एक ख़ूबसूरत लड़की
डेसी इंद्रयाणी। इंडोनेशिया की एक मुस्लिम लड़की। ख़ूबसूरत....शायद हां। जितनी मेरी नज़र से नहीं उससे कहीं ज़्यादा ख़ुद की नज़र में ख़ूबसूरत है डेसी इंद्रयाणी। क्वालालंपुर के क्लास रुम में अचानक नज़र पड़ गई। अपने कैमरे से डेसी खुद की तस्वीर उतार रही थी। मेरे ग्रुप में होने के कारण जब भी साथ बाहर गए अचानक लगा कि डेसी साथ नहीं है। मुड़ कर देखा तो अपनी तस्वीर खुद खींच रही है। कम और बहुत धीरे बोलने वाली डेसी से कहा भी कि आपकी तस्वीर मैं ले लेता हूं। उसने अपना कैमरा दिया भी। लेकिन उसके बाद भी वो खुद की तस्वीर उतारने में मशगूल हो गई।
ख़ूबसूरती बीमारी होती है। बचपन में एक लड़की की याद आ गई। हर वक्त बेसन पोते रहती थी। और अधिक गोरी होने की चाह में। पहली बार चेहरे पर खाने पीने का सामान बेसन, खीरा कद्दू मैंने उसी के चेहरे पर देखा था। वो भी बार बार अपने को देखती थी। डेसी की भी यही आदत। जब टोका कि डेसी ये क्या करती हो। हल्के से मुस्कुराया मगर फिर वही कोशिश। एक हाथ में कैमरा और स्माइल। क्लिक। डेसी नहीं मानी।
बाद में डेसी के कैमरे की तस्वीरों को देखने लगा। सैंकड़ों तस्वीरें उसी की। उसी की खिंची हुई। अलग अलग पोज़ में। चेहरे में कुछ तो जादू था कि उसकी तस्वीर उससे भी खूबसूरत लगने लगती थी। वो कभी भी खुद को निहारते हुए नहीं थकती है। उसे अच्छा लगता है खुद को देखना। डेसी इंद्रयाणी इंडोनेशिया के सरकारी टीवी टीवीआरआई की एंकर हैं। फिल्मों, फैशन मैगज़ीन और मॉडल्स की तस्वीरों ने मिल कर डेसी की नज़र बदल गई है। हम सब खुद को निहारते हैं मगर बीमारी की हद तक नहीं।
पर शायद यह सब उसके लिए था। अपनी ख़ूबसूरती को लेकर अहंकार नहीं था। बस एक खुशफ़हमी थी। ख़ूबसूरत होने का अहसास किसी को भी और खूबसूरत बना सकता है।
मैंने कई लड़कियों को देखा है खूबसूरत लड़कियों को निहारते हुए। उनकी नज़रें भी ठीक वैसे ही ऊपर नीचे होती हैं जैसे हम पुरुषों की नज़र। मर्दों की नज़र तो विकसित ही कुछ इस तरह की गई है कि कोशिश करनी पड़ती है कि हम लड़कियों को ऐसे न देखें। इस एक पुरुषोचित आदत से मुक्ति पाने के लिए न जाने कितना संघर्ष करना पड़ा। जब सहज हुए तो लड़कियों के साथ दोस्ती स्वाभाविक लगने लगी। वो दोस्त बनने लगीं। देखे जा सकने वाली ऑबजेक्ट से निकल कर। सिमोन दा बोउआर की किताब पढ़ते वक्त रातों की नींद उड़ गई थी। खुद पर शर्म आने लगी थी। मर्दों की उठती गिरती नज़रों पर पहले से ज़्यादा नज़र पड़ जाती है। राखी सावंत का वो बेहूदा मगर असली गाना...देखता है तू क्या...कई बारों कानों के पास आता है तो मर्दों की उन आंखों की बेचैनी की तस्वीर उभरने लगती है। इस बात का डेसी की बात से कोई लेना देना नहीं। बस ढूंढ रहा था कि कहीं डेसी की नज़र भी तो इन्हीं नज़रों से नहीं बनी।
( मैंने डेसी को कहा था कि तुम्हारे बारे में अपने ब्लॉग पर लिखने वाला हूं। तस्वीर में जो लंबी है वही डेसी है)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
26 comments:
वाह क्या बात है,
धन्यवाद, अपनी यात्रा संस्मरण साझा करने के लिए।
बेहतरीन।
वो जिधर देख रहें हैं सब उधर देख रहें हैं
हम तो बस देखने वालों की नज़र देख रहे हैं।
सर नमस्कार
पिछले कुछ दिनों से एनडीटीवी इंडिया पर वर्तनी की काफी सारी गलतियाँ सामने आ रही हैं। कुछ दिनों पहले जयपुर से राजन महान की स्टोरी में भ्रष्टाचार को भ्रष्टयार लिखा था। उसके अगले दिन निचले स्तर को नीचले स्तर लिखा। अब दो दिन पहले न्यूज़ पॉइंट में सवाल पूछा गया कि घटी में matdan प्रतिशत badhane का मतलब है कि वहां के लोग आतंकवाद से ऊब गए हैं। क्या यहाँ ऊब शब्द का प्रयोग सही था। सर हो सकता है कि यह मंच इन बातों के लिए सही न हो लेकिन आपका ईमेल मेरे पास नहीं था इसीलिये मुझे ब्लॉग का प्रयोग करना पड़ा।
ravish ji namaskar...
in dino aap nd tv par dikhai nahi de rahe hai ..aap kaha hai ...
aapke blogg par"ek khoobsoorat ladki " padhne se laga ki aap bharat ke bahar hai ... aap kab apni awaz hamko sunayenge..
Ravish Tumhara Test Tu Karan Johar Sae Milta Hai.....Tum Jantai Ho Na Karan Johar Ko(?)
vविचारोत्तेजक ,सौन्दर्य की अनुभूति बड़ी सब्जेक्टिव और वैयक्तिक होती है -आपको जो सुंदर लगी हो सकता है वह दूसरों की नजर में उतनी सुंदर न हो !
जहाँ तक नारी का एक दूसरी नारी के सौन्दर्य्पान की बात है -बाबा तुलसी दास जी ये लायिन सहसा याद हो उठाती है -नारी न मोहे नारि के रूपा ,पन्नगारि यह रीति अनूपा ..
bahut pyari hai dezi,aasha hai uski masumiyat yuhi bani rahe.
खूबसूरती तो देखने वालों की नजरों मे होती है।खूबसूरत नजर से देखिये तो जीवन हर रंग में खूबसूरत है। डेजी की मासूमियत में उसकी खूबसूरती है।
खैर मेरी नज़र में तो धर्म नाम का चश्मा लगा ही हुआ है। मैं इसी से फिल्टर करके हर काम करता हूं। लेकिन मुझे ये समझ नहीं आया कि उस लड़की के धर्म का उल्लेख करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी वैसे? क्या उसका और उसकी खूबसूरती का उल्लेख उसके धर्म का ज़िक्र किए बिना नहीं हो सकता था?
कृपया शंका का समाधान करें।
लड़कियों को देखने के मर्दों के नज़रिए का ज़िक्र काफ़ी अच्छा लगा। कई बार सोचती थी कि एक लड़की के फिगर को नापने वाली नज़र की चुभन क्या कभी पुरुष समाज कर पाता होगा। या करना चाहता होगा। आपका ये लेख पढ़कर लगा कि कम से कम कुछ तो ऐसे हैं जो उस चश्मे पर नया कांच लगाकर ख़ूबसूरती के और भी पहलुओं से वाकिफ हो रहे हैं।
इन्ही उलझे दिमागों में मोहब्बत के घने लच्छे हैं ....
हमें पागल ही रहने दो , की हम पागल ही अच्छे हैं.....
accha hai
badi sundarta se vyakhyaan kiya hai.....
ek nazar idhar bhi.......
jaruri hai....
मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन
Gyani pehle hi kah gaye, "Beauty lies in the eye of the beholder." "Beauty is skin deep."...and so on...Jahan tak 'nari' ka sawal hai, yeh shayad pracheen Bharat hi hai jahan kanya ko 'Shakti roop' mein pooja arambh ki gayi aur mandiron mein aaj bhi jari hai...
Meine pehli bar Kolkata mein varsh '59 mein Durga Pooja ke samay ek vriddha dukandar ko ek chhoti si kanya ko 'Ma' kehte suna
aur hum uttar bhartiya vidyarthi us samay achambhit huve the...
Bharat aise hi mahan nahin kehlaya gaya...
एक खूबसूरत लड़की, आपकी यह रपट बहुत अच्छी लगी रवीश भाई
bahut badhiya.
Ravis sir,
mai appke, blog ke is comment ke throw mumbai attachk ke bare me kuch bate kahana chahta hu.kuki yeh samay ek khubsurat girl ke bare mai baat karne ka nahi hai.
sir ,kab tak hum hath per hath rakh kar baithe rahe ge. wo hamare ghar me gus kar hame mar rahe hai aur hum kuch nahai kar pa rahe , sir apse request hai ki app kuch aisa likhe ki logo me ek josh, ek resposbility ,ek jajba,aur des ke liya kuch kar gujarne ke chahat paida ho. aisa mai bhi likh sakta hu ,lakin log applo jante aur mante hai esliya appki bato ka asar jayada hoga . kyoki isse jayada sarm ki batt kuch nahi ho sakti wo hamare ghar me ghus kar me mar rahe hai.
sir ajj mai yeh bhi puchana chata hu ki kaha hai mumbai ke so cold rakhwale jo dum dabe ke apne gharo mai dubke hai , mera unse niwedan hai ki des ko batna band karo. aur sach much kuch karna chahte ho to des ke liye karo.
Ravis sir,
mai appke, blog ke is comment ke throw mumbai attachk ke bare me kuch bate kahana chahta hu.kuki yeh samay ek khubsurat girl ke bare mai baat karne ka nahi hai.
sir ,kab tak hum hath per hath rakh kar baithe rahe ge. wo hamare ghar me gus kar hame mar rahe hai aur hum kuch nahai kar pa rahe , sir apse request hai ki app kuch aisa likhe ki logo me ek josh, ek resposbility ,ek jajba,aur des ke liya kuch kar gujarne ke chahat paida ho. aisa mai bhi likh sakta hu ,lakin log applo jante aur mante hai esliya appki bato ka asar jayada hoga . kyoki isse jayada sarm ki batt kuch nahi ho sakti wo hamare ghar me ghus kar me mar rahe hai.
sir ajj mai yeh bhi puchana chata hu ki kaha hai mumbai ke so cold rakhwale jo dum dabe ke apne gharo mai dubke hai , mera unse niwedan hai ki des ko batna band karo. aur sach much kuch karna chahte ho to des ke liye karo.
हमको भी आप को पढने का मन करता है !! इसलिये लिखते रहे वैसे आपने बेसन पोतने की बात सही कही और डेसी मुझे भी सुंदर दिख रही है !!
Venus ko paschim mein sunderta ka pratik mana gaya. Kintu poorva mein Venus yani Shukra ko rakshashaon ka Guru! Yogiyon ne shukra ka ghar manav sharir mein throat athva gale mein darshaya...aur Chandrama ka ghar mastishk mein mana gaya - yani chandrama ko sarvochcha sthan diya gaya hai anant kal se Bharat that is 'India' mein...Kaliyuga (Dark Age) mein ise samajh pana kathin hai kyunki kisi ke pas samay nahin hai gahrayi mein jane hetu...Yuva pirdi ke pas to kadachit nahin!
RAVEESH KUMAR KA ME PRASHNASHAK RAHA HU..MAGAR YAHA TO CHAAPLOOSI AUR CHAATUKAREETA KI HADD HO GAYI HAI....
AAP JAB SE OUT PUT EDITOR BANEY HAI AAPNEY BHI SANSANI KA DAMAN THAAM LIYA HAI..KYA YE GIRTI trp ka KARAN HAI??
JAWAB AAPEKSHIT HAI !!
खूबसूरती किसी परिचय की मोहताज नहीं होती...खूबसूरती..देखने वाले की आंख..सोच..और समझ पर निर्भर करती है..डेसी भी यकीनन खूबसूरत है..लेकिन मुंबई की सड़कों,खूबसूरत ताज और दिलकश ओबरॉय की मखमली कालीन पर बहा बेकसूर,बेगुनाह,मासूम लोगों का लहू..फिलहाल किसी खूबसूरत नाजनीना की तारीफ नहीं करने दे दे रहा है...टीस,गुस्सा,दर्द,खीझ,लाचारी,बेबसी,डर,चिंता,अगली बार क्या हमारे अपने शहर,मोहल्ले,हमारे घर की बारी है,क्या अगली बार मेरी,मेरे अपनों की बारी है..बस यही अलफाज,बार-बार जहन में आ रहे हैं..खूबसूरत आंखों की तारीफ के लिये किसी भी शायर की दो लाइन याद नहीं आ रही हैं..बहुत कोशिश कर रहा हूं,फिर भी रटी रटायी शायरी तक याद नहीं आ रही हैं..जानकार नहीं हूं,प्रैक्टिल भी नहीं हूं,बुद्धिजीवी भी नहीं हूं..इसीलिये मुंबई में मौत के मंजर को बहुत दूर से देखने के बावजूद..एक टाइम पर तीन-चार तरह के काम एक साथ,एक मन से नहीं कर सकता...भावनाओं पर काबू पाकर,समझदार,तटस्थ होकर,प्रोफेशनल होकर,काम करना,लिखना मुझे नहीं आता..इसीलिये आज डेसी..की फोटो को दोबारा देखने का मन नहीं कर रहा है..मन की दुकान, एक दो दिन और..मुंबई में फ्री में दहशतगर्दों के हाथों बिकी जिंदगियों के सदम में बंद रहना चाहती है..उम्मीद है रवीशजी आपका सफर सुहाना रहा होगा...
"इस एक पुरुषोचित आदत से मुक्ति पाने के लिए न जाने कितना संघर्ष करना पड़ा।"
इसको पढ के मन मुस्कुरा उठा, ईमानदारी के लिये साधुवाद के हक़दार हैं आप. अच्छा पोस्ट है.
sundar dekhan jo mai chalaa milaa naa sundar koye .jo dekhaa aapno mujhse sundar naa koye .ji haan raveesh ji apne desh main hi khubsoortee har taraf bikhree hai bas gardan jhukaane ki der hai
अब सिर्फ़ मुझे सुनो क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ.
मैं इस वक हिंदुस्तान की हर बिगड़ी हुई तस्वीर को 24 घंटे के अंदर बदलने का माद्दा रखता हूँ, वह भी केवल अपनी एक स्पीच से. क्योंकि मैं बेहतरीन हूँ. क्या आप के ग्रुप के सभी एड़ीटर्स सिर्फ़ एक बार मुझसे बहस करने को तैयार होंगे? एक ही बार में फ़ैसला हो जाएगा मैं यक़ीन के साथ दावा कर रहा हूँ की प्राकृत ने मुझे ही चुना है देश की तकदीर बदलने के लिए . अगर मुझे आपका जबाब नहीं मिला तो भी यक़ीन दिलाता हूँ की किसी भी वक़्त इस देश की पूरी सत्ता को पूरी तरह बदलने के लिए एक ऐसा खेल शुरू कर दूँगा जिसमे आठ दिन के अंदर सब कुछ बदलने की गारांट भी है. संत महात्मा, पीर, फ़क़ीर, गुरुओं व 100% सच्चे इंसान, जिनका रूप फ़रिशतों का होता है को छो. किसी से भी किसी भी वक़्त बहस करने को तैयार हूँ. हर प्रश्न भी सब कुछ बदलने का माद्दा रखता है व मेरे हर जबाब में जीत का ही प्रत्यक्ष दर्शन होगा.हर जबाब men . आपके मीडिया क के इतिहास में आज तक ऐसी क घटना न घाटी है. बल्कि आज तक सुनी भी नही गयी है बल्कि आज ताज किसी ने सोच ही नही पाई है. मुझे बहुत प्रसन्नता होगी आप जैसे महान देशभक्त, देशप्रेमी, सच्चे जागरूक , बहादुर , कर्तव्यनिष्ट, विस सर्वोक्च पद दयावान इस संदेश को बेवकूफ़ी, पागलपन, सिरफिरा,बडबोला समझा ही सही अपने मीडिया धर्मं व अपने मीडिया अभियान के तहत नीतिगत मुझे शीघ्रातिशीघ्र ज़रूर जबाब देंगे. इंतज़ार अभी से शुरू है, जो आपके जबाब के लिए ही जागता रहेगा.
साधन्यवाद
आपका अपना ही 'मस्ताना'
Post a Comment