ये पप्पू फेल हो गया

प्रभात शुंगलू

घर के एसी में जो सुकून है वो बाहर पोलिंग बूथ की लाइन में कहां। कौन जाये इस चिलचिलाती धूप में वोट डालने। और फिर मिलेगा भी क्या। कोई नेता हमारा पप्पू बना के चला जायेगा। फिर तो हम यूं ही पप्पू भले। कौन पड़े वोटिंग के इस झंझट में। कुछ ऐसे ही बहाने बनाकर देश का मिडिल क्लास घर बैठ कर न्यू इंडिया के ताने बाने बुनता रहा। मगर वोट करने घर से बाहर नहीं निकला।

अब ये घर से बाहर मोमबत्ती लेकर निकलता है। कैमरे के सामने छाती पीटता है, देश के नेताओं को कैमरे पर अंग्रेजी में कोसता है, सुरक्षा की दुहाई देते हुये सरकार को उलाहना देता है, राजनेताओं की गिरती साख पर अफसोस जताता है। उसक देश प्रेम रात में विदेशी स्कॉच की चंद घूंटों के साथ पेशाब के रास्ते निकल जाता है।

देश का मिडिल क्लास न जाने कब से औंधे मुंह सोया पड़ा है। इसे कुछ भी विचलित नहीं करता। क्योंकि इसे बहुत कुछ बाई डीफॉल्ट मिल रहा। बंगला है गाड़ी है। मल्टीनेश्नल में नौकरी है। मां-बाप साथ नहीं रहते इसलिये उनका खर्चा भी बच जाता है। बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ रहे। शाम को मस्ती के लिये पीवीआर और पॉपकार्न तो हैं हीं।

इसे क्या मतलब इसके अपार्टमेंट के नुक्कड़ पर सैंकड़ो लोग सड़क किनारे थक हार कर बिना खाये पीये सो जाते हैं। जिनकी किस्मत अच्छी होती ही वो सुबह का सूरज देख पाते हैं वर्ना रातों रात किसी प्राडो और बीएमडब्लू का इंधन बन जाते हैं। इसे क्या मतलब शन्नो को धूप में सजा दिये जाने से उसकी जान चली जाये उसकी बला से। इसे क्या मतलब उसी गली के नुक्कड़ पर किसी की आबरू सरे आम लूट ली गयी है। इसे क्या परवाह इनके बासमती चिकन बिरयानी में आत्महत्या कर चुके हजारों किसानों के परिवार की आह सनी हुयी है। इसे क्या मतलब देश के गांव और छोटे शहरों में लोग आज भी मीलों पीने के पानी के तलाश में निकलते हैं। इसे क्या मतलब कि देश में मजहबी उन्माद फैला कर लोग आज भी संकीर्ण राजनीति खेल रहे। इस मिडिल क्लास को क्या परवाह उन सुरक्षा कर्मियों की जो अपनी जान पर खेल जाते हैं ताकि लोग बेखौफ वोट डाल सकें। इसे क्या मतलब उन सिपाहियों से जो सरहद पर जान पर खेल कर आतंकियों से लोहा ले रहे। इस अंग्रेजीदा मिडिल क्लास को 26\11 भी विचलित नहीं कर पाया। इसकी आत्मा को कोई नहीं झकझोर सकता। मंगल पांडे भी नहीं।

मंगल पांडे ने एक सोती कौम को जगाया। अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की अलख जो उसने भड़कायी वो स्वतंत्रता आंदोलन में आने वाली पीढ़ीयों के लिये मिसाल बनी। लेकिन आजादी के जश्न में विद्रोह की गुंजाइश ही नहीं बची। विद्रोह की तीली सुलगाने के लिये जरूरी मुद्दे नहीं बचे जो कभी मंगल पांडे के पास 1857 में थे या अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देने वाले गांधी के पास 1942 में। देश को पूरे तीस साल लगे ये समझते कि उनकी आजादी तो एक सड़ी गली सोच के पिंजरे में कैद थे। आजादी का मतलब वो नहीं जो इंदिरा गांधी मीसा लगा कर उनपर थोपने की कोशिश कर रही थी। जन आक्रोश उभरा। गांधी के अनुयायी जय प्रकाश ने युवाओं को संगठित किया और हिंदुस्तान को इंदिरा गांधी के जनरल डायर टाइप शासन से मुक्ति दिलायी।

लगभग दस साल बाद बोफोर्स दलाली के नाम पर देश फिर उद्वलित हुया। वीपी सिंह नें भ्रष्टाचार नाम के इस दानव का वध करने की ठानी। राजीव गांधी की गद्दी जाती रही। लेकिन आज करप्शन की बहस ड्राइंग रूम से भी गायब हो चुकी है। अंग्रेजीबाज मिडिल क्लास लोग भी मार्केट पर डिसकशन करते हैं। सेन्सेटिव इंडेक्स के लुढ़कने और चढ़ने पर हाय तौबा मचाते हैं। बात होती है दलाली और दलालों की। एटीएम की और शेयर्स की। हुन्डई और हौंडा की लेटस्ट मॉडल की। पीवीआर में नये सिनेमा की। रितु बेरी के नये डिजाइन की। पीज्जा और कोक के कॉम्बो की। शहर के नये इटैलियन और मेक्सिकन रेस्तरां की। बाजार में उतरे लेटस्ट होम थियेटर सिस्टम और डीवीडी की। सैससंग और मोटोरोला के अनेकानेक मैगापिक्सल कैमरा वाले मोबाइल सेट की। लार्ज स्क्रीन वाले टीवी सेट की। ताकि आईपीएल की चियर गर्ल्स की सेक्स अपील को ढंग से परखा जा सके। ये सब भटकाव क्या कम हैं जो हर पांच साल में चुनाव आ जाते हैं। क्या छुट्टी का मतलब आदमी अपने सारे काम ताक पर रख कर बाहर वोट डालने निकले। हाउ एलएस। यानि वोट डालना लो स्टैन्डर्ड है। इनकी शान के खिलाफ।

अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनावो की पोलिंग का औसत 63 फीसदी से घट के 55 फीसदी पर आ गया है। 21वीं शताब्दी में हमने अमेरिका से कहीं तो बराबरी की। वो सबसे पुराना लोकतंत्र है। वो दुनिया का सबसे अमीर देश है। वहां सुख, सुविधा
और संपन्नता है। वहां बिना वोट डाले ही सब कुछ मिल रहा। सबसे बड़े लोकतंत्र हिंदुस्तान में आज भी देश की एक चौथाई जनता भुखमरी के कगार पर है। लेकिन मिडिल क्लास भौंडे भौतिकवाद और रियेलिटी शो में ही असली भारत ढूंढ रहा। वो अर्ध सत्य का लबादा ओढ़े औंधा पड़ा है। उसे बदलाव नहीं चाहिये। वो मंगल पांडे को भूल चुका है। ये पप्पू रह कर ही खुश हैं।

(लेखक IBN7 न्यूज चैनल से जुड़े हैं)

11 comments:

निशाचर said...

रवीश जी, आपका आक्रोश जायज है. दरअसल मध्यम वर्ग कभी किसी क्रांति का अगुआ नहीं रहा. यह वह वर्ग है जो स्वयं को सर्वहारा से ऊँचा समझता है और उस पूंजीपति वर्ग को अपना आदर्श मानता है जिसने इनके बाप -दादा को अपनी जूती ही समझा था. यह वह वर्ग है जो सोने के चंद टुकडो के लिए पूंजीपति वर्ग का लठैत बनकर उस सर्वहारा पर अपनी मर्दानगी दिखाता है जिसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं. लानत और थू है ऐसे टुकड़खोरों पर...........

Umesh Dua said...

Ravish, aapne IBN7 join kar liya ? How will I watch NDTV without you not being there :-(

Umesh Dua said...

Oh wait.. is it the post written by प्रभात शुंगलू ? It's amazingly written and has the capability to shake one to core. It's so disappointing that middle-class takes least interest in political process whereas it's middle-class who actually is the engine of the country. I hope this sad states of affairs will change soon. Not sure how though.

समयचक्र said...

सटीक है सही में पप्पू फेल हो गया है पढ़कर एसई लग रहा है ., बहुत ही उम्दा पोस्ट. धन्यवाद.

JC said...

प्रभात शुंगलूजी का लेख पढने में सुंदर है. किन्तु यह 'middle class' न होता तो 'मध्य मार्ग' वाले गौतम बुद्ध भी न हुए होते :) खोटा सिक्का भी नहीं चलता यदि उसका खाली, (blank), तीसरा चेहरा न होता (केवल सर और पूँछ ही होती - बिना इसके वो बनता ही कैसे? यह पता नहीं :)

छतहार said...

पता नहीं वोट ना डालने पर आप लोग क्यों हायतौबा मचा रहे हैं? आखिर किसे वोट दे जनता? कोई भी जीत कर आए बात तो वही रहेगी। वोटिंग का परसेंटेज बदल जाने से क्या सब कुछ बदल जाएगा? बकबास करते हैं आप लोग। सारे चैनल छान मारे। आपने चुनावी कवरेज के नाम पर क्या दिखाया? वही नेता दिखे जो हर रोज दिखते हैं। क्या कभी आपने जनता के सामने वैसे विकल्पों को उभारा जो वाकई विकल्प बन सकते हैं? आखिर जनता को पता कैसे चले कि पिटे हुए चेहरों के बीच भी कोई है, जिसे उठाया जा सकता है। प्रभात जी, कलम चलाने से कुछ नहीं होता। आपके लिए भी शायद यही सुविधाजनक है। बिरादरी में आपका रुतबा बनेगा। लोग कहेंगे, शाबाश प्रभात क्या लिखा है। लेकिन,खुद सोचिये जनता को गरियाकर क्या आप वही नहीं कर रहे, जो आपको सुविधाजनक लग रहा है। पहर दौर में त्रकारिता में एक फैशन चलता है लकीर पीटने का। इस समय मिडिल क्लास को गरियाने का फैशन चल पड़ा है। विडंबना देखिये, गरिया कौन रहा है मिडिल क्लास (पत्रकार)ही।

दीपक said...

प्रभात जी !!

यह वर्ग विशेष की बात नही बल्की पुरे भारतीय समाज की है पुरा का पुरा भारतीय समाज एक अत्यंत स्पंदन विहीन और मुर्दा समाज होता जा रहा है इसलिये आपके वर्गविशेष की धारणा से पुरी तरह असहमत !!

अब बात आती है मतदान की जिसका बाजा आप मिडीया वाले रोज बजाते रहते है मैने दो बार वोट डाला उसके बाद वोट देने नही जाता । और मतदान का भाषण देते लोगो को देखकर एलर्जी होने लगती है ...आप बताइये मै किसे वोट दु एक चोर दुसरा बेईमान और जो रह गये निर्दलीय उन्हे आगे जाकर इनमे से किसी एक का ही दामन थामना है ! हमे "इनमे से कोई नही " चुनने का अधिकार तो ना चुनाव आयोग ने दिया है और ना हमारी इस मांग को मिडीया वाले ऊठाते है । मिडीया को भुत हवेली आई पी एल से फ़ुरसत मिले तब !

क्या आप हमारी बात देश तक पहुचायेंगे कि हमे सभी प्रत्याशीयो कोखारिज करने का अधिकार भी दिया जाना चाहिये !!ताकि कोई भ्रष्ट आदमी किसी पार्टी से टिकट पा भी जाये तोसंसद तक ना पहुंच सके ! क्या आपके टी आर पी का कुख्यात पैमाना इस बात को तवज्जो देगा ?

डा० अमर कुमार said...

लगता तो है, कि इस पोस्ट में यथानाम बहुट सत्यपरक मस्साला होगा, पर हा रे विधना.. अपुन
" उसक देश प्रेम रात में विदेशी स्कॉच की चंद घूंटों के साथ पेशाब के रास्ते निकल जाता है। " पर ही अटक गया । यह भी वाह वाह ब्राँड तैयार माल है.. मध्यम वर्ग और विदेशी स्काच ? हरे राम हरे राम, घोर कलयुग ! वह ठर्रा पीकर मूते या गम के आँसू पीकर , हाशिये पर रखे जाते रहने के बावज़ूद, सभी को टीसता तो रहता ही है !
क्षमा करें, या न भी करें.. मैं सरसरी निगाह फेर कर फ़तवे नहीं दिया करता ! वैसे प्रयास अच्छा है, अब आप बुद्धिजीवियों की ज़मात में शामिल हो सकते हैं !

Nirala said...

Nahi, Mai samjha nahi app kya kahana chate ho? Azadi ke 60 varsh badd bhi Desh hi kamman Angarejo key pithho ke haat me hai to kya hoga. Kya app mante hai 75% avadi ko majarandaz kar ke appka desh tarakki kar lega? Or app in 75% avadi ko representation denge nahi. App Delhi, Bombay Bangalore me raha kar sochate ho ki india yahi hai. EK KRANTI ABHI BAKI HAI JO IS DESH KE KACHRE KO SAFF KAREGA. TABHI KUCH HOGA.

अंकुर गुप्ता said...

छतहार जी की बात में बहुत दम है. मेरे भी कुछ ऐसे ही विचार हैं. मैं दंग रह जाता हूं कि मीडिया कभी किसी निर्दलीय उम्मीद्वार के बारे में बात क्यों नही करता है?
रवीश जी, प्लीज इस बात को स्पष्ट करें. मैं देख रहा था कि सुबह से शाम तक बस वही.. वरुण, लालू, कमजोर प्रधानमंत्री, मजबूत नेता, धर्मनिरपेक्षिता और सांप्रदायिकता.
इतने सारे निर्दलीय उम्मीद्वार खड़े हुये. कभी किसी की भी विचारधारा को जानने के लिये मीडिया को फ़ुर्सत नही मिली.

Ranjit Kumar said...

हाँ, वही मिडल क्लास तो है ये जो अपने बच्चों को बता रहा है कि तिरंगे में सबसे ऊपर ऑरेंज कलर होता है ।