तो क्या मोदी की वजह से रह गए आडवाणी

५० साल के राजनीतिक सफर का अंत हो गया है। आडवाणी ज़िंदगी भर नंबर टू ही रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की छाया से नहीं निकल सके। जनता ने आडवाणी को निर्णय लेने वाला मज़बूत नेता मानने से इंकार कर दिया। दरअसल आडवाणी को अवधारणा या छवि की राजनीति भी नहीं आती। जब गुज़रात में दंगे हो रहे थे तब अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को राजधर्म की याद दिलाई थी। आडवाणी कभी राजधर्म जैसी बात नहीं कर सके। उस मोदी के साथ खड़े हो गए जिसने उनकी राह मुश्किल कर दी। गांधीनगर में आडवाणी की जीत का अंतर एक लाख इक्कीस हज़ार से कम हो गया है। पिछली बार वे दो लाख से अधिक मतो से जीते थे।

शरद यादव ने कह दिया कि बीच चुनाव में मोदी का नाम उछल गया। वोटों का ध्रुवीकरण हो गया। क्यों कोई अल्पसंख्यक बीजेपी को वोट दे। गुजरात के दंगे क्यों कोई भूल जाए सिर्फ इसलिए कि मोदी को पीएम बनना है। सड़के तो शीला दीक्षित भी बनवाती हैं और वाईएसआर रेड्डी और अब सेकुलर हो चुके नीतीश कुमार भी। गुजरात हमेशा से समृद्ध राज्य रहा है। लेकिन कब तक गुजरात की जनता अच्छी सड़कों पर कार चलाती हुई हिंसक ख्यालों में डूबी रहेगी। वो सफर का लुत्फ उठाना चाहती है और तभी उठा पाएगी जब मोदी की हिंसक राजनीति का ख्याल मन में न आए। गुजरात की महान जनता ने मोदी को सड़कें बनवाते रहने के लिए वोट दिये हैं न कि हिंसक राजनीति करने के लिए। नरेंद्र मोदी अपने भाषण में बात कम करते हैं, चिढ़ाते ज़्यादा है। कोई गली मोहल्ले वाला नेता ही इस तरह का काम करता है। कंधे उचकाकर एक रैली में मनमोहन सिंह की नकल कर रहे थे। क्या वो इसी गुजरात का प्रतिनिधित्व करते हैं?

मनमोहन सिंह ने कई बार सिख दंगों के लिए माफी मांगी है। कांग्रेस ने सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर का टिकट काटा और मंत्रिमंडल से हटाया। नरेंद्र मोदी तो हमारे विजय त्रिवेदी के सवालों का जवाब ही नहीं दे पाए कि आप माफी मांगेंगे या नहीं। मोदी ने उनके माइक को हटा दिया। ये इंटरव्यू एऩडीटीवी इंडिया पर खूब चला था। सवाल है कि नरेंद्र मोदी हैं क्या जो माफी नहीं मांगेंगे। इस देश में छत्तीस मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी के नेता व्यक्तिगत उपलब्धियों के जोश में बेलगाम हो गए हैं। वो तय नहीं कर पा रहे थे कि मोदी को नेता माने या आ़डवाणी को ढोयेँ। शऱद यादव की बात में दम है।

बीजेपी को कांग्रेस से सीखना चाहिए। इसके दामन पर भी दंगों के दाग थे। धुले तो नहीं लेकिन पार्टी उसके लिए माफी मांगती रहती है। बाबरी मस्जिद ढहाने की सजा अल्पसंख्यकों ने कांग्रेस को खूब दी। लेकिन कांग्रेस उनके बीच गई। योजनाएं लेकर आई। शायद इसका फायदा उसे मिल गया। कई चुनावों बाद ही सही लेकिन मिला तो। एक दिन बीजेपी भी गुजरात दंगों के लिए माफी मांगेगी। देखना है कि नरेंद्र मोदी मांगते हैं या कोई और। मुस्लिम इलाकों में इन्हें जाना ही होगा और जाकर वोट मांगना ही होगा। वर्ना कोई दयानंद पांडे और साध्वी प्रज्ञा जैसे हिंदू आतंकवाद के सपोर्ट में खड़े होकर देश पर राज नहीं करेगा। इन पर आरोप साबित नहीं हुए हैं लेकिन इस तरह के फटीचर किस्म के नेताओं पर बात ही क्यों करे। शिवसेना तो ऐसे बवाल मचा रही थी जैसे हिंदुओं को कोई देश से निकाल देगा। योगी आदित्यनाथ किस्म के नेताओं से आप गोरखपुर की सीट जीत सकते हैं देश पर राज करने का मौका नहीं मिलेगा। बीजेपी भी यह बात जानती है तभी शुरू में वरुण गांधी के बयानों से दूर रही। लेकिन तुरंत फिसल गई कि लोग तिलक लगाकर हिंदुत्व के लिए निकल रहे हैं। फटीचर किस्म की बातें करने वाला वरुण गांधी जेल से आकर किस देश की जनता को धन्यवाद दे रहा था, जो उसकी पार्टी को खारिज कर रही थी, उसको?

आडवाणी इसीलिए नेता नहीं है। वो एक महान कार्यकर्ता और संगठनकर्ता है। नेता होते तो इस तरह के तीन नंबर की पोलिटिक्स के खिलाफ उठ खड़े होते जो चाय की दुकानों पर बैठकर मुसलमानों के बारे में तरह तरह के पूर्वाग्रह गढ़ते रहते हैं। अरब का पैसा है,मदरसे में आतंकवाद की पढ़ाई है,ओसामा बिन लादेन हैं आदि आदि।

अब मूल सवाल ये है कि क्या नरेंद्र मोदी बीजेपी के लिए बोझ बन गए हैं? क्या बीजेपी सिर्फ गुजरात में ही जीत कर खुश रहेगी। गुजरात में भी मोदी का अखंड प्रभाव नहीं है। जिस खेड़ा सीट पर मोदी ने सात सभायें की वहां से कांग्रेस जीत गई। अब तक बीजेपी मोदी को किनारे रखती थी कि कहीं एनडीए न बिखर जाए लेकिन अब उसे यह सोचना पड़ेगा कि कहीं मोदी के कारण बीजेपी ने खत्म हो जाए। युवा और दूसरी पीढ़ी के नेताओं का ढिंढोरा बीजेपी कांग्रेस से पहले से पीट रही है। अटल जी के टाइम से ही पीट रही है। लेकिन एक राहुल गांधी ने बीजेपी के दूसरी पीढ़ी के नेताओं को पीछे छोड़ दिया। अरुण जेटली का एरोगेंस काम नहीं आया। हर अच्छे वकील को लगता है कि उसकी दलील सबसे अच्छी है। लेकिन जज दलीलों से नहीं सबूतों के आधार पर फैसला देता है। वकील चाहे तो भ्रम में जी सकता है कि उसी की दलील के कारण जीत मिली है।

57 comments:

रंजन (Ranjan) said...

ना जी... आडवाणी गये अपनी वजह से.. उन्होने अपनी नई छवी बनाने कि ८० की उम्र में.. पर भूल गये कि ८० साल के कर्म १ साल की घोषणाओं में नहीं छुप सकते.. खुद को मजबुत कहने की जरुरत नहीं होतॊ.. आप कोई नये आदमी नहीं थे..जनता आपको ५० सालों से जानती है.. वि जानती है आप कितने मजबुत है.. और खुद की लाइन बडा करने के साथ आपने मनमोहन को कमजोर कह उनकी लाइन छोटी करनी शुरु कर दी.. मनमोहन कोई पेराशुट से नहीं आये.. जनता उनके बारे में भी जानती है.. एक झुठ सौ बार बोलने से सच नहीं हो जाता भुल गये अडवानी जी आप..

काग्रेंस को माफी कई साल बाद याद आई है.. जुता खाकर उन्होने दागी लोगो को हटाया है... उनकी बुद्धी भी जनता ने ठिकाने लगाई है.. मार-मार (हरा-हरा) कर जनता ने उसे सिखाया है.. शायद कांग्रेस सिख रही ्है.. देर सवेर बी जे पी भी सिखेगी.. वक्त का पहिया है पूरा चक्र काटेगा...

Sanjay Grover said...

सुना है सभी ‘कुड बी’ पी. एम. इन वेटिंग अत्यंत हताश हैं। हताशा की स्थिति में वे कुछ कर न बैठें, इसलिए सभी दलों ने अपने-अपने यहां एक-एक स्थायी ‘‘पी.एम.इन वेटिंग’’ पद का निर्माण करने की घोषणा की है। लालवानी जी ने चक्कू गोदमगोदीजी को उपदेश भेजा है कि पूरी सतर्कता और चालाकी के साथ छवि बदलो वरना मेरी तरह मारे जाओगे। सुना है चक्कू जी अब सीस्ता तीतरयार के साथ दंगों पर बनी फिल्में देखेंगे और ज़ार-ज़ार रोएंगे। जिसका कि लाइव टेलिकास्ट किया जाएगा।

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

रविशजी
पिछले करीब दो दशकों से बी जे पी के तत्वाधान में चल रहा आर एस एस का साम्प्रदायिक खेल अब खात्मे पर है .
जिस तरह लालू ने बिहार और बिहारियों के जीवन से करीब करीब पन्दरह साल निकाल दिए उसी तरह बीजेपी ने पुरे देश को इन सालों में तंग तबाह कर दिया. झूट मुठ के मुद्दे , समाज और देश को तोड़ने वाली गति विधियां और आर एस एस का करीब करीब स्चिजोफ्रेनिक ओब्सेस्सन के देश का राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी न होकर हेडगेवार या गोलवलकर को कैसे साबित किया जाय. नफरत , सामुदायिक हिंसा और असहिष्णुता का रक्त बीज देश के नस nadiyon में डालने का कुत्सित प्रयास ये करते रहे.
अंहकार ऐसा की एक मगही कहावत याद आती है " लक्ष्मी से भेंट न दरिदर से झगडा " . २००९ में अडवाणी का प्रधान मंत्री बनना तो दूर ,२०१४ में प्रधानमंत्री पद को मोदी के नाम इजारा और बये करने की होड़ में आपस में हीं जुट गए .
अडवाणी को अपने पापों की सजा मिली है .कांग्रेस पुराने पापों की सजा भोग कर प्रायश्चित कर बदलने की कोशिश कर रही है. भगवान् इन्हें सदबुद्धि दे .
बीजेपी अपने वर्तमान स्वरुप में अपने अवसान की और है.रही बात vestigial organ के तौर पर राजनीती के हासिये पर पड़े रहने की , तो हिन्दू महासभा और बलराज मधोक की जनसंघ भी सुनते है जीवित है.
प्रभु से एक प्रार्थना - हे प्रभु , मादरे हिंद के इन तिमिर पुत्रों को सदबुद्धि दें और इनके पथ को ज्ञान से आलोकित करो. जिससे ये आदमी को आदमी समझें और हिंसक और बर्बर पाशविक प्रवृतियों से निजात दिलाएं. इनके कारनामों से हे जड़ चेतन सब के स्वामी , महान हिन्दू धर्म कलंकित न हो .

बिहार का चुनाव भी विश्लेषण की मांग करता है . उस पर भी लिखें तो विमर्श आगे बढेगा .
" मगह देस " पर "फस्सिल में ताडी की बहार " पर प्रतिक्रया के लिए शुक्रिया. फोटो का इन्तेजाम किया जा रहा है .
सादर

PD said...

Vah bhai.. kitni aasani se aapne Nitish ko "Secular" man liya.. pahle to ve nahi the NDTV ki najar me..

Vaise meri najar me aaj Secular hona "Mad......" gali se kam nahi hai.. ho sakta hai ki abhi bhi aap Nitish ko vahi gali de rahe hon..

Aur agar Muslim bahul ilakon me bhi jana hai vote mangne to bhai sare bangaladeshiyon ko bhi khush kar do.. tabhi to vijay ka tilak lagega.. Vaise bhi secularon ki najar me hinduon ka koi adhikar is desh par nahi hai..

mere is comment ka yah matlab na nikalen ki main kattar hindutv ki or badh raha hun.. sach to ye hai ki meri aastha bhagvan me hi nahi hai.. magar main sirf Allah ke naam par bane sufi gano par sar hilane valon me se nahi hun.. main krishna ke bhajan par bhi sar hilata hun..

ye tathakathit "Secularon" ke karan agar main kal ko kattar hindu me badal jaaun to mujhe koi aashchary nahi hoga.. vaise bhi ek aam aadmi ki sahanubhuti unki or hi hoti hai jo dabe kuchle hote hain.. aur main bhi ek aam aadmi hi hun..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मोदी भी एक वजह जरूर होंगे।

दूसरी बात यह भी है कि अब जनता समझदार हो रही है। युवा लोग वोट देने लगे हैं। उन्‍हें पता है कि नकारात्‍मक राजनीति से उन्‍हें सिर्फ बेकवकूफ बनाया जा सकता है, हासिल कुछ नहीं होना। पर भाजपा और उनके लगगू यह समझ पाएं, यह बडी बात है।

RAJ said...

BJP got defeat due to Advani's unacceptance among the Hindu voters. Varun's comments polarised muslims against BJP Only These two are real reasons.

BJP should realise that India is a multireligion country not a muslim or hindu country.
We are living together for last thousands of years and will live together for thousands of years if Hindus will be in Majority else again face a partition like pakistan.
Ravish Ji this is the well known philosophy that you cant go for long term on the basis of hate politics.Like NDTV is doing via its communal programs. Most of your programs are always pointing fingures on Hindus and their leaders so a common man thinks that Hindus are in danger in their own country and they vote for BJP.

Ask a question to yourself that Is your channel not responsible for this tense situation between hindus and muslims?

What leaders are doing affects only a small region but what media is barking without any sense made effect on whole country.
I make a request to New Goverment to stop all News channels whose unmatured reporters are creating tension between all religions.
Today everyone is facing the heat of these channels who are imposing foreign culture and agenda on this country.

I pray for new government that they can tackle all these issues with strong inclination.

If Congress can handle these big issues like Terrorism,developement
and reforming social harmony then there will be no need of any other party in this country.

Jai Sri Ram.

Unknown said...

आज जीते हैं तो सभी गरजेंगे ही भाई, शरद यादव जैसे अवसरवादी को भाजपा नहीं पहचान रही, यह उसका दुर्भाग्य है… जैसे पटनायक मौकापरस्त निकले निश्चित रूप से नीतीश भी वैसे ही निकलेंगे… भाजपा को यह बात समझ नहीं आ रही कि जब तक वह अस्वाभाविक गठबन्धन (शिवसेना-अकाली छोड़कर) दलों के मेंढकों का बोझ ढोती रहेगी, कभी भी आगे नहीं बढ़ सकेगी, कांग्रेस की तरह हिम्मत करके "एकला चलो रे" की नीति अपनाये और "हिन्दुत्व" पर बैकफ़ुट न जाये तो 10-20 साल में कभी माहौल बदल भी सकता है… तब तक संघर्ष करने में क्या बुराई है? लेकिन दिक्कत तब पैदा होती है जब सत्ता प्राप्ति के लिये NDA जैसा बिजूका तैयार कर लिया जाता है जिसने अपने कार्यकाल में "कंधार" दिया…, नायडू-ममता-जयललिता जैसे अवसरवादी भी दिये, जो खुद का फ़ायदा कर गये लेकिन भाजपा का बहुत नुकसान कर गये। जितने भी टिप्पणीकार ऊपर टिपिया चुके हैं… शायद वे संघ और संघ कार्यकर्ताओं से वाकिफ़ नहीं हैं जिनके लिये सत्ता कभी भी साधन नहीं रहा… यह तो भाजपा में बाहर से घुस आये "सुविधाभोगियों" ने पार्टी की हालत खराब की है… संघ तो 70-75 साल से संघर्ष कर ही रहा है आगे भी 100 साल करने की तैयारी है, क्योंकि हिन्दुओं को देश में जिस प्रकार "जुतियाया" जा रहा है, उसके विरोध में देश में सिर्फ़ एक ही संगठन है। "सेकुलर" लोग तो देश को बांग्लादेशियों, मदनियों, मिशनरियों को बेचने का स्वप्न देख रहे हैं… और एक "परिवार" की गुलामी करते-करते उनका दिमाग इतना भोथरा हो चुका है कि वे देश के भीतर गुपचुप चल रहे "देशद्रोह" को भी नज़र-अंदाज़ कर चुके हैं…। फ़िर उनका साथ देने के लिये विदेशी पैसे पर पल रहे विभिन्न टीवी चैनल और बिके हुए अखबार/पत्रकार भी हैं, जिनका एकमात्र एजेण्डा भाजपा-संघ-मोदी-हिन्दुत्व-वरुण का विरोध करना भर है। ज़ाहिर है कि भाजपा की राह बेहद मुश्किल है, क्योंकि सभी मिलकर उसे एक कोने में ठेलने की कोशिश कर रहे हैं…। उम्मीद पर दुनिया कायम है कि कभी तो "कायर-हिन्दुओं" का स्वाभिमान जागेगा… और नहीं जागता है तो जैसे "गंधार" से सिमटते-सिमटते लाहौर, फ़िर कश्मीर, नेपाल और बांग्लादेश से खदेड़े-भगाये गये हैं, आगे भी जूते खाते ही रहेंगे, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि "संघ" अपने प्रयास छोड़ दे…

विवेक सिंह said...

राजनीत मैं अगर आप अपने सिद्धातों को लेकर आगे बढ़ते हैं तो हार या जीत तो निश्चित है मगर इसका मतलब यह नहीं की आप विचलित हो जाएँ और अपने सिद्धांतों से भटक जाएँ ,,बीजेपी भी अपने सिद्धातों से भटकी और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा ,,पता नहीं क्यूँ आप लोग इसका टोकरा नरेन्द्र मोदी और वरुण गाँधी कई सर फोड़ रहें हैं??वरुण की भाषा गलत हो सकती है बेसक मगर वो येही मुद्दे है जो हिंदुत्व कई प्रचार और एकता के लिए कार्यरत संघ जुटी हुए है ,,इस देश की राजनीत दो तरह से विभाजित हो गए है सेकुलर और नॉन सेकुलर ,,अप्प लोगों नै किस बिनाह पर लालू ,मुलायम,मायावती,शरद यादव जैसे नेताओं को सेकुलर का तमगा पहना दिया ??इन लोगों ने हमेशा से नफरत की राजनीती ही की है,,और बीजेपी कई साथ ऐसा तो होना ही था क्यूंकि यह बीजेपी सिर्फ भगवा कांग्रेस बनकर रह गए है इस पार्टी नै सत्ता के लिए सिद्धांतों से समझोता किया ,,बीजेपी की हार की नींव उसी दिन पद गए थी जब सत्ता के मोह मैं उसने अपने मनिफेस्तो को दरकिनार कर अवसरवाद की राजनीत शुरू कर दी ,उसमे एक ईंट और जुड़ गयी जब रास्त्रवाद की बात करने वाली पार्टी कंधार मैं जाकर देश का मजाक बना कर आये थी ,,अडवाणी जी ने अपनी हार की शुरुआत उसी दिन कर दी थी जब उन्होंने जिन्न्हा की दरगह पर आंसू गिराए थे ,,उत्तर प्रदेश से राजनाथ सिंह ने कब का अपना नाता तोड़ लिया था ,,तो फिर देश की जनता इतना बेवकूफ तो नहीं है की बीजेपी के दोगलेपन को बर्दास्त करती ,,इसे मौका मत बनाईये हिंदुत्व की राजनीत को गाली देने का यह हिंदुत्व की नहीं बीजेपी के दोगलेपन की हार है ,,जनता को अंगूठा दिखने वालों की हार है ,,सेकुलरिस्म की बात करने वालों की भी हार है ,इसलिए तो लालू जैसे नेताओं को अब ब्लाच्क्मैलिंग का मौका नहीं मिलेगा ,,इसलिए सेकुलरिस्म का झुटा दंभ मत भरिये क्यूंकि जनता किसी को नहीं छोड़ती .........

SACHIN KUMAR said...

SACHIN KUMAR
.........
ADWANI LOST AND ITS ALL OVER FOR HIM. AT THIS MOMENT A BREAKING NEWS CAME ADWANI WILL REMAIN OPPOSITION LEADER. I DONOT AGREE THIS IS BREAKING NEWS. OK WHY ADWANI SHOULD WIN ONLY BECAUSE HE SAYS ABOUT MANMOHAN THAT HE IS WEAK. NO NOT FOR THIS REASON. THEN SURELY NOT FOR KANDHAR CASE AND ZINNA PREM. THEN FOR WHAT. OF COURES NOT FOR 6DEC 1992 AND MOSTLY NOT FOR HIS ROLE AFTER GODHRA. THEN FOR WHAT.FOR SUPPORTING MODI AND VARUN TYPE WHO DOES NOT WORK LIKE OUR CONSTITUTION. IT IS SECULAR STATE WHERE EVERYONE OF ALL RELIGION HAS RIGHT TO LIVE. EVERY MUSLIM IS NOT OSAMA MR VARUN AND MODI. WILL BJP AND MODI SAY SORRY EVER FOR GUJRAT? THAT BIG QUESTION. MODI LEFT KARAN THAPAR COFFE WHEN ASKED ABOUT THAT AND HE DID SAME WHEN NDTV JOURNALIST VIJAY TRIVEDI ASKED ABOUT THAT. TRIVEDI WAS WAITING-WAITING AND SO THE PEOPLE LIKE ME THAT HE WILL SAY SOMETHING. BUT...THAT'S MODITVA. WHICH IS FAILED AND MUST BE IN ANY SITUATION FOR THE GOODNESS OF OUR GREAT COUNTRY. ADWANI IS NOT ATAL AT ANY POINT. PM IN WAITIN TAG WAS THE MOST RIGHT THING FOR HIM. HE SERVED WELL FOR PARTY BUT HARDLY FOR NATIONAL INTEREST. MAN-MOHAN REPLIED CORRECTLY TO HIM WHEN THEY WERE IN WORD-WAR. MR ADWANI WORD-WAR CAN NOT WIN SEATS AND SURELY CANNOT MAKE SOME ONE PM. IF IT IS I CAN DO THE SAME. LALU CAME 4 FROM 24 LOST HIS ONE SEAT AS WELL WHERE HE WAS NOT EXPECTING. HE GOT EARLIER MISCALCULATION BY GIVING CONGRESS 3 SEATS. BUT ONE THING HE CALCULATE WELL ABOUT ADWANI THAT THIS MAN CAN NEVER BE PM OF INDIA. N0 REACTION FROM ADWANI SO FAR, SAY ABOUT THIS IRON AND STRONG MAN. COME ON ADWANI ACCEPT THIS. SAY YOU ARE NOT ATAL. CONGRESS HAS BROKEN YOUR DREAM. BETTER FOR YOU TO BE WITH PARTY FOR SOME TIME AND TRY TO CHANGE PARTY LINE. THINK BIGGER NOT ONLY SAY SO. YOU ARE STRONG IN WORDS BUT VERY WEAK IN ACTION. AND INDIAN WANT THE MAN MANMOHAN WHO LOOKS WEAK BUT STRONGEST IN ACTION. WHOLE NATION AND PRAKAST KARAT TOO KNOW THIS VERY WELL.


SACHIN KUMAR

शशांक शुक्ला said...

इस बार का चुनाव बीजेपी हारी है क्योंकि उसके पास न तो वो नेता था जिसकों देश के हर कोने में लोग इज्जत से देखें..आडवाणी की छवि उस नेता की नहीं रही..इसलिए वो खुद को निर्णय लेने वाला नेता साबित नहीं कर सके..जहां तक बात करें कांग्रेस की तो वो भी मनमोहन सिंह की छवि से नहीं जीती हैं वो जीती है युवाओं को मौका देने से जिसका बीजेपी में सख्त अभाव था...देश में बड़ी संख्या वाला ये हुजुम चला गया राहुल बाबा के विचारों में बहकर कांग्रेस की ओर...और बीजेपी में एक भी ऐसा नेता ऐसा नहीं था जो युवाओं को प्रेरित कर सके..वहीं मुद्दा न होना भी एक कारण रहा..बीजेपी के पास इस बार कोई मुद्दा नहीं था

Kulwant Happy said...
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Kulwant Happy said...

वो शांत था, वो मौन था, वो चुप था, वो मस्त हाथी की तरह आगे बढ़ रहा था. वो उंगली नहीं उठा रहा था, उसको पता है कि चार अपनी तरफ आ रही हैं..यहां मोदी चीख रहा था, वहीं आडवानी मनमोहन पर आरोप लगा रहा था जो कभी बोला ही नहीं. ..वो का मतलब राहुल गांधी...उसके चेहरे पर ताब था, उसकी आंखों में जीत के लिए जज्बा था... और वो उसने कर दिखाया

Unknown said...

बाबा , आप बहुत कथा - कहानी सुनते हैं ! टी वी पर आप कई बार नंगे नज़र आये ! नीतिश के जीत पर मनीष ( झा) पटना वाले को झिड़क दिए ! यह बहुत गलत बात है ! नीतिश जीता तो आपको स्वीकार करना चाहिए ! हल्ला है की - लालू जी आप लोगों को ........खैर रहने दीजिए ! बाबा , एक बात बताएं - ई प्रन्नोय रोय के साढू भाई - करात साहब का सपना कैसे टूट गया - थोडा इस पर विश्लेषण कीजिए !

बाबा , पूरा देश का बाबा जी लोग वाजपेयी जी के साथ था - आडवानी के मामले में सब बाबा जी लोग अपना कमंडल लेकर - कौंग्रेस के तरफ निकल गया ! हो गया , आडवानी का बंटाधार !

लेकिन , बाबा आप लोग का श्राप ( टिकट नहीं मिलने के कारन ) नीतिश का कुछ नहीं कबाड़ सका ! खैर , लगे रहिये - अभी वहां लालू जी जिंदा हैं आप लोग मंत्र से उनमे जान फूंक दीजिए - फेर देखिये - खेला !

लेकिन बाबा , आप राष्ट्रिये चैनल पर हैं और बिहार के मामले में एकदम से जात पात पर उतर आते हैं ! देखिये , ऐसा मई नहीं - कई बिहारी कहते हैं ! बाबा , अब ई जात पात का त्याग कीजिए और बिहार और बिहारी की शान बनिए !

और सब कुशल मंगल नु ?

Ravi said...

You are correct that here in India, Indian Muslims have to give a proof of their nationality, but for this the Indian muslims are self responsible. They have not opted this land as their motherland. Still thier Motherland is Pakistan. There are several simple reasons for which any hindu will see doubtly to any mushlim.
1. When Pakistan Wins any cricket Game, Indian Muslims goes happy and use crackers.

2. When there is a tense situation at border between India and Pak, Indian Muslims abuses Indian Army.

3. There are several places in India where these Indian Muslims are in majority, like a place in Mumbai, Kashmir, Where our Nation Flag is set to fire.

Therefore, Indian Muslims needs to change their way of thinking, They should think that India is their mother land. At the time of partition, It was India who gave them shelter when they ran from Pakistan.

Indian mushlims should think that how great India is where a Indian Mushlim can be the President of this nation. In Pakistan, a Hindu can not even think of this.

Indian has given them lots of facilities, so they should have regard this nation in their heart.

Dhirendra Kumar said...

Dear Ravish ,
NDTV and the media person working in that channel see the things with biased frame of mind. They are not seeing the future of our sub continent . USA Presence in our subcontinent and China's anti India stance are the real challanges. It is our bad luck that our large population does not understand the importance of their vote . Educated people hardly do voting . They do sit in drwaing room under Air Conditioner and just get involved in discussion. How many of us are serious about the condition of our MotherLand and danger that are ahead in near future ?
I object the word Hindu . We actually are from Vedic Civilization but unguided spritual leader in just 4000 years tarnish spritual Soceity to a soceity who beleive on superstition . In vedic era Hindus were not follower of many Gods . They were worshiping Nirakar Aum .Vedic Relegion never taught hatered . The principal of Non Voilence that was practised by your father of Nation as taught to the soceity by Vedic Saints and are fundamental in Yam and Niyam.

You seem to be worried for Muslims . Do they beleive in Non Voilence and love for all creatures ? The kill billions of innocent poor animals on BakarId. A section of so called Hindu's also practise voilence because of the abnormality that creeped in this relegion after MahaBharat .
But in general Hindus are tolerent in nature. Hindus are not coward . They are being taught to hold arms in battle field by Shri Krishna.
The demise of BJP is totally political .
Why the congress does not give pilgrimige subsidy for poor hindus on the HAZ Subsidy line ?

All of us understand the vote bank poltics and all political parties.
But the right vision and right approach can only survive this country in future .
The emergence of BJP and other parties is only because of the dis satisfaction among large section of Hindus of this dual nature of Congress.
Lal Krishan Advani also do not have clarity about Hindu Relegion. He has to do home work and read history before understanding the differnce between Vedic and Hindu .
A Political Leader with correct vision can rule the mass by living in thier hearts .

Sangh has to focus and up-bringing of Hindu society on Vedic lines. This is only mantra to get succeed and save the heritage of this country. Modi , Advani and other leaders of BJP has to sit in calm and do thier brain wash on spritual line.

Does anybody in the country can dream to emulate the rule of Lord Rama ? Congress leaders forget that "Ram" is written on Gandhi Samadhi . Ram Rajya was the dream of Gandhi . So my advice to Congress Man to behave while talking about Lord Ram in public.
Ram was the perfect Arya King.
This is a transition phase in Indian Poltics and thinking time for BJP top brass.

A strong Nation building and making our nation a secure responsible Super Power should be the top priorty of our Leaders.
But ManMohan Singh seem to look USA leadership as his mentor.
I am sorry to show that ManMohan singh does not have that vision.

अक्षत विचार said...

क्यों भाई रवीश आपको तो खुश होना चाहिये परंतु आपकी भाषा इस लेख में ऐसी की विश्वास ही नहीं होता कि एक खबरिया चैनल का एंकर और ऐसी बाजारु भाषा। परंतु ठीक भी है खबरिया चैनल भी तो आईपीएल दिखाते-दिखाते बाजार बन गये। और जब से एनडीटीवी में छंटनी का दौर चला है तबसे अच्छे रिजल्ट देने के लिये आप लोग भी तो यू टयूब तक पंहुच गये। मुझे लगता है कि ये गुस्सा बिहार का है पूरे देश के परिणामों ने आपको उतना खुश नहीं किया जितना बिहार के नतीजों ने परेशान। और ये प्रमाण पत्र बांटने का धंधा आपने कब से चालू किया? चलो अच्छा मंदी के इस दौर में दूसरे कामों पर भी तो तवज्जो देनी चाहिये न मालूम कब पुराना धंधा ठप्प हो जाये। परंतु मुझे लगता है नफरत भरी खबरें देते-देते आप भी नफरत का शिकार हो गये। अच्छी नहीं है इतनी नफरत। अन्त में अपना ही नुकसान करती है। मोदी का उदाहरण सामने है आपके। बातें आप बड़ी-बड़ी कर लेते हैं परंतु कम से कम भाषा पर भी तो नियंत्रण कीजिये। भावनाओं में मत बहिये एक पत्रकार की तरह निर्विकार रहिये। न काहू से बैर ना काहू से दोस्ती।

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी 1984 के लोकसभा में चुनाव केवल दो सीटें जीतकर लगभग मर ही चुकी थी। लेकिन फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद पर लगा ताला खुलने पर आखिरी सांसें गिन रही भाजपा को जैसे ’संजीवनी’ मिल गयी थी। संघ परिवार ने गली-गली रामसेवकों की फौजें तैयार करके नफरत और घृणा का ऐसा माहौल तैयार किया था कि हिन्दुस्तान का धर्मनिरपेक्ष ढांचा चरमरा कर रह गया। पूरा देश साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस गया था। चुनाव दर चुनाव भाजपा की सीटें बढ़ती रहीं। 1998 के चुनाव में भाजपा की सीटें 188 हो गयीं। भाजपा ने फिर से केन्द्र में सरकार बनायी, जो केवल 13 महीने ही चल सकी। लेकिन 1999 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा की सीटें नहीं बढ़ सकीं। वह 188 पर ही टिकी रही। तमामतर कोशिशों के बाद भी पूर्ण बहुमत पाने का भाजपा का सपना पूरा नहीं हो सका। 1999 में भाजपा ने राममंदिर, धारा 370 और समान सिविल कोड जैसे मुद्दों को सत्ता की खातिर कूड़े दान में डाल कर यह दिखा दिया कि वह अब सत्ता से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकती। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को 2 से 188 सीटों तक लाने का श्रेय आडवाणी को ही जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने में उनकी कट्टर छवि उनकी दुश्मन बन गयी। लेकिन भाजपा के पास अटल बिहारी वाजपेयी के रुप में एक ’मुखौटा’ मौजूद था। इसी मुखौटे को आगे करके बार-बार के चुनावों से आजिज आ चुके छोट-बड़े राजनैतिक दलों का समर्थन लेकर गठबंधन सरकार बनायी। भले ही भाजपा ने तीनों मुद्दों को छोड़ दिया हो, लेकिन संघ परिवार ने पर्दे के पीछे से अपना साम्प्रदायिक एजेंडा चलाए रखा। फरवरी 2002 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में जो कुछ किया, वह उसी एजेंडे का हिस्सा था। नरेन्द्र मोदी ’हिन्दू सम्राट’ हो गए।
2004 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने साम्प्रदायिक कार्ड खेला, जो नहीं चल सका था। हालांकि तब कहा गया था कि भाजपा नरेन्द्र मोदी की वजह से हारी है, लेकिन भाजपा ने वरुण को भी दूसरा नरेन्द्र मोदी बनाने की कोषिष की भाजपा ने 2004 की हार से सबक नहीं लेते हुए एक बार फिर साम्प्रदायिक कार्ड खेलकर सत्ता पर काबिज होना चाहा। नरेन्द्र मोदी को स्टार प्रचारक बता कर उन्हें पूरे देष में घुमाया गया। वरुण को भी हिन्ुत्व का नया पुरोघा मान लिया गया। लेकिन देष की जनता कुछ और ही सोचे बैठी थी। देष की जनता ने राजग सरकार में देख लिया था कि ‘मजबूत नेता, निर्णायक सरकार’ का नारा लगाने वाले न तो ‘मजबूत’ हैं और न ही ‘निर्णायक‘। चुनाव हारते ही अपने को मजबूत बताने वाले आडवाणी विपक्ष के नेता बनने से गुरेज कर रहे हंै। यानि उस जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, जिसकी भाजपा को सबसे ज्यादा जरुरत है। ये ठीक है कि अब आडवाणी प्रधानमंत्री शायद ही बन सकें, लेकिन क्या भाजपा को मजबूती देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। कांगेस के युवा चेहरे राहुल गांधी ने शालीन तरीके से चुनाव प्रचार करके देष की जनता को बताया कि देष राम नाम से नहीं विकास से दुनिया की ताकत बनेगा। भाजपा को गलतफहमी हो गयी थी कि देष की जनता का धर्म के नाम पर ध्रवीकरण किया जा सकता है। लेकिन ये इक्सवीं सदी है। 1992 और 2009 में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। जनता ने देख लिया था कि धर्म के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने के अलावा कुछ नहीं किया जाता। इस वुनाव ने भाजपा को सबक दिया है कि अब धर्म के नाम पर जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। आम जनता को रोटी, कपड़ा और मकान पहले चाहिए, राम मंदिर या राम सेतु नहीं।
इस चुनाव के जरिए देष की जनता ने उन राजनैतिक दलों को भी आईना दिखाया है, जो पांच-दस सीटें लेकर प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। बसपा सुप्रीमो को भी दलितों ने एहसास करा दिया है वे केवल उन्हें सत्ता तक पहुंचाने की सीढ़ी नहीं बनेेंगे। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान को भी मुसलमानों ने बता दिया है कि अब भाजपा का भय दिखाकर उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। देष की जनता ने बाहुबलियों को बाहर का रास्ता दिखा कर हिम्मत का काम किया है। वाम दलो को भी पता चल गया होगा कि समाजवाद का नारा लगाकर गरीब किसानों की बेषकीमती जमीनों को पूंजीपतियों को सौंपने का क्या अन्जाम होता है। नन्दी ग्राम और सिंगूर का खून रंग लाया है। लेकिन यह चुनाव यह भी बताता है कि अब एक आम आदमी लोकसभा में जाने का ख्वाब न पाले। क्योंकि इस बार संसद में पहुंचने वाले ज्यादतर सांसद करोड़पति या अरबपति हैं। एक बात और। सचिन पायलट, ज्योतिरादत्य सिंधिया, जयन्त चैधरी, अखिलेष यादव, वरुण और प्रिया दत्त आदि जैसे युवाओं को दिखाकर यह प्रचारित किया जा रहा है कि अब युवा आगे आ रहा है। सवाल यह है कि इन लोगों का अपना क्या है। ये युवा कितने जमीन से जुड़े हैं। इनको उस वर्ग की दुख-तकलीफों का कितना ज्ञान है, जिन्होंने इनको चुन कर भेजा है। क्या इनकी महज इतनी काबिलियत नहीं है कि ये राजनेताओं के चश्म ओ चिराग है। क्या इस बात की जरुरत नहीं है कि राजनैतिक पार्टियां ऐसे युवाओं को टिकट देकर अपने खर्च पर चुनाव लड़वाकर संसद में भेजें जो आम आदमी की तकलीफों को समझकर उनको दूर करे।

सागर नाहर said...

फटिचर किस्म की बातें करने वाला वरुण गांधी जेल से आकर किस देश की जनता को धन्यवाद दे रहा था, जो उसकी पार्टी को खारिज कर रही थी, उसको?इस तरह की भाषा का प्रयोग करते पद्मश्री रवीश कुमार अच्छे नहीं दिखते।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

रवीश भाई, ये लोग जल्दी नहीं सुधरेंगे. देखा, जनता का जूता खाकर भी कैसा-कैसा ज्ञान पोंक रहे हैं. अरे भाई वैदिक हिन्दू अलग था तो उसे पैशाचिक हिन्दू बनाने का जो लोग अभियान चला रहे हैं या चला रहे थे, उनका इलाज क्यों नहीं करते या अब तक क्यों नहीं किया? भूल गए जब अयोध्या और अयोध्या के बाद देश के कई हिस्सों में आडवाणी ने इन्हीं वैदिक हिन्दुओं के वंशजों को नरपिशाच बना दिया था और नफ़रत का बीज बोकर सत्ता की फ़सल काटी थी!
दरअसल संघ (भाजपा का वैदिक पिता) की समझ हिन्दू को हिन्दू बने रहने देने की है ही नहीं, वह हिन्दू को 'उग्र हिन्दू' में बदल देना चाहती है. उग्र हिन्दू यानी ऐसा हिन्दू जो चौबीसों घंटे मुस्लिमों और ईसाइयों के खिलाफ गुस्से में भरा रहे, राष्ट्रधर्म के नाम पर विधर्मियों की स्त्रियों के साथ बलात्कार करने को सन्नद्ध रहे. जो ऐसा नहीं करेगा उसे 'कायर हिन्दू' घोषित कर दिया जाएगा, 'छद्म-धर्मनिरपेक्ष' कह कर गलियाया जाएगा. आपके अन्दर स्वाभिमान जगाने के ये संघी तरीके हैं.

संघ ने अपने विरोधियों के लिए इस तरह के न जाने कितने 'टर्म्स' तैयार किये और फैलाए हैं. इनकी नज़र में धर्म-सापेक्ष होने के लिए हिन्दू का मुस्लिम विरोधी होना ज़रूरी है. संघ अपनी घृणा को पूरे हिन्दू समाज में 'ट्रांसफ़र' कर रहा है... और इस घृणा का बीज बोनेवाले गोलवलकर तथा हेडगेवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से 'रीप्लेस' कर देने की मुहिम में प्राणपण से जुटा हुआ है. संघ भूल जाता है कि गांधी की अहिंसा वैदिक हिन्दुओं से ही आयी है हिंसक तांत्रिक अनुष्ठानों से नहीं.

आम व्यक्ति के लिए राष्ट्र निर्माण के नाम पर संघ के जाल में फंस जाना आसान है लेकिन 'हिन्दू राष्ट्र निर्माण' के नाम पर वह नहीं फंसता. भारत का हिन्दू पूजा-पाठ करता है, मंदिर जाता है, राम को मानता है, दान-पुण्य करता है, गाय भी पालता है, लेकिन धर्म के नाम पर लड़ता नहीं है. अन्य धर्मों के लोगों से घृणा नहीं करता है. एक यही बात संघ को नागवार गुजरती है. क्योंकि संघ मुस्लिमों और ईसाइयों से नफ़रत करता है. संघ के पूर्व मुखिया सुदर्शन इनसे लोहा लेने के लिए हिन्दुओं से आबादी बढ़ाने का आवाहन कर चुके हैं. इसी से संघ के 'राष्ट्रहित' के दावे की पोल खुल जाती है. पता चल जाता है कि उनके एजेंडे में सबसे ऊपर मुस्लिमों और ईसाइयों का विरोध है और खालिस इसी बात को ये राष्ट्रप्रेम की कसौटी मानते हैं. इसीलिए संघ इन्हीं आस्था और भावना के मुद्दों पर हिन्दुओं को बरगलाने की कोशिश करता है, घृणा की राजनीति करने की कोशिश करता है. यहाँ यह स्वीकारना होगा कि हिन्दू समाज के कुछ हिस्सों में उसे काफी सफलता भी मिली है. इस ब्लॉग पर होने वाली कुछ टिप्पणियाँ भी यही कहानी बयान कर रही हैं.

ब्रेन वॉश का आलम यह है कि एक सज्जन बिन्दुवार फिर से वही आरएसएस की मुस्लिमों के खिलाफ बनायी अवधारणा को याद दिला रहे हैं. अरे भाई, अगर कुछ लोग गलती करें तो उसे पूरे समाज की गलती कहकर प्रचारित करना कहाँ की समझदारी है. लगता है जब फिर से २ सीटों पर पहुँच जायेंगे तभी भाजपाइयों और संघियों को अक्ल आयेगी.

त्यागी said...

रविश जी आपको नहीं लगता जबसे आपकी प्रभाष जोशी ने तारीफ़ करी है तब से आप कुछ ज्यादा ही सेकुलेर होगये. जरा सयम रखे और सभ्य तरीके से हिन्दुओ पर टिपणी करे अब एनडी टी वि के पत्रकार से इतना तो उमीद कर सकते हैं.
दूसरा अब तो यार ये बिहारी बिहारी कहलना छोड़ दो. कब तक एक दुसरे की पीठ खुजाते रहोगे.
हिन्दुओ और बीजेपी को गाली देने से पहेले बंगाल का लाल किला जरुर देख लो .
बीजेपी तो फिनिक्स है अभी हरियाणा या जो भी विधानसभा का चुनाव आने वाला है देख लेना.
इन सब के बावजूद आप और कमल खान मेरे पसंदीदा एंकर है इस चैनल के ये बात अलग है की आपकी सौच बहुत दूषित है परन्तु उसे असभ्य तो मत करो.

Dhirendra Kumar said...

Thats Good,
At least Vijay Shanker Chaturvedi ji has accepted the differnce between Vedic Hindu and the Hindus today. My view point is that hatred for anybody is not the culture of Vedic Hindu. But Vedic culture does not advocate to forget lift of arms on necessity basis . The example of fall of Ashok dynasty is the example of it.
Gandhi in his later age was evolved to Mahatma but lost poltical and future vision . The foundation of strong country can not be laid as per the prespective of Saint only . He can be a guiding factor but one has to see thousands year ahead to see the future of coming generations.
Gandhi was a simple man and every one knows his evolvtion as a personality from a normal man to a Mahatma.We can not ignore the growing arrogance and lack of tolerence in Muslim Community in general and anti national attitude.

Every nation loving country must remain vigilant about this phenomenon . We have to evolve a long term strategy to use country population for nation building . Poltics of hatred from any corner will create the internal insurgency and the same is not in the interst of Indian Union . There is strong resentment for USA among Muslim Community and India strategy planner should be kept in mind . We are future competitor of USA and our policy towards USA should be made very carefully.
I am indepedent analsyist not belonging to Sangh . I have no political affilation.

Ravi said...

Vijay Shankar Chaturvedi Ji,

One must be very polite while giving his/her views anywhere, Using the Word JUTA , in you reply shows your Humblness.

I don't know, When your type of Hindu will understand the difference of secularism and A type of Pseudo Secularism shown by political parties. I fear, It become too late to understand this.

Here in India, Now a days, speaking about our common right is Called "Freedom of Speech". But when a Hindu takes his "Freedom of speech" then it is called communalism and if it is by a Minority then it is Secularism.

Every religion should be given equal rights. This should be the moto of any government and this is the wish of every Indian.

No religion should be given priority or special subcidy for the sake of being minority.

The Law should be same for every one, right now it is not same for all and this is the reason of all unsocial activities. You being a media person, should be very clear of this.

The role of media is also a matter of discussion as it is saying or printing anything for the sake of money.

Well... rest in next....

JC said...

जब 'भारत' की बात होती है तो 'हिन्दू' शब्द दिमाग में सबसे पहले आता है...इतिहासकार नहीं बता पाता इस शब्द की उत्पत्ति...यद्यपि सब जानते हैं कि दोनों 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' चाँद यानि 'इंदु' से जुड़े हैं - दोनों अपने त्यौहार आदि आज भी चाँद को देख ही मनाते हैं भले ही वो 'ईद' हो या 'कड़वा चौथ'...

इस सब के पीछे 'समय' अथवा 'काल' का भी हाथ जरूर होगा जिसका विचार सब सूर्य के कलेंडर से करते हैं...इतिहासकार ही यह भी बताते हैं कि कैसे एक समय एक 'आम आदमी' भी 'भारत' में 'ऊंचे विचार' रखता था और 'सादा जीवन' व्यतीत करने में विश्वास रखता था...

फिर आज क्या हो गया हमारे विचार इतने तुच्छ और हमारी सोच इतनी कुंद क्यूँ हो गयी?

भूल गए? मीराबाई ने कहा था, "संतो, करम की गति न्यारी..." क्या 'आधुनिक इतिहासकार' जानता है कि समय की चाल उलटी है? ज्ञानी कह गए कि यह सतयुग से कलियुग की ओर जाता दीखता है - उजाले से अँधेरे कि ओर और 'सत्य' यह है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति केवल एक 'बिंदु' (नादबिन्दू, विष्णु अर्थात 'poisonous atom' से हुई और उसी में समां भी सकती है :)

वे बाहर की ओर देखने के स्थान पर भीतर झाँकने की सलाह दे गए - अनंत को पाने हेतु...और 'पत्रकार' हैं कि अस्थायी, भटकाने वाले, ड्रामा के पात्रों को ही खुद भी देख रहे हैं और अन्य भारतीयों को भी भटका रहे हैं - कब तक नक़ल करते रहेंगे 'पश्चिम' की जो भीतर (पूर्व की ओर) देखने वालों को मूर्ख समझते आये हैं. क्यूंकि वे आसानी से अतिथि को देवता मानते आये थे अनंत काल से - किन्तु अब नहीं...शायद "विनाश काले विपरीत बुद्धि" के कारण...

मुंहफट said...

रवीश जी, आपने अच्छा लिखा है. तथ्यतः, क्रमशः, लेकिन ये अधमरा हाथी अभी लंबे समय तक देश के कंधे पर सवार होगा. नरेंद्र मोदी और वरुण तो साम्प्रदायिक जघन्यता के प्रतीक मात्र हैं, जड़ें कोई और सींच रहा है. आरएसएस. वैसे भी खून पी-पीकर ये वनमानुस इतने मुस्टंड हो चले हैं कि इन्हें कत्तई शर्म नहीं आती. वह तो छेद-भेद में राजनाथ सीट निकाल ले गए वरना इन कथित हिंदुत्ववादियों का पार्टी का अध्यक्ष ही भू-लुंठित होने वाला था. एक दिन झंडेवालान के केशव भवन में मैंने अपने कानों सुना था कि गुरु राजनाथ तो गया. यानी संघ को भी अंत तक अंदेशा था कि गाजियाबाद सीट हाथ से जा रही है. तर्कसंगत टिप्पणी पर आपको पुनः बधाई.

सागर नाहर said...

नरेंद्र मोदी तो हमारे विजय त्रिवेदी के सवालों का जवाब ही नहीं दे पाए कि आप माफी मांगेंगे या नहीं। मोदी ने उनके माइक को हटा दिया। ये इंटरव्यू एऩडीटीवी इंडिया पर खूब चला था। सवाल है कि नरेंद्र मोदी हैं क्या जो माफी नहीं मांगेंगे। एक बात बताईये क्या आपके विजय त्रिवेदी यही प्रश्न बुद्धदेव भट्टाचार्य से भी करने की हिम्मत कर पायेंगे? सिंगूर और नंदीग्राम में हुई हत्याओं के लिये?

ravishndtv said...

नाहर जी
आप विजय त्रिवेदी को नहीं जानते। मौका मिला तो पूछ लेंगे। और कई बार पूछा भी है। उनके इंटरव्यू इसी बेबाकी के कारण देखे जाते हैं। कई बार लाल नेताओं को भी परेशान किया है। जवाब नहीं दे पाये भाई लोग। शायद आप नहीं देख पाये होंगे। हम किसी पूर्वाग्रह के शिकार नहीं है। हां हम सांप्रदायिक या किसी भी हिंसा वाली सोच के खिलाफ है। किसी भी दलील से इसका समर्थन नहीं किया जा सकता।
लगता है आप नहीं देख पाये जब हम एनडीटीवी इंडिया पर नंदीग्राम की हिंसा पर लेफ्ट की ऐसी की तैसी कर रहे थे।

इसी दलील से वो नेता पसंद नहीं आता जिसके लिए आप लोग इतने बेचैन हो जाते हैं। मैं क्यों छुपाऊं। वरुण गांधी की बातें फटिचर नहीं थीं तो क्या थीं। मुसलमानों को ओसामा बिन लादेन क्यों कह रहे थे? कोई आधार था क्या उनके पास?

Unknown said...

चतुर्वेदी जी से ऐसा ही कुछ कहने की उम्मीद थी। चतुर्वेदी जी के अनुसार अपने स्वाभिमान के लिये उठ खड़े होने वाले हिन्दू "पिशाच" हैं और कश्मीर में जो "चन्द गुमराह युवक" कर चुके या कर रहे हैं वे फ़रिश्ते हैं… सहनशक्ति समाप्त होने के बाद हिन्दुओं द्वारा हथियार उठाना "पैशाचिक संस्कृति" है। एक विशेष प्रयोजन के लिये 83 वर्षीय बूढ़े सन्त की उड़ीसा में हत्या के बारे में चतुर्वेदी जी ही बतायेंगे…। एक बात और कहूंगा चतुर्वेदी जी कि यदि भाजपा 2 सीट पर फ़िर से पहुँच भी जाये तब भी कम से कम "सेकुलरवाद" नाम का जो "गन्दा खेल" इस देश में 60 साल से चल रहा है, वह नहीं खेलेगी…। आप बेफ़िकर रहें, संघ न तो किसी से याचना करने जा रहा है, न ही समझौता… चाहे भाजपा जीरो ही क्यों न हो जाये… "विचारधारा" और "हिन्दुओं के दमन" के बारे में आपको समझाना बेकार है, आप कभी भी देश पर मंडराते "अन्दरूनी खतरे" को नहीं समझ पायेंगे… क्योंकि आप "विद्वान" जो ठहरे। ये काम हम जैसे मूढ़ लोगों को ही करने दीजिये… आप वही करें जो इतने सालों से करते आये हैं यानी कि "हिन्दुओं को अनन्तकाल तक सहनशक्ति बरतने का उपदेश…"

शून्य said...

कुछ हालात जिम्मेदार रहे तो कुछ आडवाणी खुद.. मोदी की कोई भूमिका नहीं रही....

नवीन कुमार 'रणवीर' said...

बीजेपी की हार या आडवाणी की हार? मोदी के कारण हार या आडवाणी के कारण हार? बीजेपी के खुद के कारण हार या सहयोगी दलों के कारण हार?सवाल संघी कैम्प को परेशान कर रहा है,पता नहीं क्यों हमारे पत्रकार मित्र इस पर परेशान हो रहे हैं. बीजेपी के साथ दिक्कत है की विचारधारा में ही विरोधाभास रहा है, हमारा देश धर्मनिरपेक्ष हैं ये भाई लोगों से कहते नहीं बनता और राष्ट्रवाद का अपना अलग दर्शन लिए देश में पीएम इन वेटिंग और सीएम इन वेटिंग बनाते चलते हैं, अब तो शायद इन्हें आदत हो गई है वेटिंग रहनें की, अटलजी को भी कई साल वेटिंग लिस्ट में रहना पड़ा था कई बार तो ट्रेन ही कैंसल हो गई, लेकिन संघर्ष करते रहे, एक बार आरएसी में टिकट मिला 13 दिन सरकार चली,संसद ने चलान बना दिया भई आरएसी में भी दो लोग एक सीट पर बैठ कर जा सकते हैं अटलजी 13 लोग संग लिए थे. और लोकसभा की ट्रेन से उतार दिए गए,फिर टिकट लिया वेटिंग फिर भी हार न मानी और 13 महीनों तक यात्रा पूरी हुई ही थी की गाड़ी के संग लगे एक एक्स्ट्रा इंजन ने ही साथ नहीं दिया और लोकसभा ऑउटर पर ही खड़ी हो गई. फिर किसी तरह जा कर टिकट कनफर्म हुआ और जोड-गुणा-भाग के चलते 5 साल चली बीजेपी-एनडीए पैसेंजर...अटलजी के बाद पहले बार देश बीजेपी ने नेता नम्बर दो आडवाणी को पीएम का टिकट भी वेटिंग में था पर गाड़ी कौन सी थी एक्सप्रेस या मेल, मालगाड़ी या पैसेंजर लोकल या राजधानी पता नहीं कौन सी गाड़ी है कहां जाना हैं कुछ पता नहीं. बस नागपुर रिजर्वेशन काउंटर से टिकट लिया और चल दिए स्टेशन की ओर, होना क्या था अटलजी का टिकट वेटिंग था तो मौका मिल ही गया किसी तरह, आडवाणी का टिकट तत्काल में वेटिंग था जहां कैंसिंलेशन के चांस कम होते हैं...कारण हमें तो इतना समझ में आता हैं

लफत्तू said...

बेत्तो, इत्ता पलेतान तो अदवानी बी नईं होगा जित्ता तुम लोग ओ लये ओ
लबी, इत तुतलवेदी ती बात का बुला मत मन्ना, इते तो अमने बतपन में कूब थीक कल दिया ता याल.

लवीत, भौत स्याना बन्निया ए, बलबाद हो जागा इन लाल चद्दी बालों के चक्कल में बेते

लफत्तू said...

देपी नालायन उल्प मूंपत बेत्ते, तू आगले ते दंदेबालान त्या तल्ने दया ता?

Nirala said...

Ravish jee BJP yadi hari hai to uske karan bhi honge or hai. BJP me high class ke kamene nahi hai, BJP sirf hala karna janti hai. Lalu ne bihar ko barbad kiya thik hai, par ye ohi lalu hai jinhone sonia ka us samay sath diya jad unke apne bhi sonia ka sath chor rahe the. Aaj ke congress planner tab kaha the (Rajeev Shukala, Amahad Patel etc) jab sare log sonia ko videshi bata rahe the. Lalu hi har ki sabse bari wjah hai ki lalu ne us party ko khada hone me apna yogdan diya jiska charitra hi dogali hai. Lalu ki haar sahi hai or rajniti me jeet har laga rahata hai par congress ka response ye batlata hai ki marte waqat bhi kisi congresse ko pani mat do nahi to kada hone par sabse pahale o tumhe marega.
Rahul baba tab kaha they jab unki maa ko videsi bata kar tv par rajiv shukal uphas kiya karte the, tab kaha they jab sarad pawar ne videshi mul par apni naye party banai.
Rahi bat left ki mai dekh raha hu NDTV bare maje le rahi hai, aap jawab dena jab yahi congress Navratana Company ka vinivesh karegi o bhi garibo ke name par, insurence me, Bank me etc. App jawab dena.
BJP lakh buri sahi par o apne dosto ke sath sukh-dukh dono me rahate hai.

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

रविश
पहली बार लगा की घटिया किस्म का राजीनीतिक विवेचना हुई है क़स्बा में. देखो दोस्त मुद्दा तो बहुत है लेकिन आप और हम किसको उछालना चाहते हैं वो इस पर निर्भर करता है. बिहार की जनता सेकुलर शब्द को कूड़े में दाल दी. बिहार की जनता ने बता दिया की सेकुलारिसम और कमुनालिस्म केवल टीवी चैनल पर दो takiye पत्रकारों और छुटभैये नेतावों को शोभा देती है.
कर्णाटक में कांग्रेस और छुटभैये पत्रकारों/नेतावों को लगा की चढी बनियान से ही बीजेपी को हराया जा सकता है. जनता ने चड्ढी पॉलिटिक्स को नकार दिया. संग्लिअना जैसे नेता चले थे chirstian card खेलने और जनता ने उनको सबक सिखा दिया.
रही बात शरद यादव की तो उनको अछि तरह से मालुम है की यादव के नाम पर मधेपुरा से कुँख पाद कर जित पाते हैं. जादा बकर बकर ना करें. उनको मालूम है की जादा बड बोलेपन उनको ले डूबेगा. रही बात अडवाणी की अंतिम लेख लिखने लायक आपकी जानकारी नहीं है. आप उतना बड़ा लेख नहीं लिख सकते. आप टीवी पर बहुत ही नकारात्मक सोच से डूबे नजर आये. हमेश whining (कुनमुनाते) नजर आये. ये एक पत्रकार की पूरी प्रतिभा को गुड गोबर कर देती है. आप बाकी के पत्रकारों के तुलना में बहुत बौने नज़र आये पैनल में.
आप में अभी बहुत सुधर की जरूरत है टीवी पर सामने आकर प्रस्तुति करने में. उम्मीद है की आप सबक और positive feedback lekar सुधर करेंगे.
धन्यवाद.

anil yadav said...

इतना गुस्सा .....ठंड रखिये रवीश जी....कांग्रेसियों तक आपकी बात पहुंच गई है.....लेकिन लाल दाग कैसे छुड़ाएँगे....

JC said...

सतही तौर पर देखें तो राजनीति में मीडिया के प्रभाव कों नकारा नहीं जा सकता. किन्तु मीडिया स्वतंत्र नहीं है...

इसका प्रचार खूब किया गया कि अब समय जवान लोगों का है और मनमोहन कों केवल 'night watchman' बताया गया...

कांग्रेस ने राहुल और प्रियंका आदि कि साफ़ सुथरी छवि को टीवी के माध्यम से सामने रखा. और बीजेपी ने जाने अनजाने दूसरे राहुल कों - (सोनी) टीवी के माध्यम से. किन्तु यह राहुल, गाँधी नहीं, महाजन था, प्रमोद महाजन का बेटा, जो अपनी 'काली करतूतों' से आधुनिक युवा पीड़ी का बिगडा चेहरा सामने ले कर आया - संजय दत्त के समान जिसे कांग्रेस ने नहीं अपनाया, उसकी बहन कों चुना. उसी प्रकार, लम्बी रेस के घोडे समान, दूर की सोच ध्यान में रखते हुए - जैसे कभी मनेका/ वरुण कों उन्होंने मीडिया की हवा नहीं लगने दी थी...

Anonymous said...

मुद्दे बहुत थे और सचमुच हैं भी.आत्मविस्मृत होकर जमीन से हमेशा ऊपर उड़ने वाले बीजेपी के अभिमानी नेता न तो सही मुद्दों को पकड़ पाए न उसे उचित समय पर पूरी ताकत से उछाला .बहुत अच्छा हुआ आडवानी हार गए ,जिस नेता या पार्टी का दुराव जनता से इतना बढ़ जाए कि उसे उसके नज्ब का अहसास ही न हो उसे हारना ही चाहिए .

"आडवानी इन dreamland" में pm बनने वाली कोई बात वात पहले से ही नहीं थी .आडवानी ,उनके सपने और उनकी महत्वाकांक्षा को ढोते ढोते बीजेपी का भी कचूमर निकल ही गया .सुना है अडवानी सन्यास वान्यास नहीं लेंगे और बीजेपी का भुरता बनाने के लिए आगे भी अपना बोझ पार्टी पर लादे रहेंगे.बहुत अच्छा है "राम लल्ला" करे विदाउट रिसर्च काम करने वाली बीजेपी इसी तरह धीरे धीरे गायब हो जाए. भगवा brigade में तर्कबुद्धि भले ही हो पर ये लोग हमेशा ही अदूरदर्शिता और फेलुआ रणनीति के शिकार हो जाते हैं.
अब लगता है की भारत की ६० प्रतिशत शिक्षित जनता को साम्प्रदायिकता,छद्म धर्मनिरपेक्षता ,धर्मनिरपेक्षता, या आडवानी निंदा पाठ पढाने की दरकार नहीं.
भारत के राजकुमार राहुल सीधे,सच्चे हैं ,समाज सेवक तो ठीक हैं परन्तु राजनीति के तीन तेरह में अभी और माहिर होने की जरूरत है .
राजमाता और राजकुमारी यद्यपि उन्हें बैकिंग दे दे के परिपक्व करने का पूरा प्रयास कर रही हैं परन्तु उनमे अभी भी दृढ़ता और तर्कबुद्धि की भारी कमी है .यकीनन राजकुमार के राज्याभिषेक का इन्तजार पूरा भारत वर्ष कर रहा है खैर तबतक कार्यवाहक नरेश से काम चलाया जाए .किसी कठपुतली को बैठा कर सत्ता राजकुमार युवराज के लिए रिज़र्व रखा जाए जब तक वे परिपक्व न हो जाएँ .एक ही तो हैं हमारे राजकुमार यदि कोई दूसरा हो भी तो उस ओर कोई क्यूँ देखे राजपाठ आखिर राज वंशज को ही सौपा जाता है न लिहाजा सबका ध्यान राजकुमार को जल्दी से जल्दी बड़ा करने में है .

अभी कुछ दिनों पहले तक दो कौड़ी के लोग प्रमोशन न होने के चलते इर्ष्या और डिप्रेशन के शिकार होते जा रहे थे.हां तो रविश जी पर अब मनमोहन का बेलआउट पैकेज और पे कमीशन अवार्ड खा-पी के काफी लोग बौरा रहे हैं और मनमोहन द ग्रेट गाथा गा रहे हैं .आप उनमे से एक बिलकुल नहीं हैं लगता है .वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए और डूबती कंपनियों को बचाने के लिए कभी कभी नए नोट छापने पड़ते हैं ,नोटों की अधिकता के कारण स्टॉक मार्केट कसीनो से अनजान रहने वाले गरीबों के पास संचित नोट अवमूल्यित हो कागज़ बनते चले जाते हैं .कहीं यही तो नहीं घटित हो रहा है ?,खैर ठीक ही है भाई उद्योगपति चंदा देते हैं और परोक्ष रूप से सरकार की नकेल थामते हैं तो सरकार की प्राथमिकता लिस्ट में पहला नाम उन्ही लोगों का होगा न.बेचारा गरीब आभाव के कारण मरता है तो उसे बेलआउट करने कोई नहीं पहुचता उल्टे उसी से अमीरों को बेलआउट करवाया जाता है .


चुनाव ड्रामा ख़त्म हो गया , मनमोहन pm फिक्स तो था ही ,अब पत्रकार बंधु चुनावी afteraffects और sideeffects से जल्दी उबरकर और मनमोहन स्तुति छोड़ कैमरा लेके पड़ताल करें की घटती मनमोहनी मुद्रास्फीति के कारण नंगे गरीबों की थाली में से क्या क्या नयी चीज़ गायब हो चुकी है .गरीबों का होना अर्थव्यवस्था और नई नई कल्याणकारी योजनाओं और उसपर समर्पित धन के बंदरबांट के लिए बहुत जरूरी है लिहाजा कितने नए लोग इस श्रेणी में शामिल हुए इसे भी पता लगाने की जरूरत है.

Anonymous said...

टाइपिंग एर्रोर का सुधार और साथ में माफ़ी मांगूंगा बिलकुल ८४ दंगों के माफ़ी की तरह

"चुनाव ड्रामा ख़त्म हो गया , मनमोहन जी का pm बनना तो फिक्स था ही ,"(माने pm बनना sure था ही ?)

Mansoor ali Hashmi said...

achchha vishleshan...bdhaii, Ek nazriya yah bhi dedkhe...

चुनाव नतीजे के पश्चात्……"अब विश्लेशन करना है" प्रस्तुत है,
क्रप्या पिछ्ली रचना "अब गिनती करना है" के सन्दर्भ मे देखे…
http://mansooralihashmi.blogspot.com

सोच में किसके क्या था अब यह गिनती करली है,
शौच में क्या-क्या निकला यह विश्लेशन करना है।

सर पर बाल थे जिसके, वह तो बन बैथे सरदार,
औले गिर कर फ़िसल गये, विश्लेशन करना है।

'वोट' न मिल पाये, ये तो फिर भी देखेंगे,
'वाट' लगी कैसे आखिर! विश्लेशन करना है।

सब मिल कर सैराब करे यह धरती सबकी है,
फ़सल पे हो हर हाथ यह विश्लेशन करना है।

'अपने ही ग्द्दार', यही इतिहास रहा लेकिन,
'कौन थे ज़िम्मेदार', यही विश्लेशन करना है…।

-मन्सूर अली हाश्मी

Anonymous said...

Really NDTV has adopted a policy to destroy social harmony by always abusing Hindus and great Indian Culture......(this was in the syllabus of madrsas and Convents but now it is in the agenda of NDTV.)

I think Soon NDTV will convert itself into a Muslim Communal channel its agenda will be to always back Muslim Communal parties and make this country a worst place to live by destroying our social harmony.

Bycott NDTV..!!
Bycott NDTV......!!
Bycott NDTV..........!!

संजय बेंगाणी said...

बजारू चैनल के बिकाऊ, बेतुक्के शायर पत्रकारों पर इतनी बहस?!!!!!


प्यारे लालू की हार से परेशान है बेचारे....खूश फहमी में जीने दो....


गुजरात को मरने दो, भैये बंगाल में क्या हो गया? सिंगूर के हत्यारों को काहे नकार दिया जनता ने? मारती भी है और सड़क भी नहीं बनवाती....

Anonymous said...

do baar se jo aap likh rahe hai usper jo logo ki pratikiriya aa rahi hai.. usko padh ke laga aacha hai rajniti aur tv aur debats se dur rahna... sabki language bahut aazeeb hai... kya ye wahi hindi bhasha hai jo hum ghar me apno se bolna sikhte hai.. sabki apni rai hoti hai per usko kisi ke liye ise istemal kerna ki wo dushman sa nazar aaye dusre padhne wale ko ye sahi nahi laga... aap log samjhdar log hai.. likhte waqt yaad rakhiye ki jo likha hai wo padhne me bura na lage..

thanx
sarita

विवेक सिंह said...

चलो अच्छा ही हुआ की इस चुनाव मैं बीजेपी की हार हुए कम से कम सेकुलरिस्म का दंभ भरते पत्रकरों और उनके राजनेतिक आकाओं को आक्सीजन तो मिला ,कम से कम उन्हें भी हिंदुस्तान मैं जीने का मकसद तो मिला, बीजेपी के उन नेताओं को जो वातानुकूलित कमरों मैं बैठकर यह निश्चय करते हैं की किस तरह चुनाव से ठीक पहले यह निश्चित करते हैं की कब हिंदुत्व के मुद्दे को उठाया जाये और कब उससे अपना पाला झाड़ लिया जाये , अवसरवाद की राजनीत जब चर्म सीमा पर पहुँच जाती है तो कुछ ऐसे ही परिणाम होते हैं, मगर इसका मतलब यह कतई नहीं है की आप सभी तथाकथित सेकुलर पत्रकार हिंदुत्व की राजनीत को ही गलत साबित कर दें, और फिर क्यूँ भला हिंदुत्व की राजनीत को आप गलत कहते हैं??? जब जातिवाद की राजनीती गलत नहीं है,अल्पसंख्यकों के नाम पर राजनीती गलत नहीं है तो फिर हिंदुत्व की राजनीत गलत केसे ? चलो हिन्दू बहुसह्न्ख्यक सही पर उससे यह तो साबित नहीं होता की उन्हें कोई तकलीफ ही नहीं देश में,बीजेपी की दुर्गति उनके दोगले पन के कारन हुई न की हिंदुत्व की विचारधारा के कारन,
अब बाबर के हिमैती लोगों को बहाना मिल गया गला फाड़कर गरियाने का खुसी मनाएं आखिर मौका मिला हे आपको ,,आप लोग तो तब से खुशियाँ मन रहें हैं जब देश का बटवारा हुआ था और आज भी परिवारवाद की राजनीत से अपने आप को पर उठा नहीं रहे ,,आखिर क्यूँ भूलें हम की हम पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम,मानसिकता वोही गुलामों की रहेगी और लोकतंत्र कहाँ हे जरा धुन्धकर तो दिखाएँ देश मैं??यह देश परिवार को सौंप दिया हमने और हमारे बच्चों को येही सिखाना रह गया है की वो हमेशा नतमस्तक रहे गाँधी परिवार के सामने क्यूंकि वो हमारे माई बाप हैं ,इस देश मैं हिंदुत्व की बात मत करना वर्ना धर्मनिपेक्षता के सरंक्षक तुम्हे अछूत का दर्जा दे देंगे ,और हिंदुत्व के नाम पर जब अवसरवाद की राजनीत होगी तो यूँ ही अर्थियों की गिनती होगी और हम ताल ठोकर कह सकेंगे देखा हिंदुत्व का हस्र ,,चलो बीजेपी ने सभी धर्मनिपेक्षता का दिन्धोरा पिटते ढोलियों को मौका तो दिया नाचने का....

JC said...

जैसा सरिता जी ने लिखा में लगभग ८ साल से NDTV के दो debates देखता आ रहा हूँ और आरंभ में कई वर्षों तक अपनी प्रतिक्रिया निरंतर भेजता भी रहा. किन्तु यह पाया कि 'भारत' मैं मुद्दे ही मुद्दे हैं, समस्या ही समस्या हैं किन्तु निदान नहीं, इस कारण सिर्फ शब्दों का एक तरफा आदान प्रदान ही संभव है - हल की इच्छा करना व्यर्थ है. (कृष्णजी ने भी यही कहा कि फल की इच्छा मत कर!) सब केवल 'टाइम पास' ही है...

केवल वे, जो समाधान चाहते हैं शब्दों द्वारा पाना, वो शायद मूर्खता करते हैं...अनुभव सिखाता है 'उपर वाले' पर विश्वास रखना, जिसके बारे में कभी यह प्रचलित था की 'उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता' :) पहले कुता पूँछ हिलाता था किन्तु अब 'घोर कलियुग' में पूँछ कुत्ते को हिलाती है :) ('मूलाधार' कहूँगा तो किसी की समझ शायद ही आये उसका योगदान, यद्यपि योग 'भारत' की ही देन है - जैसे शून्य भी और 'नादबिन्दू' अथवा विष्णु भी... बच्चों को यदि कहो गीता पढने को तो वो कहते हैं की जब ६० के होंगे, यानि सठिया जायेंगे, तब पढेंगे :)...

जय माता की :)

SACHIN KUMAR said...

मैं जरा बहस को मोड़ना चाहता हूं...यहां जो लिख रहा हूं वो मेरे ब्लॉग पर भी मौजूद है....कृप्या रविश जी और सभी पाठक ध्यान दें...धन्यवाद...


NOW TIME 4 MAYA-MULAYAM

AFTER LALU AND PASWAN WHO ARE THE BIG LOSSER IN 15th LOKSABHA NOW IT TURNS TO MAYAWATI AND MULAYAM SINGH,.
IT IS SURPRISING THOUGH LALU AND PASWAN LOST BECAUSE THEY IGNORED CONGRESS ANG GAVE AWAY 3 SEATS ONLY. WHILE MAYA AND MULAYAM ARE FIGHTING EACH OTHER TO SUPPORT CONGRESS.
THEY ARE IN HURRY WHO CAN REACH PRESIDENT FIRST TO SHOW SUPPORT LETTER TO UPA. LALU AND PASWAN LOST DUE TO NOT SUPPORTING AND IF I AM NOT WRONG MAYA AND MULAYAM WILL FACE THE MUSIC OF SUPPORTING CONGRESS IN UP ASSEMBLY ELECTION NEXT TIME. AND WHAT AJIT SING DO STILL NOT CLEAR. CONGRESS IS TRYING ITS 5 MEMBER TO BE KNOWN AS CONGRESS MEN NOT AS RLD. WELL THEN TO WHOM CONGRESS WILL FIGHT IN UP ASSEMBLY. ONLY AGAINST BJP. AJIT SINGH JOING CONGRESS MEANS CONGRESS WILL BE STRONGER IN WESTERN UP. BUT WHAT ABOUT MAYA AND MULAYAM. TO WHOM THEY OPPOSE. LOOKS LIKE TWO KINGS ARE TAKING SAME PLACE. MAYA AND MULAYAM WILL LOSS THEIR VOTES TO CONGRESS. MUSLIM VOTERS HAVE ALREADY SHIFTED TOWARDS CONGRESS AND SO ABOUT BRAHMIN AND DALIT VOTERS OF MAYA SOCIAL ENGINEERING IF AJIT SINGH CAME TO CONGRESS ITS CONGRESS GOVERNMENT IN UP NEXT TIME, BE SURE IN ADVANCE. WELL THIS IS MASTERSTROKE TO MAKE CONGRESS STRONG IN THE BIGGEST STATE. WHAT VOTER WILL DO WHEN SP AND BSP ARE SUPPORTING CONGRESS WHY NOT GIVE VOTE TO CONGRESS.WHY GIVE VOTE TO SP AND BSP. WELL DONE CONGRESS THINK TANK. IN FACT SEATS OF UPA HAS COME SUCH THAT BOTH SP AND BSP HAVE NO CHOICE BUT TO GIVE SUPPORT TO CONGRESS. OH CONGRESS COULD NOT HAVE DEMANDED FOR MORE. IT HARDLY HAPPENS IN POLITICS. EVEN I DOUBT A MAJORITY GOVERNMENT HAS SUCH COMFORTS AS MR MANHOMAN AND SONIA COMPANY HAS. YOU CAN SAY SAME ABOUT BIHAR CASE WHERE LALU HAS NO CHOICE BUT TO SUPPORT CONGRESS WHOSE MAIN OPPOSITION JDU MAY DO THE SAME IF REQUIRED. POLITICS IS DIRTY GAME BUT THIS IS SUCH A GAME YOU NEVER KNOW WHO WILL DO WHAT OR WHO WILL BE SO MAJBOOR TO DO WHAT MR MULAYAM AND MADAM MAYAWATI ARE DOING.

Ashutosh saraswat said...

रविश जी आपने ठीक कहा, बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति की उमर लम्बी नही है ।
साथ ही इस बार के चुनाव में जब हम जैसे उवाओ को वोट देने का मौका मिला तो मेरे जैसे
कई युवाओ ने कांग्रेस को वोट दिया , कारन हम युवा भारत के विविध धर्मो वाले ताने -बने को
छीन- भिन्न नही होने देना चाहते। यह हमारी खूबसूरती है ।

Unknown said...

Ravish Ji Aapke Co-anchar Abhigayan Prakash to Lalu Mulayam, Passwan ke harne par aise kush ho rahe hai jaise unke Maa ki sadi ho. Kahi ye bhumihar to nahi hai?

वेद रत्न शुक्ल said...

" एक "परिवार" की गुलामी करते-करते उनका दिमाग इतना भोथरा हो चुका है कि वे देश के भीतर गुपचुप चल रहे "देशद्रोह" को भी नज़र-अंदाज़ कर चुके हैं…।" बहुत सही सुरेश जी। योगी जी जितनी मेहनत राहुल कर दें तो बुखार आ जाए। नजदीक जाकर रवीश जी को देखना चाहिए। योगी जी धर्म गुरू भी हैं कृपया इसका भी ख्याल रखें। शिव स्वरूप बाबा गोरखनाथ पीठ के वह उत्तराधिकारी संत हैं, उनके द्वारा घोषित तिथि पर होली-दीपावली मनती है। इन तथ्यों को थ्यान में रखते हुए कोई टीका-टिप्पणी करें तो ठीक है। उनका सम्मान वह भी करते हैं जो उनको वोट नहीं देते।

Gujarish said...

तमाम टेलीविजन न्यूज चैनलों को देखता रहता हूं, लेकिन इस समय दो ही लोग अति प्रसन्न नज़र आ रहे हैं। एक हैं महामहिम विनोद दुआ और दूसरे रविश कुमार। शायद दोनों महानुभावों को लग रहा था कि बीजेपी सत्ता में आती तो देश तबाह हो जाता। चलिए शुक्र है पांच साल के लिए देश तबाही से बच गया। रविश जी, क्या आप इसका जवाब देंगे कि एनडीए के शासन में देश रसातल में चला गया था?
कान खोलकर सुन लीजिए रविश कुमार, आप बौरा गए हैं आजकल। आपको भी लगने लगा है कि बुद्धिजीवी होने का मतलब है बीजेपी की जी भरकर बुराई करो। तभी तो कल बड़े हिकारत से कह रहे थे हिन्दुत्व मतलब विकास कैसे हो गया। अगर हिम्मत है तो उस पैकेज को फिर से सुनिये रविश कुमार। शिवराज सिंह चौहान ने क्या कहा था और उसके आगे-पीछे आपने क्या कहा। अगर आपकी समझ क्षुद्र है तो दर्शकों को तो बख्श दीजिए। आपके बोल तो वरुण से भी ज़हरीले हैं मरदे। आडवाणी ना तो मोदी की वजह से हारे हैं ना वरुण के कारण। कांग्रेस भी इसलिए नहीं जीती कि मनमोहन आडवाणी की तुलना में मजबूत साबित हुए। कांग्रेस की जीत के बावजूद मनमोहन आज भी उतने ही लाचार, कमजोर और सोनिया सहारे हैं जितने कल थे। चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली है तो हर इलाके में अलग-अलग वजहें हैं।
आप कहते हैं अगर जनता ने मोदी को चुन लिया तो इसका मतलब ये नहीं मोदी का पाप माफ हो गया। तो हम इसे इस रूप में भी देख सकते हैं कि अगर जनता ने कांग्रेस को चुना तो इसका मतलब ये नहीं मनमोहन आडवाणी से मजबूत और कुशल साबित हुए। तो क्या इसका ये मतलब है कि जनता महंगाई से खुश है। जनता बेरोजगारी से भी खुश है। महंगाई के दौर में नौकरी जाने से भी खुश है। आखिर तभी तो कांग्रेस को फिर से सत्ता में ले आई जनता। नहीं, रविश कुमार चुनाव नारे से नहीं जीते जाते। अगर नारों से बीजेपी को नुकसान होता तो पीलीभीत में वरुण नहीं जीतते। गुजरात में बीजेपी का मटिय़ामेट हो जाता है। आप कहेंगे गुजरातियों की चेतना अभी जागी नहीं है। आप ऐसा कह सकते हैं क्योंकि आपके हाथ में माइक है। आपके हाथ में कलम है। आप खुश होंगे आपकी लिखाई पर खूब प्रतिक्रिया आ रही है। चलिए खुश रहने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।

Ram Shankar said...

Nagar ,Chaturvedi and Mahimamahim Ravish g,Aaapko Bharat ki janta ke dwaraa sat sat naman. Aap logo ke jaise , is hindustan me pahle paida kyun nahi hue, Agar Pahle hote to shayad hindustan ka bahut bada kalyan ho jata. aapke Bichar to itne acchche hai ki log issi ko samjh kar jinda hote. Kabhi aap logon ne aapne apne ghar yani family me jhakne ki kosis ki hai...Mere samjh se ek baar bhi nahi jhanka hoga....kyun aapke sochne se aapka kaam ho jata hoga.
jis hindustan ke logon ko aap gali de raho ho...kabhi apne girebaan me jhank kar dekho...Na hum hindu ki baat kar rahe hai na kisi aur dharm ki....Sab apne aap me samporna hai..lekin jaha apne ijjat aur aabru ki baat aati hai to khada hona parta hai..isliye Ab aam hindu khara hone ki kosis kar rha hai ,par aap jaise mahan logon ke chalte wo langda ban kar mar jata hai. AAp ke jaise log apne ijjjat ko nilam karwa dete hain...Jaha tak jute chappl ki baat hai...aap ke jaise mentality wale log hi kiya karte hai...Aaapne RSS aur bjp ka saath bahut bada hi achha bishleshan kiya hai...AGar RSS jaise sanghthan nahi hote to hindustan me AAp nahi hota yani hindu nahi hote....Aap Aass pass ke deso me dekho...Pahle kitne hindu the aab kitne bachhe hain....
Nagar ji ...aap bahut achchi tippni dete hai...Pahle aap thoda aapna shirt sambhal le tabhi dusro ke pocket me kuch najar aayega...
Aur Ravish Bahu....Appke kya kahne hai....jaise aap janamjaat hi secular janam liye hai....Jis tarah se media me jakar aap aag ugle na kaam kar rahe ...kahi aap ek ussi me jhulas na jaaye..so Thoda sa apne heart ki bhi baat man liye kijiye....Jayda Jhoot bhi kabhi sach ban jata hahi....Aaage aap khud samjhdar hai......Bolne aur karne me bahut farak hota hai....
Aaage to saari dunaiya janti hai...ki kaun sach hai aur kaun jhoot...Hamare yaha ki saari media hi videsho ke hatho biki huai hai....isme aapka ka kya dosh.....
Media sirf Hinduo ke khilaf aag ugle ka kaam kar rahi hia...Jaha tak Modi ka sawal hai...Jakar Dekho....Gujrat me...Har koi Gujrat ke dango ka naam lekar char gali de deta hai..kya waha Hindu nahi mare gye the....Muslman kya wha chup rah mar rahe the..nahi.....wah Hindu bhi maaare gye the Isko baat ko bhi AAm janta ke saamne lana hoga....Saare tthyon ko saamne lana chahiye.....

Krishna Kumar Mishra said...

जनाब बहुत खूब लिखते तो बेह्तर ही है किन्तु ब्लागर्स और ब्लाग को एक नया उत्साह और ऊंचायी दे रहे है.लिखे रहो भैया .............

ABHINAV said...

ravishji...

आपका कहना सही है कि आपकी राय बीजेपी को मान लेनी चाहिए। ऐसा क्यों नहीं करते आप बीजेपी के मीडिया सलाहकार बन जाएं। ताकि अगली बार बीजेपी सत्ता में वापिस आ सके।
खैर..हिंदुत्व की वकालत करने वालों को जनता ने इस बार सिखाया है। लेकिन गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीटीवी की ओर से गुजरात दंगों के विषय में दिखाई सीरिज का जनता ने क्या जवाब दिया। ये हम भी जानते हैं और आप भी बेहतर जानते हैं। नरेंद्र मोदी एक बार फिर उन साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों के रहनुमा बना दिए गए। तो आपकी नज़र में वे गुजराती क्या हैं जिन्होंने मोदी को जिता दिया?

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

रवीश जी का बौत सटीक विश्लेषण और उस पर पक्ष परिपक्ष की प्रत्याशित प्रतिक्रियाएं. अब मुझे लगने लगा है कि जो लोग बीजेपी/हिंदुत्व/संघ के समर्थक हैं, शायद उन्हीं को ध्यान में रखकर चचा ग़ालिब ने लिखा होगा, "या रब ना वो समझे हैं, ना वो समझेंगे मेरी बात...." भाई जब पहले से ही तै कि इस देश में हिन्दुत्व खतरे में है, मुसलमान हिन्दुओं की कीमत पर मज़े कर रहे हैं, और देश का भला घृणा की राजनीति से ही मुमकिन है, तो फिर आप लाख कहें, कोई क्यों सुनेगा? हां, मुझे कोई एक बात तो पक्के तौर पर बताये कि संघ और भाजपा का रिश्ता क्या है? दोनों एक हैं, या अलग-अलग? क्या संघ भी भाजपा के लिए वही हैसियत नहीं रखता है जिसका आरोप कॉंग्रेस या मनमोहन सिंह पर गांधी परिवार का नाम लेकर लगाया जाता है?

Unknown said...

Ab aap jaison logon ko mauka to mil hi gaya hai..jitna man aaye BJP par apna gubaar nikal lijiye..

lein jyada dino pahle ki baat nahi hai, chunaav purv aap jaise hi log ah rahe the ki Modi PM banne yogya hain..


hair aap jaise logon ne kai baar BJP ke ke khatme ki baat i hai..natija ya raha hai sab jaante hain.

Isliye aap jaise salahkaar agar BJP ko salaah na de to behtar hoga. Haan aap apni baate kahte rahiye, aakhir aapo bhi padamshri jo banna hai.

अंकुर गुप्ता said...

रवीश सर, नमस्ते! कल आपका प्रोग्राम एनडीटीवी इंडिया में देखा. आप प्राइवेट बनाम सरकारी स्कूलों की बात कर रहे थे. आपने बहुत अच्छी बातें बताईं पर कुछ बातें छूट गईं. जैसे प्राईवेट स्कूल वाले किस तरीके से घूंस बच्चों से इकट्ठी करते हैं फ़िर उसे प्रेक्टिकल एक्जाम में आने वाले जांचकर्ता को खिला देते हैं.
किस तरीके से ये अपने ही स्कूल के बच्चों को थोक के भाव नकल करवाते हैं. शायद आपको इसके लिए सबूतों की जरूरत होगी.
मैं ये सब सुनी सुनाई बातों के आधार पर नही कह रहा हूं.मैने अपनी आंखो से देखा है. जब मैं रीवा में पढ़ता था तो आठवीं बोर्ड में मेरी स्कूल में जो चेकर आये थे उन्हे बाहर बैठा लिया गया था. और सारे टीचर बच्चों तक चुटका पहुंचा रहे थे.

पढाई प्राइवेट स्कूलों में माशाअल्लाह है. मैं सेंट्रल एकैडेमी स्कूल में पढ़ता था वहां के अंग्रेजी के टीचर खुद ही बच्चों को किताब देकर बोलते थे एक्सप्लेन करो. और जब कोई नही कर पाता था तो वो खुद करते थे. लेकिन उनका अंग्रेजी का एक्सप्लेनेशन किताब की भाषा से ज्यादा कठिन होता था.

छोटे छोटे टीचरों से लेकर प्रिंसिपल तक सब ट्यूशन खोरी में लिप्त थे इस स्कूल में. ध्यान रहे मैं प्राइवेट सेंट्रल एकैडमी की बात कर रहा हूं ना कि सरकारी सेंट्रल स्कूल की.

वनमानुष said...

"छद्म" एक बढ़िया शब्द है... आरएसएस वाले "छद्म-सेकुलर" शब्द को बड़े जोश से बोलते समय ये भूल जाते हैं वे स्वयं अपने आप में "छद्म हिंदुत्व" का "छद्म सांस्कृतिक संगठन" हैं. संस्कृति के नाम पर वे बच्चों के मन में क्या जहर घोलते हैं ये मैं आपको अपने ब्लौग पर बताऊंगा(मैं क्या बताऊंगा,उपरोक्त फासिस्ट टिप्पणियों से आप लोगों का इनकी मानसिकता से अचछा परिचय हो गया होगा).

अंग्रेजो के जमाने की ड्रेस पहनेंगे, उन्ही के तरीके से सल्यूट मारते हैं, सरस्वती स्कूलों में सन्डे की छुट्टी रखते हैं और बात करेंगे संस्कृति की. घृणा फैलाने के नित नए तरीके खोजता है ये संगठन. इनके मनगढ़ंत डेमोग्राफिक(जनसँख्या) आंकडे देखकर किसी भी पढ़े लिखे आदमी को हंसी आ जाए, इतिहास गढ़ने में तो इनका जवाब नहीं(गाँधी को गोलवलकर से नहीं,गोडसे से रिप्लेस करने की चाहत है इनकी),झूठ की बुनियाद पर तो टिका है ये संगठन...इसके पदाधिकारी और मानने वाले जब "छद्म" शब्द का उपयोग करते हैं तो ये समझ लो कि खुद पर थूक रहे हैं.


अचछा, इतना ही नही...ये लोग "छद्म-वंशवाद विरोधी" भी हैं...प्रमोद महाजन के अय्याश लड़के से इन्हें कोई कोई गुरेज नहीं...,उद्धव और राज ठाकरे से तो इन्हें अटूट प्रेम है,बादल के बच्चे तो इन्हें वर्षा की पहली बूँद जैसा सुख देते हैं, गाँधी परिवार का ही वरुण गाँधी इनकी आँखों का तारा है क्योंकि वो काटने मारने की बात करता है न भैया....पर गाँधी परिवार के राहुल प्रियंका सोनिया से इन्हें सख्त घृणा है,क्योंकि वे विकास की बात करते हैं,आपसी भाईचारे की बात पर वोट मांगते हैं...

पर बंधू, अगर आज की डेट में कोई गांधी परिवार का अपमान करता है तो इसका मतलब है कि वो देश कि जनता के जनादेश का अपमान करता है जो खुद उस परिवार के सदस्यों को चुनती(ऐसे वैसे नहीं बल्कि बड़े बड़े मार्जिन से) है. अबे जब पब्लिक खुद उनको चुन रही है तो तुम कौन होते हो बोलने वाले...इतनी ही जलन है तो जाके उनके अगेंस्ट इलेक्शन में खड़े हो जाओ (जैसे बजरंगी विनय कटियार खडा हो गया था और जमानत जब्त करवा ली थी). जलनखोरी से कुछ न होगा,पहले उनके जैसा काम करके दिखाओ, जनता से जुड़ के दिखाओ...तब कही उनकी आलोचना का अधिकार तुम्हे मिलेगा. नही तो "छद्म-आत्मविश्वास" में पूरे देश में सफाचट हो जाओगे.

अगर बाबरी विध्वंस का हिन्दुओं में थोडा सा भी समर्थन होता तो ये उसी टाइम बहुमत नहीं लाते क्या? इसीसे पता चलता है कि इनके "छद्म हिंदुत्व" से देश की जनता भली भाँती परिचित है, इन्हें चांस मिला था क्योंकि जनता सीताराम केसरी की समर्थनदाता कांग्रेस से ऊब गयी थी...इनके ६ साल के शासन में ही लोगो ने इनका चाल चरित्र और चेहरा इतना पहचान लिया कि इनको २ बार धोभी पछाड़ मार दिया.सत्ता में आते ही चहुओर जो लूट खसोट मचाई बीजेपी वालों ने और विपक्ष के नेताओं के लिए जो अनाप-शनाप भाषा का प्रयोग किया था "छद्म इंडिया-शाईनिंग" के दंभ में, उसी से पता चलता है कि इनके "छद्म-सांस्कृतिक संगठन" में क्या "छद्म-संस्कार" दिए जाते हैं. ये "छद्मी पार्टी" और उसका "छद्म संघ परिवार" भूल जाते हैं कि जनता जब मारती है तो "छद्म लात" नहीं मारती पूरी लात ही मारती है.

वनमानुष said...

रवीश जी...एक बात पर गौर फरमाइयेगा, आपकी भाषा उन्हें कड़वी लग रही है जिन्हें मोदी,ठाकरे,वरुण की भाषा में शीरे सी मिठास का अनुभव होता है...बाकी लोग भी इस बात पर गौर कर ले अगर टाइम हो तो.

Anonymous said...

इस "छद्म वनमानुष" को ब्लॉग पढ़के बड़ी मिर्ची लग गयी......

जो इतने दिनों बाद इसका अनर्गल प्रलाप शुरू हो गया ......

अरे बेव..कू ..फ वनमानुष तेरे जैसे ही किसी "छद्म सेक्युलर मुल्ले" ने इस देश का बँटवारा कराया था....

तब ना तो कोई हिंदू पार्टी थी ना ही कोई हिंदुओं के बारे मे सोचता था....हाँ मुस्लिम पार्टी ज़रूर थी जिसने देश भर मे लाखों हिंदुओं को मूली गाजर की तरह काटा था......

आज जब कोई संगठन उनके विकास के लिए सोच रहा है तो तुम जैसे "छद्म सेकुलरों" को बहुत दर्द हो रहा है.......की कहीं ये देश को एकजुट ना कर दें.....

खैर तुम सोच रहे होगे की मैं किसी संगठन से हू तो बता दूं एक आम आदमी ही हू जो केवल देश के लिए सोचता है....