अधूरी उदास नज़्में-सस्ती शायरी

१.
हमीं से आबाद है दिल्ली
हमीं से बर्बाद है दिल्ली

२.

तुम्हारी यादों में भींग चुका हूं
तुम आना इस बरसात के बाद
किस्सों में तेरी डूब चुका हूं
तुम आना इस बरसात के बाद

३.

इस शहर के जाम में फंस गए हैं
थोड़ा थोड़ा धीरे धीरे सरक रहे हैं

6 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

तुम्हारी यादों में भींग चुका हूं
तुम आना इस बरसात के बाद
किस्सों में तेरी डूब चुका हूं
तुम आना इस बरसात के बाद
bahut dard hai

Kulwant Happy said...

हमीं से आबाद है दिल्ली
हमीं से बर्बाद है दिल्ली

सही फ़रमाया है आपने....मेरे नजरिए से तो.मैं इस को चुनाव से जोड़कर देख रहा हूँ

Arvind Mishra said...

लेकिन है तो जोरदार !

Subodh Deshpande said...

good ..to aap shayar bhi hain..keep it up :)

मधुकर राजपूत said...

भाई बरसात है ही बड़ी अनप्रोडक्टिव। इसमें कोई कमाई ही नहीं होती। गांव में लोग सन की रस्सी बनाते हैं। या फिर चौपाल पर पूरा दिन गुजार देते हैं। ऐसे में तो किसी आधुनिक लड़की से बचे रहना ही भला है। आमदनी का कोई साधन नहीं होता चौमासे में। इसलिए मेले, ठेले और मॉल में घूमने वाली महबूबा से दूर ही भले। बड़ा मौज़ूं है।

Aadarsh Rathore said...

हमीं से आबाद है दिल्ली
हमीं से बर्बाद है दिल्ली