तौबा तेरा जलवा, तौबा तेरा प्यार। इमोशनल अत्याचार। ठेठ बिहारी टच। इमोशनल अत्याचार के इस दौर में इमोशनल होना नेशनल होना हो गया है। अनुराग की नई फिल्म देव डी का यह गाना इमोशनल अत्याचार- देवदास के नाम पर लंपट बन रहे लैलाओं और आसिफों को लाइन पर लाने का उपचार है। डी यू के दिनों में कई ऐसे यौवनबहुल युवाओं को देखा है। सेंटी हो जाते थे किसी लड़की पर, उसके बाद सेंटिमेंटल होने लगते थे रात भर। उसके आने जाने का टाइम पता किया, घर का पता और उसे नोट्स देने का इंतज़ाम। बस शुरू हो जाता था इमोशनल अत्याचार।
इमोशनल अत्याचार खुद से अपने ऊपर किया जाने वाला अत्याचार है। जहां तक मुझे लगता है। कई लोग क्लास के बाद तब तक रूकते थे जब तक वो लड़की बस से घर न चली जाए। अगर कोई लड़की कार से आ गई तो पहले से ही उसकी अमीरी को लेकर खुद पर इमोशनल अत्याचार शुरू हो जाता था। यार कहां वो..कहां..मैं। औकात में रह बेटा। बस प्रेम का दि एंड।
प्रेम की तमाम निजी अभिव्यक्तियां फिल्मों की नौटंकी से मिलती जुलती हैं। आई लभ यू बोलने से लेकर डस्टबिन में फाड़ कर फेंके गए उन तमाम ख़तों की हर अदा हम अपनी जवानी में ओरिजीनल समझ कर लुटाते रहते हैं। लेकिन ये सब आता है फिल्मों से। बहुत कम प्रेमी होते हैं जो प्रेम में ओरिजीनल होते हैं और इमोशनल अत्याचार नहीं करते।
इस बेहतरीन गाने को सुनते हुए उन तमाम लंपट हरकतों की यादें ताजा हो गईं जिसमें एक लड़का और लड़की हर दिन एक दूसरे को बिना बताये चाहते रहते हैं। जब नहीं बोल पाते तो इमोशनल अत्याचार करने लगते हैं। मुझे वो लड़की क्यों याद आ गई जिसे कोई अच्छा लगता था मगर इतना बताने से पहले वो अपने भीतर हज़ार बार अपने पिता से ज़िरह करती, अपने रिश्तेदारों के डर से कांपती हुई हर दिन सौ मौतें मरती रहती। किसी को पसंद कर उसने जो इमोशनल अत्याचार किया वो सिर्फ इमोशनल लोग समझ सकते हैं। वो लड़का क्यों याद आ गया जो झूठी पट्टी बांध कर लड़कियों के बीच नाटक करता था कि गिटार बजाते हुए उसकी उंगलियां कट गईं। पटना का साला लंपू...बाप जनम में गिटार नहीं देखा लेकिन पट्टी बांध कर सेंटियाता रहता था।
सेंटी होना एक ऐसी सेंटिमेंटल सामाजिक प्रक्रिया है जो बिहार और यूपी के लड़कों को डी यू की खूबसूरत लड़कियों की परछाई के पीछे भागने के लिए मजबूर कर देती है। उसे आते देख सिगरेट जला लेना, किताब निकाल लेना और किसी निर्मल वर्मा की तरह सोचने लगना। और नहीं मिलने पर....शराब पीना। अक्सर हम सब के आस पास ऐसे लड़के होते ही हैं जो सामने वाली लड़की के शादी के दिन शराब पीते हैं। कि वो तो अब पराई हो गई। उसके घर जाकर कहने की हिम्मत नहीं होती लेकिन शराब पीकर शादी के दिन तमाम कल्पनाओं का रचनापाठ कर सेंटिमेंटल हो जाते हैं। अनुराग ने ऐसे तमाम कार्बनकौपी देवदासों को ठिकाने पर ला दिया है।
इमोशनल हुए बिना तो हम नेशनल भी नहीं होते। सेंटिमेंटल कैसे हो जायेंगे। सेंटी और मेंटल अलग अलग प्रक्रिया है। सेंटी होने तक तो आप कुछ काबू में रहते लेकिन मेंटल होने के बाद गॉन केस हो जाते हैं। रेशनल लोग वो होते हैं जो जाकर कह देते हैं कि गोरी सुनो न..आई लभ यू....। फिर किसी पार्क में घूमते हुए, ठीक पांच बजे घर से निकलते हुए और दरियागंज के गोलचा सिनेमा में फिल्में देखते हुए नज़र आते हैं।
गाना ज़बरदस्त है। अनुराग ने फिल्माया भी खूबसूरती से है। पूरा देसी टच। पटना में एल्विस को ले आये हैं। माइकल जैक्सन से लेकर एल्विस ने पटना में पैदा न होकर जो गंवाया है उसे कोई नहीं समझ सकता। हमारे यहां ऐसी वेराइटी को टिनहईया हीरो कहते हैं। भारत देश के तमाम सेंटिमेंटल प्रेमियों को ट्रिब्यूट है यह गाना- इमोशनल अत्याचार।
38 comments:
बहुत बढ़िया --- पढ़ कर बहुत मज़ा आया। बस,अब तो इस फिल्म को देखने का इंतज़ार है।
पढ़कर तो मजा ले लिये अब फिल्म देखने का इंतजार है
जिस तरह से इस गीत को संगीत दिया गया है, बेहद लाजवाब है।
इस तरह के प्रयोग अच्छे लगते हैं।
इमोशनल अत्याचार या साइकोलोजी की नज़र में सेल्फ-पिटी? ऐसे युवाओं से समाज अटा पड़ा है और ऐसे लोगों में से भी निकलकर कई बार वो लोग भी आ जाते हैं जो प्रेमिका न मिलने पर पहले stalker बन जाते हैं फ़िर उसपर एसिड फेंक देते हैं. गीत देखना पड़ेगा इससे पहले कि उसपर कोई टिपण्णी की जाए.
मजेदार.
"पटना का साला लंपू...बाप जनम में गिटार नहीं देखा लेकिन पट्टी बांध कर सेंटियाता रहता था। "
ऐसे कुछ लम्पुओं को हम भी जानते हैं|!
लड़ियाने वाली मुद्राओं में लोटने से पहले महेन जो कह रहे हैं उसपर भी सोच-विचार की एक लटकन लटकायी जाये..
आपने निर्मल वर्मा को निहायत ही चलताऊ ढंग से याद किया है। आपके द्वारा उनका यह स्मरण बताता है कि उनके रचनाकर्म के बारे में आपके मन में क्या छवि और आदर है। कभी कभी सोचता हूं कि उन्हें पढ़कर क्या हम उन्हें सही तरीके से पा सके हैं और यह भी कि शायद हममें उन्हें सलीके से खोने की तमीज भी नहीं आई है। मैं यह भी जानता हूं कि उन्हें इस तरह से याद किए जाने को लेकर आपके अपने तर्क भी होंगे।
आपको आहत करने की मंशा कतई नहीं है, बस इस पोस्ट में निर्मल वर्मा को इस तरह याद किए जाने से थोड़ा दुःखी हुआ हूं। फिर भी कहीं आप आहत हुए हों, तो माफ कीजिएगा।
आपको नए साल की शुभकामनाएं।
mast likha hai........
गाना तो सुनने में अच्छा ही लग रहा है। और इमोशनल अत्याचार का चित्र अच्छा बनाया है आपने। और ये भी सच है जो महेन जी ने कहा। पता नही वो किस मानसिकता में ये कर्म कर जाते है।
रविश सर AAPNE बहुत अच्छे तरीके से आजके मज्नुओ को विश्लेसित किया है वास्तव में आज के युवा सूडो देवदास बनके पागल हुए जा रहे है ...अपने मूल लक्ष्य से भटकते जा रहे है...
एक चीज़ की मै दिल से तारीफ करना चाहूँगा की आप जो देशी शब्दों का प्रयोग करते है उसे पढ़के मज़ा आ जता है, मै मेरी मातृ भाषा भोजपुरी में चला जाता हूँ .
ये महाराज आप तो गजब लिख दिये है.
बहुत बढिया लिखे है कि माइकल जक्शन और एल्विस ने पट्ना में पैदा न होके कुछ् गवांया है.
टिनहिया हीरो वाली बात ने दिल ले लिया.
आपके बहाने इमोशनल होके नेशनल हो गये.
आप फ़िल्में कब बनायेंगे? गाने कब लिखेंगे?
बताइयेगा जरूर.
आपकी "दिल्ली की लड़कियां" याद आ गयी....आप से ही तो स्क्रिप्ट नहीं लिखवायी है अनुराग ने...पिछले साल जामिया आये थे तो उनसे मिला था...तब ही उनके मुंह से इस फिल्म और इसके आइडिया के बारे में सुना था...आज दोबारा सुना तो अब देखना ही पड़ेगा....
निखिल
वे अपनी किस्म के खास डारेक्टर है..ओर विषयों को पकड़ने की उनकी अदा भी खूब है.....ये गाना तो खैर कमाल है ही...आपने दुखती रगों पे हाथ रखा है
वाह क्या बात है...खूब हसाया आपका लेख।
पढ़ता गया हंसता गया
मैं भी अपनी यादों में बहता गया
आप हमें हसाए
अपनी भी पुरानी यादों से परिचित कराये..
इसका आपको बारमबार आभार
हस-हस कर बिहस-बिहस कर
याद कर रहा हूं इमोशनल अत्याचार..
जय हो...
mai bhi jab gaon se delhi aaya tha to apne institute ki ek kanya se laveria se grasit ho gaya tha...
fir kya tha emotional pe emotyional atyachar kiye ja raha tha apne upar...lagta hai apne meri love story likh dali hai
..lekin aaj tak himmat nahi hui usko propose karne ki..abhi bhi bas majnu wali halat hai..dekhiye kya hota hai valentine day bhi aa raha hai...soch raha hu propose mar du...pata nahi din bhar bzzzy rahti hai mobile pe ...yehi soch ke dil ghabrata hai
फ़िल्म को लेकर उत्सुकता जगा दी है आपने. पंकज कपूर के एक सीरियल का यह डायलोग याद आ गया- "यार फटीचर, तूँ इतना इमोशनल क्यों है यार!"
(gandhivichar.blogspot.com)
माइकल जैक्सन और एल्विस पर भारी पटना के लम्पू का इमोशनल अत्याचार. बहुत खूब. अब लगता है अशोक दुबे भी डी यू के पतली कमरिया पर फ़िदा होकर नई इबारत लिखने को तैयार हैं. तब रविश जी को एक और लेख लिखनी पड़ेगी.
बहतखूब सर, अपने यहाँ 99 परसेंट प्यार बॉलीवुड से इंस्पायर होता है ........|इस प्यार को हम बोल्लिवूदिया प्यार कह सकते हैं....|जब लड़की को पटाना हो तब फिल्मों के तौर तरीकों को अपनाया जाता है .........अपन गाना सुनने लगते है ........ये दिल तुम बिन कहीं लगत नहीं हम क्या करे .........अगर लड़की हमारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं करती है तो हम गाते है ........जा बेवफा जा तुझे प्यार नहीं करना ..........और उसके शादी के दिन मन में गातें है ...........मुबारक हो तुमको ये शादी तुम्हारी सदा खुस रहो ये दुआ है हमारी ..........कुछ ऐसे भी हैं जो ये गाने लागत है की .......कह दो की तुम मेरी हो वरना..... अपने यहाँ हर मूड के लिए गाना मौजूद है ..........दिल की बात अगर जुबान पर पर नहीं आ रही है तो तो जनाब कोई गाना ट्राई कीजिये .......................
SENTIMENTAL= SCANTY + MENTAL......सेंटीमेंटल का मतलब यही होता है ....बुरा मत मानना भाई
bahut khub likha hai..... aap ka izhare khayal "imoshnal atyachar" ke madhyam se achcha laga. dhanyawad.
kabhi idhar bhi aayen.
http://zafar-imam.blogspot.com
एक लड़का और लड़की हर दिन एक दूसरे को बिना बताये चाहते रहते हैं। जब नहीं बोल पाते तो इमोशनल अत्याचार करने लगते हैं। मुझे वो लड़की क्यों याद आ गई जिसे कोई अच्छा लगता था मगर इतना बताने से पहले वो अपने भीतर हज़ार बार अपने पिता से ज़िरह करती, अपने रिश्तेदारों के डर से कांपती हुई हर दिन सौ मौतें मरती रहती। किसी को पसंद कर उसने जो इमोशनल अत्याचार किया वो सिर्फ इमोशनल लोग समझ सकते हैं।
रविश जी बहुत शानदार शायद ऐसे इमोशनल अत्याचार से आप भी प्रताडित हुए है, मैं समझ सकता हूँ....
रविश भाई. धीरे धीरे परते खुल रही है आपकी? पता चल रहा है के आपने भी काफ़ी इमोशनल अत्याचार किए है अपने आप पर?
चलो कम से कम इस गीत से आपको अपने दिन तो याद आए.
खैर, एक बात सच है के साहित्य की अच्छी समझ है आपको.
प्रकाश झा ने शायद इसी को एटसेट्रा कहा है।
"प्रेम की तमाम निजी अभिव्यक्तियां फिल्मों की नौटंकी से मिलती जुलती हैं। आई लभ यू बोलने से लेकर डस्टबिन में फाड़ कर फेंके गए उन तमाम ख़तों की हर अदा हम अपनी जवानी में ओरिजीनल समझ कर लुटाते रहते हैं। लेकिन ये सब आता है फिल्मों से।" --RAVISHJI AAPNE FILM AUR FILM KE GAANE KE BAHAANE "FILMY PYAR" KEE HAKIKAT KO RAKH DIYA HAI. AAPKEE YE BAATEN TO MUJHE BAHUT ACHCHEE LAGEE HAI. DARASAL FILM NE HINDUSTAN KO FILMISTAN BANA DIYA HAI. BIHAR KE PROF MATUKNATH-JULY PREM KATHA SAB JANTE HAIN. FILMY PYAR KE IN PANDITON KO KABIRDAS KE SHABDON ME "PREM KA PANDIT" TO NAHIN NA KAHA JA SAKTA HAI. FILM AUR FILM KE GAANON KA HEE IMMOTIONAL ATYACHAAR KA NATIZA HAI KI ROJAANA AKHBAARON ME PREMI-PREMIKAON KE APHARAN,BALATKAAR AUR AATMHATYA KEE KHABAREN BHARI PADI RAHTEE HAI.
"प्रेम की तमाम निजी अभिव्यक्तियां फिल्मों की नौटंकी से मिलती जुलती हैं। आई लभ यू बोलने से लेकर डस्टबिन में फाड़ कर फेंके गए उन तमाम ख़तों की हर अदा हम अपनी जवानी में ओरिजीनल समझ कर लुटाते रहते हैं। लेकिन ये सब आता है फिल्मों से।" --RAVISHJI AAPNE FILM AUR FILM KE GAANE KE BAHAANE "FILMY PYAR" KEE HAKIKAT KO RAKH DIYA HAI. AAPKEE YE BAATEN TO MUJHE BAHUT ACHCHEE LAGEE HAI. DARASAL FILM NE HINDUSTAN KO FILMISTAN BANA DIYA HAI. BIHAR KE PROF MATUKNATH-JULY PREM KATHA SAB JANTE HAIN. FILMY PYAR KE IN PANDITON KO KABIRDAS KE SHABDON ME "PREM KA PANDIT" TO NAHIN NA KAHA JA SAKTA HAI. FILM AUR FILM KE GAANON KA HEE IMMOTIONAL ATYACHAAR KA NATIZA HAI KI ROJAANA AKHBAARON ME PREMI-PREMIKAON KE APHARAN,BALATKAAR AUR AATMHATYA KEE KHABAREN BHARI PADI RAHTEE HAI.
गाने के साथ-साथ आपका लेख भी जबरजस्त है सर. अनुराग ने फिल्माया भी खूबसूरती से है। पूरा देसी टच। पटना में एल्विस को ले आये हैं। माइकल जैक्सन से लेकर एल्विस ने पटना में पैदा न होकर जो गंवाया है उसे कोई नहीं समझ सकता। हमारे यहां ऐसी वेराइटी को टिनहईया हीरो कहते हैं। भारत देश के तमाम सेंटिमेंटल प्रेमियों को ट्रिब्यूट है यह गाना- इमोशनल अत्याचार। बहुत सुंदर जैकसन और एल्विस ने वाकई गलती कर दी.
सर आपने जिस तरह से गाने को हम जैसे नौजवानों से जोड़कर विश्लेषित किया है, शानदार है. बस अब मुझे माडर्न देवदास पर आधारित इस फिल्म का बेसब्री से इंतज़ार है.
Kamal hai raveesh ji. bahut khoob.
SACHIN
WHAT TO SAY ABOUT YOUR EMOTIONAL ATYACHAR. WHATEVER YOU WRITE YOU DO IT RIGHT. THESE 28 COMMENTS SO FAR IS THE EXAMPLE OF THIS. BUT WHAT I WANT TO SAY THAT YOU MAKE MANY TO REMIND THOSE EARLY DAYS.I AM NOT EXCEPTION OF THIS. AND I THINK AT THIS MOMENT THEY MUST BE FINE I AM WANDERING STILL. MAY BE I GO TO SEE THAT ATYACHAR IN THEATER. BUT DONOT UNDERSTAND HOW LONG IT WILL BE THE SAME WITH ME AND SO MANY PERSONS.THNKS FOR REMIND THEM TO WHOM I HARDLY FORGET.
मखतबे इश्क का निराला है सबब
उसे फिर छुट्टी ना मिली जिसे याद हुआ सबक
मोहब्बत वन साइडेड,मोहब्बत डबल साइडेड,मोहब्बत मल्टी साइडेड,मोहब्बत रोंग साइडेड,मोहब्बत कन्फयूस साइडेड..
सच्ची मोहब्बत क्या होती है..फिल्मी पर्दे से उतरकर जीवनभर साथ रहने,साथ देने का जज्बा लिये घर तक जाती हुयी,या कॉलेज के गेट से शुरू होकर...उसकी गली के सामने वाली चाय की दुकान पर बेमतलब घंटों चाय पीने तक खत्म होती मोहब्बत...इमोशनल अत्याचार..बहुत सही लिखा आपने..हर किसी की जिंदगी की खिताब के कुछ पुराने, कॉलेज वाले पन्ने पलट दिये आपने....
साथ ही स्लमडॉग मिलिनेयर पर आपकी स्पेशल रिपोर्ट(अमिताभ बच्चन के एंग्रीयंगमैन रोल,उम्मीदों,हकीकतों,सपनों का सच)
के लिये बधाई...बेहतरीन प्रोग्राम...उन्दा एंकरिंग...जारी रखिये..शुभकामनायें
रवीश जी , बहुत अच्छा लिखा है । पढ़कर मजा आ गया । लगता है यह फिल्म देखनी पड़ेगी । शशि सिंघल
meraashiyana blogspot.com
एकदम धाँसू लिखे हैं.
आप गंभीर विषयों पर जितना अच्छा लिखते हैं उतना ही बेहतरीन हलके-फुल्के विषयों पर लिखते हैं |
बहुत ही उम्दा लेख !
(अगर आप बिना किसी हर्रे फिटकरी के कोरियन लैंगुएज सीखना चाहते हैं तो मेरे ब्लॉग http://koreanacademy.blogspot.com/ पर आएं |)
Pahli baar man banaya tha ki aaj to ravish ji ke blog par dhansu comment likhunga. Par dekh raha hun yahan to badh aayi hui hai. Khair kal raat padha tha aapka emotional atyachar. Maja aa gaya. Kya nabj pakdi hai. Patna...delhi aur jakson...elvis ki jugalbandi behtarin hai. Zindagi ke is safar mein ho sakta hai aapse jarur mulakat ho.
Nikhil, I nxt, Lko.
www.ankahibaatein.blogspot.com
रवीश जी प्रायः आपको पढ़ता और सुनता-देखता हूं। आज पुनः टिप्पणी प्रेषित करने की इच्छा है..दरअसल आपके इस पोस्ट में हमारे बीते बरसों की झलक भी है।
इक लफ्ज़-ए-मुहब्बत है, इतना सा फसाना है, सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले त ज़माना है। आमीन।
bahoot aacha likha hai aapne, acha laga padh ke. --- aabeer
http://aabeer.blogspot.com/
Raveeshji;
Namaskar
Emotional Atyachar Padhkar Maza Aa gaya.Lekin ye patr Aapke Dainik Hindustan Mein Prakashit Aalekh Ke Bare Mein Hai. Aapne Sahi Likha Ki Newspapers Mein Sahityakaroon Ke Aalekh Nahi Chhapte Hain. Par Ek Jankari Aapko Dena Chah Raha Tha. April 2007 Mein Delhi Se Dainik Deshbandhu Ka Prakashan Aarambh Hua Hai. Madhya Pradesh v Chhattisgarh Ka yah Agarni Dainik Is Warsh Apni Swarna Jayanti Manayega. Iske Sampadkiya Pristh Par Har Roz Ek Kavita ya Ghazal Prakashit Hoti Hai. Har Raviwar Awkash Ank mein Ek Pristh Sahitya ke Liye Surakshit Hai. Iske Aatirikt Hum Samay-Samay par Pradesh Ke Sahityakaroon Ke Vichar Sampadkiya Pristh Par Prakashit Karte Hain. Aapko yeh Jankari Main Is Akhbar ka Sampadak Hone ke Nate De raha Hoon. Aur Ab Ek Bhool Sudhar. Aapke Coloumn mein Prabhashji ne Jikr kiya hai ki Chhattisgarh Mein Narmada Aur Son??? Yeh dono Nadiyan MadhyaPradesh mein Bahati hain.
Aapka Blog Padhta hoon. Vicharoon ki Tazghee milti hai.
Rajeev Ranjan Srivastva
masst hai...bhai....mai to Hindustan daily paper se hi apka fan hoon........ab apse mulakat yaaahn bhi ho jayegi.......Imotional Atyachaar padhkar mazaa aa gaya....Yuva pidhi ki poori asliyat nikal kar rakh di hai apne.....Akhir ham hai bhi to aise hi......
Post a Comment