भाषा हेडमास्टर है। बोली उदंड छात्राएं। उदंड के साथ साथ स्वतंत्र खयालों वाली छात्राएं। जो व्याकरण की छड़ी से खुद को नहीं हांकती। बल्कि चुपचाप नए शब्द नए वाक्य कहीं से उठा लाती हैं और बोल चलती हैं। बोलियों में बहुत सारे शब्द अवधारणाओं के बनने के बाद बनते हैं। उसे अभिवयक्त करने की ललक एक नए शब्द को जन्म दे देती
हमारे इलाके में एक शब्द प्रचलित था टिनअहिया हीरो। यह एक खास किस्म का हीरो हुआ करता था। जो बांबे दिल्ली से लौटा होता था। सस्ती जीन्स, लाल कमीज़, चश्मा और होठों से सरकते पान के पीक। टिनअहिया हीरो से गांव के देशज लड़के बहुत चिढ़ते थे। वह ग्रामीण समाज में एक शहरी अपभ्रंश की तरह आ चुका होता था। मिलता अक्सर पान की दुकान पर था। जब चलायमान होता तो देखने लायक होती। वह धीरे धीरे सायकिल छोड़ सेकेंड हैंड मोटरसायकिल की सवारी करने लगता। उसकी हेयर स्टाइल किसी हीरो से मिलती थी। अक्सर गांव के लोग उसे सामने पाकर हीरो कहते थे और उसके जाने के बाद टिनअहिया हीरो। इसका बटुआ भी खास रंग का होता था। कवर पर विद्या सिन्हा या रेखा की तस्वीर हुआ करती थी। सिगरेट सरेआम पी डालता था। लगता था कि कोई शहर से आया है। उसकी नज़रें गांव की दबी कुची लड़कियों को ढूंढा करती थीं। बड़ा साहसी होता था। सबके सामने उसकी नज़र पास से गुज़रती लड़कियों पर पड़ती थी। कभी कभी वो सरकारी बालिका विद्यालय के सामने भी पाया जाता था। वो अपने कंधे पर सशरीर शहर को लेकर घूमता था। शहर जैसा लगता था। टिनअहिया हीरो कहलाता था।
6 comments:
સાલ મુબારક
Saal ki purwasandhya par aapko tinahiya hiro ki yaad kahan se aa gayi ? Baharhaal bada sajiv chitran kiya hai aapne tinahiya hiro ki. Jahan tak bhasha aur boli ki baat hai to ye bhawna aur bodh ka sarwochch udgar hain. wyakran to enhe shudh karta hai. Sarth abhiwyakti jaise bhi jahir ho, wahi sahi hai. So, Tinahiya hiro bhi sahi hai.
मुबारक, मुबारक.. कस्बाई नॉन-टिनअहिया हीरो जी..
आपने गाँव के गवरू और शहर के छैला से गाँव और शहर के परिवेश को बताना चाहा है ........... आखरी लाइन मैं आपने पूरी कहानी कह्डाली है ................
क्या बात है रवीश.. बहुत बढ़िया लिखा.. एकदम मस्त!
haha haa....Maja aa gail sair jee
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