वर्तमान को इतिहास की तरह देखने की आदत के समय में बराक ओबामा का शपथ। ऐतिहासिक। ओबामामय अमेरिका। लाखों लोग सिर्फ शपथ ग्रहण देखने आए। काले लोगों के चेहरे पर बहती आंसू की धारा। भीतर जमी अपमान की बर्फ पिघल रही थी। बर्फ को पिघलाने में अमेरिका के सभी लोगों का हाथ। खुशी गोरों के चेहरे पर थी। पश्चाताप की खुशी मगर गौरव के चादर में लिपटी हुई। वाह।
मेरे गांव में भी लोग ओबामा को जानते हैं। अंबेडकर को तो जानते ही थे। बीच में ईंट पर राम लिख कर सिमेंट और बालू के लिए चंदा मांग रहे आडवाणी भी आए। इन दिनों ईंट फेंक आडवाणी एक करोड़ स्टिकर चस्पां कर रहे हैं। स्कूटर और पार्किंग में खड़ी कारों पर चुपके से लगा दिया जा रहा है।
आडवाणी को पीएम बनाओ। भगोड़ा हो गए कल्याण सिंह। राम मंदिर मुद्दे की ऐसी तैसी। क्या गरम खून होता था उस वक्त। इस वक्त आडवाणी को कम्पोज़िट कल्चर की बात समझ आ रही है। सभी धर्मों के साथ रहना चाहते हैं आडवाणी। तुष्टीकरण के तलवार के नीचे और मंदिर को राष्ट्रीय स्वाभिमान का रंग देकर हिंदू राष्ट्र का वह दिवास्वपन कभी उमा तो कभी कल्याण के आते जाते खत्म हो चुका है।
कांग्रेस अपने युवराज को राजा बनाने की ट्रेनिंग दे रही है। बीजेपी को अब गलत नहीं लगता। इनके यहां भी नेताओं के बच्चे बड़े हो गए हैं। वो अब युवराज बन रहे हैं। पंजाब में अकाली दल भी कांग्रेस हो चुकी है। सुखबीर बादल उपमुख्यमंत्री हो चुके हैं। कश्मीर में अब्दुल्ला शेख हैं। पिछड़ी राजनीति के नेता अब समाज के उस हाशिये की राजनीति नहीं करते बल्कि दलबदल और दलालों की राजनीति कर रहे हैं। पिछड़ावाद बेमौत मर गया है। एक दलित राजनीति से उम्मीद थी वो चंदा वसूली करने में फंस गई है। सामाजिक बदलाव का अभियान सत्ता पर कब्ज़ा करने के प्रयास में बदल चुका है।
भारत के लोकतंत्र में भी गौरव के कई लम्हे हैं। अंबेडकर, कलाम, नारायणन, मनमोहन,मायावती,लालू,मुलायम। अब इनमें से कई गौरवमय नेता फटीचर हो चुके हैं। वो अब उस सपने की नुमाइंदगी नहीं करते जिसे देखकर समाज का दबा कुचला तबका इनके पीछे हो लिया था। ओबामा की तरह इनकी भी कभी धूम थी। मगर चारा से लेकर चंदा और धंधा की सियासत ने घालमेल कर दिया। पिछड़ावाद और दलित राजनीति प्रोग्रेसिव नहीं हो सकी।
मायावती ने यूपी में ब्राह्मणो को मिलाकर एक बड़ी राजनीतिक घटना को जन्म दिया। पहले कभी नहीं हुआ कि दलित की बेटी के सत्तारोहण में ब्राह्मण सहायक बने। यह एक बड़ा राजनीतिक प्रयोग था मगर विकास की राजनीति के साये में पल रहे दलालों की भेंट चढ़ गया। इस समीकरण में इतना दम था कि इसके सहारे मायावती आगे बढ़ सकती थीं। मगर सोच में वो मुलायम विरोधी राजनीति के आगे नहीं देख सकीं। कल को भारत इन्हें प्रधानमंत्री बना दे मगर ओबामा नहीं बन सकेंगी। बनने की ज़रूरत भी क्या है।
जो आज अमेरिका में हुआ है वो अपने यूपी में हो चुका है। खांटी सामंती और जातिवादी प्रदेश में एक दलित की बेटी चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी है। यूपी का साइज़ भी किसी देश से कम नहीं है। इधर भी मिलियन और बिलियन पिपुल लोग रहते हैं। एक दलित नेता कांशीराम ने सायकिल पर घूमकर बीएसपी को खड़ा कर दिया। खांटी लोकतांत्रिक तरीके से। लड़कर, भिड़कर और गिरकर। उसी का चरम था- दो साल पहले जो यूपी में हुआ। आज़ाद भारत की एक बड़ी राजनीतिक घटना। ब्राह्मण और दलित का संगम।
कांग्रेस में दलित सवर्ण के साथ रह चुके हैं। मगर पीछे पीछे। बीएसपी के दलितों का आत्मविश्वास था कि उन्होंने सवर्णो को कहा आइये हमसे हाथ मिलाइये। हम वहां ले चलेंगे आपको जहां हम पहुंचने का सपना देखते हैं। मगर भारत की लोकतांत्रिक स्थिति ने इस घटना को क्रांतिकारी नहीं बनने दिया। खुद नेता भी ज़िम्मेदार हैं। दलित नेता के नाम पर उन्हीं दलितों को आगे किया गया जो समाज का कुरुप(दलाल) चेहरा हैं। उन दलितों को मौका नहीं मिला जो भारत को एक नई सामाजिक सदी में ले जा सकते हैं। सिर्फ भावनाओं के सहारे किसी को भी नाव का खेवनहार बना दिया गया। यही वजह रही कि दलित राजनीति के क्रांतिकारी परिणामों के बाद आज एक भी क्रांतिकारी दलित नेता हमारे सामने नहीं है।
लालू मुलायम ने भी यही किया। खुद पिछड़ावाद के नेता बने। लेकिन कोई और न बन सके इसलिए पिछडी जाति के कुरुप( क्रिमिनल,दलाल)चेहरे को आगे किया। पढ़े लिखे यादव,कुर्मी,दलित आगे नहीं आ सके। वो एक नए भारत की नई राजनीतिक तस्वीर नहीं बन सके।
फिर भी भारतीय लोकतंत्र की कई महान उपलब्धियां हैं। हम भी गर्व कर सकते हैं। शायद इसलिए भी हमारी दिलचस्पी थी ओबामा के शपथ में। हम यह महसूस कर पा रहे थे जो आज अमेरिका महसूस कर रहा है। हमनें भी ऐसे लम्हे टुकड़ों टुकड़ों में भोगे हैं।
23 comments:
प्रिय मित्र रविश, मैं इसे अब तक की तुम्हारी सबसे बढ़िया पोस्ट कहूंगा। जितना शानदार विशलेषण तुमने किया है वो बार-बार पढ़ने के लायक है। छोटी सी घुमावदार इस पोस्ट में सबको लपेट लिया। असल मैं यही तो रविश है, और उसका स्टाइल। तुम्हारे राजनीतिक विशलेषण अच्छे है। लेकिन अगर कोई रविश है तो उससे लोगों की उम्मीदें और भी है।
दलित नेता के नाम पर उन्हीं दलितों को आगे किया गया जो समाज का कुरुप(दलाल) चेहरा हैं। रवीश जी, देश में हर तरफ यही हाल है, क्या तो दलित नेता और क्या सवर्ण; जाति, धर्म आदि किसी भी आधार पर देखें तो कुरूप चेहरे ही आगे हैं।
ज़रूरत जनता की सोच को बगलने की है। ऐसे समाज में जहां बाहुबलि, अपराधी, बलात्कारी और घोटालेबाज़ लोग निरंतर चुनाव जीतते रहते हैं, वैसे में अच्छी नीयत वाले लोग कुछ नहीं कर पाएंगे।
बहुत विचारणीय आलेख....अच्छी जानकारी मिली।
पता नही क्यूँ दिल कहता है की हमारे यहाँ ओबामा भी आयें तो लालू मुलायम होकर ही रह जायेंगे|
एक समय था जब लालू सत्ता में आए और चरवाहा विद्यालयों का विचार रखा. मुझे बेहद खुशी हुई. लगा गाँवों में नया भारत आकार लेगा. आज लालू मेरे लिए घृणित नेता है. यही हाल मायावती और मुलायम का है. इन्हे धिक्कारने को जी चाहता है. विस्तृत दृष्टि के स्थान पर वोट व नोट की तिजोरी पर रहे ऐसी संकुचित नजर है इनकी. आश्चर्य है लालू जैसा नेता मीडिया को कैसे प्यारा है?
मित्र रविश,
नमस्कार!
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है....आप का ब्लॉग पढ़कर ऐसा मुझे लगा. आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे. बधाई स्वीकारें।
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
बहुत बढ़िया लेख ! यदि दलित के नेता बनने से केवल एक ही दलित का भला हो तो विशेष लाभ नहीं हो सकता। एक एक को बारी बारी से नेता बनाकर अमीर व शक्तिशाली बनाने में तो सदियाँ गुजर जाएँगी।
घुघूती बासूती
मुलायम सिंह जब तक अमर सिंह के सम्पर्क में नही आयें थें तब तक जन नेता थें....लेकिन अब अमर सिंह ने उनका कायाकल्प कर दिया है और मुलायम को अब जयाप्रदा और जयाबच्चन के आगे और कुछ नही दिखता है ....जय हो अमर सिंह बाबा की....
मायावती, काशीनाथ की बात छोड़ दें, मुझे अमेरिका में ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर भारत में हो रहा नृत्य समझ नहीं आ रहा. दिनभर न्यूज़ चैनल्स ओबामा से अटे रहे. गलियों में बच्चे ओबामा का मुखौटा पहन कर दौड़ रहे हैं. जब स्कूल में था तो गोर्वाचेव भारत आया था. दिल्ली के तमाम सरकारी स्कूल के बच्चों को उठाकर राजपथ पर भारत-सोवियत के झंडे लेकर खड़ा कर दिया था. जबतक भारत सोवियत के नज़दीक था तबतक नाक गोर्वाचोव की बंद होती थी और विक्स हमारे नेता मलने लगते थे. यही हाल अब अमेरिका के साथ हो गया है. ओबामा से भारत को क्या मिलने वाला है यह वक़्त बताएगा. फिलहाल तो उसकी कुल खासियत उसका अश्वेत होना हो गई है वो भी तब जबकि उसने अश्वेतों के समर्थन में कोई एजेंडा सामने नहीं रखा है.
bahut hi badhiyaa likha hai.......
मैं तो जब से होश संभाला हूं तब से नेताओं को लोगो द्वारा गरियाते ही सुना हूं, और जब चुनाव आता है तो लोगों को रैलियों में जाते, पेट्रोल पंप पर टंकी फुल कराते और ' हम लोग बड़े जाति के हैं मार्शल में जाएंगे..नान्ह जाति टैक्टर में जाएगी, देख है सुना है....यहां सियासत सेवा के लिए कह कर, पावर के लिए होती है...हर जगह का सीट बपौती होता है...राजनीति विरासत बन जाती है,..फिर कौन से दलित की बंटी? कौन सा लोकतंत्र और कौन सा परिवर्तन का फ्लैश....????
फिलहाल जो राजनीतिक प्रक्रिया है उसमें ओबामा सरीखे लोगों की कल्पना केवल मात्र कल्पना है...।।
Raveesh ji,
Kahan ap Amerika ke rashtrapati Obama kee tulana yahan ke dal badloo,bhrashtachar,gundai,dadageeree,rishvatkhoree jatigat,dalgat rajneeti...(aur bhee bahut kuchh)men akanth doobe netaon se karne lage?Ambedkar,Kalam,Narayanan,Manmohan tak to theek hai bakee jo nam apne ginaye hain unmen kya ek bhee Obama..banane kee haisiyat vala hai?
Han Rahul Gandhee,Jyotiraditya Sindhiya ..jaise kuchh yuvaon se desh ko kuchh ummeed karnee chahiye.
Hemant Kumar
निस्सन्देह आपकी उत्कृष्ट और यशदायी ऐसी पोस्ट जो पत्रकारिता के वास्तविक मायने व्याख्यायित करती है।
हमें ऐसे ही रवीश चाहिए।
खुशी गोरों के चेहरे पर थी। पश्चाताप की खुशी मगर गौरव के चादर में लिपटी हुई।
I am in US for almost 8 years now, and work in a company with all whites only. All but one of them were ardent Obama supporters. They supported him because of his sheer competence, and I have not seen anybody supporting Obama, because of his race, or as a penance.
Many are recognizing the occasion as great because of election of an African-American as President of USA, but I do not think or at least I have not seen anything that suggests white vote for Obama as penance for past wrongdoings.
I am seeing these kind of analysis from several reporters in India only. I am surprised to see this kind of analysis without proper understanding of the American society.
I like the rest of the post though.
अच्छी पोस्ट। यह सही है कि हम लोग टुकड़ों में ही खुश हो लेते हैं।
राग
बिल्कुल सही कहा आपने कि लोगों ने योग्यता के आधार पर ही ओबामा को चुना। शायद मुझे और सफाई से लिखना चाहिए था। गोरों ने योग्यता देखी उनका रंग नहीं। जब मैं यह लिख रहा हूं तो मेरे दिमाग में ठाकुर,भूमिहार,पंडित, अग्रवालों का चेहरा घूम रहा है जो सिर्फ उम्मीदवारों के नाम के बाद का सरनेम ढूंढते रहते हैं।
अमेरिका यह बता रहा है कि हमने योग्यता के आधार पर चुना। पहले ब्लैक्स को योग्य होने का पूरा मौका दिया। अफरमेटिव्स एक्शन के ज़रिये फिर खेल से लेकर टीवी की दुनिया तक में ब्लैक स्टार पैदा किए। फिर उसने एक नेता पैदा किया। हमारे देश में अभी भी किसी दलित सुपरस्टार की तलाश है। जो अपने शानदार अभिनय से लोगों का दिल जीत ले।
some confusion??
1.why u compare obama as indian dalit??
who r us obc then??
1.obama is not product of indian type election where all party combine 2 elect a pm. he won betwen 2!
3.if black obama is similar to indian dalit tehn what about all african country leaders whose name neither u know nor we know!
4.SHOULD INDIAN ELECTION SYSTEM CHANGED LIKE AMERICAN THEN WE CAN VOTE BETWEEN A KALAM!! and narayan
hamare yaha ke neta bharat ki rajniti nahi hindu-musalman,forward-backward,swarna -dalit,north indian-southindian,marathi-bihari ki rajniti karte hain..
vikash ke nam par nahi jati ke nam par vote mangte hai.sabhi ne apne samikaran bana liye hai
mayawati yani dalit+BRAHMAN
mulayam yani yadav+muslim
nitish yani kurmi+upper cast
obama bhi yaha aayenge to dalit+..
hoga
अच्छा विश्लेषण है.
सर! आपके विश्लेषण का अंदाज बड़ा ही मौलिक है/ बहुत कुछ सीखता हूँ आपके इस लेखनी के अंदाज से/ एक दलित नेता कांशीराम ने सायकिल पर घूमकर बीएसपी को खड़ा कर दिया। खांटी लोकतांत्रिक तरीके से/ वाकई एक अच्च्छा उदाहरण दिया है/ कांशीराम ने इंदिरा गाँधी के देहांत वर्ष में अपनी पार्टी की शुरुआत की जब कांग्रेस को लोकसभा में सबसे ज्यादा सीटें आई थी / शायद तकनीकी क्रांति के दौर में कांग्रेस समाज से थोडी दूर होती चली गई / इसके बाद मंडल और कमंडल ने कांग्रेस का बंटाधार कर दिया / राजीव गाँधी के दौर की सबसे बड़ी सीख यही होनी चाहिए की किसी भी आर्थिक और वैज्ञानिक क्रांति का सामाजिक सन्दर्भ न हो तो बेकार है और ये भारत जैसे देश के लिए तो खासतौर पर जरूरी है/
Langot ke niche sab ek se....! bhartiya loktantra me vichardhara or parivartan(kranti) ka matlab hai
suvidha ki rajniti. America or americki punjitantra ko hum aksar gariyane ke shaukin hain, lekin OBAMA or naom chamaski hakikat hain! Ravish! hum indian apni asim
sambhawanaoan ko shakti mein kyoan nahi tabdil kar pate?
अच्छा लिखा है। दिल्ली में मेरा कोई अच्छा दोस्त नहीं इसलिए अपने दोस्त बहुत याद आते हैं....और जो दोस्त नहीं हैं उनसे मिलकर खुश होना या दांत फाडकर,आंखे गोलकर बात करना मुझे अभी तक नहीं आया.... झूठे मुलाकातियों को लात मारकर नहीं भगाती लेकिन हाथ भी नहीं बढाती।
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