सुनते सुनते थिरकने थिरकने लगता है तन। मन रहमान की भागती धुनों को पकड़ने लगता है। गुनगुने पानी को हवा में फेंकता उड़ाता यह संगीत। सर्दी के मौसम को गर्म कर देता है। आजा आजा...ज़िंद...शामियाने के तले। आजा...ज़री वाले नीले आसमाने के तले। जय हो। जय हो।
या खुदा। या रहमान। संगीत से भर दिया इस संगीतकार को। रत्ती रत्ती सच्ची मैंने जान गंवायी है...सच्ची सच्ची कोयलों पर रात बिताई है। ये गाना बुलाता है। उसी प्लेटफार्म पर जहां इसे शूट किया गया है। गोल्डन ग्लोब मिला है रहमान को। स्लमडॉग मिलेनेयर के संगीत के लिए।
रहमान कहते हैं कि फिल्म के संगीत में भारतीय संगीत का बोझ कम है। चख चख ले..चख ले..ये रात शहद है। हां..दिल है..दिल आखिरी हद है। जैसे ही यह बोल आता है...रात शहद हो जाती है। आसमान में ज़री का काम करने का फन तो वही रखते हैं जिनके हाथ बचपन से ही करघे पर फिसलते रहते हैं। मज़दूरों के ज़हन से निकला यह गाना...ग्रेटर कैलाश की पार्टी में बजेगा तो शाइनिंग इंडिया के बोझ से दबे दर्द को एक खिड़की मिल जाएगी। लोग बिना मतलब समझे इस गाने पर हयात के डिस्को में नाचेंगे।
रिंगा रिंगा तक पहुंचते स्लमडॉग का संगीत शराब हो जाता है। रिंग रिंग रिंगा। ग्रेटर कैलाश के राइम को झुग्गी में लाके पटक देता है। छुआ...छुआ...हई हई या...रिंग रिंग रिंगा। रिंगा रिंगा रिंग। खटिये पे मैं पड़ी थी और गहरी नींद बड़ी थी। आगे क्या कहूं मैं सखी रे...। चुनरी में घुस गया धीरे धीरे...। गाने के बोल बचपन की मस्ती को जवानी के अल्हड़पन के बर्तन में उड़ेल देते हैं।
स्लमडॉग के संगीत में रेलगाड़ी की ध्वनि है। रिंग। रिंग। रिंगा में भी भागती रेलगाड़ी का अहसास होता है। आर डी बर्मन ने कभी दो ग्लास को टकरा कर संगीत निकाल दिया था मगर रहमान ने अपने कैसियो पर लगता है पूरी की पूरी रेल दौड़ा दी है। तनबदन में चिंगारी। मक्कारी। हईया। हईया हो। ये शब्द। ये भाव। पहले के गाने में भी रहे हैं। खलनायक का गाना कहीं से सुनाई देने लगता है। चोली के पीछे क्या है। लेकिन सब असल है। असली है।
या खुदा। या रहमान। हिंदू होकर मुस्लिम हो गए। मुस्लिम हो कर सूफी हो गए। सूफी हो कर मस्त मौला। हे मौला। कहां से पाया इतना जादू। साजो को बांध कर डमरू से हांक देने का फन। गोल्डन ग्लोब मुबारक। रहमान। आज भी थिरकता है मन में कहीं चुपके से। दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा।
16 comments:
ये क्या बात हुई, आज ही पुण्य प्रसून बाजपेयी ने स्लमडॉग पर अपनी पोस्ट दी है। तुमने भाई मेरे कान को दूसरी तरफ से पकड़ लिया। जो संगीत और रहमान को लेकर है। बाहर से मत लौटा करों। गोल्डन ग्लोब सम्मान बहुत पहले से भारत को देने की सोचा जा रहा था कि भारत को संगीत के लिए ये सम्मान देना चाहिए। और केवल रहमान ही आज इतनी उचाई पर है। तो उनको मौका मिल गया। और रही बात स्लमडॉग की वो एक बहाना है। हमें नवाजने का। ऐसा पहले भी हुआ है जब सत्यजीत रे को आस्कर मिला था। ये पहले से तय मानक होते है कि क्या होना चाहिए। जब सरकार की नजर तुम पर होगी तो तुमको भी पदमश्री मिलेगा। हां आपकी पत्रकारिता उसका बहाना होगी। और रहमान शानदार काम करते है ये हम सब जानते है। लेकिन आजकल उनकी तूती नहीं बज रही है ये भी आपको पता होगा। बालीवुडिया संगीत अब नये नये छोकरों की पकड़ में और वो सब रहमान को पछाड़ ही नही रहे बल्कि उनसे दौड़ में आगे भी हैं। और स्लमडॉग का बाक्स ऑफिस पर क्या होगा ये तो आप भी देखते रहना। मेरा कहना सिर्फ इतना ही है कि रहमान के काम पर बात की जा सकती थी। स्लमडॉग पर लिखना अपने ब्लॉगिंग फैशन की अदायगी भर है।
रवीश जी, मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद| आपके कहे शब्द प्रेरणा देते हैं| बिहार से दिल्ली आकर जब पैर जमाने की जद्दोजहद थी, तभी से आपकी आवाज अपनी आवाज लगती है| आज भी अगर कहीं आपका नाम आता है तो कानों में "....इसकी बेवा से आप क्या कहेंगे की हम एक संस्थान को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे" गूंज उठता है|
अब तो आप स्टूडियो में बैठने लगे हैं, उम्मीद है दूर दराज, कस्बों, गाँवों के मुद्दे पहले की ही तरह उठाते रहेंगे| धन्यवाद|
रविश जी माफी के साथ, आपकी पोस्ट पर इरशाद जी को इरशाद करती हूँ ...
उम्मीद करता हुईं ये प्यार ये ज़ज्बा रहमान साहब भी देखें....
बहुत ही अच्छा लगा.......
अक्षय-मन
kya rahman musalaman huye to became a good musician ,hindu rah jate to...... kya mata ke jagran me hi gate raha jate??
आज भी थिरकता है मन में कहीं चुपके से। दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा। ... वाकई भाई!
अच्छी पोस्ट.
दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा। इस गाने को सुन हम तो इसी में ही डूब जाते है। कौन क्या कह रहा और कौन क्या के बीच हम तो संगीत का आनंद लेते है बस।
Rehman ji ko badhai, har bhartiy ko badhai.. :-)
Rohit Tripathi
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पंखे तो हम भी हैं रहमान जी के ........अच्छा लगा गोल्डन ग्लोब रहमान के बारे में आपके विचार !!!
पर कहीं न कहीं इरशाद जी की बातों में तल्ख़ ही सही सच्चाई तो है ही!!!
sukoon talaste huye
jab-tab main bhi yahan aa jata hun
गोल्डन ग्लोब मुबारक। रहमान।
us makhmali mahaul ki reshmi rahat ko aapne bhi apne shabdoN se kuchh kum jiwant nahiN banaya.
रहमान जी का संगीत वक्त के आगे का संगीत है,
इरशाद की बातों में कड़वाहट है, रहमान के संगीत की सूफियाना अदा ही उन्हें बाकियों से बेहतर बनाती है, हर नोट के साथ रूह को छूता है उनका संगीत, गुलजार के साथ तो गजब ढाते हैं रहमान. रवीश जी आप उन्हें कैसे भूल गए, जिनके 'दिल छू लेने वाले शब्दो' का जिक्र करते हुए आपने रहमान को बधाई दी. एक बार तो गुलजार का जिक्र कर देते, भले ही इरशाद भाई, उन्हें भी बाकियों से पीछे बताते फिरते...
विनोद साहब शायद आपने टिप्पणी ठीक से नहीं पढ़ी, रहमान का मैं भी प्रंशसक हूं। लेकिन मैंने रविश को स्लमडॉग पर लिखने के बाबत कहा था। आप रहमान के बारे में बात कर रहें है। अगर रविश भी रहमान के काम पर बात करते तो मैं क्यों कहता। और गुलजार के प्रति आपका प्रेम मुझे अच्छा लगा। और रविश गुलजार की बात क्यों करें वो सिर्फ स्लमडॉग को भूनाने में लगें थें। यही मैने कहा भी। वैसें विनोद जी आपकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहूंगा कि एक भव्य वेब पोर्टल अगले कुछ माह में गुलजार के काम पर ला रहा हूं। गुलजारनामा डॉट कॉम। थोड़ा इन्तजार करें, काम चल रहा है।
इरशाद भाई, मैंने जहां तक समझा वो ये कि स्लमडॉग में गोल्डन ग्लोब अवार्ड के लायक नहीं, इसे रणनीति या कूटनीति के तहत अवार्ड दिया गया है, इस तरह की तमाम बहसें हो रही है फिल्म को लेकर, लेकिन सिनेमा के नजरिए से इसे शायद ही देखा जा रहा है. संभव है, आप जिस मानसिकता की तरफ इशारा कर रहे हैं, उसमें सच्चाई हो, लेकिन फिल्म पर बात पर मैं देखने के बाद ही करना चाहूंगा...और जरूर करुंगा- आपकी नजर में फैशन ही सही.
प्रिय विनोद जी, आप बात को समझ गए। अच्छा लगा। अब आप देखते रहना हमारी सरकार भी रहमान को एक बड़े सम्मान से नवाजने जा रही हैं हालाकिं अभी इस बात की खबर आने में वक्त है। लेकिन दुनिया का दस्तुर जो ठहरा। फिल्म तकनीकी दृष्टी से कहीं बेहतर है भारत में पूरी तरह कथाक्रम वाली कहानीयों को मनोंरजक ढंग से पेश किया जाता है। जबकि स्लमडॉग यर्थात के पास से होकर गुजरती हैं। और जिस गीत का जिक्र रविश ने किया था वो तो बहुत अच्छा बन पड़ा है।
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