मैं बहुत सीधा हूं

मैं बहुत सीधा हूं
सिर्फ समझना मत
कि मैं बहुत सीधा हूं
सीधा हूं सिर्फ अपने काम से
कोई हाथ डाले तो गया काम से
हद की सीमा के भीतर तक ही
मैं बहुत सीधा हूं

सीधा होने की सीमा के बाद
हम सबका टेढ़ा शुरू होता है
हमारे भीतर टेढ़ेपन की तमाम संभावनाएं भी
कितनी जतन से बचाकर रखी होती हैं
अक्सर हद से गुज़र जाने के बाद
सीधेपन के बचाव में टेढ़ापन निकल आता है
तिस पर से कह भी देते हैं अक्सर
देखों मैं बहुत सीधा हूं

सीधा होना कहीं सुविधा तो नहीं
सीधेपन के बहाने चुप रहने का मौका तो नहीं
संबंधों को तौल माप कर भांपने का मौका तो नहीं
जब सब कुछ हद से गुज़र जाए
तभी क्यों टूटती है हमारे सीधेपन की सब्र
फिर हम क्यों कहते हैं
देखो, अब भी संभल जाओ
बहुत हो गया
मैं वैसा भी सीधा नहीं हूं

दुनिया के सारे सीधे लोगों से सवाल है
वो क्यों आखिरी वक्त तक सीधेपन की आड़ नहीं लेते
क्या सीधा होना वाकई एक कमज़ोरी है
कि जो सीधा है उसी से सीनाजोरी है
सीनाजोरी जब हद से गुजर जाए
तो कह देने भर का बयान कि
देखो मैं बहुत सीधा तो हूं
मगर एक शर्त भी है इस सीधेपन में
कि सिर्फ समझना मत कि
मैं बहुत सीधा हूं

8 comments:

azdak said...

यहां किसी को गलतफ़हमी नहीं है कि कोई सीधा है.. आपके बारे में तो शर्तिया नहीं है.. कविता में झूठ मत लिखा कीजिए.

राजीव रंजन प्रसाद said...

क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन,विषरहित,विनीत, सरल हो

सुन्दरता से आपने अपनी बात कही है, पढते हुए उपर उद्धरित पंक्तियाँ याद आ गयी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Rajesh Roshan said...

Bernard Shaw ne kabhi kaha tha ki जिन्दगी चलने का नाम है। सीधा हो या टेढा

किस मनःस्थिती में जी रहे हो भाई साहब । क्या हो गया है। सब खैरियत से तो है ।

Priyankar said...

रवीश! आपकी महारथ गद्य में है .

चंद्रभूषण said...

महारथ कुछ नहीं होता, सिर्फ महारथी होता है, जो रवीश जी अपने गद्य की रवानी के मामले में हैं। सही शब्द महारत है जो माहिर से बनता है और इस तरह की कोई चीज इन दोनों कविताओं से जाहिर नहीं हो रही है।

ravishndtv said...

प्रमोद जी
आपने सही पकड़ा है। सच लिखते लिखते बोर हो गया था। सोचा झूठ से सच को सजा कर देखते हैं।
जरा प्रियंकर से पूछिये कि किसने कहा कि मेरी महारत गद्य में है। अरे भई पहले मुझे जी भर कर गद्य पद्य करने दीजिए। साधारण, असाधारण और अतिसाधारण रचनाओं को सुख लेने में भी मजा है।
महान होने से पहले की लघु महानताएं यादगार होती हैं

देवांशु वत्स said...

ed sundar cheej parhi, dhanyawad !

Priyankar said...

सोलह आने सही चंद्रभूषण जी . रोमन के उस अतिरिक्त 'एच'को हटा दीजिए .