कांशीराम का थप्पड़

नोएडा स्टेडियम में बामसेफ का सम्मेलन चल रहा है। यहां कई लोग मिले जो कांशीराम के युवा दिनों के साथी रहे हैं। बल्कि यह बताते रहे कि कांशीराम हमारे युवा दिनों के साथी हैं। पुणा की बात बताने लगे। कहा कि कांशीराम पुणे आर्डिनेंस फैक्ट्री में काम करते थे। तब उन्हें अंबेडकर के बारे में कुछ पता नहीं था। कांशीराम एक हंसते खेलते सिख नौजवान थे। एक दिन दिनामाना नाम के चपरासी से अपने अधिकारी कुलकर्णी से १४ अप्रैल को छुट्टी मांगी। कुलकर्णी ने अंबेडकर जयंती के लिए छुट्टी नहीं दी। दीनामाना ने नाराज़ होकर बात कांशीराम को बताई। कांशीराम ने कहा ये कौन है जिसके लिए तुम छुट्टी मांग रहे हैं। नहीं मिली तो क्या फर्क पड़ता है।

तभी बामसेफ के संस्थापक डी के खापर्डे ने कांशीराम को बहुत डांटा। समझाया कि आपको नौकरी मिली है अंबेडकर की वजह से। वर्ना बिना आरक्षण के ये लोग नौकरी भी नहीं देते। ये सब चंद पल थे जिसने कांशीराम को कुछ सोचने पर मजबूर किया। गुस्से में कांशीराम ने कुलकर्णी को चांटा मार दिया। बस सस्पेंड हो गए।

इसी बीच बामसेफ की स्थापना हो गई। ४० लोगों की टीम ने छुट्टी के दिनों में देश में घूम घूम कर सरकारी कर्मचारियों को इकट्ठा करने का फैसला किया। कहा कि अगर एक लाख लोग हमारे दायरे में आ जाएं तो हम सामाजिक परिवर्तन कर सकते हैं। इसके लिए कांशीराम सबसे उपयुक्त मान लिये गए क्योंकि सस्पेंड होने के कारण उनके पास काम नहीं था। ये काम मिल गया। एक थप्पड़ ने कांशीराम को उस ऐतिहासिक मौके के दरवाज़े पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से हिंदुस्तान की राजनीति कई दशकों के लिए बदल जाने वाली थी।
( यह प्रसंग पूरी तरह से बामसेफ के लोगों के संस्मरणों को सुन कर लिखा गया है। इसमें कोई जानकारी कम हो या गलत हो तो मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है)

6 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

नॉएडा से आपकी 'बामसेफ रपट' टीवी पर देखी थी. यह अतिरिक्त जानकारी देकर बहुत अच्छा किया आपने. वाइसओवर में उस दिन कांसीराम के बारे में आपने कहा था कि कांसीराम बामसेफ के साथ नहीं थे.

ravishndtv said...

विजय शंकर
मैंने यह नहीं कहा था कि कांशीराम बामसेफ के साथ नहीं थे। १९८६ में बामसेफ से अलग हो गए थे। क्योंकि बामसेफ खुद को राजनीतिक संगठन नहीं मानता। यह भ्रम कुछ कुछ संघ जैसा है। जो खुद को राजनीतिक संगठन नहीं मानता। यहां भी फर्क है। संघ का असर बीजेपी पर है। बामसेफ का असर बीएसपी पर नहीं है। ये और बात है कि बामसेफ के काम का लाभ बीएसपी को मिल जाता है। मगर बीएसपी की मायावती ने बामसेफ के अध्यक्ष से बात भी नहीं करती हैं। यह खुद अध्यक्ष ने कहा

मृत्युंजय कुमार said...

अतिरिक्त जानकारी देकर अच्छा किया. आपकी खास बात यह है कि आप अपनी बात कहते हुए उसे बोझिल नहीं बनाते और अधिकतर ब्लागरों की तरह अनावश्यक बौद्धिक आतंक भी खड़ा नहीं करते।

sudo.inttelecual said...

kya aap bhi militant dalit hain??

Unknown said...

Anil Bharti

thanks for your kind information.

Unknown said...

Thanks for your kind lndor
mafion