनके बाबा संत भी मर्सिडिज़ पर चले। इसके लिए खुलकर दान देते हैं। दलित संतों की विदेश यात्राएं बढ़ गईं हैं। आर्थिक शान की इस लड़ाई में कोई आमने सामने नहीं है लेकिन एक दूसरे से अनजान भी नहीं।

पंजाब में देश के सबसे अधिक दलित हैं। बत्तीस फीसदी। यहां से दलित पहले फीटर और लेबर बनकर अरब के देशों में गए क्योंकि यूरोप जाना महंगा था। वहां सस्ते मजदूर बन कर थोड़ी बहुत कमाई अर्जित की। जिसका सारा हिस्सा खाली पेट और सदियों से खाली घड़ा भरने में ही चला गया। तभी दुनिया भर की पत्रिकाओं में यूरोप और अमेरिका के पंजाबी एनआरआई की कामयाबी के किस्से छापे जाने लगे। पंजाबी कारों और शादियों का जश्न छा गया। दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे जैसी फिल्म भी आई। जट सिक्खों की कामयाबी ने ऐसे हीरो पैदा कर दिये तो दशकों तक आभास दिलाते रहे कि ये यूनिवर्सल हैं। पंजाबी के नहीं हैं। लेकिन अब यह छवि टूट रही है। पंजाब के दलित पिछले पंद्रह सालों में यूरोप के देशों में जाने लगे। वहां भी पंजाब के सवर्ण समाज इन्हें नहीं स्वीकार किया। वहां के गुरुद्वारों में दलितों के संत रविदास या बाल्मीकि की कथा नहीं थी। नतीजा अलग गुरुघर बनने लगे। पहचान की भूख पहले विदेशों में पैदा हुई। एक ज़िद और जुनून उनकी आर्थिक ताकत की बदौलत परवान चढ़ गया। पंजाब के दोआबा में दलितों ने भी अपने घर आलीशान बनाने शुरू कर दिये। दलित गायक ददराल ने कहा कि देखिये ज़मींदार और चमार के घर में फर्क नहीं है। एक फर्क है। हमारे घरों में संत रविदास की तस्वीर है।

आप इन सभी गानों को यू-ट्यूब पर देख सकते हैं। सारे गाने मिल जायेंगे। चमारों के लड़के ने इन गानों पर अपनी तस्वीरें डाल कर जो मोटांज बनाई है,उसका अलग से अध्य्यन होना चाहिए। हिन्दी के कुछ मूर्ख विद्वान पत्रकार यू-ट्यूब को गरियाते रहते हैं। उन्हें इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि यू-ट्यूब एक सामाजिक दस्तावेज है। व्यक्तिगत सामाजिक अभिव्यक्ति का दस्तावेज। जिनमें चमार ब्वायज़ लैंड क्रूजर कार के साथ तस्वीर खींचाकर डाल रहे हैं। इन तमाम गानों और तस्वीरों के सहारे समाज की ऐसी तस्वीर है जो मस्त कर देती है। गर्व भी होता है।

इस कथा को समाजशास्त्री कई तरह मॉडल में ढाल कर पढ़ सकता है। लेकिन किसी को इस हद तक धकेला जाता रहेगा इसकी पीड़ा तो वही समझ सकता है जो अलग से नकारात्मक रूप से पहचाना जाता है। तभी तो चमारों ने भी अपने टी शर्ट बना लिये हैं। स्टिकर लगा लिये हैं बाइक पर। अनखी पुत्त चमारा दे का। ये पहचान उस पहचान का जवाब है जिनमें एक जट बरनाले का मर्डर करने के बाद थाने पहुंच जाता है। जिनमें एक जट लड़का चोरी की बंदूक की तरह अपनी महबूबा का छुपा कर रखना चाहता है। पंजाब के समाज का आपसी सहमति का ढोंग सामने आ गया है। दलितों को मज़हबी,रविदासिया नाम से पहचाना गया। जैसे उन पर रहम कर रहे हों।

पंजाबी गानों में दावेदारी को लेकर आ रहे हैं बदलाव को लेकर रवीश की रिपोर्ट तो बन गई लेकिन एक अफसोस भी पैदा कर गया है। सारे गायक चाहते थे कि उन्हें चमार पुकारा जाए। कई लोग एससी एसटी एक्ट का हवाला देते रहे। मुझे शो में डिस्क्लेमर लगाना पड़ा। अपना इरादा बताना पड़ा। लेकिन इन दबावों में आकर मुझसे भी एक सामाजिक अपराध हुआ। इनको चमार नहीं कहने का अपराध। सदियों तक इन्हें हिकारत के भाव से चमार पुकारा जाता रहा,आज भी पुकारा जाता है। लेकिन आज जब ये चाहते हैं कि इन्हें चमार कहा जाए तो मैं दलित कहने लगा। कई लोगों को फोन कर पूछने लगा कि चमार कहूं कि नहीं कहूं। किसी ने कहा कहने में हर्ज नहीं लेकिन मास मीडिया की अपनी मजबूरियां होती हैं। मुझे लगा कि ये स्टोरी एयर पर जानी चाहिए। कुछ सीमाएं अच्छी भी होती हैं। लेकिन हां,अगली बार कोई चमार मिलेगा तो मैं भी शान से कहूंगा अच्छा आप चमार हैं। पुकारिये उनको उस नाम से जिस नाम से वो पुकारे जाना चाहते हैं।

(अगर आप चाहें तो इस शो को आज यानी शनिवार सुबह साढ़े दस बजे,रात साढ़े दस बजे,रविवार सुबह ग्यारह बजे और रात ग्यारह बजे देख सकते हैं। एनडीटीवी इंडिया पर)

32 comments:

Sanjay Grover said...
This comment has been removed by the author.
चन्दन said...

xclnt post raveesh ji.
Even I am also working on women vices in panjabi modern pop/folk. U have written a new line. Thanks.

JAIVEER PUNDIR said...

RAVISH JI,NAMSKAR !
RAAT HI MAINE AAPKI YE POORI STORY
NDTV PAR DEKHI HAI.NISANDHE AAPKI SABHI STORY BAHUT HI ROCHAK AUR GYANWARDHAK HOTI HAIN.
RAVISH JI,MERA BLOG HAI-
devbhoomi-darshan.blogspot.com
KABHI SAMAY MILE TO JAROOR DHYAN DENA.
JAIVEER PUNDIR
MAGIK TV

माधव( Madhav) said...

i have never heard the said song in Delhi, but yes if such song are in market the singer deserves accolade.

Pratibha Katiyar said...

hoooon! badhiya rapat hai ji!

Anoop Aakash Verma said...

रवीश जी को सादर प्रणाम....भाई जी सही नस पकङी है आपने....प्रतिक्रिया स्वरूप बेहतरीन प्रयास!!

anoopakashverma.blogspot.com

Nikhil Srivastava said...

hmm. badiya hai. badlav ki or ek aur kadam.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

यह समाज में बदलाव का एक नया आयाम है, मेरे साथ शायद कई और लोगों के लिए भी यह जानकारी आप पहले पहल ले कर आए हैं. यह काम यूं तो किसी समाजशास्त्री को करना चाहिये था...आपको बधाई समाज की नब्ज़ पर निगाह रखने के लिए.

दिल्ली के उत्तर-पश्विम में एक जाट बहुल गांव है कुतुबगढ़. वहां का एक दलित अपने आपको "भगवान्या चमार"(उसका नाम भगवान था) कहता था, यही मानकर कि जब जाट अपने को शान से जाट कहता है तो मैं चमार होकर भी अपने को चमार क्यों न कहूं, यह उसका अपना तरीक़ा था जाति आधारित समाज से विद्रोह का.

जब यह सुना था तो कुछ अलग सा लगा था पर आज लगता है कि वह अपने समय से कई दशक आगे था.

Nikhil said...

सिर्फ जाति ही क्यों रंग,क्षेत्र और लिंग तक को लेकर समाज अक्सर भद्दी टिप्पणियां करता रहता है….ये सोच तभी बदलेगी जब टीवी इन टिप्पणियों को हथियार बनाकर पेश करेगा…..इस लिहाज से रवीश जी ने ठीक ही किया है…चमार कोई गाली नहीं है, ‘बिहारी’ की तरह….जब तक ये धारणा ‘शोषितों’ के भीतर नहीं बैठेगी, बदलाव नहीं आ सकता….आकाशवाणी का एक दिलचस्प अनुभव है मेरे साथ ‘जातिसूचक’ शब्दो को लेकर…..
http://baithak.hindyugm.com/2009/01/blog-post_22.html

विनीत कुमार said...

मैंने आपकी इस रिपोर्ट पर एक पोस्ट लिखी है,मौका मिले तो देखिएगा-http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_26.html

रवि कुमार, रावतभाटा said...

अच्छा सा लगा...
एक बड़े सामाजिक तबके के हीनताबोध से उबरने की दिशा में...

कार्यक्रम भी देखा था...
आपके सरोकार स्पष्ट होते हैं...यहां आना जमता है...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ravish ji

ye gane to maine sune nahi.
ab aapki post ke bad sunata hun.
lekin yah samajik badlav to aanaa hi hai. jatigat vyavastha me sabhi chahte hain ki badlav ho. usaki jati ka nam ho.

अभय तिवारी said...

इस तरह के सामाजिक परिवर्तन को पकड़ने वाले रवीश कुमार जैसे एक-दो ही पत्रकार हैं, यह बताता है कि हमारा मीडिया किस क़दर हमारी आँखों में धूल झोंक रहा है।

रौशन जसवाल विक्षिप्त said...

आपके ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा! हैप्पी ब्लोगिग!

Mahendra Singh said...

Ravish ji aapki report dekhi bahoot achi lagi. Mujhi yad aata hai 10-15 saal pahle shayad "Ramnagri" naam ki ek film aayee thi jisme amol palekar hero the. unhone ek nai kee bhumika nibhai thi. Hero nai ke naam se bachna chahta hai lekin ant main woh apni jati ko accept karta hai

SACHIN KUMAR said...

10 saal pahle LUDHIYANA gaya tha. report dekh kar laga ki sahar kitna badal gaya hai...music bhi....kyuin nahi aisa ideas trp ke piche baghne walo ko aata hai....maja aa jata agar is tarah ke ideas me logo ko trp dikhti...kas aisa hota...

सहसपुरिया said...

GOOD VERY GOOD

JC said...

भूगोल के हिसाब से - काशी को मध्य में रख - देखें तो पंजाब भारत के पश्चिम भाग का एक अमीर प्रदेश है, गुजरात, महाराष्ट्र आदि के अतिरिक्त्त ,,, जबकि बीमारू प्रदेश 'संयोगवश' पूर्व में स्थित हैं... और प्राचीन हिन्दू-मान्यतानुसार पश्चिम का राजा शनि है (जिसका द्योतक इन्द्रधनुष में से एक रंग नीला है, कार्तिकेय के मोर समान जो हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी माना जाता है), जो पैसा जब देता है तो 'छप्पर फाड़ के देता है', भले ही व्यक्ति किसी भी जाति का क्यूँ न हो...

आशुतोष कुमार said...

आज टी वी पर देखा. क्या बात है. टी वी पत्रकारिता का नया अंदाज़ बना रहें हैं आप.

Rajinder Kashyap said...

Kudos to you Ravish ji for bringing out an elaborate coverage on musical and cultural developments taking place in Punjab society and highlighting the malice and disease of practice of caste. Your efforts bring out to the fore and expose artificial equality claimed in Punjab society and trumpet around the world. How hollow are such claims you might have see yourself?. The said songs and music send a loud and clear signal that you cannot keep hapless people glued to your ideology - social, political and economic – through a system for long time without delivering.
These songs have a definite meaning and exhort people towards attainment of their respectful place in society. They build confidence in them that they are inferior to none. Democracy is a process which brings change at a slow pace but as aptly stated by you, 32% population is not less a number. I perceive such music as an instrument of bringing social change. Long live those who are striving towards the direction of BAHUJAN HITAYA, BAHUJAN SUKHAYA, and LOKA ANUKAMPAY AND BEGAMPURA.

daddudarshan said...

कालांतर से चमार कौम को हेय समझा गया और चमार शब्द को एक गली के रूप में प्रयोग किया गया |
ये कृतघ्नता है ;क्यों कि जब मनुष्य के पैर में कांटा चुभा ,एक सम्बेदन-शील मनुष्य ने इस अनुभूति को
दर्द नाम दिया और इसके निवारण के उपाय के रूप में जूता नाम का साधन ईजाद किया | 'कष्ट की अनुभूति और
उसका निवारण' मानवता की राह में एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही होगी | किसी द्वेष या वैमनस्ता-वस इस उपकार को भुलाया ही नहीं गया वरन त्रिश्कृत भी किया गया,दर्द मिटाने के एवज में एक अंत-हीन मानसिक
और शारीरिक-दर्द | खैर!
कहते हैं ,'दर्द जब हद से गुजर जाता है तो दवा बन जाता है | 'चमार' शब्द कल तक , जो गाली थी, अपमान का एक जरिया था ,आज हथियार के रूप में इस्तेमाल होना शुरू हो गया है | एक अच्छी उपलब्धि,
ये इशारा है ,एक कौम की मानसिक-सुद्रणता का | और मन चंगा तो कठौती में गंगा |
रिपोर्ट भी मैंने देखी थी ,लेख भी पढ़ा | विल्कुल, रवीश कुमार की शैली | एक सामाजिक बदलाव की कवायद जनमानस तक पहुचाने का शुक्रिया | धन्यवाद |

manish said...

ravish bhai background color badliye padhne main dikkat hoti hai

शूरवीर रावत said...

Aapke blog ka kayal raha hoon sada se. Balki yoon kahiye ki 'Blog' ki duniya se parichay bhee aapki hee kripa se hua. Is lekh ki tareef ke liye alfaz nanhi hai mere paas. Jitna bhee likha jaye kam hee hoga. Desh ke anya samajon me bhee kya is tarah ki jagriti ayee hogi? Is tarah ki hod? Kya Punjab me anya dalit(lohar, bhangi, bhisti aadi)samajon me is tarah ke prayas ho rahe hain? Yadi haan to aapki kalam se yah padhne ka saubhagya bhee awashya milega.
Inhee subhkamnaon ke saath- aapka (Pratikriya 'Devnagri' me likhna chahta hoon par kaise, nanhee janata hoon. Fursat mile to batana chahenge, ummid karta hoon.)

Unknown said...

नमस्कार !
अपनी पहचान को प्रकट करने से बात बनाती है. पैसा आदमी को इज्जत देता है. जब चमार के पास पैसा नही था तो चमार गाली थी. जब पैसा हो गया तो शान. इसलिए जाती वर्ग से अधिक प्रभावशाली अर्थवर्ग है .
नमस्कार.

jay said...

aapka show dekha bahut achha laga puri baat samajh mein aa gayi,yeh hamare dharam granth se nikali hui smasya hai, likhnewala likhkar chala gaya ab bhartiy samaj usko dho raha hai aur ek baat ki gunjaish dikhai di ki shayad kuchh dino baad maharashtra mein rahane wale bihari log bhi yeh kahein ki hum bihari hai lekin iske liye lamba intejar karna padega.

jay said...

aapka show do bar dekha bahut achha laga. yeh samsya hamare dharam granthon se nikalti hai likhanewale likh gaye bhartiy samaj usko dho raha hai. pata nahi kab tak dhoyega mujhe lagta hai ki jisdin is tarah ki mansikta samaj par hawi ho jayegi, usdin se chamtkar hoga.

gurpreet waraich said...

HEY ALL READ MY BLOG I THINK YOU WILL FIND SOME INTERSTING THINGS @ WWW.GURPALSHERGILL.BLOGSPOT.COM

Pankaj Kapahi said...

ravish bhai ko nmskaar......
sirf aap hi ho jo asi report de skte ho jo aam logo se judi ho or unke liye hi ho or koi asi report tyaar krne k bare me soch bhi nhi skta yh mera hi nhi mere jase hjaro nye ptkaro ka manna hai ....aapse gujarish hai ki aap apni asi hi report tyar krte rhiye or ise kbhi bnd mt kijiga ...rha t.r.p ka mamla wo aapke honslo k aage khud jhukr aake pksh me apne aap aa jaygi
aapka chota sa shubhchintak
http://pankajtimes.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

Divesh said...

बहुत अच्छा रवीश जी......

Divesh said...

Gud Sir... Keep it up

Divesh said...

बहुत अच्छा रवीश जी......

Divesh said...

बहुत अच्छा रवीश जी......