लिखने वाला कितना समझदार था। जानेवाले को यह नहीं कहा कि आ ही जाना। इतना कहा कि हो सके तो लौट के आना। अब तो हो सकने पर भी लौट कर नहीं आएंगे कुंबले। कुंबले ने सन्यास का एलान कर दिया।
कोटला और कुंबले का अब हिंदी टीवी पर अनुप्रास नहीं बन पाएगा। अब किसी और को ढूंढना होगा जंबो कहने के लिए। अठारह साल इंतज़ार करना होगा किसी को कुंबले बनने के लिए। कुंबले ने याद दिला दिया कि उन्हें देखते देखते अठारह साल निकल गए। हम कभी बोर नहीं हुए।
हिंदी पट्टी के टीवी चैनलों ने बवाल नहीं मचाया होता तो शायद ख्याल नहीं आता कि गांगुली और कुंबले को रिटायर होना है।
टीवी चैनल के क्रिकेट रिपोर्टर बोर हो गए। जो चिचियाते रहे कि कब जाएंगे कुबले? कब जाएंगे दादा? और ये सहवाग क्यों है टीम में?
क्रिकेट में ऐसे खूंखार सवालों के दौर में मेरी इस खेल से दिलचस्पी चली गई। जिस तरह से हम सब हिंदी भाषा के विशेषज्ञ हो जाते हैं उसी तरह से हर खेलने वाला क्रिकेट का विशेषज्ञ हो जाता है। अमेरिका लिखें या अमरीका वाली बहस के तर्ज पर हमने खिलाड़ियों की स्टाइल शीट बनानी शुरू कर दी। दिवाली के बाद जैसे सूप लेकर घरों से दरिद्र भगाते हैं वैसे ही अपने महान खिलाड़ियों को भगाने लगे। घर के बुजुर्ग को हम बहुत जल्दी दोस्तों के बीच बुढ़वा या बुढ़ऊ कहने लगते हैं।
कुंबले, गांगुली, सचिन और द्रविड़ का दौर जा रहा है। सब उस पहाड़ पर पड़े हुए खिलाड़ी की तरह बताये जा रहे हैं जहां चढ़ने के बाद उतरने का मन नहीं करता। थकान की वजह से या क्रिकेट रिपोर्टरों के अनुसार पैसे कमाने की आदत की वजह से। मुझे बहुत दुख हुआ। जाने वाले की विदाई के लिए आंसू होते हैं। सो इस्तमाल हुए। दराज़ से कुंबले का वो स्कोर कार्ड भी निकाला जिसपर हर विकेट के आगे कुंबले का नाम था। खेल पत्रकार गुलु एज़िक्येल ने मुझे फोटो स्टेट कापी थी। यह बचा रहा मेरे साथ।
कुंबले चले गए। अब वो ज़माना नहीं रहा कि इमरान ने सन्यास लिया फिर टीम में आ गए। उस खेल में जहां जवानी में रिटायर होना पड़ता है। खेलने वाला जानता है वो जाने के लिए आया है। जीने के लिए नहीं आया है। अनिल कुंबले को बहुत बहुत बधाई उन तमाम यादों के लिए जब मेरी तेज होती धड़कनों को वो अपने विकेट से थाम लेते थे। भारत को जीत दिला देते थे। उन तमाम बदहवाश पलों के लिए जब दांतों के बीच मेरे नाखुन पीसते रहते थे...और कुंबले बिना किसी तनाव के उंगलियों को बाहर निकाल देते थे। हार जीत के तनाव को उल्लास में बदलते रहने वाले कुंबले की उंगलियां चूम लेने का मन करता है।
मैंने क्रिकेट के मैच को अपने तमाम वहमों के साथ ही देखा है। खेल भावना से कभी नहीं देख पाया। लगता था कि कुर्सी से उठ गया तो कोई आउट हो जाएगा। लगता था कि मैच नहीं देखूंगा तो कुंबले को विकेट मिल जाएगा। बेवजह धर्म नहीं बना क्रिकेट। धर्म का एक बड़ा काम है वहमों को मान्यता दिलाना। क्रिकेट के खेल ने भी तमाम वहमों को मान्यता दी है। मेरे भीतर के तमाम वहमों के लिए कुंबले का शुक्रिया। उन वहमों के लिए जिनके कारण कुंबले ने जीत दिलाई और चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।
27 comments:
कुंबले हम सब के दिल में रहेंगे उन जैसा अब दूसरा आना ना मुमकिन है... हम सब को उन पर गर्व है है और सदा रहेगा...
नीरज
कुंबले खिलाड़ी की जिम्मेदारी से रिटायर हुए हैं, खेल से नहीं। अभी बहुत भूमिकाएँ उन्हें निभानी हैं क्रिकेट में। उनके खिलाड़ी कैरियर को सलाम।
are sir jee,
ek angle ye bhee to hai, ki austreliya waale ghar jakar yahee kahenge, ki chalo har saal daure par jaakar do chaar ko sanyaas dilwaa aate hain, waise dono ke liye upyukt samay tha.
कुम्बले ने 18साल तक के अपने खेल करियर में बिना कुछ कहे अपने विरोधियों को खेल भावना के साथ मात दी.अब भी वह चुप-चाप खेलते हुये सबको पछाड कर चले गये.अब बची है तो सिर्फ उनके खेल की याद
bahut hi badhiya likha bhaai saab. kumble ki widaai ko isse jyada behatr tarike se shabdon me bandhna bahut mushkil hai. mujhe nhai lagta ki 18 sal bad bhi koi kumble ban payega, aur agar koi ban bhi gya to wo kumble jitna mahan khiladi to shayd ban jaye lekin un jaisa insaan kya ban payega??
bahut accha likha ravish ji aapne.
ek din sabko retire hona hi padta hai.kabhi kaam se kabhi jindagi se.
bas yaadein hi rah jaati hain.
bahut muskil hai aisa aadmi indian cricket me fir se dekh paaye.
कुम्बले के करिश्में को हम कैसे भुला सकते हैं जेहन में बैंगलुरु में खेले गये उस मैच की यादें अभी भी ताजा है जब कुंबले ने श्रीनाथ के साथ मिलकर मार्क टेलर की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हारे हुए मैच में भारत को जीत दिलायी थी ....औऱ हीरो कप के फाइनल में वेस्टइंडीज के खिलाफ 12 रन देकर 6 विकेट लेने वाले कुंबले के न जाने कितने करिश्में हमेशा याद आते रहेंगे..... औऱ कोटला के बिना तो कुंबले की चर्चा अधूरी ही रहेगी सन्यास के लिए कोटला को चुनकर कुंबले ने कोटला से अपने प्रेम को भी जाहिर किया ....ये अलग बात है कि अगर उँगली में चोट न लगती तो शायद सन्यास की ये घोषणा शायद नागपुर में होती ....
कुंबले की िवदाई जरूर एक शून्य उत्पन्न कर गई है, पर िकऱकेट खेल ही एेसा िक एक दूसरे की जगह लेने को िखलाड़ी हमेशा तैयार रहते हैं। जब पऱसन्ना, बेदी, वेंकटराघवन िरटार हुए तो िकसी ने नहीं सोचा था िक िस्पन की िवरासत को कुंबले संभालेंगे। उसी पऱकार अाज भी कई नाम हैं पर इतनी ईंचाई कौन छुएगा यह कोई नहीं जानता। यह सही है िक जानेवाला लौट के नहीं अाता, पर छोड़ जाता है अपने पीछे इितहास और एक डगर िजस पर चल कर मंिजल पाई जा सकती है।
क्रिकेट में रूचि नहीं है, फिर भी मुझे कुंबले के सन्यास का गम है. वो वाकई जिंदादिल खिलाडी थे
कर्णाटक को उत्तर और दक्षिण भारत का भूगोलीय और सांस्कृतिक मिलन केन्द्र माना जाता है! कोलार की सोने की खदान, भले ही अब खाली हो गई हो, इसी प्रदेश में प्राकृतिक रूप में उपस्थित है!
इस प्रदेश ने चार सुनहरे खिलारियों को एक ही साथ भारत की क्रिकेट टीम में प्रवेश दिलाया! इनमें से दो, जवागल श्रीनाथ और वेंकटेश प्रसाद, तेज़ गेंदबाज़ थे (बुध ग्रह समान) और अनिल कुंबले धीमी गति के (मंगल ग्रह समान)! जबकि राहुल द्रविड़ एक शानदार बल्लेबाज़ साबित हुए और उन पर दुर्गा माँ का जैसे आशीर्वाद था, जिस कारन वे दीवार कहे जाते रहे हैं!
तेज़ गेंदबाज़ आम तौर पर अधिक काल तक नहीं चल पाते, इस लिए श्रीनाथ और वेंकटेश पहले ही सन्यासी हो गए! अब कुंबले के अवकाश प्राप्ति के पश्चात् केवल राहुल इस खेल में कुछ और समय शायद दिखाई दें - उस सुनहरे काल की याद दिलाते!
मीडिया और इतिहासकार जब तक हैं, सूरज - चाँद जैसे, उनकी यादें ताज़ा रहेंगी!
सायना नेहवाल ने एक बार कहा था कि उन्हें लोग सानिया के नाम ना बुलाएं उनका नाम सायना है, सायना नेहवाल और वह बैडमिंटन खेलती हैं टेनिस नहीं.... कल उन्होंने विश्व जूनियर बैडमिंटन का खिताब जीता ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय खिलाड़ी हैं... मैंने खबर को बनाया और कम से कम साईट पर आधा घंटा के लिए टॉप में टांग दिया. कुछ चैनलों ने तो टिकर में भी जगह नहीं दी...
सोचता हूं लोग सायना को क्यों नहीं देखते सानिया और कुंबले को देखते हैं... कुंबले की समझ में आती है क्योंकि वह क्रिकेट खेलता है लेकिन सानिया....
सच्ची भावना का सच्चा खिलाड़ी!!!!!
मेरा सलाम कुंबले के नाम !!!!!!!!!!!!!!!!!!
Jis kumble ke piche ek din pahle patrakaar pade hue the aaj usi ki jaygatha ga rahe hain. Dhanya hai media.
guptasandhya.blogspot.com
क्यों ऐसा लिखते हैं आप कि हारकर उधार के इन्टरनेट कनेक्शन पर भी कमेन्ट लिखने का मन करने लगे. एक नए कस्बे की बनावट बुनावट तो जानते हैं आप.
"हार जीत के तनाव को उल्लास में बदलते रहने वाले कुंबले की उंगलियां चूम लेने का मन करता है।" कुछ ऐसा ही मन मेरा भी करता है .
ab kumble ko uchhal ke uchhalti huyi spin fekte nahi dekh apyenge ham kumble sachi do aise khiladi hain jinko dekhte huye hamne cricket dekha hai. ab ye nahi hoga ki channel change karne se pahle bas kumble ka ovr khatm ho jay
Sirjee I have been following you from many years as a journalist endowed with hindi. Your hindi is classic, it is far ahead of others.
As far as Kumble is concerened, he is the great, but I can understand your emotions and burst towards journalists for criticising seniors. It is unfortunate for Indian cricket
इस महान खिलाड़ी की कमी तो खलेगी ही !
जिन उँगलियों को चूम लेने का मन करता है, गहराई में कोई जा सके तो एक हस्तरेखा विशेषज्ञ, अथवा palmist, की दृष्टि से हमारे सौरमंडल के अनंत काल से उपस्थित सदस्य यानि ग्रह हैं!
क्रिकेट का खेल भी रामलीला समान है, जिस में हर कोई अपना अपना रोल बेहतर रूप से अदा करते दीखता है सूर्य समान सूर्यवंशी राम की अगुवाई में!
जैसे राम की रावन पर जीत हनुमान के बिना सम्भव नहीं थी, भारत की कई जीत में कुंबले का रोल भी अहम् रहा है!
1983 World Cup की भारत की टीम में Kapildev और उनके devil अन्य सदस्य हीरो थे!
क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं । आपऱाधिक कृत्य है ये । मगर आपको किसी और ही वजह से बधाई देने का मन कर रहा है।
ये बधाई स्वीकारें...पोस्ट नहीं पढ़ी....
माफी चाहूंगा....
अजित जी रहस्मयी बधाई के साथ कह रहें हैं कि उनकी क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं। एक बात बिल्कुल साफ और दूसरी परदे में
!
क्रिकेट में भले ही हमें ये मालूम न हो कि गली और गुगली में क्या अंतर है लेकिन स्कोर पूछे और हाईलाइट देखे बिना मन नहीं मानता। कुंबले और गांगुली का जाना कई दिनों तक सालता रहेगा। कोई यूं ही नहीं हो जाता रवीश, कुंबले या गांगुली।har
sir
aapka vivran ke andaaz ko salaam .
bahut achha likha gaya hai.
aur waise bhee kumble jaise khiladee roz nahee hote
रविश, Ajitजी, मोमबत्ती जलाई/ पतंगा जल गया/ कवि ने कहा अनंत प्रेम का बोधक है/ जीव वैज्ञानिक बोला जहाँ कृत्रिम अग्नि है वहां मानव है, और जहाँ मानव है वहां भोजन है जानता है हर तुच्छ भूखा प्राणि भी/ खगोलशास्त्री बोला पृथ्वी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण कमज़ोर होने पर उस पर गिरी तो मानव का भी यही हल होगा/ अदि अदि, जितने मुंह उतनी बातें/ पंडितजी अंत में बोले राम की लीला राम ही जाने/ में सोचने लगा कौन सही है/ मौन मुनि को मन ही मन मुस्कुराते पाया तो लगा केवल इसे ही सत्य अथवा सत्व का पता है, किंतु शब्दों की कमजोरी शायद बाधा बनी रहेगी...और अधिकतर सभी मुनि ही हैं!
j c g ki tippani padh kar to unse milne ka man karne laga hai... ravish g madad karen....
rajan agrawal
rajan.journalistindia@gmail.com
हिंदी पट्टी के टीवी चैनलों
वाह क्या लाइन इस्तेमाल की है आपने। भावनाओं के सटीक अभिव्यक्तिकरण के साथ आप जो इस तरह की बेहतरीन भाषा शैली इस्तेमाल करते हैं वो वाकई बहुत बेहतरीन लगती है। मन खुश हो जाता है।
Badiya hai............Khub Chamakta hai.......
देखी जग की रीत निराली
जग में आते ही कह लाया जाने वाला
जो आया है वो जाएगा ही
आना-जाना लगा रहेगा
जिसने खेलना शुरू किया
वो एक बंद भी करेगा..रिटायर भी होगा
कपिल,गवास्कार रिटायर हो गये
अपना बंगाल टाइगर भी रिटायर बोल चुका है
टेंशन रिटायर होने से नहीं है..
तकलीफ कलमबाजों और
माइकवालों की नीयत को देखकर होती है
जब चला नहीं तो कमजोर कुंबले
स्पिन का जादू चल गया तो कमाल कुंबले
खेल को अलविदा किया तो बेमिसाल कुंबले
वाहरी कलम..वाहरी नौकरी..क्या-क्या ना करवाये
ईश्वर करे आने वाले कल में भज्जी,मिश्रा या फिर अपना कोई और गेंदबाज कुंबले का रिकॉर्ड तोड दे..
लेकिन कोई भी कुंबले की जगह कभी भी नहीं ले सकता
कुंबले की स्पिन विकेट के लिये हमेशा भूखी रही
लेकिन खुद उनका मन संतोषी और व्यहवार शालीनता वाला रहा..
कुंबले की याद हम सबके दिलों में रहेगी. हम उसके साथ बड़े हुए हैं. वो एक आदत की तरह रहा है मेरी पीढ़ी के लिए. उसके लिए 'था' लिखते हुए मुझे बार-बार लग रहा है कि मेरा बचपन आज ख़त्म हुआ. रवीश आपने बहुत सुन्दर लिखा, ख़ासकर वो 'मेरे तमाम वहमों के लिए शुक्रिया." जहाँ क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं रहता हिन्दुस्तान में उस गली तक आप पहुँच गये इस expression के साथ..
एक पोस्ट मैंने भी लिखी है उस 'आदत' के बारे में जो कुंबले के retire होने के साथ चली गई है...
http://www.mihirpandya.com/2008/11/kumble-retirement/
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