हिमालय से उतर कर आती हवाओं में
पुरानी बातों का जैसे कोई बिस्तर बिछा हो
किसी बर्फ सी जमी परतों के भीतर
जैसे पुरानी यादें धीरे धीरे पिघल रही हों
बढ़ने लगता है अकेलापन सर्दी के आते ही
जैसे गरम होने लगता है कोई चादरों में लिपट कर
कभी बाबूजी का मफलर लपेटना
कभी उनकी खनकती आवाज़ का डर
शाम को घर लौटने से पहले आमलेट खाना
घर के बंद होते दरवाज़ें,खिड़कियां
बाहर से आने वाली हवाओं को रोक कर
अंदर बची हवाओं से टकराती नई हवायें
बहुत तेजी से उठती हैं भीतर कोई हूक
पुरानी बातें याद आने लगती है
बहुत बाद में पता चलता है
सर्दी आ गई है,यादों को लेकर
6 comments:
mausam laaten hain apney saath kitna kuch!!
अनुभूतियों का सरलता पूर्वक व्याख्यान करते है आप.
स्मृति का सोना पिघलने लगता है आपके वर्तमान में, फ़िर गढ़ते हैं आप एक चमकदार अभिव्यक्ति .
"बहुत तेजी से उठती हैं भीतर कोई हूक
पुरानी बातें याद आने लगती है
बहुत बाद में पता चलता है
सर्दी आ गई है,यादों को लेकर"
सादगी से भाव का सौंदर्य और व्यक्त होकर अव्यक्त अनुभव - यही संपदा है.
अच्छा लगा.
बिलकुल जी, वो एक गाना है ना-
"धरती सुनहरी अम्बर नीला, हर मौसम रंगीला.
ऐसा देस है मेरा."
यहाँ तो हर मौसम की ही कुछ यादें होती हैं.
Raveesh ji,
Sardee ke madhyam se apne bahoot kuchh kah dala.Baboo ji ka maflar..,unkee khanaktee avaj ka dar,puranee yaden.aur sabse khoobsoorat ye panjtiyan..Himalay se.....puranee baton ka jaise bistar bichha ho.Puranee yadon ke liye apne bahut achcha prateek liya ha.Badhai.
Hemant Kumar
कभी बाबूजी का मफलर लपेटना
कभी उनकी खनकती आवाज़ का डर
Wah,Ravishji,kya kahne hai aapke!aapki sari report ek bhavukta ki aur khinchti chali jati hai,
chahe vo ek sundar ladki ke bare mai ho ya fir KOSHI.ek aflatun MAHOL khada karne mai aap bade mahir hai.
kyon ki mai abhi on HAJ deputation par on DUTY hone ke bajjud vaqt milte hi aapki post padhne lag jati hun.
hai na kamal ki bat aapki harek post mai?
ravish mai shimla aaya tha yahi eise padha vakai behtarin yaara
kabhi kabhi sochta hun itni busy life me ye sab kaise karte ho aap
ab tak bhitar ka aadmi zinda hai na?
kabhi blog ke zariye kahiyega
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