(कुछ टिप्पणियां ऐसी होती हैं जो अपने आप में एक लेख के बराबर होती है। तो उन्हें मेन पेज पर ही जगह मिलनी चाहिए।
फिर से आ रहा है पंद्रह अगस्त पर राजेश की इस टिप्पणी को मेन पेज पर जगह दी जा रही है क्योंकि इससे मुख्य लेख को काफी सहारा मिलता है बल्कि इस टिप्पणी से बहुत कुछ फिर से लिखने का मसाला मिलता है)
दिल्ली के अंग्रेजी अखबार वैसे ही रोज घर में कुछ ज्यादा कूड़ा भर देते हैं १५ अगस्त को कूड़ा और आता है.... सारे बैंक जो किसानो को लोन नही देते किसानो के हाथो में एक तिरंगा देकर बड़ा सा लिख देते हैं Happy Independence Day..
9 comments:
सच में-टिप्पणी पूरी बात कह रही है.
यही हमारे देश की विडम्बना है.
a comment with a deep thought....
Regards
is desh ka yahi durbhagya hai.
ईमानदारी से कह रहा हू अपने कमेन्ट को फ़िर से पढ़ते हुए केवल दुःख हो रहा है क्योंकि यही सच्चाई है...
सत्य वचन
Aapki baat to sahi hai 15 augast ke din akhbaaro me kuch jyda hi pages hote hai.
raddiwalon ki kismat khul jati hai.wahi 50 -60 salon ka desh ka post martam hota hai.
wahi purani baaten hoti hai kitni sakaron ne kitna utpat machaya hai,
ameer or gareeb ke beech doori badhi hai,deshbakti ke geet.kuch dukandar is din akhbaaron me desh
ke naam per apni dukan bhi chalate dikhte hai advertise karke.
Per ek baat jo maine sabse jyada gour ki hai ki isi din apne tirange ka sabse jyada apmaan hota hai.
app apni bagal wali sada per nikal jaayie kuch hi doori me aapko dher saare jhnde fati purani haalat me
mil jayenge,kuch gandagi se lipte hue, kuch sadak kinare wali gutter ko jaam kiya hue.dekh kar bura lagta
hai.shayad ye din jhande ka apmaan karne ka hai.
Is jan gan ke man ka asli bhagya vidhata abhi tak nahin mil paya hai. alag alag staron par iski khoj jari hai. jab tak aasman ka swarg dharti par nahin utarata hai, tabtak , swatranta diawas aur swantray chetana aisi hi neeras aur bekar ki bat lagti rahegi.
Regards
kaushal kishore
अरे भाई ज्यादा टेंशन नहीं लेने का है. खुद बच्चे थे तो बढिया से १५ अगस्त मनाये (जिलेबी खा खा कर). अब बच्चो की बारी आयी तो अखबार का कुड़ा दिमाग खराब कर रहा है? मस्त होकर एक पिलास्टिक वाला तिरंगा खरिदिय, कार पर लगाइये, देशभक्ति गाने म्युसिक सिस्टम मे लगा कर दिन भर सुनिये. और बढिया सा जिलेबी कहीं मिल रहा हो तो लेकर आइये. गावों मे ज्यादा ठिक था. प्रभात फेरी से हि लग जाते थे हम लोग. यहां तो बेटी के स्कूल मे छुट्टी दे देतें है.
हां उस दिन लालकिला वाला प्रोग्राम टि वि पर मत देख लिजियेगा. बना बनाया मुड बिगड जाता है.
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