टीवी का फटीचर काल अपने स्वर्ण युग में प्रवेश कर चुका है। सानिया की शादी को लेकर तमाम संपादकीय रणनीतिकारों ने आइडिया को त्वरति गति से पैदा करना शुरू कर दिया है। टीवी के फटीचर दर्शकों ने लेख लिखने के लिए इन तमाम कार्यक्रमों पर अपनी आंखें गड़ा दी हैं। टीआरपी फिर लौट आया है। पत्रकारिता के सारे अहंकार इस टीआरपी के जूते के नीचे रिरिया रहे हैं। यह देखकर अच्छा लगता है। अब रोने और सिसकने की सीमा से आगे जाकर दर्द दवा बन चुका है। ग़ालिब अपनी टोपी फेंक आइडिया सोच रहे हैं। सानिया की शादी का कौन सा एंगल हमारे चैनल को रेटिंग के इतिहास में दर्ज करा देगा। सानिया दर्शकों की सामुदायिक संपत्ति हैं। इससे पहले अभिषेक बच्चन की शादी में कैमरेवाले धकियाये जाने के बावजूद एक्सक्लूसिव तस्वीरें ले आए थे। भारत की महान जनता पत्रकारिता के इस आईपीएल पर ताली बजा रही है।
हिन्दी न्यूज़ चैनल आलोचकों के लेख से नहीं चलेंगे। आलोचकों ने लेख लिखकर न जाने कितने कमा लिये। हर लेख के पैसे मिलते हैं। न्यूज चैनल अपने इस पतन काल में फिल्मों को भी आइडिया परोस रहे हैं। मैं भी अब इस गंध में जीना चाहता हूं। जी करता है काश हम भी दस पांच घटिया कार्यक्रम करते जिनकी रेटिंग आती। आखिर दुनिया से अलग होकर जंगल में जीने का कोई इरादा नहीं है। मैं भी अब लंगोटिया भूत से लेकर जूली चुड़ैल की कहानी करना चाहता हूं। अहा-स्वाहा। पत्रकार फिल्ड में नहीं जा रहा है। बडे पत्रकार स्टुडियो से नक्सल पर आइडिया निकालकर लेख भांज दे रहे हैं। अच्छी पत्रकारिता भी कम फटीचर दौर में नहीं हैं। हिन्दी के तमाम अच्छे किस्म के बड़े पत्रकार शानदार लगने वाली लाइनों के सहारे दावेदारी साबित कर रहे हैं। जो अच्छा है वो भी कम बुरा नहीं है। जो बुरा है उसकी बदबू अब उत्साहित कर रही है। आइये इस पत्रकारिता के तमाम आदर्शों की चटनी बनाकर सानिया को तोहफे में भेज देते हैं।
फटीचर काल के तमाम आलोचकों पर कोड़े बरसाये जाने चाहिए। उन्हें ज़ंजीरों में बांध कर उनसे सानिया की शादी के घटिया कार्यक्रम बनवाये जाने चाहिए। आखिर दर्शकों ने जब खारिज नहीं किया तो ये कौन होते हैं। मैं कौन होता हूं। ग़लीज़ शाइरी का जलवा होता है। महफिलों में ग़ालिब नहीं सुनाये जाते। टीवी का यह लुगदी साहित्य बवाल स्तर का कमाल पैदा कर रहा है। कब तक आलोचना का काल चलेगा। कब तक। सात साल से यही चल रहा है। जिन दर्शकों ने सानिया पर बने घटिया कार्यक्रमों को देखा है और लेख लिखा है उन्हें पकड़ कर जेल भेजना चाहिए। बदनाम गली में जाते भी हैं और शरीफ कहलाने का शौक भी पालते हैं। हद है। दादागीरी की। जो लोग सानिया पर रात रात जागकर कार्यक्रम बना रहे हैं उनकी कोई बिसात नहीं है क्या। आखिर किस महान मफ्ती ने,किस महान एक्टर ने और किस महान डिजाइनर ने ऐसे शो में आने से मना किया है। किसी ने नहीं किया होगा। निकाह से लेकर दुल्हन के लहंगे तक की जानकारी देना कोई मज़ाक समझा है।
अब वक्त आ गया है। आलोचकों को मार मार कर खदेड़ने का। जो आलोचना करें उसका कपार फोड़ दीजिए। आलोचकों को भी अपनी नाकामी स्वीकार कर फटीचर काल को बदनाम करने की तमाम साज़िशों से अलग कर लेना चाहिए। टीवी के इस हाल पर जो रोता है वो नकली दर्द बयां करने का उस्ताद है। उसके आंसुओं के झांसे में मत फंसो। देखो। देखो। टीवी देखो। सानिया की शादी हो रही है। क्या इस खुशी में न्यूज़ चैनलों के शामिल होने का कोई हक नहीं? किसने कहा कि बारात में बैंड वही बजाएगा जिसे दुल्हे वाले बयाना देकर लायेंगे। बाकी लोग भी तो अपनी छतो से बजा सकते हैं। बजाइये। फिल्म में हीरोईन सीन के डिमांड पर कपड़े उतार देती है तो हिन्दी टीवी पत्रकारिता रेटिंग के डिमांड पर कपड़े क्यों न उतारे। फटीचर काल के राजकपूरों का अपमान करने वाले राम तेरी गंगा मैली वाली मंदाकिनी की ख़ूबसूरती और कहानी की मांग के अनुसार मातृत्व के सौंदर्य को नहीं समझ पा रहे हैं। फटीचर काल के राजकपूरों अपनी कल्पनाशीलता को कभी मत रूकने देना। तुमने एक काल,एक युग की रचना की है। तुम युगपुरुष हो। आओ हम सब मिलकर इन महान आइडिया उत्पादकों(संपादक का नया नाम) का सम्मान करें। अपने आप को धन्य होने का मौका दें तो हम ऐसे काल में रह रहे हैं। मत भूलो कि सैलरी सबको चाहिए। अगर कोई कहता है कि वो मिशन के लिए आया है सैलरी के लिए नहीं तो वो झूठा है।
नोट- आज इन आइडिया उत्पादकों के समर्थन में यह लेख लिख कर हल्का महसूस कर रहा हूं। धारा के साथ बहने का सुख गंवाना मूर्खता है। होली में वही लोग उदास दिखते हैं जो खेलते नहीं,घर बैठे रंगों को गरियाने लगते हैं। एक बार कीचड़ में उतर जाइये, सन जाइये तो मज़ा आता है। खेलने में भी और उसके बाद नहाने में भी।
नोट- सानिया ने अपनी खिड़कियों पर अख़बार चिपका दिये हैं। पावरफुल ज़ूम वाले कैमरे ने तब भी झांक लिया है। इंग्लिश चैनल भी सक्रिय हो गए हैं। हिन्दी चैनलों के दबाव में आकर।
नोट- हिन्दी टीवी चैनलों ने दुल्हे शोएब को जेल में ठूंसवाने का पूरा इंतज़ाम कर दिया है। एफआईआर के लेवल तक मामला तो ले ही आए हैं। अब कोई कहे कि ख़बर नहीं है। कैसे नहीं है। सानिया का दुल्हा शोएब,फरेबी,झूठा,आयशा का एंगल और धोखा। क्या कहानी है। पांच मिनट ही देख सका। फटीचर काल अपने इम्पैक्ट की तरफ बढ़ रहा है।
नोट- अगर शोएब को जेल में ठूंसा गया तो आगे से हर मशहूर हस्ती को शादी या सगाई से पहले हिन्दी न्यूज़ चैनलों के आइडिया उत्पादकों को बुलाकर बैठक करनी चाहिए। करना ही पड़ेगा। सानिया को भी समझ में आ ही गया होगा। सारी अकड़ निकालकर अपने भाइयों ने धूप में सूखा दी है। लगे रहो।
47 comments:
पत्रकारिता के सारे अहंकार इस टीआरपी के जूते के नीचे रिरिया रहे हैं। यह देखकर अच्छा लगता है। अब रोने और सिसकने की सीमा से आगे जाकर दर्द दवा बन चुका है।............आपके ही इस कथन में बहुतों के साझा बोल। बधाई।
बढ़िया लिखा.
saarthak lekhan
"नोट- आज इन आइडिया उत्पादकों के समर्थन में यह लेख लिख कर हल्का महसूस कर रहा हूं। धारा के साथ बहने का सुख गंवाना मूर्खता है। होली में वही लोग उदास दिखते हैं जो खेलते नहीं, घर बैठे रंगों को गरियाने लगते हैं। एक बार कीचड़ में उतर जाइये, सन जाइये तो मज़ा आता है। खेलने में भी और उसके बाद नहाने में भी।"
bas aap samajhiye ki yahi mera comment hai jo churakar aapne likh diya hai.
वाह! होली खेलने का अलग ही आनंद है। न खेलने वाला भी सोचता रहता है, काश कोई आए और उसे रंग जाए। फिर वह भी होली खेल सके। जब कोई नहीं आता तो शाम उदास हो जाती है।
hamam mein sabhi nange hai sir :)
इसीलिए मैंने तमाम न्यूज चैनलों को अपने टीवी में पासवर्ड से ब्लॉक कर दिया है और उस पासवर्ड को जानबूझ कर भूल गया हूँ :)
फटीचर काल के तमाम आलोचकों पर कोड़े बरसाये जाने चाहिए। उन्हें ज़ंजीरों में बांध कर उनसे सानिया की शादी के घटिया कार्यक्रम बनवाये जाने चाहिए। आखिर दर्शकों ने जब खारिज नहीं किया तो ये कौन होते हैं। मैं कौन होता हूं। ग़लीज़ शाइरी का जलवा होता है। महफिलों में ग़ालिब नहीं सुनाये जाते। टीवी का यह लुगदी साहित्य बवाल स्तर का कमाल पैदा कर रहा है। कब तक आलोचना का काल चलेगा। कब तक।
achchha hai ... bahut badhiya vyangya
जानबूझकर भूल जाना !!!!!!!! ये भी खूब .....
Too gud...sir...
kal tv dekhte waqt yehi soch rahi thi.....thank god aaj mera off hai...warna.....chhoti si clipping aur 2-3 ghante...."LIVE" ...."Xclusive".....!!
स्टार न्यूज़ के वीर रिपोर्टरों ने सबसे पहले शोएब और सानिया को हैदराबाद मे एक साथ ढूंढ निकाला...चैनल उनकी तस्वीर ऐसे दिखा रहा था जैसे कोई जंग जीत कर लाए हों...धन्य है हिंदी मीडिया....आई एम प्राउड टू बी ए हिंदी मीडियापर्सन....
इस टीआरपी और प्रिंट मीडियम के सरक्यूलेशन का गणित अब आम पाठक को समझ में आने लगा रवीश भाई. वह दिन दूर नहीं जब चैनल्स और अख़बार सामूहिक स्तर पर ख़ारिज किये जाएंगे.सानिया-शोएब की शादी हॉट न्यूज़ है यह आज मीडिया तय कर रहा है लेकिन पाठक या दर्शक अब इस कुचक्र में फ़ँसने वाला नहीं है.कुछ ही सरफ़िरें हैं जिन्हें इन ख़बरों में रस आता है. सच तो यह है कि ख़बर तो उस दिन हॉट कहलाएगी जब पहले से शादीशुदा होने के आरोप में शोएब का दूसरा निकाह ग़लत ठहराया जाएगा. सानिया की सगाई हो तो ख़बर,शादी की तारीख़ तय हो तो ख़बर, टूटे तो ख़बर, दूसरी तय हो तो ख़बर और दूसरी में विघ्न आए तो ख़बर....गोया ख़बर नहीं हुई...चूँ चूँ का मुरब्बा हो गई...माफ़ करें...यह मुरब्बा अब स्वादहीन होता जा रहा है..तलवार सानिया-शोएब पर नहीं हमारे चैनल्स और अख़बारों पर टांगिये...लाचार पाठक और दर्शक को इतना भी बेवकूफ़ न समझे मीडिया...सोचने की बात इतनी ही है कि यदि यह शादी किसी पश्चिमि मुल्क में होती तो क्या इतना तूल पकड़ती...गिरेबाँ में झाँकने का वक़्त आ गया है हुज़ूर....
टीवी का सच लिख दिया
खुद ही मिया फ़जीअत
ऐसा लगता है सर कि आवाज आपके दिल से आई है...लेकिन अफसोस भी होता है ये देखकर कि जब ये महसूस होता है कि ये शब्द आपके अंदर से निकल हैं..उस इंसान के अंदर से जिसे पत्रकारिता में मील का पत्थर माना जाता है...अगर आपको आज ये कहना पड़ रहा है तो मन होता है कि अभी बस डेढ साल ही हुआ है इस दुनिया में कदम ऱखे..क्यो न यहीं से वापस हो लिया जाए..
bilkul sahi likha ravesh jee
आज तो दर्द उबल उबल कर बाहर आ रहा है। धारा के साथ चलने की इच्छा बता रही है कि बारह साल के बाद आप बदलाव की ओर झुक रहे हैं। अभी क्या है देखते जाइए, तमाम उत्पादक ऐसे ऐसे आइडिया लेकर आ रहे हैं जिससे विधानसभा और लोकसभा मिलाकर संसद की निर्माण करने का खम
ठोक रहे हैं। कुछ दिनों बाद सेल्फ रेगुलेटरी अथॉरिटी प्रावधान बना देगी कि बस सानिया मानिया टाइप के प्रोग्राम ही बनाए जाएं। गलतियों से बेहतर है लफ्फाजी। तब मीडिया में बने रहना और आसान हो जाएगा। फुटपाथों की सस्ती किताबों और कॉमिक्स से आइडिया फूटेंगे। तब आएगा मज़ा टीवी में काम करने का रवीश भाई। ना अख़बारों की ज़रूरत ना मैग्जीन्स की। मस्तराम, गश्तराम पढ़ो और एक नए आइडिया के साथ चलताऊ शब्दों पर प्रोग्राम गढ़ डालो।
आज कुछ ऐसा ही हमने लिखा था सर...लेकिन आपके शब्दों के आगे सब फीके पढ़ जाते हैं...
जब-जब इस तरह की बातें सुनता हूं अंदर से पागल हो जाता हूं, रोंगटे खड़े हो जाते हैं..भोकार पार के रोने का मन करता है..क्या सोच के इस फील्ड में आया था और क्या हो रहा है...शायद मैं अंदर से कुंठित हूं या अच्छा करने का ठेका मैंने ही ले रखा...इस लिए ज्यादा दुख होता है...पर हमसे भी तीसमारखां लोग पडज़े हैं फील्ड में परे है.. शायद मैं जो सोचता हूं वह नहीं कर पाता नहीं पाता इसलिए फ्रस्ट्रेटिया गए हैं..शायद हमारे जैसे लोग कमजोर हैं दुनिया से लड़ने की जगह पलायन और निराशावाद और आलोचना वाद का सहारा लेते हैं..........
दो दिन से खबरिया चैनेलों को देख देख कर उबकाई सी आ रही थी. हर चीज़ को बेचने की कसम खा राखी उन्होंने. बेचारी सानिया जाने क्या सोच कर शादी की खबर दे दी. अब तो वो भी पचता रही होगी या कौन जाने सारे झमेलों से बचने के लिए मना ही कर दे शोइब मियाँ को. खैर उसका जो भी हो इनकी टीआरपी तो आसमान छु रही है. अच्छा लगता है ये देख कर कि किताबों कि साड़ी बातें कैसे हकीकत कि ज़मीन पे धुल फांकती हैं. आपका ये लेख शायद [अगर वो पढ़ते होंगे तो] उनके कुछ काम आये.
Badhiya hai..
वाह! क्या हिन्दी और क्या अंग्रेजी चैनल, सब एक ही धुन में है।
प्राचीन ज्ञानी संसार को 'झूठा बाज़ार' कह गए,,,और आधुनिक ज्ञानी उनको झूठा साबित करने की सोच में फिर भी अड़े हैं...
"मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है " बिलकुल सही बैठता दीखता है - मीडिया को २४x७ दिखाने की और दर्शक को देखने की मजबूरी,,,क्यूंकि जो पहले कभी-कभार ही मनोरंजन के लिए फिल्म हाल में देखने जाते थे, उनको 'विकास' के कारण आदत पड़ गयी घर बैठे टीवी देखने की,,,जिसके कारण आरंभ में तो अच्छा लगा किन्तु फिर बीमारी बन गया क्यूंकि किसी से मिलने जुलने जाना और बाहर घूमना छूट गया,,,और उस पर सही मजा लेने हॉल में फिल्म अभी भी देखते हैं भले ही पोप कोर्न खाने और कोका कोला पीने, और मजबूरी में आदतन घर में टीवी के सामने बैठ जाते हैं पतन या विकास के विनाश में परिवर्तन के समाचार सुनने के लिए (आज समाचार मिला की केलिफोर्निया में जोर का झटका धीरे से लगा है :(
आज इन आइडिया उत्पादकों के समर्थन में यह लेख लिख कर हल्का महसूस कर रहा हूं। धारा के साथ बहने का सुख गंवाना मूर्खता है। होली में वही लोग उदास दिखते हैं जो खेलते नहीं,घर बैठे रंगों को गरियाने लगते हैं। एक बार कीचड़ में उतर जाइये, सन जाइये तो मज़ा आता है। खेलने में भी और उसके बाद नहाने में भी। apne saath bahuton ke antardvand ko prakat kar diya aapne badhai.....
पहले तो हमारा कापर फोड़ दीजिए. आलोचना करते करते थक गए हैं. कुछ हिला नहीं पाए. इतना जरुर है कि आलोचना करने का पैसा नहीं लिए.
एक काम करते हैं. दुःख को किनारे रखते हैं. मजा लेते हैं. जो होगा देखा जाएगा. गरियाने से भी कुछ बदलने वाला तो है नहीं. खुद ही किनारे लग जाएँगे. और अगर किनारे लग गए तो पेट कैसे पलेंगे. जब मौका मिलेगा तो अपने ईमान को जगा देंगे. ठीक रहेगा न...
सच बात तो ये है कि समाज हर क्षेत्र में ऐसी ही "गरीबी" भरी पड़ी है , अगर बात पत्रकारिता की हो रही है तो यहाँ "सार्थक विचारों की गरीबी" है......
partra karita ka haal apne nichale estar ki or agrasar hai
ek baar apne nimn estar par aa jaye fir achchaa aa jayga
achcha samay tika nahi to bura samay bhi nahi tikega
sama bada balwan hai
wait & watch
bura mat maniyega ravish lekin aapki khij is baat par hai ki star news ye sab kuch chala raha hai.sabse pahle baat saniya ki, jisne kyo bhand media ko bulakar apni shadi ki baat kahi, jab saniya ko sari "sachhai" pata thi to usne kyo hawa di, kyoki wo khud lime lite ki bhukhi thi.chupchap dubai me kisi bhi shoaib se shadi kar leti yaqeen maniye is desk ka ek bhi yuva suside nahi karta.lekin usne halla machaya. aap hi bataye yadi media itni tafteesh nahi karta to kya itne sach samne aate. bilkul shadi karna saniya ka niji faisla hai aur hamari taraf se wo qasab se shadi kare. lekin aap jis media ki khate hain use na gariyae, kyoki jab aap pura din narendra modi, bjp, sangh, hindu ko gherte hain. jab aap din bhar babri babri chillakr is desk ke masoom musalmano me zahar bharte hain to mujhe khud ke patrakar hone par dukh hota hai, aap usi channal se hain janab jaha gujrat me modi ko harane ke liye aapne koi kasar nahi chodi thi aur modi ki jeet ke baad aap sab vanvas par chale gaye the. star ne ati kar di thik usi tarah jaise aap modi ko lekar karte hain.vaise mai samjh raha hon ki aapko media ki fiqra kyo hui kyoki mamla alpsankhyak shoaib aur shanti hindustan ke nalayak bhai pakistan se juda hai. kalpana kare modi ka ek beta hai, ab use shoaib ki jagah rakhe aur bharat ki jagah desh pakistan kar de. yaqeen maniye aap ye lekh jabhi nahi likhte, balki....khair, fursat mile to jawab dena.
टीआरपी के फेर में मची है रेलम-पेल
होगी सानिया की शादी, या शोएब जाएंगे जेल
शोएब जाएंगे जेल, सब कपार फुड़वाते
दिन-दिन भर बैठ टीवी पर कानून बताते
achha vishye, achhi bhasha, achha kahan or achha tevar, badhai. aise lekh kam padhne ko milte hain.
ise padhne ke baad yahi kahunga-
khamosh hum rahe to pahal kaun karega. ujde chaman men ferbadal kaun karega, prashnon ke paksh men agar chale gaye jo hum, uttar ki samasyaon ko hal kaun karega.
main soch raha tha ki ab shayad raveesh is topic se khud ko door hi rakhega. lekin ghuma-fira ke trp, channel, sarcasm ki oat me hi likh hi mara boss. temptations are difficult to control.
achcha likha hai.
सर आपके लेख में कमेन्ट सिर्फ इसलिए करता हूँ ताकि आप मेरा नाम पढ़ ले सर आपकी शैली का कायल में आपके च्क्रव्हिउ वाले दिन से हूँ. लेकिन सर क्या ये बोलना की सिर्फ सानिया की बात मीडिया में हो रही है ये बोलना भी तो सानिया की बात करना ही है? आपके चैनेल के अभिज्ञान जी ने पूरा न्यूज़ पॉइंट ही इसी पे केन्द्रित किया की मीडिया सिर्फ सानिया की न्यूज़ क्यों दिखा रही है जब की वो खुद उस पर प्रोग्रम्म कर रहे थे. आलोचना के बहाने ही सही बात तो निकिली है अब निकिली है तो दूर तक जाएगी
सुना था आप अच्छा लिखते हैं,पर गलत निकला! आप तो जबरदस्त लिखते हैं.मधेपुरा आइये फिर कभी,सिर्फ बाढ़ में आते हैं,सुखाढ़ और अग्लग्गी भी यहाँ का कवर करने लायक है.
हिंदुस्तान में आज सानिया के निकाह पर आपका कालम वाकई बढ़िया रहा...पर भाई, जिन ब्लाग्स का आपने उल्लेख किया है क्या वे भी इतने संवेदनशील मुद्दे पर आपको उतने ही गंभीर लगे.? अगर लगे तो कोई बात नहीं , अन्यथा यदि मौका मिले तो chhapas पर मेरा इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है और वो मेरे ब्लॉग (padampati.blogspot.com) पर भी है. पढने की जहमत उठाईयेगा, बहुत ख़राब नहीं लगेगा ....ब्लॉग में जिन मोहसिन खान के रीना के साथ निकाह की आपने चर्चा की है, उनकी रोमानियत के लम्बे किस्से हैं.....पाकिस्तान के चार-पांच दौरों के दौरान पाकिस्तान क्रिकेट को मुझे काफी करीब से देखने को मिला है और मेरा मानना है अपने घर में साधू और परदेस में शैतान की पहचान वाले पाकिस्तानी क्रिकेटर्स से निकाह की कम से कम कोई भारतीय संस्कारों में पली-बढ़ी लडकी कल्पना भी नहीं कर सकती है ....खैर, अपने अगले ब्लॉग में मै मोहसिन से सम्बन्धित ऐसी घटना का उल्लेख करने जा रहा हूँ उसमे हालत ये हो गयी थी कि गावस्कर सहित भारतीय और पाकिस्तानी खिलाडियों को कुछ देर के लिए हवालात की हवा खानी पड़ गयी थी ...भला हो एक पूर्वे पाकिस्तानी क्रिकेटर का जो तब वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे, नहीं तो सभी को जेल की भी सैर करनी पड़ सकती थी.....ऐसे न जाने कितने राज ८०-९० के दशक में कवरेज करने वाले पत्रकारों के सीने में दफ़न हैं पर अब समय आ गया है कि उन पर से पर्दा हटाया जाय...किताब तो देर में आयेगी पर ...मोहसिन पर अगले ब्लॉग में जरूर चर्चा करूंगा....आशा है आप सकुशल होंगे....
हिंदुस्तान में आज सानिया के निकाह पर आपका कालम वाकई बढ़िया रहा...पर भाई, जिन ब्लाग्स का आपने उल्लेख किया है क्या वे भी इतने संवेदनशील मुद्दे पर आपको उतने ही गंभीर लगे.? अगर लगे तो कोई बात नहीं , अन्यथा यदि मौका मिले तो chhapas पर मेरा इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है और वो मेरे ब्लॉग (padampati.blogspot.com) पर भी है. पढने की जहमत उठाईयेगा, बहुत ख़राब नहीं लगेगा ....ब्लॉग में जिन मोहसिन खान के रीना के साथ निकाह की आपने चर्चा की है, उनकी रोमानियत के लम्बे किस्से हैं.....पाकिस्तान के चार-पांच दौरों के दौरान पाकिस्तान क्रिकेट को मुझे काफी करीब से देखने को मिला है और मेरा मानना है अपने घर में साधू और परदेस में शैतान की पहचान वाले पाकिस्तानी क्रिकेटर्स से निकाह की कम से कम कोई भारतीय संस्कारों में पली-बढ़ी लडकी कल्पना भी नहीं कर सकती है ....खैर, अपने अगले ब्लॉग में मै मोहसिन से सम्बन्धित ऐसी घटना का उल्लेख करने जा रहा हूँ उसमे हालत ये हो गयी थी कि गावस्कर सहित भारतीय और पाकिस्तानी खिलाडियों को कुछ देर के लिए हवालात की हवा खानी पड़ गयी थी ...भला हो एक पूर्वे पाकिस्तानी क्रिकेटर का जो तब वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे, नहीं तो सभी को जेल की भी सैर करनी पड़ सकती थी.....ऐसे न जाने कितने राज ८०-९० के दशक में कवरेज करने वाले पत्रकारों के सीने में दफ़न हैं पर अब समय आ गया है कि उन पर से पर्दा हटाया जाय...किताब तो देर में आयेगी पर ...मोहसिन पर अगले ब्लॉग में जरूर चर्चा करूंगा....आशा है आप सकुशल होंगे....
"पत्रकारिता के सारे अहंकार इस टीआरपी के जूते के नीचे रिरिया रहे हैं। यह देखकर अच्छा लगता है। अब रोने और सिसकने की सीमा से आगे जाकर दर्द दवा बन चुका है।............"
बहुत ही सुन्दर लाईने हैं. इन लाईनों के बाद कुछ कहने की जरुरट नहीं है
टीवी तो टीवी है भाई साहब
TRP ki jang mein Tv channel aise kood padhe hain ki jaise sania wimbldon jeet layi hai. Aur itne phuhad hote chale gaye ki sania ka lahenga hi ud gaya hai.
Aapne jo kuchh likha bahut sunder sajieele tarike se pesh kiya hai . iske liya aap badhaii ke patra hain. ( Girdhari Lal)
ravish ji apne sampadak se baat kar ke aap bhi kood jae.
धारा के साथ बहने का सुख गंवाना मूर्खता है। होली में वही लोग उदास दिखते हैं जो खेलते नहीं,घर बैठे रंगों को गरियाने लगते हैं। एक बार कीचड़ में उतर जाइये, सन जाइये तो मज़ा आता है। खेलने में भी और उसके बाद नहाने में भी।
सानिया के पीछे मीडिया का भागना वाकई बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। एक आम आमदी क्या सोच रहा है। इस बात को मीडियावालों ने कभी जानने की कोशिश नहीं की। रवीशजी आप जिस मीडिया संस्थान में काम करते हैं। पत्रकारिता के फील्ड में उसकी साख आज भी बनी हुई है। मैं आपके संस्थान की तारीफ करूंगा कि भले ही सारे चैनल सानिया के पीछे भाग रहे थे आपका चैनल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले पर केंद्रित था। ये अलग बात है कि फुटेज और लाइव कवरेज के मामले में आपका चैनल एक-दो चैनलों से पिछड़ गया था, लेकिन आपके संस्थान की ये पत्रकारिता एक दर्शक के तौर पर हमें अच्छी लगी। मूल बात ये है कि ये हम पर निर्भर करता है कि हम क्या करने जा रहे हैं। हम जो करने जा रहे हैं उसका आभास हमें होना चाहिए। यदि सानिया के कवरेज से आपको टीआरपी मिल रही है तो फिर आप सानिया के पीछे ही भागेंगे, क्योंकि बाजार में आपको जिंदा रहना है। अब ये जनता को तय करना है कि वो सानिया को देखेगी या फिर देश और समाज से जुड़े मुद्दों को देखेगी। हां मीडिया का ये कर्तव्य जरूर बनता है कि वो देश और समाज में स्वस्थ माहौल विकसित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। दुख इसी बात का है कि मीडिया अपनी इस भूमिका में काफी पिछड़ती हुई नजर आ रही है।
"अंत भले का भला",,,
सुनने में आता था, "चट मंगनी / पट ब्याह",,,यहाँ तो " चट ब्याह / पट तलाक" लागू था, किन्तु 'जोर का झटका धीरे से लगा' यानि, मीडिया के शोर गुल और हवाई महल बनाने के बाद 'चट तलाक' से सब हल हो गया :),,,और, लोगों के किसी को जेल भेजने के ख्वाब धरे धराये रह गए! शायद सही कहते हैं कि जोड़े स्वर्ग से बन कर आते हैं (कृष्ण की तो १६,००० पत्नियां थी)!
जय माता की! माता खुश तो सब खुश!
आप क्यूंकि 'रवीश' हो इस कारण बता ही देते हैं रहस्य कृष्ण की १६,००० पत्नियों का, जो मेरी समझ आया...
हिन्दू मान्यतानुसार, ब्रह्माण्ड के प्रतिरूप, मानव के जीवन में, (ब्रह्मा के प्रतिरूप) सूर्य का एक चक्र सोलह (१६) वर्ष का होता है (जिसके अंतर्गत अन्य ग्रह भी कुछ योगदान देते हैं,,,और ऐसे ही अन्य ग्रह भी चक्कर चलाते हैं अपने अपने क्रम से),,,और ब्रह्मा के एक दिन में १००० बार युगों का चक्र हमारी (दूधिया) आकाश गंगा नामक तारा मंडल में कृष्ण के सुदर्शन-चक्र समान चलता है,,,और हम आज जान पाए हैं की इसके केंद्र में एक शक्तिशाली ब्लैक होल है,,,यानि 'कृष्ण' १६ वर्ष एक सूर्य किसी एक मानव रूप के साथ होता है,,,और उसके बाद ९९९ (जो जीज़स को दर्शाता है!) नए सूर्य के साथ जुड़ता है ब्रह्मा के एक दिन में!
SO MEDIA ON MATCH AND CHAMPIONSHIP POINT AGAINST SANIA-SOHAIB PAIR. BUT WHAT IS THE NAME OF TOURNAMENT I DONOT KNOW...CAN WE SAY IT ANOTHER MEDIA TRIAL...WHICH SOME SAY INSAAF FOR AIYSHA.....WILL IT STOP AFTER THAT TALAK OR IT WILL GO ON AND ON....I WAS SURPRISED TO SEE WHEN THREE WAS A NAXAL ATTACK MANY CHANNELS WERE LIVE FROM HYDERABAD NOT FROM DANTEWADA....ITS SHAME OR MORE OF THAT.......
श्रीमान यदि गंगाज़ल और गौमूत्र को शीशियों में बेचा जा सकता है, तो फिर ये तो कुछ भी नहीं,
और प्रशासक ही 'दंतहीन' हो तो भय कि तो गुंजाइश ही नहीं | सब धृतराष्ट्र कि भांति आज कि महाभारत का आँखों देखा हाल सुन रहे हैं किन्तु क्या करें लोकतंत्र है |
good post
परिवर्तन ज़रूरी है
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