मेरी दलील तेरी दलील से सफेद

तर्कबाजों हम ये बहस किस लिये कर रहे हैं? विश्वास का कोई नया रास्ता ढूंढने के लिए या फिर अपने पूर्वाग्रहों को सच साबित करने के लिए। देखा मैं कहता था न ये ...ऐसे ही होते हैं। सच साबित हो गई। कहीं हम अलग अलग पार्टी लाइन के हिसाब से तो दलीलबाज़ी नहीं कर रहे। किस ओर की दलील में खामियां नहीं हैं। क्या हम इन खामियों के सहारे दंभ भर रहे हैं कि वो तो होते ही ऐसे हैं। अविश्वास को कई बार सच की परछाइयां मिल जाती हैं। इससे सच नहीं बन जाता। दिल्ली धमाकों के बाद बहस ऐसे हो रही है मानो भूत हमने देखा है। दूसरा कह रहा है...भूत का अस्तित्व नहीं होता। कोई महाभारत कोट कर रहा है तो कोई आइंस्टाइन।

या फिर हम सांप्रदायिकता पर होने वाली बहसों से बोर हो चुके हैं। नई चीज़ की तलाश में फिर से अपने पूर्वाग्रहों की ओर लौट रहे हैं। क्या हम अपनी हार मना रहे हैं या दोनों तरफ के फिरकापरस्तों की जीत में शामिल होना चाहते हैं? यह कहा जा रहा है कि मुसलमान आत्ममंथन करे। कहने वाला कौन है? जिसका बहुमत है? जो मुखिया बनना चाहता है? हम चाहते हैं तुम आत्ममंथन करो। किस बात का आत्ममंथन। आत्ममंथन के समर्थक कहते हैं कब तक जामिया ओखला बसेगा? ये एक ही जगह क्यों रहते हैं? क्यों नहीं कोई हिंदू जा रहा है जामिया में बसने। कि हम रहेंगे मुसलमानों के बीच। उन्हें जानेंगे? अब यह मत बताइये कि वहां हिंदूं रहते हैं क्योंकि हिंदुओं के बीच रहने वाले मुसलमान भी कम नहीं? ये बसावट किसकी देन है? विशुद्द हिंदूवादी और जातिवादी। जिस देश की हर बस्ती जात के आधार पर बसी हो वहां कोई धर्म के नाम पर जाकर कैसे एक दूसरे से घुलमिल सकता है। तभी मैंने बहुत पहले लिखा था कि भारत के गांवों पर बुलडोज़र चलवा दो। ठाकुर बस्ती, ब्राह्मण बस्ती और दलित बस्ती को मटियामेट कर दो। नई बस्ती बसाए। एक घर ठाकुर का,बगलवाला दलित का, उसके साथ वाला मुसलमान का। आत्ममंथन कर इसपर सहमति बना लीजिए। कोई बात हुई। सवर्ण मानसिकता ही चलाती है सांप्रदायिक सोच को। तभी तो दलित निकल भागे और यूपी में ही कमंडल को पटक कर दे मारा। बाद में जाना पड़ा ब्राह्मणों को हाथ मिलाने के लिए। सत्ता चाहिए थी। पहले इनके बिना सत्ता मिलती थी तो भगा कर रखते थे। अब इनसे मिलने लगी है तो घरों में आने जाने लगे हैं।


सवाल यही है कि क्या यह अकेले का आत्ममंथन है? अगर हां तो क्यों? किस आधार पर कहा जा रहा है कि मुस्लिम समाज आतंकवाद के समर्थन में है?उसे ही कुछ करना होगा? ये आत्ममंथन का क्या तरीका होना चाहिए? अपने बेटों से पूछें कि कहीं तुम तो आतंकवाद के रास्ते पर नहीं जा रहे? कैसे पता कि जामिया की घटना के बाद मां बाप ने नहीं पूछा होगा? उन्हें डर नहीं लगा होगा कि कहीं मेरा आरिफ,साजिद( अगर हैं) आतंकवाद के रास्ते पर तो नहीं भटक रहा। क्या हम अपनी सोच सिर्फ तर्कों से बना रहे हैं या तथ्यों से। या दोनों का घालमेल कर।

आत्ममंथन का सिद्धांत क्या यह मान कर चलता है कि मुसलमान आतंकवादी हैं उन्हें अपने भीतर झांकना चाहिए। क्या यह समस्या नहीं है? क्या हिंदू आत्ममंथन कर रहे हैं कि बजरंगी क्या कर रहे हैं? क्या किया उन्होंने अयोध्या में? जिसे तोड़ने के लिए सर पर पट्टी बांध कर घूमा करते थे,तोड़ देने के बाद गुम हो गए? कहां गुम हो गए? आत्ममंथन करने वालों की गोद में? गोधरा को जलाने वाले और गुजरात के जलाने वालों को लेकर कौन आत्ममंथन कर रहा है? भागलपुर को लेकर क्या कांग्रेस आत्ममंथन कर पाई? क्या कांग्रेस और बीजेपी को लोगों ने सजा दी? आप कहेंगे सत्ता से हटा दिया? ये वही सजा है जैसे किसी अफसर को निलंबित किया जाता है बाद में बहाली कर दी जाती है। बहस करने वालों को साफ करना चाहिए कि वह किस पार्टी का है। किसी पार्टी की तरफ से दलील न दे। दे तो नाम बता दे। किया तो था मुसलमानों ने आत्ममंथन। दिल्ली से लेकर अहमदाबाद और सहारपुर में मौलवियों की बड़ी रैली हुई। आतंकवाद की निंदा हुई। तब भी कुछ लोग आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले। सच या झूठ अभी फैसला नहीं हुआ है। मगर क्या आत्ममंथन को भी हम अपनी सुविधा से स्वीकार करने लगे हैं? यह सबसे बड़ा झूठ है कि मुस्लिम समाज आत्ममंथन नहीं कर रहा?

हम सब की आधी से ज़्यादा दलीलें पुरानी और बेकार हो चुकी हैं। पीठ की तरफ दौड़ने का प्रयास करते हैं। आतंकवाद किसी एक समाज के आत्ममंथन से नहीं हल होगा। आधा रास्ता चलकर क्या हासिल कर लेंगे? पूरा रास्ता चलना होगा? नहीं चलेंगे? क्योंकि तब फिर कांग्रेस को सही और बीजेपी को गलत कैसे साबित करेंगे? कैसे हम अपने अपने समाज के खलनायकों को बचायेंगे?

19 comments:

नटखट बच्चा said...

अरे अंकल
काहे इतना गुस्सा सुबह सुबह ?जो आपकी बात नही मानता वो कट्टर हिंदूवादी ?वो मुसलमानों का दुश्मन ?ये तो कोई बात नही हुई न ! जो प्रसून वाजपयी से विचारो के आगे तर्क दे वो भी मस्जिद गिराने वाला यही लिखा है न आज आपने हिन्दुस्तान अखबार में ?तो अंकल ग़लत है ना,सारे तर्कों का ठेका आप दोनों को दिया है इस साल ?
बाटला हाउस की मुठभेड़ आपको नकली लगती है हमें असली तो मुसलमान विरोधी हो गये,बेचारे मनमोहन शर्मा बेकार शहीद हुए ना अपने दो बच्चो को छोड़कर ?
कोई हार्ड कोर क्रिमनल ५५ मारे किसी ने एन्कोउन्टर में तब किसी की जात नही पूछी गई,लेकिन ५६ व मुसलमान तो ग़लत हो गया ?
किसने कहा मोदी ठीक है ,हमने तो नही कहा ,किसने कहा तोगडिया ठीक है ?हमने तो नही कहा ?पर इमाम बुखारी भी हमें ठीक नही लगते ,चर्च गिराने वाले भी ठीक नही लगते ,पर अंकल ये बतायो की क्या समाज सेवा से पहले किसी का धर्म बदलना जरूरी है ,किसी भूखे को आप तभी खाना खिलोयेगे जब वो ईसाई बनेगा ? हम तो हर ग़लत बात को ग़लत कहते है ,हमने तो नही कहा की मोदी की जे जे कार करो किसी बेचारे निर्दोष इंसान को परेशां करो . तो अंकल हम क्या करे आप बतायो ?घर में दुबके रहे की बाहर मत निकलो बम फूट जायेगा ,बम्ब तो जात नही देखता ना अंकल .
आप काहे को गुस्सा होते हो अंकल ?

Pooja Prasad said...

@नटखट बच्चा,
जितना किसी मुस्लिम के संदिग्ध आतंकवादी के तौर पर पकड़े जाने पर हो हल्ला मचा कर पूरी मुस्लिम कौम को ही कठघरे में कर दिया जाता है, जिस तरह भाजपा की गुजरात में करनियों को यह कह कर महिमामंडित किया जाता है कि गुजरात में विकास का मॉडल गजब है, जिस तरह तटस्थ सोच रखने वाले रवीशों पर चिल्लाया जाता है, उससे वाकई यही संदेश जाता है कि दाल जबरदस्त काली है कथित हिंदूत्वादियों की।

रवीश जी सहमति आपके लेख में प्रस्तुत विचारों से। गंभीर मुद्दा है ये।

roushan said...

सबसे पहले नटखट जी से
अगर कोई मुठभेड़ पर ऊँगली उठा रहा है तो उसे आप सीधे मोहन चंद्र शर्मा जी की शहादत पर ऊँगली क्यों समझ लेते हैं (वैसे आप उनकी शहादत से इतने प्रभावित हैं तो कम से कम उनका सही नाम तो याद कर लीजिये)
अब किसने यह कह दिया कि इसाई मिशनरियां बिशुद्ध समाज सेवी संस्थाएं हैं? उनका अपना उद्देश्य है अपने धर्म का प्रसार और वो इसे कर रही हैं
आपको लगता है तो आप भी समाज सेवा वगैरह कीजिये लोगो को हिंदू बनाईये.
आपको उज्र कि वो पैसे का लालच देते हैं.
आप करना चाहें तो आप भी कीजिये
किसने रोका है
शायद यह जरूरी है कि जो लोग धर्म परिवर्तन करते हैं उन्हें क्या बैर हो चला है आपके धर्म से
आप ख़ुद को मजबूत करने पर ध्यान नही देना चाहते हैं बल्कि उनपर आरोप लगाते हैं जो आपकी कमजोरी का फ़ायदा उठाते हैं
आप को जानना जरूरी है कि जब असमानता होती है, दरारें होती है तो लोग मजबूर होते हैं इधर उधर देखने को छठी शताब्दी ईसा पूर्व से यही चला आ रहा है
आप दूर से देख कर जिन आदिवासियों को भोला भाला करार देते हैं शायद वो अपना हित अनहित समझने लायक बुद्धिमान तो हैं ही

रवीश जी बहसें सिर्फ़ बहसों के लिए नही होनी चाहिए कुछ नतीजें निकलने चाहिए और नतीजों के लिए जरूरी है कि हम सतही पूर्व धारणाएं छोड़ कर समाज को और समस्याओं को बेहतर ढंग से समझें

Ashok Pande said...

रवीश भाई

आपने सारी बात शुरू में ही कह दी: "हम ये बहस किस लिये कर रहे हैं? विश्वास का कोई नया रास्ता ढूंढने के लिए या फिर अपने पूर्वाग्रहों को सच साबित करने के लिए"

दुर्भाग्यवश पूर्वाग्रहों को सच साबित करने में जी जान से जुटी तर्कशास्त्रियों की टोली फ़िलहाल जीतती नज़र आती है. घोर नैराश्य है हर तरफ़.

रज़िया "राज़" said...

रविशजी। लिखते रहीये। सच्चाई तो सामने आ ही जाती है। आप तो अपनी पहचान अपने खुले ब्लोग पर लिखते हैं। दूसरो कि तरहाँ अपनी पहचान छीपाते तो नहीं?
हर मज़हबवालों के बनबैठे ठेकेदारों को ही सबक़ सीख़ना होगा और अपने अपने समाज में घरोंघर जाकर ये जानना होगा कि किसकी गलती कहाँ हुई? हम कहाँ अपना फ़र्ज़ चूक गये?
फ़िरभी अगर निर्दोषों को बलि बनना पडा तो ये दिन दूर नहिं कि हमारा भारत बँट जायेगा, कहीं मज़हब से,कहीं भाषा से, कहीं ज़ात से कहीं प्रांत से।
रवीशजी इस देश को फ़िर एक आफ़त से बचाने के लिये ज़रूरी है कि....
सारे नेता, शिक्षक,विद्यार्थी,समाज,फ़िल्मजगत और मिडीया एक आवाज़ हो जायें। तभी हमारा समाज _देश आनेवाली आफ़तों से बच पाएगा।
रिपोर्टींग के लिये धन्यवाद।

Hari Joshi said...

सच यही है कि हम लोग दोनों तरफ के फिरकापरस्‍तों की जीत देखना चाहते हैं। उनके जश्‍न में शामिल होना चाहते हैं। हम सभी जानते हैं कि फिरकापरस्‍ती की आग में कौन लोग वोटों की रोटियां सेंकते हैं। मैं व्‍यक्तिगत रूप से उन लोगों से सहमत नहीं हूं जो बिना सोचे-समझे और जाने बटला हाउस कांड में मारे गए लोगों को एकदम निर्दोष बता रहे हैं। ये हो सकता है कि इंस्‍पेक्‍टर शर्मा दु:साहस के चलते बिना सोचे समझे उस फ्लेट में घुसे हों और उन्‍हें जबाव गोलियों से मिला हो और बाद में गुस्‍साई पुलिस ने वही किया हो जो पुलिस का परंपरागत तरीका हो। लेकिन ये कहना भी न्‍यायसंगत नहीं है कि अगर कुछ हमारे बच्‍चे गलत रास्‍ते पर चले गए तो पूरी कौम ही आतंकवादी हो गई। लेकिन आतंकवादियों और फिरकापरस्‍त ताकतों के मंसूबों में कोई अंतर नहीं है। ये सभी समाज को बांटकर रेवडि़यां खा रहे हैं और इससे निजात पाने का रास्‍ता हम सभी को तलाश करना ही होगा। मौहल्‍ला में मुश्‍ताक की कथा किसी भी संवेदनशील व्‍यक्ति के अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। आज ऐसे मुश्‍ताकों और रामदीनों की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है जो बेहद और बेहद चिंताजनक है।

ashutosh said...

priya ravish ji,

ashutosh said...

ravish ji,
secular hone ke matlb ye nahin hai ki aap apni sach ko samajhne ki shakti ko khatam kar dein aur secular dikhne ke liye apni asli soch se samjhauta karein.
kay apne mujh jaise hindu aur rahtrapremi ki peeda samajhne ki imaandar koshish ki hai kabhi.main lucknow ke ek muslim dominated area me rahta tha pahle aur ye babri masjid ke bjp andolan shuru hone se pahle ki baat hai.jab kabhi bhi pakistan cricket match jeetta tha india se pathakhe aur mithaiyaan baati jaati thi in mohollon mein.tab kis maulvi ya secularvadi ne aakar kaha tha ki muslmaanon yeh theek nahin hai.apne mulk ke khilaaf yeh theek nahin.ravish ji ,aaj jo bhi ho raha hai woh mujh jaise karoron rahtrapremiyon ke dil mein barson se daba hua gussa hai.musalmaanon ko samajhna hoga ki bahusankhyakhon ki bhavnaoyon se khilwaad theek nahin.

Rangnath Singh said...

ravishji aap ki samvedansil chinta pe kisi nat nat khat khat bachava ji ki pratikriya dekh kar likhna pada...unke balsulabh nasamajhi ko kya kahu...Devataleji ki ek kavita h Lakad bagha hans raha h...aaj mujhe laga ki shishu lakadbagha attahas kar raha h...bachaji bhukhe bhajan na hohihe gopala to suna hoga...jinke pet ki marod se nikale rastagan pe aapjaiso ke kan pe ju tak nhi rengi unke dharm badalte hi aap trahimam trahimam karne lage...ap bhukho marte rah ke hindu dharm ya kisi aur dharm ka jhanda apni aanto me gad ke dikhaye to asapki bat me thoda vazan aaye...roti ke badale dharm parivartan krvana ek nakaratmak karvayi h ye mai bhi manta hu..jo padari roti ke badale saleeb bat te h unki ninda me koi kotahi ki jaroorat nhi h magar jara un had mas ke insano ke bare me sochiye jinki peeth aur pet fevikol ke majboot jod se chipka diye gaye h,unhone jinda rahne ki khatir dharm jaisi astayi chi badal li to unhe jinda jalana kis dharmachakra pravartan le tahat kiya jata h ? dusare galat h isliye hum bhi rahenge ye tark nhi kutark h...bachaji bharat apne bhuki janta ka khayal nh karega to is tarah ke bachakne tarko se desh ka koi bhala nhi hoga...

नटखट बच्चा said...

रोशन अंकल आप भी नाराज हो गए अपने रविश जी तो इसलिए परेशां है की देखो पुण्य प्रसून कल से ब्लोगिंग में आया ओर कितनी टिप्पणी पा गया ?हम यहाँ इतने सालो से है तो चलो हम भी इस टोपिक को छेड़ देते है कल IBN वालो ने लिख मारा तो ये तो भैय्या चैनलों की लडाई है
वैसे अंकल ये बतायो की इस आतंकवाद से निबट कैसे ?
चलो न हमारी ना तुम्हारी ?रास्ता बतायो

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

Ravishji
yahi nahin ki hamen loktantrik mulyon ko atmsat karne men samay lag raha hai, kuchh Hindu , is mahan dharm ke uddat mulyon ko bhi bhool gaye hain.
Agar ghat ghat men Ram hain to phir kaisa Hindu aur kaisa Musalmaan. Bhale hi Musalmaan bhai ki dharmik aastha aur karm kand doosre hon par hamen to we bhi Ram ka prakatikaran hi lagengen.
Jad, chetan sab kuchh us Ram ki agar chhaya hai to yah phirkaparasti aur wo bhi Ram ke naam par.Ram, Ram
Rahi baat nispakshta ki aur saty prem ki , to nisandeh Jamia kaand ki jaanch honi chahiye. Pratham dristaya , pal pal badlte pulisia bayan , kahin n kahin , leepa poti lagti hai.Aur agar wo aatankwadi the to unhe jinda pakadna prathmikata honi chahiye thi. Second floor ka makan jismen ek nikas , aatank wadi hone ka pukhta pramaan , to phir unhen jinda kyon nahin pakda gaya. Unhe maar kar police ne to surag aur saboot dono nasht kar diya.
Ab agar nispaksh aur nyay priya log police version par vishwas nahin karte to usmen unka kya dosh ?
Nakli muthbhendon se na to aatank waad khatam hoga aur na hin Musalmaanon ko gali dene se kaam chalega.Aur saare musalmanon ko gaali dene aur sandeh , ghrina karne ka haq hamen kisne diya ?
Aur aisa karne waale mahan Hindu dharam ke mool darshan ka hawala dekar apni nasamjhi aur ghrinit charitra ka pramaan deten hain.
Ravishji, aap bedhadak likhten rahen. Project democracy in India will be long drawn out and tortous affair.
Saadar

JC said...

Bahut bardhiya lekh hai Ravishji, kintu satahi drishti se - 100 mein se 90 number wala Kaliyuga ke dristikone se...

Khandahar batlate hein ki imarat kabhi bukand thi - hamara desh, Bharat, sabse pracheen desh hai, jismein bhale hi Kailash Parvat aj burdhape ke karan China ka ho gaya ho, kintu pavitra Ganga Maiyya aj bhi 'Satyam Shivam Sunderam' kahe jane wale Shiv ki janmabhumi Kashi se hoker behti hai, aur Bharat ko aj bhi pavan karti hai!

Kya ap yeh mante hein ki jiski marzi ke bina kabhi patta bhi nahin hilta mana jata tha, aj wo sarvavyapi, sarvashaktiman (Brahma-Vishnu-Mahesh) lupta ho gaye hain?

Haan Brahma ka ek din sampti per jab hota hai to 'pralaya' sambhavit mani gayi aur drame ka ant...

Aj ki stithi ko kuch log 'no technical solution possible stage' mante hein...

अभिषेक मिश्र said...

Ravish Ji, pahli bar aapke blog patr aaya. Aapke blog par bhi kafi garm hawa bah rahi hai. Kya sampradayikta aaj desh ki sabse badi samasya hai, ya Kuch bade deshon aur badi hastiyon ki tarah mool muddon se dhyan hatane aur man bahlane ke liye time pass charcha ka ek vishay. Kyunki baaton ke alava aap kuch aur bhi hote dekh rahe hain kya kisi bhi varg mein- chahe wo Hindu ho ya Muslim? Dono ko pas lane ki koi sarthak koshish hoti to kuch baat hoti.

anil yadav said...

दरअसल ये सारा मामला मुस्लिम लीग की उस मुस्लिम बाहुल्य सीट से जुड़ा है जिसका टिकट मुस्लिम लीग ने रवीश कुमार या प्रसून वाजपेयी में से किसी एक को देने का फैसला किया है ....तो ये दोनों महानुभाव पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने के लिए जमकर हिन्दुओं को गरिया रहा हैं....अभी तक बढत वाजपेयी जी की थी लेकिन थोड़ा देर से ही सही अब रवीश जी भी पूरी फार्म में मैदान में आ डटे हैं ....बहुत अच्छे रवीश जी पूरी टक्कर दे रहे हैं वाजपेयी जी को देखियेगा टिकट हाथ से निकलने न पाये ....आतंकावादी को आतंकवादी बोलो तो कट्टरपंथी और मरने वाले हिन्दुओं को गरियाओ तो धर्मनिरपेक्ष पत्रकार ये हिन्दुस्तान में ही संभव है ....ये सब बम शिव सेना ,बजरंग दल और विश्व हिन्दु परिषद वालों ने फोड़े है ,,,,सिमी और इंडियन मुजाहिदीन तो 1857 के गदर से ही भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल रहे हैं....बहुत अच्छे रवीश जी आप मुस्लिम लीग का टिकट हासिल करिये मैं कहीं भी रहूँ लेकिन अपना जाली वोट आपको देने के लिए जरूर आउँगा....

Hari Joshi said...

राम-राम अनिल भैय्या।
आपने आधी जानकारी दी और आधी छिपा गए। रवीश और पुण्‍य में से कौन लड़ेगा ये तो अभी फाइनल नहीं है लेकिन उस सीट से शिवसेना के प्रत्‍याशी श्री अनिल यादव जी होंगे और शिवसेना की सभी भाई-बहिन पार्टियां अपना उम्‍मीदवार नहीं उतारेंगी।
अनिल भैय्या तार्किक बात कीजिए। पूर्वाग्रह और सच में अंतर होता है। तात्‍कालिक तौर पर गोली का जबाव गोली ही होता है लेकिन आतंकवाद से फाइनल लड़ाई वर्गों में बंटकर या बांटकर संभव नहीं है। ये लड़ाई पहले मा‍नसिक तौर पर जीतनी होगी। किसी वर्ग का तिरस्‍कार करके ये लड़ाई नहीं जीती जा सकती। अगर आपको ये गलत लगे तो खुले दिमाग से तर्कों के साथ समझाइए।

maithil mithila said...

साहब यही तो हिन्दुस्तान का रोना है...यहां आज भी एक बेगूनाह को बचाने के लिए सौ कसूरवार को यूं ही मुफ्त छोड़ दिया जाता है....तो सवाल ऐसे मे उठता है कि क्या निदान निकले....आजमगढ़ को आतंक का गढ़ तो बड़ी आसानी से कह दिया गया है...लेकिन क्या कभी किसी ने जमीनी सच्चाई जानने की जहमत की है.....

vipin dev tyagi said...

रविश जी
आप की बातें तर्क की चासनी में डूबी होती हैं..सची होती हैं...मेरे जैसे कम जानकार लोगों के लिये खासी फायदेमंद रहती हैं...लेकिन सिक्के का एक ही पहलू..बार-बार देखना क्या सही है..आप विशुद्ध पत्रकार हैं...कोई शक नहीं..सौ फीसदी जानकार हैं...निष्पक्ष हैं..ये भी सोलह आन्ने सच है..लेकि चश्में के पुराने लैस से बार-बार वही चीज देखना..और उसी कोने की तरफ नजर करके..देखना कहां तक सही है..पता नहीं..क्या वही सच्चाई है...जहां तक मुझे समझ आता है..धर्म निरपेक्ष होने का मतलब ये कतई नहीं है कि कोई हिंदू..अगर मस्जिद के सामने से गुजरें तो उसका सिर झुक जाना चाहिये..या कोई मुसलमान..मंदिर के सामने से निकले तो प्रणाम करे..नेताओं की तरह इफ्तार..और होली मिलन की नौटंकी और मीडिया कवरेज को सेक्यूलर शो मानने वालों के जमात हालांकि लगातार बढ़ती जा रही है...जहां तक मै समझता हूं..
हर कोई अपने-अपने मत और धर्म के हिसाब से पूजा..इबादत..या अरदास करता है..करना चाहिये.अगर पूजा में विश्वास नहीं है.तो नहीं करना चाहिये..सेक्यूलर होने का मतलब..क्या अपने धर्म वालों को गरियाना..और दूसरे की तारीफ करना सर्शत अनिवार्य है..क्या तभी हम बुद्धिमान...खुली सोच वाले कहलाये जाएंगे..कब तक हम हर चीज को सिर्फ औऱ सिर्फ अपने पूर्वाग्रह के चश्में से देखेंगे..मै कामचलाऊं पढ़ा-लिखा हूं..मुझे तो यही लगता है कि जो गलत कर रहा है...वो गलत है.. फिर चाहे वो बजरंगी हो..या पादरी के चोले में धर्म ट्रांसफर करवाने वाला एजेंट हो...या मौलवी या वो आतंकवादी..जिनको बेगुनाह साबित करने के लिये पढे-लिखे..श्री श्री सेक्यूलरवादी महानुभाव..दिन-रात एक कर रहे हैं...सच-झूठ का फैसला अदालतों को करने दें..अब आप कहेंगे कि कई जज भी हार्ड कैश के शौकीन पाये जा चुके हैं..तो ईमानदारी से फैसला कौन करेगा...मुझे तो अभी भी ये लगता है कि..थोडी सी काई और हटाने की कोशिश की जाये..तो नीचे पानी साफ भी है..मीठा भी..मुझे तो यही लगता है..बाकि पता नहीं..
विपिन देव त्यागी

JC said...

Jis ashva yani ghorde ki ankhon ke bagal mein patte ('blinkers') lague hote hein, wo kewal samne dekhne ke liye majboor hote hain...wo ashva-rath-chalak ki seemit avasyakta poorti ke liye avasyak hota hai...nahin to ghorde ke bidak jane ki (ya bahak jane ki)sambhavna hoti hai - jaise bagal ke khet mein hari-hari ghas dekh - papi pet ke karan...

Aur, school se seedhe ghar ane ke adesh ko baccha kabhi-kabhi madari ka tamasha aksar dekhne lag jata hai - adesh bhool - aur ghar per daant khata hai...her bar...sudherta nahin...

Talab mein jitni bar pattar maro, taran uthegi hi...phir shant ho jayegi...

Aadarsh Rathore said...

देखिए रवीश जी आपने जो लिखा है उसमें कहीं न कहीं सच्चाई ज़रूर है। लेकिन एक मूलभूत बात समझने की बात ये है कि किसी भी देश में अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना रहती ही है.लेकिन भारत में इसके दो कारण हैं कि मुस्लिम समुदाय के साथ आज परेशानी खड़ी हो रही है। एक तो इतिहास में भारत में मुगलों के आक्रमण और अत्याचारी शासन के कारण आनुवांशिक रूप से ही विभेद चला आ रहा है, दूसरा आज़ादी के वक्त हुए दंगों ने भी दूरी बढ़ा दी। हर समुदाय में एक दूसरे के प्रति घृणा है। आज हकीकत ये भी है कि मीडिया में बड़े-बड़े लोग मुस्लिम वर्ग के साथ सहानुभूति के लिए लेख लिखते हैं और सेक्युलरिज्म का आलाप बुलंद करते हैं लेकिन बाद में दबी जुबान से आलोचना करते हैं।
सोचने की बात है कि आज हिंदु बहुल इस देश में हिंदुओं की शाखाएं मसलन बौद्ध, जैन आदि हैं। वो मुस्लिमों से भी ज्यादा अल्पसंख्यक हैं. लेकिन अन्याय मुस्लिमों के साथ ही क्यूं होता है।
इसके मूल कारणों में जाने की जरूरत है, न कि नकली सहानुभूति जताने की।
मान भी लिया जाए की भारत का मुस्लिम अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए चरमपंथ का रास्ता अपना रहा है तो पूर् विश्व के हालात के बारे में आप क्या कहेंगे? इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों में क्यूं चरमपंथ है? वहां तो उन के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए हिंदू नहीं हैं, फिर वहां अशांति क्यूं?
इसकी असल वजह है अशिक्षा और कुछ अप्रासंगिक सी बातें जो उन्हें कट्टर एवं मुख्य धारा से अलग करती हैं। आज चाहिए कि मुस्लिम धर्म गुरू औऱ संबंधित लोग धर्म के तत्वों पुन: परिभाषित करें और वैज्ञानिक शिक्षा से जुड़ें। लेकिन इस सच्चाई को कोई कहना नहीं चाहता,शायद उसे किसी बात का डर है। और वो सतही स्तर पर हो रहे दंगों और हिंसा की आड़ लेकर मूल को नज़रअंदाज कर देते हैं।
और हां, एक बात मैं पहले ही स्पष्ट कर देता हूं कि मैं विहिप या बजरंग दल का समर्थक नहीं हूं। कहीं छद्म सेकुलर लोग मेरे विचारों को पढ़कर ये
"लांछन" न लगा दें।