दैनिक भास्कर के दसवें पेज पर पड़ी इस ख़बर पर नज़र पड़ गई। महात्मा गांधी का मंदिर बनेगा। गुजरात सरकार के कर कमलों द्वारा। एक सौ बत्तीस करोड़ का मंदिर। गांधी ज्ञान का प्रसार करने के लिए नहीं,बल्कि दुनिया के पर्यटकों को बुलाने के लिए। गांधीनगर में बनने वाले इस मंदिर में सत्याग्रह से लेकर नमक आंदोलन सहित गांधीजी के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं पर निर्माण कार्य हो रहा है। ख़बर के अनुसार लक्ष्य है कि अगले साल दिसंबर २०११ तक मंदिर का पहला चरण पूरा हो जाए ताकि वाइब्रेंट गुजरात का वैश्विक निवेशक सम्मेलन इसी स्थल पर हो सके।
गांधी मंदिर का निर्माण देश के १०० पवित्र स्थलों से लाई गई मिट्टी और कलश के ऊपर किया जाएगा। एक मई को भूमि पूजन है और इसे बनाने का ठेका एल एंड टी कंपनी को दिया गया है। गांधी का मंदिर बन जाएगा,हो सकता है टिकट भी लग जाए और तमाम मुद्राओं में गांधी वाइब्रैंट गुजरात के प्रोडक्ट हो जाएंगे। ज्यादा जानकारी नहीं है इसलिए कयास लगाना ठीक नहीं। लगता है कि नरेंद्र मोदी अब पटेल की जगह गांधी की राह पर चलने वाले हैं। मोदी जी प्रायश्चित में मंदिर बनवा रहे हैं या शोभा के लिए,ये तो वही जानें। बीजेपी के लोग अपने कई नेताओं में पटेल की छवि ढूंढते हैं। गांधी मंदिर का ख्याल उनके विचारों को फैलाने के लिए आया है या एक टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए। वाइब्रैंट गुजरात के ब्रांड अंबेसडर गांधी भी हैं। कभी मोदी खुद को गुजतार का ब्रांड अंबेसडर समझते थे,बाद भी अमिताभ से लेकर शिल्पा तक को ढूंढने लगे। गांधी का ख्याल तो एक मिनट के लिए भी उनके दिमाग से गायब नहीं हुआ होगा। आप लोग तैयार हो जाइये। गांधी पर नरेंद्र मोदी का लेक्चर सुनने के लिए।
मगर इसी गुजरात के अहमदाबाद में गांधी विद्यापीठ है। जहां आज भी गांधीवादी जीवन शैली अपनाते हुए छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। विदेशी सैलानी वहां आते ही होंगे। इसी अहमदबाद में साबरमति आश्रम है। जहां गांधी के विचार प्रस्तर शैली में टंगे हैं। वहां भी विदेशी सैलानी आते हैं। तो क्या अब साबरमति आश्रम से सैलानी बोर हो चुके हैं। गांधी में रुचि पैदा करने के लिए क्या एक भव्य मंदिर ज़रूरी है। हर शहर में आजकल शनि और साईं मंदिर बन रहा है। अहमदाबाद और दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर आपने देखा ही है। अराधना कम,उगाही का प्रयोजन ज्यादा लगता है। घुसते ही टिकट कटा लीजिए। गांधीनगर में गांधी मंदिर और अहमदाबाद के साबरमति आश्रम का क्या हाल करेगा,सरकार जाने।
गांधी को जानने के लिए मंदिर ही क्यों ज़रूरी है। क्या गांधी अब गुजरात के सरकारी देव हो जाएंगे। गांधी का इस्तमाल वैसे ही आजकल पेन से लेकर सूट बनाने वाली कंपनी और चश्मा बनाने वाली कंपनियां करने लगी हैं। गुजरात सरकार क्या करेगी पता नहीं। जब गांधी के संदेश का प्रसार ही करना है तो एक अरब रुपये का बजट देश के तमाम गांधीवादी संस्थाओं के लिए बनना चाहिए था,जो न्यूनतम ज़रूरतों के आधार पर बेहतरीन काम कर रहे हैं। देश के तमाम चौराहों पर सुभाष,पटेल,झांसी की रानी और गांधी,अंबेडकर खड़े नज़र आते हैं। पर्यटक वहां भी जा सकते हैं। कुछ चढ़ा कर आ जाएं तो खस्ताहाल प्रतिमाओं का कुछ उद्धार हो जाए। वैसे कई जगहों पर प्रतिमाओं का रखरखाव शानदार भी है। गुजरात में लोगों को गांधी नहीं दिखते क्या,जो सरकार मंदिर बनाने जा रही है।
कयास लगाने का मन करता है कि नरेंद्र मोदी गांधी मंदिर के बारे में कब से सोचने लगे। मोदी यह कह सकते हैं कि वो तो हमेशा से सत्य और अहिंसा की राह पर चलते रहे हैं। गांधी के दम पर ही तो वो गोधरा से अहमबदाबाद की राह पर चले होंगे। अपने राजनीतिक सत्य को तलाशने। जिस महात्मा का मंदिर चंद हज़ार रुपये में बन सकता है,उस पर एक सौ बत्तीस करोड़ का खर्चा। एक अरब से ज्यादा का मंदिर। फकीर महात्मा का मंदिर अरबपति लगेगा। लगेगा कि हां,गुजरात ने कोई रईस पैदा किया था। दीवारों पर चिपकी गांधी की मूर्तियां और उनके पीछ चलते दस पांच लोगों की प्रतिमाएं कौन सी गांधी कथा कहने वाली हैं। सरकारी अफसर पांच लाइन की एक कथा चिपका देंगे।
दैनिक भास्कर की इसी ख़बर के नीचे एक और खबर है। नरेंद्र मोदी की एक किताब आ रही है। जिसका नाम है सामाजिक समरसता। जिसका विमोचन हो चुका है। नरेंद्र मोदी सामाजिक समरसता पर लिख रहे हैं तो पढ़ना चाहिए। जिस नेता ने सामाजिक समरसता के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया,उसे नहीं पढ़ेंगे तो किसे पढ़ेंगे। मेरा ब्लॉग? महात्मा गांधी भी तो सामाजिक समरसता के लिए आंदोलनरत रहे। अब उनके बताये रास्ते पर गांधीनगर में अरब रुपये का मंदिर बनवाकर मोदी कहां कहां चलेंगे,देखियेगा।
43 comments:
मंदिर को गांधी की जरूरत भले हो,गांधी को मंदिर की जरूरत कतई नहीं है।
मोहनदास करमचंद गाँधी, पोरबंदर, गुजरात में पैदा हुए,,, विलायत में पढ़े,,, दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर राम और बुद्ध समान ऐशो आराम त्याग स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले,,, और दिल्ली की 'भंगी कालोनी', मंदिर मार्ग में रह 'महात्मा' ('परमात्मा' के एक ऊंचे या 'पहुंचे हुए' अंश) कहलाने योग्य अवश्य हो सकते हैं... किन्तु वो लाठी और लंगोटी वाला महात्मा, जिसने अंत में गोली खाई, शायद मूर्ति के अन्दर बंद करने वाली आत्मा नहीं है,,,उसे तो हनुमान के समान राम को हृदय में रखने की मान्यता के समान हृदय में स्थान देना ही सही होगा???
जेसी
बात में दम है।
भूखमरों और बेरोजगारों के देश में अरबों रुपए से मंदिर बनवाना,सांस्कृतिक आयोजन करवाना,कामनवेल्थ करवाना निर्लज्जता का सबसे बड़े उदाहरण है। ये सभी एक तरह से आर्थिक भ्रष्टाचार हैं। जो कि इस देश में कोई मुद्दा नहीं रहा। उससे भी बड़ी विडम्बना यह है कि जनता ने स्वयं ही गुजरात में मोदी को,दिल्ली में शीला को और यूपी में माया के शासन के लिए चुना है।
:) :) :)
एक बार फ़िर मोदी… एक बार फ़िर गुजरात…
बड़ी खतरनाक बीमारी है "मोदी-फ़ोबिया", एक बार लग जाये तो आसानी से निदान नहीं होता…
जय हो… जय हो… जय हो…
क्या गांधी किसी परिवार या पार्टी की बपौती नहीं हैं। आज कौन है जिसे गांधीवाद का सच्चा अनुयायी कहा जा सकता है? यह शुभ है कि उनके मंदिर का ख्याल पहली बार मोदी को आया है। आज गांधी की जरूरत सख्त जरूरत है। शुरूआत मंदिर से ही सही। मंदिर कहीं भी घाटे का सौदा नहीं रहे हैं।
सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।
सर ,गान्धी जी के विचारो को अपनाया जाय और उनसे जुडे स्थान,संस्था,खादी,ग्राम स्वराज्,को वर्तमान समय मे पुनर्जीवित करना मन्दिर बनाने से ज्यादा जरूरी काम है ॥
jiasजैसे ही मोदी और गुजरात का नाम आता है, कुछ मित्र असहज हो उठते हैं. भाई! प्रजातंत्र है. इतनी आज़ादी तो रहने दीजिये.
रवीश जी, जो लोग गांधी का मंदिर इस तरह , यानि इस भव्यता से बना रहे हैं, ज़ाहिर है कि उनका गांधी विचार से कोई लेना-देना नहीं है.
जेसी और रंगनाथ जी की बात एकदम सही है. सब पैसा फूँक रहे हैं बस. कोई दिल में नहीं बसन चाहता गाँधी को. सब दिखावा करते हैं. हद है.
शायद हमें भी अपनी सुविधा के हिसाब से हर चीज को एक संकरे दायरे में देखने की आदत सी पड़ गई है! अन्य सरकारों जैसे केंद्र की यु पी ये सरकार, उप की मायावती सरकार इत्यादि की तरह ही निसंदेह: गुजरात सरकार का यह प्रयास भी राजनीतिक फायदे के लिए ही होगा , लेकिन यह नसीहत सिर्फ मोदी को ही क्यों दी जाती है ! महात्मा गांधी उनके राज्य में जन्मी देश की एक महान हस्ती है, उनका मदिर बनाना तो हमें खल रहा है लेकिन जो फिजूल का खर्च राजिव गांधी के विज्ञापनों पर हो रहा है, उसका हिसाब लेने वाला कोई नहीं ; एक खबर का हिस्सा जो शायद
हाल ही में आपने भी पढ़ा हो, यहाँ देखिये ; The Directorate of Audio Visual Publicity(DAVP) has spent nearly Rs 3 crore over a period of two months on advertisements to glorify late prime minister as against only Rs 87 lakh over a period of 10 years for Shastri, also a former premier.
This was revealed in an RTI reply by the Central Public Information Officer (CPIO), DAVP, Mattu J P Singh who refrained from disclosing expenditure incurred on the advertisement on other ex-prime ministers .
तो रवीश जी , इस राजनीति के महाहमाम में सभी नंगे बैठे है, सिर्फ कुछ ही शरीरों पर नजर मत डालिए !
namaskaar!
modi ke gandhii kaa mandir.
kangress ke gandhi kaa mandir.
gandhii ji ab mana men nahiin mandir men hii basate hain.
namaskaaar.
हर फासिस्ट को एक सुचिक्कण, नरम और आकर्षक चेहरे की जरूरत होती है। मोदी क्या गलत कर रहे हैं?
मुझे याद है चुनाव के दौरान आप गुजरात थे, शायद मेरे शहर अहमदाबाद में ही और एक काएरक्रम में खुद की तुलना गाँधी से की थी. :)
तो गाँधी पर सबको हक जमाने का अधिकार है :) बनने दो ना मन्दीर, अच्छा कदम ही तो है. या आपके लिए यह अप्रत्याशित है? ;)
koi mandir ke jugaad mein hai ..koi maya mahal ki firaq mein..aur desh bhookha aur nanga hota ja raha hai!
गोदियाल जी की टिपण्णी से सहमत.
वैसे रवीश जी आपने शायद देखा होगा, यु.पी. की मायावती तो खुद को पुजवाने के चक्कर में बड़े बड़े खर्च करती रहती हैं.
देश और सामाजिक स्थिति का सजीव चित्रण करता हुआ एक विचारणीय रचना के शानदार प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /सवाल मंदिर और गाँधी जी का नहीं है ,सवाल है समाज में अच्छे विचारों को-क्या सिर्फ मंदिर बना देने से जिन्दा किया जा सकता है या अच्छे विचारों को और अच्छे विचार वाले व्यक्ति को सही सम्मान मिले इसके लिए सामाजिक एकजुटता की मंदिर बनाने की ? शरीफ और इमानदार हमेशा प्रतारित और अपमानित किये जाते रहे हैं ,लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किये वगैर, उन लोगों का भी भला किया और जीवन के राह पर सही से चलना सिखाने का काम किया जिन्होंने उनको अपमानित करने का काम किया था / चाहे वे गाँधी जी हो या डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जी या आज का कोई शरीफ और इमानदार सामाजिक व्यक्ति / निश्चय ही आज मंदिर मस्जिद से ज्यादा अच्छे लोगों को बनाने और अच्छा बनने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है / ऐसे ही विचारों के सार्थक प्रयोग ब्लॉग के जरिये करने से ही ब्लॉग को सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में सहायता मिलेगा / हम आपको अपने ब्लॉग पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में ,विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने का भी प्राबधान कर रखा है / पिछले हफ्ते उम्दा विचार व्यक्त करने के लिए अजित गुप्ता जी सम्मानित की गयी हैं /
बापू मंदिर में विराजेंगे, वह भी मोदी के करकमलों से...यह सब एक साजिश है। महात्मा गांधी एक विचारधारा का नाम है और विचारधारा मंदिर या मठ में नहीं विराजती है।
mandir to ban jaye ghandi ji ke naam par beshak paisa banane keliye hi. lekin us paise ko modi ji pacha na le jaye.PAISA AGAR DESH KE VIKAS MEIN LAG JAYE TO MANDIR NIRMAN MEIN BURAI NAHI HAI.
अरे, भैया गाँधी पर काहे बबाल ! बनने दो एक और मंदिर ........ क्या फर्क पड़ता है कहीं कांशीराम और माया है तो कहीं गाँधी ! नेहरु खानदान को क्यूँ भूल गये !
@ दूर्गाप्रसादजी उनका गांधी विचार से कोई लेना-देना नहीं है.
किस गाँधी विचार की बात कर रहे है? वो जो भगतसिंग से असहज हो जाता है? सुभाषचन्द्र से असहज हो जाता है? जो अंग्रेजों के लिए सैनिक जुटाता है? जो लोकतंत्र को लात मार नेहरू को प्र.म. बनाता है? वो विचार जो देशभक्तों को आतंकवादी कहता है? वो विचार जो अंत में विभाजन लाता है?
गाँधी महान नेता थे. मगर उन्हे पवित्र गाय या कुरान मत बनाओ.
देखिये, हर चीज के दो पहलु हो सकते हैं. कईयों के तो और ज्यादा होते हैं! कुछ लोगो को तो मोदी कुछ भी करें, अच्छा नहीं लगता, उनकी बात रहने देते हैं.
गाँधी, क्या सिर्फ इतिहास के पन्नो में विराजमान एक व्यक्ति है या एक जीता-जगता विचार? अगर गाँधी जीवित होते, तो इस एक अरब रुपैय को किसी गरीब गाँव या भला करने वाली संस्था को दान देने के लिए कहते. जैसा उन्होंने आज के राष्ट्रपति भवन के लिए भी सोचा था! और बोहत सारे लोग आज भी यही चाहेंगे के ऐसा ही हो. मेरा भी पहला विचार यही था.
पर गाँधी एक व्यक्ति से कही ज्यादा हैं. और इस तरह की ईमारत सिर्फ एक मंदिर से कहीं ज्यादा है. हर विचारधारा को अपने लिए एक प्रतीक की जरूरत होती है और गाँधी तो एक पूरी आचरण शैली का नाम है.
सिर्फ गाँधी की तस्वीर अपने ऑफिस में लटका लेने से, NCERT की किताबों के पहले पन्ने पर छाप लेने से इस विचारधारा का प्रसारण नहीं होगा. क्या यह मंदिर, गाँधी के आचार-विचार और सन्देश को प्रसारित कर पायेगा? दिल्ली में भी एक गाँधी स्मृति है. वहां ज्यादा लोग नहीं आते, विदेशी सैलानियों के अलावा. पर थोडा कम ही सही, कुछ तो होता है. हो सकता है, माया की मूर्तियों और नेहरु-इंदिरा-राजीव खानदान के नाम वाली देश-भर में फैली हुयी इमारतों में ये इकलौता मंदिर, कुछ काम कर जाये!
अगर ये मंदिर/संग्रहालय गाँधी की विचारधारा को आगे ले जाये, चाहे कितना ही थोडा-बोहत तो अच्छा है न?
godhra se gandhinagar tak ka ka ye safar rochak hoga..gandhi ke darshan ki modiwadi vyakhya ke namoone ko jaroor dekhna chahunga...UP me to mayawati,ambedkar ki murtiyon se jab change mahsoos karna hoga to ghandhiji ko yaad kar liya jaayega....agle episode me kisi pradesh me ab maulana azad,PV abdul hameed,sir syed par bhi kuch dekhane ko mil sakta hai,....
आपको दुःख किस बात का है, हम समझ नहीं पाए ?
गांधी की उपासना का या मोदी के द्वारा गांधी की उपासना का.
गांधी किसके नहीं हैं.
logo k bich apni chavi sudharne ka yeh dohng hai kewal .. samucha bharat janta hai modi kabhi samaj ko jodne me apna yogdaan nahi de sake balki samaj ko todne k liye har sambhav pryas me lage rahe .. aage ki khani kya hogy yeh dekiyega modi ki samaj me apni chavi badlne ki niti..
जेसी जी.
पहले तो आप अपनें कमेंट पर प्रयोग किए गए इस जातिसूचक शब्द को सही करें...।
बात कहनें के तरीके और सुझावों में थोड़ा तोल-मोल के लिखा जाए,किसी भी इंसान ने अपनें श्रमिक वर्ग के साथ कुछ समय बिता लिया तो उसनें कोई बड़ा काम नहीं किया और नेता तो सबके होते है,किसी जाति विशेष के साथ बैठ जानें से क्या होता है। हित उन्हें ऊपर उठानें में होता है, ना कि साथ बैठकर खानें-पीनें या रहनें से...।
@ रणवीर जी, वो तो ऐतिहासिक तथ्य है - उस समय उस कालोनी को उसी नाम से पुकारा जाता था,,, मैं भी जब ९-१० सवाल का बच्चा था और उसके निकट एक स्कूल में पढता था तब अपने बाबूजी के साथ उनको सुनने उस कालोनी में गया,,,भले ही मेरी समझ उस समय कुछ भी नहीं आया क्यूंकि उम्र का तकाजा था - तिस पर उनके दांत न होने के कारण मुंह से 'श'- 'श' अधिक सुनाई दिया...
रविशजी, जब अस्सी के दशक में गीता पढ़ी तो पाया कि हमारे पूर्वज पहुंचे हुए थे! और उनकी तुलना में 'हम' गिनती में कहीं आते ही नहीं, वैसे ही जैसे कहावत है, "कहाँ राजा भोज और गंगुआ तेली",,, और 'सिंहासन बत्तीसी' के बारे में पढ़ जाना कैसे स्वयं राजा भोज राजा विक्रमादित्य की तुलना में 'गंगुआ तेली' ही थे!...
हम आत्मा के स्थान पर अपनी जाति आदि के चक्कर में भटक जाते हैं...
उपरोक्त कथाएँ जिसमें वीर विक्रमादित्य ने बेताल को काबू किया काल की चाल को दर्शाते हैं: हिन्दू मान्यता के अनुसार सतयुग से कलियुग की ओर, सिद्धि से अज्ञानता की ओर, उजाले से अँधेरे की ओर...जबकि हमारा गंतव्य बताया गया 'अँधेरे से उजाले की ओर', असत्य से सत्य की ओर आदि!
कलियुग की परिभाषा जान, यानी जब मनुष्य की कार्य क्षमता २५ से शून्य प्रतिशत के बीच ही संभव है, महात्मा गाँधी एक सतयुग के नहीं तो कम से कम द्वापर के तो प्रतिरूप/ प्रतिबिम्ब थे ही, जब राजा एक दम अँधा था और उसकी अर्धांगिनी, जो उसकी नाव का काम कर सकती थी, जान कर अंधी बनी हुई थी, "एक अँधा एक कोढ़ी को लगभग चरितार्थ करते"...मोहन दास से आप कैसे १०० प्रतिशत शुद्ध होने की अपेक्षा कर सकते हैं? जब आज हर वस्तु और मानव का मन विषेला हो गया है??? और 'ज्ञानी' कह भी गए कि कलियुग के आरंभ में विष उत्पन्न हुआ...क्या हमारे पूर्वज मूर्ख थे??? और यदि वो मूर्ख थे हम कहाँ से उनके और अपने विद्वान् होने का दावा कर सकते हैं???
रवीश जी माफी चाहूंगा इस पोस्ट में पहले वाले पोस्ट का कमेंट कर रहा हूं। क्योंकि आपकी इस पोस्ट की मुझे जानकारी जरा देर से मिली। आप ने कहा कि फिक्सिंग की बात आने के बाद भी बेहया दर्शक मैच देखने गए। लगता है कि आप का संविधान में विश्वास नहीं है। मैं कहूंगा कि चुनाव में सभी चोटृटे, बलात्कारी, डाकू और अपराधी जीतते हैं। आप के हिसाब से तो फिर वोट ही डालने नहीं जाना चाहिए। मैं कहूंगा कि टीवी की आधा से अधिक खबरे प्रायोजित होती हैं और उस पर आप ही के साथी भडैती करते फिरते हैं तो फिर आदमी को समाचार भी देखना बंद कर देना चाहिए। ऐसा नहीं है। हां ठीक है कि आईपीएल में घपले हुए लेकिन आईपीएल बंद कर देना चाहिए यह हल नहीं है। आप क्यों नहीं आवाज उठाते शरद पवार के खिलाफ। आप खुलासा कीजिए कि ललित मोदी ने कितना पैसा बनाया। आप नहीं कर सकते। आपका चैनल भी आईपीएल सीधे दक्षिण अफ्रीका से दिखा रहा था। आप कहां थे। आप ने पूछा न क्या मिला आईपीएल से। सौरभ तिवारी को कौना जानता था। आज आप भी उसके गुण गा रहे हैं। रायडू गायब हो गया था वापस आ गया। उथप्पा क्यों नहीं आज हर आदमी पूछ रहा है। यह है आईपीएल की देन। बाॅस चीज खराब हो जाने पर उसे छोडा नहीं जाता। जैसे आप ने बिहार छोडकर दिल्ली का दामन पकड लिया। अब आप केवल महुआ चैनल पर बिहार को देखकर याद करते हैं और कहते अम्मा भी तारीफ करती है। दम है तो वापस लौटिए अपने प्रदेश और वहां के लिए कुछ कीजिए। रोज शाम को दारू पीकर लेक्चर देना बहूुत आसान है। और हां एक बात और कहूंगा। जिस पैसे से आप दारू पीते हैं वह भी चैनल की कमाई है और आप को पता है कि चैनल पैसा कहां से कमाता है। तो बंधु लेक्चर ने दें और केवल जय चैनलाय नमा का जाम करें।
जय माता दी,
सबसे पहले मैं आभारी हूँ की आज अपने अपने लेख में (जो की दैनिक हिंदुस्तान में छफा है)इस नाचीज को जगह दी है .भैया मेरा संकल्प एक ऐसे वैष्णो धाम बनाने का है ( जिसके अंदर अस्पताल ,विरधाश्रम,गौशाला ,अनाथालय और एक शादी योग्य धर्मशाला हो)जिसमे वैवास्य्कता नही होगी.उससे पहले हम १६ जुलाई को श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में ५१ गरीब कन्याओं का सामूहिक विवाह कराने जा रहे है.हम चाहतें हैं की इस शादी का लाभ वैसे परिवारों को मिले जो वाकई इसके लिए जरूरतमंद हों .आप अपने ब्लॉग ,लेख और स्टोरी के द्वारा ५१ वैसे जोड़े दे सकते है .मैं आपको विस्वास दिलाता हूँ की माँ वैष्णो को समर्पित हमलोगों का कोई भी प्रोग्रामे राजनीती से प्रेरित नहीं है.आज की तारीख में १५० लोगों का हमारा समूह शुद्ध रूप से बाईबसाइओं (Business man )का ग्रुप हैं
मुकेश कुमार हिसारिया ,९८३५०९३४४६,
मेरा ब्लॉग mukesh-hissariya.blogspot.com
@ sanjay begani
Ghandhi ji ek mahan insan ya neta ho ya na ho lekin wo ek mahan darsnik the.
बीजेपी के भगवान बदल गए है। भगवान के राम राज्य से गाधी के ग्रामगणराज्य तक। लेकिन दानो में एक अनोखा फर्क है, कि राम-राज्य में जनता प्रजा थी और ग्रामगणराज्य में जनमत नागरिक होते है। अब अगर नागरिको का राज्य होने लगा, तो मोदी सहीख़े के नेताओ का क्या होगा। ज़रा सोचकर मोदी जी मंदिर में चिंता ही नहीं चिंतन भी होता हैं।
दर्द होता है . या कहूँ चुभन . मंदिर तो गाँधी का बनेगा . पर चर्चा मोदी की . गाँधी का जैसा सरल जीवन , विचार थे . क्या उनका मंदिर भी वैसा ही हो ? सलीब उठाने वाले ईसा मसीह के भव्य गिरजाघर क्यों ?
बनिए की दुकान से ज्यादा भीड़ तो बड़े माल में होती है . सरकारी महापुरुष तो पार्टी के साथ बदलते हैं . मोदी - इंदिरा गाँधी , माया - लोहिया, और कांग्रेस - जयप्रकाश के नाम पर कुछ करें ऐसा समाज जब बन जाये तो प्रश्न भी करें अच्छा लगेगा . प्रश्न सबसे पूछें - दर्शक राहुल , प्रियंका , मोदी , लालू को जितना देखना चाहतें है उससे कहीं ज्यादा प्रचार न करें .कुछ तो छोड़ दे विज्ञापन संस्थाओं के लिए और पार्टी को खर्चा करने दें . अगर समाचार चैनल भी सीरियल की तरह धारावाहिक लगने लगे. गाँधी मंदिर प्रसंग पर गाँधी की चर्चा हो तो बेहतर है . गाँधी के बहाने मोदी नहीं चाहिए .
mai blogs ki abhyast nhi hu, par aj apke blog me aana is wajah se hua ki aj maine hindustan hindi dainik me apka column padha!ap acha likhte hai, bihar ki stithi ki bebak charcha krte hain.
ladkiyon ke school na jane ki badi wajah samajik tana-bana hai. cycle sirf school se ghar ki duriyan kam krta hai,sirf iski wajah se koi school jana nhi shuru kr deti hain. cycle-vitaran ek achchi pahal hai, par basic awareness bhut jaruri hai, jisse jinke pas cycle nhi hai wo bhi school jana chahen aur jarur jayen.
apki har post p itne comtz itne vichar per har problm wahi apni jagah... kuch nahi badla...sab kuch hamesha ki tarh jaisa tha waisa hi.
जेसी,
क्या बात कर रहे हैं आप? ऐतिहासिक तथ्य ये भी है कि आप-मैं बंदर की औलाद है,हम नंगे रहते थे और कपड़े पहनना तो दूर खानें और हगनें का फ़र्क तक नहीं जानते थे। तब आप कौन सी जाति के थे और मैं कौन सी जाति का?गांधी किस जाति के लोगों के घर जाते और क्या वेदों में लिखा जा रहा था? जब आप ऐतिहासिक तथ्य देते हैं तो ज़रा यहां भी नज़र दौड़ाकर तथ्य दें। ज्ञान उपनिषदों में नहीं उसके पीछे भी रहा होगा। लेकिन आप जैसे लोग उतना ही स्वीकार करते हैं जितना आपके मतलब का होता है औऱ खुद को श्रेष्ठ साबित करनें के लिए काफी होता है। एक तो आप जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करते है जो कि संविधानिक रूप से भी सही नहीं है, ये भी जान लेना, ऊपर से बेतुके तर्क दे रहे हैं।
रणवीर जी, मुझे बहुत खेद है कि मैंने आपको अनजाने में इतना कष्ट पहुंचाया. मेरा प्रयास केवल अपने संन्यास के शेष समय में परमात्मा यानि भूतनाथ तक पहुँचने का है - अपने पूर्वजों के माध्यम से...मैं आपसे और उन सभी अन्य व्यक्तियों से भी हाथ जोड़ कर माफ़ी चाहूँगा जिनके भीतर यदि मैंने किसी प्रकार की हीन भावना अनजाने में पहुंचाई हो...
ha ha ha, kya ravish babu, phir modi ki baat, abhi vinod (BAD)DUA live dekh raha tha, pahli khabar me bjp ko gali baki,aur uski khilli udakar vinod ne khud ka aham santushta kiya, doosri me modi ko kosa, aur teesri bhi aisi hi kuch thi, iske bad mera shaq sahi nikla, aur desh ki gaddar madhuri gupta par vinod ne ek line bhi kharch nahi ki, aisa kyo, kya vinod ki kalam sirf hindu, modi aur bjp ke khilaf chalti hai, kya unka vidhwa villap sirf inhi ke liye hota hai, kya unka pyar hamesha un aatankawadiyo jinhe vo bade pyar se bhatke hue yuva kahta hai, kab tak itni nafrat karoge, 10 saal pahle paida hue kisi bhi musalmaan ko pata nahi hoga ki desh babri ya sabarmati kand hua hoga, lekin aapka channal din raat wahi khabre wahi tasveer dikha kitna zahar bharta hai, zara uska khayal karna,lekin ye aap longo ki khubi hai ki duniya ke kisi bhi kone me kuch bhi hua ho use hindu, bjp aur modi se jodne ki kala aap jante hain. khair modi ko aap jaise longo ki in galiyo se kuch farq nahi padna kyoki kasai ki hay se kabhi go mata nahi marti. lekin dukh hota hai aap jaise samjhdar longo ke muh se aisi baat sunkar.
बीजेपी के किसी नेता का जबाव- "अरे हम तो अरबों रूपए का मंदिर गांधी के लिए बनवाकर बापू को सर्वोच्च सम्मान दे रहे हैं। ताकि गांधी को लोग जानें, याद करें...कांग्रेस ने आखिर क्या किया?"
कांग्रेस नेता का जवाब- "अरे एक पूरे परिवार ने गांधी को अपने नाम से लगाए रखा। ज़िंदगी भर इस परिवार के लोगों ने इस नाम को लगाकर कुर्बानी दी। और हम तो आज भी इसी नाम के आगे दंडवत होते हैं। सवाल आस्था का है आडंबर का नहीं।"
आम आदमी- "भाई इस मंदिर में क्या अक्षरधाम मंदिर की प्रदर्शनियों जैसे ही टिकट खरीदना पड़ेगा, कितने का होगा? कहीं गांधी को जानना मंहगा तो नहीं पड़ेगा?" अक्षरधाम में कांबो पैक 175 रूपए का है इसलिए आज तक नहीं जान पाया।
रविश जी, मैं बचपन से पढता आया कि हमारे ऊपर विदेशी इतने वर्षों तक राज्य इस लिए करते आये थे क्यूंकि हम में एकता नहीं थी,,,किन्तु मैं सोचता हूँ क्या यह कभी संभव हो सकता है कि हमारे, सभी के, विचार एक से हो जाएँ और कालांतर तक एक से ही रहे भी?
जब 'राजा' के मन में बन गया है तो गांधी का मंदिर तो बनेगा ही, भले ही वो हम को जोड़ने का काम करे या फिर और तोड़ने का,,,जैसे कांग्रेस से आरंभ कर आज अनेकानेक पार्टी बन गयी हैं... यह काल ही बता पाएगा...
"जिस नेता ने सामाजिक समरसता के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया,उसे नहीं पढ़ेंगे तो किसे पढ़ेंगे। मेरा ब्लॉग?"
Brilliant!!
URDU ki bhi koi JUGAD kar leejye ravish ji..........
ab tak neta rajniti k liye mahatma ko baant rahe thhe ab mandir mein pooja k liye baantenge .... bhakti ka bhaw bhale he na ho lekin bhakti ka chola tau hai na ... iss desh k lok tantr mein logo keval do he cheejo ki taui jaroorat hai .. ROTI AUR TAMASHA .... jo aasani se sabko mil jata hai..... bachcho liye school , bimar k liye aspatal , berojgaro ko rojgar aur rahne ko makaan jaisi buniyadi jaroorate bhale he iaa dash k aam nagriko ko na mile ... hamare shahar k gali mohalo mein mandir - masjid k naam par dukaan jaroor mil jayegi ..
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