1)आंदोलनों में भी वीकेंड की व्यवस्था होनी चाहिए। दो दिन का रेस्ट मिल जाता। आंदोलन लाइव काल में मुश्किल हो गया है। अण्णा आंदोलन ने महाआख्यान को जन्म दे दिया है। सरकार के अहंकार का चूर होना, मिडिल क्लास की व्यापकता,इसके भीतर तबकों की भागीदारी पर सवाल, संसदीय दादागीरी से आंदोलन की दादागीरी तक,संघ के हाईजैक कर लेने की आशंका, एंटी आरक्षण भीड़ की साज़िश आदि आदि। पूरा आंदोलन ही रामलीला ग्राउंड हो गया है। आप भी किसी भी गेट से अपने सवालों को लेकर प्रवेश कर जाइये। इसे डिबेट मूवमेंट भी कहा जाना चाहिए।
2)अण्णा के आंदोलन में प्रतिक्रियाओं की इतनी विविधता है कि पता ही नहीं चलता कि थ्योरी कहां गई। मैं कोई संपूर्ण तो हूं नहीं। विषयांतर बहुत हुआ इसलिए मुझे भी लगा कि जमा नहीं आज मामला। रही बात चंद्रभान के सवाल की तो सुनना चाहिए।उनका काट तो था शो में। वो साहसिक व्यक्ति हैं। इसी शो में आरक्षण पर बैन की मांग का विरोध कर गए। कहा कि दलित संगठन कमज़ोर हैं। किसी आंदोलन का आत्मविश्वास बताता है कि वो हर सवाल से सामना करने के लिए तैयार है। जो लोग बीच में चैनल बदल गए मेरा नुकसान कर गए। टीआरपी लॉस।
3)आपकी प्रतिक्रियाओं से मेरी राय बदल रही है। प्राइम टाइम इतना भी बुरा नहीं था। कई सवाल मिल गए आपको शो के बाद बहस करने के लिए। वैसे भी समाधान देना मेरा काम नहीं है। सवाल खड़े हो जाएं वही बहुत है। दुखद समाचार यह है कि टीआरपी का क्या करें। क्या शो में वाकई ऐसी कमी है कि दर्शक बंध नहीं रहा। खुल कर बताइयेगा वर्ना अगले हफ्ते से प्रयोग बंद, फार्मूला चालू। नहीं ये मैं नहीं करूंगा। प्रयोग चालू रहेगा। गु़डनाइट।
4)अण्णा के आंदोलन की नियति पर सवाल कर सकते हैं मगर मुझे नहीं लगता कि इसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं है। शामिल होने वाले लोगों के लिहाज़ से और आयोजकों के समूह को देखने के लिहाज़ से। जो लोग सवाल कर रहे हैं वो किस आधार पर कह रहे हैं कि इसमें अमुक जाति के नहीं हैं और अमुक के ही हैं। यह एक जनआंदोलन है। अण्णा का भी नहीं रहा अब तो। यह लोगों का आंदोलन है। खिलाफ में बात कही जानी चाहिए मगर तथ्य तो हों पहले।
5)आशीष नंदी ने कहा कि मध्यमवर्ग को नए नज़रिये से देखने की ज़रूरत है। नब्बे के दशक के पहले के मध्यमवर्ग में नब्बे फीसदी सवर्ण थे। अब मध्यमवर्ग का ढांचा बदला है। इसमें पचास फीसदी अभी भी सवर्ण हैं लेकिन बाकी के पचास में दलित भी हैं। और भी तबके हैं। आदिवासी नहीं हैं। और यह एक शानदार आंदोलन है जिसने सत्ता के अहंकार को बेजोड़ चुनौती दी है।
6)शो के दौरान और बाद में कई दलित अधिकारियों के फोन आने लगे। कहने लगे कि दलित नहीं है इस आंदोलन में ऐसा न कहें। ऐसा कहकर आप हमें अलग-थलग कह रहे हैं। दफ्तर का फोन जाम हो गया। मुझे इस बात की गाली पड़ रही है कि दलित नहीं है ये सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। वो हैं। गढ़वाल से एक एक्ज़िक्यूटिव इंजीनियर का फोन आया। कहा कि मैं दलित हूं। रोज़ शाम को मोमबत्ती लेकर निकलता हूं। लेबर विभाग के एक अफसर का फोन आ गया। कहा कि ये सवाल हम दलितों को मुख्यधारा से अलग कर रहा है।
7)दलित जनमत के भीतर की विविधता को नज़रअंदाज़ करना ख़तरनाक है। वो दलित नहीं है। वो दलितों के रूप में हैं। शो में जब यह सवाल उठा कि दलित नहीं हैं इस मिडिल क्लास मूवमेंट में तो टीम अण्णा की एक पुरानी सदस्य संतोष ने कहा कि वे ही छत्रसाल स्टेडियम में सब संभाल रही हैं। उनके साथ बहुत दलित लड़के लड़कियां हैं। आयोजकों में कई मुस्लिम युवा हैं। अण्णा आंदोलन की नुमाइंदगी की आलोचना तथ्यों पर हो। डिब्बावाला संघ ने बताया कि उनके संगठन में सभी जाति के हैं। वो अण्णा का समर्थन कर रहे हैं।
8)मध्यमवर्ग-जब वो सो रहा था तब गाली सुन रहा था, जब जागता है तब गाली सुनता है। पाश ठीक कहते थे बीच का कोई रास्ता नहीं होता। बीच का कोई वर्ग नहीं होता। मध्यमवर्ग को नामकरण दूसरा कर लेना चाहिए। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खूबी है कि अप्रैल से अगस्त हो गया इसके भीतर इतने एंगल हैं कि आप कई सवालों और कई संभावनाओं के साथ इसे देख सकते हैं। लेकिन सिविल सोसायटी का हिन्दी नामकरण कैसा है। नागरिक जमात या नागरिक तबका। ये दोनों नाम जनसत्ता के संपादक ओम थाणवी ने सुझाये हैं। आप क्या पसंद करते हैं।
17 comments:
यही सारे बिन्दु समग्र रूप रेखा बनाते हैं।
sir aap se ek request hai. ek to aap jarurat se jyada log prime time bula lete hai dusra agar bulate bhi hai to sab ko mauka milna chayiye.aap kyon tipini lene ke bajay do main kirdaro ko aapas bhida dete hai aur fir prakash jabedkar puchte hai ki ancor kaun hai, plz sabko mauka diya karo.
जैसे पाकिस्तान में वही सत्ता पर क़ाबिज होता है जो कश्मीर पर सबसे ज़्यादा बकवास करता है.
यहां, कश्मीर की जगह जाति है..
इस देश में भ्रष्टाचार से भी बड़ा मुद्दा है जाति.
यह सरकार और अन्ना टीम का जनता को मूर्ख बनाने का मिला-जुला खेल है और कुछ नहीं।
रवीश जी,
मैं लगातार घाट रही घटनाओं पर नज़र रखे हूँ. आपके माध्यम से दो बातें रखना चाहता हूँ:
१. सरकार की जिद ने उसकी साख पर बट्टा लगाया. जिस संसद की मर्यादा की दुहाई सरकार के मंत्री दे रहे हैं, क्या वे बताएँगे कि जब बिना चर्चा के बिल पास हो जाये तो वो क्या है? सदन में नोटों कि गड्डियां लहरायें तो वो क्या है? जिस संसद को बचाने के लिए जवानों ने प्राण दिए, उनकी बरसी भी याद नही रखना क्या है? CAG की रिपोर्ट को बकवास बताना क्या है? संसद में माइक और मेज तोडना क्या है? क्या इनसे संसद की गरिमा को ठेस नही लगती?
२. अन्ना जी की मैं बड़ी इज्ज़त करता हूँ लेकिन वे भी अब व्यर्थ की जिद ले कर बैठे हैं. १० दिनों में संसद द्वारा बिल पास करने की मांग बेतुकी है. ऐसा ना हो अन्ना जी कि जो युवा आज आपके साथ है, वो कल ना रहे, अतः सरकार से बात-चीत आगे बढायें.
मैं बताना चाहूँगा कि हम सब भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं और इसका व्यावहारिक समाधान चाहते हैं. लोकपाल के जरिये सरकार युवाओं को भरोसा दे सकती है कि हम सच में एक प्रगतिशील देश हैं. दोनों पक्षों से अपील : पहला कदम तो बढायें!
अंत में, कुछ लोग जिन तक नेशनल T V नही पहुंचा : http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=16&edition=2011-08-20
रवीश सर आप अंतिम आशा हैं, नहीं तो कई पत्रकारों की करतूत देख रहा हूं, जानबूझकर ऐसे लोगों से जनलोकपाल बिल के बारे में पूछा जा रहा है जो इस आश में आंदोलन में हि्स्सा ले रहे हैं कि कल शायद हमें सरकारी दफ्तर में कुछ सम्मान मिल जाए, लेकिन जाने माने पत्रकार महोदय उनसे कानून के क्लॉज पूछ रहे हैं, भले ही उन्हें प्रेस एक्ट और संविधान का क ख ग नहीं पता हो, खैर ये सब राज्यसभा की सीट का जुगाड़ है क्योंकि ये दूरदर्शी जानते हैं कि सरकार कल भी ये लोग ही चलाएंगे, लेकिन आप से आशा है कि आप लोगों को गुमराह होने से बचाएंगे, संसद सुप्रीम नहीं है, सुप्रीम संविधान है, और जिसमें प्रावधान है कि कोई भी देश अपनी बात रख सकता है, और जब पूरा देश सात सौ सांसदों के खिलाफ है तो बहुमत किसकी है, जनता की या सांसदों की, ये किसी से छुपा नहीं है कि लोकतंत्र की दुहाई देने वाले हमारे नेता कैसे चुन कर आते हैं,
रही बात लोकतंत्र की, तो जिस देश की राजनीतिक पार्टी प्राइवेट लिमिटेड की तरह चलती हो, जहां बाप के बाद बेटे, पोते और बेटियां पार्टी चलाती हैं, वहां वह किस लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, नेता कह रहे हैं कि आधी जनता अन्ना के आंदोलन में साथ हैं, तो क्या पूरे
"नागिरक समाज
माफ करेंगे, ये अधूरा रह गया, रवीश जी इस देश के सभी राजनीतिक दल प्राइवेट लिमिटेड की तरह चल रही है,कोई सवाल पूछने वाला नहीं है, किसी नेता का बेटा कभी किसी स्तर पर चाहे आईआईटी हो या आईआईएम या फिर एस्म जैसे इंट्रेंस एक्जाम पास नहीं कर पाते लेकिन नेता जरूर बन जाते हैं, क्या लोकतंत्र इसे कहते हैं. जहां एक ही परिवार के पांच पांच लोग सांसद हों. बेटा लोकसभा में प्तनी लोकसभा बेटी लोकसभा में, दूसरा बेटा राज्य सभा में. मां राष्ट्रपति बेटा विधायक ये कैसा लोकतंत्र है भाई, और जनता सड़क पर उतरी है तो उसे संसद की अवमानना बताया जा रहा है, चालीस साल से सरकार लोकपाल बिल क्यों नहीं पास करवा पाई, लोकपाल बिल भी तब संसद में पेश किया गया जब अन्ना ने अनशन किया, आपको लगता है कि कोई भी चोर अपने खिलाफ सख्त कानून बनाएगा, अरे जो नेता पार्टी लाइन से ऊपर उठकर बोल नहीं पाते, पार्टी सुप्रीमों की चापलूसी में जिंदगी गुजार देते हैं, वो अच्छा कानून बनाएंगे, कितने लोग हैं जिन्मे बीपी सिंह के तरह दम है कि राजीव गांधी के जैसे विरोध करें, सब अपनी नौकरी और सीट बचाने के लिए तलवे रगड़ते रहते हैं, इस देश में लोकतंत्र का क्या हाल है वो आप ग्रामीण इलाकों में देख सकते हैं, जहां वोट की ठिकेदारी होती है, लाइजनर मंत्री बनते हैं, अन्ना पर सवाल उठाना सही नहीं है, रही बात अरविंद और किरण बेदी और शांति भूषण और प्रशांत भूषण की तो कम से कम ये सच बोलने और सत्ता से टकराने की हिम्मत तो रखते हैं, चोर अपने को चोर कबसे कहने लगा, आप से आशा है कि प्राइम टाइम में जो नेता संसद की दुहाई देते हैं उनसे पूछिए की लालू और अमर सिंह जैसे लोग कड़ा कानून बनाएंगे, इस आंदोलन में दलित, मुसलमान सब शामिल है, सब चाहते हैं कि कोई कानून बने जिससे पैसे की बदौलत चुनाव जीतकर आए ये लोकतंत्र के हत्यारों की नकेल कसी जा सके, आप पत्रकार हैं,लोग पत्रकारों की बातों पर भरोसा करते हैं, ऐसा नहीं हो की मीडिया भी अपना भरोसा खो दे, खासकर आपसे बहुत उम्मीद है,
जो नेता संसद की दुहाई दे रहे हैं वो सब के अपने खिलाफ कानून नहीं बनने देना चाहते, अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए इन्होंने कभी जनता की राय ली है, सभी जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए करोड़ों लगाते हैं और फिर अरबों की संपत्ति खरीद लेतें हैं,अगर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश त्रिमूर्ति को छोड़ दे तो दुनिया के किसी देश का नेता इतने करप्ट नहीं है,
आप पूछिए इन नेताओं से की आज तक आपने लूट खसोट और दंगे फसाद के आलवा किया क्या है, कोई है जो अन्ना के त्याग की बराबरी कर सके,
जो नेता आज तक संसद नहीं चला पाए वो आज जब जनता सड़क पर उतर आई है तो लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, सालों से जनता देख रही है कि किस तरह ये संसद में बात बात पर हंगामा मचाते हैं,
बीपी को वीपी सिंह पढ़े, टाइप करने में गलती हो गई, शुद्धता पर ना जाए क्योंकि मैं जताना चाहता हूं कि ये आंदोलन भी ऐसा ही है थोड़ी बहुत गलती हो सकती है,
Civil Society के कुछ संमभािवत् अनुवाद्
जाे उिचत् लगे चुन लीिजये।
इस संदृभ में मुझे "नागिरक सिमती" अिधक उपयुकत् लग रहा है
CIVIL <===> नागिरक
CIVIL <===> सामािजक
्SOCIETY <===> वर्ग
SOCIETY <===> सिमती \ सिमित ( माफी चाहूँगा । 10 साल बाद िहनदी िलख रहा हूँ । काैन सा सही शबद है भूल गया हूँ )
SOCIETY <===> सभा
SOCIETY <===> समुदाय
SOCIETY <===> समाज
SOCIETY <===> संस्था
SOCIETY <===> संग्ती
SOCIETY <===> संगत्
SOCIETY <===> समुदाय
SOCIETY <===> मंडली / मणडली
लग रहा है आपकी टेलीिवज़न पिरचरचा देखनी पड़ेगी ।
RAVISH BHAIYA,
BHRASTACHAR,AATANKVAD KE MUDDE PAR CONGRESS AUR BJP KE TV SHOWPIECE SE BAHAS KARAANE KA KOI SARTHAK MATLAB NAHI NIKALTA.KYUKI DONO ME SE KOI DUDH KA DHULA NAHI HAI.
DONO EK DUSARE KE SHASAN KE BHRASTACHAR AUR ATANKVAD KE MUDDE KO UCHHAL KAR BAHAS KO NIRARTHAK KAR DETE HAI?
JAI HO..................
यूपीए के नजरिए से अण्णा का आंदोलन अलोकतांत्रिक है। मैं यूपीए के नेताओं से पूछना चाहूंगा कि, तो िफर गांधीजी के आंदोलनों को क्या कहा जाए। क्यों कि 1947 से पहले भी देश में कानून व्यवस्था लागू थी, यह और बात है कि वह गोरों का कानून था, पर कानून तो था। गांधीजी ने इसका विरोध किया और उनके समर्थन में देश खडा हुआ, जिसके दम पर आजादी मिली। शायद कांग्रेस भी उसी तवे की रोटी आज तक खा रही है। वैसे एक बात साफ है कि 21वीं सदी के सांसद जनता के द्वारा, जनता के लिए वाले पाठ को भूल चुके हैं।
संजीव पांडेय
बिलासपुर छत्तीसगढ
अच्छा लिखा है. सचिन को भारत रत्न क्यों? कृपया पढ़े और अपने विचार अवश्य व्यक्त करे.
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com
अन्ना का आंदोलन आधुनिक भारत के समकालीन इतिहास में एक अभूतपूर्व है। इससे पहले जीतने भी आंदोलन थे वे सभी राजनीतिक पर्टियों की लामबंदी के आधार पर जन्मे थे लेकिन यह आंदोलन बिना किसी राजनीतिक लामबंदी या झंडे के तले खड़ा हुया है। इसी तथ्य में ऐसी संभावना है जो आशा जागती है। फेसबुक पर ही मेंने हर अखबार/चैनल के पेज पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ देखी। महात्मा गांधी अचानक मजबूरी का नाम नहीं रह गए और आदरणीय हो गए। लोग थोड़े कम सांप्रदायिक हो गए और देशप्रेम का सागर तो हिलोरें ले रहा है। खबर है आज अमर उजाला में की गाजियाबाद में रजिस्ट्री क्लर्क के रिश्वत मांगने पर लोगों ने कहा की वे टीम अन्ना से हैं जरा टोपी तो देना और उसी समय घूस की पर्ची फाड़ दी गयी। तो ऐसी घटनाएँ सकारात्मक संकेत ही हैं। सिविल सोसाइटी के लिए पहले भद्रलोक का प्रयोग होता आया है वैसे नागरिक समाज भी ठीक है पर लोक जमात नहीं जमता क्यूंकी लोक का मतलब आम जन भी होता है जबकि सिविल सोसाइटी आम जनों से थोड़ा हट कर ही है।
Sir kesi baat kar rahe hai.. !!
Prime time zabardast show hai aur rahega .. bat rahi ravish ki report ki toh uska zariya kuch aur tha aur iska kuch aur hai.! dhul miti mei ap bi ghum lia bahut aur ap make up karke studio mei baithiye aramm se jaise apne kaha ta kuch puchna hai muje bi t.v par bahut bolne walo se toh wo kam apka jari hai..!!
Jaha tak baat rahi apke show ki toh sir mei apko btadu samadhan dena haqiqat mei apka kam ni hai sawal banna zaruri hai.. par maine apke facebook fan page pe dheka hai jab ap thora sa direct ya in-direct way mei apna paksh rakhte hai beshak wo 1% ho tab public aur khus hoti hai jaisa zameen adhigrhan mamle mei apne kia ta.. ap jasbati ho gaye tey. yeh chiz apko aam janta se jorti hai .. th main th apke bache saman hu raye dena mere bas ki bat ni guru idiol bhgwan hai ap humare..
bs itna kahunga ki prime time naam ke 3 mandir dhekne ko milte hai ndtv pe ek journalism krne wale chatar ko jisme se tulna karna kisi ki kisi se thik nai..
parantu mera pun viswas ravish bhgwan mei hai th mei pehle unke mandir ko dhekna pasand karunga hala ki dusre mandir'o mei bahar se matha zarur tek dunga.!
bas iss mandir ko yui chalne dijiye aur iski chamak dhamak bariaye ..
jaha tak bat rahi t.r.p ki th apki kasam sir apka show siru hone ke baad channel change ni hota.
apne kaha ta ki remote side rakhe aur isi karan varsh maine remote bi tor dia aur naya remote lene ka vichar tak ni banya..!!
dhynavad aapka chella..
kal maine candle march me bhag liya aur aaj gandhi setu par overtaking ke punishment se bachane ke liye do sau pachas rupaye rishwat diya, kya isaka samadhan sambhav hai?
mere man me aparadhbodh jaga-kya yah hamare naitik mandando me pariwartan ki shuruat nahin hai?
thank you sir, aapko sune bina janlokpal par bahas adhuri lagati hai.pratibaddha patrakarita ki achchi misal prastut kar rahe hain aap.
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