जब से होश संभाला हूं अपने भारत को एक अजीब होड़ में देखता हूं। मर्दाना मुल्क की चाहत लिये सुपर पावर बनने की होड़।
जाने कब से भारत में प्रथम उपलब्धियों का जश्न बन रहा है। पूरा मुल्क मुझे गिनिज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड लगता है। चांद पर पहली बार,दुकान पर पहली बार,सेना में पहली महिला,राष्ट्रपति पद पर पहली महिला,पहला विश्वकप आदि आदि। अपनी हर उपलब्धि में हम पहली बार सीना तानते हैं। फिर अपनी चाल में मस्त हो जाते हैं। यह मुल्क अतीत से लेकर वर्तमान और भविष्य तक में गौरव के क्षण तलाशता दिखता है। इसी बीच में इसका एक मंत्री लेक्चर देता है कि परीक्षा खत्म कर देते हैं। ग्रेड दे देते हैं। लेकिन बाकी के वृहत्तर क्षणों को देखिये तो अखबार से लेकर टीवी पर महाविशेषज्ञों के संबोधन में भारत के सुपर पावर बनने का ख्वाब बार बार आते रहता है।
ये ख़्वाब अमेरिका से चुरा कर हम ओरिजिनल बनाकर बेच रहे हैं। करो,मरो और खटो। खटते रहो तब तक जब तक मुल्क भारत सुपर पावर न बन जाए। हिंदी में भारत पुल्लिंग है। अंग्रेज़ी में मुल्क स्त्रीलिंग है। व्याकरणों में तय ही नहीं हुआ कि मिट्टी पर सीमायें खींच कर उसके भीतर बसाई गई नगरी का लिंग क्या हो। कब दिल्ली हो जाती है और कब पटना हो जाता है। ठीक उसी तरह जैसे कुछ मर्दों का नाम पुष्पा हो जाता है। तो हम नहीं कहते हैं पुष्पा आ रही है। मुल्क के साथ क्यों होता। मर्द और औरत का तो जेंडर नहीं बदलता। मुल्क का क्यों बदल जाता है।
मुल्कों की होड़ मची है। मुल्क के भीतर होड़ मची है। पूरी मानव सभ्यता एक भयंकर किस्म के कंपटीशन में आ गई है। हर दिन रिज़ल्ट आउट होता है। सुपर पावर बन कर हम क्या करेंगे। क्या अब मुल्क की परिभाषा दो सौ साल पुरानी परिभाषाओं से तय हो सकती है? लाखों लोग अब एक मुल्क से दूसरे मुल्क की तरफ आवाजाही कर रहे हैं। वो अपने साथ एक पुरानी नागरिकता लेकर चलते हैं और नई वाली का पासपोर्ट। इसीलिए अब नागरिकों का पहचान पत्र बन रहा है।पहले हम रंग रूप,बोली और पैदाइश से समझे गए कि भारतीय है। अब नंदन निलेकणी एक कार्ड देंगे कि हम भारतीय है। संविधान ने कहा कि इस भूखंड पर जो पैदा हो गया भारतीय है। नया हुक्मरान कहता है कि पैदा होने से नहीं चलेगा। आई कार्ड भी दिखाना होगा।
दिखाओ भाई दिखाओ। सुपर पावर बनने के लिए आई कार्ड होना ज़रूरी है। ये सुपर पावर भी आईएसओ-९०० के प्रमाण पत्र जैसा हो गया है। अस्पताल या होटल के बाहर टंगा हुआ। पहला आईएसओ प्रमाणपत्र प्राप्त होटल। स्कूलों में भी यही सीखाया जाता है। सारी समस्या नागरिकता को बांधने की है। हम सब की नागरिका बदल रही है। सीमाई सोच से आगे हम कबके निकल चुके हैं। निलेकणी का आईकार्ड याद दिलायेगा कि तुम भारतीय है। तुम अमरीकी। तुम क्यूबाई। राष्ट्र राज्य की तरफ से कोशिश हो रही है कि हमारी घुलती पहचानों को और घुलने मिलने से रोकने के लिए। नागरिकों का स्पस्ट समूह ही नहीं रहेगा तो राष्ट्र किस बात का रहेगा।उसकी औकात नगर पालिका की हो जाएगी। हम सब फेसबुक आरकुट के नागरिक है। जाने कितने दोस्तों को ढो रहे हैं। फ्रेडशिप अब नेटवर्किंग है। नागरिकता पुरातन है। नागरिकता को भी नेटवर्किंग में बदल देनी चाहिए। कल को फेसबुक पर दोस्ती के आवेदन को कंफर्म करते वक्त क्या नागरिकता आई कार्ड मांगेंगे। पुलिस कहेगी कि आपने बिना पूछे और जाने कैसे किसी को दोस्ती के लिए कंफर्म कर दिया। आप संदिग्ध हैं। मामला दर्ज होगा।
दफ्तर में बताता हूं कि मेरे फेसबुक पर हज़ार से ज्यादा लोग है तो साथी मुझे डरा देते हैं। तुम क्या बिना जाने कंफर्म कर देते हो। प्रोब्लम में फंसोगे। बचना।प्लीज़ डिलिट करो। क्योंकि फेसबुक की दोस्ती दस्तावेज़ है। आप मुकर नहीं सकते। आईपी अड्रेस से पता हो जाएगा कि किस कंप्यूटर से बैठकर फलां ने फलां को दोस्त के रूप में कबूल यानी कंफर्म किया था। हमारे रिश्ते बदल रहे हैं। नागरिकों के बरक्स और मुल्क के बरक्स। बिना भौगोलिक बदलाव के लाखों की संख्या में आबादी इधर से उधर हो रही है। कोई टैक्टोनिक शिफ्ट नहीं हुआ है। ऑस्ट्रेलिया कभी भारतीय भू खंड का हिस्सा था। मगर अब ऐसा नहीं होता।
वीज़ा लेकर हम मुल्क बदल लेते हैं। मगर मुल्क वाले एक ठप्पा लगाकर रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया एक दिन लौटेगी। अपने अपने कुनबों में। तब ये ठप्पा काम आएगा।
भटक जाता हूं। सुपर पावर के बाद हमारी ख्वाहिशों में एक और क्लास घुस चुका है। वर्ल्ड क्लास का। विश्व स्तरीय। आज तक नहीं समझ सका कि ये कौन सा स्तर है जिसे हम पाने के बाद छाती फाड़ कर एलान कर देते हैं। किधर से तय होता है कि विश्व स्तरीय है। कुछ दिन पहले एक स्टोरी आई। जयपुर में एक अमरीकी लड़की ने ऑटो वाले से प्यार कर लिया। हम खबरों में ऐसे कूदे जैसे अमेरिका ही झुक गया हमारे ऑटो वाले के कदमों पर। पता चला कि लड़की अमरीका की एक सामान्य नागरिक है। व्हाईट हाउस की नहीं है। घूमने आई थी शादी रचा गई। अमेरिका इतना छा गया कि स्वाभाविक प्रेम का किस्सा कहीं खो गया।
ये तो नहीं कहूंगा कि कुंठित मानसिकता है। मगर अजीब लगता है। वर्ल्ड क्लास और सुपर पावर का बोध। कितने सालों से हम बनने की कोशिश में लगे हैं। हद हो गई। लात मार देना चाहिए दोनो प्रोजेक्ट को। अपना कुछ करना चाहिए। लिख देना चाहिए कि भारत जो सुपर पावर नहीं है। अब जिसको आना है आए जिसको जाना है जाए।
32 comments:
अब जमीनी रिश्तो को भी समय हालात ओर हैसियत देखकर दिया जाता है जनाब .तो फिर इन कम्प्यूटरी रिश्तो से बेलेंस करना ...आदमी बखूबी जानता है ....इक्कीसवी सदी जो ठहरी
रवीश जी, रिश्ते बदल रहे हैं और रिश्तों के साथ शायद हम भी. रिकॉर्ड बेशक बन रहे हैं मगर मुझे कहीं कोई संतुष्ट नज़र नहीं आता. रही बात देश के सुपर पॉवर बनाने की तो यहाँ बहुत ही गड़बड़झाला है. ek कहता है हम दुनिया की सबसे ताक़तवर अर्थव्यवस्था हैं दूस्त्र कहता है अभी चीन से पीछे हैं, अब तो हथियारों पर भी शक होने लगा है. एक कहता है हमारे पास परमाणु बम हैं दूसरा कहता है परिक्षण फ़ैल था तो कहे के परमाणु बम. अब तो एक अफसर ने यह भी कह दिया के वायु सेना भी सशक्त नहीं है, यानी यहाँ भी कमी! यहाँ सब अपनी अपनी रोटी के जुगाड़ में लगे हैं, हम दफ्तरों में काम करके या किसीको पढ़ाकर, तो ये जो टीवी या अखबार पर सपने बेचकर, के भारत सुपर पॉवर बनेगा मगर कब? इसका जवाब अभी दूर है. हाँ मगर मैं मायूस नहीं हूँ, हम सुपर पॉवर ज़रूर बनेंगे मगर केवल हथियारों के दम पर नहीं, उस दिन जब देश के बच्चे भूखे सोना छोड़ देंगे, ताकि हम रोटी के आगे भी कुछ सोच सकें.
पूरे भारत को मत लपेटिये यह सब मीडिया का तमाशा है जो हर छोटी-बड़ी बात को ऐतिहासिक घोषित करने पर तुल जाता है।
होड तो ब्लॉग जगत में भी मची हुई है। आपने नहीं देखी क्या?
-----
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
विश्व स्तर पर सवाल सुपर पावर का है औऱ भारतीय मानस पटल पर श्रेष्ठ का है। कौन तय करेगा कि कौन सुपर पावर है? भारत में कौन तय करता आया है कि कौन श्रेष्ठ है? क्या सवाल कुछ एक जैसा नहीं है? दुनिया का ये नियम रहा है कि जो भी शक्तिशाली(सभी प्रकार से) हो वह यह तय करता है क्या मानक है। बल्कि हम यूं कहें कि वही शेष लोगों द्वारा मानक रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। आपनें अमेरिकी महिला का उदारहण सही दिया। वहां का एक इंसान किसी भी देश में जाए, वो खबरों की सुर्खियों में रहता है। लेकिन हमारे देश से बाहर गए कितनें ही लोग क्या करते है किसी को पता भी नहीं लगता है। अमेरिका आइडल है, भारत के नेता अमेरिकी नेताओं के साथ बैठनें भर पर गौरवांवित हो जाते हैं। जैसे स्कूल के मॉनीटर के साथ दोस्ती होनें पर क्लास के कमज़ोर बच्चे गौरवांवित हो जाते है।
रबिश जी नमस्कार ,जी बस खूब लिखा है आपने ...सब कुछ सच- जंग लगी इन कुंठाओं को धूप दिखाने की जरूरत है ..आपकी तीन बातें भली लगी ..पहली ,कि दुनिया एक दिन लौटेगी। अपने अपने कुनबों में। तब ये ठप्पा काम आएगा, उनकी ये सोच ...दूसरी अमेरिका इतना छा गया कि स्वाभाविक प्रेम का किस्सा कहीं खो गया और तीसरी ,अपना कुछ करना चाहिए। लिख देना चाहिए कि भारत जो सुपर पावर नहीं है। अब जिसको आना है आए जिसको जाना है जाए..यही सही होगा हमारे स्वाभाविक हित में .
Bahut hi umda lekh hai aapka Raveesh Ji!!
Ham aaj apne andar ek anayas ki bhag daud se pareshan hain !
Shayad is Liye ki hame ek din ek super power desh ka nagrik banna hai.
Mai Nadeem Ji se Bahut sahmat hoon Jis din Hamare desh Me koi Bhookha nahi soyega us din ham apne lakshyon ko prapt kar sakenge.
बहुत अच्छे रवीश भाई खूब नब्ज पकड़ी है। पर जो खुद का न हुआ वह खुदा का भी न होगा।
रविश जी प्रकृति में बदलाव निश्चित हैं. हो सकता हैं की कल को तस्वीर बदले और छोटें कहलवाने वाले आगें की पंक्ति में नजर आयें. वैसे यह मानव स्वभाव ही है जो खुद को किसी से कम नहीं समझाता हैं ऐसें में पॉवर और सुपर पॉवर का चक्कर तो हमेशा बरकरार रहेगा.
रविश भाई, हम भारतीय है और हमे बाहर के देशो से काफी लगाव और आकर्षण होता है( मुझे तो अपनी २०० साल की घुलामी का भी कारण येही लगता है ). हम हमेशा वोही करते हैं जो बाहर के लोग करते है तो ये कोई नयी बात तो हैं नहीं. हमारे पास जो कुछ हैं हमे उस से मतलूब नहीं है, जो नहीं है जो दुसरो के पास है या जो दुसरे कर रहे है, वोही करना है और वोही चाहिए. ये हमारी आदत है. हम लोग एक दौर में लगे हुए है की जो अमेरिका कर रहा है या और कोई विकसित देश कर रहे हैं हम कहीं उनसे पीछे न रह जाये. ये कारण है की हम कोई भी मौका छोरना नहीं चाहते. अभी परसों की ही बात ले लीजिये इसरो ने पानी खोज लिया चाँद पर तो हम इस बात से ज्यादा खुस इसलिए है की नासा ने ने हमारे वैज्ञानिको को सराहा है. जब की मैंने सुना हैं की नासा के काफी वैज्ञानिक भारतीय है. खैर जो भी हो पानी तो मिल गया वो किस फॉर्म में मिला मैं ये मुझे समझ में नहीं आया, और मुझे ये भी समझ में नहीं आया की हम उसका करेंगे क्या, कुछ न्यूज़ चैनल देख मैंने समझने की कोशिस की क्या हो सकता हैं आगे तो वो ये कह रहे थे की चाँद पर लाइफ संबव हो सकेगा या हम चाँद से पानी ला सकते है, हंसी आ गयी की अब तक तो यहाँ धरती को बर्बाद किया अब चाँद को भी करेंगे यहाँ जो पानी था हम उसके महत्व को समझ नहीं सके, और अब क्या हालत हो गयी है ये सब जानते है, हमारे देश की नदिया सुख रही है उसको बचाने की कोशिश कभी की गयी या नहीं ये तो परिणाम देख कर पता चलता है, अभी कुछ दिन पहले मेरे मित्र ने फ़ोन किया बाहर से की सुना है जमुना से दिल्ली में बाढ़ आने वाली हैं मैंने कहाँ यमुना खुद को दिल्ली से बचा ले वोही बहोत हैं बाढ़ लाने की ताकत यमुना से दिल्ली ने पहले ही छीन लिया है वो बाढ़ क्या लाएगी.गंगा की हालत भी वोही होने जा रही है. मानसून का क्या हाल है सबको पता है, हमारे वैज्ञानिको या सरकार या जो भी कर सकते है को इन सब चीजो पर भी ध्यान देना चाहए ऐसा मुझे लगता है, और एक बात मुझे आज तक समझ में नहीं आई की हमारा जो All India Weather Forecast Department उनकी फोरकास्ट कभी सच क्यों नहीं होती, पहले बोलेंगे की मानसून समय पर आएगा और सब कुछ नोर्मल है फिर जब लेट हो जायेगी तो बोलेगा की मानसून लेट से आएगा, जब बारिश शुरू हो जाती है तो कहते है मानसून आ गया है और जैसे ही बारिश बंद होगी तो कोई ऐसे ही कारण बता कर कट लेंगे और फिर सब कुछ ख़त्म, ये हर साल होता है ,मुझे समझ में नहीं आता ये डिपार्टमेन्ट बना ही क्यों. मैंने सुना है ये फोरकास्ट भी किसी उपग्रह से ही किया जाता है तो उस पर भी थोडा ध्यान देना चाहए ताकि किसी अख़बार के मुखपृष्ठ पर एक तरफ चाँद पर पानी मिलने और दूसरी तरफ दिल्ली में २ हफ्ते तक पानी का संकट रहेगा की हेड लाइन एक साथ न आये,
इस विषय पर ये पहली पोस्ट है
बधाई...
इंडिया का आधुनिकीकरण नहीं हो रहा,
पाश्चात्यीकरण हो रहा है कमबख्त....
करीब आठ-दस महीने पहले मैंने एक प्रसिद्ध चित्रकार के ऊपर कोई टीवी शो बनाया। शो अच्छी बनी। कुछ दिनों के बाद उनके आग्रह पर उन्हें डीवीडी भी उपल्बध करवाया, क्योंकि मामला अमरीका और लंदन में इसे दिखाने का जो था। काफी वक़्त बीत जाने के बाद भी उनका कोई संदेश नहीं आया, आखिरकार मैंने ही उन्हें फोन कर हाल-चाल जानना चाहा (असली मकसद तो अपनी तारीफ़ सुनना था)। लेकिन उनके कटु अनुभव ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया...और मन में एक सवाल छोड़ दिया की आखिर हम कब तक दूसरे के दिए पहचान (मसलन अमर्त्सेन, शशि थरूर,जुम्पा लाहड़ी आदी)पर जियें, इठलाएं इत्यादि? वैश्विकरण के इस दौर में मैं समझ रहा था कि अब हमारे बीच कोई दूरी नहीं होगी, हम एक दूसरे को बेहतर समझ पायेंगे...वैगरह। लेकिन अब सोच बदल गया है और कहने भी लगा हूं (अपने दोस्तो को ही सही जो विदेश में है।) कि मैं तुम्हारी कही बात को मानक नहीं मान सकता। मैंनें विदेश में पढ़ाई का सपना भी छोड़ दिया। आज रविश ने भी साथ दिया और कह दिया कि अपना कुछ करना चाहिए। लिख देना चाहिए कि भारत जो सुपर पावर नहीं है। अब जिसको आना है आए जिसको जाना है जाए। मैं खुश हूं कि मेरे सोच को एक सहारा तो मिला।
"हम सब फेसबुक आरकुट के नागरिक है।" मुआफ रखेंगे हम भारतीय नागरिक हैं। यहां एक फीसद लोग भी अरकुटिया नहीं हैं। पहचान बहुत जरूरी है। भूखों-नंगों और घुसपैठियों के इस देश में तो और भी जरूरी। हो सकता है कि इसी से कहीं कोई राहत-इमदाद मिल जाए।
आपकी पहली वाली बात जरूर सही है--- पहली बार ये, पहली बार वो। सब बकवास...
बड़े भाई मुझे तो खला यह कि हमने चन्द्रयान भेजा रूपया लगाया और घोषणा नासा करेगा कि चांद पर पानी है या नही, हमारा डाटा भी उनके पास होगा आखिर क्यो? जब हम इतने बड़े तीसमार खां बनते है तो वाई येस आर का हेलीकाप्टर जो मात्र १५० वर्ग कि०मी० के जंगल में था का पता २० घ्ण्टों तक नही लगा पाये तो हमसे क्या उम्मीद.कैसि प्रग्ति है यह और कहां है टेक्नालोजी.............असल मुद्दे को इतना भूल गये कि हमारे लोग अब कुछ इस तरह हो गये है बाकी आप समझ लेगे !
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये
इस बेबसी पर जरूर लिखियेगा असल मुद्द तो यह है।
ये तो नहीं कहूंगा कि कुंठित मानसिकता है। मगर अजीब लगता है। वर्ल्ड क्लास और सुपर पावर का बोध। कितने सालों से हम बनने की कोशिश में लगे हैं। हद हो गई। लात मार देना चाहिए दोनो प्रोजेक्ट को। अपना कुछ करना चाहिए। लिख देना चाहिए कि भारत जो सुपर पावर नहीं है। अब जिसको आना है आए जिसको जाना है जाए।
सही कहा आपने इन दोनों प्रोजेक्ट को लात मार देनी चाहिए लेकिन फिर बेचारा मीडिया कहाँ जायेगा जिसने बार बार दोहराकर यह सोच बनाई है |
ब्लांग पर बने रहे इसी शुभकामनाओं के साथ दशहरा की जय हो।
Dasrath ka ek sir > Ravan ke das sir...Happy Dussehra!
ऐतिहासिकता की बीमारी है तो काफी पुरानी,लेकिन सनसनीखेज दिखाने के चक्कर में नयी नयी परिभाषाएं चैनलों पर रोज ही दिखती है.....वैसे भी नयापन लाने का यह भोंडा प्रयास करने में ही कुछ लोग अपनी वाहवाही समझते है....बहरहाल कुछ भी हो लेकिन एक बात तो सौ फीसदी सच है कि कम से कम इन्ही प्रयासों के बदौलत आम आदमी रिकार्ड या फिर पहला बनने का प्रयास कर सकता है...हो सकता है कि आप कहें कि यह सकारात्मकता की इन्तहां है मगर ....मौका तो मिले
रवीशजी, मुझे लगता है कि ये सुपरपावर, वर्ल्डक्लास और 'जिंदगी में पहली बार' जैसी चीजें ही साफ्ट हिंदुत्व है। बीजेपी वाले बेवकूफ हैं जो शोर मचाकर कहते हैं कि हम पाकिस्तान को(कभी-2 चीन को भी बर्बाद कर देंगे), कांग्रेस उसी चीज को चाशनी में लपेटकर कहती हैं कि देश को सुपर पावर बना देंगे। ये इनका पुराना धंधा है-'89 में कांग्रेस भारत को महान बता रही थी तो 2004 में बीजेपी भारत को चमका रही थी। इधर कई बार-2 मुम्बई को शंघाई(वर्ल्डक्लास सिटी) बनाने की बात आती है तो वहां के एक समाजसेवी का कथन याद आता है कि मुम्बई को पहले रहने लायक तो बना दो, फिर बनाना वर्ल्डक्लास। बहरहाल,मुझे भी आजतक ये पता नहीं चला कि ये ससुरा वर्ल्डक्लास क्या होता है।
दरअसल जब हमारा सत्ता वर्ग( रुलींग एलीट इसके लिए बढ़िया शब्द है) कहता है कि हम सुपर पावर बना देंगे तो वे सामने के अज्ञात जनदवाब को 10-20 साल के लिए टाल रहे होते हैं साथ ही पिछले अपने 60 साल के किए पापों पर भी पर्दा डाल रहे होते हैं। और जब हमारे नेता परमाणु परीक्षण के बाद टीवी पर बाईट देने के लिए अवतरित होते हैं तो बेगूसराय जैसे जिले के किसी सुदूर गांव का बेचन पांडे अपने पिचके हुए गाल पर कमानीदार मूंछ एंठता है- हमने भी एटम बम बना लिया!
पिछले साल लालूजी सनके थे तो बोले कि बुलेट ट्रेन चलवा दो-देश वर्ल्डक्लास हो जाएगा। पता चला कि 100 किमी बुलेट ट्रेन में 10 हजार रुपया से ज्यादा का खर्च है, इतने में तो 5000 किमी हाईवे बन जाएगा या 10 आईआईटी। इधर किसी ने कहा कि इकनामी क्लास में चलो तो देश वर्ल्डक्लास हो जाएगा-इसे कहते हैं अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप। उधर सुना कि नीतीशजी बिहार को वर्ल्ड क्लास बना रहे हैं-हरेक हाईस्कूल में कम्प्यूटर। अब उन्हे ये पता ही नहीं है कि हाईस्कूल 5 किमी पर 1 है...और आधी से ज्यादा लड़कियां दूरी और छेड़खानी की वजह से स्कूल नहीं जा पाती-लेकिन बिहार, वर्ल्डक्लास बन रहा है।
दिल्ली कामनवेल्थ के बाद वर्ल्डक्लास बन ही जाएगी, बेंगलोर के लिए कोई जरुरत ही नहीं(वहां मिस वर्ल्ड का आयोजन हो चुका है) मुम्बई में जैक्शन आ चुके हैं और कलकत्ता को सिटी आफ जाय का दर्जा है। बस खेल खत्म। देश चकाचक! गांव वालों को-बकौल लालूजी-बिजली की क्या जरुरत है !
दरअसल हमारे पास इतने काम पड़े हैं कि हम अभी सैकड़ों साल तक 'जिंदगी में पहली बार' हो सकते हैं और फिर वर्ल्ड क्लास भी।
kya baat hai sir maza aa gaya. aur haan sie ji special report kyon nahin kar rahe hai.
यहीं वज़ह है कि इस होड़ के चलते हमारे देश और ख़ुद हमारी मौलिकता कहीं खोती सी जा रही है...जिस दिन हम सबसे पहले..सबसे आगे की रेस से ऊपर उठ कर कुछ सोच पाए...वो दिन हमारे लिए निश्चित रूप से कुछ सहज होगा..
अपर्णा
maine aapke post ko padhkar kuch pratikriya apne blog par likhi hai, uchit samajhiye to visit kejiye...
http://ankahibaatein.blogspot.com/
नीलेकणी का बंगला तो सरकार से खाली नहीं कराया जाता। सफदरजंग एंक्लेव में पुराने सांसद जमे हैं, नीलेकणी को बंगला देने की औकात नहीं है,तो इतनी ताकत कौनसी बूटी से देंगे कि सारे देश के यूनीक आईडेंटिफिकेशन कार्ड बिना किसी गड़ब़डझाले के बन जाए। जैसे वोटर लिस्ट में फर्जी नाम वैसे ही फर्जी कार्ड भी बनेंगे। आखिर सर्वे तो प्राइमरी के मुदर्रिस, आशा, आंगनवाड़ी, ग्राम सेविका जैसे बहुउद्देशीय कर्मी ही करेंगे। ये वो सेवक हैं जिनकी सेवा का कर ये दोनों ओर से वसूलते हैं, सरकार और नागरिक सभी से। तो ज़नाब जिसे चाहिए कार्ड वो इनकी जेब में कड़कता परमिशन कार्ड (नोट) ठोक कर ले ले। ये भी तुरंत आख्या दे देंगे। ये बात सही कही कि देश में उपलब्धियां तलाशकर रान बजानी बंद करो। कुछ लोग हैं जिनकी रोटी इसी काम से चल रही है। जो बैठकी में इन्हीं आंकड़ों के बूते अमेरिका की होड़ का विद्वत्व पादते हैं। ये कार्यक्रम के आधार पर बोलते हैं व्यवस्था के नहीं। योजनाओं का पता है लेकिन लागू करने वाली संस्था के नियम और सेवा शर्तों का नहीं। देश की मुट्ठी भर खुशहाल आबादी के दम पर सुपर पावर बनने का मुगालता पाले बैठे हैं।
Hamara yeh manna hai ki samaj ko ek shagufa chahiye aatmamughdha hone ke liye. Media apne TRP badhne ke daud main hai. yeh sab chalta rahega.
"kashi dekhi, Kaba dekha naam bade darshan chote hai. yun to hum khud bhi nahi apne yun to jo kuch hai sab apna hai".
रवीश जी , मै भी बचपन से इसी बात को लेकर भ्रमित हु , सारे जहाँ से अछा हिंदोस्ता हमारा . बाद में पढा की , HDI index में हमारा १२५ वा स्थान है . सूना था शेर जंगल का राजा होता है और वो औरो का मारा हुआ शिकार नहीं खाता पर आज डिस्कवरी चॅनल पर देखता हु शेर को बहुत सारे जानवर मार भगाते है और शेर जूते शिकार भी खाता है .
इन्टरनेट पर सब कुछ मिलता है - लेकिन विश्वास नहीं ! दोस्त तो लोग बना लेते हैं - लेकिन डरते भी है ! १३२० दोस्त बनाने के बाद "रविश भाई " डर रहे हैं - या फिर उनके ऑफिस के लोग उन्हें डरा रहे हैं - जैसा की उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा है - दुःख है - ऐसी दोस्ती - जहाँ विश्वास ही न हो - बेहतर होता आप हमारी दोस्ती कबूल ही न करते ! दिल दुखी है !
आपका प्रयास सराहनीय है. बहुत-बहुत बधाई. एक बार पुन डेरों शुभकामनाये..............
Shayad aapko comments me dilchaspi nai...agar hai to kripya apne pathkon ke comments par gaur farmaya kejiye sirji...
There is only one super power:named Shiva in ancient India. All other 'powers' are His inferior images...
इस विषय पर और सोचा जाना चाहिए। हम भारतीय कब होते हैं और कब उत्तर भारतीय हो जाते हैं। राष्ट्रीयता एक पहचान क्यों नहीं है। क्यों यह कई पहचानों के ऊपर रखी गई एक छतरी है?
यह भी सही है कि मीडिया हर बात को ऐतिहासिक बता रहा है। इतिहास का बनना अब लाइव है दोस्तों।
गए दिन गड्ढे से खोद कर लाए गए दस्तावेज़ो से इतिहास का बनना।
Her koi vyakti kaam kyun kar raha hai? Sab jante hain: Papi pet ke liye! Yahi kaaran hai jo aam aadmi ko uper uthne/ udne nahin deta - uske liye aapko khaas aadmi dikhayi dena Padega duniya/ padosiyon ki najron mein...Do (ishwar ki najar mein barabar) line mein ek ko bada dikhane ke liye sabse saral tarika hai ek ko thook laga ke chhota kar dena!
Post a Comment