भूतों वाली गली



पश्चिम दिल्ली के नांगलोई जाट इलाके में भटक गया था। एक गली का नाम देख कर चौंका। भूतों वाली गली। आप तस्वीर में देख सकते हैं। एक शिक्षक से पूछा तो उन्होंने बताया कि बहुत साल पहले इस गांव के चारो तरफ खेत थे। गहलोत जाट दिन भर खेतों में काम कर जब शाम को लौटते थे तो उनके चेहरे मिट्टी से सने होते थे। वे भूत की तरह लगते थे। तभी से यह भूतो वाली गली कही जाती है। फिर भी न्यूज़ चैनल वाले इसमें अपने लिए संभावनाएं ढूंढ सकते हैं। अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने के क्रम में सवाल उठा सकते हैं कि दिल्ली में कैसे भूतों के नाम पर गली हो सकती है।

16 comments:

सुशीला पुरी said...

गज़ब !!!

महुवा said...

kahan kahan ghumte rehte hain sir aap.....aur har baar kuchh naya aur xclusive....nikaal laate hain.... :-)

ravish kumar said...

क्या करें? नौकरी ही ऐसी पकड़ ली है। हमारे जीवन में इतने किस्से भरे हैं, वही खतम नहीं होते।

रवि कुमार, रावतभाटा said...

गज़ब है...
सही है अभी कई भूतहा गलियों से गुजरना बाकी है...

प्रकाश गोविंद said...

चलिए भूत वाली गली तो मिल गयी
अब
चुड़ैल वाली गली का पता लगाते हैं :)

JC said...

कहावत है, "जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ"...

सशरीर भूत तो दीखते हैं सभी को लेकिन अशरीर भूत कुछेक को ही दीख पाते हैं,,,जैसा - 'बेताल पच्चीसी' में और 'सिंहासन बत्तीसी' में - कहते हैं राजा विक्रमादित्य को दिखाई ही नहीं दिए बल्कि उन्होंने उनको काबू में भी कर लिया था,,,और राजा भोज भी उनकी बराबरी में तुच्छ पाए गए :)

आपकी ही दिल्ली में कई घर हैं जिसमें 'बड़े-बड़े' मंत्री लोग भूतों के कारण रहने से कतराते हैं :)
जय भूतनाथ की!

Sanjeet Tripathi said...

आपकी नज़रों का कमाल मानना पड़ेगा, कहां कहां दौड़ती है और एक से एक सीन/बात ले आती है।

कुलदीप मिश्र said...

रवीश जी प्रणाम!, भाई वाह! "रवीश की रिपोर्ट" जैसा कार्यक्रम किसी न्यूज़ चैनल पर पहले कभी नहीं देखा...दिल्ली का लापतागंज और बस्ती को बसते देखना अविस्मरणीय था....मैं तो पूरी रिपोर्ट की विडियो के जुगाड़ में हूँ...यूट्यूब पर भी नहीं मिला...आभारी रहूँगा यदि मदद करेंगे...कुछ ना हो तो कृपया यूट्यूब पे तो डलवा ही दें...

राजीव तनेजा said...

अरे रवीश जी...आप तो हमारी बगल से हो के ही निकल गए और हमें पता भी ना चला ....:-(
वहाँ से बस एक किलोमीटर की दूरी पर ही मेन रोहतक रोड पर मेरी रेडीमेड दरवाजों की दूकान है एक बार पहले भी अशोक चक्रधर जी के कार्यक्रम मे आपसे मुलाक़ात हो चुकी है ....
खैर!...ज़िंदा रहे तो और भी मौके मिलेंगे आपसे मिलने के ...यही सोच के संतोष कर लेते हैं :-)

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

गली भूतों वाली! बहुत बढ़िया, जब दिल्ली में नाईवालान,टोकरीवालान,घोड़ेवाली गली, बल्लीमारान हो सकता है तो भूत वाली गली की कहानी भी दिलचस्प होगी?

ravishndtv said...

राजीव जी,

अरे, आप पड़ोसी हैं। अब तो मुझे अफसोस हो रहा है दोस्त।

नवीन जी

सही कहा आपने। भूतों वाली गलि क्यों नहीं।

मनोरमा said...

आपके एेसे बेशूमार किस्सों के तो हमलोग कायल हैं हम तैयार बैठे हैं, अपने किस्सों को हमसे शेयर करते रहें।

Anoop Aakash Verma said...

ravish ji ko saadar parnaam...bhai ji bahut achha laga ki chakchaundh waali patrkaarita k daur me aap gali-gali ghumte hai.....

Anoop Aakash Verma said...
This comment has been removed by the author.
हेमन्त वशिष्ठ said...

... रवीश जी ...इस भूतों वाली गली के लगातार दो साल चक्कर मैने भी काटे लेकिन...भूत कोई नहीं मिला...कहीं नहीं मिला। अलबत्ता फिजिक्स की ट्यूशन के बहाने से ही भूतों वाली गली में आना-जाना बराबर लगा रहा... अर्से बाद किसी बोर्ड पर भूतों वाली गली लिखा देखकर... कुछ अच्छा सा लगा... धन्यवाद

नई राह said...

sir akhir aapki pahuch bhooto tak bhi ho hi gai kher badiya hai patrkarita ki pahuch hat tabke tak honi chaiye . jab duniya chand tak apni pahuch rakhti hai to patrkar bhooto tak kyu nahi .. agar malum hota ki aap wha aaye hai to jarur aisi kai galiyo se apka parichye karata. shayad apko ravish ki report k liye ek story mil jati... aab bhi dekh kar dhang reh jate ki inhi bhooto ka varchasv hai nangloi jat me