कंक्रीट की नागरिकता
हम सब सिर्फ भारत के नागरिक नहीं हैं। नागरिकता राष्ट्रीय नहीं रही। प्रोपर्टी बाज़ारोन्मुखी हो गई है। नागरिकता अपार्टमेंटोन्मुखी हो गई है। सुपरटेक नागरिकता के इस दौर में मोहल्ले और कस्बे की नागरिकता डेवलपर्स की दुकान में डस्टबीन के काम आ रही है। नागरिकता के नए युग में स्वागत है। विज्ञापन में एक डॉक्टर साहब खुद को सुपरटेक नागरिक होने पर गर्व जता रहे हैं। वैसे भी हाउसिंग सोसायटी किसी उप-मुल्क की तरह ही काम करते हैं। मोहल्ले वाली बात नहीं कि एक छोर से स्कूटर घुसाया और सीटी बजाते दूसरे छोर से निकल गए। बकायदा गेट की सीमा रेखा पर चेकिंग होती और फोन से घर में पूछा जाता है कि अमुक आदमी को अंदर आने की इजाज़त है। ज़्यादातर हाउसिंग सोसायटी में गाड़ी से जाने की इजाज़त नहीं होती। पैदल आना होता है। जैसे हम वाघा सीमा पर पैदल पार करते हैं। इधर से उधर।
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14 comments:
बहुत खूब लिखा है।
ना जाने कितनों ने लिख मारा है कि ईट गारे का शहर है यह। गणित के हल की तरह साबित भी कर दिया सुपरटेक ने
आह! यह तो बंधन क्यों? Your comment has been saved and will be visible after blog owner approval.
इसलिए कि कोई गाली ना दे, बुरा ना कहे। आप भी इस लफड़े में फंस गए! अफसोस!
ektum sateek baat!
this is really true.
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अलहदा-सी बात कह जाते हैं आप
कम शब्दों में.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
कंक्रीट शहर के मशीनी नागरिक संवेदना शून्य....खुशी - गम सब कुछ प्लास्टिक..........
Ravish ji, aaj 25/07/08 ke NBT (hindi) me page 14 pe ek article aaya hai Alok Purarik ji ka "Loktantra aur Uthaigiri" dekhiyega, mujhe aacha laga, wo ek nibandh hai per sach hai.
regards,
sarita
Rajesh,
ye bandan nahi hai isse ab aap ye bhi jaan sakege ki ravish ji ko comments kis tarah ke pasand hai.
waise bhi bura kahna ya gali dena sahi nahi hota aur phir usko isi jagah publish kerna jaha sabhi pad rahe ho shobha nahi deta, comments to apke bhi display hue na jo aape likha wo sahi tha usko roka nahi gaya.
sahi baat pe Afsos kerna sahi nahi hota
सच फरमाया आपने
If any thing is permanent, it is CHANGE! We have chosen this life for ourselves. Then why do we now long for the "koyal ki kook", "sinke hue bhutte" and "mohalle ki puliya par addebazi"? Do you agree with me?
क्या रवीश जी नेताओं की क्लास लेते लेते आप भी उन्ही की जमात में शामिल हो गयें जिस तरह उन्हें सुरक्षा में जीने की आदत होती है....उसी तरह आपने भी अपने ब्लॉग पर सिक्योरिटी लगा दी है....इतना डर किस बात का क्या अब चाटुकारिताऐं भी चुन चुन कर दिखायेंगे या मेरे कटु सत्यों से डर कर आपने ये कदम उठाया है....अगर आप अपनी आलोचनओं को नही पसन्द करते हैं या आप को सिर्फ अपनी प्रशंसा ही सुनने की आदत है तो आपके लिए....कबीर की ये पंक्तियाँ....
निंदक नियरे राखिये
आंगन कुटी छवाए
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय
और सिक्योरिटी लगाने से क्या फायदा हमें तो जो भी आपके ब्लॉग से पढना होगा वो तो हम पढ ही लेंगे ....आप को टीवी पर देख देख कर ही पत्रकारिता का कीड़ा काटा था मुझे भी ..आप तो मेरे आदर्श हो .... अभी तो मेरे कैरियर की शुरुआत भऱ है आपको चुनौत देना मेरा उद्देश्य नही था न ही मैं अभी इस काबिल हूँ कि आपको चुनौती दे सकूं ....अगर आपने मेरी टिप्पणियों की वजह से ये सिक्योरिटी लगायी है तो मैं ये वादा करता हूँ कि आगे से कभी आपके ब्लॉग पर कुछ नही लिखूँगा....लेकिन आपसे ये निवेदन है कि अपने ब्लॉग से ये बंदिश हटा लें ....क्योंकि विचारों की स्वतन्त्रता की पैरवी करने वाले पत्रकार के ब्लॉग पर ये बेड़ियाँ शोभा नही देती हैं....
जय बजरंग बली की .......
अनिल जी
आपकी वजह से कुछ नहीं लिखा है। विचारों की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं हर किसी की राय आपको चाटुकारिता ही लगे। कोई मेरी चाटुकारिता क्यों करे और मुझे यह सब पसंद भी नहीं। तल्ख टिप्पणियों के प्रति बहुत सहिष्णु है लेकिन एक सज्जन ने टिप्पणी की जगह गाली दी तो मुझे बुरा लगा। लिखे हुए की कड़ी से कड़ी आलोचना मुझे स्वीकार्य है लेकिन मां बहन की गाली कोई दे तो क्या करूं। मैं इस भाषा में किसी को जवाब नहीं दे सकता और न ही किसी महान सन्यासी की तरह सहिष्णुता बची है। अगर आपकी वजह से किया होता तो किसी पोस्ट को हटाता। मैंने नहीं किया। तब भी नहीं किया जब आप हर टिप्पणी में एक ही बात लिखते थे। अगर आपको लगता है कि वजह आप हैं तो मैं वापस हटा देता हूं। आप जो चाहें खुल कर लिखें बल्कि मिल कर वही बातें कर सकते हैं।
शुक्रिया
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